मैकाले के विवरण पत्र के विषय में आप क्या जानते हैं? भारत में पाश्चात्य शिक्षा के लिए मैकाले के योगदान का वर्णन कीजिए । What do you know about Macaulay’s Minutes? Describe the contribution of Macaulay to Western education in India.
कम्पनी के आज्ञा पत्र के पुनरावर्तन के पश्चात् (अर्थात् 20 वर्ष बाद प्रसारित 1833 के आज्ञा पत्र में) भी इस विवाद का अन्त नहीं हुआ और 1813 के आज्ञा पत्र की धारा 43 ( शिक्षा पर एक लाख रुपये की धनराशि व्यय करने के सम्बन्ध में) का कोई • स्थायी हल ईस्ट इण्डिया कम्पनी नहीं कर पाई। अतः जनवरी, 1835 में ‘लोक – शिक्षा समिति के मन्त्री ने दोनों दलों के वक्तव्यों को भारत के गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक (तात्कालिक गवर्नर) के सामने प्रस्तुत किया ।
मैकाले का विवरण – पत्र, 1835 (Macaulay’s Minutes, 1835 ) लार्ड मैकाले ने 10 जून, 1834 को भारत के गवर्नर जनरल की काउन्सिल के कानूनी सलाहकार (कानून- सदस्य) के रूप में नियुक्त होकर भारत में पदार्पण किया था। तब तक प्राच्य और पाश्चात्य विवाद ने एक बड़ा रूप ले लिया था और इसका कोई अन्त नजर नहीं आ रहा था। उस समय तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक ने मैकाले को बुलाया और उसे बंगाल की लोक शिक्षा समिति का अध्यक्ष नियुक्त करते हुए उससे यह अपेक्षा की कि वे 1813 के आज्ञा पत्र की धारा 43 में उत्पन्न हुए विवाद का स्थायी हल सुझाए तथा साथ ही साथ ‘साहित्य’ और ‘भारतीय विद्वान’ का आशय स्पष्ट करते हुए, 1813 के आज्ञा पत्र में वर्णित ₹1 लाख की धनराशि को खर्च करने की मदों का भी स्पष्टीकरण दे। चूँकि मैकाले अंग्रेजी साहित्य के घोर समर्थक, प्रकाण्ड विद्वान तथा एक कुशल वक्ता थे।
भारत आने पर मैकाले को ‘लोक शिक्षा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। लार्ड विलियम बैंटिक ने मैकाले से प्राच्य – पाश्चात्य विवाद का अन्त करने तथा एक लाख रुपये की धनराशि शिक्षा पर किस प्रकार खर्च की जाए, इससे सम्बन्धित कानूनी परामर्श माँगा। अत: सबसे पहले मैकाले ने 1813 के आज्ञा पत्र की धारा 43 का गहनता से अध्ययन किया और अध्ययन करने के पश्चात् 2 फरवरी, 1835 में अपने तर्कों और विचारों को स्पष्ट कर तर्कपूर्ण भाषा में लेख बद्ध कर दिया और विवरण – पत्र गवर्नर जनरल को सौंप दिया। इस विवरण – पत्र को ही ‘मैकाले का विवरण-पत्र, 1835’ के नाम से जाना जाता है। इस विवरण – पत्र में मैकाले ने 1813 के आज्ञा पत्र में उत्पन्न प्राच्य – पाश्चात्य विवाद का अन्त करने के लिए ठोस सुझाव प्रस्तुत किए ।
मैकाले एक कुशल विद्वान होने के साथ-साथ पाश्चात्य साहित्य का भी घोर समर्थक था तथा प्राच्य साहित्य के ज्ञान को निरर्थक मानता था । अतः उसने धारा 43 की व्याख्या जिस चतुराई के साथ की, वह उसकी कुशलता ही कही जाएगी। मैकाले द्वारा की गई धारा 43 की व्याख्या का विवरण इस प्रकार है-
- ‘साहित्य’ शब्द से आशय – मैकाले ने धारा 43 की व्याख्या में साहित्य शब्द को स्पष्ट करते हुए लिखा कि साहित्य के अन्तर्गत अंग्रेजी साहित्य भी आएगा न कि केवल अरबी और फारसी साहित्य |
- ‘भारतीय विद्वान’ से आशय – भारतीय विद्वानों के अन्तर्गत वे विद्वान आएंगे जो लॉक व मिल्टन के दर्शन तथा कविता से सम्बन्धित हो अर्थात् केवल प्राच्य विद्वान ही नहीं अपितु पाश्चात्य विद्वान भी इस श्रेणी में आएंगे।
- एक लाख रुपये व्यय करने के सम्बन्ध में – मैकाले ने अपने विवरण – पत्र में लिखा कि एक लाख रुपये की धनराशि पर कम्पनी का अधिकार है और कम्पनी जिस प्रकार चाहे यह धनराशि खर्च कर सकती है। उसे इस धनराशि को खर्च करने में किसी भी प्रकार की कोई बाध्यता नहीं है।
