गणित का शिक्षणशास्त्र-2 (प्राथमिक स्तर) | D.El.Ed Notes in Hindi
गणित का शिक्षणशास्त्र-2 (प्राथमिक स्तर) | D.El.Ed Notes in Hindi
S-7 गणित का शिक्षणशास्त्र – 2 (प्राथमिक स्तर)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. गणित सीखने हेतु ‘अ-भा-चि-प्र’ [ELPS] किस प्रकार से गणितीय
संक्रियाओं में प्राथमिक बच्चों की गलतियाँ को सुधार करने में सहायक हो सकते
हैं ?
उत्तर – गणित सीखना भी एक निरंतर प्रक्रिया है। बच्चे ठोस अनुभवों के द्वारा ज्यादा
और निरंतर सीखते हैं। प्राइमरी स्कूल में बच्चे मूर्त-संक्रियात्मक अवस्था में होते हैं। सीखने
वालों को अगली अवस्था तक बढ़ने में मदद देने के लिए ठोस और औपचारिक के बीच
की कड़ियों पर जोर देना आवश्यक होता है। ‘अ-भा-चि-प्र’ इसी तरह का एक क्रम है।
अ-भा-चि-प्र से तात्पर्य अनुभव, भाषा, चित्र और प्रतीकों से होता है। बच्चों के ठोस
अनुभवों का क्रम इस प्रकार होना चाहिए―
(i) ठोस वस्तुओं के साथ अनुभव (जैसे—कंकड़, लकड़ियाँ या अन्य कोई भी आसानी
से मिलने वाली चीजें)
(ii) भाषा का उपयोग यानि बोलकर अनुभवों के बारे में बताना (जैसे—–शब्द या कहानी
सवालों के उपयोग से, खेलों से)
(iii) अनुभव को चित्रों द्वारा दिखाना (जैसे—मात्रा को चित्रों द्वारा दिखाना)
(iv) अनुभव का लिखित प्रतीकों द्वारा व्यापकीकरण (जैसे—संख्यांक आदि)
इस क्रम में बच्चे ठोस अनुभव को महसूस करके व उसके साथ कार्य करके धीरे-धीरे
अमूर्तता की ओर बढ़ते हैं और प्रतीकों के उपयोग करने तक उसमें पूरी तरह सक्षम हो जाते
हैं।
औपचारिक गणित को ठोस अनुभवों से जोड़ने की आवश्यकता—औपचारिक
गणित या मन में हिसाब अच्छी तरह कर पाने के लिए बच्चों की अवधारणाओं, संक्रियाओं,
सवालों आदि को समझने के लिए वास्तविक चीज और अनुभवों की आवश्यकता पड़ती है।
उनके विकास का यह पेंचदार स्वरूप गणित सीखने की प्रक्रिया की विशेषता है।
इसलिए एक बच्चे को किसी भी अवधारणा को समझने के लिए उसे ठोस अनुभवों से
शुरू करके अमूर्त स्तर तक पहुँचने के लिए सीखने के अनुभव को एक क्रम में देना चाहिए।
यहाँ चीजों का उपयोग कर ठोस के साथ अनुभव करवाना चाहिए। इससे बच्चों में ठोस ज्ञान
की वृद्धि होती है वे अवधारणाओं को स्पष्ट रूप से समझ पाते हैं और इस प्रकार गलतियों
में सुधार होता है।
प्रश्न 2. कोणों के कुछ विशेष प्रकारों का वर्णन कीजिए।
अथवा,
आसन्न कोण, रैखिक युग्म, पूरक कोण, सम्पूरक कोण और ऊर्ध्वाधर सम्मुख
कोण क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर―(i) आसन्न कोण (Adjacent Angle)― हम एक कोण मान लिया ∠AOC
एक किरण OB, ∠AOC के बीच इस तरह खींचते हैं कि दो कोण होते हैं, जिनकी एक
भुजा और एक शीर्ष उभयनिष्ठ हैं जैसा कि बगल के चित्र में प्रदर्शित है।
ph
इस तरह ∠AOB और ∠BOC में OB भुजा एवं शीर्ष O उभयनिष्ठ हैं।
परिभाषा—दो कोण आसन्न कोण कहलाती हैं यदि उनमें एक उभयनिष्ठ शीर्ष हो,
एक उभयनिष्ठ भुजा हो और अन्य दो भुजाएँ उभयनिष्ठ भुजा के विपरीत दिशाओं में हो।
(ii) रैखिक युग्म (Linear pairs)― एक रैखिक युग्म ऐसे आसन्न कोणों का युग्म
होता है जिनकी वे भुजाएँ जो उभयनिष्ठ नहीं है, विपरीत दिशा में किरणें होती हैं।
चित्र (i) चित्र (ii)
चित्र (i) में आसन्न-कोण युग्म में कोणों की बाह्य भुजाएँ विपरीत किरणें हैं।
अतः चित्र (i) में कोण-1 और कोण-2 रैखिक युग्म है।
चित्र (ii) में कोण-1 और कोण-2 की बाह्य भुजाएँ विपरीत किरणें नहीं है । अत: यह
रैखिक युग्म नहीं है।
रैखिक युग्म के दोनों कोणों का योग 180° होता है।
(iii) पूरक कोण (Complementary angles)― जब दो कोणों का योग 90° होता
है, तो वे कोण पूरक कोण कहलाते हैं।
यदि_∠A = 30° और ∠B = 60°, तो ∠A और ∠B पूरक कोण हैं, क्योंकि इनके माप
30° और 60° का योग 90° है।
यदि ∠X = 70° और ∠Y = 50° हो, तो ∠X और ∠Y पूरक कोण नहीं है, क्योंकि
इनके मापों का योग 120° है, जो 90° से ज्यादा है।
इसी तरह ∠P = 30° और ∠Q = 35° हो, तो ∠P और ∠Q पूरक कोण नहीं है,
क्योंकि इनके मापों का योग 30° +35° = 65° है, जो 90° से कम है।
नोट-दो कोणों के पूरक होने के लिए, उनके मापों का योग 90° ही होना चाहिए।
न अधिक और न कम।
(iv) सम्पूरक कोण (Supplementary anagles) — दो कोण, सम्पूरक कहे जाते
हैं, यदि उनके मापों का योग 180° हो । यदि ∠A = 30° और ∠B = 150° तो ∠A और
∠B सम्पूरक कोण हैं, क्योंकि इन कोणों के मापों का योग 30° + 150° = 180° है । दो
सम्पूरक कोण एक रेखा का निर्माण करते हैं।
(v) ऊर्ध्वाधर सम्मुख कोण (Vertically opposite angles)— दो प्रतिच्छेदी
रेखाओं से बने दो कोण, जिनकी कोई भुजा उभयनिष्ठ नहीं हो, ऊर्ध्वाधर सम्मुख कोण
कहलाते हैं।
चित्र में दो रेखाएँ AB और CD, O पर प्रतिच्छेद करती हैं। हम देखते हैं कि इन
रेखाओं के प्रतिच्छेदन से चार कोण बने हैं। ∠1 और ∠3 एक ऊर्ध्वाधर सम्मुख कोण युग्म
बनाते हैं जबकि ∠2 और ∠4 एक दूसरा ऊर्ध्वाधर सम्मुख कोण युग्म बनाते हैं।
ph
स्पष्टतः ∠1 और ∠2 रैखिक युग्म बनाते हैं।
∴ ∠1+∠2= 180° ∠1= 180°—∠2 ….(i)
इसी तरह ∠2 और ∠3 एक रैखिक युग्म बनाते हैं।
∴ ∠2+ ∠3 = 180° या, ∠3= 180°—∠2 ….(ii)
समीकरण (i) और (ii) से, ∠1 = ∠3
इसी तरह ∠2 = ∠4
अतः यदि दो रेखायें एक-दूसरे को प्रतिच्छेद करती हैं; तो इस प्रकार बने ऊर्ध्वाधर
सम्मुख कोण समान होते हैं।
चित्र (v) चित्र (iv)
चित्र (iv) में ∠1 और ∠2 ऊर्ध्वाधर सम्मुख कोण नहीं है, क्योंकि इनकी भुजाएँ, दो
रैखिक युग्म नहीं बनाती है।
एक बिन्दु पर बन कोण (Agnles at a point)- एक आदि बिन्दु (initial point)
से कई किरणों द्वारा निर्मित कोण, एक बिन्दु पर बने कोण कहलाते हैं। चित्र (v) में किरण
OA, OB, OC, OD के आदि बिन्दु O है और ये O पर ∠1, ∠2, ∠3, ∠4 बनाते हैं ।
यदि हम इन कोणों को मापें और इनका योग ज्ञात करें तो हम देखेंगे कि
∠1+∠2+ ∠3 + ∠4 = 360°
एक बिन्दु पर निर्मित कोणों का योग 360° होता है।
प्रश्न 3. गणित में सीखने की योजना बनाना क्यों आवश्यक है तथा इसे कैसे
बनाएंगे ?
उत्तर- बच्चे बढ़िया ढंग से तब सीखते हैं जब पाठ को इस ढंग से सावधानी पूर्वक
व्यवस्थित किया जाए कि सीखने की क्रिया दिलचस्प बने। ऐसे सवालों से उन्हें सीखने में
मदद मिलती है जो उन्हें सोचने के लिए प्रेरित करें। इसके अलावा ऐसी सामग्री और
गतिविधियों का इस्तेमाल उपयोगी होता है जिनसे विचार विकसित हों और अभ्यास का मौका
मिले। दूसरी ओर शिक्षकों को कक्षा की सच्चाइयों का भी सामना करना होता है। इन
सच्चाइयों में सामाजिक, आर्थिक और ढांचगत भिन्नताओं के अलावा पाठ्यवस्तु को लागू
करने और मूल्यांकन से जुड़े मुद्दे भी शामिल हैं। इसके अलावा पाठ्यक्रम नियोजन के कई
चरण होते है, जिसमें पहला है यह तय करना कि कौन सी विषयवस्तु पढ़ाई जाएगी। इसके
बाद यह तय किया जा सकता है कि आप बच्चों में कौन सी क्षमताएँ विकसित करने की
उम्मीद रखते हैं। इसके अंतर्गत किसी भी विशिष्ट गणितीय अवधारणा सिखाने की योजना
बनाना आवश्यक है। इससे हमें बच्चों के साथ अपने कामकाज को व्यवस्थित करने में मदद
मिलती है, जिससे उन्हें सीखने में बढ़ावा मिलता है। ऐसा करने से हमें इस बात पर भी
गौर करने का मौका मिलता है कि हम क्या कर रहे हैं। इससे आम तौर पर हमारी सिखाने
की क्षमता बेहतर हो जाती है।
गणित में सीखने की योजना बनाने का तरीका ये है कि शिक्षक खुद पहले इसको पढ़
लें और फिर गणित सीखने सिद्धांतों के मुताबिक हर पाठ की योजना ध्यान से बनाएँ। इसके
लिए जरूरी होगा कि शिक्षक सावधानी से हर पाठ को देखकर ऐसी योजना बनाएँ जिसके
मुताबिक :
(क) पढ़ाने का क्रम बच्चों के विकास स्तर से मेल खाता हो–मिसाल के तौर पर
ज्यादातर पाठ्य-पुस्तकों के हिसाब से जोड़-घटा जैसी क्रियाएँ सिखाने से पहले बच्चों को
1 से 100 तक की संख्याएँ सिखानी चाहिए। इसमें हो सकता है कुछ बच्चों को संख्याओं
के नाम याद होने से पहले ही जोड़-घटाव आते हों। फिर भी इनसे गिनती के अभ्यास का
भी एक बढ़िया संदर्भ बनता है।
(ख) बच्चों को सीखने के ऐसे मौके मिलें जिनके जरिये वे गणितीय अवधारणाओं की
अपनी समझ बना सके। जैसे कि कक्षा 1 के बच्चों को ऐसे इबारती सवाल दिए जा सकते
हैं जिनका जवाब देने के लिए उन्हें जोड़, घटाव और शायद गुणा, भाग का उपयोग करना
पड़े। इससे बच्चों को अपनी समझ बनाने के बहुत मौके मिलते हैं।
(ग) बच्चे जो कुछ पहले से जानते हैं उसे आधार मानकर आगे बढ़ा जाए। उदाहरण
के लिए बच्चे ठोस रूप में भिन्न संख्याएँ (fractions) कुछ हद तक समझते हैं, हालांकि
हो सकता है कि प्रतीकों के रूप में भिन्नों से उनका पाला न पड़ा हो, तब भिन्न सिखाने
के लिए उनकी इस समझ का इस्तेमाल किया जा सकता है।
(घ) किसी गणितीय अवधारणा को लिखित रूप में सीखने से पहले और सीखने के
दौरान बच्चों को उसके बारे में बोलने के मौके मिलें। लिखित (प्रतीकात्मक रूप से सम्बंध
जोड़ने से पहले बच्चों को मौका मिलना चाहिए कि वे गणितीय अवधारणाओं को मौखिक
व ठोस रूप में समझ सकें। इससे उनकी गणितीय समझ बेहतर होगी और वे सूत्रों को आँख
मूंद कर लागू करने से बच जाऐंगे।
इस बातों से सार यह निकलता है कि हमें योजना कुछ इस तरह बनानी होगी कि बच्चों
की गणितीय सोच व कौशलों को विकसित करने में मदद कर सके। इसके लिए उन्हें सीखने
के ठोस अनुभवों की जरूरत है, न कि प्रतीकों के साथ ज्यादा माथापच्ची करने की। इसका
मतलब है कि सिर्फ पाठ्य पुस्तक पर निर्भर रहने से काम नहीं चलेगा।
प्रश्न 4. गणित के संदर्भ में सीखने का आकलन तथा इसकी प्रकृति क्या है ?
सीखने का आकलन करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर- विद्यार्थी के सतत् एवं सक्रिय सीखने के साधन को ही आकलन माना गया है।
शिक्षक द्वारा किए गए शिक्षण कार्य की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि विद्यार्थी
कितना सीख पाए हैं। आकलन के द्वारा जो विद्यार्थी सीख नहीं पाए हैं उनकी पहचान की
जाती है। सक्रिय की प्रवृत्ति में आकलन करने के महत्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित है-
(क) बच्चों को सीखने में क्या कठिनाई हो रही है ?
(ख) पाठ के हर चरण में बच्चों ने क्या और कितना सीखा है ?
(ग) बच्चों की गतिविधियों में सहभागिता कैसी है ?
(घ) बच्चों को कहाँ और कितनी मदद की आवश्यकता है ?
(ङ) कक्षा शिक्षण के उपरांत बच्चों के ज्ञान का, समझ व सहभागिता का स्तर कितना है ?
(च) सीखने में मदद के लिए क्या-क्या साधन एवं गतिविधियाँ हो सकती है ?
