1st Year

वाचन कौशल से आप क्या समझते हैं? इसके गुण, उद्देश्य, आवश्यकता एवं महत्त्व बताइए। What do you understand by Speaking Skill? Explain its characteristics, objectives, need and importance.

प्रश्न  – वाचन कौशल से आप क्या समझते हैं? इसके गुण, उद्देश्य, आवश्यकता एवं महत्त्व बताइए। What do you understand by Speaking Skill? Explain its characteristics, objectives, need and importance.
या
वाचन कौशल की आवश्यकता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए । Explain the need and importance of Speaking Skill. 
या
विद्यार्थियों के लिए वाचन कौशल का क्या महत्त्व है? बच्चों में बोलने से सम्बन्धी कौशल आप किस प्रकार विकसित करेंगे ? Discuss the importance of speaking skills for school students. How will you develop the speaking skills of your students? 
उत्तर- वाचन कौशल (Speaking Skill)
भाषा सीखने के लिए चार कौशल- पढ़ना, लिखना, बोलना, तथा सुनने की आवश्यकता होती है। जब चारों कौशलों का विकास होता है तभी भाषा को पूर्ण माना जाता है। भाषा और साहित्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। भाषा से ही शाब्दिक अन्तः क्रिया होती है।

वाचन शब्द ‘वाक्’ धातु से बना है जिसका अर्थ है शब्द, वाणी अथवा कथन | वाचन को हम दो रूपों ( संकुचित एवं व्यापक ) में बता सकते हैं। संकुचित रूप में लिखे हुए अथवा छपे हुए शब्दों का उच्चारण करना वाचन कहलाता है। ध्वनियों के प्रतीकों एवं लिपिबद्ध शब्दों को गति के साथ पढ़कर अर्थ ग्रहण की प्रक्रिया वाचन या पठन कहलाती है यह वाचन का विस्तृत अर्थ है।

कैथरीन ओकानर के अनुसार, “वाचन वह जटिल सीखने की प्रक्रिया है जिससे सुनने के गतिवाही माध्यमों का मानसिक पक्षों से सम्बन्ध होता है। ”

वाचन कौशल के उद्देश्य (Objectives of Speaking Skill) 
  1. सरल एवं प्रभावशाली तरीकों से वार्तालाप करने की क्षमता प्रदान करना ।
  2. स्वाभाविक रूप से बालकों में बोलने की क्षमता उत्पन्न करना।
  3. किसी भी तथ्य या तथ्यों को क्रमानुसार स्पष्ट रूप से समयोजित कर प्रस्तुत करने की क्षमता प्रदान करना।
  4. बालकों के व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए उनकी झिझक व संकोच को दूर करना ।
  5. प्रश्नों के उत्तरों को प्रभावोत्पादक स्वर एवं भाषा में देने की क्षमता विकसित करना ।
वाचन कौशल की आवश्यकता (Need of Speaking Skill)
भाषा शिक्षण में मौखिक शिक्षा का अपना महत्त्व है। प्रारम्भिक कक्षाओं में इस शिक्षा पर अधिक बल दिया जाता है। प्रारम्भिक कक्षाओं में बालक परिवारों, धर्मों एवं सामाजिक आदि दृष्टि से अलग-अलग होते हैं ।

उनकी बोलियों में भी काफी अन्तर होता है। विद्यालयों में शिक्षक उन्हें हिन्दी के मानकों के आधार पर पढ़ाता है। यदि वाचन की शिक्षा के माध्यम से वह स्पष्ट, मधुर, पटु, प्रभाव उत्पन्न करने वाली, व्यावहारिक वाणी बोलता है तो उसकी उत्तरोत्तर उन्नति सम्भव है।

सुशिक्षित समाज में आज भी अधिकांश कार्य वाचन के माध्यम से हो रहे हैं। व्यापारिक कार्यों में वाचन की शिक्षा का अत्यधिक महत्त्व है। मौखिक अभियोग्यता के बारे में बहुत सी बातें स्पष्ट की गई हैं। उन बातों को पढ़ने के उपरान्त मौखिक अभियोग्यता के विकास की आवश्यकता है।