- अंग्रेजी साहित्य संसार का सर्वश्रेष्ठ साहित्य है। इसका ज्ञान-विज्ञान अपार है।
- अंग्रेजी भाषा में श्रेष्ठ ज्ञान का भण्डार है जिसे विश्व के बुद्धिजीवियों ने बनाया है। इसलिए भारतीयों को इसका ज्ञान अवश्य करना चाहिए ।
- शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी भाषा को बना दिया जाए क्योंकि भारत में प्रचलित देशी भाषाएं अविकसित हैं। इनका शब्दकोष बहुत सीमित है। इनके माध्यम से भारतीयों को अंग्रेजी साहित्य के ज्ञान-विज्ञान से परिचित नहीं कराया जा सकता।
- मैकाले ने भारतीय साहित्य को निम्न कोटि का मानते हुए लिखा कि “एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की मात्र एक अलमारी में रखी गई पुस्तकें सम्पूर्ण भारत और अरबी साहित्य के बराबर हैं । “
- भारतीय इतिहास की निन्दा करते हुए लिखा कि भारतीय इतिहास में 60 फीट लम्बे राजाओं का वर्णन है जो रर्थक है।
- भारतीय भूगोल के विषय में मैकाले ने लिखा कि इसमें मक्खन और शीरे के समुद्रों का वर्णन है।
- भारतीय चिकित्सा साहित्य के विषय में मैकाले ने लिखा कि यह ऐसा चिकित्सा साहित्य है जिसके ज्ञान से अंग्रेज पशु-चिकित्सकों को भी शर्म आएगी। इनका ज्ञान प्रदान करना बिल्कुल निरर्थक है।
- अंग्रेजी भाषा की प्रशंसा करते हुए लिखा कि यह भाषा सभी भाषाओं में श्रेष्ठ है जो इस भाषा का ज्ञान रखते हैं वे बुद्धिजीवी हैं।
- अंग्रेजी शासक वर्ग की भाषा है। भारत में उच्च वर्ग के लोग इस भाषा के प्रति रुचि रखते हैं इसलिए इसे शिक्षा का माध्यम बना दिया जाए।
- भारतीय भी अंग्रेजी भाषा को सीखने में रुचि रखते हैं इसलिए इन्हें अंग्रेजी भाषा की शिक्षा प्रदान की जाए।
- संस्कृत और अरबी स्कूल तथा कॉलेज तुरन्त बन्द कर दिए जाएं क्योंकि इनसे केवल सरकार के धन की बर्बादी होगी।
- अंग्रेजी माध्यम के स्कूल और कॉलेज खोले जाएं जिनसे सभी को अंग्रेजी का ज्ञान दिया जा सके।
- कम्पनी के पास इतना धन नहीं है कि वह उच्च शिक्षा की व्यवस्था सभी के लिए कर सके । इसलिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था केवल उच्च वर्ग के लिए की जाए, उनके सम्पर्क में आकर निम्न वर्ग तक शिक्षा स्वयं ही पहुँच जाएगी।
मैकाले के विवरण – पत्र के गुण (merits of macaulay’s minutes)
- प्राच्य–पाश्चात्य विवाद के विषय में चतुराई पूर्ण सुझाव- मैकाले भारत में पाश्चात्य साहित्य तथा ज्ञान-विज्ञान का प्रचार व प्रसार करना चाहता था परन्तु उसने जिस चतुराई से धारा 43 की व्याख्या की उसके लिए वह प्रशंसा का पात्र है। उसने अपने तर्क इस प्रकार प्रस्तुत किए कि भारतीय भी उसके शब्दजाल में फँस गए तथा वे भी उसके तर्कों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।
- पाश्चात्य साहित्य की वकालत-मैकाले ने पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान के पक्ष में इतने ठोस तर्क प्रस्तुत किए कि जिससे यह लगने लगा कि पाश्चात्य साहित्य संसार का सर्वश्रेष्ठ साहित्य है। मैकाले ने भारतीयों को पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान से परिचित कराने के लिए कहा। यह उसके विवरण–पत्र का एक महत्त्वपूर्ण गुण था ।
- प्रगतिशील शिक्षा की वकालत – उस समय भारत में जो शिक्षां दी जा रही थी, वह रूढ़िवादी थी। प्राचीन शिक्षा साहित्य प्रधान थी एवं शिक्षण विषयों में भी किसी प्रकार की आधुनिकता नहीं थी। मैकाले ने भारतीय रूढ़िवादी शिक्षा को आधुनिक बनाने पर जोर दिया। उसने भारत में प्रगतिशील शिक्षा की व्यवस्था पर बल दिया जो उसके विवरण- पत्र का एक गुण है।
