शिक्षा का क्या अर्थ है? वर्णन कीजिए । What is the meaning of Education. Describe it.
एडम्स के अनुसार, “शिक्षा एक ऐसी सुनियोजित तथा चेतन प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्तित्व ज्ञान के द्वारा दूसरे व्यक्तित्व को उसके विकास हेतु प्रभावित करता है । ”
यहाँ पर शिक्षा, विशेष विद्यालय, विशेष शिक्षण, विशेष काल, विशेष पद्धति तथा विशेष पाठ्यक्रम तक निश्चित हो जाता है । विद्यालय में शिक्षक बालक को वही शिक्षा देता है जो समाज और बालक के उन्नयन के लिए आवश्यक है ।
मनुष्य के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा अति आवश्यक है। यह जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है (Education is a life long process ) । इसमें शिक्षा ग्रहण करने के लिए कोई नियमबद्धता नहीं होती और न ही ये पूर्वनियोजित एवं औपचारिक होती है। इसे कहीं भी किसी भी समय किसी के भी द्वारा ग्रहण किया जा सकता है। इस दृष्टि से शिक्षा ही जीवन है, जीवन ही शिक्षा है (Life is education, education is life) | शिक्षा मनुष्य के चहुँमुखी विकास के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। शिक्षा का व्यापक अर्थ यह है कि मनुष्य द्वारा अर्जित वह ज्ञान जो इसे अपने भौतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूलन में सहायता करे या उसमें समायोजित होने में मनुष्य की रक्षा करे ।
अरस्तु के अनुसार, “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण, शिक्षा है।”
स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, “मनुष्य में समाहित दैवीय पूर्णता की अभिव्यक्ति, शिक्षा है।”
इस प्रकार एजूकेशन अथवा शिक्षा का अर्थ है- ‘अन्तः शक्तियों का बाहर की ओर विकास करना’ । लैटिन भाषा के दो शब्द ‘एजूसीयर’ तथा ‘एजूकेयर’ भी शिक्षा के इसी अर्थ की ओर संकेत करते हैं। ‘एजूसीयर’ का अर्थ ‘विकसित करना’ अथवा ‘निकालना’ है तथा दूसरे ‘एजूकेयर’ का अर्थ है ‘आगे बढ़ाना, बाहर निकालना या विकसित करना’ ।
अतः शिक्षा का अर्थ आन्तरिक शक्तियों अथवा गुणों का विकास करना है।
सुकरात के अनुसार, “शिक्षा का तात्पर्य संसार के उन सर्वमान्य विचारों को प्रकट करने से है, जो प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क में निहित है।”
विवेकानन्द के अनुसार, “मानव की सम्पूर्णता का प्रकटीकरण ही शिक्षा है।”
टैगोर के अनुसार, “शिक्षा का अर्थ बालक को उस योग्य बनाना है कि वह शाश्वत् सत्य की खोज कर सके, उसे अपना बना सके और उसकी अभिव्यक्ति कर सके।”
- शिक्षा अन्तःशक्तियों का सर्वांगीण विकास है (Education is the Allround Development of Inner Powers) – शिक्षा बालक में अन्तर्निहित शक्तियों का विकास मात्र नहीं है बल्कि यह उनका सर्वांगीण व पूर्ण विकास है। आधुनिक युग में जब से शिक्षा में मनोविज्ञान को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ तब से ‘अन्तर्निहित शक्तियों’ (Inherent Powers) पर ध्यान दिया जाता है। बालक में अत्यधिक अब शिक्षक बालक के ऊपर बाह्य ज्ञान को लादने का प्रयास न कर उसमें अन्तर्निहित शक्तियों का सर्वागीण और प्रगतिशील विकास कर उसका जीवन सफल बनाने का प्रयास करता है।
