UP Board Class 7 sanskrit | सिंह दिलीपयोः संवाद
UP Board Class 7 sanskrit | सिंह दिलीपयोः संवाद
UP Board Solutions for Class 7 Sanskrit chapter 11 सिंह दिलीपयोः संवाद
शब्दार्थाः- हन्तुम् = मारने के लिए, वृथा = व्यर्थ, महीपाल = राजा, पालितवती = पालन की, त्वक् = त्वचा (पेड़की छाल), उच्छिन्नम् = छील दिया, दुष्कृतेन = दुष्टता से, रक्षणार्थम् = रक्षा करने के लिए, अदिष्टः = आदेशित किया गया, अस्यां गुहायाम् = इस गुफा में, धेनुः = गाय, ममार्थ = मेरे लिये, त्यजतु ( त्यज्) = छोड़िए, परिपालकः = पालन करने वाला, रक्षण गया = बचाना चाहिए, मूर्खत्वम् = मूर्खता, वरम् = श्रेष्ठ, क्षतात् जायते = विपत्ति अथवा चोट से बचाता है, क्षत्रियत्वे नष्टे सति = क्षत्रियता के नष्ट होने पर, कोटिशः = करोड़ों, दातुम = देने के अन्तर्धान हो गया, गृहीता = ली, शरणागतानां परित्राणाय = शरण में आये हुए की रक्षा के लिए, नितराम् = अत्यधिक, आशिषा = आर्शीवाद से, आत्मानुगणं पुत्रम् = अपने जैसा पुत्र।
हिन्दी अनुवाद – महाराज दिलीप सिंह को मारने के लिए धनुष की प्रत्यंचा को खींचकर तैयार होते हैं।
सिंह – (जोर से हँसते हुए) राजा! आपकी मेहनत बेकार है। आप मुझे मारने में समर्थ नहीं हो पाओगे।।
दिलीप – आप कौन हैं? क्या चाहते हैं?
सिंह – मैं भगवान शंकर का सेवक ‘कुम्भोदर’ हूँ। मैं इस गाय को मारूंगा। दिलीप-आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? सिंह- माता पार्वती ने इस देवदारु वृक्ष को पुत्र की तरह पाला है। एक बार एक हाथी के द्वारा इस वृक्ष की छाल छील (उखाड़) दी गयी। हाथी के दुष्कृत्य के कारण माता दु:खी हो गयी। तब में लेकर महादेव के द्वारा इस की रक्षा के लिए मुझे आदेश दिया गया। तब से लेकर (मैं) इस गुफा में स्थित हूँ। आज भाग्यवश यह गाय आ गयी है। इसलिए इस गाय को (मेरे लिए) छोड़ दीजिए।
दिलीप – कुम्भोदर! देवों के देव महादेव जगत के रक्षक और परिपालक हैं। परन्तु यह गुरु की गाय निश्चय ही मेरे द्वारा रक्षा करने योग्य है। इसके लिए इसे छोड़कर मुझे खा लो।
सिंह – (हँसकर) विशाल साम्राज्य, नव यौवने और सुन्दर शरीर को छोड़कर आप क्यों एक गाय की रक्षा के लिए अपने प्राणों को त्यागना चाहते हैं। मूर्खता छोड़ो। गाय के जीवन की अपेक्षा आपको जीवन श्रेष्ठ है। क्योंकि यदि आप जीवित हैं, तो सारी प्रजा का पालन ठीक से होगा।
दिलीप – ‘क्षत (विपत्ति या किसी भी प्रकार की चोट) से बचाता है। इस प्रकार क्षत्रिय कहलाता है। क्षत्रिय होते हुए मेरे द्वारा क्षत्रियत्व के नष्ट होने पर राज्य से या प्राणों से कोई प्रयोजन (उद्देश्य) नहीं है। इसलिए मेरे शरीर को खा लीजिए और इस गाय को छोड़ दो।
सिंह – ऐसा ही हो, अपना शरीर समर्पित कीजिए। (जब राजा सिंह के सामने झुककर अपनी शरीर समर्पित करता है तब सिंह अन्तधीन हो जाता है) :
नन्दिनी गाय – हे राजन्! मेरे द्वारा आपकी परीक्षा ली गयी है। शारणागतों की रक्षा के लिए आपकी अनुपम निष्ठा से मैं बहुत प्रसन्न हूँ। शीघ्र ही तुम्हारी कामना पूर्ण होगी।
अभ्यासः
प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुत पुस्तिकायां च लिखत
नोट – विद्यार्थी स्वयं करें
प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरत
(क) कुम्भोदरः कस्य सेवकः आसीत्?
उत्तर :
कुम्भोदरः भगवतः शङ्करस्य सेवकः आसीत्।
(ख) माता पार्वती के वृक्षं पुत्रवत् पालितवती?
उत्तर – माता पार्वती देवदारुवृक्षं पुत्रवत् पालितवती।
(ग) क्षतात् कः त्रायते?
उत्तर :
क्षतात् क्षत्रियः त्रायते।
(घ) राजा करू पुरतः अवनत्य स्वशरीरं समर्पयति?
उत्तर :
राजा सिंहस्य कुम्भोदरस्य पुरतः अवनत्य स्वशरीरं समर्पयति।
प्रश्न 3.
निम्नलिखितपदानि निर्देशानुसार परिवर्तयत (परिवर्तित करके)यथा- सिंहः (प्रथमा बहुवचने)

प्रश्न 4.
वाक्यशुधिं कारयत (शुद्ध करके)
(क) इमं देवीदारु वृक्षं पुत्रवत् पालितवती। इमं देवरारुवृक्षं पुत्रवत् पालितवती।
(ख) तावत् अस्य गुहायां स्थितोऽस्मि। तावत् अस्यां गुहायां स्थितोऽस्मि।
(ग) इयं गुरोः धेनुः मया निश्चयेन रक्षणीया। इयं गुरोः धेनुः मया निश्चयेन रक्षणीया।
(घ) इमां धेनुं त्यज। इमां धेनुं त्यज।
प्रश्न 5.
सन्धि-विच्छेदं कुरुत (सन्धि-विच्छेद करके)

प्रश्न 6.
मजूषातः पदानि चित्वा वाक्यानि पूरयत ( वाक्य पूरे करके)
(क) इमं देवरारुवृक्षं पुत्रवत् पालितवती।
(ख) गजस्य अनया दुष्कृत्या माता अतीव दु:खिता अभवत्।
(ग) भवान माँ हन्तुं समर्थः न भविष्यति।
(घ) क्षतात् त्रायते इति क्षत्रिः
(ङ) इमां धेनुं त्यज।
प्रश्न 7.
अधोलिखितपदानि प्रयुज्य वाक्यरचनां कुरुत (करके)
यथा- वृक्षः = अत्र एकः आग्र वृक्षः अस्ति।
सिंहः = अत्र एकः सिंहः अस्ति।
राजाः = अत्र एकः राजा अस्ति।
सेवकः अत्र एकः सेवक अस्ति।
नोट – विद्यार्थी शिक्षण-संकेत छात्र स्वयं करें।
