1st Year

लिंग की अवधारणा की विवेचना कीजिए। इसकी विशेषताओं एवं प्रकारों का उल्लेख कीजिए । Discuss the concept of Gender. Describe its Characteristics and types.

प्रश्न 1 – लिंग की अवधारणा की विवेचना कीजिए। इसकी विशेषताओं एवं प्रकारों का उल्लेख कीजिए । Discuss the concept of Gender. Describe its Characteristics and types. 
या
लिंग की अवधारणा का संक्षिप्त विवरण दें । Briefly describe the Concept of Gender. 
उत्तर- लिंग की अवधारणा (Concept of Gender) लिंग (Gender) सामाजिक लक्षणों, महिला व पुरुष से सम्बन्धित सुअवसरों एवं बालक व बालिकाओं के मध्य सम्बन्ध को दर्शाता है। इसके साथ ही साथ यह पुरुषों एवं महिलाओं के मध्य अन्य व्यक्तियों के सम्बन्धों को भी प्रकट करता है। ये लक्षण, सुअवसर एवं सम्बन्ध सामाजिक संरचित हैं एवं समाजीकरण प्रक्रिया के माध्यम से सीखे जाते हैं।

किसी निश्चित सन्दर्भ में पुरुषों एवं महिलाओं के लिए क्या अपेक्षित, मूल्यवान तथा स्वीकार्य है- इसका निर्धारण लिंग करता है। अधिकतर समाजों में महिलाओं एवं पुरुषों में नियत उत्तरदायित्वों, प्रदत्त गतिविधियों, संसाधनों के उपयोग एवं नियन्त्रण तथा इसके साथ ही साथ निर्णय निर्धारण अवसर सम्बन्धी मतभेद एवं असमानताएँ पाई जाती हैं। लिंग विस्तृत सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रसंग का एक भाग है। सामाजिक एवं सांस्कृतिक विश्लेषण से सम्बन्धित अन्य महत्त्वपूर्ण मानदण्ड वर्ग, जाति निर्धनता स्तर, जातीय समूह तथा आयु आदि इसमें सम्मिलित है।

लिंग का निर्धारण (Determination of sex )
मनुष्य तथा लगभग सभी उच्च वर्ग के जानवर व पेड़-पौधें दो रूपों में जन्म लेते हैं- नर व मादा । मनुष्यों में इन्हें स्त्री-पुरुष का नाम दिया गया है। स्त्री-पुरुष मनुष्य के दो लिंग हैं। यह पूर्णतः एक जैविक प्रक्रिया है। जीव विज्ञान के शब्दों में क्रोमोसोम्स या गुणसूत्र मनुष्य के सभी गुणों के अलावा उसके लिंग के लिए भी उत्तरदायी हैं। स्त्री के अन्दर समान लिंग गुणसूत्र युग्म पाए जाते हैं जिन्हें (xx ) का नाम दिया गया है। इससे उसकी लिंग कोशिकाएँ एक ही प्रकार की होती हैं। पुरुष में दो प्रकार के लिंग गुणसूत्र होते हैं जिन्हें (xy ) का नाम दिया गया है। इससे उसकी लिंग कोशिकाएँ दो प्रकार की होती हैं । आधी (x) गुणसूत्र वाली तथा आधी (y) गुणसूत्र वाली। निषेचन की प्रक्रिया के दौरान स्त्री की (x) गुणसूत्र वाली कोशिका यदि पुरुष की (x) गुणसूत्र वाली कोशिका से मिलती है तो लड़की का जन्म होता है तथा यदि स्त्री की (x) गुणसूत्र वाली कोशिका पुरुष की (y) गुणसूत्र वाली कोशिका से मिलती है तो लड़के का जन्म होता है।

अतः देखा जाए तो लिंग निर्धारण एक पूरी तरह से अनैच्छिक क्रिया है। इसमें किसी का कोई हाथ नहीं है। प्रकृति ने अपने नियमों के कारण अपने आप 50:50 का अनुपात निर्धारित कर रखा है। सृष्टि को चलाने के लिए यह अनुपात जरूरी है। दोनों का ही बराबरी का महत्त्व है फिर भी समाज में विशेषकर एशियाई देशों के समाज में बालिकाओं को बालकों से कमतर समझा जाता है। इस प्रकार लिंग के आधार पर किया जाने वाला भेदभाव ही लैंगिक विभेद कहलाता है ।