बच्चों के सीखने का आकलन मौखिक प्रश्नोत्तरों द्वारा, चित्रों द्वारा, वर्कशीट द्वारा,
पुस्तकों के बीच एवं अंत में दिए गए प्रश्नों द्वारा एवं अन्य गतिविधियों के द्वारा किया जा
सकता है। गणित में आकलन की प्रकृति गणित में अधिगम की प्रकृति से काफी निकटता
से संबद्ध है। इसलिए गणित का आकलन है-
● ऐसी आकलन प्रक्रिया जो सीखने की क्रमबद्धता का अनुसरण करती है।
● गणित की अवधारणा के आकलन में बच्चों के पर्यावरण से सीखे गए अनुभवों
का उपयोग किया जाता है।
● आकलन मौखिक प्रक्रिया से शुरू होकर प्रदर्शन तथा लिखित जांच की ओर बढ़ती
है, जिसमें तुलनात्मक रूप में औपचारिक गणितीय चिह्नों एवं विधियों का उपयोग
होता है।
● गणित सीखने के आकलन में आवश्यक है कि यह मूर्त सामग्री और अनुभवों से
शुरू होकर उन विधियों तथा प्रक्रियाओं की ओर जाए जिनका संबंध अमूर्त
अवधारणा के साथ है।
आकलन का मुख्य रूप से उद्देश्य है, सीखने (अधिगम) के दौरान बच्चों की उपलब्धि
की गुणवत्ता को परखना। गणित में सीखने के आकलन की आवश्यकता को हम निम्न
प्रकार से समझ सकते हैं—
(क) गणित की विभिन्न अवधारणाओं की समझ व प्राप्ति छात्रों को किस सीमा तक
हुई, यह आकलन द्वारा पता चलता है।
(ख) आकलन द्वारा शिक्षा के उद्देश्य एवं विषय वस्तु किस सीमा तक प्राप्त हो चुके
है, इसकी जानकारी मिलती है।
(ग) कक्षा-कक्ष में जो अनुभव या विषय वस्तु प्रदान किए गए हैं, वे कितने प्रभावशाली
थे, इसका भी परीक्षण आकलन द्वारा होता है।
(घ) आकलन उन स्थितियों का पता करता है जो विद्यार्थियों को उद्देश्य की ओर प्रगति
प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करें।
(ङ) उद्देश्य एवं शिक्षण विधियों की समीक्षा करना या पता करना कि क्या उनमें
संशोधन की आवश्यकता है, यह भी आकलन के द्वारा पता चलता है।
(च) आकलन बच्चे को यह बोध कराने में मदद करता है कि गणित एक विषय के
रूप में हमारे अनुभव से जुड़ा है तथा दैनिक जीवन में प्रयोग किया जाता है, परंतु यह
अमूर्तता पर आधारित है।
(छ) आकलन बच्चों द्वारा सही नियमों की प्रणाली का प्रयोग कैसे किया जाए पढ़ाने
पर जोर न देकर बच्चों में गणित की समझ विकसित करने व समस्याओं को सुलझाने के
लिए विभिन्न तरीकों के उपयोग पर जोर देता है।
(ज) आकलन के द्वारा कक्षा में की जाने वाली प्रक्रियाओं में प्रणालियों और तथ्यों को
याद रखने पर जोर न देकर बच्चों के तार्किक स्तरों और बच्चों द्वारा दिए गए तर्क को समझने
व विकसित करने पर जोर दिया जाता है।
(झ) आकलन द्वारा गणित की कक्षा में प्रत्येक बच्चे को आत्मविश्वासी तथा गणितीय
सोच में सक्षम बनाये जाने की शिक्षण योजना बच्चों के सीखने के स्तर को ध्यान में रखते
हुए विकसित की जाती है, क्योंकि यही गणित शिक्षण का मूल आधार है।
अतः आकलन विद्यार्थियों और शिक्षकों के विषयों को ही नहीं कहता है बल्कि पूरी
शिक्षण प्रणाली के बारे में हमें बहुत कुछ बताता है। यदि शिक्षक यह देखते हैं कि भरसक
प्रयास के बाद भी विद्यार्थी कोई कौशल प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं तो पाठ्य-वस्तु के शिक्षण,
प्रशिक्षण और पाठ्यक्रम के विषय में विचार कर वे अपनी योजना में परिवर्तन भी कर सकते हैं।
प्रश्न 5. गणित सीखने में अ-भा-चि-प्र की क्या आवश्यकता है ? एक उदाहरण
देकर समझाइएं।
अथवा,
गणित सीखने के एक संभावित अ-भा-चि-प्र क्रम को स्पष्ट करें।
उत्तर–बच्चे गणित में नये प्रतीकों को समझ नहीं पाते जो पूरी तरह समझा, बिना उन
पर थोप दिए जाते हैं। बच्चों में गणित की समझ बनाने के लिए उन्हें सावधानी से बनाए
गए क्रम में सीखने के अनुभव देने की आवश्यकता है। कुछ भी और सीखने की तरह ही
गणित सीखना भी एक निरंतर प्रक्रिया है। बच्चों को ठोस अनुभवों का क्रम होना चाहिए
जो निम्न प्रकार है-
(क) अनुभव—ठोस वस्तुओं के साथ अनुभव (जैसे, कंकड़, लकड़ियाँ या अन्य कोई
भी आसानी से मिलने वाली चीजें)
(ख) भाषा-बोलकर अनुभवों के बारे में बताना, यानि कि भाषा का उपयोग (जैसे,
शब्द/कहानी सवालों के उपयोग से, खेलों से)
(ग) चित्र–अनुभव को चित्रों द्वारा दिखाना (जैसे मात्रा को चित्रों द्वारा दिखाना)
(घ) प्रतीक–अनुभव का लिखित प्रतीकों द्वारा व्यापकीकरण (जैसे, संख्यांक)
उदाहरण के लिए माना कि कोई बच्ची पूर्ण संख्याओं से परिचित है, उसकी “आधे” की
अवधारणा सीखने के संदर्भ में इस क्रम को देखें-
(क) वह अपनी रोटी/सैंडविच, या रंगीन कागज का एक टुकड़ा या अन्य कोई भी ऐसी
चीजों को आधे-आधे में बाँटती है। बाद में वह मान लीजिये 6 चीजों को दो समूहों में बाँटती है।
(ख) वह शब्द “आधे” को मात्रा से जोड़ने लगती है। इसके लिए हम ऐसे खेल बना
सकते है जिससे वह अलग-अलग भिन्न संख्याओं के नामों से परिचित हो पाए।
(ग) हम उन्हें निम्न प्रकार से चित्र दिखा सकते हैं-
ph
और उससे बताने को कह सकते हैं कि किन चित्रों में रेखा चित्र को आधे में बांटती
है। बच्चों को इस तरह के कई अनुभव दिए जा सकते हैं
(घ) इसके बाद वह “आधे” का प्रतीक लिखना सीखती है।
प्रश्न 6. गणित सीखने-सिखाने के विविध संसाधन कौन-कौन से हैं ?
उत्तर – गणित सीखने-सिखाने के विविध संसाधन निम्नलिखित हैं-
(क) गणित प्रयोगशाला- प्रयोगशाला अर्थात् करके सीखने का स्थान, जहाँ हम
गणित के नियमों एवं सिद्धांतों को प्रयोगों के माध्यम से सीखते है। इसमें स्वयं करके सीखने
से कोई भी प्रत्यय अधिक स्पष्ट एवं स्थायी रूप से सीखते हैं। गणित प्रयोगशाला में फर्नीचर,
उपकरण, स्टोर आदि होना चाहिए। फर्नीचर में कुर्सी, टेबिल, अलमारी, होनी चाहिए।
उपकरण में केलकुलेटर, विभिन्न प्रकार के स्केल, टेप, वेट मशीन, थर्मामीटर, विभिन्न प्रकार
के मापक यंत्र, विभिन्न साइज के लकड़ी के मॉडल, कोण, त्रिकोण, आयत, त्रिभुज, वर्ग,
घन, घनाव, ग्राफ पेपर, कम्पास बाक्स, घड़ी, ओवर हेड प्रोजेक्टर, एल-सी-डी-प्रोजेक्टर,
प्लेन पेपर, इत्यादि । स्टोर रूम प्रयोगशाला से लगा एक कमरा होता है जिसमें अतिरिक्त
समान रखते है।
(ख) गणित क्लब–प्रत्येक छात्र में कुछ न कुछ विशेषताएँ होती है परंतु प्रत्येक
छात्र उन्हें सामान्यतः कक्षा में उन्हें प्रकट नहीं कर पाता, कोई भी क्लब में जब छात्र शिक्षक
अनौपचारिक रूप से मिलते हैं, चर्चा करते तो उनकी प्रतिभायें बाहर आती हैं। गणित क्लब
से उपयुक्त उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार के क्लब में छात्र पर व्यक्तिगत
ध्यान दिया जाता है और वह सक्रिय होता है। पाठ्य सहगामी क्रियाओं का एक शिक्षा में
महत्व होता है गणित क्लब भी एक पाठ्य सहगामी क्रिया है। इससे प्राप्त ज्ञान स्थायी होता
है। छात्रों में आत्म विश्वास का विकास होता है। इसके प्रमुख कार्य हैं—विभिन्न प्रकार
के गणितीय कार्यक्रमों का आयोजना करना, जैसे—भाषण, निबंध, प्रश्नमंच, क्विज इत्यादि ।
(ग) गणित मेले—विद्यालयों में मेलों का आयोजन बहुत लाभकारी होता है जैसे-
विज्ञान मेला, क्राफ्ट मेला, गणित मेला, इन मेलों में विद्यार्थियों द्वारा तैयार किये गये मॉडलों
वस्तुओं का प्रदर्शन किया जाता है। हम अपने विद्यालय में गणित के मेल का आयोजन कर
सकते है। जिसमें, गणित सम्बन्धित मॉडलों, खेलों, वस्तुओं को प्रदर्शित किया जा सकता
है। मेले कार्यक्रमों का आयोजन किया जा सकता है जैसे प्रश्नमंच, वाद-विवाद, गणित से
सम्बन्धित फिल्म का प्रदर्शन, नाटक इत्यादि । मेलों से छात्र कई प्रकार की ऐसी बाते सीखते
हैं जो कक्षा में नहीं सीख पाते ।
(घ) शिक्षण सहायक सामग्री-शिक्षण सहायक सामग्री की सहायता से शिक्षक
विभिन्न प्रत्ययों को समझाने, अर्थापन करने, ज्ञान वृद्धि, रुचियों, चिन्तन आदि को बढ़ा
सकता हैं। इस प्रकार गणित शिक्षण को अधिक रुचिकर तथा प्रभारी बनाने के लिए
शिक्षण-सहायक सामग्री अत्यन्त आवश्यक है। इनके प्रयोग से शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में
बालकों का ध्यान आकर्षित करने में विशेष सहायता मिलती है। इन्हें श्रव्य-दृश्य सामग्री भी
कहते हैं। इसमें चार्ट, मॉडल, ग्राफ, रेखा चित्र, नक्शा, प्रत्यक्ष वस्तु, रेडियो, टी.वी., ओवर
हेड प्रोजेक्टर (ओ.च.पी.) एल.सी.डी. प्रोजेक्टर इत्यादि है।
(ङ) वास्तविक वस्तु – किसी प्रत्यय को समझाने के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण
प्रत्यक्ष वस्तु होती है। वास्तविक वस्तु की सहायता से आसानी से सम्बन्धित ज्ञान छात्रों को
दिया जा सकता है। जैसे मॉप के बाट, स्प्रिंग, थर्मामीटर, घड़ी मीटर टेप इत्यादि, वास्तविक
वस्तु, महंगी या बहुत बड़ी होने की अवस्था में हम उसके मॉडल का प्रयोग पढ़ाने में करते है।
(च) गणित शिक्षण में ICT का उपयोग-गणित जैसे नीरस विषय को रुचिपूर्ण,
सरल बनाने के लिए आई.सी.टी. बहुत उपयोगी साधन है। इसके अंतर्गत रेडियो, टेलीविजन,
टेपरिकार्डर, कम्प्यूटर, ओ.च.पी., एल.सी.डी. प्रोजेक्टर आदि उपकरणों का प्रयोग किया जाता
है। कम्प्यूटर के माध्यम से हम गणित को रूचिपूर्ण बना सकते है। हजारों प्रश्नों के प्रश्न
बैंक बना सकते है। उनके उत्तर एकत्र किये जा सकते हैं। इमिनेशन के माध्यम से कठिन
प्रकरणों को भी सरलता से समझाया जा सकता है। 3डी प्रत्ययों को बड़ी आसानी से समझाया
जा सकता है। आई.सी.टी. का प्रयोग कर छात्र अपनी गति से सीख सकता हैं, इत्यादि ।
प्रश्न 7. गणित की अवधारणाओं को सीखने में गणित की पहेलियाँ किस
प्रकार उपयोगी हैं ? कुछ उदाहरण दें।
उत्तर–किसी व्यक्ति की बुद्धि या समझ की परीक्षा लेने वाले एक प्रकार के प्रश्न,
वाक्य अथवा वर्णन को पहेली (Puzzle) कहते हैं जिसमें किसी वस्तु का लक्षण या गुण
घुमा फिराकर भ्रामक रूप में प्रस्तुत किया गया और उसे बूझने अथवा उस विशेष वस्तु का
ना बताने का प्रस्ताव किया गया हो। पहेलियाँ दिमाग का आलोड़न कर मस्तिष्क को तरोताजा
रखने में मदद करती हैं। और जब बात हो गणित की, तब निस्संदेह पहेलियाँ गणित को
एक मनोरंजक विषय बनाने में मददगार साबित होती हैं। पहेलियाँ हल करने से बच्चों का
गणितीय कौशल बेहतर होता है। उदाहरण के लिए बच्चों से निम्न पहेलियों के द्वारा प्रश्नोत्तर
के माध्यम से उनकी गणितीय सोच का विकास किया जा सकता है-
1. दो अंकों का उपयोग कर लिखि जाने वाली सबसे छोटी संख्या क्या है ?
उत्तर- 1/2, 2/2, 3/3 आदि ।
2. एक हवाई जहाज । से ठ जाने के लिए 1 घंटा 20 मिनट लेती है जबकि वापस आने
के लिए 80 मिनट लेती है। इस विषय में आप क्या तर्क देना चाहते हैं ?
उत्तर-(यह पहेली एक असावधान पाठक को ध्यान में रखकर बनाई गयी है।)
यह बिल्कुल ठीक है क्योंकि 1 घंटा 20 मिनट = 80 मिनट ।
3. दो पिताओं ने उनके दोनों बेटों को कुछ पैसे दिए। एक ने अपने बेटे को 150 रुपये
दिए और दूसरे ने 100 रुपये दिए। जाँच लेने पर उन्होंने पाया कि उन्होंने केवल 150 रुपये
की उन्नति की है। विचार कर इसका स्पष्टीकरण करें।
उत्तर—यहाँ केवल तीन लोग हैं—दादाजी, पिताजी और बेटा।
4. पाँच समान अंकों का उपयोग कर 100 को 3 अलग-अलग तरीकों से लिखों।
उत्तर- 111-11= 100 (5×5)
(5× 5×5×5) = 100
(5+5+5+5) x 5 = 100
5. एक नियमित रूप से आकर ईंट 4 किलोग्राम वजन का होता है। एक समान रूपी
खिलौना ईंट का वजन तय कीजिए जिसके सभी आयाम चार गुणा छोटे हों ?
उत्तर-खिलौने का आयतन असली ईंट की तुलना से (4× 4 × 4) = 64 गुणा छोटा है।
प्रश्न 8. गतिविधियों के द्वारा बच्चों को किस प्रकार गणित सिखा सकते हैं ?
