1st Year

लेखन लिपि विकास के सोपानों की विस्तृत व्याख्या कीजिए। Discuss in detail steps of writing script development.

प्रश्न  – लेखन लिपि विकास के सोपानों की विस्तृत व्याख्या कीजिए। Discuss in detail steps of writing script development.
उत्तर- लेखन लिपि के सोपान (Steps of Writing Script) 
  1. अनुलिपि – आधुनिक युग में प्रारम्भ से छात्रों में सुन्दर लेख लिखने की योग्यता अर्थात् ‘सुलेख’ को विकसित करने हेतु पाठ्यक्रम में सुलेख अभ्यास पुस्तिकाओं को स्थान दिया गया है। इन्हीं सुलेख पुस्तिकाओं की सहायता एक अध्यापक को लेनी चाहिए। इन पुस्तिकाओं में पृष्ठ के ऊपर प्रथम पंक्ति में सुन्दर, सुडौल, समानुपाती, बड़े व मोटे अक्षरों में वाक्य छपे होते हैं तथा बाद की लगभग 2 या 3 पंक्तियों में डॉटड लाइनों से हल्का-हल्का छपा रहता है, शेष पृष्ठ पर केवल बच्चे को लिखने के लिए स्थान दिया रहता है ।बच्चे को हल्के लिखे वाक्यों पर पेन्सिल घुमाकर अक्षरों को बनाने का अभ्यास करने के बाद ही शेष पृष्ठ पर स्वयं लिखना सिखाया जाता है। सुलेख मालाओं में अनुलेख का कुछ अभ्यास होने के बाद छात्रों से पुस्तक या पत्र-पत्रिकाओं का अनुकरण करके कॉपियों पर लिखवाया जाना चाहिए। इस स्थिति में छात्रों की वर्तनी की शुद्धता तथा विराम चिन्हों की ओर ध्यान दिया जा सकताहै |

    लिपि-पुस्तकों के अभाव में शिक्षक को छात्रों को सुन्दर लिखने के लिए प्रेरित करना हो तो मोटे-मोटे गत्तों पर सुन्दर अक्षर लिखकर कक्षा में टाँग देना चाहिए तथा बच्चों को उसे देखकर वैसा ही लिखने के लिए कहना चाहिए। इस प्रकार निरन्तर अभ्यास कराने से छात्रों में सुन्दर लेखन की क्षमता का विकास होता है ।

    पुस्तिका पर अभ्यास कराते हुए अध्यापक को कुछ अन्य बातों का ध्यान भी रखना चाहिए जो इस प्रकार है –
    1. लेखन सामग्री, जैसे-तख्ती, स्लेट, रबड़, पेन्सिल, चॉक आदि का निरीक्षण भी छात्राध्यापक को करना चाहिए ताकि लेखन सुन्दर सुडौल बनाया जा सके।
    2. बच्चों को अक्षर सुडौल, सुन्दर व ठीक अनुपात से सीधे-सीधे लिखने का अभ्यास कराना चाहिए।
    3. दो शब्दों के मध्य एक वर्ण की दूरी रखनी चाहिए तथा दो वाक्यों के बीच एक शब्द व दो पंक्तियों के बीच एक पंक्ति जितना अन्तर रखने का अभ्यास कराना चाहिए तथा हिन्दी में लिखते समय शब्द के ऊपर सीधी रेखा खींचना सिखाना चाहिए।
    4. बच्चों के सम्मुख अनुलेख के नमूने प्रस्तुत करने चाहिए ताकि उन्हें अपना लेख सुधारने की प्रेरणा मिले
    5. अनुलेख प्रतियोगिताएँ करवाकर, अध्यापक को अच्छे बच्चों को पुरस्कृत करना चाहिए।
    6. अनुलेख लिखने के बाद ही बच्चों का ध्यान अशुद्धियों एवं न्यूनताओं की ओर आकर्षित करना चाहिए।
    7. अध्यापक को सुलेख देते समय सदैव सत्य एवं आदर्श वाक्यों का ही प्रयोग करना चाहिए ताकि बार-बार लिखकर बच्चे अपना नैतिक विकास भी कर पाएं।
  2. श्रुतिलिपि – श्रुतिलिपि का अर्थ है ‘सुनकर लिखना’ । इसमें अध्यापक बोलते जाते हैं तथा छात्र तेज गति से लिखते जाते हैं। जब बालक अनुलेख तथा प्रतिलेख में कुशलता प्राप्त कर लें, तभी श्रुतलेख का अभ्यास कराना चाहिए। इसका प्रारम्भ तीसरी कक्षा से होना चाहिए। आधुनिक युग में श्रुतलेख ग्रामोफोन तथा टेपरिकॉर्डर से भी सिखाया जाता है। इसमें भरी हुई आवाज को छात्र सुनते हैं तथा उसे अपनी कॉपी पर लिखते हैं। इसमें आँख, कान तथा हाथ इन्द्रियों को सक्रिय रहना पड़ता है।जब बच्चे प्रतिलेखन करने में अभ्यस्त हो जाएं और उनका ध्वनियों एवं उन ध्वनियों को व्यक्त करने वाले अक्षरों एवं उनकी आकृतियों से पूर्ण परिचय हो जाए तब उन्हें श्रुतलेख लिखवाना चाहिए। श्रुतलेखन में अध्यापक बोलता जाता है और बच्चे सुनकर लिखते रहते हैं। अतः श्रुतलेख का अर्थ ‘सुनकर लिखने से है।

