वार्तालाप / मौखिक कौशल का अर्थरूप एवं विशेषताएँ लिखिए। मौखिक अभिव्यक्ति शिक्षण के उद्देश्य, महत्व एवं अधिगम की तकनीकियों की विवेचना कीजिए ।
मानव सर्वप्रथम मौखिक भाषा द्वारा ही अभियोग्यता करता है । हर समय लिखित अभियोग्यता सम्भव नहीं है। समाज में रहते हुए हम अपने सामाजिक सम्बन्धों को मौखिक अभियोग्यता द्वारा ही निभाते हैं। जहाँ लिखित भाषा के लिए लेखन की जानकारी हाँना आवश्यक है वहाँ मौखिक अभियोग्यता बालक, बूढ़े व अनपढ़ व्यक्ति भी कर सकते हैं।
दूसरे शब्दों में, सामान्य जन-सम्पर्क एवं नागरिकों के विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम मौखिक अभियोग्यता ही है ।
मौखिक अभियोग्यता में दो शब्द हैं- मौखिक तथा अभियोग्यता । मौखिक मूल शब्द मुख के साथ इक प्रत्यय लगाकर बना है। मौखिक का अर्थ हुआ मुख से सम्बन्धित तथा अभियोग्यता का अर्थ है अपनी बात को दूसरों के सामने प्रकट करना ।
इस प्रकार वाणी द्वारा दूसरों के सम्मुख अपने भावों को प्रकट करना ही मौखिक अभियोग्यता है।
किटसन के अनुसार, “किसी भाषा को पढ़ने और लिखने की अपेक्षा बोलना, सीखना सबसे छोटी पगडंडी को पार करना है। ”
प्रसिद्ध लेखक बाईकेन (Baiken) के अनुसार, “सम्भाषण की कला में प्रवीण व्यक्ति ही तत्पर बुद्धि वाला व्यक्ति बन सकता है। अर्थात् वह व्यक्ति जिसकी वाणी प्रभावशाली नहीं है और युक्तिपूर्वक अपने विचारों को व्यक्त नहीं कर सकता वह व्यक्ति बहुत बड़ा विद्वान होते हुए भी श्रोता समुदाय में उपहास का पात्र बनेगा ।”
टॉमकिन्सन (Tomkinson) का कथन इस बात को सार्थक सिद्ध करता है, “सम्भाषण की सफलता विश्रृंखलित विचारों का परिणाम है, असफल श्रोता ही असफल वक्ता होता है। अतः व्यक्ति जिस प्रकार का श्रोता है वैसा ही वक्ता भी होता हैं।
शिक्षाविद् लज्जा शंकर झा के अनुसार, प्रथम कक्षा के प्रारम्भिक छः मास तक वाचन एवं लेखन का प्रारम्भ ही नहीं किया जाना चाहिए, इस समय बालक के लिए केवल सम्भाषण सीखना ही आवश्यक है।”
मौखिक अभियोग्यता को दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं, भाषा एवं विचारों का प्रकाशन ही मौखिक अभियोग्यता है। मनुष्य अपने भावों एवं विचारों को प्रकाशित करने के लिए उन्हें वाणी अर्थात् भाषा का परिधान प्रदान करता है यह क्रिया ही भाषा में मौखिक प्रकाशन कहलाता है। यदि व्यक्ति अपने विचारों तथा भावनाओं को प्रकाशित न कर सके तो वह मानसिक रूप से परेशान हो जाएगा। अतः भाव प्रकाशन या मौखिक भाषा मानसिक सन्तुलन और शान्ति के लिए आवश्यक है।
वार्तालाप / मौखिक कौशल की विशेषताएँ (Characteristics of Conversational/ Oral Skill)
- स्वाभाविकता – मौखिक अभियोग्यता में स्वाभाविकता होनी चाहिए। कृत्रिम भाषा का प्रयोग अव्यावहारिक होता है तथा कृत्रिम बोली हास्यास्पद हो जाती है। अस्वाभाविक भाषा वक्ता को अविश्वसनीय बना देती है।
- स्पष्टता – मौखिक अभियोग्यता में स्पष्टता होनी चाहिए । जो भी बात कही जाए स्पष्ट व साफ होनी चाहिए अगर बात स्पष्ट नहीं होगी तो वह सही प्रकार से दूसरों तक नहीं पहुँचेगी।
- बोधगम्यता- जो भी बात कही जाए वह सरल होनी चाहिए । वार्तालाप के दौरान कठिन शब्दावली के प्रयोग से बात समझ में नहीं आती है।
- शुद्धता – मौखिक अभियोग्यता करते समय भाषा शुद्ध होनी चाहिए तथा उच्चारण भी शुद्ध होना चाहिए। अशुद्ध उच्चारण व अशुद्ध भाषा के प्रयोग से भाषा प्रभावहीन हो जाती है।
