विद्यालयी पाठ्यचर्या में लैंगिक असमानता की विस्तृत विवेचना कीजिए। Discuss in detail the Gender Inequality in School Curriculum.
प्रश्न – विद्यालयी पाठ्यचर्या में लैंगिक असमानता की विस्तृत विवेचना कीजिए। Discuss in detail the Gender Inequality in School Curriculum.
उत्तर – विद्यालयी पाठ्यचर्या में लैंगिक असमानता (Gender Inequality in School Curriculum)
- पुरुषत्व एवं स्त्रीत्व से सम्बद्ध विभिन्न विषय (Different Subject Associated with Masculinity and Femininity) अधिकांश पाठ्यचर्या के क्षेत्र लैंगिक भेदभाव से जुड़े हैं। उदाहरण के लिए अधिकांश पश्चिमी देशों में गणित, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विषयों को पुरुषत्व के क्षेत्र से सम्बद्ध माना जाता है। मानविकी एवं भाषाओं, जैसे- राष्ट्रीय भाषा आधुनिक विदेशी भाषा आदि को स्त्रीत्व से सम्बद्ध माना जाता है। पुरुषत्व के साथ गणित, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के मध्य एक कम मजबूत कड़ी है। पाठ्यचर्या विषय इस लैगिक भेदभाव से विशेष रूप से सम्बद्ध होने के कारण ही जिन व्यवसायिक विषयों छात्रा चुनाता है अन्त में उन्हें कम या अधिक एकल लैंगिक कक्षाओं में उसी विषयों शिक्षित किया जाता है। इस प्रकार उन्हें यह समझने के लिए शिक्षित किया जाता है कि लैंगिक भेदभाव केवल सामाजिक मध्यस्थता है। इसके विपरीत जहाँ पाठ्यचर्या लैंगिक भेदभाव से सम्बद्ध नहीं है वहाँ लड़के एवं लड़कियों के लिए सभी विषयों में लगभग समानता होती है, जैसे- इंग्लैण्ड। फिर भी लैंगिक भेदभाव की दृढ़ता पुरुषत्व के रूप में चिह्नित है।
- शिक्षक के शिक्षण व्यवहार में विभिन्नता (Variation in Teacher’s Educational Attitude)- कुछ शिक्षक लड़के एवं लड़कियों के शिक्षण के लिए अलग-अलग योजना बनाते हैं। वे उन्हें पढ़ाने के लिए अलग-अलग पाठ्य सामग्री एवं अलग-अलग तरीके से पढ़ाने का प्रयास करते हैं जिससे पाठ्यचर्या में लैंगिक भेदभाव प्रदर्शित होता है। लैंगिक आधार पर घटिया पाठ्यक्रमों का ही निर्धारण होता है जो बालिकाओं की शिक्षा के लिए ठीक नहीं है। शिक्षक तो अलग से लड़के-लड़कियों को पढ़ा तो सकते हैं लेकिन इसके परिणामस्वरूप लैंगिक भेदभाव उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार शिक्षण व्यवहार में परिवर्तन के द्वारा पाठ्यचर्या में लैंगिक भेदभाव प्रदर्शित होता है। दूसरी तरफ बालक बालिकाओं को जिस प्रकार की शिक्षा दी जाती है। उसी प्रकार से उनका व्यवहार, विचार एवं समझ विकसित होता है।
पाठ्यचर्या में लैंगिक असमानता को दूर करने के उपाय (Measures to Remove Gender Discrimination in Curriculum)
- उपयुक्त स्थापना नीतियों की (Setting Up Appropriate Polictes) भारत के लिए यह चिन्ता का विषय है कि दोनों लिंग पूर्वाग्रहों एवं रूढ़ियों से ग्रसित हैं। इन्हें दूर करने के लिए उपयुक्त शैक्षिक नीतियों की स्थापना करनी चाहिए। शैक्षिक पाठ्यचर्या के माध्यम से सकारात्मक समानता की भावना को विकसित करने की आवश्यकता है। लैंगिक भेदभाव में सुधार के लिए आवश्यक है कि शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखा जाए। शिक्षक अपनी पूर्वाग्रह एवं रुढ़िवादिता सम्बन्धी कमजोरियों की पहचान करके नयी क्षमताओं का विकास करते हुए स्वयं को सुधारने का प्रयास करें।
