वैयक्तिक विभिन्नता से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों का उल्लेख कीजिए। What do you mean by individual difference? Describe its types
प्रश्न – वैयक्तिक विभिन्नता से आप क्या समझते हैं? इसके प्रकारों का उल्लेख कीजिए। What do you mean by individual difference? Describe its types.
या
वैयक्तिक विभिन्नता को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए । Describe the major factors affecting individual diffrences.
या
वैयक्तिक विभिन्नता के शैक्षिक महत्त्व का उल्लेख कीजिए। Describe educational implecations of individual difference.
या
वैयक्तिक भिन्नता की अवधारण । Concept of Individual Differences.
उत्तर- वैयक्तिक भिन्नता का अर्थ एवं परिभाषाएँ
वैयक्तिक भिन्नता एक स्वाभाविक गुण है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार कोई भी दो बालक एक समान नहीं होते हैं। उनमें विकास का क्रम एक हो सकता है लेकिन विकास की गति भिन्न होती है। इसी कारण व्यक्तियों में अनेक समानताएँ होने के बावजूद भी कुछ असमानताएँ पाई जाती हैं। इन्हीं असमानताओं को वैयक्तिक भिन्नता कहा जाता है। टायलर ने वैयक्तिक भिन्नता को सार्वभौमिक घटक मानते हैं। व्यक्ति की शारीरिक संरचना के अलावा रंग, रूप, आकार, बनावट यौन-भेद, सीखने की गति, संवेग, बुद्धि, रुचि आदि पक्षों में पाई जाने वाली भिन्नता “वैयक्तिक भिन्नता कहलाती है। वैयक्तिक भिन्नता के कारण व्यक्ति में शारीरिक एवं मानसिक विकास तथा व्यवहार में अंतर पाया जाता है।
एटकिन्सन के अनुसार, “किसी प्रजाति विशेष के सदस्यों के मध्य व्यवहार की संरचना में पाई जाने वाली असमानताओं को वैयक्तिक भिन्नता कहते हैं । ”
टायलर के अनुसार, “शारीरिक आकार एवं संरचना, बुद्धि, रुचि, मानसिक क्षमताएँ तथा व्यक्तित्व के लक्षणों में मापने योग्य विभिन्नताओं को वैयक्तिक विभिन्नता कहते हैं । ”
जेम्स ड्रेवर के अनुसार, “एक समूह के सदस्यों की मानसिक और शारीरिक विशेषताओं में औसत से अधिक विचलन को वैयक्तिक भिन्नता कहा जाता है। ”
स्किनर के अनुसार, “वैयक्तिक भिन्नताओं के अध्ययन में सम्पूर्ण व्यक्तित्व का ऐसा कोई भी पहलू सम्मिलित कर सकते हैं जिसका मापन किया जा सकता है।
वैयक्तिक भिन्नताओं के प्रकार
- शारीरिक भिन्नता (Physical Difference) – शारीरिक – भिन्नता के अन्तर्गत व्यक्तियों के रंग-रूप, लंबाई, भार, शारीरिक गठन, परिपक्वता जैसे लक्षणों को शामिल किया जाता है। इन विशेषताओं के आधार पर समाज के सदस्यों में विभिन्नता पाई जाती है। स्त्रियों एवं पुरुषों के मध्य पाई जाने वाली शारीरिक भिन्नता इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। व्यक्ति के स्वभाव एवं आचरण पर शारीरिक भिन्नता का अधिक प्रभाव पड़ता है।
- मानसिक भिन्नता (Mental Difference) – प्रत्येक समाज के लोगों में बौद्धिक असमानताएँ पाई जाती हैं। भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की मानसिक शक्तियों का विकास भी भिन्न-भिन्न प्रकार से होता है। समाज में प्रतिभाशाली बालकों के साथ मंद बुद्धि बालक भी देखे जा सकते हैं। इस प्रकार औसत से कम बौद्धिक क्षमता को मानसिक भिन्नता के रूप में देखा जाता है। तर्क, चिंतन एवं कल्पना के आधार पर भी भिन्नताएँ पायी जाती हैं। मानसिक भिन्नताएँ बौद्धिक उपलब्धियों को प्रभावित करती हैं।