- मधुरता – मौखिक अभियोग्यता में मधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए । वाणी की मधुरता व्यक्ति को मित्र बना देती है। मीठी वाणी से किसी को भी अपना बनाया जा सकता है।
- प्रवाहिकता- मौखिक अभियोग्यता में उचित प्रवाह होना चाहिए। विराम चिह्नों के उचित प्रयोग से अभियोग्यता में सम्यक् गति व प्रवाह आ जाता है। धारा प्रवाह में बोलकर वक्ता श्रोता को अपने वश में कर सकता है।
- अनुकूलता अवसर के अनुसार ही भाषा का प्रयोग करना चाहिए। शोक; हर्ष, उल्लास व दुःख में अनेक प्रकार के प्रसंग और प्रभाव उपस्थित होते रहते हैं। वक्ता को इन्हीं के अनुसार ही भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
- श्रोतानुकूल भाषा – जिस स्तर के व्यक्तियों से बात की. जाए उसी प्रकार की भाषा का प्रयोग करना चाहिए। ग्रामीण व्यक्तियों के साथ अत्यन्त क्लिष्ट भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- मौखिक अभियोग्यता का हमारे लिए विशेष महत्व है। अतः विद्यालयों में मौखिक भाषा की औपचारिक शिक्षा नितान्त आवश्यक है।
- विद्यार्थी को निःसंकोच एवं आत्म-विश्वास के साथ अपने विचारों को प्रकट कर सकने योग्य बनाना ।
- मौखिक अभियोग्यता, भाषा को सजीव एवं सरल बनाती है।
- प्रश्नों के उत्तर मौखिक रूप से देने में विद्यार्थी को सक्षम बनाना ।
- विद्यार्थी जो देखते हैं उन्हें अपने शब्दों में मौखिक रूप से व्यक्त कर सकने की योग्यता का विकास करना ।
- छात्रों को ध्वनि, ध्वनि समूहों, शब्द, सूक्ति तथा मुहावरों का ज्ञान कराना ।
- विद्यार्थियों में अपनी जिज्ञासाएँ मौखिक रूप में अभिव्यक्त करने की योग्यता विकसित करना ।
- दैनिक जीवन में महत्त्वपूर्ण साधन – दैनिक जीवन में हर समय लिखित भाषा काम में नहीं आती है। दैनिक जीवन में होने वाले कार्यों को हम मौखिक भाषा के द्वारा ही सम्पन्न करते हैं। सामाजिक सम्बन्धों का आधार ही मौखिक भाषा है। आदेश-निर्देश देने के लिए मौखिक भाषा का प्रयोग किया जाता है।
- मौखिक भाषा लिखित भाषा की जननी है- प्राचीन काल में सारी शिक्षा मौखिक रूप होती थी। गुरू के मुख से सुनकर वेदों की शिक्षा प्राप्त होती थी। इसी कारण से वेदों को श्रुतियों की संज्ञा दी गई। अतः मौखिक भाषा ही लिखित भाषा की जननी है।
- व्यक्तित्व के विकास में श्रेष्ठ साधन हैं- व्यक्ति अगर अपने भावों एवं विचारों की अभियोग्यता न करे तो वह कुण्ठित हो जाएगा। अपने भावों की अभियोग्यता से वह मानसिक रोगों का शिकार नहीं होगा। सर विलियम विंटर का कथन है, “आत्म प्रकाशन मनुष्य की प्रमुख आवश्यकता है। “
- जनतांत्रिक व्यवस्था में सहयोगी – जनतन्त्र में हम अपने विचारों के लिए स्वतन्त्र होते हैं। हम अपने विचार दूसरों तक मौखिक अभियोग्यता के माध्यम से पहुँचाते हैं। जो व्यक्ति भाषण कला में कुशल होते हैं वे जीवन में सफलता प्राप्त कर लेते हैं ।
- मौखिक भाषा सरल होती है-लिखित भाषा के लिए जहाँ लिपि का ज्ञान होना आवश्यक है वहीं मौखिक भाषा बालक अनुकरण के द्वारा सीख लेता है। इसे सीखने के लिए उसे किसी प्रकार का प्रयास नहीं करना होता । बिना प्रयास के सीखी गयी केवल इसी मौखिक भाषा से ही समाज में सफलता के साथ जी लेते हैं ।
- कक्षा का सजीव वातावरण- मौखिक भाषा से बालक की झिझक दूर हो जाती है तथा वह आत्म-अभियोग्यता के योग्य हो जाता है। जिस व्यक्ति में मौखिक भाषा का विकास हो जाता है उसमें स्वतः ही आत्मविकास की भावना विकसित हो जाती है।
