1st Year

सीमान्तीकरण की अवधारणा से आप क्या समझते हैं? सीमान्तीकरण के विभिन्न स्तरों की व्याख्या कीजिए। What do you understand by the concept of marginalisation? Describe different stages of marginalisation

प्रश्न – सीमान्तीकरण की अवधारणा से आप क्या समझते हैं? सीमान्तीकरण के विभिन्न स्तरों की व्याख्या कीजिए। What do you understand by the concept of marginalisation? Describe different stages of marginalisation.
या
सीमान्तीकरण के विभिन्न स्तरों की व्याख्या कीजिए । सीमान्तीकरण के सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव की चर्चा कीजिए। Describe different levels of Marginalisation. Discuss social and economic impact of marginalisation.
या
सीमान्तीकरण की विचारधारा । Concept of marginalisation.  
उत्तर- सीमान्तीकरण की अवधारणा
 भारत अत्यन्त विविधतापूर्ण देश है। अनेक विभिन्नताओं के कारण भारत में भाषा, धर्म, क्षेत्र, संस्कृति आदि आधार पर विभाजन पाया जाता है जिसके आधार पर सीमान्तीकरण का जन्म हुआ है। समाज में इसी आधार पर कुछ जातियों का सीमान्तीकरण हो गया। समाज में जातियों का विभाजन जन्म के आधार पर पाया जाता है। हमारे समाज में कुछ जातियों को उच्च स्थान दिया जाता है तथा कुछ को निम्न समझा जाता है। ऐसी जातियों हेतु समाज में उनके लिए कुछ नियमों को लगाकर उनका सीमान्तीकरण कर दिया जाता है। समाज के ये वर्ग विभिन्न सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं। इन्हें ‘सीमान्त वर्ग’ की संज्ञा दी जाती है। यद्यपि आज समाज में इन वर्गों के उत्थान हेतु आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं परन्तु फिर भी इनकी स्थिति में आवश्यक सुधार नहीं हो पाया है। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय संविधान में भी प्रजातान्त्रिक मूल्यों के आधार पर कार्यक्रम दिए गए है जिनके माध्यम से इनके • विकास एवं शिक्षा का प्रयास किया गया है। सीमान्तीकरण से तात्पर्य प्रायः समाज विशेष का उनकी जाति, भाषा, धर्म, लिंग, क्षेत्र आदि आधार पर कुछ प्रतिबन्ध स्थापित कर दिए जाते हैं। इस सीमान्तीकरण द्वारा समाज में कुछ नियमों द्वारा स्वतंत्र एवं पृथक अस्तित्व पाया जाता है।

सीमान्तीकरण के स्तर ( Stages of Marginalisation)

