RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 प्रकाश की प्रकृति
RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 12 प्रकाश की प्रकृति
Rajasthan Board RBSE Class 12 Physics Chapter 12 प्रकाश की प्रकृति
RBSE Class 12 Physics Chapter 12 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
RBSE Class 12 Physics Chapter 12 बहुचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
व्यतिकरण की घटना को दर्शाने के लिए दो स्रोतों की आवश्यकता होती है जो विकिरण उत्सर्जित करते हैं-
(अ) समान आवृत्ति और निश्चित कलान्तर के
(ब) लगभग समान आवृत्ति के
(स) समान आवृत्ति के
(द) भिन्न तरंगदैर्घ्य के।
उत्तर:
(अ) समान आवृत्ति और निश्चित कलान्तर के
प्रश्न 2.
एक यंग के द्विस्लिट प्रयोग में एकवर्णी प्रकाश स्रोत प्रयुक्त किया जाता है। पर्दे पर प्राप्त व्यतिकरण फ्रिन्जों का आकार होगा ?
(अ) सीधी रेखा
(ब) परवलय
(स) अतिपरवलय
(द) वृत्त।
उत्तर:
(ब) परवलय
प्रश्न 3.
व्यतिकरण के किसी प्रयोग में पर्दे पर किसी बिन्दु पर 700nm के प्रकाश को प्रयुक्त करने पर तीसरी चमकीली फ्रिन्ज प्राप्त होती है। उसी बिन्दु पर 5वीं चमकीली फ्रिज प्राप्त करने के लिए आवश्यक प्रकाश स्रोत की तरंगदैर्घ्य होगी-
(अ) 210 nm
(ब) 315 nm
(स) 420 nm
(द) 490 nm.
उत्तर:
(स) 420 nm
प्रश्न 4.
यंग द्विस्लिट प्रयोग में यदि स्लिटों की चौड़ाइयों को अनुपात 4 : 9 है तो उच्चिष्ठ एवं निम्निष्ठ की तीव्रताओं को अनुपात होगा-
(अ) 196 : 25
(ब) 81 : 16
(स) 25 : 1
(द) 9 : 4.
उत्तर:
(ब) 81 : 16
प्रश्न 5.
द्विस्लिट प्रयोग में दो भिन्न-भिन्न तरंगदैर्यों का प्रकाश प्रयुक्त किया जाता है। पीले नारंगी (λ = 600 nm) रंग के लिए तीसरे क्रम की चमकीली फ्रिन्ज की स्थिति दूसरे रंग के प्रकाश के चौथे क्रम की चमकीली फ्रिज की स्थिति से सम्पाती होती है। दूसरे रंग की तरंगदैर्ध्य होगी-
(अ) 500 nm
(ब) 450 nm
(स) 225 nm
(द) 350 nm.
उत्तर:
(ब) 450 nm
प्रश्न 6.
‘यंग के द्विस्लिट प्रयोग में प्रकाश की अधिकतम तीव्रता Imax हो तो पथान्तर λ/2 पर तीव्रता होगी
(अ) Imax
(ब) Imax/2
(स) Imax/4
(द) शून्य।
उत्तर:
(द) शून्य।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सबसे सही समझाता है कि अधिकांश परिस्थितियों में ध्वनि का विवर्तन प्रकाश के विवर्तन से ज्यादा संभाव्य होता है ?
(अ) ध्वनि संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है ।
(ब) ध्वनि तरंगें अनुदैर्ध्य होती हैं जबकि प्रकाश तरंगें अनुप्रस्थ होती हैं।
(स) प्रकाश की तरंगदैर्घ्य ध्वनि की तुलना में बहुत कम है।
(द) ध्वनि का वेग प्रकाश के वेग की तुलना में परिमाण की कोटि 6 से भी कम है।
उत्तर:
(स) प्रकाश की तरंगदैर्घ्य ध्वनि की तुलना में बहुत कम है।
विवर्तन के लिए आवश्यक है कि रुकावट का आकार तरंगदैर्घ्य के क्रम का होना चाहिए। चूंकि प्रकाश तरंगों की तरंगदैर्ध्य ध्वनि तरंगों की तुलना में बहुत छोटी होती हैं। इसलिए ध्वनि का विवर्तन प्रकाश विवर्तन की तुलना में अधिक सम्मात्य होता है। इस प्रकार विकल्प (स) सही है।
प्रश्न 8.
चित्र (A) के अनुसार एक प्रयोग में इलेक्ट्रॉनों को उनकी डी ब्रॉगली तरंगदैर्घ्य के तुलनात्मक चौड़ाई की एक पतली स्लिट से गुजारा जाता है। स्लिट से D दूरी पर पर्दा स्थित है जिस पर इन्हें संसूचित किया जाता है। पर्दे पर प्राप्त तीव्रता प्रतिरूप होगा
उत्तर:
(ब)
विवर्तन प्रतिरूप स्लिट की चौड़ाई से अधिक चौड़ा होना चाहिए। अतः विकल्प (ब) सही है।
प्रश्न 9.
एक स्लिट द्वारा 5000A तरंगदैर्ध्य का प्रकाश विवर्तित होता है। विवर्तन प्रतिरूप में पाँचवाँ निम्निष्ठ केन्द्रीय उच्चिष्ठ से 5mm दूरी पर बनता है। यदि पर्दे व स्लिट में बीच की दूरी 1m है तो स्लिट की चौड़ाई होगी-
(अ) 0.1 mm
(ब) 0.3 mm
(स) 0.5 mm
(द) 0.8 mm.
उत्तर:
(स) 0.5 mm
प्रश्न 10.
सुक्ष्म तरंगों जिनकी तरंगदैर्ध्य 0.052 m है, का एक पुंज 0.35m चौड़ाई के एक आयताकार छिद्र की ओर आ रहा है। परिणामी विवर्तन प्रतिरूप, छिद्र से 8.0m दूर स्थित दीवार पर प्रेक्षित किया जा रहा है। प्रथम एवं द्वितीय कोटि की दीप्ति फ्रिन्जों के मध्य दूरी क्या है ?
(अ) 1.19 m
(ब) 1.8 m
(स) 2.1 m
(द) 2.5 m.
उत्तर:
(अ) 1.19 m
प्रश्न 11.
खगोलीय दूरदर्शी का द्वारक बड़ा होता है-
(अ) गोलीय विपथन का दोष दूर करने के लिए
(ब) उच्च विभेदन क्षमता के लिए।
(स) प्रेक्षण का दायरा बढ़ाने के लिए।
(द) कम विक्षेपण के लिए।
उत्तर:
(ब) उच्च विभेदन क्षमता के लिए।
प्रश्न 12.
एक काले कागज पर सफेद बिन्दु एक-दूसरे से 1mm दूरी पर रखे हैं। उन्हें लगभग 3mm व्यास वाली आँख की पुतली से देखा जाता है। उनके मध्य अधिकतम दूरी क्या होगी कि उन्हें आँख द्वारा ठीक विभेदित ही किया जा सके ? (प्रकाश की तरंगदैर्घ्य = 500 nm)
(अ) 6m
(ब) 3m
(स) 5m
(द) 1m.
उत्तर:
(स) 5m
प्रश्न 13.
विद्युत चुम्बकीय तरंगों की प्रकृति अनुप्रस्थ होती है। इसका प्रमाण है-
(अ) ध्रुवण
(ब) व्यतिकरण
(स) परावर्तन ।
(द) विवर्तन।
उत्तर:
(अ) ध्रुवण
प्रश्न 14.
हवा से काँच परावर्तन के लिए आपतन कोण का वह मान जिसके लिए परावर्तित प्रकाश पूर्णतः धुवित होता है। (अपवर्तनांक = n)।
(अ) tan-1(1n)
(ब) sin-1(1n)
(स) sin-1(n)
(द) tan-1 (n).
उत्तर:
(द) tan-1 (n).
प्रश्न 15.
अधुवित प्रकाश का एक पुंज चार ध्रुवणकारी शीटों, जो इस प्रकार व्यवस्थित हैं कि प्रत्येक की अभिलाक्षणिक दिशा अपने पूर्ववर्ती से 30° कोण पर है, पर आपतित है तो शीट समूह से निर्गत प्रकाश की प्रतिशत तीव्रता होगी-
(अ) 10%
(ब) 20%
(स) 50%
(द) 21%.
उत्तर:
(द) 21%.
प्रश्न 16.
दो निकोल प्रिज्म इस प्रकार विन्यस्त हैं कि उनके मुख्य तलों के मध्य कोण 60° है तो निकाय से आपतित अनुचित प्रकाश का कितनी प्रतिशत गुजरेगा-
(अ) 50%
(ब) 100%
(स) 12.5%
(द) 37.5%.
उत्तर:
(स) 12.5%
RBSE Class 12 Physics Chapter 12 अति लघूत्तरात्गक प्रश्न
प्रश्न 1:
तरंगाग्र के लम्बवत् रेखा किसकी दिशा को व्यक्त करती
उत्तर:
तरंग संचरण की दिशा अर्थात् किरण की दिशा।
प्रश्न 2.
यंग की फ्रिजों की चौड़ाई पर किन-किन भौतिक राशियों , का प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
फ्रिन्ज की चौड़ाई
β = Dλd
अत: फ्रिन्ज की चौड़ाई निम्न बातों पर निर्भर करती है
- तरंगदैर्ध्य λ पर
- स्लिटों से पर्दे की दूरी D पर,
- स्लिटों के मध्य दूरी 2d पर।
प्रश्न 3.
प्रकाश के विवर्तन के रूइगेन्स सिद्धान्त का कथन कीजिए।
उत्तर:
फ्रेनल (Eresnel) ने हाइगेन्स के तरंग सिद्धान्त के आधार पर विवर्तन की व्याख्या करते हुए कहा, “विवर्तन उन द्वितीयक तरंगिकाओं के अध्यारोपण से होने वाले व्यतिकरण का परिणाम है जो एक ही तरंगाग्र के उस भाग से चलती है जो रुकावट द्वारा रोका नहीं जाता है।”
प्रश्न 4.
किस प्रकार का तरंगाग्र निर्गत होगा
- बिन्दु स्रोत से
- सुदूर प्रकाश स्रोत से।
उत्तर:
- गोलाकार तरंगाग्र
- समतल तरंगाग्र।
प्रश्न 5.
दो तरंगों के द्वारा व्यतिकरण प्राप्त झेने की सबसे महत्वपूर्ण शर्त क्या है ?
उत्तर:
दोनों स्रोत कला सम्बद्ध होने चाहिए।
प्रश्न 6.
किसी एकल स्लिट विवर्तन प्रयोग में फ्रिन्जों के मध्य कोणीय पार्थक्य किस प्रकार बदलता है ? जब स्लिट एवं पर्दे के मध्य दूरी दो गुनी कर दी जाती है।
उत्तर:
∴ D को दो गुना करने पर 8 का मान आधा रह जायेगा।
प्रश्न 7.
तरंगों के विवर्तन के लिए अवरोध अथवा छिद्र का आकार किस कोटि का होना चाहिए ?