- धार्मिक शिक्षा पर रोक – उस समय वैदिक पाठशालाओं में हिन्दू धर्म की, मकतब और मदरसों में इस्लाम धर्म की, ईसाई मिशनरियों के स्कूलों में ईसाई धर्म की शिक्षा अनिवार्य दी जा रही थी। मैकाले ने सरकार द्वारा अनुदान प्राप्त किसी भी स्कूल में धार्मिक शिक्षा न दिए जाने की सिफारिश की, यह उसका स्वागतयोग्य सुझाव था । रूप
- धारा 43 की पक्षपातपूर्ण व्याख्या – मैकाले ने आज्ञा पत्र 1813 की धारा 43 की जिस प्रकार व्याख्या की, वह पक्षपातपूर्ण थी। यह बात दूसरी है कि उसने अपने चतुराईपूर्ण तर्कों से धारा 43 की व्याख्या को उचित सिद्ध कर दिया ।
- शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी को बनाना निराधार – किसी भी देश की शिक्षा का माध्यम उस देश की मातृभाषा अथवा प्रान्तों की प्रान्तीय भाषाएं होनी चाहिए किन्तु मैकाले ने भारत में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी को बनाने का सुझाव दिए जो निराधार था । इससे बहुत से भारतीय शिक्षा प्राप्त करने से वंचित हो गए।
- भारतीय साहित्य का अपमान – मैकाले ने भारतीय साहित्य को बहुत ही निम्न कोटि का बताया एवं उसका मजाक उड़ाया। अगर मैकाले ने ऋग्वेद, उपनिषद् के आध्यात्मिक ज्ञान, अथर्ववेद के भौतिक ज्ञान और चरक सहिंता के आयुर्वेद विज्ञान आदि का अध्ययन किया होता तो वह ऐसा कभी नहीं कहता ।
- भारत में एक नए वर्ग का निर्माण – मैकाले भारत में एक ऐसे वर्ग का निर्माण करना चाहता था जो कि पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति के समर्थक हों तथा ब्रिटिश शासकों को भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करने में सहायता प्रदान करें। वे जन्म से तो भारतीय हो परन्तु विचारों, रूचियों तथा आचारों से अंग्रेज हो ।
- भारतीय भाषाओं की उपेक्षा- मैकाले ने भारतीय भाषाओं के सम्बन्ध में लिखा कि ये अविकसित तथा गंवारू हैं भारतीयों को भी इन भाषाओं को सीखने में कोई रुचि नहीं है। इसलिए इन भाषाओं के माध्यम से शिक्षा देना तुरन्त बन्द कर दिया जाए जिसके फलस्वरूप भारतीय भाषाओं की उपेक्षा होनी शुरू हो गई।
- उच्च शिक्षा देने में भेदभाव – शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से है। किसी भी जाति या वर्ग के लिए उसको सीमित करना मानवीय अधिकारों का हनन है। मैकाले ने उच्च शिक्षा की व्यवस्था केवल उच्च वर्ग के लोगों के लिए कही जो कि एक अनुचित सुझाव था। उसने कहा कि उच्च वर्ग के सम्पर्क में आकर शिक्षा निम्न वर्ग तक स्वयं ही पहुँच जाएगी। यह उसका चालाकी भरा सुझाव था, इससे उच्च शिक्षा देने में भेदभाव उत्पन्न हो गया और उच्च शिक्षा केवल उच्च वर्ग के लोगों तक ही सीमित हो गई। इससे भारत में दो वर्ग उत्पन्न हो गए–एक उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाला उच्च वर्ग और दूसरा उच्च शिक्षा से वंचित निम्न वर्ग ।
- तत्कालीन प्रभाव एवं
- दीर्घकालीन प्रभाव |
- भारत में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल और महाविद्यालय खुलने शुरू हो गए। इनकी नींव इतनी मजबूत थी कि इसका विकास बहुत तेजी से हुआ और यह शिक्षा प्रणाली हमारे देश की मूल शिक्षा प्रणाली बन गई। आज भी हमारी शिक्षा इसी माध्यम पर आधारित है।
- सरकार ने एक आदेश पत्र जारी किया जिसमें यह निर्देश दिया गया कि सरकारी नौकरियों में जो अभ्यर्थी अंग्रेजी का ज्ञान रखते हों, उन्हें वरीयता दी जाए। उस समय केवल वरीयता दी गई थी जबकि वर्तमान में सरकारी नौकरी के लिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होना अनिवार्यता बन गयी है ।