- संवेगात्मक भिन्नता (Emotional Difference) – प्रत्येक भावात्मव्यक्ति का संवेगात्मक विकास भिन्न प्रकार से होता है । लोगों में प्रेम, क्रोध, भय जैसे संवेगों के विकास में अंतर पाया जाता है। प्रायः संवेगों में मात्रात्मक रूप से यह अंतर कम होता जाता है फिर भी विशेष परिस्थितियों में इनकी अभिव्यक्ति के द्वारा आसानी से पहचान की जा सकती है। विभिन्न प्रकार के परीक्षणों से संवेगों का मापन किया जा सकता है और उनमें भिन्नता का पता लगाया जा सकता है। वर्तमान में इसके मापन की अनेक विधियाँ विकसित की गई हैं जिससे इसका मापन और आसान हो गया है।
- रुचि में भिन्नता (Difference in Interest ) – किन्हीं भी दो व्यक्तियों की रुचियाँ एक समान नहीं होती हैं। ये रुचियाँ, खान-पान, शिक्षा, खेल, संगीत, मनोरंजन, व्यवसाय आदि किसी भी क्षेत्र से सम्बन्धित हो सकती हैं। इन रुचियों में आयु की वृद्धि के साथ-साथ परिवर्तन होता रहता है। डी. एन. श्रीवास्तव ने अपने अध्ययन में बताया कि छात्राओं की अपेक्षा छात्रों में रुचियों का विस्तार अधिक होता है।
- व्यक्तित्व सम्बन्धी भिन्नता (Difference in Personality)—सामान्यतः व्यक्तियों का व्यक्तित्व एक दूसरे से भिन्न होता है। उनके व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं में भिन्नता पायी जाती है। व्यक्तियों की व्यक्तित्व सम्बन्धी भिन्नताओं को बहिर्मुखी, अन्तर्मुखी एवं उभयमुखी के रूप में विभक्त किया गया है। टेलर ने अपने अध्ययन में व्यक्ति की योग्यता की अपेक्षा व्यक्तित्व सम्बन्धी भिन्नताओं को अधिक महत्त्व दिया है।
- क्रियात्मक भिन्नता (Difference in Achievement)— अलग-अलग व्यक्तियों में कार्य करने की क्षमता में भी अंतर पाया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति की मांसपेशियों का विकास भिन्न प्रकार से होता है जिसका प्रभाव व्यक्ति के शरीर एवं उसके व्यवहार पर पड़ता है। गत्यात्मक योग्यता के अनुसार कुछ व्यक्ति अधिक क्रियाशील होते हैं जबकि कुछ बहुत ही सुस्त प्रकार के होते हैं। क्रो एवं क्रो ने अपने अध्ययन में क्रियात्मक भिन्नता को अधिक महत्त्व दिया है।
- विचारों में भिन्नता (Difference in Opinions) – प्रत्येक व्यक्ति के विचारों में भिन्नता होती है। एक समूह में किन्हीं भी दो सदस्यों के विचारपूर्ण रूप से एक समान नहीं हो सकते हैं। विचारधारा को सामाजिक पर्यावरण, आयु- स्तर, शैक्षिक योग्यता जैसे कारक प्रभावित करते हैं। समाज में विभिन्न मूल्यों के प्रति उदारता व संकीर्णता के आधार पर आसानी से अंतर देखा जा सकता है।
- अधिगम में भिन्नता (Difference in Learning) – अनेक शारीरिक एवं मानसिक विशेषताओं के कारण बालकों में सीखने की गति एक दूसरे से भिन्न होती है। क्रो एवं क्रो के अनुसार, एक ही आयु के बालकों में सीखने की तत्परता का समान स्तर होना आवश्यक नहीं है। कुछ बालक जल्दी सीखते हैं और कुछ देर से ज्ञान ग्रहण कर पाते हैं। सीखने में व्यक्ति की अवस्थाओं का भी प्रभाव पड़ता है।
वैयक्तिक भिन्नता के कारण