लिंग का अर्थ एवं परिभाषाएँ 
लिंग मुख्यतः किसी भी समाज का सबसे महत्त्वपूर्ण सैद्धान्तिक संगठन है। मानव का जन्म दो रूपों में होता है – स्त्री अथवा पुरुष। इन्हें प्रारम्भिक अवस्था में बालक एवं बालिका अथवा लड़का तथा लड़की कहा जाता है। बालक एवं बालिकाओं की शारीरिक संरचना में विभेद पाया जाता है धीरे-धीरे दोनों की रुचियों, अभिवृत्तियों एवं क्रिया-कलापों में भी विभिन्नता दृष्टिगोचर होती है। व्याकरण में लिंग को यह कहकर परिभाषित किया गया है कि जिस शब्द से स्त्री या पुरुष होने का बोध हो उसे लिंग कहते हैं ।

वैस्ट तथा जिम्मरमैन के अनुसार, “लिंग एक व्यक्तिगत लक्षण नहीं है। यह सामाजिक परिस्थितियों का एक उद्गामी लक्षण है एवं समाज के मौलिक विभाजन का एक तर्क संगत साधन है।” विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, “लिंग पुरुषों एवं महिलाओं के लिए सामाजिक संरचित भूमिकाओं, व्यवहारों, गतिविधियों एवं लक्षणों की एक प्रदत्त समाज में उपयुक्त व्यवस्था है जबकि सेक्स तथा इससे सम्बन्धित जैविक प्रकार्य आनुभविक रूप से अभिक्रमित हैं।”

सामाजिक रूप से कई विशेषताएँ इन दोनों लिंगों में स्पष्ट अन्तर स्थापित करती हैं। दोनों का अलग-अलग पहनावा होता है महिलाओं के लिए विशेष रूप से पहनावे निर्धारित कर दिए गए हैं। महिलाओं के लिए परम्परागत रूप से साड़ी, सलवार, लहँगा आंदि पोशाकें निर्धारित की गई हैं। इन पोशाकों को पुरुष नहीं पहन सकते । पुरुष शर्ट, पैन्ट, कुर्ता, धोती आदि पहनते हैं लेकिन आधुनिक समाज में लड़कियाँ भी जीन्स, पैन्ट, शर्ट, टी.शर्ट आदि पहनने लगी हैं। इससे एक बात स्पष्ट तौर पर साबित होती है कि पोशाक आदि महिलाओं और पुरुषों को सामाजिक रूप से मान्य किए गए हैं, जैविक रूप से नहीं । लिंग से सम्बन्धित समाजशास्त्रीय अवधारणाओं को समझने के लिए निम्नलिखित शब्दावलियों को समझना आवश्यक है –

