समाजीकरण की प्रक्रिया
समाजीकरण की प्रक्रिया
समाजीकरण की प्रक्रिया
Socialisation Process
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने
से यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2012 में
1 प्रश्न, 2013 में 1 प्रश्न, 2014 में 1 प्रश्न, 2015 में
3 प्रश्न तथा वर्ष 2016 में 2 प्रश्न पूछे गए हैं।
4.1 समाजीकरण एवं इससे सम्बन्धित सिद्धान्त
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है बिना समाज के किसी भी व्यक्ति के सर्वांगीण
विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। समाजीकरण केवल कौशल क्षमता
प्राप्त करना, अनुकरण करना ही नहीं अपितु इसके माध्यम से व्यक्ति जीवन
से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के व्यवहार को भी सीखता है यथा-परोपकार
करना, आत्मनिर्भर होना, सभ्य एवं सुशील बनना इत्यादि। इसके माध्यम से
व्यक्ति अपने संस्कार, धर्म, संस्कृति, मानवीय मूल्यों, नैतिकता इत्यादि को भी
सीखता है। समाजीकरण के महत्त्वपूर्ण घटकों में परिवार, समाज एवं समुदाय
की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
रॉस के अनुसार, “समाजीकरण सहयोग करने वाले व्यक्तियों में ‘हम’
भावना का विकास करता है और उनमें एक साथ कार्य करने की इच्छा
तथा क्षमता का विकास करता है।”
किंबल यंग के अनुसार, “समाजीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा
व्यक्ति सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है एवं समाज के
विभिन्न समूहों का सदस्य बनता है तथा जिसके द्वारा समाज के मूल्यों
एवं मान्यताओं को स्वीकार करने की प्रेरणा मिलती है।”
4.1.1 समाजीकरण से सम्बन्धित सिद्धान्त
समाजीकरण के सिद्धान्त के सन्दर्भ में कुछ विचारकों ने अपने सिद्धान्त दिए
हैं, जो निम्न प्रकार हैं
1.स्वदर्पण सिद्धान्त
यह सिद्धान्त कूले द्वारा दिया गया, जिसके अनुसार समाजीकरण सामाजिक
अन्तक्रिया पर आधारित होता है। समाज तथा अन्य बाहरी लोगों के सम्पर्क
में आने से बालकों में स्वधारणा (स्वयं के बारे में सोचना) विकसित होती
है। कूले के समाजीकरण के प्राथमिक समूह में परिवार आस-पास का
वातावरण एवं खेल समूह इत्यादि मानव स्वभाव को विकसित करने की
प्रथम पाठशाला है।
2. मैं और मुझे का सिद्धान्त
इस सिद्धान्त के जनक मीड महोदय है। इनके मतानुसार हम समाज में अपनी
भूमिका निर्वाह करते हैं। बालकों में धीरे-धीरे यह अवधारणा विकसित होने
लगती है कि उसकी बातों तथा व्यवहारों का अन्य व्यक्तियों पर कैसा प्रभाव
पड़ता है इसके माध्यम से बालकों में ‘मैं’ की भावना विकसित होती है एवं
उनका समाजीकरण तीव्र गति से आरम्भ हो जाता है।
इस प्रकार से उसमें ‘मुझे’ की भावना का विकास होने लगता है। ‘मुझे’ के
कारण वह सामाजिक गतिविधि से और प्रभावित होने लगता है। ‘मैं’ और
‘मुझे’ का मिश्रित रूप ही ‘स्व’ है। ये दोनों एक-दूसरे के पूरक है, न
कि पृथक्।
3. सामूहिक प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त
इस सिद्धान्त के जन्मदाता महान् दार्शनिक दुर्खिम हैं। इनके कथनानुसार
प्रत्येक समाज में अपनी विचारधारा, मूल्य, भाव, विश्वास, आदर्श, संस्कार
तथा मान्यताएँ प्रगतिशील अवस्था में होती है, जिसे समाज के व्यक्तियों द्वारा
स्वीकृति मिली हुई होती है। बालक जिस समाज में जन्म लेता है वह उस
समाज के लोगों द्वारा किए गए आचरण एवं व्यवहार का अनुकरण करता
है। इस प्रकार समाजीकरण की प्रक्रिया अपनी गति से चलती रहती है।
4.1.2 समाजीकरण को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक
किसी बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण कारकों का योगदान
