रूढ़ियुक्तियों को पोषित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए। रूढ़ियुक्तियों का महत्त्व एवं रूढ़ियुक्तियों के द्वारा उत्पन्न समस्याओं पर चर्चा कीजिए | Describe the Factors fostering the Stereotypes. Discuss the Importance of Stereotypes and Problems Caused by Stereotypes
प्रश्न – रूढ़ियुक्तियों को पोषित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए। रूढ़ियुक्तियों का महत्त्व एवं रूढ़ियुक्तियों के द्वारा उत्पन्न समस्याओं पर चर्चा कीजिए | Describe the Factors fostering the Stereotypes. Discuss the Importance of Stereotypes and Problems Caused by Stereotypes.
उत्तर – रूढ़ियुक्तियों को पोषित करने वाले कारक
समाज के सभी व्यक्तियों में रूढ़ियुक्तियाँ नहीं होती है। कुछ व्यक्तियों में यह होती है, तथा कुछ में नहीं होती है इसका स्पष्ट मतलब यह है कि रूढ़ियुक्तियाँ अर्जित होती है, जन्मजात नहीं समाज मनोवैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे कारकों का भी वर्णन किया है जिसके द्वारा व्यक्ति में रूढ़ियुक्तियाँ विकसित तथा सम्पोषित होती हैं। ऐसे प्रमुख कारक निम्नांकित है-
- अपूर्ण अनुभव एवं अधूरा ज्ञान-किसी वर्ग या समुदाय के बारे में रूढ़ियुक्तियाँ पोषित होने का एक प्रमुख कारण है उस वर्ग या समुदाय विशेष के कुछ ही व्यक्तियों के प्राप्त खंडित अनुभव एवं अल्प ज्ञान या जानकारी होना । वस्तुतः जब व्यक्ति किसी वर्ग विशेष के कुछ ही व्यक्तियों से सम्पर्क स्थापित कर पाता है फलतः वह अधूरा ही ज्ञान प्राप्त कर पाता है और उसी आधार पर वह उस पूरे वर्ग या समुदाय के बारे में एक अवधारणा बना लेता है जिसे रूढ़ियुक्ति कहते हैं। उदाहरणार्थ- कुछ किशोरों में तनाव, संघर्ष, विद्रोही, उत्पाती आदि शील गुण लोगों ने पाया होगा और इस आधार पर लोगों में सम्पूर्ण किशोर समस्या प्रतिबल, तनाव, संघर्ष, विद्रोही, उत्पाती और लड़ाई झगड़े की आयु होती जैसी रूढ़ियुक्ति का जन्म हुआ होगा। यदि हम किशोरावस्था का सम्पूर्ण अध्ययन करें तो हम पायेंगे कि जितने भी आविष्कारक हुए हैं, जितने भी समाज सुधारक हुए हैं तथा हमारे देश को स्वतंत्र कराने में जिनका योगदान है वह किशोर ही हैं। लगभग इसी ढंग की बात सभी रूढ़ियुक्तियों में पायी जाती है।
- समाजीकरण – रूढ़ियुक्तियों का निर्माण समाजीकरण द्वारा होता है। समाजीकरण प्रक्रियाओं में व्यक्ति रूढ़ियुक्तियों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सीखता है। समाजीकरण की प्रथम सीढ़ी उसका स्वयं का परिवार होता है जिसमें माता-पिता की भूमिका प्रमुख होती है। माता-पिता स्वयं की रूढ़ियुक्तियों को बालकों में विकसित करने का प्रयास करते हैं। फलस्वरुप बालकों में भी दो रूढ़ियाँ विकसित हो जाती है। उदाहरण के लिए- ‘माता पिता मानते है कि मुसलमान लोग अविश्वासी होते हैं, अतः वह बालकों में भी यही रूढ़ियुक्ति विकसित कराने में प्रयत्नशील रहते हैं। इस प्रकार माता पिता की रुढ़ियुक्तियों तथा उनके सन्तानों की रूढ़ियुक्तियों में काफी समानता होती है।