- शिक्षा एक त्रिध्रुवीय प्रक्रिया है ( Education is a TriPolar Process) — ड्यूवी आदि शिक्षाशास्त्रियों का कहना है कि शिक्षा एक त्रिध्रुवी प्रक्रिया है। शिक्षा के तीन अंग है शिक्षक, बालक और पाठ्यचर्या । शिक्षक और बालक के साथ-साथ पाठ्यचर्या भी शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। न होकर उन् पाठ्यचर्या का अर्थ केवल पुस्तकीय ज्ञान से सब विचारों, भावों, मान्यताओं और अनुभवों से है, जिनसे बालक का सर्वांगीण विकास और समाज का हित होता है। पाठ्यचर्या ही वह महत्त्वपूर्ण बिन्दु है जो शिक्षक और बालक दोनों बिन्दुओं को मिलाता है इसलिए शिक्षा को त्रिमुखी प्रक्रिया कहा गया है।
- शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है (Education is Life-Long Process ) शिक्षा प्रक्रिया अनवरत् रूप से जीवन-पर्यन्त चलती रहती है। व्यक्ति सदैव कुछ न कुछ अनुभव प्राप्त करता रहता है और इन्ही अनुभवों से वह कुछ न कुछ सीखता रहता है ।
स्पष्ट है कि शिक्षा कोई ऐसी प्रक्रिया नहीं है जो एक निश्चित अवधि अथवा विद्यालय जीवन में ही समाप्त हो जाए। यह तो बिना समाप्त हुए चलती रहती है। इसलिए शिक्षा को एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया (Continuous Process) कहा जाता है।
- शिक्षा समायोजन की प्रक्रिया है (Education is Process of Adjustment) – व्यक्ति का संतुलित विकास तभी सम्भव है जब वह अपने वातावरण के साथ समायोजन स्थापित कर ले। अपने स्वयं के तथा अपने वातावरण के साथ जब तक व्यक्ति का समायोजन नहीं होगा, व्यक्ति की मानसिक स्थिति ठीक नहीं रहेगी, उसमें चिन्ता तथा तनाव रहेगा।
फलतः वह मानसिक उद्वेगों से पीड़ित रहेगा और किसी भी प्रकार के अनुभव प्राप्त नहीं कर पाएगा। शिक्षा के द्वारा बालक में पर्यावरण के साथ समायोजन करने की शक्ति विकसित की जाती है जिससे वह मानसिक संघर्षो से बचता हुआ अपना सन्तुलित विकास कर सके ।
- शिक्षा दर्शन – शिक्षा शास्त्र के अन्तर्गत् जीवन के प्रति जो विभिन्न दृष्टिकोण हैं, उनका और उनके आधार पर शिक्षा के स्वरूप, शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा की पाठ्यचर्या आदि का अध्ययन किया जाता है।
- शिक्षा मनोविज्ञान – इसके अन्तर्गत् बच्चों की प्रकृति, उनकी योग्यता, रुचियों और अभिरुचियों तथा स्मृति, विस्मृति, चिन्तन और कल्पना आदि शक्तियों का अध्ययन किया जाता है और शिक्षा की प्रक्रिया में उनके उपयोग की सीमा निश्चित की जाती है। शिक्षा मनोविज्ञान में सीखने के स्वरूप, सीखने की दशाओं, सीखने को प्रभावित करने वाले कारकों और सीखने के सिद्धान्तों तथा नियमों का भी अध्ययन किया जाता है।
- शिक्षा का इतिहास- इसके अन्तर्गत् हम शिक्षा के इतिहास का अध्ययन इसी दृष्टि से करते हैं जब तक हम आदिकाल से लेकर अब तक शिक्षा का जो स्वरूप रहा है, उसकी जो व्यवस्था रही है और उसके जो परिणाम रहे हैं, उन सबका अध्ययन नहीं करते तब तक हम अपने लिए उचित शिक्षा की व्यवस्था नहीं कर सकते।
- तुलनात्मक शिक्षा – शिक्षाशास्त्र के क्षेत्र में भी विभिन्न देशों. की शिक्षा प्रणालियों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है और उसके गुण-दोषों का विवेचन किया जाता है। इस जानकारी को प्राप्त करके हम अपने देश की शिक्षा व्यवस्था का मूल्यांकन कर सकते हैं। दूसरे देशों की शिक्षा व्यवस्था के गुणों व अच्छाईयों को हम अपनी शिक्षा-व्यवस्था में अपना सकते हैं और एक उत्तम शिक्षा-व्यवस्था का निर्माण करने में सफल हो सकते हैं ।
- व्यक्ति के मानसिक एवं बौद्धिक विकास के लिए ।
- शारीरिक विकास के लिए ।
- व्यक्ति के संवेगों में सकारात्मक सुधार के लिए ।
- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास में सहायक ।
- मनुष्य में सामाजिकता के विकास हेतु ।