- अंग्रेजी को राजकाज की भाषा घोषित कर दिया गया। मैकाले ने अंग्रेजी भाषा के पक्ष में इतने ठोस सुझाव दिए थे कि इनके परिणामस्वरूप अंग्रेजी भाषा का महत्त्व बढ़ गया ।
- सरकार, मैकाले के सुझावों से इतना प्रभावित हुई कि इन सुझावों के आधार पर उसने अपनी नई शिक्षा नीति की घोषणा कर दी ।
- भारतीयों को पाश्चात्य साहित्य तथा अंग्रेजी का ज्ञान र्तमान हुआ। इसके विषय में जानकारी मिली जिससे सन्दर्भ में अनेक लाभ हुए ।
- जिस समय मैकाले भारत में आया था। उस समय भारत में जो शिक्षा व्यवस्था थी, वह रूढ़िवादी थी। मैकाले ने उसके स्थान पर ऐसी शिक्षा व्यवस्था करने के लिए कहा जिससे बालक तथा राष्ट्र की उन्नति हो सके।
- उस समय जो शिक्षा व्यवस्था थी, वह धार्मिक अधिक थी तथा उसमें सामाजिकता का अभाव था । मैकाले ने भारत में धार्मिक शिक्षा का विरोध किया। किसी भी लोकतन्त्र में धार्मिक शिक्षा एक निश्चित मापदण्ड तक ही दी जानी चाहिए।
- मैकाले के सुझावों से प्रभावित होकर भारतीयों ने पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति के प्रति रूचि दिखाई। अपनी सभ्यता को छोड़कर दूसरी सभ्यता से प्रभावित होना किसी भी प्रकार से देशहित नहीं कहा जा सकता।
मैकाले भारत में अपने धर्म और साहित्य का विकास करना चाहता था। वह यहाँ पर अपने धर्म और साहित्य के पक्ष में ठोस तर्क लेकर आया था। उसने प्राच्य साहित्य को निम्न मानकर भारत में पाश्चात्य साहित्य एवं अंग्रेजी भाषा को महत्त्वपूर्ण बना दिया। उसके सुझावों के आधार पर भारत में अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली की शुरुआत हुई। इससे हमें लाभ भी हुए। इसी की शिक्षा प्राप्त करने के बाद भारतीय देश-विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। दूसरे देशों में अच्छे पदों पर नियुक्त हो रहे हैं। स्वतन्त्र होने के बाद हमने अपनी शिक्षा का माध्यम अपनी क्षेत्रीय भाषाओं को ही बनाया परन्तु अंग्रेजी भी बराबर शिक्षा का माध्यम बनी हुई है। इसके लिए मैकाले धन्यवाद का पात्र है।
“समाज के उन वर्गों ( उच्च वर्गों) में उच्च शिक्षा का प्रसार करना चाहिए जिसके पास अध्ययन के लिए समय है और • जिनकी संस्कृति जनता में छन-छन कर पहुँचेगी।”
इस सिद्धान्त के प्रतिपादक लॉर्ड मैकाले माने जाते हैं किन्तु सबसे पहले ईसाई मिशनरियों ने यह विचार दिया कि अगर भारत के उच्च वर्ग के लोग ईसाई धर्म स्वीकार कर लें तो उनसे प्रभावित होकर निम्न वर्ग के लोग खुद ही ईसाई धर्म स्वीकार कर लेगें।
23 दिसम्बर, 1823 में बम्बई के गवर्नर की कौंसिल के सदस्य वार्डन ने अपने विवरण – पत्र में शिक्षा के विषय में यह कहा कि “बहुत से व्यक्तियों को थोड़ा ज्ञान देने की अपेक्षा थोड़े से व्यक्तियों को ज्यादा ज्ञान देना अधिक उत्तम है” ।
1830 में कम्पनी के संचालकों ने मद्रास के गवर्नर को यह परामर्श दिया कि “शिक्षा की प्रगति तब ही हो सकती है जब उच्च वर्ग के उन व्यक्तियों को शिक्षा प्रदान की जाए जिनके पास शिक्षा प्राप्त करने का पर्याप्त समय हो और उनका अपने देशवासियों पर प्रभाव हो । “
इसके बाद 1835 में लार्ड मैकाले ने अपने विवरण – पत्र में इस सिद्धान्त के पक्ष में यह सुझाव दिया कि शुरूआत में उच्च शिक्षा की व्यवस्था उन उच्च वर्ग के व्यक्तियों के लिए की जाए जो हमारे और उन लाखों व्यक्तियों के बीच में, जिन पर हम शासन करते हैं, दो-भाषिए का कार्य करे। इस सबसे शिक्षा जगत में एक सिद्धान्त का उद्भव हुआ। वह यह था कि सरकार को उच्च वर्गों में उच्च शिक्षा का प्रसार करना चाहिए। उच्च वर्ग से निम्न वर्ग तक वह स्वयं ही छन-छन कर पहुँच जाएगी। इस सिद्धान्त को छनन का सिद्धान्त अथवा निस्यन्दन सिद्धान्त के नाम से शिक्षा जगत में जाना जाता है।