    आधुनिक युग में अध्यापक के स्थान पर ग्रामोफोन, टेपरिकार्डर, कम्प्यूटर आदि का भी प्रयोग किया जाता है। इसमें किसी भी भाषा के शब्दों का सटीक उच्चारण करने वाले की आवाज को रिकार्ड कर लिया जाता है फिर बच्चों को सुनाया जाता है ताकि बच्चे उस भाषा के शब्दों को सीख सकें।

    रिकार्डेड प्रोग्राम द्वारा सीखना भी अध्यापक के पढ़ाने से कम नहीं है तथा इससे श्रम की बचत भी होती है साथ ही अध्यापक शब्दों का उच्चारण करने से स्वतन्त्र होकर केवल निरीक्षण पर केन्द्रित हो सकता है।

    श्रुतलेखन का भाषा-शिक्षण में अपना अलग ही महत्त्व है क्योंकि इसमें बच्चे की कई इन्द्रियाँ, जैसे- कान, आँख एवं हाथ सक्रिय भूमिका निभाती हैं। अतः श्रुतलेखन से सीखना अधिक प्रभावशाली होता है एवं इन्द्रियों को नियंत्रित करने की शिक्षा भी प्राप्त होती है।

    बच्चों को अध्यापक अथवा मशीन के बोलने की गति के साथ-साथ लिखना होता है अतः जिससे वे तीव्रगति से लिखने का अभ्यास करते हैं। श्रुतलेखन के द्वारा बच्चों को वर्तनी की भी शिक्षा मिलती है तथा वे विराम चिह्न, आदि भी लगाना सीखते हैं ।

    श्रुतलेख बच्चे तभी शुद्ध लिख सकते हैं जब वे बोले गए शब्दों के अर्थ समझते हों अतः इससे बच्चों में बोध शक्ति का भी विकास होता है। अप्रत्यक्ष रूप से श्रुतलेख बच्चों की भाषा-शैली पर भी प्रभाव डालता है। श्रुतलेखन की सफलता, श्रुतलेख के लिए चयन की गई सामग्री, अध्यापक के व्यक्तित्व, उसके कण्ठ, उच्चारण, बोलने की गति और संशोधन कार्य पर निर्भर करती है।

    श्रुतिलिपि से लाभ
    (i) इससे छात्रों को सुनकर भाषा समझने और लिखने का अवसर प्राप्त होता है।
    (ii) लेखन की गति में वृद्धि होती है।
    (iii) सावधानी से सुनने की आदत पड़ जाती है।
    (iv) अक्षर विन्यास की शिक्षा मिलती है।
    (v) बोध शक्ति का विकास होता है।
    (vi) छात्र विराम चिह्नों का ठीक से उपयोग करना सीखते हैं।
    (vii) सुन्दरता, स्पष्टता तथा शुद्धता का अभ्यास हो जाता है ।
    श्रुतिलिपि से हानि
    श्रुतलेख लिखते समय छात्र विभिन्न गलतियाँ भी करते हैं जो इस प्रकार हैं –
    (i) गति से लिखते वक्त कई शब्द छूट जाने की सम्भावना रहती है।
    (ii)विराम चिह्नों की तरफ बराबर ध्यान नहीं रहता है।
    (iii)  अशुद्धियाँ अधिक हो सकती हैं।
    (iv) लेखन आकर्षक नहीं हो पाता है।
    (v) अधिकांशतः वाक्यांशों का क्रम बिगड़ जाने की सम्भावना रहती है ।
    श्रुतिलिपि के दोषों को दूर करने के उपाय
     उपर्युक्त गलतियों को दूर करने के लिए शिक्षकों को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए
    (i) श्रुतलेख के गद्यांश न अधिक कठिन होना चाहिए न ही अधिक सरल होना चाहिए।
    (ii) गद्यांश छात्रों के मानसिक स्तरानुकूल होना चाहिए।
    (iii) लिखते समय समुचित ढंग से बैठना चाहिए। झुककर लेखन नहीं करना चाहिए।
    (iv) लेखनी पकड़ने का ढंग सही होना चाहिए।
    (v) शिक्षक छात्रों की कॉपियों, पेन तथा स्याही का निरीक्षण अच्छी तरह से कर लें ।
    (vi) अध्यापक के उच्चारण स्पष्ट और शुद्ध होने चाहिए ।
    (vii) अध्यापक के बोलने की गति उचित होनी चाहिए। उसके बोलने की गति से अर्द्धविराम तथा पूर्णविराम आदि स्पष्ट होने चाहिए ।
    (viii) सही समय पर अध्यापकों द्वारा श्रुतलेख की जाँच होनी चाहिए ।
    (ix) गलतियों को स्पष्ट एवं व्यक्तिगत रूप से छात्रों को बताना चाहिए ।
  3. सुलेख-सुलेख का अर्थ है- ‘सुन्दर लेख । लेखन में सुन्दरता एवं आकर्षकता का होना महत्त्वपूर्ण माना जाता है। सुलेख सुशिक्षित व्यक्ति की सर्वप्रमुख पहचान है। छात्रों की लिखावट अच्छी हो इसके लिए प्रारम्भ से ही, छात्रों को लिखने का अभ्यास कराना चाहिए ।सुलेख यदि पाठ्य-पुस्तक से लिखवाया जाए तो पाठ की पुनरावृत्ति भी हो जाती है तथा सुन्दर लिखने की क्षमता का विकास भी होता है साथ ही साथ छात्रों को शब्द वर्तनी भी याद हो जाती है। धीरे-धीरे छात्र उसका अर्थ भी समझने लगते हैं।