- सामाजिक एवं सांस्कृतिक दूरी- सामाजिक एवं सांस्कृतिक दूरी से रूढ़ियुक्तियों का विकास एवं सम्पोषण होता है। सामाजिक दूरी के कारण एक समाज के लोग दूसरे समाज के बारे में विस्तृत एवं सच्ची जानकारी नहीं रखते हैं फलस्वरूप एक समाज के लोगों में दूसरे समाज के प्रति अज्ञानता का विकास होता है जिससे रूढ़ियुक्तियों का निर्माण होता है। इसी प्रकार सांस्कृतिक दूरी के कारण एक संस्कृति के लोग दूसरी संस्कृति के लोगों के रहन सहन, तौर तरीके के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं प्राप्त कर पाते हैं जिसके कारण उस संस्कृति के बारे में जो कुछ कहा जाता है, व्यक्ति उसे मान लेता है। इससे रूढ़ियुक्ति का निर्माण तीव्र गति से होता है क्योंकि यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तान्तरित होती है ।
- अनुसरण – रूढ़ियुक्तियों के विकास एवं पोषण में अनुसरण की प्रवृत्ति भी उत्तरदायी है। मानव स्वभाव से ही अनुसरण करता रहा है। फलतः वह जिन लोगों के अधिक संम्पर्क में रहता है उनके विचारों एवं विश्वासों का शीघ्र अनुसरण कर उन्हें अपना लेता है। इस प्रकार अनुसरण से रूढ़ियुक्तियों का विकास व पोषण होता है। अगर व्यक्ति ‘हिन्दू है तो वह हिन्दू भाईयों की रूढ़ियों को अपना लेता है। चूंकि अन्य जातियों जैसे मुसलमानों से सम्पर्क नहीं बना पाता है। अतः उनकी रूढ़ियुक्तियों को शीघ्र नहीं जान पाता है। फलतः वह मुसलमानों के विश्वासों व विचारों का अनुसरण नहीं करता है।
- परम्परा एवं लोकरीतियाँ – रूढ़ियुक्तियों के विकास में हमारी परम्पराओं एवं लोकरीतियों की भी महती भूमिका होती है। प्रत्येक व्यक्ति अपने समाज की परम्परा में प्रचलित रूढ़ियुक्तियों को शीघ्र अपना लेता है जो उसे अपनी पीढ़ियों से प्राप्त हुआ है। वह इस बात पर कभी ध्यान नहीं देता है कि वह उपयुक्त है अथवा नहीं। फलतः ये परम्परा व लोकरीतियाँ रूढ़ियुक्तियों को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होती रहती है।
रूढ़ियुक्तियों का महत्त्व (Importance of Stereotypes)
रूढ़ियुक्तियों का सामाजिक जीवन एवं व्यक्ति प्रत्यक्षण में अत्यधिक महत्त्व है अब इनका महत्त्व किस प्रकार है उसका क्रमशः विवेचन इस प्रकार है-
सामाजिक जीवन में रूढ़ियुक्तियों का कार्य एवं महत्त्व
हमारे सामाजिक जीवन में रूढ़ियुक्तियों का अधिक महत्त्व है क्योंकि इसका प्रभाव सामाजिक अन्तः क्रियाओं पर सीधा पड़ता है। प्रत्येक समाज एवं संस्कृति में कुछ निश्चित रूढ़ियुक्तियां होती हैं जिनके आधार पर हम किसी वर्ग या समुदाय के लोगों के बारे में एक सामान्य अर्थ लगाते हैं तथा जिससे हमें सामाजिक अन्तः क्रिया करने में मदद मिलती है। उदाहरणार्थजब हम यह रूढ़ियुक्ति सुनते है कि शिक्षक आदर्शवादी होते हैं तो हमें किसी शिक्षक के साथ अन्तः क्रिया करते समय आदर्शवादी विचारों की उम्मीद बनी रहती है और इसी के अनुसार हम व्यवहार करते हैं। रूढ़ियुक्तियाँ हमारे लिए महत्त्वपूर्ण इसलिए हैं क्योंकि इनके द्वारा निम्नांकित कार्य सम्पन्न होते हैं –
