विभिन्न जातियों में समता और समानता पर चर्चा कीजिए। Discuss about Equity and Equality in Various Castes
मजूमदार एवं मदान के अनुसार, “जाति एक बन्द वर्ग है।”
कूले के अनुसार, “जब एक वर्ग पूर्णतः आनुवांशिकता पर आधारित हो तो हम उसे जाति कहते हैं । ”
जे.एच. हट्टन के अनुसार, “जाति एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत एक समाज आत्म-केन्द्रित एवं एक दूसरे से पूर्णतः पृथक इकाइयों ( जातियों) में विभाजित रहता है। इन इकाइयों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध ऊँच-नीच के आधार पर सांस्कृतिक रूप से निर्धारित होते हैं।” भारतीय समाज की स्थापना जाति आधारित है। सभी लोगों को कुछ विशेष जातियों में विभाजित किया गया है जो कि सामान्यतः कर्म आधारित थीं परन्तु बाद में वंशानुगत हो गई।
भारत में जाति व्यवस्था बहुत संकीर्ण रही है फिर भी संविधान की दृष्टि में सभी जातियाँ समान हैं। सभी जातियों के लोगों पर संविधान समान रूप से लागू है। उन्हें समान रूप से ही मूलाधिकार प्राप्त हैं। ये मूलाधिकार सबको भारत में समान रूप रहने, खाने, पीने, शिक्षा प्राप्त करने, सम्पत्ति बनाने, न्याय प्राप्त करने आदि के अधिकार प्रदान करते हैं। कोई गलती करने पर सजा के प्रावधान भी सभी के लिए समान हैं। यह समानता है।
दूसरी तरफ देखा जाए तो भारत में कई जातियाँ गरीब व पिछड़ी हुई हैं जो सदियों से शोषित रही हैं। भारत की जाति व्यवस्था ही ऐसी है कि इसमें कुछ जातियाँ उच्च व कुछ निम्न रही हैं। यहाँ तक कि कहीं-कहीं तो उच्च जाति वाले नीची जाति के लोगों के हाथ का पानी भी नहीं पीते। उन्हें भेदभाव के चलते आगे बढ़ने के सीमित अवसर ही मिलते हैं। संविधान ने इनकी स्थिति को देखते हुए इन्हें शिक्षा व नौकरियों में आरक्षण प्रदान किया है। जब आरक्षण लागू किया गया था उस समय उसका मूल आधार यही था कि कमजोर वर्ग के लोगों को अधिक अवसर दिया जाए जिससे कि वह बाकी वर्गों के बराबर आ जाएँ । आरक्षण प्रारम्भ में सिर्फ दस वर्ष के लिए लागू किया गया था। इसका अर्थ यही था कि कुछ समय में पिछड़ी जातियाँ मजबूत होकर मुख्यधारा में शामिल हो जाएंगी और फिर वह अन्य के साथ चल सकेगी अर्थात् आरक्षण अस्थायी तौर पर समाज में समता लाने का एक तरीका था । यह अलग बात है कि आज आरक्षण वोट लेने का एक तरीका बन कर रह गया है। संक्षेप में कहा जाए तो सभी जातियाँ समान हैं, यह समानता है परन्तु कमजोरों के लिए अवसरों की अधिकता प्रदान करना समता है।
ऑगबर्न तथा निमकॉफ के अनुसार, “सामाजिक वर्ग एक समाज में समान सामाजिक स्तर के लोगों का समूह है । ”
सभी प्रकार के समाजों में आर्थिक आधार पर वर्गीकरण है और व्यक्ति अपने आर्थिक स्थिति के आधार पर उच्च, मध्य या निम्न वर्ग में रखे जा सकते हैं पर यह वर्ग स्थायी नहीं है। व्यक्ति अपनी क्षमता या मेहनत के अनुसार एक से दूसरे वर्ग में जा सकता है। यह देखा गया है उच्च आर्थिक वर्ग के छात्र हमेशा लाभ की स्थिति में रहते हैं। उनके माता-पिता उन्हें अच्छे स्कूल में पढ़ा सकते हैं, उन्हें बेहतर संसाधन दे सकते हैं, जिससे कि वह छात्र अन्य छात्रों से आगे रहते हैं। दूसरी तरफ निम्न आर्थिक स्थिति वाले छात्र आर्थिक कमी होने के कारण पीछे रह जाते हैं। इस तरह विभिन्न वर्गों के छात्र प्रतिभा में समान होने पर भी समान नहीं हो पाते। गरीब हो या अमीर सभी वर्गों में बुद्धि, प्रतिभा, रूप रंग, क्षमताएँ बराबरी से पाए जाते हैं परन्तु आर्थिक रूप से सशक्त लोग बेहतर संसाधनों के कारण आगे आ जाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में यह सुनिश्चित करने के लिए कमजोर आर्थिक स्थिति वाले लोगों को बराबर मौका मिले इसके लिए कई प्रयास किए जा सकते हैं-