उत्तर:
तरंगदैर्ध्य की कोटि का।
प्रश्न 8.
उन दो भौतिक घटनाओं का उल्लेख कीजिए जिनसे प्रकाश के तरंग स्वरूप की पुष्टि होती है ?
उत्तर:
व्यतिकरण, ध्रुवण ।
प्रश्न 9.
प्रकाश की तरंग प्रकृति होते हुए भी वह सीधी रेखा में गमन करता हुआ क्यों प्रतीत होता है ?
उत्तर:
क्योंकि प्रकाश की तरंगदैर्घ्य बहुत कम होती है।
प्रश्न 10.
एक छिद्र से होकर प्रकाश विवर्तन के प्रयोग में किन प्रकाश तरंगों के बीच अध्यारोपण होता है ?
उत्तर:
एकल स्लिट विवर्तन में तरंगाग्र के उस भाग से जो छिद्र द्वारा पारंगत होता है, चलने वाली द्वितीयक तरंगिकाएँ अध्यारोपण करके विवर्तन प्रतिरूप प्रदान करती हैं।
प्रश्न 11.
मैलस के नियम का गणितीय स्वरूप क्या होता है ?
उत्तर:
ध्रुवक या विश्लेषक से निर्गत प्रकाश की तीव्रता
I = I0 cos2θ
जब I0 = ध्रुवक या विश्लेषक पर आपतित प्रकाश की तीव्रता
एवं θ = ध्रुवक की ध्रुवण दिशा एवं प्रकाश सदिश के मध्य कोण।
RBSE Class 12 Physics Chapter 12 लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रकाश तरंगों के लिए हाइगेन्स का सिद्धान्त बताइये।
उत्तर:
हाइगेन्स का रंग मित तथा तरंगा (Huygens’ wave Theory and Wave-front)
तरंगा (Wave-front)
“समान कला मेंदोलन करने वाले कणों की निधि तरंगाग्र कहलाती है अर्थात् वह तल जिसमें मौजूद प्रत्येक कण समान कला में दोलन करता है, तरंगाग्र कहलाता है।”
कोई प्रकाश-स्रोत माध्यम में सभी दिशाओं में विक्षोभ भेजता है जो तरंगों के रूप में आगे बढ़ते हैं। किसी समांग माध्यम (homogenous medium) में ये विक्षोभ समान वेग से सभी दिशाओं में आगे बढ़ते हैं। स्पष्ट है कि स्रोत से समान दूरी पर स्थित कणों तक ये विक्षोभ एक साथ पहुँचते हैं। स्वाभाविक है कि स्रोत से समान दूरी पर स्थित कण समान कला में दोलन करते हैं, जिसे तरंगाग्र कहते हैं।
प्रकाश-स्रोत की आकृति के आधार पर तरंगाग्र तीन प्रकार के होते हैं-
(i) गोलाकार तरंगाग्र (Spherical Wave-front) – जब प्रकाश-स्रोत एक बिन्दु प्रकाश-स्रोत की भाँति कार्य करे तो इससे चलने वाली तरंगों के तरंगाग्र गोलाकार होते हैं। [चित्र 12.1 (a)]।
(ii) बेलनाकार तरंगाग्र (Cylindrical Wave-front)- जब प्रकाश-स्रोत रेखीय होता है (जैसे-स्लिट) तो उससे चलने वाली तरंगें बेलनाकार तरंगाग्र बनाती हैं। [चित्र 12.1 (b)]
(iii) समतले तरंगाग्र (Plane Wave-front) – जब बिन्दु-स्रोत या रेखीय स्रोत अत्यधिक दूर होते हैं तो उनसे चलने वाले क्रमशः गोलाकार
या बेलनाकार तरंगाग्रों का एक छोटा भाग हमें समतल प्रतीत होता है। ऐसे तरंगाग्र को ही समतल तरंगाग्र कहते हैं। [चित्र 12.1 (c)]।
समांग माध्यम में किसी तरंग का तरंगाग्र सदैव तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत् होता है। अत: तरंगाग्र पर खींची गई लम्बवत् रेखा तरंग
संचरण की दिशा व्यक्त करती है। हाइगेन्स ने इन लम्बवत् रेखाओं को प्रकाश-किरणें (Rays of light) कहा है। चित्र 12.2 (a), (b) व (c) में प्रकाश किरणों एवं तरंगाग्र की स्थितियों को प्रदर्शित किया गया है।
हाइगेन्स का सिद्धान्त (Huygens’ Principle)
इस अध्याय के प्रारम्भ में अनु. 12.1 में हम चर्चा कर चुके हैं कि सन् 1678 में हालैण्ड के वैज्ञानिक हाइगेन्स ने प्रकाश के तरंग सिद्धान्त का प्रतिपादन किया । तरंग संचरण के लिए एक माध्यम की आवश्यकता होती है परन्तु प्रकाश का गमन निर्वात में भी होता है। अतः हाइगेन्स ने एक सर्वव्यापी एवं समांगी माध्यम ईथर की कल्पना की। यह माध्यम भारहीन, पूर्ण प्रत्यास्थ एवं अत्यल्प घनत्व वाले कणों से मिलकर बना हुआ माना गया और यह सभी पदार्थों में प्रवेश कर सकता है। इस माध्यम ईथर में प्रकाश तरंगों के संचरण के लिए आवश्यक सभी गुण होते हैं। इस माध्यम के अधिक प्रत्यास्थ एवं हल्का होने के कारण प्रकाश तरंगें ईथर में बहुत अधिक वेग से चलती हैं।
भिन्न-भिन्न रंगों के प्रकाश के तरंगदैर्घ्य भिन्न-भिन्न होते हैं। जब ये तरंगें नेत्र के रेटिना पर गिरती हैं तो हमें वस्तु का आभास होता है।
हाइगेन्स ने तरंग संरचरण को समझाने के लिए द्वितीयक तरंगिका सिद्धान्त (Theory of Secondary Wavelets) का प्रतिपादन किया। उन्होंने बताया कि तरंगाग्र पर खींची गई लम्बवत् रेखा तरंग संचरण की दिशा व्यक्त करती है। जिसे किरण कहते हैं और तरंगाग्र पर स्थित प्रत्येक ईथर कण एक नये प्रकाश-स्रोत का कार्य करता है जिससे नई तरंगें सभी दिशाओं में निकलती हैं। इन्हीं नवीन तरंगों को द्वितीयक तरंगिकाएँ (Secondary wavelets) कहते हैं। ये तरंगिकाएँ तरंग की चाल से ही आगे बढ़ती हैं और किसी क्षण इन पर खींचा गया स्पर्श तल उस समय तरंगाग्र की स्थिति को व्यक्त करता है।
हाइगेन्स ने द्वितीयक तरंगिका सिद्धान्त के आधार पर प्रकाश के परावर्तन एवं अपवर्तन की सफल व्याख्या की, लेकिन प्रकाश के ऋजुरेखीय गमन और ध्रुवण की व्याख्या करने में यह सिद्धान्त असफल रहा। बाद में वैज्ञानिक फ्रेस्नेल (Fresnel) ने तरंग सिद्धान्त के आधार पर व्यतिकरण तथा विवर्तन की घटनाओं को भली-भाँति समझाया तथा प्रकाश का ऋजुरेखीय गमन भी सिद्ध किया। हाइगेन्स ने प्रकाश तरंगों को अनुदैर्ध्य माना था लेकिन फ्रेस्नेल ने इन तरंगों को अनुप्रस्थ मानकर ध्रुवण की सफल व्याख्या की।
हाइगेन्स का द्वितीयक तरंगिका सिद्धान्त (Huygens’ Principle of Secondary Wavelets)-इस सिद्धान्त के अनुसार,
(1) जब किसी तरंग-स्रोत से तरंगें उत्पन्न होती हैं तो स्रोत के चारों ओर माध्यम के कण कम्पन करने लगते हैं। समाने कला में कम्पन करने वाले कणों की निधि तरंगाग्र कहलाती है।
(2) तरंगाग्र पर खींची गई लम्बवत् रेखा तरंग संरचरण की दिशा व्यक्त करती है और इसे किरण कहते हैं।
(3) तरंगाग्र पर स्थित प्रत्येक कण द्वितीयक तरंगिकाओं के स्रोत की भाँति कार्य करता है। ये द्वितीयक तरंगिकाएँ तरंग की चाल से ही आगे बढ़ती हैं और किसी समय पर इनका स्पर्श तल उस समय तरंगाग्र की स्थिति प्रदर्शित करता है।
चित्र 12.3 (a) में AB एक गोलाकार प्राथमिक तरंगाग्र प्रदर्शित किया गया है। इसी प्रकार चित्र 12.3 (b) में AB एक प्राथमिक समतल तरंगाग्र
प्रदर्शित है। द्वितीयक तरंगाग्र की स्थिति ज्ञात करने के लिए प्राथमिक तरंगाग्र पर कुछ बिन्दु 1, 2, 3, 4, …. ले लेते हैं। t सेकण्ड बाद द्वितीयक तरंगाग्र की स्थिति ज्ञात करने के लिए त्रिज्या (r) = त्रिज्या (C) × समय (t) या r = ct एवं 1, 2, 3, 4,…. को केन्द्र मानकर गोले खींचते हैं। ये गोलीय पृष्ठ समय t सेकण्ड बाद द्वितीयक तरंगिकाओं की स्थितियाँ बताते हैं। इन सभी तरंगिकाओं को स्पर्श करता हुआ तल A1B1 द्वितीयक तरंगाग्र की स्थिति दर्शाता है। गोलों का दूसरा स्पर्श तल A2B2 पीछे की दिशा में है परन्तु हाइगेन्स का तरंग सिद्धान्त पीछे वाले स्पर्श तल को स्वीकार नहीं करता है। इसी प्रकार समतल तरंगाग्र के आगे बढ़ने की क्रिया समझायी जा सकती है।
प्रश्न 2.
तरंगों के व्यतिकरण की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
दो तरंगों का व्यतिकरण (Interference of Two Waves)
“जब समानं आवृत्ति की दो तरंगें दो कला सम्बद्ध स्रोतों (Coherent sources) से एक ही माध्यम में एक ही दिशा में चलकर अध्यारोपण करती हैं तो अध्यारोपण के क्षेत्र में सामान्यतः परिणामी तरंग की तीव्रता दोनों तरंगों की अलग-अलग तीव्रताओं के योग से भिन्न होती है। कुछ स्थानों पर परिणामी तीव्रता दोनों तरंगों की अलग-अलग तीव्रताओं के योग से अधिक होती है और कुछ स्थानों पर कम होती है। अध्यारोपण के क्षेत्र में परिणामी तीव्रता में इस उतार-चढ़ाव उत्पन्न होने की घटना को व्याकरण कहते हैं।”
जिन स्थानों पर परिणामी तीव्रता दोनों तीव्रताओं के योग से अधिक | होती है, वहाँ पर होने वाले व्यतिकरण को रचनात्मक या संपोषी व्यतिकरण (Constructive Interference) कहते हैं और जिन स्थानों पर परिणामी तीव्रता दोनों तरंगों की अलग-अलग तीव्रताओं के योग से कम होती है, वहाँ पर होने वाले व्यतिकरण को विनाशी व्यतिकरण (Destructive Interference) कहते हैं।
प्रश्न 3.