  1. सेक्स (Sex) – जैविक रूप से महिला एवं पुरुष में अन्तर होता है। पुरुष महिलाओं के जननांगों ( Reproductive Organs ) एवं शरीर के आकार में अन्तर होता है। लड़के एवं लड़कियों में प्रत्यक्ष जैविक अन्तर किशोरावस्था में दिखाई देते हैं ।
  2. लिंग (Gender) — पुरुष एवं महिलाओं में सामाजिक रूप से अन्तर इस श्रेणी में आता है। समाज ने दोनों के लिए कुछ निर्धारित कार्य, स्थिति एवं भूमिका निर्धारित की है। सामाजिक रूप से यह अन्तर ही चिन्ता का विषय है क्योंकि सामाजिक अन्तर ही पुरुष एवं महिलाओं में असमानता पैदा करता है ।
  3. पितृसत्तात्मक (Patriarchy) – यह एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसमें महिला की तुलना में पुरुष की अधिक केन्द्रीय भूमिका होती है। भौतिक परिस्थितियों और सामाजिक संरचनाओं के कारण पुरुषों को अधिक अधिकार प्राप्त होते हैं और निर्णय लेने का अधिकार पुरुषों को अधिक मिला होता है। इस व्यवस्था में महिलाओं की स्थिति मुख्य न होकर गौण होती है। निर्णय प्रक्रिया में उनका अधिक महत्त्व नहीं होता है। महिलाएँ पुरुषों पर लगभग आश्रित रहती हैं। घर की वस्तुएँ, जमीन, जायदाद आदि पुरुष के नाम पर ही होता है यहाँ तक कि बच्चों की पहचान भी पिता के नाम से होती है। विवाह के बाद महिलाओं का उपनाम (Surname) भी बदल दिया जाता है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था में महिला की स्थिति ज्यादा गम्भीर हो गई है क्योंकि इस व्यवस्था में महिला की स्थिति कमजोर होती है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था महिलाओं की कमजोर स्थिति को सुधारने के लिए लैंगिक समानता से सम्बन्धित माँग उठने लगी है। विश्व स्तर पर लैंगिक समानता की वकालत की जा रही है।
  4. मातृसत्तात्मकं (Matriarchy) – यह एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था होती है जिसमें महिला को केन्द्रीय स्थिति प्राप्त होती है। इस व्यवस्था में महिलाएँ ही घर की मुखिया होती हैं और उनकी इस केन्द्रीय स्थिति का प्रमुख कारण निर्णय प्रक्रिया पर महिला का नियन्त्रण है। इस व्यवस्था में पुरुषों की स्थिति मुख्य न होकर गौण होती है। घर की वस्तुएँ, जमीन, जायदाद आदि महिला के नाम पर ही होती है।
लिंग की विशेषताएँ (Characteristics of Gender)
  1. लिंग सामाजिक रूप से निर्मित होता है – लिंग को समाज की मान्यताओं व मानदण्डों द्वारा परिभाषित किया जाता है। समाज एवं उस समाज में प्रचलित मूल्य लैंगिक भूमिकाओं तथा सम्बन्धों का निर्माण करते हैं। प्रत्येक समाज या संस्कृति की अपनी समझ होती है जो पुरुष व्यवहार व महिला व्यवहार के अनुकूल निर्मित होती है। यह समय के साथ शिक्षा प्रभाव या अन्य संस्कृतियों के संगम के कारण बदल सकता है। इस प्रकार, लिंग एक गतिशील अवधारणा है।
  2. लिंग में अधिकार, भूमिका, उत्तरदायित्व एवं सम्बन्धों का एक व्यूह शामिल होता है – किसी व्यक्ति के अधिकार, वह भूमिकाएँ जो उसे (महिला व पुरुष ) निभानी पड़ती हैं, किए जाने वाले उत्तरदायित्व तथा वह अंतर – वैयक्तिक सम्बन्ध आदि सभी लिंग को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिएब्रेडविनर के रूप में पुरुष की भूमिका तथा बच्चों के पोषण के रूप में महिला की भूमिका दोनों लिंग आधारित भूमिकाएँ हैं। आमतौर पर घरेलू उत्तरदायित्व लिंग आधारित होता हैं। अधिकांश समाजों में, सम्पत्ति पर पुरुषों का अधिकार होता है। सम्बन्धों का पदानुक्रम (Hierarchy) भी लिंग से प्रभावित होता है ।
  3. लिंग में सीखा व्यवहार या अधिग्रहित पहचान शामिल है – समाजीकरण की प्रक्रिया किसी व्यक्ति को उसकी लिंग भूमिकाओं से परिचित कराती है। सामाजिक परिवेश एक व्यक्ति पर अपनी अपेक्षाओं को थोपता है तदनुसार व्यक्ति लिंग भूमिकाओं को स्वीकार करता है। उदाहरण के लिए – भारत में, अधिकांशतः लड़कों से कहा जाता हैं कि उन्हें अपनी बहनों की रक्षा करनी है।
