श्यानता किसे कहते है | श्यानता की परिभाषा | श्यान बल क्या है
श्यानता किसे कहते है | श्यानता की परिभाषा | श्यान बल क्या है
श्यानता
श्यान बल (Viscous Force)
◆ किसी द्रव या गैस की दो क्रमागत परतों (Layers) के बीच उनकी आपेक्षिक गति का विरोध करने वाले घर्षण बल को श्यान बल कहते हैं।
श्यानता (Viscosity)
◆ तरल का वह गुण जिसके कारण तरल की विभिन्न परतों के मध्य आपेक्षिक गति का विरोध होता है, श्यानता कहलाता है।
◆ श्यानता केवल द्रवों तथा गैसों का गुण
◆ द्रवों में श्यानता, अणुओं के मध्य लगने वाले ससंजक बलों (Cohesive Forces) के कारण होती है।
◆ गैसों में श्यानता इसकी एक परत से दूसरी परत में अणुओं के स्थानांतरण के कारण होती है।
◆ गैसों में श्यानता द्रवों की तुलना में बहुत कम होती है। ठोसों में श्यानता नहीं होती है।
◆एक आदर्श तरल की श्यानता शून्य होती है।
◆ ताप बढ़ने पर द्रवों की श्यानता घट जाती है, परन्तु गैसों की बढ़ जाती है।
◆ किसी तरलता को श्यानता को श्यानता गुणांक (Coefficient of Viscosity) द्वारा मापा जाता है। इसका S। मात्रक डेकाप्वॉइज या प्वॉजली (PI) या पास्कल सेकंड (Pas) है। इसे प्राय: ” (ईटा) द्वारा सूचित किया जाता है।
श्यानता के कुछ उदाहरण
(i) जितनी तेजी से हम वायु में दौड़ सकते है, उतनी तेजी से जल में नहीं दौड़ सकते। इसका कारण है कि जल की श्यानता वायु से अधिक होती है जो हमारे दौड़ने का विरोध करती है।
(ii) यदि हम किसी द्रव को किसी बर्तन में घुमाकर छोड़ दें तो घूमता हुआ द्रव थोड़ी देर बाद स्थिर हो जाता है। इसका कारण भी श्यानता ही है।
(iii) यदि हम कम श्यान द्रव जैसे जल तथा अधिक श्यान द्रव जैसे शहद व ग्लिसरीन आदि को फर्श पर गिरा दें तो शहद व ग्लिसरीन अधिक श्यान होने के कारण जल्दी ठहर जाते हैं तथा जल अधिक दूर तक बहता जाता है।
सीमांत वेग (Terminal Velocity)
◆ जब कोई वस्तु किसी श्यान द्रव में गिरती है तो प्रारंभ में उसका वेग बढ़ता जाता है, किन्तु कुछ समय के पश्चात् व नियत वेग से गिरने लगती है। इस नियत वेग को ही वस्तु का सीमांत वेग कहते हैं। इस अवस्था में वस्तु का भार, श्यान बल और उत्प्लावन बल के योग के बराबर होते हैं। अर्थात् वस्तु पर कार्य करने वाले सभी बलों का योग शून्य होता है।
◆ सीमांत वेग वस्तु की त्रिज्या के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात् बड़ी वस्तु अधिक वेग से और छोटी वस्तु कम वेग से गिरती है।
धारा रेखीय प्रवाह (Stream Line Flow)
◆ द्रव का ऐसा प्रवाह जिसमें द्रव का प्रत्येक कण उसी बिन्दु से गुजरता है, जिससे पहले उससे पहले वाला कण गुजरा था, धारा रेखीय प्रवाह कहलाता है। इसमें किसी नियत बिन्दु पर प्रवाह की चाल व उसकी दिशा निश्चित बनी रहती है।
क्रांतिक वेग (Critical Velocity)
◆ धारा रेखीय प्रवाह के महत्तम वेग को क्रांतिक वेग कहते हैं। अर्थात् धारा रेखीय प्रवाह की वह उच्च सीमा जिसके बाद द्रव का प्रवाह धारा रेखीय न होकर विक्षुब्ध (Turbulent) हो जाये, क्रांतिक वेग कहलाता है। क्रांतिक वेग में द्रव की गति अनियमित व टेढ़ी-मेढ़ी (Zig-Zag) हो जाती है। इस प्रकार की गति से भँवर धाराएँ (Eddy-Current) उत्पन्न होने लगती है, जैसे- बरसात के दिनों में नदियों-नालों की गति आदि।
◆ यदि द्रव प्रवाह का वेग क्रांतिक वेग से कम होता है, तो उसका प्रवाह उसकी श्यानता (Viscosity) पर निर्भर करता है, यदि द्रव प्रवाह का वेग उसके क्रांतिक वेग से अधिक होता है, तो उसका प्रवाह मुख्यतः उसके घनत्व पर निर्भर करता है। जैसे- ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा बहुत गाढ़ा होने पर भी तेजी से बहता है, क्योंकि उसका घनत्व अपेक्षाकृत कम होता है और घनत्व ही उसके वेग को निर्धारित करता है।
बरनौली का प्रमेय (Vernoulli’s Theorem)
◆जब कोई आदर्श द्रव अथवा गैस एक स्थान से दूसरे स्थान तक धारा रेखीय प्रवाह में बहता है तो उसके मार्ग के प्रत्येक बिन्दु पर उसके एकांक आयतन की कुल ऊर्जा अर्थात् दाब ऊर्जा, गतिज ऊर्जा तथा स्थितिज ऊर्जा का योग नियत रहता है।
यदि द्रव के एकांक आयतन की दाब ऊर्जा P, द्रव का घनत्व p, तथा वेग u है और द्रव का प्रवाह क्षैतिज तल में होता है, तो बरनौली के प्रमेय के अनुसार-
P+1/2pu²=नियतांक
बरनौली के सूत्र से स्पष्ट है कि जिस स्थान पर द्रव का वेग कम होता है, वहाँ दाब अधिक होता है तथा जिस स्थान पर वेग अधिक होता है, वहाँ दाब कम होता है।
बरनौली प्रमेय के कुछ उदाहरण
(i) आँधी आने पर घरों के छप्पर व टीन का उड़ जाना। ऐसा इसिलए होता है कि जब हवा टीन के ऊपर बहुत अधिक वेग से बहती है तो टीन के ऊपर वायुदाब बहुत कम रह जाता है। जबकि टीन के नीचे का दाब पहले जैसा रहता है इस दाबांतर के कारण ही टीन व छप्पर आँधी में उड़ जाते हैं।
(ii) फुहारे के ऊपर गेंद का नाचना। ऐसा इसलिए होता है कि जब जल की धारा तेजी से निकलती है तो उसके आसपास वायुदाब घट जाता है, जबकि बाहर का वायुदाब वही बना रहता है। अतः जब भी गेंद बाहर निकलने की कोशिश करती है बाहर का दाब उसे पुनः अंदर की ओर कम दाब वाले क्षत्र की ओर ढकेल देती है, जिससे गेंद फुहारे के ऊपर नाचती रहती है।
(iii) प्लेटफार्म पर खड़े रहने पर तेजी से रेलगाड़ी आने पर हमें गाड़ी की ओर गिर जाने का खतरा। ऐसा इसलिए होता है कि जब रेलगाड़ी अधिक वेग से आती है तो हमारे व रेलगाड़ी के बीच दाब कम हो जाता है, परन्तु हमारे पीछे की वायु जो अधिक दाब पर है, वह हमें गाड़ी की ओर धक्का देती है।