कला सम्बद्ध स्रोत क्या होते हैं ?
उत्तर:
कला सम्बद्ध स्रोत (Coherent Sources)
“यदि दो प्रकाश-स्रोतों के मध्य कलान्तर समय के साथ नियत | रहता है तो दोनों स्रोत कला सम्बद्ध स्रोत कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में | कह सकते हैं कि ऐसे स्रोत जिनके मध्य या तो कलान्तर होना नहीं चाहिए और यदि है तो उसे समय के साथ नियत रहना चाहिए, कला सम्बद्ध स्रोत कहलाते हैं। दो भिन्न स्रोतों का कला सम्बद्ध होना लगभग असम्भव है। एक ही स्रोत से उत्पन्न दो वास्तविक (Real) या काल्पनिक (Imaginary) स्रोत कला सम्बद्ध होते हैं। ऐसे स्रोतों से उत्सर्जित तरंगें अपने पथ में रखे पर्दे पर स्थायी व्यतिकरण प्रतिरूप बनाती हैं।
यदि किसी बिन्दु पर दो तरंगों के मध्य कलान्तर समय के साथ बदलता है तो इसका कारण केवल स्रोतों का कला सम्बद्ध न होना है क्योंकि किसी बिन्दु पर पथान्तर के कारण कलान्तर नियत रहता है। यदि स्रोत कला सम्बद्ध नहीं है तो व्यतिकरण प्रतिरूप स्थायी नहीं होगा अर्थात् किसी बिन्दु की परिणामी तीव्रता समय के साथ बदलती रहेगी। दो कला सम्बद्ध स्रोत प्राप्त करने के लिए शर्ते (Conditions for Obtaining two Coherent Sources)
1. किसी युक्ति द्वारा एक ही स्रोत से दो कला सम्बद्ध स्रोत प्राप्त करने चाहिए-इस विधि से कला सम्बद्ध स्रोत प्राप्त करने का लाभ यह है कि यदि किसी प्रकार मूल स्रोत की कला में कोई परिवर्तन होता है। | तो यह परिवर्तन इससे प्राप्त दोनों स्रोतों में समान रूप से होगा और दोनों स्रोत कला सम्बद्ध बने रहेंगे।
2. दोनों स्रोतों को एकवर्णी प्रकाश देना चाहिए- यदि स्रोत श्वेत प्रकाश उत्सर्जित करता है तो इस प्रकाश में अनेक तरंगदैर्यों का प्रकाश होगा और प्रत्येक तरंगदैर्ध्य का प्रकाश अपने सेट के साथ व्यतिकरण फ्रिजें उत्पन्न करेगा और ये फ्रिजें एक-दूसरे को अतिव्यापित करेंगी। फलस्वरूप व्यतिकरण प्रतिरूप में केन्द्रीय दीप्त फ्रिन्ज के दोनों ओर मात्र कुछ रंगीन फ्रिजें ही दिखाई देंगी।
3. दोनों स्रोतों से प्राप्त तरंगों में पथान्तर अल्प होना चाहिए-यदि व्यतिकारी तरंगों में पथान्तर अधिक होगा तो प्रत्येक बिन्दु पर तरंगों का आपस में मिलन (intermixing) होगा फलस्वरूप व्यतिकरण प्रतिरूप समाप्त होकर पर्दा समान रूप से दीप्त हो जायेगा।
प्रश्न 4.
प्रकाश के विवर्तन से आप क्या समझते हैं ? प्रकाश व ध्वनि के विवर्तन की तुलना कीजिए।
उत्तर:
विवर्तन (Diffraction)
प्रकाश का विवर्तन (Diffraction of Light) प्रकाश के मार्ग में मौजूद किसी रुकावट के किनारों से प्रकाश-तरंगों का रुकावट की ज्यामितीय छाया की ओर मुड़ जाना ही प्रकाश का विवर्तन कहलाता है।” इस प्रकार रुकावट के कारण प्रकाश अपने ऋजुरेखीय गमन से विचलित हो जाता है। विचलन बढ़ता जाता है जैसे-जैसे रुकावट का आकार छोटा होता जाता है। जिस समय रुकावट का आकार प्रकाश के तरंगदैर्घ्य के क्रम का होता है तो प्रकाश का विवर्तन सबसे अधिक होता है। चित्र (12.18) में प्रदर्शित विवर्तन की तीन स्थितियों में सबसे अच्छा विवर्तन अर्थात् सुपरिभाषित विवर्तन तब होता है जब स्लिट की चौड़ाई न्यूनतम (a= 1.5λ) होती है।
चित्र 12.18 से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे स्लिट की चौड़ाई घटती जाती है, वैसे-वैसे विवर्तन को फैलाव बढ़ता जाता है।
इस प्रकार निष्कर्ष यह निकलता है कि विवर्तन के लिए सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि रुकावट का आकार तरंगों के तरंगदैर्घ्य के क्रम का होना चाहिए।
चूँकि विवर्तन भी तरंग, गति को लक्षण है, अतः यह सभी प्रकार की तरंगों के साथ परिलक्षित होता है। ध्वनि-तरंगों की तरंगदैर्ध्य काफी बड़ी होती हैं। अत: इनका विवर्तन व्यावहारिक जीवन में आसानी से अनुभव किया जा सकता है। जैसे-दरवाजों, खिड़कियों आदि के किनारों से ध्वनि-तरंगों का विवर्तन हो जाता है लेकिन प्रकाश-तरंगों की तरंगदैर्घ्य बहुत छोटी होती है। अतः इनका विवर्तन देखने के लिए प्रयोगशाला में विशेष प्रबन्ध करना पड़ता है। प्रकाश का विवर्तन ब्लेड की तीक्ष्ण धार एवं सुई की नोंक आदि से ही सम्भव है।
फ्रेनल (Fresnel) के अनुसार, “विवर्तन उन द्वितीयक तरंगिकाओं के अध्यारोपण से होने वाले व्यतिकरण का परिणाम है जो एक ही तरंगाग्र के उस भाग से चलती हैं जो रुकावट द्वारा रोका नहीं जाता है |
ध्वनि एवं प्रकाश के विवर्तन की तुलना (Comparison of Diffraction of Sound and Light)
विवर्तन तरंगगति का अभिलक्षण है, अतः यह प्रकाश तरंगों एवं ध्वनि तरंगों दोनों में परिलक्षित होता है। विवर्तन के लिए, “सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि रुकावट का आकार तरंगों के तरंगदैर्घ्य के क्रम का होना चाहिए।” चूँकि ध्वनि तरंगों की तरंगदैर्घ्य बड़ी होती है अतः ध्वनि तरंगों का विवर्तन व्यावहारिक जीवन में आसानी से परिलक्षित होता है जैसे दीवारों, दरवाजों, खिड़कियों आदि के किनारों से ध्वनि का विवर्तन हो जाता है। इसीलिए किसी दीवार के पीछे बैठा व्यक्ति दूसरी ओर से उत्पन्न ध्वनि को सुन लेता है। इसके विपरीत प्रकाश की तरंगदैर्ध्य अत्यन्त छेटी होने के कारण प्रकाश का विवर्तन देखने के लिए प्रयोगशाला में विशेष प्रबन्ध करना पड़ता है। प्रकाश का विवर्तन ब्लेड की धार एवं सुई की नोक आदि से ही सम्भव है।
प्रश्न 5.
सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता परिभाषित कीजिए। यह किस प्रकार प्रभावित होगी जब
(i) प्रदीपन करने वाले विकिरणों की तरंगदैर्घ्य घटा दी जाती है।
(ii) अभिदृश्यक लैन्स का व्यास घटा दिया जाता है तथा अपने उत्तर का औचित्य दीजिए।
उत्तर:
सूक्ष्मदर्शी की विभेदने क्षमता (Resolving Power of Microscope)-“सूक्ष्मदर्शी की विभेदन सीमा की माप दो बिन्दुओं के मध्य उस न्यूनतम दूरी (d) से की जाती है, जिस पर स्थित होने पर सूक्ष्मदर्शी द्वारा वे विभेदित हो जाती हैं अर्थात् अलग-अलग देखी जा सकती हैं। सूक्ष्मदर्शी की विभेदन सीमा
(i) प्रयुक्त प्रकाश की तरंगदैर्घ्य (λ) के अनुक्रमानुपाती होती है।
इन सूत्रों में µ sin θ को सूक्ष्मदर्शी का ‘आंकिक द्वारक’ (numerical aperture) कहते हैं।
स्पष्ट है कि सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता बढ़ने के लिए
(i) या तो शंकु कोण बाया जाये या
(ii) λ को घटाया जाये। चूँकि शंकु कोण बढ़ाने के लिए अभिदृश्यक से वस्तु की दूरी को घटाना होगा जो कि एक सीमा तक ही घटा सकते हैं क्योंकि वस्तु को अभिदृश्यक के फोकस तल के बाहर ही रहना चाहिए तभी उसका प्रतिबिम्ब अभिदृश्यक द्वारा वास्तविक बनेगा। अतः अब केवल दूसरा विकल्प ही शेष बचता है और वह है ? को घटाकर। यह कार्य हम कर भी सकते हैं क्योंकि सूक्ष्मदर्शी का प्रयोग हम प्रयोगशाला में कृत्रिम प्रकाश में करते हैं। अतः छेटी तरंगदैर्ध्य का प्रकाश प्रयोग करके हम सूक्ष्मदर्शी की विभेदन क्षमता को बढ़ सकते हैं।
विभेदन क्षमता के लिए रैले की कसौटी (Rayleigh’s criterion of limiting resolution).
दो बिन्दु वस्तु आपस में तब विभेदित होंगी जब एक की तरंगदैर्घ्य के कारण केन्द्रीय उच्चिष्ठ पर दूसरी तरंगदैर्ध्य की प्रथम निम्निष्ठ आपस में आरोपित हों। यही विभेदन क्षमता के लिये रैले की कसौटी है।
प्रश्न 6.
दो पतली स्लिटों से आ रहे प्रकाश के व्यतिकरण से एक पर्दे पर फ्रिजें बन रही हैं। यदि स्लिटों के बीच की दूरी चार गुनी तथा स्लिटों से पर्दे की दूरी आधी कर दी जाये तब फ्रिज चौड़ाई कितने गुना हो जायेगी ?
उत्तर:
प्रश्न 7.