होता है जो इस प्रकार वर्णित हैं
1. पालन-पोषण (Fostering and Nourishment)
बालक के समाजीकरण पर पालन-पोषण का गहरा प्रभाव पड़ता है, जिस
प्रकार का वातावरण बालक को प्रारम्भिक जीवन में मिलता है तथा जिस
प्रकार से माता-पिता बालक का पालन-पोषण करते हैं उसी के अनुसार
बालक समाज विरोधी आचरण उसी समय करता है, जब वह स्वयं को
बालक में भावनाएँ तथा अनुभूतियाँ विकसित हो जाती हैं। दूसरे शब्दों में,
समाज के साथ व्यवस्थापित नहीं कर पाता।
2. सहानुभूति (Sympathy)
पालन-पोषण की भांति सहानुभूति का भी बालक के समाजीकरण में गहरा
प्रभाव पड़ता है। इसका कारण यह है कि सहानुभूति के द्वारा बालक में
अपनत्व की भावना विकसित होती है, जिसके परिणामस्वरूप वह एक-दूसरे
में भेदभाव करना सीख जाता है। वह उस व्यक्ति को अधिक प्यार करने
लगता है, जिसका व्यवहार उसके प्रति सहानुभूतिपूर्ण होता है।
3. सामाजिक शिक्षण (Social Teaching)
सामाजिक शिक्षण का भी बालक के समाजीकरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
ध्यान देने की बात यह है कि सामाजिक शिक्षण का आरम्भ परिवार से होता
है, जहाँ पर बालक माता-पिता, भाई-बहन तथा अन्य सदस्यों से खान-पान
तथा रहन-सहन आदि के बारे में शिक्षा ग्रहण करता रहता है।
4. पुरस्कार एवं दण्ड (Award and Punishment) )
बालक के समाजीकरण में पुरस्कार एवं दण्ड का भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव
पड़ता है, जब बालक समाज के आदर्शों तथा मान्यताओं के अनुसार
व्यवहार करता है, तो लोग उसकी प्रशंसा करते हैं। साथ ही वह समाज के
हित को दृष्टि में रखते हुए जब कोई विशिष्ट व्यवहार करता है, तो उसे
पुरस्कार भी मिलता है। इसके विपरीत जब बालक असामाजिक व्यवहार
करता है, तो दण्ड दिया जाता है, जिसके भय से वह ऐसा कार्य फिर
दोबारा नहीं करता।
5. वंशानुक्रम (Heredity)
बालक में वंशानुक्रम से प्राप्त कुछ आनुवंशिक गुण होते हैं; जैसे-मूलभाव,
संवेग, सहज क्रियाएँ व क्षमताएँ आदि।
इनके अतिरिक्त उनके अनुकरण एवं सहानुभूति जैसे गुणों में भी वंशानुक्रम
की प्रमुख भूमिका होती है। ये सभी तत्त्व बालक के समाजीकरण के लिए
उत्तरदायी होते हैं।
6. परिवार (Family)
बालक के समाजीकरण में परिवार का प्रमुख स्थान होता है। इसका कारण
यह है कि प्रत्येक बालक का जन्म किसी-न-किसी परिवार में ही होता है।
जैसे–जैसे बालक बड़ा होता जाता है वैसे-वैसे वह अपने माता-पिता,
माई-बहनों तथा परिवार के अन्य सदस्यों के सम्पर्क में आते हुए प्रेम,
सहानुभूति, सहनशीलता तथा सहयोग आदि अनेक सामाजिक गुणों को
सीखता रहता है। यही नहीं, वह अपने परिवार में रहते हुए प्रत्यक्ष अथवा
अप्रत्यक्ष रूप से अपने परिवार के आदर्शो, मूल्यों, रीति-रिवाजों, परम्पराओं
तथा मान्यताओं एवं विश्वासों को भी धीरे-धीरे सीख जाता है।
7. पड़ोस (Neighbourhood)
पड़ोस भी एक प्रकार का बड़ा परिवार होता है, जिस प्रकार, बालक परिवार
के विभिन्न सदस्यों के साथ अन्तःक्रिया के द्वारा अपनी संस्कृति एवं सामाजिक
गुणों का ज्ञान प्राप्त करता है, ठीक उसी प्रकार वह पड़ोस में रहने वाले
विभिन्न सदस्यों एवं बालकों के सम्पर्क में रहते हुए विभिन्न सामाजिक बातों
का ज्ञान प्राप्त करता रहता है।
इस दृष्टि से यदि पड़ोस अच्छा है, तो बालक के व्यक्तित्व विकास पर
अच्छा प्रभाव पड़ेगा और यदि पड़ोस खराब है, तो बालक के बिगड़ने की
सम्भावना है। यही कारण है कि अच्छे परिवारों के लोग अच्छे पड़ोस में ही
रहना पसन्द करते है।
8. स्कूल (School)
परिवार तथा पड़ोस के बाद स्कूल एक ऐसा स्थान है, जहाँ पर बालक का