- लड़के-लड़कियों को प्रोत्साहन (Encouraging Girls and Boys)- शिक्षकों को समझ-बूझकर ऐसे तटस्थ शिक्षण सामग्रियों का विकास करना चाहिए जिससे छात्रों को उच्च कामयाबी के लिए बिना किसी रूढ़िगत भेदभाव के प्रोत्साहित किया जा सके। सभी शिक्षण सामग्री एक प्रकार से लैंगिक तटस्थ भाषा का समर्थन करने वाली हो। इस प्रकार पाठ्यचर्या के लैंगिक भेदभाव में सुधार के लिए लड़के-लड़कियों को प्रोत्साहित करके लैंगिक भेदभाव में सुधार किया जा सकता है।
- अवधारणात्मक पुस्तकों का प्रयोग (Use of Conceptualised Books)– एनसीईआरटी एवं अन्य प्रकाशकों द्वारा ऐसी अवधारणात्मक पुस्तकों को प्रकाशित किया गया है जो पुरुषों एवं महिलाओं के लिए सकारात्मक उदाहरण के रूप में प्रयोग करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। शिक्षक को बच्चे के विषय में विचार-विमर्श करने के लिए केवल माँ को ही नहीं बुलाना चाहिए बल्कि माता-पिता दोनों को शामिल करने का प्रयास करना चाहिए। इससे लैंगिक भेदभाव में सुधार किया जा सकता है। पाठ्यचर्या की विषय-वस्तु लैंगिक अनुपात में समान होना चाहिए।
- लड़के-लड़कियों की कक्षा में समन्वय (Coordination in the Class of Boys and Girls) – कक्षा में लड़के एवं लड़कियों को एकीकृत करने का प्रयास करना चाहिए । इसलिए उन्हें कक्षा में बैठने की अलग-अलग व्यवस्था नहीं की जानी चाहिए। कक्षा व्यवहार के अध्ययन से पता चला है कि लड़कों की तुलना में लड़कियाँ कक्षा में अधिक सक्रिय रहती हैं। लड़के किसी भी विषय पर चर्चा करने में हिचक नहीं करते हैं जबकि लड़कियाँ अधिक शर्मीली एवं संकोची होती हैं। इसलिए समूह चर्चा के संगठन में लड़के-लड़कियों को अलग करने की बजाय लैंगिक मिश्रण होना चाहिए। कक्षा परिचर्चा में नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए लड़कियों को भी प्रोत्साहित करके लैंगिक भेदभाव में सुधार किया जा सकता है।
- पाठ्येत्तर गतिविधियों में समान प्रोत्साहन (Equal Encouragement for Extra- Curricular Activities) – सभी खेल एवं पाठ्येत्तर गतिविधियों में लड़के एवं लड़कियों को समान रूप से प्रोत्साहन की आवश्यकता है। लड़कियों से यह नहीं कहना चाहिए कि उन्हें तैरना या व्यायाम नहीं करना चाहिए। लड़कियों से यह नहीं कहना चाहिए कि उन्हें लड़कों की अपेक्षा जल्दी घर पहुँचना चाहिए क्योंकि तुम असुरक्षित हो, ऐसा व्यवहार करना उचित है। इसके बजाय उन्हें स्वयं अपना ध्यान रखना एवं आत्मविश्वास में वृद्धि करना सिखाया जाना चाहिए ।
- रोल मॉडल (Role Models) – शिक्षक की भूमिका एक सबसे प्रभावशाली रोल मॉडल के रूप में होनी चाहिए। शिक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह एक रोलमॉडल के रूप में, रुढ़िवादिता को बढ़ावा न दें। वह सभी लड़के-लड़कियों को समान रूप से किसी कार्य के लिए प्रोत्साहन दें।
उदाहरण के लिए – यदि कोई लड़की पायलट बनने के लिए रुचि व्यक्त करती है तो उसे सफलता प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इसी प्रकार यदि एक लड़का शिल्पकार बनना चाहता है तो उसे हतोत्साहित न करके प्रोत्साहित करने की आवश्यकता होती है इस प्रकार शिक्षक एक रोलमॉडल के रूप में छात्रों को सकारात्मक दिशा प्रदान कर सकते हैं।
- कैरियर परामर्श के लिए सुझाव (Suggestions for Career Counselling) – कैरियर परामर्श स्कूलों से प्रारम्भ होता है। अधिकांश शिक्षकों को यह पता नहीं होता है कि वे बच्चों में विश्वास पैदा करके उन्हें भविष्य के एक कुशल नागरिक का आकार प्रदान कर रहे हैं। लड़कियों को लड़कों के समकक्ष अधिकार प्राप्त होना चाहिए । परिवार द्वारा उनके कैरियर को बढ़ावा देना चाहिए। लड़कियों को हमेशा एक अच्छी पत्नी एवं माता होने का सुझाव दिया जाता है जबकि लड़कों को अच्छे पति एवं आदर्श पिता होने का सुझाव कभी नहीं दिया जाता है। इसलिए सभी बच्चों को भविष्य में माता-पिता होने का सुझाव देना चाहिए। इस प्रकार शिक्षकों का यह दायित्व है कि सभी लड़के एवं लड़कियों को कैरियर में सफलता के लिए आवश्यक परामर्श एवं सुझाव देकर उनके भविष्य को सफल एवं उज्जवल बनाएँ ।