कुछ उदाहरण दें।
अथवा,
गतिविधियों द्वारा गणित सीखने-सिखाने का क्या महत्व है ? बच्चे कैसे गतिविधियों
द्वारा गणित सीखते हैं ? उदाहरण दें।
उत्तर–बच्चे गणित की कई आधारभूत अवधारणाएँ खेल गतिविधियों से सीख सकते
हैं। उन्हें जाने पहचाने संदर्भों में खेलने में आनन्द मिलता है। उनके खेलों में अपने आप
ही मजे-मजे में बहुत सारी गणितीय गतिविधियाँ आ जाती हैं। नए विचारों और अवधारणाओं
से छोटे बच्चों का परिचय खेलों व ऐसी परिचित स्थितियों में कराया जा सकता है जो उन्हें
मजेदार लगे और जिनसे उन्हें घबराहट या समस्या न हो। यही बात प्राथमिक विद्यालय के
बड़े बच्चों भी लागू होती है। जब छोटे बच्चे वस्तुओं को आपस में बाँटते हैं वास्तव में वे
एक-से-एक का मेल मिलाते हैं। जब वे गुटकों से खेलते हैं तो वे अलग-अलग आकारों
से प्रयोग कर रहे होते हैं। जब वे “पाँच छोटे बंदर” जैसा गाना गाते हैं तो वे संख्याओं के
नाम सीखते हैं।
शिक्षक कोई भी गणितीय अवधारणा सिखाने के लिए बहुत सी गतिविधि बना सकते
हैं। खेल गतिविधियाँ ऐसे भी बनाए जा सकते हैं जिनसे बच्चे संबंधित गणितीय भाषा संबंधित
गणितीय भाषा भी साथ ही सीख जाएँ। उदाहरण के लिए-
जोड़ की सक्रिया सीखने की प्रारंभिक स्थिति में बच्चे प्रायः इकाई, दहाई के अनुसार
जोड़ने में गलतियों करते हैं इसके लिए यह आवश्यक है कि जोड़ की सक्रिया सिखाना प्रारंभ
करते समय सबसे पहले विभिन्न ठोस अनुभवों से बच्चे को गुजरने का अवसर दिया जाए।
इसके लिए एक गतिविधि बनाई जा सकती है। इसके लिए कंचे, बीज, टहनियाँ, तीलियाँ,
कंकड़ आदि का उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए “3 कंचे और 5 कंचे’
मिलाकर कुल कितने कंचे हैं।” प्रत्येक बार बच्चे को प्रेरित करें कि जो कुछ वह करे उसे
बताते जाएँ।
जोड़ सीखने की प्रक्रिया में बच्चों की आवश्यकतानुसार कुछ सवाल पूछकर उसकी
मदद कर सकते हैं। जैसे तुम्हारे पास कितने कंकड़ थे ? मैंने तुम्हें कितने कंकड़ और दिए ?
तो कुल कितने कंकड़ हुए? धीरे-धीरे जब वह अपने द्वारा की गई क्रिया का वर्णन करना
सीख जाए तब जोड़ना शब्द प्रस्तुत करके उसे बच्चों द्वारा की जाने वाली क्रिया से जोड़ सकते
हैं। धीरे-धीरे यह शब्द उसकी शब्दावली का अंग बन जाएगा और इसे वे समूहीकरण से
संबंधित जोड़ने का कार्य करने लगेंगे। इन्हीं तरीकों से वह ‘कुल’ और ‘घन’ आदि शब्दों
को भी समझने लगेंगे।
अब जब वह जोर जोर से बोले “2 कंचे और 3 कंचे बराबर 5 कंचे” आप बोर्ड
या कागज पर 2 +3=5 लिख सकते हैं। जब वह बोले “2 पेंसिल और 3 पेंसिल बराबर
5 पेंसिल” शिक्षक फिर 2+3= 5 लिख सकते हैं। इसी तरह के कई उदाहरणों से वह
प्रतीकात्मक निरूपण “2+3=5” को जानने लगेंगे। कई जोड़-तथ्यों को देखकर ही वह
उनको खुद प्रतीकों में लिखने लगेंगे। अभ्यास के साथ वह इन प्रतीकों से अच्छी तरह से
परिचित हो जाएं। वस्तुओं के समूहों को मिलाने के काफी अनुभवों के बाद ही बच्चे जोड़
के गुण समझ पाते हैं जैसे कि 3 + 2 और 1 + 4 एक ही बात है या अगर 3 + 2 = 5
है तो 5 = 3 + 2 होगा। इस तरह हम और भी कई तरह की गतिविधियों का उपयोग कर
बच्चों में गणितीय अवधारणाओं की समझ बना सकते हैं।
प्रश्न 9. बच्चों को दोहराव करके किस प्रकार गणित सिखा सकते हैं ? इसकी
क्या आवश्यकता है ?
अथवा,
गणित में दोहराव करके सिखाने के क्या-क्या तरीके सोचे जा सकते हैं जिससे
यह उबाऊ एवं रटना ना बन कर रह जाए ?
उत्तर- बहुत छोटी उम्र से ही बच्चे कई बातों को दोहराते हैं और इससे सीखते हैं,
जैसे चीजे गिराना व उठाना, डिब्बे और टीन खोलना और बंद करना, कुछ शब्दों को बार-बार
दोहराना, ताक-झाँक का खेल बार-बार खेलना, बड़ों से बार-बार कहानियाँ दोहराने को
कहना, आदि। गणित में भी विभिन्न अवधारणाओं को समझने के लिए बार-बार अभ्यास
एवं दोहराव करने होते हैं। दोहराने के ऐसे कई नए तरीके सोचे जा सकते हैं, जिनसे कि
वह मजेदार बनाया जा सके। इसे बच्चे मजेदार गतिविधियों के द्वारा कर सकते हैं, जिनमें
से कुछ की शुरूआत वे खुद भी कर सकते हैं। इन दोहरावों के दौरान भाग लेने वाले बच्चे
हर बार कुछ नया व फर्क देखते और अनुभव करते हैं। सीखने के औपचारिक माहौल में
बच्चों की रूचि बनाए रखने के लिए दोहराव को काफी विविधता के साथ जानबूझ कर लाना
पड़ता है जिससे दोहराव सिर्फ रटना बन कर उबाऊ न रह जाए। उदहारण के लिए-
बच्चे आमतौर पर पहाड़ों से बहुत परेशान रहते हैं। उन्हें मशीनी तरीके से बार-बार
दोहराए जाने पर इन्हें यह बोझिल और उबाऊ लगता है। इसलिए बेहतर है कि बच्चों को
पहाड़ों को रटवाने के बजाय उनको उसमें शामिल पैटर्न पहचानने में मदद की जाए। बच्चों
के दिमाग में गुणज की समझ बैठाने के लिए और पहाड़ों में शामिल पैटनों को पहचानने
की क्षमता विकसित करने के लिए शिक्षक कई गतिविधियाँ सोच सकते हैं। उदाहरण के
लिए बच्चों से दो-दो, चार-चार, पाँच-पाँच सेबों के समूह को पहचानने के लिए कहा जा
सकता है और फिर उनसे “चार-चार सेबों वाले कितने समूह है ?” या “ये कुल कितने
सेब हुए ?” जैसे सरल सवाल पूछे जा सकते हैं और इस तरह की गतिविधि तरह-तरह की
चीजों से की जा सकती हैं। जब उनको इस तरह की गतिविधियों का काफी अभ्यास हो
जाए तब वे जो कर रहे हैं उसे गतिणीय भाषा में लिखने के लिए उनकी मदद की जा सकती
है। जैसे वे दो-दो सेबों वाले 4 समूहों को 4 x 2 = 8 लिख सकते हैं। उनसे 10 x 10
को ग्रिड पूरा करने को कह सकते हैं। हर खाने में बच्चे को खाने की लाइन की संख्या
और उसकी स्तम्भ की संख्या का गुणनफल भरना होगा।
ph
इस तरह की गतिविधि कुछ लम्बे समय तक की जा सकती है। बच्चों को या तो उतना
समय दिया जा सकता है जितना उनको चाहिये या जितने समय तक उनकी रूचि गतिविधि
में बनी रहे। उन्हें आपस में बात करने दें और पैटर्न खुद ही खोजने दें।
प्रश्न 10. बच्चे खेल-खेल में कैसे सीखते हैं ? उदाहरण दें।
अथवा,
बच्चों को कैसे खेल खेल में गणित सिखा सकते हैं ? उदाहरण दें।
उत्तर- बच्चे गणित की कई बुनियादी अवधारणाएँ खेलों से सीख सकते हैं। उन्हें जाने
पहचाने संदर्भों में खेलने में मजा आता है। उनके खेलों सेअपने आप ही मजे-मजे में बहुत
सारी गणितीय गतिविधियाँ आ जाती हैं। नए विचारों और अवधारणाओं से छोटे बच्चों का
परिचय खेलों व ऐसी परिचित स्थितियों से कराया जा सकता है जो उन्हें मजेदार लगे और
जिनसे उन्हें घबराहट या परेशानी न हो।
जब छोटे बच्चे चीजों को आपस में बाँटते हैं वास्तव में वे एक-से-एक का मेल मिलाते
है। जब वे गुटकों से खेलते हैं तो वे अलग-अलग आकारों से प्रयोग कर रहे होते हैं। जब
वे “पाँच छोटे बंदर” जैसा गाना गाते हैं तो वे संख्याओं के नाम सीखते हैं। बच्चों को इबारती
खेलों में भी मजा आता है। वे आम तौर पर शब्दों के पैटर्न पकड़ने में तेज होते है। क्योंकि
पैटर्न पहचानना गणितीय सोच का मूलभूत पहलू है। बच्चे अपनी भाषा विकसित करने के
साथ-साथ वास्तव में गणित भी कर रहे होते हैं। शिक्षक कोई भी गणितीय अवधारणा सिखाने
के लिए ढेरों खेल बना सकते हैं। ये खेल या तो पूरी कक्षा के साथ खेले जा सकते हैं या
छोटे समूहों में। खेल ऐसे भी बनाए जा सकते हैं जिनसे बच्चे संबंधित गणितीय भाषा भी
साथ ही सीख जाएं। उदाहरण के लिए-
कंकड़ों, पासों, टहनियों, कार्डों या मोतियों से शिक्षक “स्थानीय मान” सिखाने के लिए
खेल बना सकते हैं। 10 कंकड़ों (10 के आधार के लिए) को एक कार्ड या एक मोती
के बराबर मान कर अदला-बदली जा सकती है और इसका लेखा-जोखा रखा जा सकता
है। एक बार जब वे दहाईयों की पकड़ ठोस चीजों से बना लेते हैं तो उन्हें संख्याकों का
इस्तेमाल करने वाले खेलों से भी परिचित करवाया जा सकता है।
एक अन्य उदाहरण पर गौर करते हैं—
शिक्षक 10-10 कार्डों के दो समूह ले सकते हैं जिन पर 0 से 9 तक के संख्यांक लिखे
हों। इन्हें बच्चों की दो टीमें इस्तेमाल करेंगी। बच्चे कार्डो को फेंट कर और उल्टे करके
टेबल पर रख दें। फिर वे बारी-बारी से एक बार में एक कार्ड चुनेंगे और उसे बोर्ड पर
“इकाई” या “दहाई” के स्तम्भ में रखेंगे। एक कार्ड जहाँ रखा जा चुका है यहाँ से हटाया
नहीं जा सकता। उद्देश्य सबसे बड़ी संख्या बनाना है। वे जो भी नम्बर बनाएं उसे जोर से
कह दें। उदाहरण के लिए यदि पहले समूह का संख्या 3 का कार्ड खुला और उसे उन्होंने
दहाई के स्तम्भ में रखा तो उन्हें जोर से 30 कहना चाहिए आदि ।
ऐसी बहुत सारी अन्य मजेदार गतिविधियों का उपयोग बच्चों को ज्यामिति की विभिन
अवधारणाओं से परिचित कराने के लिए किया जा सकता है। जैसे बच्चे सममिति
(symmetry) के बारे में ‘‘रंगोली” के सममित (Symmetrical) पैटर्न कागज पर बना कर
सीख सकते हैं। ऐसे खेल बच्चों की व्यापकीकरण करने, विशिष्टीकरण करने, अंदाज लगाने
व पैटर्न पहचानने की क्षमताएँ विकसित करके उनके गणितीय सोच का विकास करते हैं।
यानि कि वे सब उनकी गणितीय सोच व तार्किक क्षमता बढ़ाते हैं।
प्रश्न 11. गणित में सीखने के संकेतकों से क्या समझते हैं ? प्राथमिक स्तर पर
गणित के सीखने के संकेतों का वर्णन करें।
उत्तर—संकेतक हमें बच्चों के प्रगति के मानदण्ड प्रदान करते हैं। संकेतक हमें यह
बताते हैं कि बच्चे ने अभी तक कितना ज्ञान व कौशल अर्जित किया है। साथ ही संकेतक
हमें यह भी बताते हैं कि बच्चे की प्रगति की दिशा क्या है। साथ ही ये आकलन के प्रति
शिक्षक व विद्यालय का नजरिया प्रस्तुत करते हैं। यह नजरिया स्थानीय आवश्यकताओं के
अनुसार अपने मानदण्डों के निर्धारण को दर्शाता है।
शिक्षण- अधिगम प्रक्रिया सही दिशा में चल रही है या नहीं, यह हमें संकेतक से पता
चलता है। पूर्व में हम प्रकरण के आधार पर अपनी शिक्षण योजना बनाते रहे। संकेतक
प्रकरण का ही परिवर्धित रूप है। प्रकरण में अक्सर प्रक्रिया स्पष्ट नहीं होती है, जबकि
संकेतक स्पष्ट रूप से प्रक्रियागत शिक्षण की बात करता है। गणित सीखने-सिखाने की
प्रक्रिया में संकेतक का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि-
● सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में सीखने की निरंतरता को ध्यान में रखते हुए बच्चों
के सीखने की बेहतर समझ और उसे केन्द्र में रखने के लिए संकेतक अत्यन्त
महत्वपूर्ण हैं।
● संकेतक बच्चों की सीखने की दक्षताओं का आकलन करने के लिए एक रूपरेखा
प्रदान करता है ।
● संकेतक अभिभावकों, बच्चों और दूसरों के लिए भी बच्चों की प्रगति को आसान
तरीके से समझने के लिए सन्दर्भ बिन्दु की तरह कार्य करते हैं कि उनके बच्चों
की इस स्तर पर गणित की किन-किन अवधारणाओं को कितना समझना है तथा
वे कितना सीख चुके हैं या सीख रहे हैं।
सीखने के संकेतकों को सीखने के प्रतिफल भी कहते हैं। प्रारंभिक स्तर पर गणित में
सीखने के संकेतक निम्नलिखित हैं-
(क) बच्चे छोटी तथा बड़ी संख्याओं पर कार्य करते हैं।
(ख) जोड़, घटाव, गुणन तथा भागफल का अनुमान लगाते हैं तथा विभिन्न तरीकों
का प्रयोग कर उनकी पुष्टि करते हैं।
(ग) भिन्न को दशमलव संख्या तथा दशमलव संख्या को भिन्न में लिखते हैं।
(घ) कोणों तथा आकृतियों की अवधारणा की खोजबीन करते हैं।
(ङ) सामान्यतः प्रयोग होने वाली लंबाई, भार, आयतन की बड़ी तथा छोटी इकाइयों
में संबंध स्थापित करते हैं तथा बड़ी इकाइयों को छोटी व छोटी इकाइयों को बड़ी इकाई में
बदलते हैं।
(च) ज्ञात इकाइयों में किसी ठोस वस्तु का आयतन ज्ञात करते हैं।
(छ) पैसा, लंबाई, भार, आयतन तथा समय अंतराल से संबंधित प्रश्नों में चार मूल
गणितीय संक्रियाओं का उपयोग करते हैं।
(ज) त्रिभुजीय संख्याओं तथा वर्ग संख्याओं के पैटर्न पहचानते हैं।
(झ) दैनिक जीवन से संबंधित विभिन्न आँकड़ों को एकत्र करते हैं तथा सारणीबद्ध कर
सकते हैं एवं दंडालेख खींचकर उनकी व्याख्या करते हैं।
(ञ) सममिति (Symmetry) पर आधारित ज्योमिति पैटर्न का अवलोकन, पहचान
कर उनका विस्तार करते हैं।
(ट) दैनिक जीवन की घटनाओं में लगने वाले समय अंतराल की गणना, आगे/पीछे
गिनकर अथवा जोड़ने/घटाने के माध्यम से करते हैं।
(ठ) घड़ी के समय को घंटे तथा मिनट में पढ़ सकते हैं तथा उन्हें a.m. और p.m.