समाजीकरण होता है। स्कूल में विभिन्न परिवारों के बालक शिक्षा प्राप्त करने
आते है। बालक इन विभिन्न परिवारों के बालक तथा शिक्षकों के बीच रहते
हुए सामाजिक प्रतिक्रिया करता है, जिससे उसका समाजीकरण तीव्रगति से होने
लगता है। स्कूल में रहते हुए बालक को जहाँ एक ओर विभिन्न विषयों की
प्रत्यक्ष शिक्षा द्वारा सामाजिक नियमों, रीति-रिवाजों, परम्पराओं, मान्यताओं,
विश्वासों तथा आदर्शों एवं मूल्यों का ज्ञान होता है वहीं दूसरी ओर उसमें स्कूल
की विभिन्न सामाजिक योजनाओं में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए अप्रत्यक्ष रूप
से विभिन्न सामाजिक गुणों का विकास होता रहता है।
9. बालक के साथी (Colleague)
प्रत्येक बालक अपने साथियो के साथ खेलता है। वह खेलते समय जाति-पाँति,
ऊँच-नीच तथा अन्य प्रकार के भेद-भावों से ऊपर उठकर दूसरे बालकों के
साथ अन्तःक्रिया द्वारा आनन्द लेना चाहता है। इस कार्य में उसके साथी
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
10. समुदाय (Community)
बालक के समाजीकरण में समुदाय अथवा समाज का गहरा प्रभाव होता है।
प्रत्येक समाज अथवा समुदाय अपने-अपने विभिन्न साधनों तथा विधियों के
द्वारा बालक का समाजीकरण करना अपना परम कर्त्तव्य समझता है। इन
साधनों के अन्तर्गत जातीय तथा राष्ट्रीय प्रथाएँ एवं परम्पराएँ, मनोरंजन एवं
राजनीतिक विचारधाराएँ, धार्मिक कट्टरता, संस्कृति, कला साहित्य, इतिहास,
जातीय पूर्वधारणाएँ इत्यादि आती है।
11. धर्म (Religion)
धर्म का बालक के समाजीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान है। हम देखते हैं कि
प्रत्येक धर्म के कुछ संस्कार, परम्पराएँ, आदर्श तथा मूल्य होते हैं। जैसे-जैसे
बालक अपने धर्म अथवा अन्य धर्मों के व्यक्तित्व एवं समूहों के सम्पर्क में
आता है, वैसे-वैसे वह उक्त सभी बातों को स्वाभाविक रूप से सीखता है।
4.1.3 समाजीकरण के प्रकार
समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन पर्यंत चलती रहती है, इस
समाजीकरण को मनोवैज्ञानिकों ने अध्ययन के दृष्टिकोण से विभिन्न भागों में
बाँटा है, जो इस प्रकार है
1. प्राथमिक समाजीकरण
यह बालकों में भविष्य में होने वाले समाजीकरण के लिए आधार सृजित करता
है। समाजीकरण की इस अवस्था में बालक अपने जीवन की शुरुआत करता
है। बालक समाज के माध्यम से ही व्यावहारिक ज्ञान सीखता है। शिक्षा,
संस्कृति, मूल्य तथा अभिवृत्ति (attitude) का विकास इसी चरण में होता है।
प्राथमिक समाजीकरण के मुख्य अभिकर्ता (agent) के रूप में परिवार एवं
मित्रों (friends) की भूमिका होती है।
2. द्वितीय/गौण समाजीकरण
इसके माध्यम से बालक सामुदायिक तरीके से सीखने के व्यवहार को अपनाता
है। इस प्रकार के समाजीकरण का माहौल विद्यालयों, खेल के मैदानों एवं
पड़ोसियों के संदर्भ में देखने को मिलता है, जो बालकों को व्यावहारिक रूप
से सभ्य बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
4.2 समाजीकरण की अवस्थाएँ
समाजीकरण एक निरन्तर चलने वाली सतत प्रक्रिया है। इसका क्रमिक विकास
होता है। अध्ययन के दृष्टिकोण से समाजीकरण को निम्न अवस्थाओं में विभाजित
किया गया है
1. शैशवकाल (Infancy)
• समाजीकरण की प्रक्रिया जन्म से ही आरम्भ हो जाती है।
• अनुकरण की प्रवृत्ति के आधार पर बच्चों में भाषा तथा अनेक प्रकार के
व्यवहार का विकास, जो सीखने की प्रक्रिया का अभिन्न अंग होता है।
• इस अवस्था में बच्चा माता-पिता पर निर्भर रहता हैं। प्रथम वर्ष तक बच्चों में
शर्मीलेपन (shyful) के भाव दिखते है तथा वह दूसरे का ध्यान अपनी तरफ
खींचने का प्रयास करते रहते है।
2. प्रारम्भिक बाल्यावस्था (Early Childhood)