- वंशानुक्रम (Heredity) – यह वैयक्तिक भिन्नता का आधारभूत कारण है। गाल्टन, रूसो एवं पियरसन इस मत के समर्थक हैं। व्यक्ति की शारीरिक एवं मानसिक विशेषताओं का हस्तान्तरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में होता रहता है। बालक में गुणों का हस्तांतरण केवल माता-पिता से ही न होकर उनके पूर्वजों से भी होता है। मनोवैज्ञानिक मन के अनुसार, “हम सबका जीवन एक ही प्रकार से प्रारम्भ होता है लेकिन वंशानुक्रम के कारण बड़े होते-होते सभी में इसका अंतर झलकने लगता है। ” उदाहरणार्थ- लम्बे माता-पिता के बच्चे लम्बे व कम लम्बाई वाले माता-पिता के बच्चे औसत या कम लम्बाई के होते हैं परन्तु यह सदैव सत्य भी नहीं होता है ।
- वातावरण (Environment) – भौतिक एवं सामाजिक वातावरण भी वैयक्तिक भिन्नता को प्रभावित करते हैं। ठण्डे प्रदेशों में रहने वाले लोग लम्बे-चौड़े, गोरे, बलवान और परिश्रमी होते हैं, वहीं गर्म देशों में रहने वाले लोग औसत कद-काठी के, निर्बल और आलसी प्रवृत्ति के होते हैं।
सामाजिक वातावरण में समाज परिवार एवं पाठशाला के वातावरण को शामिल किया जाता है। व्यक्ति के व्यवहार, रहन-सहन तथा वैचारिक विभिन्नता में सामाजिक वातावरण का प्रभाव असानी से देखा जा सकता है।
- आयु व बुद्धि (Age and Intelligence) – आयु व बुद्धि के आधार पर भी वैयक्तिक भिन्नता पायी जाती है। बालक की आयु बढ़ने के साथ-साथ उसका शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक रूप से विकास होता है। बुद्धि के अनुसार बालक को प्रतिभाशाली एवं मंद बुद्धि व मानसिक क्षमता से पिछड़े बालक के रूप में विभक्त किया जाता है।
- प्रजाति एवं देश (Species and Country) – प्रत्येक जाति, देश एवं समाज की अपनी अलग सभ्यता एवं संस्कृति होती है। उनके सामाजिक मूल्यों, नियमों, रहन-सहन एवं खान-पान की आदतों का उस समाज एवं संस्कृति के सभी सदस्यों पर प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति की शारीरिक भिन्नता से उसके देश की पहचान की जा सकती है।
- शैक्षिक तत्त्व (Educational Elements) – बालक के मानसिक व्यवहार व उपलब्धियों पर शिक्षा के स्तर व स्वरूप का सीधा प्रभाव पड़ता है। शिक्षा व्यक्ति को व्यवहारशील एवं विचारशील बनाकर अशिक्षित व्यक्ति से भिन्न बना देती है। बालक को जिस प्रकार की शिक्षा दी जाती है उसका व्यवहार भी वैसा ही देखा जा सकता है।
- आर्थिक दशा (Economic Condition) — आर्थिक विषमता भी वैयक्तिक भिन्नता को जन्म देती है। गरीबी के कारण व्यक्ति उचित-अनुचित में भेद नहीं कर पाता है और भूख उसे अनैतिक कार्यों की ओर प्रेरित करती है। अध्ययनों के अनुसार अमीरों की अपेक्षा गरीब व बेरोजगार व्यक्ति अपराध अधिक करते हैं। एक ओर जहाँ किसान वर्ग का • जीवन सीधा-सादा, सरल एवं सादगीपूर्ण होता है वहीं दूसरी ओर पूँजीपति वर्ग का जीवन संघर्षमय तथा आडम्बरयुक्त होता है ।
- लिंग-भेद (Gender Difference) – लिंग-भेद के कारण बालक एवं बालिकाओं की शारीरिक बनावट, संवेगात्मक विकास व कार्य क्षमता में वैयक्तिक भिन्नता देखी जा सकती है। स्त्रियाँ पुरुषों की अपेक्षा अधिक सुन्दर, गुणवान और स्मरण शक्ति से परिपूर्ण होती हैं जबकि पुरूष स्त्रियों की अपेक्षा अधिक बलवान, साहसी एवं परिश्रमी होते हैं।
वैयक्तिक भिन्नता का शैक्षिक महत्त्व
- शिक्षा की पाठ्यचर्या के निर्माण में वैयक्तिक भिन्नता के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए ही आज विभिन्न समूहों के बालकों के लिए अलग-अलग पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाने लगा है क्योंकि हम यह जान चुके हैं कि भिन्न-भिन्न प्रकार के बालकों हेतु एक प्रकार का पाठ्यचर्या अनुकूल ( उपयुक्त) नहीं होता है।