- सभी के लिए निःशुल्क शिक्षा,
- प्रतिभाशाली गरीब छात्रों के लिए निःशुल्क कोचिंग
- प्रतिभावान खिलाड़ियों के लिए कोचिंग, पौष्टिक आहार आदि की व्यवस्था,
- आरक्षण का आधार जाति न होकर वर्ण व्यवस्था,
- सरकारी नौकरियों के फार्म आदि की फीस नाम मात्र की हो।
- गरीब छात्रों के लिए छात्रावास, भोजन आदि की व्यवस्था हो जिससे कि पढ़ने के लिए उन्हें किसी की सहायता न लेनी पड़े। संविधान द्वारा गरीब छात्रों को यह सभी अधिकार प्राप्त हैं। इस प्रकार के अन्य उपाय से समाज में समता स्थापित की जा सकती है ।
‘फ्रेड्रिक बार्थ’ के अनुसार, “निर्णयात्मक जातीय गतिशीलता संपर्क एवं जानकारी के अभाव पर निर्भर नहीं है बल्कि इसमें अपवर्जन एवं समावेशन की सामाजिक क्रियाएँ सम्मिलित हैं जिससे व्यक्तिगत जीवन इतिहास के दौरान सहभागिता एवं सदस्यता में बदलाव के बावजूद, असतत् श्रेणियों को बरकरार रखा जाता है।”
एरिक होब्सबौम के अनुसार, “जातीयता एवं राष्ट्रवाद जैसी जातीय गर्व की धारणा पूर्णरूप से आधुनिक आविष्कार है यह केवल विश्व इतिहास में आधुनिक समय में दर्शाई गई हैं।”
- सभी मनुष्य जन्म से समान होते हैं इसलिए सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए ।
- सभी को अपने व्यक्तित्व की समस्त सम्भावनाओं का विकास करने के पर्याप्त अवसर मिलने चाहिए ।
- सभी के लिए सामाजिक लाभ पाने की सुविधा जिसमें पारिवारिक स्थिति या धन अथवा उत्तराधिकार आदि के आधार पर कोई प्रतिबन्ध न हो ।
- जातीयता के बीच मूलभूत समानता होनी चाहिए ।
- स्थितियों की समानता होनी चाहिए।
- परिणाम की समानता होनी चाहिए।
- शारीरिक अक्षमता (Physical Disability ) – इस प्रकार के व्यक्तियों में शरीर का कोई अंग सही प्रकार से काम नहीं करता जैसे- हाथ, पैर, आँख, कान आदि । इसकी वजह से व्यक्ति लंगड़ा (Lame), अन्धा (Blind), गूंगा (Dumb), बहरा (Deaf) आदि हो सकता है। यह अक्षमता जन्मजात भी हो सकती है और बाद में किसी दुर्घटना के कारण भी हो सकती है।
- मानसिक अक्षमता (Mental Disability ) – इस प्रकार की अक्षमता का पता बुद्धिलब्धि परीक्षण (I. Q.) के आधार पर चलता है। बुद्धिलब्धि निम्न सूत्र से ज्ञात की जाती है –
जिन बच्चों की बुद्धिलब्धि अंक 70 से कम आता है उन्हें मन्दबुद्धि की श्रेणी में रखा जाता है। इन बालकों की सीखने की गति मन्द होती है जिसकी वजह से यह शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते। इनमें से कुछ छात्र ऐसे भी होते हैं जो शिक्षा प्राप्त ही नहीं कर सकते।
- सामाजिक अक्षमता (Social Disability) – परिवार में कोई · कमी होने, गरीबी, शारीरिक अक्षमता, किसी भी वजह से कुछ बच्चे हीन भावना का शिकार हो जाते हैं। वह अन्य छात्रों से मेलजोल नहीं कर पाते तथा शिक्षकों से अपनी समस्या भी नहीं पूछ पाते । बच्चा सामाजिक रूप से अपने आपको समायोजित नहीं कर पाता और असन्तोष का शिकार हो जाता है।
- मनोवैज्ञानिक अक्षमता (Psychological Disability)–इन सबके अतिरिक्त कुछ अन्य मनोवैज्ञानिक कारण भी होते हैं जिनके कारण बच्चे पूरी तरह से सामान्य रूप से पढ़ नहीं पाते हैं, जैसे- ध्यान केन्द्रित न कर पाना ( Attention Deficit Hyperactive Disorder), अक्षरों को न पहचान पाना (Dyslexia), अपनी बात को सही प्रकार से सम्प्रेषित न कर पाना (Autism) आदि ।