    छोटी उम्र से, लड़कियों को बताया जाता है कि उन्हें अपने घर की देखभाल करनी है और इसलिए खाना बनाना सीखना चाहिए। लेकिन लड़कों के मामले में, हम इस बात पर जोर नहीं दे सकते कि उन्हें खाना बनाना सीखना चाहिए। ये सभी बातें बच्चे की सोच में दृढ़ता से समा जाती हैं। इस प्रकार समाजीकरण के माध्यम से लिंग भूमिकाएँ प्रबल हो जाती हैं ।
  4. लिंग में व्यक्तित्व लक्षण, दृष्टिकोण, व्यवहार, मूल्य शामिल हैं। वह समाज एक अंतर के आधार पर दो लिंगों का वर्णन करता है। -लिंग अधिकांशतः व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं व्यावहारिक गुणों को आकार देता है। उदाहरण के लिए – जब कोई लड़की रोकर भावनाओं को प्रदर्शित करती है, तो इसे सरलता से स्वीकार कर लिया ज है। लेकिन यदि कोई लड़का रोता है, तो उसे एक आदमी की तरह व्यवहार करने के लिए कहा जाता है। यहाँ तक कि जो खेल बच्चे खेलते हैं, वे लिंग से प्रभावित होते हैं ।
    गुड़ियों के साथ खेलना एक लड़की का खेल माना जाता है तथा यदि कोई लड़का ऐसे खेलों में रुचि दिखाता है, तो उसका मजाक उड़ाया जाता है। ‘गुलाबी’ रंग लड़कियों के साथ जुड़ा हुआ है और ‘नीला’ लड़कों के साथ जुड़ा हुआ है। इस प्रकार, पुरुषों व महिलाओं से अपेक्षित गुण, दृष्टिकोण व व्यवहार जो उन्हें प्रदर्शित करना चाहिए, वे सभी समाज की लैंगिक अपेक्षाएँ हैं।
  5. शक्ति सम्बन्ध लिंग द्वारा संचालित होते हैं – शक्ति सम्बन्ध लिंग से प्रभावित होते हैं। कई लोग अभी भी यह मानते हैं कि परिवार में पुरुष निर्णयकर्ता होना चाहिए। कुछ लोग सोचते हैं कि यदि पुरुष, महिला से अधिक कमाता है तो बेहतर है। यदि कोई पुरुष किसी महिला से अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है तो उसे सामान्य माना जाता है, लेकिन यदि कोई महिला पहले अपनी भावनाओं को व्यक्त करती है, तो उसे बहुत ज्यादा हावी (Dominating) माना जा सकता है। समाज की ये मान्यताएँ रूढ़िवादी विचारों के अन्तर्गत आती हैं। भारत में राष्ट्रपति के कार्यालय सहित कई अन्य महत्त्वपूर्ण पदों पर महिलाओं का वर्चस्व रहा। लिंग सम्बन्धपरक है एवं यह केवल महिलाओं या पुरुषों के लिए ही नहीं बल्कि उनके बीच के सम्बन्धों को भी सन्दर्भित करता है।
  6. संसाधनों की पहुँच एक लिंग द्वारा निर्धारित होती है – लिंग की विचारधारा के अनुसार निर्धारित मानक एवं नियम किसी व्यक्ति की संसाधनों तक पहुँच निर्धारित करते हैं। आमतौर पर, पुरुषों की खाद्य, स्वास्थ्य व शिक्षा जैसे संसाधनों पर अधिक पहुँच है। उदाहरण के लिए – यह काफी सामान्य (सम्पन्न घरों में भी) है कि पुरुष पहले खाते हैं तथा महिलाएँ बाद में खाती हैं ।
  7. समय के साथ लिंग की भूमिकाएँ और मानदण्ड बदल सकते हैं- लिंग की भूमिकाएँ भी समय के साथ बदल जाती हैं। उदाहरण के लिए-पुराने समय में, कुछ संस्कृतियों में निर्णय लेना पुरुष का अधिकार था। वही संस्कृतियाँ अब महिलाओं को निर्णय निर्माता के रूप में स्वीकार करती हैं। इससे पहले, कुछ संस्कृतियों में, एक महिला के लिए छोटे बालों का समर्थन करना सही नहीं माना जाता था, लेकिन अब वही संस्कृतियाँ छोटे बालों वाली महिलाओं को स्वीकार करती हैं। इस प्रकार, लिंग के लिए भूमिकाएँ एवं अपेक्षाएँ गतिशील हैं तथा समय के साथ परिवर्तित होती है। इन सभी भूमिकाओं को समाज द्वारा लागू किया जाता है न कि प्रकृति द्वारा ।
  8. संस्कृतियों में लैंगिक भूमिकाएँ अलग-अलग होती हैं – संस्कृति लैंगिक भूमिकाएँ निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उदाहरण के लिए कुछ समुदायों में, सब्जियों या मछली जैसे खाद्य पदार्थों की खरीदारी पुरुषों द्वारा की जाती है। कुछ अन्य संस्कृतियाँ इसे महिलाओं की भूमिका मानेंगी। कुछ समुदायों में, ब्रेडविनर की भूमिका केवल पुरुष की होती है। किसी भी परिस्थिति में महिलाओं को काम करने की अनुमति नहीं है। कुछ समुदायों में कुछ धार्मिक अनुष्ठानों को मात्र पुरुषों द्वारा किया जाता है।