• बच्चों में आक्रामकता की प्रवृत्ति अर्थात् नाराज होने की प्रवृत्ति। आपस में
झगड़ने की प्रवृत्ति।
• अभिभावक के निर्देशों को इनकार करने की प्रवृत्ति। सहानुभूति एवं सहयोग की
भावना का विकास तथा जिज्ञासा की प्रवृत्ति।
3. उत्तर बाल्यावस्था (Later Childhood)
• इस अवस्था में बालकों में अन्य लोगों के विचारों एवं सुझावों को स्वीकार
करने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।
• प्रतियोगिता की भावना का विकास। सहानुभूति की भावना का विकास।
• बालकों में पक्षपात एवं भेदभाव की प्रवृत्ति का विकास। बालकों में दायित्व एवं
जवाबदेही का विकास।
किशोरावस्था
• समाजीकरण की जटिल अवस्था। समकक्ष मित्रों एवं समूहों के साथ समायोजन
करना। सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन अर्थात् सामाजिक सूझ-बूझ का विकास,
आत्मविश्वास का मजबूत होना तथा विषम लिंग के प्रति आकर्षण का भाव इत्यादि।
• मित्रों के चयन में नवीन मानदण्ड अर्थात् बालक एवं बालिकाएँ दोनों समान विचार,
समान मूल्य तथा समान उद्देश्य इत्यादि से सम्बन्धित मित्रों का चयन करना।
• विचारक जोजेफ का मानना है कि “अधिकांश किशोर ऐसे लोगों को मित्र बनाना
चाहते हैं जिन पर विश्वास किया जा सके, जिनसे खुले मन से बात की जा सके।”
4.3 समाजीकरण की प्रक्रिया के मुख्य अभिकर्ता
समाजीकरण की प्रक्रिया के मुख्य अभिकर्ता (Agents of Socialisation) निम्न हैं
4.3.1 अध्यापक की भूमिका
• विद्यालय न केवल शिक्षा का एक औपचारिक साधन है, बल्कि यह बच्चे के
समाजीकरण की प्रक्रिया को तीव्र गति प्रदान करता है और विद्यालय के इस
कार्य में शिक्षक की भूमिका सर्वाधिक अहम होती है।
• परिवार के बाद बच्चों को विद्यालय में प्रवेश मिलता है। अध्यापक ही
शिक्षा के द्वारा बच्चे में वे सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्य पैदा करता
है, जो समाज व संस्कृति में मान्य होते हैं।
• स्कूल में खेल प्रक्रिया द्वारा बच्चे सहयोग, अनुशासन, सामूहिक कार्य
आदि सीखते हैं। इस प्रकार, विद्यालय बच्चे में आधारभूत सामाजिक
व्यवहार तथा व्यवहार के सिद्धान्तों की नींव डालता है।
• समाजीकरण की प्रक्रिया को तीव्र गति प्रदान करने के लिए शिक्षक
का सर्वप्रथम कार्य यह है कि वह बालक के माता-पिता से सम्पर्क
स्थापित करके उसकी रुचियों तथा मनोवृत्तियों के विषय में ज्ञान प्राप्त
करे एवं उन्हीं के अनुसार उसे विकसित होने के अवसर प्रदान करे।
• शिक्षक को चाहिए कि वह स्कूल में विभिन्न सामाजिक योजनाओं के
द्वारा बालकों को सामूहिक क्रियाओं में सक्रिय रूप से भाग लेने के
अवसर प्रदान करे।
• बालक के समाजीकरण में स्वस्थ मानवीय सम्बन्धों का गहरा प्रभाव
पड़ता है। अत: शिक्षक को चाहिए कि वह दूसरे बालकों, शिक्षकों
तथा स्कूल के प्रधानाचार्य के साथ स्वस्थ मानवीय सम्बन्ध
स्थापित करे।
• इन स्वस्थ मानवीय सम्बन्धों के स्थापित हो जाने से स्कूल का समस्त
वातावरण सामाजिक बन जाएगा।
• बच्चे को सामाजिक, सांस्कृतिक मान्यताओं, मूल्यों, मानकों आदि का
ज्ञान देना उनके समाजीकरण को तीव्र करने में सहायक सिद्ध होता है।
• जहाँ तक सामाजिक भूमिका की उपयोगिता एवं उनके निर्वाह का प्रत
है, तो अध्यापक स्वयं अपना उदाहरण प्रस्तुत कर उन्हें अनुकरण हे।
प्रेरित कर सकता है।
• विद्यार्थियों से घनिष्ठ व्यक्तिगत सम्बन्ध स्थापित कर उन्हें अपनी
अभिवृत्तियों की समीक्षा करने हेतु प्रोत्साहित कर तथा उनकी वर्तमान
अभिवृत्तियों का समर्थन कर उनके समाजीकरण में सहायता की जा
सकती है।
• समाजीकरण के संदर्भ में बच्चे अपने अभिभावकों एवं शिक्षकों का ही