पोलेरॉइड की बनावट समझाइये।
उत्तर:
पोलेरॉइड (Polaroid)
पोलेरॉइड समतल ध्रुवित प्रकाश उत्पन्न करने की एक सरल और सस्ती विधि है। यह एक बड़े आकार की फिल्म होती है जो दो काँच की प्लेटों के बीच रखी होती है। इस फिल्म को तैयार करने के लिए नाइट्रोसेलुलोज (Nitrocellulose) की एक पतली चादर (sheet) पर कुनैन आइडो-सल्फेट या हरपेथाइट के अति सूक्ष्म आकार के क्रिस्टल इस प्रकार बिठा दिये जाते हैं कि सभी क्रिस्टलों की प्रकाशिक अक्षें समान्तर रहें। यह क्रिस्टल तीव्र द्विवर्णक होते हैं जो द्वि-अपवर्तित किरणों में से एक को पूर्णतः अवशोषित कर लेते हैं तथा एक को ध्रुवित प्रकाश के रूप में निर्गत कर देते हैं। प्रत्येक पोलेरॉइड फिल्म में एक अभिलाक्षणिक दिशा होती है, जिसे ‘धुवण दिशा’ (Polarising direction) कहते हैं। चित्र (12.38) में पोलेरॉइड फिल्म की ध्रुवण दिशा समान्तर रेखाओं द्वारा प्रदर्शित की गई है।
जब साधारण प्रकाश की एक किरण पुंज पोलेरॉइड पर आपतित होती है तो ध्रुवण दिशा के लम्बवत् कम्पन अवशोषित हो जाते हैं तथा ध्रुवण दिशा के समान्तर कम्पन पारगत हो जाते हैं। इस प्रकार पोलेरॉइड से समतल भुवित प्रकाश प्राप्त होता है। पोलेरॉइड से निर्गत प्रकाश समतल ध्रुवित है अथवा नहीं, इसकी जाँच एक-दूसरे पोलेरॉइड से की जाती है। जब दोनों पोलेरॉइडों की ध्रुवण दिशाएँ समान्तर होती हैं [चित्र (12.39) (a)] तो पहले पोलेरॉइड से निर्गत प्रकाश दूसरे पोलेरॉइड
से भी पारगत हो जाता है। इसके विपरीत, जब दोनों पोलेरॉइड एक दूसरे से क्रास स्थिति में होते हैं अर्थात् दोनों की ध्रुवण दिशाएँ लम्बवत् होती हैं [चित्र 12.39 (b)] तो पहले पोलेरॉइड से निर्गत प्रकाश दूसरे पोलेरॉइड द्वारा रोक दिया जाता है अर्थात् दूसरे पोलेरॉइड से निर्गत प्रकाश की तीव्रता शून्य होती है। स्पष्ट है कि पोलेरॉइड द्वारा निर्गत प्रकाश समतल ध्रुवित होता है।
पोलेरॉइड से निर्गत प्रकाश की तीव्रता-यदि किसी पोलेरॉइड पर आपतित प्रकाश की तीव्रता I0 हो तो पोलेरॉइड से निर्गत प्रकाश की तीव्रता
I = I0 cos2 θ …. (1)
जहाँ θ, पोलेरॉइड की ध्रुवण दिशा तथा आपतित प्रकाश के विद्युत वेक्टर के बीच का कोण है। इसे ‘मैलस का नियम’ (Malus’s Law) कहते हैं।
अर्थात् ध्रुवण तक विश्लेषण से निर्गत ध्रुवित प्रकाश की तीव्रता उनकी प्रकाशिक अक्षों के मध्य बने कोण की कोज्या के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है।
यदि पोलेरॉइड पर आपतित प्रकाश अध्रुवित है तो इसमें विद्युत वेक्टर अर्थात् प्रकाश वेक्टर के कम्पन प्रकाश संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में सभी दिशाओं में समान रूप से होंगे। अतः समी. (1) में cos2θ का औसत मान रखना होगा जो कि 12 होता है अर्थात्
स्पष्ट है कि इस स्थिति में पोलेरॉइड से निर्गत प्रकाश की तीव्रता आपतित प्रकाश की तीव्रता की आधी हो जाती है।
पोलेरॉइड के उपयोग (Uses of Polaroid)
- पोलेरॉइड की सहायता से त्रिविमीय (Three-dimensional) चित्रों को देखा जा सकता है।
- इनका प्रमुख उपयोग प्रकाश की चकाचौंध से बचने के लिए मोटरगाड़ियों के सामने वाले काँच में किया जाता है।
- पोलेरॉइड का उपयोग वायुयान तथा ट्रेन में प्रवेश करने वाले प्रकाश की तीव्रता को नियन्त्रित करने के लिए भी किया जाता है।
- LCD (Liquid crystal display) भी पोलेरॉइड की क्रिया पर कार्य करता है।
- पोलेरॉइड युक्त ध्रुवमापी से प्रकाशीय घूर्णक पदार्थ जैसे शक्कर के घोल की सान्द्रता ध्रुवण तल के घूर्णन के मापन से ज्ञात की जा सकती है।
- इनका उपयोग धातुओं के प्रकाशिक गुणों का अध्ययन एवं प्रकाशकीय घूर्णक पदार्थों की संरचना ज्ञात करने में किया जाता है।
प्रश्न 8.
द्वि-अपवर्तन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
द्वि-अपवर्तन द्वारा ध्रुवण (Polarisation by Double Refraction)-कुछ क्रिस्टल; जैसे-कैल्साइट, क्वार्ट्ज़ ऐसे क्रिस्टल होते हैं कि जब उन पर कोई प्रकाश किरण आपतित होती है तो वह किरण क्रिस्टल में दो अपवर्तित किरणों में विभाजित हो जाती है (चित्र (12.36)) । इस घटना को द्वि-अपवर्तन कहते हैं। इनमें से एक किरण अपवर्तन के
नियमों का पालन करती है। इसे साधारण किरण (Ordinary ray) या 0-किरण कहते हैं। दूसरी अपवर्तित किरण अपवर्तन के नियमों का पालन नहीं करती है, इसे असाधारण किरण (extraordinary ray) या E-किरण कहते हैं। ये दोनों किरणें परस्पर लम्बवत् तलों में समतल ध्रुवित होती हैं। साधारण किरण में कम्पन, आपतन तल के लम्बवत् तल में और असाधारण किरण में कम्पन आपतन तल में होते हैं। व्यवहार में इन दोनों अपवर्तित समतल ध्रुवित किरणों में से एक को किसी विधि द्वारा अलग कर दिया जाता है जिससे कि क्रिस्टल में से समतल ध्रुवित प्रकाश निकल सके।
द्वि-वर्णता-टूर्मेलीन क्रिस्टल पर आपतित साधारण प्रकाश की किरण क्रिस्टल के भीतर दो ध्रुवित अपवर्तित किरणों में बँट जाती है। इनमें | से एक किरण क्रिस्टल द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। टूर्मेलीन क्रिस्टल द्वारा वरणात्मक अवशोषण की इस प्रक्रिया को द्वि-वर्णता कहते हैं।
प्रश्न 9.
व्यतिकरण एवं विवर्तन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 10.
फ्रेनल एवं फ्रॉनहॉफर विवर्तन में मुख्य अन्तर बताइये।
उत्तर:
विवर्तन के प्रकार फ्रेनल तथा फ्रॉन हॉफर विवर्तन
(Types of Diffraction : Fresnel and Fraun hoffer Diffraction)
प्रकाश का विवर्तन दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-
(a) फ्रेनल विवर्तन (Fresnel’s Diffraction) – जब प्रकाश-स्रोत तथा प्रेक्षण बिन्दु दोनों विवर्तन उत्पन्न करने वाले द्वारक या अवरोध से सीमित दूरी पर स्थित होते हैं तो विवर्तन फ्रेनल विवर्तन कहलाता है। फ्रेनल विवर्तन में आपतित व विवर्तित तरंगाग्र गोलीय अथवा बेलनाकार होते हैं (चित्र (12.19))।
(b) फ्रॉनहॉफर विवर्तन (Fraunhoffer Diffraction) – जब प्रकाश स्रोत एवं प्रेक्षण बिन्दु दोनों की विवर्तन उत्पन्न करने वाले अवरोध या द्वारक से प्रभावी दूरी अनन्त हो अर्थात् आपतित तथा विवर्तित तरंगाग्र दोनों समतल तरंगाग्र हों तो इस प्रकार का विवर्तन फ्रॉनहॉफर विवर्तन कहलाता है (चित्र (12.20))।
RBSE Class 12 Physics Chapter 12 निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिकाओं के सिद्धान्त के आधार पर प्रकाश के अपवर्तन की घटना समझाइये और स्नेल के नियम का निगमन कीजिए।
उत्तर:
हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिका सिद्धान्त से अपवर्तन की व्याख्या (Explanation of Refraction on the basis of Huygens’ Theory of Secondary Wavelets)
चित्र (12.5) में xx’ दो माध्यमों की सीमा रेखा है। पहले माध्यम में तरंग की चाल v1 है और दूसरे माध्यम में तरंग की चाल v2 है। माना कोई समतल ।
तरंगाग्र AB पहले माध्यम में v1 वेग से चलकर दूसरे माध्यम के पृष्ठ पर आपतन कोण i पर आपतित होता है। जैसे ही तरंगाग्र का बिन्दु A दूसरे माध्यम के पृष्ठ पर पहुँचता है, द्वितीयक तरंगिकाएँ बननी शुरू हो जाती हैं जो दूसरे माध्यम में v2 वेग से आगे बढ़ती हैं। जैसे-जैसे तरंगाग्र
के शेष बिन्दु दूसरे माध्यम के पृष्ठ पर टकराते जाते हैं, द्वितीयक तरंगिकाएँ बननी आरम्भ हो जाती हैं और जब B बिन्दु B’ तक पहुँचता है तब तक A पर बनने वाली तरंगिकाएँ A’ तक पहुँच जाती हैं। इस प्रकार A’B’ अपवर्तित तरंगाग्र प्राप्त होता है।
यदि B को B’ तक या A को A’ तक पहुँचने में लगा समय t हो तो
अपवर्तन कोण का मान आपतन कोण से अधिक होगा। यदि आपतन कोण को बढ़ाते जायें तो एक निश्चित आपतन कोण (ic – क्रान्तिक कोण) के लिये = 90° हो जायेगा। इस आपतन कोण से अधिक आपतन कोण के लिए पूर्ण आन्तरिक परावर्तन (Total internal reflection) की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। इस स्थिति में
प्रश्न 2.
हाइगेन्स के तरंग सिद्धान्त से प्रकाश के परावर्तन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिका सिद्धान्त से तरंगों के परावर्तन की व्याख्या (Explanation of Reflection on the basis of Huygens’ Theory of Secondary Wavelets)
माना AB एक समतल तरंगाग्र है जो आपतन कोण i से परावर्तक पृष्ठ पर आपतित होता है। तरंगाग्र की चाल v है। सबसे पहले तरंगाग्र का A बिन्दु परावर्तक तल पर पहुँचता है। जैसे ही A बिन्दु परावर्तक पर पहुँचता है, द्वितीयक तरंगिकाएँ बननी आरम्भ हो जाती हैं और तरंगाग्र उसी चाल (v) से ही आगे बढ़ती हैं। इसके बाद तरंगाग्र AB के शेष बिन्दु परावर्तक पर पहुँचते रहते हैं और द्वितीयक तरंगिकाएँ बनती रहती हैं। जब तरंगाग्र का बिन्दु B परावर्तक के B’ तक पहुँचता है तब तक A पर बनने वाली तरंगिकाएँ A’ तक पहुँच जाती हैं। इस प्रकार A’B’ परावर्तित तरंगाग्र प्राप्त होता है।
प्रश्न 3.