- सामाजिक व्यवहारों को सार्थक बनाना – रूढ़ियुक्तियाँ हमें सामाजिक व्यवहारों को समझने में सहायता करती हैं। उदाहरणार्थ- समाज में एक रूढ़ियुक्ति है कि राजनेता अवसरवादी, स्वार्थी, पद लोलुप होते हैं फलतः जब भी हम किसी राजनेता से बातचीत करते हैं तो उनके प्रत्येक कथन को इस रूढ़ियुक्ति द्वारा समझने का प्रयास करते हैं। फलतः हम आसानी से उनकी बातों में नहीं आते हैं। सोच समझकर आगे कदम बढ़ाते हैं। अन्य उदाहरण ईसाई धर्म प्रचारक होते हैं अतः उनसे दूर रहते हैं।
- सामाजिक व्यवहारों को नियन्त्रित करना – रूढ़ियुक्तियाँ हमारे सामाजिक व्यवहारों को नियन्त्रित रखती है। उदाहरणार्थ– भारतीय पत्नी के लिए पति देवता होता है। इस रूढ़ियुक्ति से पत्नी का व्यवहार अपने आप ही पति की सेवा की ओर लगा रहता है तथा उसके प्रति आस्था श्रद्धा का भाव लगा रहता है। इसी प्रकार भारतीय नागरिक ईश्वर में आस्था रखते हैं अतः गलत कार्य करने से डरते हैं और उनका आशावादी दृष्टिकोण बना रहता है कि ईश्वर सबका भला करेगा। इससे उनका जीवन सुखमय बना रहता है।
- व्यवसायिक प्रचार में मदद करना- -रूढ़ियुक्तियाँ व्यावसायिक प्रचार के क्षेत्र में मददगार सिद्ध हुई है जिसके कारण उत्पादन में वृद्धि होती है। उदाहरणार्थ’सफाई से रिश्ता जिसका मैल कहीं न टिकता नाम बताओ उसका निरमा वाशिंग पाऊडर’, ‘तन्दुरुस्ती की रक्षा करता है लाइफबॉय, लाइफबॉय है जहाँ तन्दुरुस्ती है वहाँ ‘यह फेविकॉल का मजबूत जोड़ है तोड़ने पर भी न टूटे’ भारत का सबसे नम्बर वन जे.के. व्हाईट सीमेन्ट इत्यादि रूढ़ियुक्तियों से सम्बन्धित प्रचारों व विज्ञापनों को अत्यधिक बल मिलता है तथा ग्राहक के मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ता है।
- पूर्वानुमान में सहायक होना- समाज की रूढ़ियुक्तियों के आधार पर हम पूर्वानुमान करते हैं, रूढ़ियुक्ति सही है या गलत उसके आधार पर हम कार्य करते हैं। उदाहरणार्थ’नेपाली नौकर काफी ईमानदार एवं विश्वसनीय होता है।’ इस रूढ़ियुक्ति के आधार पर हम यह पूर्वानुमान लगा सकते हैं कि ऐसे नौकर के भरोसे घर छोड़कर बाहर जा सकते हैं। इसी प्रकार से पहाड़ी नौकर परिश्रमी होते हैं तो हम यह भविष्यवाणी कर सकते हैं कि हमारे घर का कार्य सुचारु रूप से होगा। इस प्रकार से रूढ़ि उक्ति है कि ‘गोरखा बहुत बहादुर एवं साहसी होता है अतः युद्ध में गोरखा सिपाहियों को देखकर हम यह भविष्यवाणी कर सकते हैं कि युद्ध में हमारी जीत होगी।’
रूढ़ियुक्तियों का व्यक्ति प्रत्यक्षण में महत्त्व
रूढ़ियुक्तियों का व्यक्ति प्रत्यक्षण में महत्त्व इस प्रकार वर्णित है-
- सामाजिक संज्ञान का एक विशेष तत्त्व रूढ़ियुक्तियाँ है। रूढ़ियुक्ति में किसी समूह के सदस्यों के विषय में एक स्थूल सामान्यीकरण किया जाता है जिसमें वैयक्तिक विभिन्नता पर बिल्कुल ही ध्यान नहीं दिया जाता है। वस्तुतः किसी सामाजिक समूह के सभी सदस्यों में कोई खास गुण का व्यापक रूप से होने का विश्वास रूढ़ियुक्त कहलाता है चाहे गुण कुछ भी हो, दिए हुए श्रेणी समूह के सभी लोगों में उसे निहित समझा जाता है और इसलिये समूह के अन्य सभी • सदस्यों की भांति ही उसे देखा जाता है तथा समझा जाता है। दिन-प्रतिदिन की जिन्दगी में प्रायः हमें किसी व्यक्ति के बारे में कुछ सीमित एवं सुनिश्चित सूचना ही मिल पाती है उदाहरण के लिए- “मोहन शिक्षक है” इस आधार पर हम यह मान लेते हैं कि चूंकि मोहन शिक्षक है अतः वह मेहनती, आदर्श, ज्ञानी, चरित्रवान सुसंस्कृत होगा। इस प्रकार की राय बनने का कारण शिक्षक के प्रति हमारी रूढ़ियुक्ति है।