अनुकरण करते हैं तथा बालकों के समाजीकरण हेतु शिक्षक को
चाहिए कि वह उनके साथ स्नेह एवं सहानुभूतिपूर्ण बर्ताव करे।
4.3.2 परिवार एवं अभिभावक की भूमिका
• समाजीकरण करने वाली संस्था के रूप में परिवार व माता-पिता का
असाधारण महत्त्व है। यह कहा जाता है कि माँ और पिता के संरक्षण
में रहते हुए बच्चा जो कुछ सीखता है, वह उसके जीवन की स्थायी
पूँजी होती है।
• बच्चों को अनुशासन एवं सही समय पर सही काम करने की सीख
उसके माता-पिता से मिलती है। आगे चलकर यह व्यक्तित्व विकास
का अभिन्न अंग बन जाता है।
• माता-पिता द्वारा बच्चों की अधिकतम आवश्यकताएं पूरी की जाती हैं।
बच्चे जब अच्छा काम करते हैं तो उनकी प्रशंसा तथा जब गलत कार्य
करते है तो निन्दा की जाती है।
• परिवार में ही बच्चे को सर्वप्रथम यह ज्ञान होता है कि उसे कौन-कौन से
काम करने चाहिए और किन-किन कार्यों से बचना चाहिए? इससे बच्चा
धीरे-धीरे यह सीख जाता है कि समाज में क्या अच्छा है और क्या बुरा
और समाज उससे क्या चाहता है? धीरे-धीरे वह उन भावनाओं, मान्यताओं,
परम्पराओं और नियमों को भी जान लेता है, जो समाज में प्रचलित होते हैं
तथा समाज को मान्य होते हैं।
• माँ अपने बच्चे को प्यार करती है, परिवार के अन्य लोग भी उसे प्यार
करते हैं। वे उसके साथ हँसते-बोलते हैं। बच्चा उनकी ओर देखता है, उनके
होंठों को हिलाकर बातें करने की प्रक्रिया को बार-बार देखता और फिर
उसी की नकल उतारने का प्रयास करता है। इसी के परिणामस्वरूप
समाजीकरण के एक महत्त्वपूर्ण पक्ष, भाषा का विकास उसमें होता है।
• परिवार एवं समाज में अनुकूलित होने की प्रक्रिया को समायोजन कहते हैं,
जो समाजीकरण की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। समायोजन को ही कुछ
समाजशास्त्री समाजीकरण कहते हैं।
• परिवार में रहकर बच्चा माता-पिता से सामाजिक उत्तरदायित्व का अर्थ,
क्षमा का महत्त्व और सहयोग की आवश्यकता सीखता है तथा अपनी मौलिक
धारणाओं, आदर्श एवं शैली की रचना करता है। यदि परिवार में परस्पर
सहयोग की भावना हो, तो बालक में भी सहयोग की भावना का विकास
होता है। बच्चे की यह भावना उसके बाह्य समाज से व्यवहार में भी
झलकती है।
• माता-पिता की सामाजिक प्रतिष्ठा एवं परिवार के आर्थिक स्तर का भी बच्चे
के समाजीकरण पर प्रभाव पड़ता है। सम्पन्न परिवारों के बच्चों में सामान्यतः
स्वयं को श्रेष्ठ मानने की भावना होती है। इसके विपरीत निर्धन परिवारों के
बच्चों में सामान्यतः निर्धनता के कारण हीन भावना पनपती है, जिससे उसे
सामाजिक समायोजन में भी कठिनाई होती है।
• अच्छे एवं सभ्य परिवारों के बच्चे भी सामान्यतः सभ्य होते हैं, जबकि
विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से ग्रसित परिवारों के बच्चे सामान्यतः
झगड़ालू अथवा अपने परिवार के सदस्यों की प्रकृति के अनुरूप होते हैं।
4.3.3 मित्र समूहों की भूमिका
• समाजीकरण की प्रक्रिया में मित्र समूह की भूमिका (Role of Friends)
महत्त्वपूर्ण होती है। बालकों में मित्र बनाने की प्रवृत्ति का विकास बाल्यावस्था
से प्रारम्भ हो जाता है।
• धीरे-धीरे बालकों का सम्पर्क हम उम्र के साथियो से प्रायः खेल के मैदान,
अपने घर के आस-पास, स्कूल इत्यादि स्थानों पर होता है।
• प्रत्येक बालक की इच्छा होती है कि वह अपने हम उम्र बच्चों के साथ खेले।
• हम उम्र साथियो के साथ प्राय: बालकों में जातिगत भेदभाव, धर्म से
सम्बन्धित भेदभाव, अछूत की भावना इत्यादि के लिए कोई स्थान नहीं होता,
बल्कि वे इन भेदभावों से दूर होकर एक साथ रहते हैं, एक साथ खेलते
हैं इत्यादि इससे बालकों के समाजीकरण में विकास होता है।