के रूप में व्यक्त करते हैं।
(ङ) 24 घंटे की घड़ी को 12 घंटे की घड़ी से संबंधित करते हैं।
(ढ) किसी वस्तु की लंबाई, दो स्थानों के बीच की दूरी, विभिन्न वस्तुओं के भार, द्रव
का आयतन आदि का अनुमान लगाते हैं तथा वास्तविक माप द्वारा उसकी पुष्टि करते हैं।
(ण) मीटर को सेंटीमीटर एवं सेंटीमीटर को मीटर में बदलते हैं।
(त) सरल ज्योमितीय आकृतियों (त्रिभुज, आयत, वर्ग) का क्षेत्रफल तथा परिमाप एक
दी हुई आकृति को इकाई मानकर ज्ञात करते हैं।
(थ) मानक इकाइयों ग्राम, किलोग्राम तथा साधारण तुला के उपयोग से वस्तुओं का
भार मापते हैं।
(द) मूल्य सूची तथा सामान्य बिल बनाते हैं।
(घ) मूलभूत 3D (त्रिविमीय) तथा 2D (द्विआयामी) आकृतियों की उनकी विशेषताओं
के साथ चर्चा करते हैं।
(न) शून्य की अवधारणा को समझते हैं, इत्यादि ।
प्रश्न 12. बच्चों में स्थानिक समझ का विकास किस प्रकार करेंगे ?
उत्तर–बच्चों में जगह (स्पेस) की समझ बनाना भी जारी है। कौन चीज कहाँ रखी
गई है तथा वह कहाँ ठीक रहेगी, ये ‘जगह की व्यवस्था’ से संबंधित बातें हैं। ‘जगह की
व्यवस्था’ गणित शिक्षण का महत्वपूर्ण हिस्सा है। बच्चों को ज्योमिति सिखाने का मकसद
भी शायद यही है। ‘हाथी इतना बड़ा है कि स्कूल के दरवाजे से अंदर नहीं घुस सकता’ या
‘कुत्ते का पिल्ला झोले में नहीं आ सकता है। इसे बच्चे जानते और इस बाबत बातें करते
हैं। जगह संबंधी और भी अनुभव उनके पास होते हैं। वे जानते हैं कि हाथ लंबा करके
वे पेड़ से आम नहीं तोड़ सकते या खिड़की के सरियों के बीच से निकल कमरे के अंदर
नहीं घुस सकते। उनके इन अनुभवों को आधार बनाकर सीखने-सिखाने की परिस्थितियों
रचना ठीक रहेगा।
प्रश्न 13. गणित के संदर्भ में बच्चों के सीखने का आकलन कैसे करेंगे ?
उत्तर- शिक्षक बच्चों के सीखने का आकलन निम्न प्रकार से करते हैं-
(क) निर्माणात्मक आकलन–इसे सीखने का आकलन भी कहते हैं। इस प्रकार
के आकलन का मुख्य प्रयोजन छात्रों को वह रचनात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त करने में सक्षम
बनाना है जो उन्हें बेहतर सीखने और प्रभावी प्रगति करने में उनकी मदद करेगी।
(ख) योगात्मक आकलन—योगात्मक आकलन को ‘सीखने के आकलन’ के नाम
से भी जाना जाता है। इस प्रकार के आकलन का प्रयोजन शिक्षक को छात्रों की उपलब्धि
और कार्य प्रदर्शन की पहचान करने में सक्षम करना है, जिसमें सीखने की अवधि एक सत्र
या वर्ष हो सकती है।
(ग) दैनिक आकलन बच्चों के कक्षा-कक्ष संबंधी गतिविधियों का प्रतिदिन
आकलन विद्यालय के भीतर एवं बाहर की परिस्थितियों में सतत रूप से किया जाना।
(घ) व्यक्तिगत आकलन—इसमें किसी विशेष बच्चे की गतिविधियों, सीखने के
तरीकों तथा उपलब्धि का वर्णन किया जाता है।
(ङ) समूह आकलन—इसमें किसी विशेष समूह के बच्चों की गतिविधियों, सीखने
के तरीकों तथा उपलब्धि का विशेषकर समूह कार्य में भागीदारी, नेतृत्व क्षमता का आकलन
किया जाता है।
(च) सहपाठियों द्वारा आकलन—इसमें कोई बच्चा दूसरे बच्चे या बच्चों के एक
समूह की गतिविधियों, सीखने के तरीकों का आकलन करता है।
शिक्षक निम्नलिखित तरीकों से इन सबका संरचनात्मक आकलन करते हैं-
● शिक्षकों/सहपाठियों द्वारा पूछे प्रश्नों पर छात्रों द्वारा अपने उत्तरों (मौखिक अथवा
लिखित) पर प्रश्न उठाना ।
● छात्रों का लिखित कार्य, कार्य पुस्तिकायें, पोर्टफोलियों (छात्र विशेष द्वारा बनाई
गई चीजों का संग्रह), और उनका संवाद कौशल
● छात्रों द्वारा बनाए गए चार्ट, ग्राफ, मौडल, इत्यादि
● शिक्षक की बनाई गई ड्राईंग अथवा छात्रों की राय जानने के लिए अन्य बनी ड्राइंग
का उपयोग। (उदाहरण के लिए, दर्शाई गई कौन सी परिस्थिति सही है ?)
● समूह में कार्य करते बच्चों का शिक्षक द्वारा अवलोकन (साझेदारी और सहयोग
का अवलोकन)
● वैयक्तिक रूप से कार्य करते बच्चे का अवलोकन (रूचि और एकाग्रता का
अवलोकन)
● शिक्षक द्वारा परियोजनाओं पर कार्य करते बच्चों का अवलोकन (भागीदारी का
अवलोकन)
● छात्रों द्वारा अनुभवों, अवलोकनों, प्रश्नों, अनुमान, धारणाओं व तर्कों को साझा
करना
● छात्रों द्वारा गतिविधि निर्माण अथवा शिक्षक की दी हुई गतिविधि का विकल्प
सोचना
● किये गये प्रयोग/गतिविधि/स्थिति में कुछ छोटा-सा बदलाव करके (यहाँ तक कि
किसी काल्पनिक स्थिति जैसे कि कोई सोचा हुआ प्रयोग) छात्रों की प्रतिक्रिया
मांगना ।
● क्या किसी छात्र में आत्म विश्वास है कि नहीं (भागीदारी के लिए सामने नहीं
आना)
● कक्षा की उत्तरदायिता, क्रियाशीलता (समझदारी के स्तर को दर्शाता है अथवा
विषय के साथ उनके वर्तमान जुड़ाव को दर्शाता है), इत्यादि ।
प्रश्न 14. गणित शिक्षण के रचनावादी नजरिए की चर्चा करें। यह किस प्रकार
शिक्षण में महत्वपूर्ण है ? उदाहरण दें।
उत्तर—सीखने का यह नजरिया जो सीखने वाले को सीखने की प्रक्रिया में एक
सक्रियकर्ता मानता है रचनावादी मॉडल कहलाता है। इसमें बच्चे अपने आसपास की दुनिया
और लोगों के साथ संपर्क बना कर अपनी समझ का निर्माण करते हैं। इसमें बच्चे विभिन्न
पहलुओं पर सोचने को प्रेरित होते हैं। कुछ न कुछ सीखना जारी रहता है, वह व्यर्थ नहीं
जाता हैं, वह चाहे प्रमेय हो या पैटर्न की पड़ताल करना हो ।
1920 ई. के लगभग पियाजे ने यह समझ बनाई कि बच्चों द्वारा की गयी गलतियाँ हमें
बताती हैं कि वे कैसे सोचते हैं और वो गलतियाँ उनकी गणितीय सोच में झांकने का एक
उम्दा झरोखा है। उदाहरण के लिए यदि बच्चे जोड़ना सीख रहे हैं तो हम उनके सामने कुछ
बीजों की छोटी-छोटी ढेरियाँ रख देते है और उनसे पूछते हैं कि इन ढेरियों में कुल कितनी
चीजे हैं ? तो वे सभी ढेरियों की बीजों को गिनकर जोड़ेंगे और इसी गतिविधि को हम
अलग-अलग चीजों की ढेरियों को गिनाकर दोहरा सकते हैं, इस तरह वे अपनी जोड़ की
समझ बनाते हैं। इस प्रकार शिक्षण के रचनावादी मॉडल में सीखने और सिखाने की प्रक्रिया
केवल पाठ्यपुस्तक पर निर्भर न रह कर, बच्चों को खुद करने के मौके मिलते हैं जिससे
वे अपने ज्ञान का निर्माण स्वयं कर सकें, पाठ्यपुस्तक तो सिर्फ माध्यम है। इसमें शिक्षक
की भूमिका ज्ञाता के रूप में नहीं अपितु मार्गदर्शक की होती है जो खोजबीन की भावना
को प्रोत्साहित करते हैं।
प्रश्न 15. प्राथमिक स्तर पर गणित के संदर्भ में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की
अवधारणा तथा आवश्यकता अथवा महत्व का वर्णन करें।
उत्तर – सतत तथा व्यापक मूल्यांकन का अर्थ है छात्रों के विद्यालय आधारित मूल्यांकन
की प्रणाली जिसमें छात्र के विकास के सभी पक्ष शामिल हैं। “सतत” शब्द से यहाँ अर्थ
है कि निर्धारण की नियमितता, यूनिट परीक्षा की आवृत्ति, अधिगम के अंतरालों का निदान,
सुधारात्मक उपायों का उपयोग, पुनः परीक्षा और स्वयं मूल्यांकन। “व्यापक” का अर्थ है
कि इस योजना में छात्रों की वृद्धि और विकास के शैक्षिक तथा सह-शैक्षिक दोनों ही पक्षों
को शामिल करने का प्रयास किया जाता है।
संक्षेप में यहाँ विद्यार्थी का मूल्यांकन मात्र किसी एक परीक्षा पर निर्भर नहीं होकर उसके
वर्षपर्यन्त कार्यों का नियमित मूल्यांकन करना है। दूसरे शब्दों में बच्चों के अधिगम का जब
हम लगातार व्यापक रूप से मूल्यांकन करते हैं तो उसे सतत एवं व्यापक मूल्यांकन कहते
हैं। इस मूल्यांकन में हम प्रश्नों को गहराई से पूछते हैं। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं
प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के अनुसार सतत एवं व्यापक मूल्यांकन में यह तथ्य सम्मिलित
होने चाहिए-
● निर्धारित शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हो रही है।
● कक्षा में प्रदान किए गए अधिगम अनुभव कितने प्रभावशाली रहे हैं।
● व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया कितने अच्छे ढंग से पूर्ण हो रही है।
इसकी आवश्यकता अथवा महत्व को हम निम्नलिखित संदर्भों में समझ सकते है―
(क) यह शिक्षक को प्रभावी शिक्षण रणनीतियों को व्यवस्थित करने में सहायता करता
है। सतत मूल्यांकन, विशिष्ट शैक्षिक तथा सह शैक्षिक क्षेत्रों के संदर्भ में छात्रों की प्रगति
(क्षमता तथा उपलब्धि) के निरंतर आकलन में सहायता करता है।
(ख) सतत् मूल्यांकन कमजोरियों के निदान के लिए कार्य करता है तथा शिक्षक को
विद्यार्थी विशेष की दृढ़ता तथा कमजोरियों का पता लगाने में सहायता करता है।
(ग) यह शिक्षक को त्वरित प्रतिपुष्टि प्रदान करता है जो यह निर्णय कर सकता है कि
किसी विशेष इकाई या अवधारणा को पूरी कक्षा के लिए फिर से शिक्षण की आवश्यकता
है या फिर कुछ को नैदानिक अनुदेशकों की आवश्यकता है।
(घ) यह बच्चों को उनकी दृढ़ता तथा कमजोरियों को जानने में मदद करता है तथा
उन्हें स्वयं से सीखने के लिए प्रेरित करता है।
(ङ) यह बच्चों को एक वास्तविक स्व-आकलन उपलब्ध कराता है कि वह किस
प्रकार अध्ययन कर रहे हैं तथा उन्हें अपनी अधिगम क्षमताओं में वृद्धि के लिए भी सहायता
करता है।
(च) यह बच्चे को उस क्षेत्र के निर्धारण में सहायता करता है जिस पर अधिक जोर
दिए जाने की जरूरत है।
(छ) यह छात्रों की शैक्षिक तथा सह शैक्षिक क्षेत्रों में प्रगति के विषय में सूचना या
प्रतिवेदन उपलब्ध कराता है तथा इस प्रकार छात्रों के भविष्य में सफलता का पूर्वानुमान लगाने
में भी सहायता करता है, इत्यादि ।
प्रश्न 16. कक्षा-कक्ष में प्रयोग में लाए जाने वाली आकलन (सतत् एवं व्यापक
मूल्यांकन) की कुछ प्रविधियों का वर्णन करें।
उत्तर― सामान्यतया बच्चों की उपलब्धियों के आकलन के लिए निम्नलिखित प्रकार
की प्रविधियाँ अपनायी जा सकती हैं―
(क) परीक्षण–हम किसी भी बच्चे का शैक्षणिक मूल्यांकन प्रश्न पत्र द्वारा कर
सकते हैं। प्रश्नों के क्रम के द्वारा विद्यार्थियों के सामान्य गणित के ज्ञान की जांच की जाती
है। जब हम प्रश्नपत्र तैयार करते हैं तो उसमें हम प्रश्नों को आधार बनाते हैं। प्रश्न दो प्रकार
से तैयार किये जाते हैं—
● मुक्त अंत/मुक्त उत्तरीय प्रश्न
● बंद अंत/सीमित उत्तर वाले प्रश्न
● मुक्त अंत (Open Ended)–मुक्त अंत प्रश्नों में बच्चे गणितीय अवधारणाओं को
अपने तरीकों से प्रस्तुत कर सकते हैं। उदाहरण- लघु उत्तरात्मक प्रश्न, निबंधात्मक प्रश्न ।
ऐसे प्रश्न गणित में अवधारणाओं को स्पष्ट करने तथा इबारती प्रश्नों के उत्तर लिखने के
लिए छात्रों को दिए जाते हैं।
● बंद अंत (Close Ended)― बंद अंत प्रश्नों में बच्चों को प्रश्न के विकल्प में से
एक को छांटना होता है। बंद अंत प्रश्नों के प्रकार (Types of Close Ended Questions)
बहु विकल्प प्रश्न-कई विकल्प में से एक को चुनना। सत्य = असत्य- हाँ और ना में
उत्तर देना। मिलान – सही विकल्प का मिलान करना। खाली स्थान खाली जगह के स्थान
पर सही विकल्प। वर्गीकृत प्रश्न – पाँच छह शब्दों के एक समूह में से अलग शब्द
निकालना। व्यवस्थितकरण प्रश्न – आँकड़ों/संख्याओं को व्यवस्थित रूप से लगाना।
(ख) निर्माणात्मक रचनात्मक आकलन–बच्चों की लगातार प्रतिपुष्टि के लिए
निर्माणात्मक आकलन सहायक है। निर्माणात्मक आकलन में अध्यापक पढ़ाते समय यह
जांच करते हैं कि बच्चे ने अनुभूतियाँ अभिव्यक्तियाँ, अवधारणाएँ और ज्ञान को कितना
ग्रहण किया है। निर्माणात्मक आकलन पाठ के बीच-बीच में से किया जाता है।
(ग) योगात्मक/संकलनात्मक/अंतिम आकलन–योगात्मक आकलन सत्र के
अंत में होता है। अध्यापक द्वारा पढ़ाने के बाद यह देखना कि बच्चों ने ज्ञान को किस हद
तक ग्रहण किया है। उदाहरण किसी गणितीय अवधारणा को पढ़ाने के बाद जब अध्यापक
बच्चों से प्रश्न करता है तो वह योगात्मक मूल्यांकन कहलाता है।
(घ) निदानात्मक आकलन—जो बच्चे असफल हो रहे हैं उन बच्चों के असफलता
का कारण ढूंढ़ना निदानात्मक आकलन कहलाता है।