प्रकाश के व्यतिकरण की विश्लेषणात्मक विवेचना करते हुए संपोषी एवं विनाशी व्यतिकरण की शर्ते बताइये।
उत्तर:
दो तरंगों का व्यतिकरण (Interference of Two Waves)
“जब समानं आवृत्ति की दो तरंगें दो कला सम्बद्ध स्रोतों (Coherent sources) से एक ही माध्यम में एक ही दिशा में चलकर अध्यारोपण करती हैं तो अध्यारोपण के क्षेत्र में सामान्यतः परिणामी तरंग की तीव्रता दोनों तरंगों की अलग-अलग तीव्रताओं के योग से भिन्न होती है। कुछ स्थानों पर परिणामी तीव्रता दोनों तरंगों की अलग-अलग तीव्रताओं के योग से अधिक होती है और कुछ स्थानों पर कम होती है। अध्यारोपण के क्षेत्र में परिणामी तीव्रता में इस उतार-चढ़ाव उत्पन्न होने की घटना को व्याकरण कहते हैं।”
जिन स्थानों पर परिणामी तीव्रता दोनों तीव्रताओं के योग से अधिक | होती है, वहाँ पर होने वाले व्यतिकरण को रचनात्मक या संपोषी व्यतिकरण (Constructive Interference) कहते हैं और जिन स्थानों पर परिणामी तीव्रता दोनों तरंगों की अलग-अलग तीव्रताओं के योग से कम होती है, वहाँ पर होने वाले व्यतिकरण को विनाशी व्यतिकरण (Destructive Interference) कहते हैं।
प्रश्न 4.
प्रकाश के विवर्तन से आप क्या समझते हैं ? प्रकाश तरंगों की अपेक्षा ध्वनि तरंगों में विवर्तन अधिक सरलता से क्यों देखा जा सकता है ? फ्रेनल विवर्तन एवं फॉनसँफर विवर्तन की तुलना कीजिए।
उत्तर:
विवर्तन (Diffraction)
प्रकाश का विवर्तन (Diffraction of Light) प्रकाश के मार्ग में मौजूद किसी रुकावट के किनारों से प्रकाश-तरंगों का रुकावट की ज्यामितीय छाया की ओर मुड़ जाना ही प्रकाश का विवर्तन कहलाता है।” इस प्रकार रुकावट के कारण प्रकाश अपने ऋजुरेखीय गमन से विचलित हो जाता है। विचलन बढ़ता जाता है जैसे-जैसे रुकावट का
आकार छोटा होता जाता है। जिस समय रुकावट का आकार प्रकाश के तरंगदैर्घ्य के क्रम का होता है तो प्रकाश का विवर्तन सबसे अधिक होता है। चित्र (12.18) में प्रदर्शित विवर्तन की तीन स्थितियों में सबसे अच्छा विवर्तन अर्थात् सुपरिभाषित विवर्तन तब होता है जब स्लिट की चौड़ाई न्यूनतम (a= 1.5λ) होती है।
चित्र 12.18 से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे स्लिट की चौड़ाई घटती जाती है, वैसे-वैसे विवर्तन को फैलाव बढ़ता जाता है।
इस प्रकार निष्कर्ष यह निकलता है कि विवर्तन के लिए सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि रुकावट का आकार तरंगों के तरंगदैर्घ्य के क्रम का होना चाहिए।
चूँकि विवर्तन भी तरंग, गति को लक्षण है, अतः यह सभी प्रकार की तरंगों के साथ परिलक्षित होता है। ध्वनि-तरंगों की तरंगदैर्ध्य काफी बड़ी होती हैं। अत: इनका विवर्तन व्यावहारिक जीवन में आसानी से अनुभव किया जा सकता है। जैसे-दरवाजों, खिड़कियों आदि के किनारों से ध्वनि-तरंगों का विवर्तन हो जाता है लेकिन प्रकाश-तरंगों की तरंगदैर्घ्य बहुत छोटी होती है। अतः इनका विवर्तन देखने के लिए प्रयोगशाला में विशेष प्रबन्ध करना पड़ता है। प्रकाश का विवर्तन ब्लेड की तीक्ष्ण धार एवं सुई की नोंक आदि से ही सम्भव है।
फ्रेनल (Fresnel) के अनुसार, “विवर्तन उन द्वितीयक तरंगिकाओं के अध्यारोपण से होने वाले व्यतिकरण का परिणाम है जो एक ही तरंगाग्र के उस भाग से चलती हैं जो रुकावट द्वारा रोका नहीं जाता है |
ध्वनि एवं प्रकाश के विवर्तन की तुलना (Comparison of Diffraction of Sound and Light)
विवर्तन तरंगगति का अभिलक्षण है, अतः यह प्रकाश तरंगों एवं ध्वनि तरंगों दोनों में परिलक्षित होता है। विवर्तन के लिए, “सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि रुकावट का आकार तरंगों के तरंगदैर्घ्य के क्रम का होना चाहिए।” चूँकि ध्वनि तरंगों की तरंगदैर्घ्य बड़ी होती है अतः ध्वनि तरंगों का विवर्तन व्यावहारिक जीवन में आसानी से परिलक्षित होता है जैसे दीवारों, दरवाजों, खिड़कियों आदि के किनारों से ध्वनि का विवर्तन हो जाता है। इसीलिए किसी दीवार के पीछे बैठा व्यक्ति दूसरी ओर से उत्पन्न ध्वनि को सुन लेता है। इसके विपरीत प्रकाश की तरंगदैर्ध्य अत्यन्त छेटी होने के कारण प्रकाश का विवर्तन देखने के लिए प्रयोगशाला में विशेष प्रबन्ध करना पड़ता है। प्रकाश का विवर्तन ब्लेड की धार एवं सुई की नोक आदि से ही सम्भव है।
विवर्तन के प्रकार फ्रेनल तथा फ्रॉन हॉफर विवर्तन
(Types of Diffraction : Fresnel and Fraun hoffer Diffraction)
प्रकाश का विवर्तन दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-
(a) फ्रेनल विवर्तन (Fresnel’s Diffraction) – जब प्रकाश-स्रोत तथा प्रेक्षण बिन्दु दोनों विवर्तन उत्पन्न करने वाले द्वारक या अवरोध से सीमित दूरी पर स्थित होते हैं तो विवर्तन फ्रेनल विवर्तन कहलाता है। फ्रेनल विवर्तन में आपतित व विवर्तित तरंगाग्र गोलीय अथवा बेलनाकार होते हैं (चित्र (12.19))।
(b) फ्रॉनहॉफर विवर्तन (Fraunhoffer Diffraction) – जब प्रकाश स्रोत एवं प्रेक्षण बिन्दु दोनों की विवर्तन उत्पन्न करने वाले अवरोध या द्वारक से प्रभावी दूरी अनन्त हो अर्थात् आपतित तथा विवर्तित तरंगाग्र दोनों समतल तरंगाग्र हों तो इस प्रकार का विवर्तन फ्रॉनहॉफर विवर्तन कहलाता है (चित्र (12.20))।
प्रश्न 5.
एकल झिरी से फ्रॉनॉफर विवर्तन को समझाइये।
उत्तर:
एकल झि के कारण फ्रॉनहॉफर विवर्तन
(Diffraction of Light at a Single Slit)
चित्र 12.21 (a) में एकल रेखा-छिद्र से विवर्तन प्रतिरूप देखने की। व्यवस्था एवं चित्र 12.21 (b) में दिखाई देने वाला विवर्तन प्रतिरूप दिखाया गया है। रेखा-छिद्र प्राप्त करने के लिए काले पेंट से रंगी हुई काँच की प्लेट पर ब्लेड की तीक्ष्ण धार से एक पतली रेखा खींच लेते हैं। यही रेखा, रेखा-छिद्र का कार्य करती है। इस स्लिट युक्त प्लेट को एक सीधे एवं ऊध्र्वाधर तन्तु वाले लैम्प से कछ मीटर की दूरी पर चित्र 12.21 (a) की भाँति रखते हैं। स्लिट से लैम्प की अधिक दूरी इसलिए रखी जाती है ताकि स्लिट पर समान्तर किरण पुंज आपतित हो। स्लिट के पीछे की तरफ से स्लिट को देखने पर हमें चित्र 12.21 (b) की भाँति ‘विवर्तन प्रतिरूप’ दिखाई देता है अर्थात् हमें एक तन्तु दिखाई न देकर बीच में एक श्वेत चौड़ी पट्टी दिखाई देती है जिसके दोनों ओर तीन-चार रंगीन परन्तु कम चौड़ी पट्टियाँ दिखाई देती हैं। इन पट्टियों की तीव्रताएँ क्रमशः
घटती जाती हैं। इन रंगीन पट्टियों के मध्य बढ़ती चौड़ाई की अदीप्त पट्टियाँ होती हैं। रेखा-छिद्र जितना बारीक होता है, ‘विवर्तन प्रतिरूप’ (Diffraction pattern) उतना ही अधिक फैला हुआ होता है तथा बीच की दीप्त पट्टी भी उतनी ही अधिक फैली होती है। विवर्तन प्रतिरूप के बनना यह प्रदर्शित करता है कि जब प्रकाश रेखा-छिद्र से होकर गुजरता है तो रेखा-छिद्र के किनारों पर थोड़ा-सा मुड़ जाता है।
यदि रेखा-छिद्र को चौड़ा करते जायें तो विवर्तन प्रतिरूप का फैलाव कम होता जाता है और धीरे-धीरे एक निश्चित स्लिट चौड़ाई के बाद रंगीन पट्टियों का दिखाई देना बन्द हो जाता है और एक पतली रेखा दिखाई देने लगती है अर्थात् स्लिट से होकर प्रकाश संचरण ऋजुरेखीय हो जाता है। स्पष्ट है कि विवर्तन का होना आपतित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य के सापेक्ष रेखा-छिद्र की चौड़ाई पर निर्भर करता है। यदि रेखा-छिद्र की चौड़ाई आपतित प्रकाश की तरंगदैर्ध्य की कोटि की है तो विवर्तन होगा अन्यथा विवर्तन उपेक्षणीय होगा।
ज्यामितीय व्यवस्था (Geometrical Arrangement)
एकल रेखा-छिद्र द्वारा विवर्तन की प्रयोग व्यवस्था चित्र (12.22) में प्रदर्शित है। s एक एकवर्णी प्रकाश-स्रोत है जिसे एक उत्तल लेन्स L के प्रथम फोकस पर रखा गया है ताकि लेन्स से समान्तर किरण पुंज निकल कर एक समतल तरंगाग्र WW’ की रचना कर सके। यह समतल तरंगाग्र e चौड़ाई के एक स्लिट AB पर आपतित होता है। जैसे ही तरंगाग्र स्लिट पर आपतित होता है तो हाइगेन्स के तरंग सिद्धान्त के अनुसार तरंगाग्र का प्रत्येक बिन्दु द्वितीयक तरंगिकाओं के स्रोत की भाँति कार्य करने लगता है। और इनसे द्वितीयक तरंगिकाएँ निकलने लगती हैं। इन विवर्तित किरणों को लेन्स L2 द्वारा पर्दै YY’ पर फोकस कर लिया जाता है। स्लिट से एक निश्चित कोण पर विवर्तित सभी किरणें पर्दे के एक बिन्दु पर फोकस होती हैं। इस प्रकार पर्दे पर विवर्तन प्रतिरूप प्राप्त हो जाता है।