• बालकों के मित्र समूह में भिन्न-भिन्न प्रकार के बच्चे होते हैं। उन
बालकों के स्वभाव, आचार-विचार, रहन-सहन का स्तर, धर्म, संस्कृति,
सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि इत्यादि में अन्तर पाया जाता है। ये
विशेषताएँ उन्हें वैश्विक समाजीकरण की ओर ले जाती हैं।
• विविधतापूर्ण वातावरण से उनके ज्ञान के स्तर में वृद्धि होती है तथा
विविधतापूर्ण परिवेश के माध्यम से उनमें सहयोग की भावना, एक-दूसरे
के भावों को समझने की भावना, एक-दूसरे की प्रशंसा करने की भावना,
समानता की भावना इत्यादि जैसे सामाजिक गुणों का विकास होता है।
• मित्र समूह के माध्यम से बच्चों का मानसिक विकास बेहतर तरीके से
होता है। सूचनाओं का आदान-प्रदान करना, एक-दूसरे के रीति-रिवाज
एवं संस्कृति को समझना।
4.3.4 समाजीकरण में खेल की भूमिका
• बालक के शारीरिक एवं सामाजिक विकास में खेल की भूमिका
महत्त्वपूर्ण होती है।
• खेल को बालक की रचनात्मक, जन्मजात, स्वतन्त्र, आत्मप्रेरित,
स्फूर्तिदायक, स्वलक्षित तथा आनन्ददायक प्रवृत्ति कहा जाता है।
खेल-क्रियाओं द्वारा बालक को स्वयं को प्रस्तुत करने का अवसर मिलता
है, जिससे उसके समाजीकरण में सहायता मिलती है।
• अधिकांश खेलों में मुख्यत: अन्य साथियों की आवश्यकता होती है,
इसलिए उनका स्वभाव मुख्यतः सामाजिक होता है। इसलिए खेल
क्रियाओं द्वारा बच्चे में सामाजिक दृष्टिकोण का विकास होता है। अन्य
बच्चों के साथ खेलने से बच्चे अपरिचित लोगों से सामाजिक सम्बन्ध
स्थापित करना तथा उन सम्बन्धों से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान
करना सीखते हैं। समूह द्वारा अपनाए जाने या उसमें लोकप्रिय होने पर
बच्चे में सुरक्षा की भावना आती है, जो समाजीकरण के लिए बहुत
आवश्यक है।
• सामूहिक खेलों से आदान-प्रदान की भावना का विकास होता है, जब
बच्चे एक-दूसरे के साथ मिल-जुल कर खेलते हैं, तो उनमें एकता व
सहयोग की भावना पनपती है। यही मिल-जुल कर खेलने की भावना
आगे चलकर मिल-जुल कर रहने की भावना में बदल जाती है।
• खेलों के जरिए बच्चों में समूह के नेतृत्व के गुणों का भी विकास होता
है। लगभग खेलों में कुछ विशिष्ट नियमों एवं अनुशासन का पालन करना
होता है। यह बालकों को अनुशासित होने में सहायता करता है।
• खेल में हार-जीत का अनुभव बच्चों में सहनशक्ति का विकास करता है,
जो समाजीकरण में अत्यन्त आवश्यक है।
अभ्यास प्रश्न
1. ‘समाजीकरण’ का अर्थ है
(1) सामाजिक मानदण्ड का कठोर रूप से पालन
करना
(2) समाज में समायोजित होना
(3) सामाजिक मानदण्डों के विरुद्ध विद्रोह करना
(4) सामाजिक विविधता को समझना
2. “समाजीकरण सहयोग करने वाले व्यक्तियों
में ‘हम’ की भावना का विकास करता है,
और उनमें एक साथ कार्य करने की इच्छा
तथा क्षमता का विकास करता है।” निम्न
विचारकों में यह कथन किसका है?
(1) किबल यंग
(2) रॉस
(3) अरस्तू
(2) वाइगोत्स्की
3. समाजीकरण के सन्दर्भ में निम्नलिखित में
से कौन-सा कथन असत्य है?
(1) संस्कृति का हस्तान्तरण भी समाजीकरण की
प्रक्रिया द्वारा ही होता है
(2) समाजीकरण के कुछ महत्त्वपूर्ण अभिकर्ता,
माता-पिता, समवयस्क समूह, विद्यालय,
धार्मिक संस्थाएँ और जनसंचार माध्यम
जैसे–दूरदर्शन इत्यादि हैं
(3) पालने के तरीकों का प्रभाव बच्चे के
समाजीकरण पर नहीं पड़ता है
(4) समाजीकरण का कार्य समाज में रहकर ही
सम्भव है, समाज से अलग रहकर नहीं
4. किसी बालक के समाजीकरण में धर्म का
महत्त्व है
A. आदर्शों में
B. अनुकरण में
C. संस्कार में
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) केवल C
(4) ये सभी
5. समाजीकरण की प्रक्रिया में उन ………..