(ङ) औपचारिक बातचीत–बच्चे आपसी बातचीत द्वारा गणितीय अवधारणाओं की
समझ बनाने के लिए आकलन कर सकते हैं। जैसे—बच्चे जिस मैदान में खेलते हैं उसको
कितने कदमों से नाप कर उसकी परिमिति निकाल सकते हैं। घेरे के लिए बांस की गणना
कर सकते हैं, घेरे पर आने वाले खर्च का अनुमान, मैदान के किनारे-किनारे क्यारी बनाना,
फूल लगाना, इस कार्य में समय एवं खर्च का अनुमान लगाना इत्यादि ।
(च) अवलोकन–गणित संबंधी गतिविधियों के दौरान बच्चों द्वारा सीखने का
आकलन अवलोकन के माध्यम से किया जा सकता है। अवलोकन के द्वारा बच्चों के बारे
में जानकारी सामान्य तथा स्वाभाविक वातावरण ली जा सकती है। सिखाने के दौरान शिक्षक
बच्चों का अवलोकन बच्चों द्वारा प्रश्नों के उत्तर देने के ढंग से कर सकते हैं। बच्चे की
भागीदारी के स्तर का भी अवलोकन करके आकलन किया जा सकता है। अवलोकन द्वारा
बच्चों के बहुत से पक्षों का आकलन किया जा सकता है। अवलोकन से बच्चों का आकलन
व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों रूपों में किया जा सकता है। शिक्षक बच्चे के व्यवहार, रुचि,
सीखी गई अवधारणा का दैनिक जीवन में अनुप्रयोग इत्यादि का अवलोकन करके बच्चे के
बारे में एक दृष्टिकोण बना सक । शिक्षक को बच्चे का वलोकन विभिन्न परिस्थितियों,
गतिविधियों और समयावधि में करना चाहिए। यदि बच्चे विभिन्न गतिविधियों में संलन होते
हैं तब उनका अवलोकन करना शिक्षक के लिए सरल होता है।
(च) परियोजना–परियोजना एक निश्चित समय सीमा में ली जाती है और
सामान्यतः यह आँकड़ों के एकत्रीकरण व विश्लेषण को प्रदर्शित करती है। यह सभी को
खोजने के अवसर प्रदान करती है। बच्चे परियोजना को स्वयं क्रियान्वित करते तथा इससे
स्थितियों का अवलोकन, आँकड़ों का एकत्रीकरण, विश्लेषण, आयोजन, तथा व्याख्या करना
व सामान्यीकरण आदि करते हैं। परियोजना बच्चों को समूह में तथा जिंदगी की वास्तविक
परिस्थितियों में कार्य करने का अवसर प्रदान करती है। यहाँ मूल्यांकन नियमित कक्षा-कक्ष
क्रियाकलाप तथा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का एकीकृत भाग बन जाता है।
(ख) पोर्टफोलियो— पोर्टफोलियो एक समय अवधि के भीतर छात्र द्वारा किए गए
कार्य का संग्रह होता है। यह एक समस्त रिकॉर्ड प्रस्तुत करता है। पोर्टफोलियो छात्रों को
अपनी भावनाओं और विचारों की अभिव्यक्ति करने का अवसर प्रदान करता है। अध्यापक
भी छात्र की उन गतिविधियों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं जो छात्र के साथ कक्षा कक्ष
के बाहर घटित हो रही है। इससे छात्र का कौशल या ज्ञान किस प्रकार विकसित होता है,
उसकी एक छवि उभर कर सामने आती है। छात्र अधिगम और आकलन प्रक्रिया में सक्रिय
रूप से भाग लेता है। यह विद्यार्थियों के दिन प्रतिदिन के कार्यों का या उनके कार्यों में से
किसी कार्य का चुनाव होता है।
(ग) प्रदर्शनी में भागीदारी– हम प्रदर्शनी की इस्तेमाल विद्यार्थियों के गणित अधिगम
के आकलन करने में कर सकते हैं। गणित प्रदर्शनी में छात्र स्कूल वस्तुओं के माध्यम से
निश्चित अवधारणाओं के बारे में सीखते हैं और मॉडल का उपयोग करने में कई गणितीय
तथ्यों और गुणों के मापन की और अन्य क्रियाकलापों की जांच करते हैं। इस प्रकार प्रदर्शनी
न सिर्फ विद्यार्थियों के मध्य गणितीय जानकारी बढ़ाने में सहायता करती है बल्कि यह
विद्यार्थियों के मध्य कौशल विकसित करने में तथा सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में
भी सहायता करती है।
(घ) गणितीय पहेली और खेल―छात्र गणित तब सीखते हैं जब उसे अर्थपूर्ण
गणितीय कार्यों में शामिल किया जाए। इस प्रकार के कार्य विद्यार्थियों को गणितीय ढंग से
सोचने के लिए अवसर प्रदान करते हैं। गणितीय प्रश्नोत्तरी पहेली और खेल विद्यार्थियों को
भयमुक्त और चिंता रहित वातावरण में गणित सीखने के अवसर प्रदान करते हैं। ऐसे
क्रियाकलापों में भाग लेने पर उनका आकलन अध्यापक द्वारा किया जाता है। निरीक्षण और
आकलन के आधार पर अध्यापक उन क्षेत्रपों पर ध्यान देते हैं जहाँ उन्हें सीखने के लिए
और अधिक आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने की आवश्यकता है, इत्यादि ।
प्रश्न 17. कक्षा को योजनाबद्ध किस-किस प्रकार से किया जा सकता है ?
इसकी आवश्यकता क्यों है ?
अथवा,
अलग-अलग स्तरों की सीखने की योजना (साल योजना, इकाई योजना, पाठ
योजना) का वर्णन करें। इसकी आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर–आँख मूंदकर पाठ्य-पुस्तक की लीक पर चलने से बचने का एक पक्का
तरीका यह होगा कि इकाई व पाठ योजना बनाई जाए। एक इकाई का मतलब किसी एक
विषय या एक अध्याय से होता है। इकाई को एक या ज्यादा पाठों में बांटा जाता है। जैसे
‘भिन्न’ एक इकाई होगी और इस इकाई में एक पाठ ‘आघे’ की अवधारणा पर हो सकता
है, इस पाठ अलग-अलग तरह की भिन्नों पर एक पाठ भिन्नों के जोड़ पर, इत्यादि । यानि
एक इकाई में एक या ज्यादा पाठ हो सकते है और एक साल में कई इकाई पढ़ाई जाएंगी।
इस तरह के विभाजन का सीखने की योजना में बहुत महत्व है। इसे हम निम्न प्रकार समझ
सकते हैं―
(क) साल की योजना―स्कूली वर्ष की शुरूआत में शिक्षकों को यह जानना होगा
कि वे बच्चों को कितना गणितीय ज्ञान हासिल करवाना चाहते हैं। इसके लिए बच्चों की
पृष्ठभूमि दिए गए पाठ्यक्रम के उपेक्षित लक्ष्य और एन.सी.ई.आर.टी. के न्यूनतम अधिगम
स्तर नामक दस्तावेज को ध्यान में रखना पड़ेगा। पहले तो ये तय करने की जरूरत है कि
साल के आखिर तक बच्चों को कितना सीख लेना चाहिए, फिर गणितीय अवधारणाओं को
सिखाने के हिसाब से क्रमबद्ध करना होगा। चूँकि स्कूल आम तौर पर एक साल को तीन
सत्रों में बांटते हैं, इसलिए योजना का अगला स्तर यह होगा कि तीनों सत्रों में पढ़ाए जाने
वाली, विषयवस्तु के लिए जरूरी समय तय कर लिया जाए। इससे शिक्षकों को उन सारी
गणितीय अवधारणाओं को शामिल करने में मदद मिलेगी जिन्हें वे समझते हैं कि बच्चों की
पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए शामिल की जानी चाहिए।
(ख) इकाई योजना– गणित की किसी नई इकाई को पढ़ाने की योजना बनाने के
लिए सबसे पहले शिक्षकों को गणितीय अवधारणाएँ, प्रतीक, सिद्धांत, प्रक्रियाएँ आदि पता
होने चाहिए कि इन सबको विद्यार्थियों तक पहुँचाने का सबसे अच्छा तरीका क्या होगा ?
इसके लिए शिक्षकों को हर इकाई का गहराई से विश्लेषण करके यह पता लगाना होगा कि
उसके हर हिस्से के सिखाने के लक्ष्य क्या हैं। उन्हें यह सोचना होगा कि हर अवधारणा या
कौशल को सीखने के लिए बच्चों की किन अनुभवों, सामग्रियों और गतिविधियों की जरूरत
होगी। योजना बनाते वक्त यह बहुत जरूरी है कि शिक्षक तय कर लें कि इकाई के किस
हिस्से को कितना समय देना है। जैसे कि समय के मापन संबंधी इकाई की योजना बनाते
वक्त शिक्षक इच्छित लक्ष्यों की रूपरेखा बनाएंगे, यह तय करेंगे कि कौन-कौन सी बातें
पढ़ाई जानी हैं (जैसे, समय का कोई क्षण, समय का अन्तराल, मापन की इकाई, आदि)
किस क्रम में इन्हें पढ़ाया जाना है और हर बात पर कितना समय लगाएंगे। इस प्रकार इकाई
योजना बनाना आवश्यक है जिससे शिक्षक यह देख पाने की स्थिति में हों कि इस इकाई
का कितना हिस्सा कितने दिन में पढ़ाया संभव है। इससे वे एक-एक हफ्ते के लिए जरूरी
समय तय कर सकते हैं। इकाई की योजना बनाते हुए शिक्षक हर हफ्ते अपनी कक्षा के
बच्चों की प्रगति की जांच कर सकते हैं। यदि जरूरी हो तो उनकी जरूरतों के मुताबिक
सिखानें की रफ्तार बदल सकते हैं।
(ग) पाठ की योजना―पाठ योजना किसी एक इकाई के एक पाठ के शिक्षण की
योजना होती है। इसमें योजना इस तरह भी बना सकते हैं कि कक्षा में अलग-अलग समूह
अलग-अलग विषयवस्तु का अभ्यास करें। ऐसी गतिविधियाँ भी आयोजित की जा सकती।
हैं जिनमें सारे बच्चे भाग ले सकें, चाहे उनकी जानकारी का स्तर अलग-अलग क्यों न हो।
यह सब सोचना पाठ की योजना बनाने का हिस्सा है। पाठ की योजना बनाने में निम्नलिखित
बातों को ध्यान में रखा जाता है—
● पाठ के उद्देश्य स्पष्ट तौर पर सामने रखे।
● जिन बातों को पहले से जानना जरूरी है उन्हें पता करें।
● क्रम तय करें।
● कार्य पद्धति तय करें।
● यह तय करें कि पाठ के हर हिस्से पर कितना वक्त लगाएंगे।
● मूल्यांकन का तरीका तय करें।
● पाठ की योजना को लिखे-योजना को लिख लेने से कई बातों को स्पष्ट करने
का मौका मिलेगा और यह एक रिकॉर्ड भी रहेगा। इसका इस्तेमाल बच्चों के और
खुद अपने काम के मूल्यांकन के लिए कर सकते हैं और आगे के पाठों की योजना
बनाते समय भी यह काम आएगा।
प्रश्न 18. क्या गलतियाँ उपयोगी होती हैं ? बच्चों द्वारा की गई कुछ गलतियों
का उदाहरण देकर बताएं कि वह गलतियाँ बच्चे के गणित सीखने में किस प्रकार
उपयोगी हो सकती हैं ?
उत्तर― बच्चे सीखने के दौरान तमाम गलतियाँ करते हैं। बच्चों की गलतियाँ उनकी
सीखने की प्रक्रिया का स्वाभाविक और जरूरी हिस्सा है। नई अवधारणाओं को समझने की
प्रक्रिया का स्वाभाविक और जरूरी हिस्सा है। नई अवधारणाओं को समझने की प्रक्रिया में
बच्चे अपनी अभी तक की समझ को लागू करते हैं। हो सकता है कि यह औपचारिक
शिक्षण के तरीके व विषयवस्तु से मेल न खाएँ। बच्चों की गलतियों से यह भी पता चलता
है कि बच्चे कैसे सोचते और सीखते हैं। जैसे 51 के लिए 15 लिखना हमें यह बताता है।
कि बच्ची अभी भी स्थानीय मान की अवधारणा समझ नहीं पाई है और उसे समूह बनाने
का और करने की जरूरत हैं। बच्चें की गलती को इस तरह से ध्यान से देखने से शिक्षक
को सीखने वाले का गणितीय सोच विकसित करने में बहुत मदद मिल सकती है। गलतियां
करना और उनसे सीखना एक पक्की समझ बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है, बल्कि यह सही
उत्तर निकालने से ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसी प्रकार बच्चों द्वारा स्वयं की गलतियों से सीखने
का एक अन्य उदाहरण ले सकते हैं जिसमें वह गुणा के पैटर्न को समझ कर स्वयं अपनी
गलती सुधार लेता है—
एक बच्चे को 2×76 का सवाल हल करने को दिया गया। इसका जवाब आया 432
बच्चे ने 2×76 के बजाय 76×6 कर दिया था। अब इसकी त्रुटि को उसे स्वयं से समझने
के लिए पैटर्न का उपयोग किया जा सकता है। इससे वह स्वयं अपनी समझ का विकास
कर सकता है।
उसे एक पैटर्न हल करने को दिया जाता है―
2 x 100 = ?, बच्चे का उत्तर 200
2 x 90 = ?, बच्चे का उत्तर 180
2 x 80 = ?, बच्चे का उत्तर 160
2 x 76 = ?, कुछ देर रूकने के बाद 432
2 x 70 = 2 बच्चे का उत्तर 140
2 x 80 = ?, बच्चे का उत्तर 160
2 x 76 = ?, बच्चे का उत्तर 432
2 x 100 = ?, बच्चे का उत्तर 200
अब बच्चा रूक कर स्वयं सोचेगा कि यदि गुणा के प्रश्न में 10 कम होने पर उत्तर
20 कम हो रहा है मतलब 2 गुणा कम हो रहा है, इसका मतलब यदि 80 से 76 यानि 4
कम हुआ तो परिणाम 8 कम होना चाहिए अर्थात 2 ×76 = 152 अब वह स्वयं से यह
जान लेगा कि उसने कहां गलती की थी। तथा वह स्वयं कहेगा कि उससे गलती हुई। फिर
वह ठीक गुणा कर के 2 x 76 का उत्तर 152 निकाल लेगा।
इस प्रकार बच्चे बीज गणित तथा सूत्रों के निर्माण में भी पैटर्न द्वारा उनकी अवधारणा
को समझ कर अपनी गणितीय सोच का विकास करता है।
प्रश्न 19. कक्षा 5 के गणित विषय से संबंधित किसी एक अवधारणा का चयन
करते हुए उसके शिक्षण अधिगम के लिए सीखने की योजना का निर्माण कीजिए।
उत्तर–सीखने की योजना
शिक्षा का नाम-
कक्षा― कलांश― तिथि―
विषय – गणित इकाई–1
विषयवस्तुः संख्याओं का मेला (सैंकड़े तक की संख्याओं की समझ)
विषय वस्तु से संबंधित पूर्व समीक्षा (शिक्षण से पहले किया जाने वाला कार्य)
1. यह विषय वस्तु इस कंक्षा के पाठ्यचर्या/पाठ्यक्रम में उल्लेखित किन किन
उद्देश्यों/बिंदुओं से जुड़ा हुआ है ?