    सुलेख कराते समय शिक्षक को सक्रिय रूप से छात्रों की सहायता करनी चाहिए। लिखना प्रारम्भ करने से पूर्व शिक्षक छात्रों की लेखन-सामग्री का भली-भाँति निरीक्षण करें। यदि कोई छात्र गलत भी लिख रहा हो तो उसे हतोत्साहित न करें बल्कि जब भी अवसर मिले छात्रों को प्रोत्साहित करते रहना चाहिए।

    एक सुन्दर लेख में निम्नलिखित गुण होने चाहिए-
    1. वर्णों का मात्राओं के साथ आकार की दृष्टि से अनुपात हो ।
    2. प्रत्येक शब्द पर शिरोरेखा बिल्कुल सीधी होनी चाहिए।
    3. वर्णों, शब्दों, वाक्यों तथा पंक्तियों की परस्पर समुचित दूरी होनी चाहिए ।
    4. लेख को समुचित अनुच्छेदों में विभाजित किया जाना चाहिए।
    5. लिखते समय पृष्ठ के बाँयीं ओर उचित हाशिया छोड़ा जाना भी सुलेख के लिए अनिवार्य है।
    6. लेखन में उचित गति भी होनी चाहिए । गति के साथ-साथ सुन्दरता को बनाए रखना भी आवश्यक है ।
सुलेख के उद्देश्य
    1. छात्र आकर्षक एवं सुन्दर तरीके से सुडौल एवं आकर्षक लेखन की ओर उन्मुख हों।
    2. छात्रों की प्रमुख इन्द्रियों को प्रशिक्षित किया गया हो।
    3. बालकों में सौन्दर्यानुभूति की भावना का विकास हो।
    4. बालकों का 3H अर्थात्- हेड, हार्ट एवं हैण्ड मस्तिष्क, हृदय एवं हाथ का सम्पूर्ण विकास हो हो।
    5. बालक सुन्दर लिखावट की अवधारणा से परिचित हों ।
    6. सुलेख लिखते समय सुन्दर लिखावट की गति से भिज्ञ हो एवं उससे प्रशिक्षित हों ।
सुलेख का महत्त्व
छात्रों के लिए सुलेख का विशिष्ट महत्त्व है। सुलेख एक कला है। सुलेख परीक्षा में अच्छे अंक भी प्रदान करते हैं। हस्तलेख का सौन्दर्य परीक्षक को प्रभावित करता है। सुलेख सुवाच्य होते हैं। पाठक को पढ़ने में परेशानी नहीं होती है। मुद्रण के लिए भी सुलेख वरदान स्वरूप है।
इस प्रकार सुलेख के लिए छात्र- छात्राओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ।
सुलेख लिखते समय सावधानियाँ
  1. शिक्षक छात्रों के आसन का निरीक्षण करें। कुर्सी इतनी ऊँची हो कि बैठने पर छात्र के पैर जमीन पर सीधे रखे रहें तथा घुटने 90° का कोण बनाते हो । रीढ़ की हड्डी सीधी हो। कॉपी आँख से एक फुट की दूरी पर हो ।
  2. शिक्षक छात्र को लेखनी पकड़ने का तरीका सिखाएँ  जिससे वह अँगूठे व मध्य उँगली के बीच में रहे तथा तर्जनी उँगली लेखनी के ऊपर रहे। लेखनी 54° के कोण पर पकड़ी जानी चाहिए ।
  3. स्पष्ट और सुडौल लिखने के लिए उचित लेखन-सामग्री का होना आवश्यक है। प्रारम्भिक स्तर पर पेन्सिल से लिखना चाहिए, बाद में बाल पेन का प्रयोग सिखाना चाहिए।
  4. प्राथमिक स्तर के छात्रों के लिखने की समयावधि अधिक लम्बी नहीं होनी चाहिए। बालक जब स्वेच्छा से लिखना चाहें तभी उससे लेखन कार्य करवाना चाहिए ।
  5. शिक्षक छात्रों के लिखने के क्रम पर भी ध्यान दें । प्रारम्भिक समय में छात्रों से वर्ण बड़े आकार में लिखवाए जाए, धीरे-धीरे उनके आकार को छोटा किया जाना चाहिए।

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