- शिक्षा के उद्देश्य निर्धारण में वर्तमान समय में बालकों को उचित शिक्षा प्रदान करने हेतु शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण करना अति आवश्यक हो गया है। चूँकि किसी भी स्तर की शिक्षा हेतु उद्देश्य उस स्तर के औसत बालकों को ध्यान में रखकर निर्धारित किए जाते हैं और ये उद्देश्य यथार्थ के धरातल पर निर्धारित किए जाते हैं जिसमें वैयक्तिक भिन्नता का अध्ययन महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान करता है।
- छात्रों के वर्गीकरण में चूँकि विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों की आयु में ही भिन्नता नहीं होती है वरन् उनमें शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक भिन्नताएँ भी होती हैं । वर्तमान युग में इसी बात पर बल देते हुए कक्षा के सभी छात्रों को तीन वर्गों (श्रेष्ठ, सामान्य और निम्न) में विभाजित किया जाता है तथा सभी वर्गों के लिए भिन्न-भिन्न शिक्षा की व्यवस्था की जाती है, लेकिन जहाँ यह सम्भव नहीं होता है वहाँ उन पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान दिया जाता है।
- शिक्षण विधियों के चयन में – वैयक्तिक भिन्नता के अनुसार शिक्षा देने के लिए शिक्षण विधियों को उपयुक्त ढंग से चुनने तथा क्रियान्वित करने की परम आवश्यकता होती है। आज के वर्तमान समय में उन शिक्षण विधि को ही अच्छा एवं उपयुक्त माना जाता है जो कि कक्षा विशेष के छात्रों के अनुकूल हों जिसमें ज्यादा से ज्यादा छात्रों की रुचि एवं सहभागिता हो तथा छात्र अपनी व्यक्तिगत भिन्नता के आधार पर स्वगति से अधिगम कर सकें।
- शिक्षण – साधनों के चयन में यह बात सर्वविदित है कि सभी छात्र सभी शिक्षण साधनों में समान रूप से रुचि नही लेते हैं इसीलिए यह अति आवश्यक हो गया है कि शिशु, बालक तथा किशोर स्तर पर अलग-अलग शिक्षण साधनों का प्रयोग किया जाए। विभिन्न दृश्य-श्रव्य साधनों- ओवरहेड प्रोजेक्टर, टेलीविजन और कम्प्यूटर का उपयोग, वर्तमान में इसी कारण से बढ़ता जा रहा है परन्तु सभी छात्र समान रूप से इन सभी में रुचि नहीं लेते हैं ।
- गृहकार्य की मात्रा ज्ञात करने में वैयक्तिक भिन्नता के कारण ही सभी छात्रों (बालकों) में समान कार्य या कार्य की समान मात्रा पूर्ण करने की क्षमता नहीं होती है। अतः प्राचीन मतानुसार सभी बालकों को एक-सा गृहकार्य देना उनके प्रति अन्याय करना है। आज आवश्यकता इस बात की है कि गृहकार्य देते समय हम बालकों की क्षमताओं और योग्यताओं का पूरी तरह से ध्यान रखें। साथ ही साथ आज वैयक्तिक भिन्नता की पहली माँग यह है कि शिशु स्तर पर गृहकार्य की मात्रा बहुत कम होनी चाहिए तथा बाल तथा किशोर स्तर पर कार्य की मात्रा अधिक होनी चाहिए जबकि इसके ऊपर के छात्रों को स्वाध्याय की ओर प्रेरित करना चाहिए।
- वैयक्तिक सहायता में वैयक्तिक भिन्नता सभी बालकों में इतनी ज्यादा होती है कि सभी दृष्टियों से ‘समरूप समूह’ का निर्माण करना अत्यन्त कठिन जाता है इसलिए वैयक्तिक सहायता आवश्यक होती है। यह वैयक्तिक सहायता कई रूपों में देनी पड़ती है।
- लिंग-भेद के अनुसार शिक्षा – यह बात भी सर्वविदित है कि बालक और बालिकाओं की रुचियों, क्षमताओं, आवश्यकताओं, योग्यताओं आदि में पर्याप्त विभिन्नता होती है तथा जैसे-जैसे बालक तथा बालिकाओं की आयु बढ़ती जाती है उनमें ये भिन्नताएँ भी बढ़ती जाती हैं और यह अन्तर स्पष्ट दिखाई देने लगता है।