- पितृसत्तात्मकता की प्रणालीबद्धता (Institutionalisation of Patriarchy) – स्कूल एक ऐसी संस्था है जहाँ विभिन्न प्रकार के संस्थानीकरण बहुत ही सूक्ष्म रूप से समाहित होते हैं। बालक के समाजीकरण के लिए विभिन्न संस्थाएँ जैसे परिवार, स्कूल एवं मीडिया के रूप में पितृसत्ता की प्रणालीबद्धता की अनुमति देते हैं।
पितृसत्तात्मकता की प्रणालीबद्धता में धार्मिक, कानूनी एवं राजनैतिक संस्थाओं के द्वारा व्यक्तियों को लैंगिक पूर्वाग्रह हस्तांतरित होता है। केवल शिक्षक ही बच्चों को इसके विषय में जानकारी प्रदान करके पितृसत्तात्मकता का सामना करने एवं अच्छा नागरिक बनने में सहायता कर सकते हैं। इस प्रकार शिक्षक का प्रमुख उत्तरदायित्व कक्षा में समानता बनाए रखना है।
- लैंगिक सहशिक्षा प्रदान करना ( To Provide Sex Co-Education) – शिक्षक द्वारा लड़के-लड़कियों को लैंगिक शिक्षा के प्रति जागरूक करने का प्रयास करना चाहिए। लैंगिक शिक्षा सहशिक्षा के रूप में प्रदान करने की आवश्यकता है। लैंगिक उत्पीड़न से परेशान लड़कियों को ही दोषी नहीं मानना चाहिए। शरीर रचना विज्ञान एवं जीव विज्ञान की शिक्षा मानव शरीर चिकित्सकीय शिक्षा के रूप में पढ़ाना चाहिए। इन विषयों की प्रासंगिकता को स्पष्ट करने के लिए एवं लैंगिक समस्याओं को दूर करने के लिए मनोरंजक चित्रों का उपयोग करना चाहिए। इससे लैंगिक समानता एवं इन विषयों के प्रति रुचि बनी रहती है।
- पाठ्यचर्या सामग्री (Curriculum Content)- वर्तमान समय में गरीब परिवार के बच्चों एवं हाशिए के वातावरण पर विचार करने के लिए स्कूली शिक्षा के पेशकश को उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। पाठ्यचर्या में लैंगिक विकास का प्रमुख मार्ग छात्रों के आत्मविश्वास को बढ़ाना है जिससे वे शिक्षा या साक्षरता द्वारा अपने रहन-सहन को बदलने का प्रयास कर सकती हैं।
- अधिगम सामग्री (Learning Materials)—प्रायः पाठ्यपुस्तकों में अधिगम सामग्री के रूप में कुछ छवियों को छात्रों के अभिनय के लिए सूचीबद्ध किया जा रहा है। सामान्यतया बच्चों को अनिवार्य पाठ्य पुस्तकों में प्रतिक्रियाओं के लिए छवियों की आवश्यकता नहीं है। लैंगिक समानता के लिए बच्चों की पुस्तकों में ऐसी छवियों का प्रतिरूपण किया जाए जिससे उनमें लिंग के बारे में जानने के लिए परिष्कृत समझ एवं प्रतिक्रिया का विकास हो ।
पाठ्यचर्या विकास में सहभागी की भूमिका (Role of Partners in Curriculum Development)
पाठ्यचर्या तथा शिक्षण अधिगम के तरीके लैंगिक असमानता के द्वारा चिह्नित कार्यों के लिए पुनः विचार प्रस्तुत कर सकते हैं। लैंगिक असमानता और व्यापक सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक असमानताएँ पाठ्यक्रम को प्रभावित करते हैं जिसके कारण लड़के तथा लड़कियों को पाठ्यक्रम के विभिन्न भागों में अलग किया जाता है। यदि शिक्षा में लैंगिक समानता को प्राप्त करना है तो शिक्षण अधिगम में लैंगिक मुद्दों के प्रति शिक्षक का जागरूक दृष्टिकोण बहुत महत्त्वपूर्ण है। सिफारिशों को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त संसाधनों वित्तीय और मानव संसाधन दोनों की आवश्यकता होती है। अच्छे कार्यों को प्रलेखित, साझा, परिवर्तित तथा नीति निर्माण को प्रभावित करने के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए ।