  1. व्यक्ति एवं जाति के स्तर पर व्यक्ति एवं जाति स्तर पर प्रायः सीमान्तीकरण पाया जाता है। समाज में विभिन्न जाति वर्ग पाए जाते हैं जिनमें रहने वाले व्यक्तियों एवं उनकी जाति का सीमान्तीकरण कर दिया जाता है। ये समाज के सीमान्त वर्ग होते है जो समाज द्वारा सदैव उपेक्षित रहते है। जाति स्तर पर इनका तीन वर्गों में विभाजन किया गया है –
    1. अनुसूचित जाति,
    2. पिछड़ा वर्ग तथा
    3. अनुसूचित जनजाति
  2. क्षेत्र स्तर पर हमारा देश बहुत विशाल देश है जिस प्रकार हमारे देश में विभिन्न राज्यों का विभाजन विविधता के आधार पर किया गया है। उसी प्रकार विभिन्न भागों का क्षेत्रीय आधार पर सीमान्तीकरण कर दिया गया। प्रायः विभिन्न राज्य एवं समाज पृथक अस्तित्व की माँग करते है जिसके आधार पर भी कभी-कभी सीमान्तीकरण M जाता है। ये सभी भाग प्रायः एक-दूसरे से भिन्न होते है तथा उनमें कुछ असमानताएं भी विद्यमान होती है। इसके . अतिरिक्त समाज में कुछ क्षेत्र धार्मिक बहुलता वाले होते है । प्रायः कुछ अन्य धार्मिक समाज द्वारा उनका सीमान्तीकरण कर दिया जाता है। अतः क्षेत्रीय आधार पर इन समूहों एवं वर्गों का सीमान्तीकरण उनकी भिन्न संस्कृति, भौगोलिक दशाएँ इत्यादि के आधार पर हो जाता है।
  3. भाषा के स्तर पर हमारा देश एक बहुभाषी राष्ट्र है यहाँ विभिन्न भाषाएँ एवं बोलियाँ प्रचलित है। प्रत्येक राज्य में अलग भाषा, अलग बोलियाँ प्रचलित है जिनके आधार पर उनका सीमान्तीकरण हो जाता है क्योंकि प्रत्येक राज्य एवं समाज अपनी भाषा को महत्त्व देता है तथा उसके संरक्षण एवं संवर्द्धन का कार्य करता है। इस प्रकार प्रत्येक राज्य या समाज की एक विशिष्ट भाषा निर्धारित की गई है तथा उसी के आधार पर उनका सीमान्तीकरण कर दिया गया है। मुख्यतः हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी है परन्तु फिर भी कुछ राज्यों की प्रमुख भाषा जैसे- गुजराती, मराठी, कन्नड़, तेलगू, बांग्ला आदि भाषा के स्तर पर इनके राज्यों का सीमान्तीकरण हुआ है। इसी प्रकार छोटे स्तर पर भी विभिन्न समाजों में क्षेत्रीय भाषाओं के स्तर पर सीमान्तीकरण दृष्टिगत होता है।
  4. लैंगिक स्तर पर हमारे देश में लैंगिक आधार पर भी सीमान्तीकरण पाया जाता है। हमारा समाज लैंगिक स्तर पर स्त्री एवं पुरुष में विभाजित है। दोनों को समान अधिकार प्राप्त है परन्तु फिर भी इनके कार्यों एवं योग्यताओं का सीमान्तीकरण हो गया हैं। आज समाज के प्रत्येक क्षेत्र में स्त्री एवं पुरुष बराबर की भागीदारी निभा रहे हैं, किन्तु स्त्रियों के कुछ कार्यों को समाज में स्वीकृति नहीं दी गई है। आज भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ सिर्फ पुरुष कार्य कर सकते हैं। स्त्रियों की क्रियाओं को कुछ क्षेत्रों तक सीमित करके उनके कार्यों का सीमान्तीकरण कर दिया गया ।
  5. वर्ग के आधार पर हमारे भारतीय समाज में प्रायः विभिन्न प्रकार के वर्ग पाए जाते हैं। जैसे- मजदूर वर्ग, कृषक वर्ग, औद्योगिक वर्ग, पूँजीपति वर्ग, कर्मचारी वर्ग आदि। इन सभी वर्गों का समाज में क्रमशः इनके कार्य एवं स्थिति के आधार पर सीमान्तीकरण हो जाता है। इनमें पूँजीपति, कर्मचारी एवं औद्योगिक वर्ग को उच्च श्रेणी तथा कृषक व मजदूर वर्ग को निम्न श्रेणी में विभाजित किया गया है। इन सभी वर्गों के कुछ अधिकार एवं कर्तव्यों का निर्धारण एवं इनकी योग्यताओं के आधार पर किया जाता है ।
सीमान्तीकरण का सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव
  1. आर्थिक असमानता आर्थिक असमानता ने समाज को विभिन्न वर्गों में बाँट रखा है। आर्थिक असमानता ने उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग एवं निम्न वर्ग को जन्म दिया। आर्थिक रूप से सम्पन्न समाज के व्यक्ति ने समाज में अपना एक स्थान बनाया तथा सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों का सीमान्तीकरण हुआ।
  2. सामाजिक असमानता आर्थिक असमानता ने ही सामाजिक असमानता को जन्म दिया। समाज में विविध वर्गों का अपनी स्थिति एवं स्तर के अनुसार एक संगठन बन जाता है तथा वे अपनी क्रियाओं हेतु उसी पर निर्भर रहते हैं। इस प्रकार आर्थिक असमानता के साथ-साथ सामाजिक असमानता ने समाज के निम्न वर्गों का सीमान्तीकरण किया ।
  3. शिक्षा का अवसर – संविधान द्वारा शिक्षा की समानता का प्रावधान किया गया है परन्तु उसके अवसर एवं लाभ समाज . का सीमान्त वर्ग नहीं प्राप्त कर पाता है। इसके पीछे सामाजिक एवं आर्थिक पक्ष की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े व्यक्ति अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते हैं । अतः शिक्षा के अंवसर उपलब्ध होते हुए भी वे उसका लाभ नहीं ले पाते हैं।
  4. भूमण्डलीकरण एवं उदारीकरण – भूमण्डलीकरण एवं उदारीकरण के द्वारा देश ने अपनी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अपने आयात एवं निर्यात को बढ़ावा दिया । भूमण्डलीकरण एवं उदारीकरण का प्रभाव अधिकतर सामाजिक एवं आर्थिक सम्पन्न वर्गों पर ही पड़ा। आर्थिक एवं सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग भूमण्डलीकरण एवं उदारीकरण की नीतियों से परे सीमान्तीकरण की स्थिति में ही बना रहा।
  5. असंगठित श्रमिक व्यवस्था सामाजिक रूप से पिछड़े होने के कारण ये वर्ग विशेष की कोई भी संगठन नहीं था। इसलिए ये अपने विचारों एवं इच्छाओं की अभिव्यक्ति करने में असमर्थ रहे। समाज ने उन्हें उसी रूप में स्वीकार कर नए सामाजिक व्यवस्था से विभक्त रखा। चूंकि सामाजिक पिछड़ेपन की स्थिति में उनका सामाजिक विकास न होने पर उनका मुख्य पेशा श्रम करना ही रहा परन्तु श्रमिक संगठन के अभाव में उन्हें उचित प्रतिफल नहीं मिला और वे आर्थिक रूप से पिछड़े रहे तथा समाज में सीमान्तीकरण की स्थिति में निर्वाह करते रहे।

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