इस प्रकार की समस्याओं के चलते बच्चा अन्य बच्चों की भाँति कक्षा में सामान्य रूप से भागीदारी नहीं कर पाता और अन्य बच्चों से पीछे रह जाता है। शिक्षक भी कई बार उन की समस्या नहीं समझ पाते और इन बच्चों को उपेक्षित कर देते हैं। समस्या कोई भी हो परन्तु बालक तो सभी समान हैं। सभी भगवान की सुन्दर कृति हैं परन्तु अक्षम बच्चे अधिकतर माता-पिता व शिक्षकों द्वारा भेदभाव का शिकार हो जाते हैं ।
- लोकतन्त्र की भावना की स्थापना हेतु ( To Establish Spirit of Democracy) – भारत एक लोकतान्त्रिक देश है। लोकतन्त्र में सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं । लोकतन्त्र की भावना अर्थात् सभी नागरिकों की सहभागिता तब तक सच्चे अर्थ में स्थापित नहीं हो सकती जब तक अक्षम लोगों को भी समान भागीदारी न मिले।
- अनिवार्य शिक्षा (Compulsory Education) – शिक्षा का अधिकार धारा 21(A) के तहत् जो मूल अधिकार हैं उनके अन्तर्गत सभी बालकों का शिक्षा प्राप्त करना जन्मसिद्ध अधिकार है। यह तब तक सम्भव नहीं है जब तक कि अक्षम बालक भी पर्याप्त शिक्षा प्राप्त न कर लें ।
- आत्म निर्भरता हेतु (For Self-Dependence) – अक्षम बालक यदि शिक्षा प्राप्त करके आत्मनिर्भर हो जाएंगे तो फिर दूसरों पर बोझ बनकर नहीं रहेंगे। शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो जो उन्हें उनकी क्षमता व आवश्यकता के अनुरूप संलग्न कर सके ।
- आत्म-सम्मान प्राप्ति के लिए ( To receive Soul Respect) – अक्षम बालक यदि आत्म-निर्भर हो जाएँ तो वह देश की उन्नति में भाग ले सकते हैं और साथ – साथ सम्मान के साथ जीविकोपार्जन कर सकते हैं। इससे उनका आत्म–विश्वास बढ़ेगा और आत्म-सम्मान के साथ जीने की आदत पड़ेगी ।
- अक्षम को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए ( To Add to Mainstream Disabled) — अक्षम छात्र यदि शिक्षा प्राप्त करेंगे, नौकरी कर जीविकोपार्जन करेंगे तो उनमें अलग-अलग रहने की प्रवृत्ति खत्म होगी और वे मुख्यधारा में जुड़ेंगे। इससे समाज में अपराधी कम होंगे और समाज की उन्नति होगी।
- प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव (Deficiency of Trained Teachers)—अक्षम छात्रों को पढ़ाने के लिए बहुत धैर्य और सहानुभूति की आवश्यकता होती है। इसके लिए उचित प्रशिक्षित शिक्षक का होना बहुत आवश्यक है। उचित शिक्षा व प्रशिक्षण के अतिरिक्त शिक्षक को धैर्यवान व सहानुभूतियुक्त भी होना चाहिए परन्तु ऐसे शिक्षक कम ही होते हैं जो अक्षम छात्रों को प्यार से सही तकनीक के साथ पढ़ा सकें ।
- हीन भावना (Inferiority Complex) — अक्षम छात्रों में कई बार हीन भावना आ जाती है कि वह अन्य छात्रों के बराबर नहीं हैं क्योंकि समाज, माता-पिता, शिक्षक आदि उन्हें कमतर समझते हैं और मुख्य धारा से अलग ही रखते हैं। इस व्यवहार को सहते-सहते अक्षम छात्र हीन भावना का शिकार होकर सबसे मिलजुल कर नहीं रह पाते और चिड़चिड़े हो जाते हैं। यहाँ तक कि सामान्य छात्रों की जलन का शिकार हो जाते हैं ।