- सरकार तथा गैर राज्य प्रदाताओं की भागीदारी (Partnership of Government and Non-State Providers) – सरकार तथा गैर राज्य प्रदाताओं के लिए निम्नलिखित कार्य होने चाहिए-
- पाठ्यचर्या विकास में लैंगिक समानता के बारे में समाज के सभी स्तरों पर महिलाओं, लड़कियों एवं विशेषकर जो लोग भाषा या सामाजिक व्यवहार कारण हाशिए पर हैं, के विषय में विचार-विमर्श करके उनका स्थान सुनिश्चित करें।
- शिक्षा के क्षेत्र में समानता और गुणवत्ता के विकास के लिए सरकार की ओर से सहमति मानकों को लागू करना ।
- विद्यालय में यौन हिंसा तथा उत्पीड़न जैसे गैर कानूनी कार्यों के लिए सशक्त कानून सुनिश्चित करें तथा उनको व्यापक रूप से प्रेषित भी करना चाहिए।
- शिक्षक प्रशिक्षण शिक्षा कार्यक्रम (सेवाकालीन तथा पूर्व सेवा प्रशिक्षण दोनों) कॉलेज के आधार पर या स्कूल आधारित प्रशिक्षण में लैंगिक समानता को सम्मिलित करना सुनिश्चित करें।
- कक्षा में लैंगिक समानता का समर्थन करने के लिए निरीक्षणालय और लिंग इकाइयों की क्षमता और भूमिका का विकास करना ।
- योजना और बजट प्रक्रियाओं का आंकलन करना तथा यह सुनिश्चित करना कि सभी स्तरों पर अधिकारियों में उन्हें लागू करने की क्षमता है।
- शिक्षकों की भागीदारी (Partnership of Teachers) – प्रमुख शिक्षक तथा शिक्षकों के लिए निम्नलिखित कार्य होने चाहिए-
- शिक्षकों को लैंगिक समानता के लिए वर्तमान नीति के बारे में सूचित करें।
- शिक्षण और अधिगम के लिए लिंग न्यायोचित दृ ष्टिकोण के लिए स्कूल स्तर की नीतियों का विकास करना।
- लिंग रूढ़िबद्धता से आगे बढ़ें तथा विद्यालय और शिक्षकों को मूल्यों, संस्कृति तथा आकांक्षाओं के लिए लैंगिक समानता की जाँच करें।
- पाठ्य सामग्री में लिंग रूढ़िबद्धता तथा लिंग भेद की चुनौतियों से निपटने के लिए प्रशिक्षित एवं सशक्त करें ।
- महिला शिक्षकों के विभिन्न दबावों को पहचाने तथा सहायक नेटवर्क कार्यों को प्रोत्साहित करें ।
- माता-पिता तथा समुदाय के सदस्यों की भागीदारी (Partnership of Parents and Community Members)–माता-पिता तथा समुदाय के सदस्यों के लिए निम्नलिखित कार्य होने चाहिए-
- अपने बच्चों की शिक्षा में सक्रिय रुचि ले तथा विद्यालय के अधिगम वातावरण में स्वास्थ्य एवं सुरक्षा को सुनिश्चित करें।
- शिक्षा संसाधनों के प्रबंधन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए यह सुनिश्चित करे कि इनका उपयोग लड़के एवं लड़कियों के लिए समान रूप से किया जाए।
- गैर – औपचारिक संगठनों की भागीदारी (Partnership of Non-Formal Organisations) -भारत में अनुभव से पता चला है कि विकासशील पाठ्यक्रम तथा पाठ्यचर्या विद्यालय में किशोरियों के लिए व्यवहार में रणनीतिक और प्रभावी भागीदारी को दर्शाता है यह विश्वविद्यालय व्यवसायियों, महिला समूहों, गैर सरकारी संगठन और शिक्षा पदाधिकारियों के बीच विशेषज्ञता का साझा सुनिश्चित करते हैं शैक्षणिक- सामाजिक कार्यकर्ता भागीदारी के माध्यम से अनौपचारिक शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम डिजाइन को महिला समस्या, लोक जुम्बिश और राष्ट्रीय साक्षरता अभियान कार्यक्रमों में स्थान दिया गया। उदाहरण के लिए- स्वास्थ्य शिक्षा पर पाठ्यचर्या और संसाधन मैनुअल युवा महिलाओं के लिए एक आवासीय पाठ्यक्रम के लिए विकसित किए गए तथा संख्यात्मक मैनुअल महिलाओं के स्थानीय ज्ञान का उपयोग करके तैयार किए गए थे।