व्याख्या (Explanation)-θ = 0 कोण पर विवर्तित होने वाली तरंगें पर्दे के केन्द्रीय बिन्दु P0 पर फोकस होती हैं अर्थात् P0 पर अध्यारोपित होती हैं। ये सभी समान कला में होती हैं, अतः P0 पर दीप्त बैण्ड प्राप्त होता है। यह एक चौड़ी दीप्त पट्टी होती है। इसे केन्द्रीय दीप्त बैण्ड कहते हैं। इस बैण्ड के दोनों ओर घटती हुई तीव्रता के अदीप्त व दीप्त बैण्ड एकान्तर क्रम में प्राप्त होते हैं। रेखा-छिद्र की चौड़ाई e का मान जितना कम होता है, उसका विवर्तन प्रतिरूप उतना ही अधिक फैला होता है तथा केन्द्रीय बैण्ड उतना ही अधिक चौड़ा होता है।
P0 पर बना दीप्त बैण्ड ‘केन्द्रीय उच्चिष्ठ’ अथवा ‘मुख्य उच्चिष्ठ’ या ‘प्रधान उच्चिष्ठ’ (Principal maxima) कहलाता है तथा इसके दोनों ओर घटती तीव्रता के दीप्त बैण्ड ‘गौण उच्चिष्ठ’ (Secondary maxima) कहलाते हैं। दो क्रमागत दीप्त बैण्डों के बीच स्थित अदीप्त बैण्डों को ‘निम्निष्ठ’ (minima) कहते हैं।
प्रकाश संचरण दिशा से θ कोण पर विवर्तित तरंगिकाएँ पर्दे पर केन्द्रीय बिन्दु P0 से ऊपर बिन्दु P पर फोकस होती हैं। ये तरंगिकाएँ रेखा-छिद्र AB के विभिन्न भागों से एक ही कला में चलती हैं परन्तु P पर भिन्न-भिन्न कलाओं में (पथान्तर के अनुसार) पहुँचकर परस्पर अध्यारोपित होती हैं। चित्र (12.23) में AG किरण BG पर लम्ब डाला गया है। तल AG से पर्दे के P बिन्दु के लिए प्रकाशिकीय पथ समान है। अतः रेखाछिद्र के बिन्दु A तथा B से चलने वाली तरंगिकाओं के मध्य पथान्तर BG = है। माना पथान्तर BG = λ, जहाँ λ प्रकाश की तरंगदैर्घ्य है और AB
की चौड़ाई को n बराबर भागों में बाँट लिया जाता है। प्रत्येक अर्द्ध भाग के संगत बिन्दुओं से चलने वाली तरंगिकाओं के बीच पथान्तर λ/2 होगी। अतः वे P पर अदीप्त बैण्ड उत्पन्न करेंगी। यह प्रथम निम्निष्ठ होगा जिसके लिए BG = λ. इस तथ्य को चित्र (12.23) की सहायता से आसानी से समझा जा सकता है। चूंकि A व B से उत्सर्जित तरंगिकाओं के मध्य पर्दे के P बिन्दु पर पहुँचने पर पथान्तर λ है तो A तथा C से चली द्वितीयक तरंगिकाओं के मध्य पथान्तर λ/2 होगा। इसी प्रकार C व B से चली तरंगिकाओं के मध्य पथान्तर λ/2 होगा।
स्पष्ट है कि तरंगाग्र के अर्द्धभाग AC के प्रत्येक बिन्दु के संगत निचले अर्द्धभाग CB में एक बिन्दु होगा जिसके लिए पथान्तर का मान λ/2 होगा। इसी प्रकार के बिन्दुओं का एक युग्म L व M दिखाया गया है। इस प्रकार P बिन्दु पर तरंगाग्र के भाग AC व CB से चलने वाली तरंगिकाएँ विपरीत कला में पहुँचती हैं और प्रथम निम्निष्ठ उत्पन्न करती हैं।
जबकि m = 0 मुख्य उच्चिष्ठ की स्थिति के संगत है।
यहाँ समीकरण (1) में ± चिह्न यह दर्शाता है कि निम्निष्ठ P0 के दोनों ओर बनते हैं।
दो क्रमागत निम्निष्ठों के बीच कम चमकीले उच्चिष्ठ प्राप्त होते हैं, जिन्हें गौण उच्चिष्ठ (Secondary maxima) कहते हैं। इनकी तीव्रता प्रधान उच्चिष्ठ के दोनों ओर चित्र 10.24 के अनुसार बदलती है।
यदि θ बहुत छेटा है तो
प्रश्न 6.
ध्रुवण किसे कहते हैं ? विद्युत सदिश की सहायता से धुवण को समझाइये। स्पष्ट कीजिए कि यह अनुप्रस्थ तरंगों का ही गुण क्यों है ?
उत्तर:
धुवण एवं प्रकाश का धुवण (Polarisation and Polarisation of Light)
(a) अधुवित तथा धुवित तरंग (Unpolarised and Polarised Waves)
तरंगें दो प्रकार की होती हैं-अनुदैर्ध्य तरंगें तथा अनुप्रस्थ तरंगें। अनुदैर्ध्य तरंग में माध्यम के कण तरंग संचरण की दिशा में कम्पन करते हैं। तात्पर्य यह है कि तरंग के चलने की दिशा में खींचे जा सकने वाले समस्त सम्भव तलों में कम्पन ठीक एक जैसे होते हैं। इस प्रकार भी कहा। जा सकता है कि अनुदैर्ध्य तरंग संचरण-दिशा के चारों ओर पूर्णतः सममित (Symmetrical) होती है। इसके विपरीत, अनुप्रस्थ तरंग में माध्यम के कण तरंग-संरचण की दिशा के लम्बवत् कम्पन करते हैं। उदाहरण के लिए, मान लीजिए तरंग Z-अक्ष के अनुदिश (कागज के तल के लम्बवत्) चल रही है। ऐसी दशा में माध्यम के कण Z-अक्ष के लम्बवत् तल XY में सभी दिशाओं में कम्पन कर सकते हैं। ये कम्पन X-दिशा में या Y-दिशा में या X व Y दिशा से किसी भी कोण पर हो सकते हैं (चित्र (12.28))। यदि तरंग
ऐसी है जिसमें माध्यम के कणों के कम्पन तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में सभी दिशाओं में समान रूप से होते हैं तो तरंग को अघुवित तरंग कहते हैं। परन्तु यदि ये कम्पने XY तल में सभी दिशाओं में समान रूप से न होकर किसी एक निश्चित दिशा में होते हैं तो तरंगों को ध्रुवित कहा जाता है। अतः यदि तरंग ऐसी है जिसमें माध्यम के कणों के कम्पन संचरण-दिशा के लम्बवत् तल में किसी एक निश्चित दिशा में होते हैं तो तरंग को ध्रुवित तरंग कहा जाता है। अतः जब कणों के कम्पन तरंग-संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में केवल एक दिशा में होते हैं तब हम इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि अनुप्रस्थ तरंग में कम्पन, तरंग के चलने की दिशा के चारों ओर असममित (asymmetrical) है। अनुप्रस्थ तरंग द्वारा तरंग के चलने की दिशा के चारों ओर दोलनों में सममिति (Symmetry) की कमी प्रदर्शित करना ध्रुवण कहलाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि अनुदैर्ध्य तरंगों में ध्रुवण सम्भव नहीं है, केवल अनुप्रस्थ तरंगों में ही ध्रुवण सम्भव है। इसे चित्र 12.29 में प्रदर्शित प्रयोग द्वारा भी देखा जा सकता है।
प्रयोग में S1 व S2 दो स्लिटों से होकर कोई डोरी गुजारी जाती है जो B सिरे पर बँधी है और A सिरे को हाथ से पकड़कर उसमें अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न की जाती हैं। जब दोनों स्लिटें परस्पर समान्तर होती हैं [चित्र (12.29) (a)] तो A पर उत्पन्न अनुप्रस्थ कम्पन दोनों स्लिटों को पार करके B तक पहुँच जाते हैं। जब दोनों स्लिटें परस्पर लम्बवत् (चित्र (12.29) (b)] होती हैं। तो A पर उत्पन्न कम्पन्न S, को तो पार कर जाते हैं लेकिन S, को पार नहीं कर पाते हैं। यह व्यवहार अनुप्रस्थ कम्पनों के कारण होता है। स्लिट s, इस बात की परीक्षा करती है कि S, से निर्गत कम्पन ध्रुवित हैं अथवा नहीं, अतः S, को विश्लेषक (Analyser) कहते हैं और S, को ध्रुवक (Polariser) कहते हैं क्योंकि इससे केवल इसके अनुदिश होने वाले कम्पन ही आर-पार निकल पाते हैं।
यदि डोरी में अनुदैर्ध्य तरंगें उत्पन्न की जाये तो S1 व S2 स्लिटें चाहे जिस स्थिति में रहें, अनुदैर्ध्य कम्पन उन्हें पार कर जायेंगे अर्थात् स्लिटों | की स्थिति का अनुदैर्ध्य कम्पनों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। | इस प्रयोग से यह सिद्ध होता है कि केवल अनुप्रस्थ तरंगों में ही ध्रुवण सम्भव है, अनुदैर्ध्य तरंगों में नहीं।
(b) प्रकाश का धुवण (Polarisation of Light)
प्रकाश द्वारा व्यतिकरण एवं विवर्तन प्रदर्शित करना यह प्रमाणित करता है कि प्रकाश की प्रकृति, तरंग प्रकृति है लेकिन प्रकाश तरंग अनुदैर्घ्य हैं अथवा अनुप्रस्थ, यह जानकारी हमें ध्रुवण की घटना से ही मिलती है। ध्रुवण की घटना हमें बताती है कि प्रकाश-तरंगें अनुप्रस्थ होनी चाहिए क्योंकि ध्रुवण अनुदैर्ध्य तरंगों में सम्भव नहीं है। सन् 1690 में हाइगेन्स ने ध्रुवण की घटना की खोज की और प्रकाश-तरंगों को अनुदैर्ध्य मानने का अपना प्रारम्भिक विचार उन्हें त्यांगना पड़ा क्योंकि तरंगों को अनुदैर्ध्य मानकर ध्रुवण की व्याख्या सम्भव नहीं है। सन् 1830 में फ्रेस्नेल (Fresnel) ने यह प्रमाणित किया कि प्रकाश तरंगें अनुप्रस्थ होती हैं।
प्रकाश-तरंगों की अनुप्रस्थ प्रकृति का प्रायोगिक प्रमाण- प्रकाश-तरंग की अनुप्रस्थ प्रकृति प्रमाणित करने के लिए हम टूर्मेलीन के दो क्रिस्टल N1 व N2 लेते हैं। टूर्मेलीन का रासायनिक नाम ऐलुमिनियम बोरॉन सिलिकेट है और यह प्रकाश के लिए पारदर्शी होता है। इन क्रिस्टलों को इस प्रकार काटा जाता है कि उनकी असें उनके धरातल में होती हैं। साधारण प्रकाश जब | एक क्रिस्टल N1 पर अभिलम्बवत् डाला जाता है तो क्रिस्टल से निर्गत प्रकाश कुछ-कुछ हरे रंग का दिखाई पड़ता है। अब यदि क्रिस्टल N1 को प्रकाश संचरण के परितः घुमाया जाय तो उससे निर्गत प्रकाश की तीव्रता में कोई अन्तर नहीं पड़ता है। इससे यह ज्ञात होता है कि प्रकाश किरण के चलने की दिशा के लम्बवत् तलों में प्रकाश तरंग के कम्पन सभी दिशाओं में सममित रूप से (Symmetrical) होते हैं।