कुछ बातें जिन पर ध्यान दिया जा सकता है, वे इस प्रकार हैंसर्वप्रथम बालक दूसरों के वाचन द्वारा अनुभव ग्रहण करता है और जो सुनता है वही बोलता है। इस स्थिति को स्पष्ट करने के लिए बालक को शुद्ध उच्चारण एवं बोलचाल के सही रूप से अवगत् कराना आवश्यक है।

इसका दूसरा छोर देखा जाए तो अशिक्षित व्यक्तियों के लिए सिर्फ मौखिक अभियोग्यता ही एक ऐसा साधन है जिससे वे विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं।

यदि कोई व्यक्ति सामाजिक सभा, व्यक्तियों के समूह, सम्मेलन आदि को सम्बोधित करना चाहता है तो यह जरूरी है कि वह वाचन कौशल या मौखिक अभियोग्यता में सबल हो ।

वाचन कौशल का महत्त्व (Importance of Speaking Skill)
वाचन कौशल एक कला है जिसका शिक्षण बालक के जन्मकाल से ही शुरू हो जाता है, जैसे-जैसे बालक बड़े होते हैं वे इस कला को सीखते चले जाते हैं।

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बालक ज्यादातर बातें अनुकरण द्वारा ही सीखते हैं और उसके अनुकरण प्रधान होती है। व्यावहारिक अभियोग्यता जीवन में बोलचाल का जितना प्रयोग किया जाता है उतना लिखित भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता क्योंकि मौखिक अभियोग्यता से बात ज्यादा स्पष्ट रूप से व्यक्त की जा सकती है। मौखिक अभियोग्यता के माध्यम से अधिक सजीवता से भावों को प्रकट किया जा सकता है। लिए मौखिक

वाचन कौशल के गुण (Characteristics of Speaking Skill)
  1. सरलता – सरलता का अर्थ उसके उच्चारण से ही पता चलता है अर्थात् ऐसी भाषा का प्रयोग किया जाए जो श्रोता को आसानी से समझ आ सके। वक्ता के शब्दों में कठिनाई न हो। इसका अर्थ ऐसा नहीं है कि भाषा में साहित्यिक शब्दों का प्रयोग न हो अपितु शब्दों का प्रयोग सहजता से हो । वार्तालाप में प्रयुक्त की गई भाषा बोधगम्य होनी चाहिए।
  2. स्पष्टता या शुद्धता वाचन के समय उच्चारण की शुद्धता परम आवश्यक है। हमारे देश में अनेक गाँव एवं प्रान्त हैं जहाँ क्षेत्रीय बोली या उप-बोली बोली जाती है। क्षेत्रीय भाषा या बोली के कारण उच्चारण में दोष मिलते हैं।
  3. गतिशील – वक्ता द्वारा विचारों को अभिव्यक्त करने में निरन्तरता एवं गतिशीलता होना आवश्यक है क्योंकि रुक-रुक कर बोलना वक्ता के विचारों में प्रभावहीनता लाता है। आकर्षक व्यक्तित्व के लिए वाणी में गतिशीलता होना आवश्यक है।
  4. क्रमबद्धता – बोलचाल में विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए क्रमबद्ध रूप अपनाना चाहिए। मौखिक अभियोग्यता में विचारों की क्रमबद्धता एक महत्वपूर्ण गुण है। यदि भाषा में विचारों की क्रमबद्धता न हो तो वक्ता का श्रोता तक संदेश उचित प्रकार से नहीं पहुँच पाता।
  5. प्रभावशीलता – किसी भी व्यक्ति द्वारा किया गया वार्तालाप यदि प्रभावपूर्ण है तो वह अपने व्यक्तित्व की छाप दूसरों पर छोड़ने में समर्थ रहता है। शिष्टता वार्तालाप का प्रमुख गुण है। वार्तालाप के दौरान सुनने वाले के पद, आयु, योग्यता आदि का शिष्टता की दृष्टि से ध्यान रखना चाहिए। यह भी ध्यान रखने योग्य बात है कि परिस्थितियों के अनुसार ही भाषा के रूप का प्रयोग करें।

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