- सही तकनीक का अभाव (Absence of Right Technique)– अक्षम छात्रों को पढ़ाने के लिए सही प्रकार की शिक्षण सहायक सामग्री- विशिष्ट तकनीक आदि आवश्यक है जैसे- दृष्टान्ध छात्रों को ऐसे साधनों द्वारा पढ़ाया जाना चाहिए जिसमें उनके सुनने, स्पर्श करने आदि इन्द्रियों का अधिक से अधिक उपयोग हो। इन तकनीकों का स्कूलों में अभाव होता है जिससे शिक्षकों को अक्षम छात्रों को पढ़ाने में परेशानी होती है। डिस्लेक्सिया तथा ऑटिज्म जैसे छात्रों को पढ़ाने के लिए अलग प्रकार की तकनीक की जरूरत होती है। शिक्षकों में जानकारी का भी अभाव है।
- विद्यालयों में सुविधाओं का अभाव (Deficiency of Facilities in Schools) – दिव्यांग छात्र जो व्हीलचेयर पर चलते हैं उनके लिए अच्छे हास्पिटल व स्कूलों में पट्टीदार रास्ता होता है परन्तु सभी स्कूलों में इस प्रकार की सुविधाएँ नहीं होतीं जिससे कि छात्र स्कूल आने से पहले ही हतोत्साहित हो जाते हैं।
- राजनैतिक कारण (Political Reasons) – दिव्यांग या अक्षम बहुत बड़ा वोट बैंक नहीं है क्योंकि या तो ये वोट देने ही नहीं जाते और जाते भी हैं तो परिवारीजनों के कहने पर वोट देते हैं। इसलिए राजनीतिक पार्टियाँ इनके लिए कुछ करने में रुचि नहीं लेतीं।
- समावेशी विद्यालय (Inclusive School)—अक्षम छात्रों को मुख्यधारा से जोड़ने का सबसे अच्छा उपाय है, समावेशी विद्यालय। जहाँ पर विभिन्न प्रकार की अक्षमताओं वाले छात्रों को सामान्य छात्रों के साथ ही शिक्षित किया जाए। यह विचारधारा भारत में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 (National Curriculum Framework, 2005) में प्रस्तावित हुई थी। इसमें अक्षम छात्रों की आवश्यकताओं के अनुरूप विद्यालय परिवेश को ढाला जाता है, अधिगम अनुभवों (Learning Experiences) की योजना बनाई जाती है और दृश्य श्रव्य सामग्री का प्रयोग किया जाता है। अक्षम छात्रों को शुरू से सामान्य छात्रों के साथ रखने से समायोजन आसान हो जाता है। पहले विशेष विद्यालय की परिकल्पना थी जिससे अक्षम छात्र अलग विद्यालय में पढ़ते ।
विद्यालय में तो उन्हें सभी छात्र अपने जैसे लगते थे पर जब स्कूल से निकल कर वे सामान्य वातावरण में जाते थे तो समायोजित नहीं हो पाते थे। समावेशी विद्यालय इस समस्या को दूर करते हैं। इसके अतिरिक्त सामान्य छात्र भी इन्हें समाज का अंग समझते हैं और इनसे सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार के अतिरिक्त बराबरी का व्यवहार भी रखते हैं, अभी यह कम है, परन्तु समय के साथ यह बढ़ेगा।
- अवसरों (Abundance of की अधिकता Opportunities) — अक्षम छात्रों की सबसे बड़ी समस्या होती है कि उन्हें किसी भी कार्य को करने में सामान्य छात्रों से अधिक समय लगता है। इसलिए समता के अन्तर्गत यह उचित है कि उन्हें कार्य के लिए अधिक समय दिया जाए। सामान्य बच्चों में उन्हें अवसर भी अधिक मिले जिससे कि वे अपनी गलती सुधार लें और सामान्य छात्रों की बराबरी कर सकें।
- संविधान प्रदत्त आरक्षण ation Faciliated by Constitution) – भारतीय संविधान के अनुसार अक्षम लोगों को शिक्षा व नौकरियों में विशेष आरक्षण प्राप्त हैं परन्तु यह आरक्षण केवल शारीरिक अक्षमता तक ही सीमित है। आवश्यक है कि मनोवैज्ञानिक समस्या, जैसे— ऑटिज्म, डिस्लेक्सिया और ए.डी.एच.डी. (ADHD) आदि से पीड़ित लोगों की सही पहचान कर उनके लिए भी कुछ प्रबन्ध किया जाए ।
- जागरूकता ( Awareness ) – टी.वी., समाचार पत्र व अन्य सामाजिक मीडिया की सहायता लेकर जनता को इन समस्याओं के प्रति जागरूक किया जाए और अक्षम लोगों को मुख्य धारा में जोड़ने के उपाय बताए जाएँ ।