- वार्तालाप – विषय-वस्तु पढ़ाते हुए या अन्य अवसरों पर छात्रों के साथ अध्यापक को वार्तालाप करनी वार्तालाप का विषय बालकों के अनुकूल होना बालकों की जिज्ञासाएँ शान्त करनी चाहिए क्योंकि जिज्ञासाएँ शान्त होने के बाद बालक उत्साहित हो जाते हैं। चाहिए। चाहिए ।
- चित्र वर्ण – आज की शिक्षा प्रणाली में बालकों को चित्रों के माध्यम से शिक्षा से जोड़ा जाता है। प्राचीन समय की शिक्षा और आज की शिक्षा में बहुत अन्तर आ गया है । आज के बालक के लिए मॉण्टेसरी पद्धति द्वारा ही रोचक शिक्षा प्रदान की जाती है। वस्तुओं के माध्यम से बालकों को पाठ्य-वस्तु से जोड़ा जा सकता है।
- प्रश्नोत्तर – मौखिक शिक्षा देने के लिए प्रश्नोत्तर एक अच्छी विधि है। सामान्य विषयों पर या पाठ्य पुस्तक से सम्बन्धित पाठों पर छात्रों से प्रश्न पूछने चाहिए और यदि कोई अशुद्ध उत्तर दे तो उसे छात्रों द्वारा ही शुद्ध करवाना चाहिए।
- सस्वर वाचन – पाठ्य पुस्तक का पाठ पढ़ाते समय पहले अध्यापक को स्वयं उसका अनुवाद करना चाहिए फिर कक्षा के छात्रों से सस्वर वाचन कराना चाहिए। इससे बालक में अशुद्ध बोलना भी कम होता है तथा उनकी झिझक भी कम होती है।
- कहानी – कहानी के द्वारा बालकों में हम कल्पना का विकास कर सकते हैं। सभी उम्र के व्यक्तियों के लिए यह रुचिकर होती है। हम समाज, धर्म, राष्ट्र से सम्बन्धित कहानियाँ बालकों को सुना सकते हैं। कहानियों के माध्यम से हम बालकों को शिक्षा प्रदान कर सकते हैं ।
कहानी का प्रयोग शिक्षक निम्न प्रकार कर सकते हैं –
- शिक्षक कहानी सुनाएँ एवं प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करें।
- पाठ्य-वस्तु को कहानी के माध्यम से प्रस्तुत करें।
- बालकों को अपने शब्दों में कहानी लिखने को कहें।
- चित्रों के माध्यम से कहानी पूरी करवाएं।
- कविता पाठ – कविता के माध्यम से भी बालक अपनी मौखिक अभियोग्यता कर सकता है। कविता पाठ करते समय उसे भाव प्रकट करना, अंग संचालन करना सीखना चाहिए।
जब हम वीर रस की कविता पाठ करते हैं तो उसी प्रकार का जोश वाणी में आ जाता है। कविता द्वारा उसे वाचन व श्रवण दोनों का ज्ञान होगा। जब वह कविता याद करेगा तो वह कविता का निर्माण भी करना सीखेगा और उसमें मौलिकता का विकास होगा।
- अन्तयाक्षरी प्रतियोगिता- इस क्रिया में बालक कविताओं को याद करते हैं और प्रतियोगिता के समय पहले दल के बालक द्वारा कही गई कविता जिस वर्ण पर समाप्त होती है वहीं से दूसरा दल कविता आरम्भ करता है इसी प्रकार खेल चलता रहता है।
जब दूसरा दल दिए गए वर्ण पर कविता नहीं सुना पाता तो वह दल हार जाता है। इससे बालकों में कविता के प्रति रुचि जाग्रत होती है।
- पाठ का सार – पाठ्य पुस्तक या अन्य किसी पत्रिका का कोई पाठ या रचना पढ़कर उसका सार बताना होता है । इस विधि में छात्र यह सार संक्षेप में बताते हैं।
इसी प्रकार कविता पढ़कर उसका केन्द्रीय विचार बताने को कहा जाता है। इससे बालक में अभियोग्यता का विकास होता है।
- नाटक मंचन- नाटक के द्वारा हम हाव-भाव के साथ अपनी अभियोग्यता करते हैं। इसमें भाग लेने वाले विद्यार्थी चरित्र की तरह अपने आपको प्रस्तुत करते हैं। नाटक का चुनाव करते समय विद्यार्थियों के बौद्धिक स्तर का ध्यान रखना चाहिए। मार्गदर्शन के साथ ही नाटक का मंथन हो ।
- बालसभा का आयोजन – विद्यालय में होने वाली बालसभा बालक की अभियोग्यता की पहली सीढ़ी है जहाँ वह अपने सहपाठियों एवं अध्यापकों के सामने मौखिक अभियोग्यता करता है। पुरस्कार पाने पर उसमें आत्मविश्वास जाग्रत होता है।