बच्चों में संख्याओं की सही समझ विकसित करना, बच्चे संख्याओं का स्थानीय मान
आसानी से समझ सके, इसे सरल विधि तथा खेल खेल में सीखना ।
2. क्या यह विषय वस्तु पूर्ववत कक्षाओं के पाठ्यक्रम में भी शामिल है ? कैसे ? यह
विषय वस्तु इस कक्षा की और किन-किन विषयों इकाइयों से जुड़ा हुआ है ? क्या मैंने इस
विषय वस्तु का पहले शिक्षण किया है ? क्या मुझे विषय वस्तु से संबंधित पर्याप्त समझ है ?
हाँ, यह विषय वस्तु पूर्ववत कक्षाओं के ही पाठ्यक्रम का विस्तार है। जहाँ संख्या
संबंधित प्रश्न, उसके स्थानीय मान की चर्चा होगी उससे यह विषय वस्तु स्वतः जुड़ जाएगी।
हाँ, मैंने इस विषय वस्तु का पहले शिक्षण किया है। मुझे विषय से संबंधित पर्याप्त समझ है।
3. विषयवस्तु का संक्षिप्त विवरण ।
बच्चों में छोटी बड़ी संख्याओं की समझ तथा संख्याओं का स्थानीय मान के साथ-साथ
उन्हें भाषा में लिखना तथा तार्किक प्रश्न से संख्या बनाना सीखना।
4. सीखने–सिखाने की विधियाँ इन विधियों को क्यों चुना गया ?
खोज, खेल विधि, समूह कार्य तथा लेखन के माध्यम से बच्चों में विषय को रुचि पूर्ण
बनाना । खोजने के खेल बच्चों को पसंद है क्योंकि वे स्वभाव से ही जिज्ञासु होते हैं। समूह
कार्य द्वारा उन्हें प्रश्नों को हल करने में मदद मिलेगी तथा विषय वस्तु से संबंधित और अधिक
उदाहरण बनाने उनका असमंजस दूर होगा।
5. सीखने की योजना
40 मिनट की इस कक्षा में सर्वप्रथम 10 मिनट बच्चों से संख्या संबंधित प्रश्न जैसे 87
के बाद क्या, 999 के पहले क्या पूछा जाएगा। उसके बाद श्यामपट पर अगले 10 मिनट
शिक्षक बच्चों से छोटी बड़ी संख्याओं को ढूंढ कर घेरा लगवाने तथा स्थानीय मान समझाने
के साथ-साथ उन्हें हल कराने का कार्य करेंगे। फिर उन्हें समूह में बाँटकर प्रत्येक समूह
को कुछ अंक कार्ड देकर अलग-अलग अंकों से विभिन्न संख्या बनाने के खेल खेलेंगे।
इससे उनमें प्रतिस्पर्धा की भावना विकसित होगी। यह कार्य 10 मिनट तक चलेगा।
तत्पश्चात पाठ्यपुस्तक के प्रश्नों को समूहवार हल करवाएंगे। आवश्यकता पड़ने पर
संकेतिक मदद भी करेंगे। यह कार्य अंत के 10 मिनट में करेंगे जिससे उनके सीखने का
मूल्यांकन भी हो जाएगा।
शिक्षक द्वारा स्व मूल्यांकन के सुझाव बिंदु (शिक्षण के बाद किया जाने वाला कार्य)
1. क्या विद्यार्थी ने उन उद्देश्यों को समझा जिसके लिए यह विषय वस्तु थी ?
इसका मूल्यांकन किया गया कि नहीं?
हाँ, विद्यार्थियों ने उद्देश्य को समझा। यह उनके मूल्यांकन से स्पष्ट हो गया।
2. क्या इस विषय वस्तु को फिर से कक्षा में चर्चा करने की आवश्यकता है ?
क्यों या क्यों नहीं ?
विषय वस्तु को फिर से कक्षा में चर्चा करने की आवश्यकता तो नहीं है, परंतु अगली
कक्षा में विषय से संबंधित और अधिक सवाल हल करने से बच्चे अधिक सीखेंगे।
3. साथियों द्वारा पूछे गए प्रमुख सवाल क्या थे ? कितने विद्यार्थियों ने सवाल पूछें ?
तीन-चार विद्यार्थियों ने संख्या के स्थानीय मान से संबंधित प्रश्न पूछे।
4. आपने उन सवालों को कैसे समझाया ? क्या विद्यार्थियों को स्वयं उन सवालों
का हल करने का मौका मिला ?
उन्हें उससे संबंधित उदाहरण देकर समझाया गया।
फिर विद्यार्थियों ने वैसे प्रश्नों को हल किया।
5. विषय वस्तु के सीखने-सिखाने में किस प्रकार के संसाधनों (T LM) का
प्रयोग किया गया ? उनकी उपयोगिता क्या रही।
अंक कार्ड, संख्या चार्ट का उपयोग किया गया। खेल को माध्यम बनाया गया जो बहुत
उपयोगी रहा।
6. इस विषय वस्तु को यदि दोबारा पढ़ाना हो तो आप सीखने-सिखाने की
योजना में क्या बदलाव करेंगे ?
यदि इस विषयवस्तु को दोबारा पढ़ाना हो तो बच्चों को स्थानीय मान से संबंधित गतिविधि
कराएंगे।
7. इस विषय वस्तु से संबंधित कोई ऐसा सवाल जिसे आपको अपने संस्थान के
विषय विशेषज्ञ तथा मेंटर से चर्चा करने की अपेक्षा है ?
इस स्तर पर कहाँ तक की संख्या को शामिल किया जा सकता है।
8. कोई अन्य टिप्पणी ।
छात्राओं को खेल में मजा आया। समय का ध्यान रखना होगा।
प्रश्न 20. दैनिक जीवन में भिन्न के विभिन्न प्रश्नों का उपयोग बच्चों को भिन
की अवधारणा समझाने में किस प्रकार करेंगे ? उदाहरण दें।
उत्तर–बच्चों को उनके परिवेश से संबंधित निम्नलिखित समस्याएँ हल करने के लिए
देकर उन्हें भिन्न की आवश्यकता दैनिक जीवन के संदर्भ में समझाई जा सकती है―
(क) किसी कक्षा में 2/3 भाग विद्यार्थी उपस्थित थे जिसकी संख्या 40 थी यदि 2/3
भाग लड़कियाँ हो तो लड़कियों की कुल संख्या बताइये ?
उत्तर–उपस्थित विद्यार्थियों की संख्या = 40
जिनका अनुपात है = 2/3
यानि कुल विद्यार्थी हैं = 40×3/2 = 60
लड़कियों की संख्या = कुल विद्यार्थियों का 2/3
= 60 x 2/3 = 40
(ख) एक खम्बे का 1/2 भाग सफेद और 1/3 भाग नीला हैं, यदि शेष भाग पीला हो
और वह दो मीटर लंबा है तो खम्बे की कुल लम्बाई बताइये ?
उत्तर― सफेद = 1/2 भाग, नीला = 1/3 भाग, पीला = 2 मीटर लम्बा
= 1–(1/2+1/3)
= 1–5/6
= 1/6
1/6 भाग = 2 मीटर
कुल लम्बाई = 2 x 6 = 2 मीटर
(ग) एक गाँव में रहने वाले कुल लोगों में से 1/3 भाग नौकरी करते हैं, जबकि 1/4 भाग
व्यापार करते हैं और 1/4 भाग कृषि करते हैं बताइये गाँव का कितना हिस्सा बेरोजगार हैं ?
उत्तर― कुल हिस्सा यदि 1 है तो बेरोजगारों की संख्या 1–1/3–1/4–1/4
= 1–5/6
= 1/6
(घ) किसी टैंक के 1/4 भाग भरे होने पर 135 लीटर पानी आता हैं यदि उसमें 180
लीटर पानी रखा जाए तो उस टंकी का कौन सा भाग होगा ?
उत्तर―135 लीटर है टैंक का 1/4 भाग तो कुल भाग = 135 x 4 = 540 लीटर, तो
180 लीटर होगा टैंक का 180/540 भाग
= 1/3 भाग
प्रश्न 21. दैनिक जीवन में दशमलव भिन्न के विभिन्न प्रश्नों का उपयोग बच्चों
को भिन्न की अवधारणा समझाने में किस प्रकार करेंगे ? उदाहरण दें।
उत्तर― (क) 50 प्राप्त करने के लिए 25.5 में क्या जोड़ना चाहिए ?
उत्तर― इसके लिए 50 में 25.5 को घटाना पड़ेगा, जिसे दशमलव संख्या को भिन्न में
बदल कर भी हल किया जा सकता है।
50―25.5
= 50―255/10
= 500–255/10
= 245/10
= 24.5
(ख) आलोक ने 1 किलो 200 ग्राम आलू, 250 ग्राम धनिया, 5 किलो 300 ग्राम
प्याज, 500 ग्राम पालक और 2 किलो 600 ग्राम टमाटर खरीदे। उसके द्वारा खरीदी गई
वस्तुओं का कुल भार किलोग्राम में ज्ञात कीजिए।
उत्तर― इस प्रश्न को दशमलव भिन्न में बदल कर भी हल किया जा सकता है ।
कुल भार = (1.200 + 0.250 + 5.300 + 0.600) kg (सभी को किलोग्राम में
बदलने पर)
= 1200/1000+250/1000 + 5300 / 1000+600 / 1000
= 7350/1000
= 7.350kg
(ग) नेहा प्रतिदिन सुबह अपनी साइकिल से 29/5 किलोमीटर चलती है और शाम को
3.5 किलोमीटर चलती है बताइए कि वह रोज कितने किलोमीटर चलती है ?
उत्तर—कुल दूरी =29/5+3.5
= 29/5 + 35/10
= 58 +35/10
= 93/10
= 9.3 किलोमीटर
(घ) एक कप में 0.250 लीटर दूध है तो कि पूरे कप 1/4 भाग है। पूरे कप में कुल
कितना दूध आएगा ?
उत्तर― कप में 0.250 लीटर दूध है जो कि पूरे कप 1/4 भाग है।
अतः दूध की पूरी मात्रा जो कप में आएगी।
= 0.250 x 4
= 250/1000 x 4
= 1000/1000
= 1 लीटर
प्रश्न 22. दैनिक जीवन में भिन्नात्मक संख्याओं के विभिन्न उपयोग एवं आवश्यकता का
उल्लेख करें।
अथवा,
दैनिक जीवन के उदाहरणों से जोड़ते हुए भिन्नों की आवश्यकता एवं उपयोग
का वर्णन करें।
उत्तर―भिन्न का विशेष महत्व है हमारे दैनिक जीवन (daily life) में कोई भी छोटी-मोटी
गणना करनी है तो भिन्न का ही सहारा लेना पड़ता है। जैसे कोई बारीक काम करना है।
तो वहाँ भिन्न का उपयोग करना पड़ता है क्योंकि छोटी-छोटी गणना अक्सर भिन्न में होती
है। उदाहरण के लिए मान लेते हैं कि कोई दुकानदार कोई कलम Rs. 5.5 या 5.1/2 ( भिन्न
रूप) पर कलम के हिसाब से 100 लोगों को बेचता है तो दुकानदार को कुल Rs. 550
मिलता है। अगर दुकानदार केवल Rs. 5 पर कलम को 100 लोगों में बेचता है तो उसे
Rs.50 का घाटा होगा। क्या दुकानदार ऐसा करेगा, दुकानदार ऐसा नहीं करेगा और न ही
Rs. 1/2 या 0.5 नहीं छोड़गा प्रत्येक कलम में।
इसके अलावा किसी भी काम जिसमें महारत हासिल करना चाहते हैं तो बारिकियाँ
जानना बहुत जरूरी है। जैसे—वैज्ञानिक, डाक्टर, इंजीनियर आदि ये सभी लोग बारिकियों
पर विशेष ध्यान देते हैं। इसलिए उन्हें हिसाब या तो भिन्न के सहारे करना है नहीं तो दशमलव
के सहारे। बहुत से भिन्न को दशमलव में बदलकर आसानी के गणना की जा सकती है
परंतु कुछ-कुछ भिन्ने ऐसी हैं (जैसे– 1/3, 2/3, 1/6, 1/7 आदि) जिनको दशमलव में
बदलने का कोई फायदा नहीं है और पुरी तरह से भाग कटती भी नहीं। अतः ऐसे भिन्नों
का हल भिन्न विधि से ही करना सही होता है।
प्रश्न 23. दशमलव संख्या एवं दशमलव भिन्न से क्या समझते हैं ?