अब क्रिस्टलों N1 व N2 को इस प्रकार रखा जाता है कि दोनों की प्रकाशिक असें परस्पर समान्तर हों (चित्र (12.30) (a)]। जब साधारण प्रकाश को क्रिस्टल N1 पर अभिलम्बवत् डाला जाता है तो N2 से निर्गत प्रकाश की तीव्रता अधिकतम होती है। अब यदि क्रिस्टल N2 को उसके ही तल में धीरे-धीरे घुमाया जाये तो N2 से निर्गत प्रकाश की तीव्रता लगातार कम होती जाती है और जब दोनों क्रिस्टलों की प्रकाशिक अक्षें
परस्पर लम्बवत् हो जाती हैं तो N2 से निर्गत प्रकाश की तीव्रता न्यूनतम (शून्य) हो जाती है एवं दृष्टि क्षेत्र में अंधेरा हो जाता है | चित्र (12.30) (b)]। अब यदि N2 को उसी दिशा में घुमाते रहें तो उससे निर्गत प्रकाश की तीव्रता बढ़ने लगती है और दोनों क्रिस्टलों की अचें परस्पर समान्तर | हो जाती हैं तो पुनः N2 से निर्गत प्रकाश की तीव्रता अधिकतम हो जाती है। यदि N2 को स्थिर रखकर N1 को घुमाया जाये तो भी ये ही प्रेक्षण प्राप्त होते हैं। इस प्रकार इस प्रयोग से स्पष्ट है कि प्रकाश केवल अनुप्रस्थ तरंगों के रूप में चलता है अन्यथा यदि प्रकाश अनुदैर्ध्य तरंगों के रूप में चलता होता है तो क्रिस्टल N2 से निर्गत प्रकाश की तीव्रता सदैव एकसमान रहती है। प्रकाश की इस तीव्रता पर N1 व N2 को एक-दूसरे के सापेक्ष घुमाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
पहले क्रिस्टल N1 को ‘धुवक’ (polariser) कहते हैं क्योंकि यह प्रकाश का ध्रुवण करता है और दूसरे क्रिस्टल N2 को विश्लेषक (analyser) कहते हैं, क्योंकि यह क्रिस्टल ही वह परीक्षा करता है कि N1 से निर्गत प्रकाश ध्रुवित है या नहीं।
टूर्मेलीन प्रयोग की व्याख्या-मैक्सवेल के विद्युत चुम्बकीय तरंग | सिद्धान्त के अनुसार प्रकाश तरंगें यान्त्रिक तरंगें न होकर विद्युत-चुम्बकीय तरंगें होती हैं जिनके संचरण के लिए काल्पनिक माध्यम ईथर की आवश्यकता पड़ती है। इन तरंगों में विद्युत क्षेत्र वेक्टर एवं चुम्बकीय क्षेत्र वेक्टर दोनों परस्पर लम्बवत् होते हैं तथा दोनों तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में कम्पन करते हैं (चित्र (12.31))। प्रकाश-तरंगों का प्रकाशीय प्रभाव वैद्युत क्षेत्र वेक्टर के कम्पनों के कारण होता है। चूंकि वैद्युत केक्टर एवं चुम्बकीय क्षेत्र वेक्टर के कम्पन तरंग संचरण दिशा के लम्बवत् तल में होते हैं, अत: विद्युत चुम्बकीय तरंगों की प्रकृति अनुप्रस्थ होती है।
अब हम टूर्मलीन क्रिस्टल के साथ किये गये प्रयोग की व्याख्या विद्युत-चुम्बकीय तरंग सिद्धान्त के आधार पर करेंगे। चूंकि प्रकाश तरंगें अनुप्रस्थ होती हैं, अतः साधारण प्रकाश में विद्युत क्षेत्र वेक्टर (जिसे हम प्रकाश वेक्टर भी कहते हैं) के कम्पन तरंग संचरण की दिशा के परितः सभी दिशाओं में समान रूप से उपस्थित रहते हैं अर्थात् प्रकाश वेक्टर के दोलन सममिति (symmetry) में होते हैं। जब साधारण प्रकाश अर्थात् अधुवित प्रकाश एक टूर्मेलीन क्रिस्टल से गुजारा जाता है तो क्रिस्टल के घूमने पर निर्गत प्रकाश की तीव्रता में कोई परिवर्तन नहीं होता क्योंकि क्रिस्टल की सभी स्थितियों में उसकी अक्ष के समान्तर प्रकाश वेक्टर उपलब्ध रहता है। यहाँ स्मरणीय तथ्य यह है कि क्रिस्टल द्वारा उसके अक्ष के अनुदिश कम्पन ही पारगत होते हैं, शेष रुक जाते हैं। इस प्रकार क्रिस्टल से निर्गत प्रकाश में कम्पन केवल एक ही तल में होते हैं, अतः इसे समतल ध्रुवित प्रकाश (plane polarised light) कहते हैं। स्पष्ट है कि क्रिस्टल द्वारा निर्गत प्रकाश में प्रकाश वेक्टर के दोलनों की सममिति में कमी उत्पन्न हे जाती है। इस घटना को प्रकाश का ध्रुवण कहते हैं।
जब क्रिस्टल N1 से निर्गत प्रकाश (अर्थात् समतल ध्रुवित प्रकाश) क्रिस्टल N2 पर आपतित होता है तो N2 द्वारा प्रकाश वेक्टर के दोलन तभी पारगत होते हैं जब N1 व N2 दोनों क्रिस्टलों की प्रकाशिक अक्षें परस्पर समान्तर होती हैं। इसी स्थिति में N2 से निर्गत प्रकाश की तीव्रता अधिकतम होती है। क्रिस्टल N2 को उसके ही तल में धीरे-धीरे घुमाने पर N1 से निर्गत कम्पनों के वे ही घटक (components) N2 से पारगत होते हैं जो N2 की प्रकाश अक्ष के अनुदिश होते हैं। इसीलिए N2 से निर्गत प्रकाश की तीव्रता N2 को घुमाने पर कम होने लगती है और जब N1 वे N2 की अक्षें परस्पर लम्बवत् हो जाते हैं तो N2 से निर्गत प्रकाश की तीव्रता शून्य हो जाती है। इस स्थिति में दोनों क्रिस्टल परस्पर ‘क्रॉसित’ (crossed) कहलाते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि निर्गत प्रकाश की तीव्रता दोनों क्रिस्टल के अक्षों के झुकाव कोण पर निर्भर करती है।
प्रश्न 7.
धुवित प्रकाश उत्पन्न करने की चार विधियों के नाम लिखिए। द्वि-अपवर्तन को परिभाषित कीजिए एवं इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ध्रुवित प्रकाश उत्पन्न करने की विधियाँ-
(i) परावर्तन द्वारा
(ii) अपवर्तन द्वारा
(iii) द्वि-अपवर्तन द्वारा
(iv) द्वि-वर्णता द्वारा।
द्वि-अपवर्तन द्वारा ध्रुवण (Polarisation by Double Refraction)
कुछ क्रिस्टल; जैसे-कैल्साइट, क्वार्ट्ज़ ऐसे क्रिस्टल होते हैं कि जब उन पर कोई प्रकाश किरण आपतित होती है तो वह किरण क्रिस्टल में दो अपवर्तित किरणों में विभाजित हो जाती है (चित्र (12.36)) । इस घटना को द्वि-अपवर्तन कहते हैं। इनमें से एक किरण अपवर्तन के
नियमों का पालन करती है। इसे साधारण किरण (Ordinary ray) या O-किरण कहते हैं। दूसरी अपवर्तित किरण अपवर्तन के नियमों का पालन नहीं करती है, इसे असाधारण किरण (extraordinary ray) या E-किरण कहते हैं। ये दोनों किरणें परस्पर लम्बवत् तलों में समतल ध्रुवित होती हैं। साधारण किरण में कम्पन, आपतन तल के लम्बवत् तल में और असाधारण किरण में कम्पन आपतन तल में होते हैं। व्यवहार में इन दोनों अपवर्तित समतल ध्रुवित किरणों में से एक को किसी विधि द्वारा अलग कर दिया जाता है जिससे कि क्रिस्टल में से समतल ध्रुवित प्रकाश निकल सके।
द्वि-वर्णता-टूर्मेलीन क्रिस्टल पर आपतित साधारण प्रकाश की किरण क्रिस्टल के भीतर दो ध्रुवित अपवर्तित किरणों में बँट जाती है। इनमें से एक किरण क्रिस्टल द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। टूर्मेलीन क्रिस्टल द्वारा वरणात्मक अवशोषण की इस प्रक्रिया को द्वि-वर्णता कहते हैं।
प्रश्न 8.
परावर्तन द्वारा समतल धुवित प्रकाश किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है ? बूस्टर को नियम क्या है ? सिद्ध कीजिए कि जब एक समतल पारदर्शी पट्टिका पर प्रकाश धुवण कोण पर आपतित होता है तो परावर्तित और अपवर्तित किरणें परस्पर लम्बवत् होती है।
उत्तर:
परावर्तन द्वारा (Polarisation by Reflection) – सन् 1808 में फ्रांसीसी इंजीनियर ‘मैलस’ (Malus) ने यह ज्ञात किया कि जब साधारण प्रकाश किसी पारदर्शी माध्यम (जैसे-काँच) के पृष्ठ से परावर्तित होता है, तो वह आंशिक रूप से समतल ध्रुवित हो जाता है। सन् 1811 में ‘बूस्टर’ (Brewster) ने इसका विस्तार से अध्ययन किया और यह बताया कि परावर्तित प्रकाश में ध्रुवित प्रकाश की मात्रा आपतन कोण पर निर्भर करती है। आपतन कोण बदलने पर एक ऐसा विशेष आपतन कोण आता है जिस पर परावर्तित प्रकाश पूर्णतः समतल ध्रुवित होता है तथा इसके कम्पन आपतन तल के लम्बवत् होते हैं। आपतन कोण के इस विशेष मान को बूस्टर कोण’ (Brewster’s angle) अथवा ‘ध्रुवण कोण’ (Angle of polarisation) कहते हैं और इसे प्रायः ip से प्रदर्शित करते हैं। पानी के लिए इसका मन लगभग 53° और काँच के लिए 57° होता है। यदि पारदर्शी माध्यम का अपवर्तनांक µ हो तो बूस्टर के अनुसार µ एवं ip in में निम्नलिखित सम्बन्ध होता है-
µ = tan ip … (1)
इस सूत्र को बूस्टर का नियम’ कहते हैं।
ध्रुवण कोण पर परावर्तित तथा अपवर्तित किरणें QR व QS परस्पर लम्बवत् होती हैं (चित्र 12.34)। इस तथ्य को निम्न प्रकार सिद्ध किया जा सकता है-
माना अपवर्तन कोण r है।
तब स्नेल के नियम से,
प्रश्न 9.