- रूढ़ियुक्ति की खास विशेषता यह होती है कि यदि किसी व्यक्ति को किसी श्रेणी में रख देते हैं तो उस श्रेणी के समस्त गुण उस व्यक्ति में होने का सरल अन्दाज कर लेते है। उदाहरण के लिए- काज तथा बेली के द्वारा 100 छात्रों को 84 वैयक्तिक गुणों जैसे आक्रामक, मेहनती, बुद्धिमान आदि की सूची दी गई और साथ ही 10 देशवासियों जैसे अमेरिकन, जर्मन, जापानी, चीनी आदि के नामों की सूची दी गई। इन छात्रों से अनुरोध किया गया कि वैयक्तिक गुणों की सूची में दिए गए गुणों में से प्रत्येक देश के निवासियों की विशेषताओं को अभिव्यक्त करने वाले पांच प्रमुख गुणों का चयन करें । उन्होंने यह पाया कि 84% छात्रों ने नीग्रो लोगों को अंधविश्वासी और 75% ने उनको सुस्त कहा 48% ने उन्हें बुद्धिमान बताया और 79% ने यहूदियों को कठोर हृदय वाला बतलाया। इससे पुष्टि होती है कि सामाजिक रूढ़ियुक्ति का महत्त्व व्यक्ति प्रत्यक्षण में काफी महत्त्व होता है।
निष्कर्षतः यह कहा जाता है कि व्यक्ति प्रत्यक्षण में रूढ़ियुक्तियों की भूमिका काफी होती है। रूढ़ियुक्तियों के आधार पर हम अन्य व्यक्तियों में विशेष गुण आरोपित करते हैं। यद्यपि सामाजिक रूढ़ियुक्तियों में असत्यता का गुण अधिक होता है, फिर भी इससे व्यक्ति प्रत्यक्षण प्रभावित होता है। समय बीतने में रूढ़ियुक्तियों में परिवर्तन होता है जिससे दूसरे के प्रत्यक्षण में भी परिवर्तन हो जाता है ।
रूढ़ियुक्तियों के द्वारा उत्पन्न समस्याएँ
रूढ़ियुक्तियों द्वारा जहाँ लाभ मिलते हैं वहाँ कभी कभी हानियाँ.. भी उत्पन्न हो जाती है। हानि उस समय होती है जबकि किसी वर्ग के प्रति की गई पूर्वकल्पनाएँ तथा उस व्यक्ति द्वारा किए गए व्यवहार में भिन्नता है। लिंडग्रेन के अनुसार “जब लक्ष्य व्यक्ति द्वारा किए गए व्यवहार तथा उसके प्रति हमारी पूर्वकल्पनाओं में असंगति होती है, तो दूसरे व्यक्तियों के साथ प्रभावकारी ढंग से व्यवहार करने की क्षमता में रूढ़ियुक्तियाँ बाधा डालती हैं।” उदाहरण के लिए- ‘पहाड़ी नौकर विश्वासपात्र एवं मेहनती होते हैं। लेकिन जब वह चोरी करते हुए पकड़ा जाता है तब हमारा विचार उस रूढ़ियुक्ति से टकराता है और हम समझ नहीं पाते हैं कि इस पर विश्वास करें या नहीं। इतना ही नहीं, रूढ़ियुक्तियाँ विशेषकर नकारात्मक रूढ़ियुक्तियाँ अन्य व्यक्ति या समुदाय के व्यक्तियों से खुलकर अन्तःक्रिया करने तथा सम्पर्क स्थापित करने में बाधा पहुँचाती है। जैसे- उच्च जाति के लोगों में अनुसूचित जातियों के प्रति कुछ नकारात्मक रूढ़ियुक्तियाँ मौजूद रहती हैं जिनके कारण ये लोग हरिजनों के साथ सम्पर्क स्थापित करने तथा उसके साथ शिष्टापूर्वक बातचीत करने में हिचकिचाते हैं।” इन हानियों के बावजूद भी रूढ़ियुक्तियाँ लगभग सभी समाज एवं संस्कृति में पायी जाती हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि इसके द्वारा हमारे लिए कुछ लाभप्रद कार्य किए जाते हैं।