उत्तर–दशमलव संख्या-गणित में इकाई से कम माना अथवा इकाई का कोई अंश
सूचित करने वाला वह चिह्न जिसको भाग देनेवाला अंक दस या उसका दस गुना, सौ गुना,
हजार गुना आदि हो, दशमलव कहलाता है। दशमलव पद्धति या दाशमिक संख्या पद्धति
या दशाघार संख्या पद्धति (decimal system, “base ten” or “denary”) वह संख्या
पद्धति है जिसमें गिनती/गणना के लिये कुल दस संख्याओं (0, 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8,
9) का सहारा लिया जाता है। यह मानव द्वारा सर्वाधिक प्रयुक्त संख्या पद्धति है। उदाहरण
के लिये 645.7 दशमलव पद्धति में लिखी एक संख्या है।
हजार सैंकड़ा दहाई इकाई दसवां सौवां हजारवां
1000 100 10 1 1/10 1/100 1/1000
दशमलव की संकल्पना उन भिन्नों से भी संबंधित है जिनके हर 10, 100 या 1000
अथवा इसी प्रकार होते हैं। दशमलव संख्या के 2 भाग होते हैं—पहला भाग पूर्ण संख्या तथा
दूसरा भाग दशमलव संख्या का होता है। यदि किसी दशमलव संख्या में पूर्ण भाग ना हो
तो प्रायः दशमलव बिंदु के पूर्व शून्य लिख देते हैं। एक उदाहरण और देखें―
दहाई इकाई दसवां सौवां
8 5 2 3
85+2/10+3/100 को संख्या 85.23 लिखा जाता है जो एक दशमलव संख्या है।
दशमलव भिन्न– यदि किसी परिमेय राशि के हर 10 के घाट अर्थात
(10,100, 1000,….) होते है तो वैसे भिन्न को दशमलव भिन्न कहते है। जैसे 3 / 10,
7/100 आदि। यहाँ पर 3/10 का अर्थ है की 3 इकाई का दसवा भाग, 7/100 का अर्थ
है 7 इकाई का सौवाँ भाग अर्थात दशमलव भिन्न वे भिन्न हैं जिनके हर 10 या 10ⁿ हो,
जहाँ n कोई घन पूर्णांक है। उदाहरण के लिए, 8/10,83/100, 83/1000, तथा 8/10000
आदि दशमलव भिन्न हैं जिन्हें क्रमश: 0.8, 0.83, 0.083, तथा 0.0008 लिखा जाता है।
अर्थात दशमलव भिन्न ऐसा भिन्न होता हैं जिसका हर 10 या 10 की कोई घातों के
रूप में हो। दूसरे शब्दों में यदि अंश में हर से भाग दिया जाए तो दशमलव में प्राप्त राशि
दशमलव भिन्न कहलायेंगी। उदाहरण : 6/10, 12/100, 528/1000, 3/4, 4/5 दशमलव
भिन्न 2 प्रकार के होते हैं—
(क) साधारण आवृत दशमलव भिन्न-ऐसा भिन्न जिसमें दशमलव बिंदु के बाद
सभी अंकों की पुनरावृत्ति होती हैं, उसे साधारण आवृत दशमलव भिन्न कहते हैं।
उदाहरण: 3.1515151515……….3.15
(ख) मिश्रित आवृत दशमलव भिन्न-ऐसा दशमलव भिन्न जिसमें दशमलव बिंदु
के बाद 1 या 2 अंकों के बाद वाले अंकों की पुनरावृत्ति होती हैं उसे मिश्रित आवृत दशमलव
भिन्न कहते हैं।
उदाहरण: 0.24343434343434………0.243
प्रश्न 24. दशमलव संख्याओं पर गणितीय संक्रियाएँ कैसे हल करेंगे ? उदाहरण
द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर― दशमलव बिन्दु की अवधारणा तथा संख्या की दशमलव पद्धति को समझने में
बच्चों को समय लगता है। दशमलव संख्याओं की विभिन्न गणितीय संक्रियाएँ करने के लिए
यह अवधारणात्मक समझ अत्यंत जरूरी है। बच्चों को दशमलव संख्याओं पर गणितीय
सॅक्रिया बनाने की आदत लगानी चाहिए। इसके लिए विभिन्न अभ्यासों द्वारा उनकी
अवधारणात्मक समझ को स्पष्ट कर सकते हैं। उनसे ऐसे सवाल पूछते चलें जिनसे उन्हें
और हमें उनकी समझ को परखने में मदद मिले। उन्हें ऐसे अभ्यास दें जिनसे उनकी बुनियादी
समझ की जाँच हो सके। उदाहरण के लिए―
(क) जोड़ की संक्रिया-दशमलव संख्याओं पर आसान जोड़ हल करवाने के बाद
कुछ जटिल दशमलव संख्याओं के जोड़ सिखाने के अभ्यास कराए जायें। जैसे―
बोर्ड पर 18.7 + 20.65 लिखें। संख्याओं की ओर इशारा करते हुए बच्चों से कहें
“पहली संख्या में दशमलव बिन्दु के बाद एक अंक है और दूसरी संख्या में दो अंक है।
इसलिए हम
18.7 18.70
लिख देंगे। अब इन्हें एक के नीचे एक लिखकर जोड़ देंगे। फिर बोर्ड पर लिखें―
18.70
+20.65
_________
= 39.35
और बता दें कि 18.7 और 20.65 का जोड़ 39.35 है ।
(ख) घटाव की संक्रिया―जब संख्याएँ एक लाइन में लिखी हों, तो ज्यादा गलतियाँ
होती हैं। इसी प्रकार से जब संख्याओं में दशमलव के बाद अंकों की संख्या अलग-अलग
हो, तो भी बच्चे ज्यादा गलती करते हैं। अतः उन्हें संख्याओं के स्थानीय मान के अनुसार
अंकों को समान स्थानीय मान वाले अंकों के नीचे लिख कर घटाना सिखाना चाहिए। इसका
सर्वोत्तम समाधान तो यह होगा कि दशमलव में स्थानीय मान की बेहतर समझ विकसित की
जाए। जैसे―
15.7 + 12.54
15.08 + 9.845
इन्हें घटाने के लिए संख्या को उनके स्थानीय मान के अनुसार एक-दूसरे के नीचे
लिखना आवश्यक है। अर्थात,
15.70 15.080
–12.54 – 09.845
_______ __________
= 03.16 = 05.135
(ग) गुणा की संक्रिया—गुणा ठीक उसी तरह करें जैसे दो पूर्णांक संख्याओं का करते
हैं। गुणनफल में दशमलव बिन्दु इस तरह लगाएं कि गुणनफल में दशमलव के बाद अंकों
की संख्या तथा गुणित व गुणक (मूल संख्याएँ) में दशमलव के बाद अंकों की कुल संख्या
बराबर रहे। इस नियम को समझने से पहले बच्चों को यह पता होना चाहिए कि गुणित व
गुणक क्या होते हैं। इसके लिए उन्हें निम्न प्रकार बताना ठीक रहेगा―
शिक्षक–मान लो कि हम 0.1 x 5 करना चाहते हैं। पहले तो यह बताओं कि 0.1
का तुम क्या मतलब समझते हो ?
छात्र–भिन्न के रूप में यह 1/10 होगा।
शिक्षक– तो 0.1 × 5 क्या होगा ?
छात्र– 1 / 10 × 5 = 5/10
शिक्षक– इसे दशमलव रूप में कैसे लिखोगे ?
छात्र– 0.5
शिक्षक – तो 0.1 x 5 = 5/10 = 0.5 हुआ। अब बताओ 0.01 x 5 और 0.001
x 5 का मान कितना होगा ?
छात्र– 0.01 x 5 = 0.05
शिक्षक– कैसे निकाला ?
छात्र– 0.01 x 5 = 1 / 100 × 5 = 5/100 = 0.05
शिक्षक–अब देखते हैं कि क्या तुम इसी तरह से 0.06 x 0.3 निकाल सकते हो ?
छात्र– 0.6 × 0.3 = 6/10 × 3/10 = 18/100 = 0.18 यानि शून्य दशमलव एक
आठ।
ऊपर दिए गए उदाहरण से पता चलता है कि किस तरह विद्यार्थी गुणा का नियम खुद
विकसित कर सकते हैं। ऐसा होने पर उन्हें एक ऐसी प्रक्रिया को याद रखने पर मजबूर नहीं
होना पड़ेगा जिसे वे समझते नहीं। उदाहरण से यह भी पता चलता है कि नियम को लेकर
किसी भी भ्रम की स्थिति में विद्यार्थी भिन्न के तरीके से अपने उत्तर की जांच भी कर सकते
हैं। इससे उनमें आत्मविश्वास बढ़ता है।
(घ) भाग की संक्रिया―गुणा की तरह यहाँ भी हम भिन्न वाले तरीके से आगे बढ़ेंगे।
यानी हम दशमलव संख्याओं को भिन्न के रूप में लिख लेंगे और फिर भिन्न संख्याओं के
भाग का नियम लगाएंगे। इसे निम्न उदाहरण से समझ सकते हैं―
शिक्षक― बताओ कि 0.4 को भिन्न के रूप में कैसे लिखें ?
छात्र― 0.4 बराबर 4/10 होता है।
शिक्षक– क्या तुम 24 ÷ 4/10 का मान निकाल सकते हो ?
छात्र– 24 ÷ 4/10 यानि 24 x 10/4 = 60
बच्चों से पूर्णांक संख्या को दशमलव संख्या से भाग देने के एक-दो उदाहरण और
करवाएँ। उन्हें यह समझाएं कि एक दशमलव संख्या को दूसरी संख्या से भाग कैसे देते हैं।
उदाहरण के लिए 0.36 + 0.2
बच्चों से कहें कि इन्हें भिन्न संख्या के रूप में लिख दें। यानि 36/100÷2/10
जो बच्चे एक भिन्न संख्या में दूसरी भिन्न संख्या का भाग देना समझ चुके हैं, उन्हें
यह तरीका अपनाने में कोई दिक्कत नहीं आती। मगर अन्य बच्चों के लिए यह तरीका
मुश्किल होता है। उनके लिए शायद इसी तरीके के समान एक अन्य तरीका बेहतर हो।
यह तरीका है,
0.36/0.2 = 36×10/2×100= 3.6/2 = 1.8
हमारे लिए बच्चों को यह समझाना बहुत जरूरी है कि वे भाग में दशमलव बिन्दु कहाँ
लगाएँ। हम इस बात पर जोर देते हैं कि बिंदु पूर्णांक को भिन्न वाले हिस्से से अलग करने
के लिए है। बच्चों के दैनिक जीवन में ऐसे पर्याप्त अवसर होते हैं जब वे दशमलव संख्याओं
का उपयोग कर सकते हैं। दशमलव संख्याओं की अवधारणा व हुनर विकसित करने में
बच्चों के इन अनुभवों का लाभ उठाया जाना चाहिए।
प्रश्न 25. बच्चों में दशमलव संख्या एवं दशमलव भिन्न की समझ कैसे विकसित करेंगे ?
उत्तर– अभ्यास से पता चलता है कि दशमलव पद्धति को पूरी तरह समझने के लिए
जरूरी है स्थानीय मान की अवधारणा का ज्ञान हो। अत: बच्चों को दशमलव संख्या के
स्थानीय मान रूप की समझ होना आवश्यक है। सबसे पहले बच्चों को कुछ पूर्णांक
संख्याओं जैसे कि 324, 271 और 450 को 100, 10 और 1 के गुणज के रूप में लिखने
को कहें। उन्हें बच्चे आसानी से कर सकते हैं। जैसे—
324 = 3 ×100+ 2×10 + 4 x 1
271 = 2 x 100 + 7×10 + 1×1
450 = 4×100 + 5×10+ 0 × 1
उनसे पूछें तुम्हें 100 से 10 कैसे मिलेगा ? 100 को 10 से भाग देकर। अब दहाई के
स्थान और 1 के स्थान को लो। तुम्हें 10 से 1 कैसे मिलेगा ? 10 को 10 से भाग देकर ?
इस तरह प्रत्येक स्थान की तरफ ध्यान दिलाकर उनसे कहें कि “इस तरह जैसे-जैसे हम
दायीं तरफ बढ़ते हैं “हम 10 से भाग देते हैं। इसी तरह हर बार 10 से भाग देकर हम इकाई
के बाद वाले स्थानों की ओर बढ़ना जारी रखते हैं। तब इकाई के दाहिनी ओर दसवां भाग
होगा, फिर सौवां भाग आदि। और यह दिखाने के लिए कि इस स्थान पर ‘इकाई’ समाप्त
होती है, हम इकाई संख्याओं के आगे बिन्दु लगा देते हैं। जैसे-2.5 का मतलब है।
2 × 1 + 5 ×1/10
.7 का मतलब है, 7/10
11.47 का मतलब है-
1 × 10 + 1 × 1 + 4×1/10 + 7×1/100
इस तरह 2.5 का मतलब है,
2 × 1 + 5 ×1/10 = 2+5/10 = 2+.5
और इसी तरह 16.7 = 16 + .7
इस तरह दशमलव बिन्दु पूर्णांक को भिन्न संख्या से अलग करता है, इसके बाद उनसे
दशमलव संख्याओं को स्थानीय मान के रूप में लिखवाएं। जैसे―
51.651 (6/10)
= 5 ×10 + 1 × 1 + 6×1/10
इसी तरह से स्थानीय मान के रूप में प्रस्तुत संख्या को दशमलव के रूप में लिखवाने
का अभ्यास भी करवाएँ। जैसे―
2 × 100 + 0 × 10 + 7×1 + 8×1/10 + 3 x 1 / 100
= 207.83
स्थानीय मान रूप सिखाने के बाद बच्चों से ढेर सारे अभ्यास करवाने चाहिए। फिर
उनसे दशमलव संख्याओं से संबंधित इबारती सवाल भी हल करवाने चाहिए। इसलिए ऐसे
सवाल तभी देना अच्छा रहता है जब वे स्थानीय मान के रूप में संख्या प्रस्तुत करना सीख
चुके हों। तो इस तरह दशमलव संख्याओं से परिचित कराया जा सकता है।
बच्चों को दशमलव संख्या तथा दशमलव भिन्न समझाने के लिए एक अन्य गतिविधि
करायी जा सकती है, जिसमें दशमलव किट का इस्तेमाल होता है। इससे बच्चों को दसवाँ
भाग, सौवाँ भाग और पूर्ण के साथ इनके सम्बन्ध को समझने में मदद मिलेगी।
ph
बच्चों को एक-एक पट्टी उठाने के लिए कहें और उन्हें बताएँ कि इसे दसवाँ भाग कहते
हैं। उन्हें ध्यान देने को कहें कि हर पट्टी पूर्ण का एक दसवाँ है। उन्हें ऐसी जालियाँ दिखाएँ
जिनमें कई अलग-अलग दसवें भाग छायांकित हों और उनसे छायांकित दसवें भागों की संख्या
पूछें। उनसे पूछें, “कितने दसवें मिलकर एक पूर्ण बनाते हैं ?” उन्हें गिनने व समझने दें
कि 10 दसवें मिलकर एक पूर्ण बनाते हैं। ‘दसवाँ’ व एक पूर्ण के दस बराबर भागों में बँटने
की प्रक्रिया के बीच का सम्बन्ध पूरी तरह स्पष्ट होना चाहिए।
अब उन्हें एक छोटा चौखाना उठाने को कहें और उन्हें बताएँ कि इसे सौंवाँ भाग कहते
हैं। उन्हें स्थान दिलाएँ कि हर छोटा चौखाना एक पूर्ण का सौवाँ भाग है। उन्हें यह समझने
में मदद करें कि 100 सौवें मिलकर एक पूर्ण बनाते हैं। उन्हें ऐसी जालियाँ दिखाएँ जिनमें
कई अलग-अलग सौंवें भाग छायांकित हों और उनसे छायांकित सौंवें भागों की संख्या पूछें।
‘सौवाँ’ व एक पूर्ण के सौ बराबर भागों में बँटने की प्रक्रिया के बीच का सम्बन्ध पूरी
तरह स्पष्ट होना चाहिए। अब उनसे पूछे कि कितने सौंवें मिलकर एक दसवाँ बनाते हैं,
कितने सौंवे मिलकर 2 दसवें बनाते हैं आदि।
उन्हें प्रोत्साहित करें कि शुरू में सवालों का जवाब देते समय वो अपनी सामग्री का
इस्तेमाल करें। शिक्षकों को इस तथ्य पर जोर देना चाहिए कि एक दसवाँ और एक सौंवों
पूर्ण एक से कम होता है। इन सम्बन्धों की ठीक-ठीक समझ दशमलव की अवधारणा को
समझने का रास्ता तैयार करती है।
प्रश्न 26. भिन्न के विभिन्न अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर―भिन्न के विभिन्न अर्थों को हम इसके विभिन्न रूपों द्वारा समझ सकते हैं जो
निम्नलिखित हैं―
(क) एक भिन्न–एक भिन्न का अर्थ है एक समूह का अथवा एक क्षेत्र (region)
का एक भाग 5/12 एक भिन्न है। हम इसे ‘पाँच-बारहवांश’ (Five-twelveth) पढ़ते
हैं। ‘“12” क्या दर्शाता है ? यह बराबर भागों की वह संख्या है जिनमें एक पूर्ण को बाँटा
गया है। “5” क्या दर्शाता है ? यह बराबर भागों की वह संख्या है जो सभी 12 भागों में
से लिए गए हैं।
यहाँ 5 अंश (numerator) और 12 हर (denominator) कहलाता है।
(ख) उचित भिन्न–उचित भिन्न वह संख्या है जो एक पूर्ण (Whole) के भाग को
निरूपित करती है। इसमें हर यह बताता है कि पूर्ण को कितने बराबर भागों में विभाजित
किया गया है तथा अंश यह दर्शाता है कि इसमें से कितने भाग चुने गए है। अतः एक उचित
भिन्न में अंश सदैव हर से छोटा होता है।
(ग) विषम भिन्न तथा मिश्रित भिन्न―वे भिन्न जिनमें अंश हर से बड़ा होता है
विषम भिन्न (improper fractions) कहलाती हैं। इसे एक उदाहरण से ऐसे समझ सकते
हैं―
अनघा, रवि, रेशमा और जॉन ने अपना खाना बाँटकर खाया। अपने साथ वे पाँच सेब
भी लाए थे। खाना खाने के बाद चारों मित्र सेब खाना चाहते थे। वे चारों आपस में इन
पाँच सेबों को किस प्रकार बाँट सकते हैं ? अनघा ने कहा, आओ हम सभी एक पूरा सेब
और पाँचवें का एक-चौथाई ले लें।
रवि ने कहा, “बाँटने की दोनों विधियों से प्रत्येक को बराबर भाग मिलेगा और वह है,
5 चतुर्थांश (quarters)। चूँकि 4 चतुर्थांशों से एक पूर्ण बनता है, इसलिए हम कह सकते
हैं कि हममें से प्रत्येक को एक पूर्ण और एक चतुर्थांश (चौथाई) मिलता है। प्रत्येक भाग
5 भाग 4 है। क्या इसे 5+4 लिखते हैं ? जॉन ने कहा, हाँ इस 5/4 भी लिखा जा सकता है।
रवि ने जॉन से पूछा, ‘इस भाग को लिखने की अन्य विधि क्या है ? क्या यह 5 सेबों
को अनघा द्वारा विभाजित करने की विधि से प्राप्त हो जाता है ? जॉन ने कहा, ‘हाँ, वास्तव
में यह अनघा की विधि से प्राप्त हो जाता है। उसकी विधि में प्रत्येक का भाग एक पूर्ण
और एक चौथाई से मिलकर बना है। यह 1 + 1/4 है, जिसे 1(1/4) भी लिखा जाता है।
इसे मिश्रित भिन्न (mixed fractions) कहते हैं। एक मिश्रित भिन्न में एक भाग पूर्ण होता
है और एक भाग भिन्न होता है, इत्यादि ।
प्रश्न 27. बच्चों को भिन्नात्मक संख्याओं पर जोड़-घटाव जैसी गणितीय
संक्रियाएँ हल करना कैसे सिखाएंगे ? उदाहरण द्वरा स्पष्ट करें।
उत्तर― बच्चों को भिन्नात्मक संख्याओं पर गणितीय संक्रियाएँ हल करना सिखाने के
लिए निम्नलिखित गतिविधि करायी जा सकती है—
(क) जोड़ की संक्रिया― शिक्षक कक्षा में 1/3 + 1/3 को समझाने के लिए सभी
बच्चों को एक-एक कागज देते हैं। अब कागज को तीन समान भागों में तह (बाँट) करके
वापस खोल देते हैं बच्चों को भी ऐसा ही करने को कहते हैं।
ph
शिक्षक–अब बताओं कागज का प्रत्येक हिस्सा कितना भाग दर्शाता है।
बच्चे– 1/3
शिक्षक―ठीक ! अब पहले को रंगकर। छायांकित कर उस पर 1/3 लिख दो। उसके
बाद अगले हिस्से को रंगकर उस पे भी 1/3 लिख दो। अब बताओ कितने हिस्से रंगीन हैं ?