को प्राप्त किया जाता है, जिन्हें समाज में
महत्त्व दिया जाता है।
(1) मानकों
(2) मूल्यों
(3) विश्वासों
(4) ये सभी
6. समाजीकरण की प्रक्रिया में अनुकरण को
उपयोगी’ तथा विकासात्मक बनाने के लिए
आवश्यक तत्त्व है
(1) परिवार एवं पड़ोस
(2) गाँव एवं शहर
(3) देश एवं राजनीति
(4) परिवहन एवं संचार साधन
7. आप अपनी कक्षा के बालकों में
समाजीकरण की प्रक्रिया को तेज करना
चाहते हैं। इसके लिए आप निम्नलिखित में
से कौन-सा कदम उठाएँगे?
A. बालकों को स्कूल की परम्पराओं से
परिचित कराएँगे।
B. बालकों में सामाजिक आदर्श स्थापित
कराएँगे।
C. बालकों को समाज में प्रचलित मान्यताओं
के विषय में जानकारी देगे।
(1) केवल A
(2) A और B
(3) Bऔर
(4) ये सभी
8. निम्न में कौन-सा कारक बच्चों के
समाजीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है?
(1) पालन-पोषण
(2) सहानुभूति
(3) पड़ोस
(4) ये सभी
9. बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया कब
प्रारम्भ होती है?
(1) जन्म से 3 वर्ष के बाद
(2) जन्म से
(3) किशोरावस्था में
(4) वयस्क होने के बाद
10. समाजीकरण की किस अवस्था में बच्चों में
जिज्ञासा की प्रवृत्ति उच्च पाई जाती है?
(1) शैशवकाल
(2) किशोरावस्था
(3) प्रारम्भिक बाल्यावस्था
(4) उत्तर-बाल्यावस्था
11. समाजीकरण की किस अवस्था में बालको
में समकक्ष मित्रों एवं समूहों के साथ
समायोजन करने की प्रवृत्ति का विकास
होता है?
(1) प्रारम्भिक बाल्यावस्था
(2) किशोरावस्था
(3) उत्तर-बाल्यावस्था
(4) शैशवावस्था
12. सबसे गहन और जटिल समाजीकरण
होता है
(1) किशोरावस्था के दौरान
(2) पूर्व बाल्यावस्था के दौरान
(3) प्रौढावस्था के दौरान
(4) व्यक्ति के पूरे जीवन में
13. शिक्षकों को यह सलाह दी जाती है कि वे
अपने शिक्षार्थियों को सामूहिक गतिविधियों
में शामिल करें, क्योकि सीखने को सुगम
बनाने के अतिरिक्त, ये ………….. में भी
सहायता करती है।
(1) दुश्चिन्ता
(2) समाजीकरण
(3) मूल्य द्वन्द्र
(4) आक्रामकता
14. समाजीकरण में बच्चों के…………. को
निर्देशित करना और अनैच्छिक एवं
………… प्रवृत्तियों को अनुशासित करना,
आता है।
(1) व्यवहार, गलत व्यावहारिक
(2) व्यवहार, सही व्यावहारिक
(3) बुद्धि, सही शैदिक
(4) मन, सही मानसिक
15. बच्चों के समाजीकरण में शिक्षक की
भूमिका होती है
(1) उनका बौद्धिक विकास करना
(2) उन्हें साम्प्रदायिक शिक्षा प्रदान करना
(3) उन्हें गृह-कार्य देना
(4) उनके आर्थिक प्रयोग में सहयोग करना
16. अपनी कक्षा के बच्चों के समाजीकरण के
प्रक्रिया को तेज करने के लिए शिक्षक
अपना व्यवहार ………….. रखना चाहिए।
(1) सहानुभूतिपूर्ण किन्तु कठोर
(2) स्नेह और सहानुभूतिपूर्ण
(3) सामान्य
(4) कठोर
17. निम्न में से क्या बच्चों के समाजीकरण में
प्रमुख भूमिका निभाता है?
(1) खेल कूद
(2) अच्छे कपड़े
(3) बच्चे की सुन्दरता
(4) बच्चे की अच्छी पाठ्य-पुस्तक
18. निम्नलिखित में से किस विचारक ने ‘मैं’
और मुझे का सिद्धान्त दिया है?