कम्पन तल एवं ध्रुवण तल की परिभाषा दीजिए। मैलस के नियम का उल्लेख कीजिए तथा समान्तर व क्रासित व्यवस्थाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रकाश का चित्रमय निरूपण (Pictorial Representation of Light)
साधारण अथवा अनुवित प्रकाश में विद्युत क्षेत्र वेक्टर के कम्पन तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में प्रत्येक दिशा में समान रूप से होते हैं।
सुविधा की दृष्टि से इन कम्पनों को दो लम्बवंत दिशाओं में विघटित कर लेते हैं-एक तो कागज के तल (या आपतन तल) में तथा दूसरे कागज के तल के लम्बवत् तल में। अधुवित प्रकाश को चित्र 12.32 (a) की भाँति बिन्दुओं (dots) तथा तीर युक्त डैशों (dashes) दोनों की सहायता से दिखाते हैं। समतल ध्रुवित प्रकाश में कम्पन केवल एक ही तल में होते हैं। यदि कम्पन कागज के तल के लम्बवत् हैं तो ध्रुवित प्रकाश को चित्र 12.32 (b) की भाँति केवल बिन्दुओं की सहायता से दिखाते हैं और यदि कम्पन कागज के तल में हैं तो चित्र 12.32 (c) की भाँति तीरयुक्त | डैशों से दिखाते हैं।
कम्पन तल (Plane of Vibration) – समतल ध्रुवित प्रकाश में जिस तल में कम्पन होते हैं, उसे कम्पन तल कहते हैं। चित्र 12.33 में OO’ प्रकाश के गमन की दिशा है और ABCD कम्पन तल है। इस तल में प्रकाश के चलने की दिशा तथा वैद्युत वेक्टर के कम्पन की दिशा दोनों ही स्थित होते हैं।
धुवण को तल (Plane of Polarisation) – वह तल जिसमें प्रकाश संचरण की दिशा स्थित हो और जिसमें कोई कम्पन नहीं होता, ध्रुवण तल कहलाता है। स्पष्ट है कि ध्रुवण तल को कम्पन तल के लम्बवत् होना चाहिए तभी कम्पनों का कोई घटक इस तल में नहीं होगा। चित्र 12.33 में EFGH ध्रुवण तल है।
पोलेरॉइड (Polaroid)
पोलेरॉइड समतल ध्रुवित प्रकाश उत्पन्न करने की एक सरल और सस्ती विधि है। यह एक बड़े आकार की फिल्म होती है जो दो काँच की प्लेटों के बीच रखी होती है। इस फिल्म को तैयार करने के लिए नाइट्रोसेलुलोज (Nitrocellulose) की एक पतली चादर (sheet) पर कुनैन आइडो-सल्फेट या हरपेथाइट के अति सूक्ष्म आकार के क्रिस्टल इस प्रकार बिठा दिये जाते हैं कि सभी क्रिस्टलों की प्रकाशिक अक्षें समान्तर रहें। यह क्रिस्टल तीव्र द्विवर्णक होते हैं जो द्वि-अपवर्तित किरणों में से एक को पूर्णतः अवशोषित कर लेते हैं तथा एक को ध्रुवित प्रकाश के रूप में निर्गत कर देते हैं। प्रत्येक पोलेरॉइड फिल्म में एक अभिलाक्षणिक दिशा होती है, जिसे ‘धुवण दिशा’ (Polarising direction) कहते हैं। चित्र (12.38) में पोलेरॉइड फिल्म की ध्रुवण दिशा समान्तर रेखाओं द्वारा प्रदर्शित की गई है।
जब साधारण प्रकाश की एक किरण पुंज पोलेरॉइड पर आपतित होती है तो ध्रुवण दिशा के लम्बवत् कम्पन अवशोषित हो जाते हैं तथा ध्रुवण दिशा के समान्तर कम्पन पारगत हो जाते हैं। इस प्रकार पोलेरॉइड से समतल भुवित प्रकाश प्राप्त होता है। पोलेरॉइड से निर्गत प्रकाश समतल ध्रुवित है अथवा नहीं, इसकी जाँच एक-दूसरे पोलेरॉइड से की जाती है। जब दोनों पोलेरॉइडों की ध्रुवण दिशाएँ समान्तर होती हैं [चित्र (12.39) (a)] तो पहले पोलेरॉइड से निर्गत प्रकाश दूसरे पोलेरॉइड
से भी पारगत हो जाता है। इसके विपरीत, जब दोनों पोलेरॉइड एक दूसरे से क्रास स्थिति में होते हैं अर्थात् दोनों की ध्रुवण दिशाएँ लम्बवत् होती हैं [चित्र 12.39 (b)] तो पहले पोलेरॉइड से निर्गत प्रकाश दूसरे पोलेरॉइड द्वारा रोक दिया जाता है अर्थात् दूसरे पोलेरॉइड से निर्गत प्रकाश की तीव्रता शून्य होती है। स्पष्ट है कि पोलेरॉइड द्वारा निर्गत प्रकाश समतल ध्रुवित होता है।
पोलेरॉइड से निर्गत प्रकाश की तीव्रता-यदि किसी पोलेरॉइड पर आपतित प्रकाश की तीव्रता I0 हो तो पोलेरॉइड से निर्गत प्रकाश की तीव्रता
I = I0 cos2 θ …. (1)
जहाँ θ, पोलेरॉइड की ध्रुवण दिशा तथा आपतित प्रकाश के विद्युत वेक्टर के बीच का कोण है। इसे ‘मैलस का नियम’ (Malus’s Law) कहते हैं।
अर्थात् ध्रुवण तक विश्लेषण से निर्गत ध्रुवित प्रकाश की तीव्रता उनकी प्रकाशिक अक्षों के मध्य बने कोण की कोज्या के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है।
यदि पोलेरॉइड पर आपतित प्रकाश अध्रुवित है तो इसमें विद्युत वेक्टर अर्थात् प्रकाश वेक्टर के कम्पन प्रकाश संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में सभी दिशाओं में समान रूप से होंगे। अतः समी. (1) में cos2θ का औसत मान रखना होगा जो कि 12 होता है अर्थात्
स्पष्ट है कि इस स्थिति में पोलेरॉइड से निर्गत प्रकाश की तीव्रता आपतित प्रकाश की तीव्रता की आधी हो जाती है।
पोलेरॉइड के उपयोग (Uses of Polaroid)
- पोलेरॉइड की सहायता से त्रिविमीय (Three-dimensional) चित्रों को देखा जा सकता है।
- इनका प्रमुख उपयोग प्रकाश की चकाचौंध से बचने के लिए मोटरगाड़ियों के सामने वाले काँच में किया जाता है।
- पोलेरॉइड का उपयोग वायुयान तथा ट्रेन में प्रवेश करने वाले प्रकाश की तीव्रता को नियन्त्रित करने के लिए भी किया जाता है।
- LCD (Liquid crystal display) भी पोलेरॉइड की क्रिया पर कार्य करता है।
- पोलेरॉइड युक्त ध्रुवमापी से प्रकाशीय घूर्णक पदार्थ जैसे शक्कर के घोल की सान्द्रता ध्रुवण तल के घूर्णन के मापन से ज्ञात की जा सकती है।
- इनका उपयोग धातुओं के प्रकाशिक गुणों का अध्ययन एवं प्रकाशकीय घूर्णक पदार्थों की संरचना ज्ञात करने में किया जाता है।
RBSE Class 12 Physics Chapter 12 आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1.
एक ही आकृति की दो तरंगों के आयाम 2 : 1 अनुपात में है। व्यतिकरण क्षेत्र में कम्पनों के महत्तम व न्यूनतम आयामों तथा तीव्रताओं का अनुपात ज्ञात कीजिए।
हल :
प्रश्न 2.
किसी व्यतिकरण प्रयोग में व 4I तीव्रताओं के दो स्रोतों का उपयोग किया जाता है। उन बिन्दुओं पर तीव्रता ज्ञात कीजिए। जहाँ अध्यारोपण करती हुई दोनों स्रोतों से तरंगों के मध्य कलान्तर (अ) शून्य (ब) π/2(स) π है।
हल :
प्रश्न 3.
दो छिद्रों के मध्य दूरी ज्ञात कीजिए जो 1m दूरी पर रखे | पर्दे पर 1mm चौड़ाई की फ्रिजें बनाते हैं जबकि प्रकाश की तरंगदैर्घ्य 5000A है।
हल :
प्रश्न 4.
5500A तरंगदैर्ध्य का प्रकाश 22 × 10-5cm चौड़े रेखा छिद्र पर अभिलम्बवत् आपतित है। केन्द्रीय अच्चिष्ठ के दोनों ओर प्रथम दो मिनिष्ठों की कोणीय स्थिति ज्ञात कीजिए।
हल :
प्रश्न 5.
दो पोलेरॉइड इस प्रकार रखे हैं कि उनसे निर्गत प्रकाश की तीव्रता महत्तम है। यदि एक पोलेरॉइड को दूसरे के सापेक्ष 30°, 90° से घुमा दिया जाये तो नवीन स्थितियों में निर्गत प्रकाश की तीव्रता अधिकतम तीव्रता का कौन-सा भाग होगी ?
हल :
पहले दोनों पोलेरॉइड समान्तर स्थिति में विन्यस्त हैं अतः दूसरे पोलेरॉइड से निर्गत अधिकतम तीव्रता वही होगी जो प्रथम पोलेरॉइड से निर्गत होगी।
अतः जब θ = 30° तो
निर्गत तीव्रता
प्रश्न 6.
जब सूर्य क्षितिज से 37° कोण पर होता है तो पानी की सतह से परावर्तित प्रकाश पूर्णतः धुवित होता है। पानी का अपवर्तनांक ज्ञात कीजिए।
हल :
∵ पानी से परावर्तित प्रकाश पूर्णत: ध्रुवित है। अतः आपतन कोण ध्रुवण कोण होगा।
प्रश्न 7.
दो ध्रुवक प्लेटों की धुवण दिशाएँ समान्तर हैं जिससे निर्गत प्रकाश की तीव्रता अधिकतम है। इनमें से एक प्लेट को कम से कम कितना घुमाया जाये कि निर्गत प्रकाश की तीव्रता अधिकतम की चौथाई रह जाये ?
हल :