  9. लिंग स्वयं को भूमिकाओं, सम्बन्धों एवं पहचान के रूप में प्रकट करता है-लिंग के विषय में हमारी अपनी व सामाजिक धारणा पुरुषों तथा महिलाओं द्वारा निभाई जाने वाली भूमिकाओं को निर्धारित करती है। यह तय करता है कि पुरुष व महिला एक-दूसरे से कैसे सम्बन्धित हैं। यह भी तय करता है कि पुरुष व महिला दोनों स्वयं को और विपरीत लिंग को कैसे देखते हैं। उदाहरण के लिए अनीता की नौकरी उसे सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक घर से दूर रखती है। उनके पति का कार्य समय सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक है। जबकि पति घर आता है और आराम करता है, अनीता घर लौटती है और रसोई में अपना काम शुरू करती है। वह अपने पति की मदद से यह कहते हुए मना कर देती है कि खाना बनाना महिला का काम है। लिंग और लिंग की भूमिकाओं के बारे में अनीता की धारणाएँ इतनी गहरी अंकित हैं कि वह अपने पति को कोई गृहकार्य नहीं सौंपती हैं। इस प्रकार, लिंग एक के व्यवहार, भूमिका और पहचान के रूप में प्रकट होता है ।
लिंग के प्रकार (Types of Gender)
  1. पुरुष लिंग ( Masculine Gender) – पुरुष जाति का बोध उनकी शारीरिक बनावट, रहन-सहन, विचार तथा भावों से प्रकट होता है। पुरुष स्त्रियों की अपेक्षा कठोर तथा आध्यात्मिक विचार के होते हैं। पुरुषों के रहन-सहन एवं कार्य भी अलग होते हैं। समय के साथ-साथ पुरुषों में दाढ़ी, मूँछ आदि आने लगती है तथा अनेक शारीरिक परिवर्तनों के कारण पुरुष जाति का बोध होता है।
  2. स्त्री लिंग (Feminine Gender) – लिंग का दूसरा प्रकार स्त्रीलिंग होता है। स्त्रियों का स्वभाव, विचार पुरुषों की अपेक्षा कोमल होता है। किशोरावस्था तक पहुँचते-पहुँचते इनमें अनेक शारीरिक परिवर्तन परिलक्षित होने लगते हैं जिससे स्त्री जाति का बोध होता है। स्त्रियों की आवाज मधुर तथा सुरीली होती है। इनका रहन-सहन तथा वेशभूषा भी अलग होता है। स्त्रियाँ स्वभाव से ही लज्जाशील तथा दयालु होती हैं। स्त्रियाँ भौतिकवादी विचारों को अधिक मान्यता देती हैं।
  3. तृतीय (किन्नर) लिंग ( Third Gender) — इसके अन्तर्गतं ऐसे व्यक्ति आते हैं जो न तो पूर्ण रूप से पुरुष होते हैं और न पूर्ण रूप से स्त्री होते हैं। इनका एक अपना अलग समाज होता है। इनमें सन्तानोत्पत्ति की क्षमता नहीं होती है। इन्हें द्विआधारी लिंग भी कहते हैं। इनके व्यवहार, प्रतिक्रियाएँ तथा सामाजिक कार्य अपने समाज के अनुसार होते हैं। वर्तमान समय में इन्हें भी सामान्य लोगों की तरह सभी अधिकार प्रदान किए जा रहे हैं। लिंग का एक प्रकार उभयलिंग’ (Transgender) भी है। इसके अन्तर्गत ऐसे लोग होते हैं जो शारीरिक रूप से पुरुष या स्त्री होते हैं लेकिन उनके विचार, व्यवहार, भाव, रहन-सहन तथा प्रतिक्रियाएँ विपरीत होती हैं। जैसे- शारीरिक रूप से कोई पुरुष है लेकिन उनके विचार, व्यवहार, आदत प्रतिक्रियाएँ रहन–सहन एवं रुचि विपरीत लिंग की तरह होते हैं वे उभयलिंगी कहे जाते हैं। अधिकांशतः ऐसे लोगों का विचार अन्तर्लिंगी होता है। जर्मनी भाषा में इन्हें यूरेनियन (Uranian) कहा जाता है अर्थात् “एक पुरुष के शरीर में एक महिला मानस ।”
इस प्रकार उपर्युक्त विवेचना के आधार पर स्पष्ट होता है कि लिंग मुख्य रूप से पुरुष एवं स्त्री के रूप में होते हैं किन्तु कुछ प्राकृतिक अपवादों के कारण उभयलिंग एवं नपुंसक लिंग भी होते हैं। समाज अधिकाशतः पुरुष एवं स्त्रीलिंग को ही मान्यता देता है। क्योंकि इस लिंग के लोगों की संख्या अधिक है तथा अन्य लिंगों की संख्या कम है। वर्तमान समय में प्रशासन द्वारा सभी लिंगों को समान अधिकार प्रदान किया गया है तथा उसे सुचारु रूप से क्रियान्वित करने का प्रयास भी किया जा रहा है।

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