(1) दुखिम
(2) मीड
(3) लैमार्क
(4) कूले
19. “प्रत्येक समाज में अपनी विचारधारा, मुख्य
भाव, विश्वास, आदर्श तथा संस्कार जीवित
अवस्था में होते हैं।” सामूहिक प्रतिनिधित्व
का सिद्धान्त के तहत यह किसका मत है।
(1) किंबल यंग
(2) दुर्खिम
(3) डार्विन
(4) रॉस
20. कृतिका अक्सर घर में ज्यादा बात नहीं
करती, लेकिन विद्यालय में वह काफी बात
करती है। यह दर्शाता है कि
(1) विद्यालय हर समय बच्चों को खूब बात कर
का अवसर देता है।
(2) शिक्षकों की यह माँग होती है कि बच्चे
विद्यालय में खूब बात करें।
(3) कृतिका को अपना घर बिल्कुल पसन्द नहीं।
(4) उसके विचारों को विद्यालय में मान्यता
मिलती है।
21. सबसे अधिक गहन और जटिल
समाजीकरण होता है
(1) किशोरावस्था के दौरान
(2) पूर्व बाल्यावस्था दौरान
(3) प्रौढावस्था के दौरान
(4) व्यक्ति के पूरे जीवन में
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
22. शिक्षा के सन्दर्भ में, समाजीकरण से तात्पर्य है
[CTET Jan 2012]
(1) सामाजिक मानदण्डों का सदैव अनुपालन करना
(2) अपने सामाजिक मानदण्ड बनाना
(3) समाज में बड़ों का सम्मान करना
(4) सामाजिक वातावरण में अनुकूलन और
समायोजन
23. समाजीकरण है [CTET July 2013]
(1) सामाजिक मानदण्डों में परिवर्तन
(2) शिक्षक एवं पढ़ाए गए के बीच सम्बन्ध
(3) समाज के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया
(4) समाज के मानदण्डों के साथ अनुकूलन
24. निम्न में से कौन-सी समाजीकरण की
निष्क्रिय एजेन्सी है? [CTET Sept 2014]
(1) स्वास्थ्य क्लब
(2) परिवार
(3) ईको क्लब
(4) सार्वजनिक पुस्तकालय
25. निम्नलिखित में से कौन-सा बच्चों के
समाजीकरण के प्रगतिशील मॉडल के सन्दर्भ
में सही नहीं है? [CTET Feb 2018]
(1) समूह कार्य में सक्रिय सहभागिता तथा
सामाजिक कौशलों को सीखना
(2) बच्चे विद्यालय में बताई गई बातों को
स्वीकार करते है चाहे उनकी सामाजिक
पृष्ठभूमि कुछ भी हो
(3) कक्षा में प्रजातन्त्र के लिए स्थान होना चाहिए
(4) समाजीकरण सामाजिक नियमों का
अधिग्रहण है
26. निम्नलिखित में से कौन-सा सामाजीकरण
का एक प्रमुख कारक है? (CTET Sept 2015)
(1) कम्प्यूटर
(2) आनुवंशिकता
(3) राजनीतिक दल
(4) परिवार
27. “जन-संचार माध्यम समाजीकरण का एक
महत्त्वपूर्ण माध्यम बनता जा रहा है।”
नीचे दिए गए कथनों में से कौन-सा
सबसे उपयुक्त कथन है? (CTET Sept 2015 )
(1) समाजीकरण केवल माता-पिता और परिवार
के द्वारा किया जाता है
(2) जन-संचार माध्यमों की पहुँच बद रही।
और जन-संचार माध्यम अभिवृतियाँ, मूल्यों
और विश्वासों को प्रभावित करता
(3) बाचे संचार माध्यमों के साथ माया का से
अन्तक्रिया नहीं कर सको।
(4) संचार माध्यम पदार्थ के विज्ञापन और विक्रय
के लिए एक अजमाध्यम है।
28, बच्चे के समाजीकरण में परिवार ……….
भूमिका निभाता है। (CTETFeb 2016)
(1) कम महत्वपूर्ण
(2) रोमांचकारी
(5) मुख्य
(4) गौण
29. निम्नलिखित में कौन-से समाजीकरण के
गौण वाहक हो सकते है। (CTET Sept 2016)
(1) विद्यालय और पास-पड़ोस
(2) विद्यालय और निकटतम परिवार के सदस्य
(3) परिवार और रिश्तेदार
(4) परिवार और पास-पड़ोस
उत्तरमाला
1. (2) 2 (2) 3. (3) 4. (4) 5. (4) 6. (1) 7. (4) 8. (4) 9. (2) 10 (3)
11. (2) 12 (1) 13 (2) 14 (1) 15 (1) 16. (2) 17 (1) 18. (2) 19. (2)
20. (4) 21. (1) 22 (4) 23. (4) 24. (4) 25. (3) 26. (4) 27. (2)
28. (2) 29 (2)