बच्चे– दो।
शिक्षक–तीन में से दो, तो रंगीन हिस्सा कितने भागों को दर्शाता है।
बच्चे― 2/3
शिक्षक– तो क्या हम 1/3 + 1/3 = 2/3 लिख सकते हैं।
बच्चे– जी ।
ph
(ख) घटाव की संक्रिया―बच्चों को भिन्नों के जोड़ की अवधारणा स्पष्ट होने पर
घटाने की अवधारणा सहजातापूर्वक समझ में आ जाती है। इसके लिए एक शिक्षक द्वारा
कक्षा में कराई जा रही गतिविधि को देखते हैं।
शिक्षक, बच्चों को भिन्न संबंधी जोड़ की अवधारणा बताते समय कराई गई गतिविधि
की चर्चा करते हुए बच्चों से पूछता हैं :
शिक्षक–अच्छा बताओ 2/3 में से 1/3 कैसे घटाएंगे ?
बच्चे–सबसे पहले एक आयत बनाकर उसे 3 बराबर भागों में बाँट देंगे।
ph
शिक्षक― बताओ अब क्या करेंगे ?
बच्चे– अब 2/3 को आयत में प्रदर्शित करेंगे।
ph
आयत के 3 बराबर भागों में से 2 भाग को आड़ी रेखाऐं खींचकर रंगीन कर देंगे। यह
रंगीन भाग 2/3 होगा। अब 2/3 में से 1/3 को घटाना है। इसके लिए एक भाग की आ
रेखाएँ मिटा देंगे। अर्थात भाग 2/3 में से 1/3 कम हो गया, अर्थात 1/3 भाग बचा।
प्रश्न 28. भिन्नात्मक संख्याओं पर गणितीय संक्रियाएँ कैसे हल करेंगे ?
उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर―भिन्न को जोड़ने की विधि-भिन्नों को जोड़ने के मुख्यतः दो विधियाँ होती हैं―
1. लघुत्तम समापवर्तक विधि―इस विधि में हर का लघुत्तम समापवर्तक लेते हैं।
ये विधि तब उपयोग में लाना अच्छा होता है जब दो से अधिक भिन्नों को जोड़ना हो। इसकी
विधि इस प्रकार है―
सबसे पहले सभी भिन्नों के हर का लघुत्तम समापवर्तक निकाल लो ।
अब प्राप्त लघुत्तम समापवर्तक से प्रतेक अंश और हर में गुणा कर लें।
अब प्रत्येक हर संख्याएँ जिनसे ल.स. प्राप्त हुआ है उनसे अंश में भाग कर दो हर मान
हो जायेगा।
अब सभी अंश संख्याओं का योग कर लीजिए। अगर अंश और हर में कुछ कॉमन
है तो उन्हें काटकर भिन्न को छोटा कर लें।
उदाहरण—माना भिन्नों 1/2, 1/3 और 1/4 का योग निकालना है। अब सबसे पहले
हम 2, 3 और 4 का लघुत्तम समापवर्तक (ल.स.) निकालेंगे जो निकालने पर 12 आता है।
अब 12 से (1×12/2×12)+(1×12/3×12) + (1×12/4×12) अंश व हर में गुणा
करने पर (समीकरण 1) अब यहाँ एक सवाल आपके मन उठ सकता है कि ये लघुत्तम
लेना क्यों जरूरी है ? दरअसल लघुत्तम समापवर्तक भिन्न में इसलिए लिया जाता है कि हर
एक समान हो जाये और भिन्न आसान हो जाये ।
चूँकि हमें भिन्नों का हर समान करना है इसलिए हम समीकरण 1 में पहली भिन्न में
2 से, दूसरी भिन्न में 3 से और तीसरी भिन्न में 4 से भाग करेंगे।
अब भिन्न इस प्रकार-6/12+4/12+ 3/12 (ल.स. लेने पर) होगी।
चूँकि हर समान है इसलिए भिन्नों को जोड़ने पर―
(6+4+3)/12 = 13/12
अतः उत्तर― 1/2 +1/3+1/4-13/12
2. वज्रगुणन विधि— इस विधि में दो भिन्नों को पहले जोड़ा जाता है फिर तीसरी भिन्न
को यानि एक साथ केवल दो भिन्न जोड़ने के लिए अच्छी है यह विधि। इसमें पहली भिन्न
के हर से दूसरे भिन्न के अंश में और दूसरे भिन्न के हर से पहले के अंश में गुणा करके
दोनों अंशों को जोड़ना है। इसके बाद हर-हर का आपस में गुणा करना है।
उदाहरण: 1/2 + 1/3 + 1/4 का हल करो (वज्रविधि से)
हल : 1/2 + 1/3 + 1/4 = ( 1/2 + 1/3) + 1/4
= [( 1 × 3 + 1 ×2) / 2×3] + 1/4
= (5/6) + 1/4
= 5/6 + 1/4
= [(5 × 4) (1 × 6)] / 6 × 4
(वज्रगुणन या तिर्यक गुणा करने पर)।
= (20+26)/24
= 26/24
= 13/12 (2 कॉमन लेने पर)
भिन्न को जोड़ने कि सबसे अच्छी विधि यह है कि भिन्न के हर को समान करके भिन्न
हल करना।
(1) यदि भिन्नों के हर (जैसे—1/3 में 3 हर है जबकि 1 अंश है) समान नहीं है तो
सबसे पहले हर को समान कर लीजिए।
(2) जब भिन्नों का हर समान हो जाये तो दोनों भिन्नों के अंश को जोड़ लीजिए और
हर को वैसे का वैसा रहने दें।
माना हमें 1/3 और 2/3 को जोड़ना है, चूँकि दोनों भिन्नों में हर समान है अर्थात दोनों
में हर 3 है अतः भिन्न का योग- 1/3 + 2/3 = 1 + 2/3 = 3/3 = 1
भिन्न का घटाना–भिन्न के घटाने की विधि बिल्कुल भिन्न के जोड़ जैसी ही है बस
अंतर यह है कि जोड़ने की जगह घटाना है।
जैसे हमने भिन्न 1/2 + 1/3 + 1/4 का योग = 6+4+3/12 = 13/12 निकाला
था। यदि इनमें– 1/4 हो तब भिन्न का योग
= 6+4-3/12 7/12
उत्तर― = 7/12
भिन्न का गुणा– किसी भिन्न का किसी भिन्न में गुणा करना—माना हमें भिन्न /
2 का भिन्न 1/3 में गुणा करना है तो हमें केवल करना ये है कि अंश का अंश में और
हर का हर में गुणा कर देना है। उदाहरण देखिए-
1/ 2 × 1 / 3 = 1×1/2×3
= 1/6
उत्तर― = 1/6
भिन्न का भाग–भिन्न की भाग की क्रियाविधि थोड़ा अलग है।
भिन्न की भिन्न में भाग की विधि―माना 1/2 में 1/3 से भाग करना है तो 1/3
का हर 3 का गुना भिन्न 1/2 के अंश (1) में हो जाता है।
1/2 + 1/3 = 1 × 3/1×2
= 3/2
प्रश्न 29. कोण किसे कहते हैं ? बच्चों में विभिन्न कोणों की समझ किस प्रकार
विकसित करेंगे ?
उत्तर – यदि कोई रेखा अपने एक सिरे को स्थिर रखकर घूमती हुई अपनी स्थिति में
परिवर्तन करती है, तो रेखा के परिक्रमण की माप को कोण कहते है। ज्योमिति में कोण
(Angle) वह आकृति है जो एक बिन्दु से दो सरल रेखाओं के निकलने पर बनती है।
उदाहरण के लिए चित्र में दोनों किरणों में एक उभयनिष्ठ अंत बिंदु (या प्रारंभिक बिंदु) A
है। यह कहा जाता है कि ये दो किरणें एक कोण बना रही हैं। उभयनिष्ठ प्रारंभिक बिंदु
वाली दो किरणों से एक कोण बनता है। कोण को बनाने वाली दोनों किरण उसकी भुजाएँ
(Arms या sides) कहलाती है। उभयनिष्ठ प्रारंभिक बिंदु कोण का शीर्ष (vertex)
कहलाता है। कोणों को दोनों किरणों के झुकाव के अनुसार डिग्री में मापते हैं।
ph
यहाँ किरणे AB और AC कोण ∠BAC या ∠CAB बना रही हैं।
ph न्यून कोण अधिक कोण
ऋजु रेखीय कोण समकोण
कोणों के प्रकार―
1. शून्य कोण―वह कोण जिसका मान 0° होता है उसे शून्य कोण कहते हैं।
2. न्यूनकोण– जिस कोण का मान 0° से बड़ा और 90° से छोटा हो। उसे न्यून
कहते हैं।
3. समकोण—जिस कोण का मान 90° होता है। उसे समकोण कहते हैं।
4. अधिक कोण—जिस कोण का मान 90° से बड़ा और 180° से छोटा हो। उसे
अधिक कोण कहते हैं।
5. ऋजुरेखीय कोण—जिस कोण का मान 180° हो। उसे ऋजुरेखीय कोण कहते हैं।
6. वृहत्तकोण—जिस कोण का मान 180° से बड़ा और 360° से छोटा हो। उसे
वृहत्तकोण कहते हैं।
7. पूर्णकोण― जिस कोण का मान 360° हो। उसे पूर्णकोण कहते हैं।
बच्चों को कोणों के बारे में सीखने और उसे सार्थक बनाने के लिए कोणों के मूर्त रूप
का उपयोग करना उपयोगी होता है। गणित एक मानव के रूप में हमसे और हमारे जीवन
से भी जुड़ा हुआ है और हमारे शरीर के कोण इसका एक बेहतरीन उदाहरण हैं। हम अपनी
बाँहों और पैरों को एक कोण पर मोड़ते हैं, हम अपने सिर को एक कोण पर घुमाते हैं,
हम अपनी उलियों को अलग-अलग कोणों पर मोड़ते हैं। शारीरिक आकार में गणित को
निरूपित करने के लिए विद्यार्थियों के साथ इस तरह की गतिविधियों को करने के लिए उन्हें
गणितीय आकृति जैसा ‘बनने’ या ‘करने’ की आवश्यकता होती है। इससे संबंधित गतिविधि
से उनकी कोण की अवधारणा स्पष्ट की जा सकती है।
अपने विद्यार्थियों को कलाई से दोनों हाथ जोड़कर निम्नलिखित कोण बनाने के लिए
कहें :
● 90 डिग्री वाला कोण
● 0 डिग्री वाला कोण
● 180 डिग्री वाला कोण
● 45 डिग्री वाला कोण
● 135 डिग्री वाला कोण
● न्यून कोण
● समकोण
● अधिक कोण
● ऋजु कोण ।
अधिक कोण और न्यून कोण के लिए अलग-अलग उदाहरण संभव है। इन
अलग-अलग उदाहरणों की वैधता पर चर्चा करने से परिभाषाओं एवं इन परिभाषाओं के
अंतर्गत संभावित रूपांतरों पर बात करने का अच्छा अवसर मिलता है।
एक अन्य गतिविधि है कोणों के बारे में जानने के लिए पेपर फोल्डिंग का उपयोग
करना। विद्यार्थी अपने फोल्ड किए गए कोणों को ब्लैकबोर्ड के समक्ष रखते हैं और उनकी
नकल बनाते हैं। विद्यार्थियों से चिह्नों जैसे कि कोण प्रतीक, समकोण प्रतीक एवं कोण आकार
के साथ बनाए गए इस आकार के बारे में व्याख्या करने के लिए कहने से वे आगे गणित
के सांकेतिक निरूपण के लिए बढ़ने में सक्षम होंगे। प्रत्येक निर्मित कोण के बाद एक विद्यार्थी
को ब्लैकबोर्ड पर अपना निर्मित कोण बनाने के लिए कहें। विद्यार्थियों से चिह्न जैसे कि कोण
संकेत, समकोण संकेत एवं कोण आकार (उदाहरण के लिए 90°) के साथ बनाए गए इस
आकार के बारे में व्याख्या करने के लिए कहें।
इसके अलावा विद्यार्थियों को कक्षा में और बाहर कोणों का पता लगाने के कार्य दे सकते
हैं। चार या पाँाँच के समूह में विद्यार्थियों को व्यवस्थित करें। विद्यार्थियों से निम्नलिखित करने
के लिए कहें :
● कक्ष और मैदान में विभिन्न कोणों का पता लगाना और उसे लिखना।
● इन कोणों के आकार का अनुमान लगाना और उसे लिखना।
● न्यून, अधिक कोण आदि में इन कोणों को वर्गीकृत करना और लिखना, इत्यादि ।
प्रश्न 30. भिन्नात्मक संख्याएँ किसे कहते हैं? बच्चों में भिन्नात्मक संख्याओं की
समझ किस प्रकार विकसित करेंगे ?
उत्तर― भिन्न (Fraction) एक संख्या है जो पूर्ण के किसी भाग को दर्शाती है। भिन्न
दो पूर्ण संख्याओं का भागफल है। अर्थात भिन्न एक ऐसी संख्या है जो किसी सम्पूर्ण चीज
का कोई भाग निरूपित करती है। जैसे—एक सेब के चार भाग किये जाते है जिनमें से उनके
एक हिस्से को निकाल दिया गया है तो उसे 1/4 के रूप में प्रदर्शित किया जाता है, जबकि
शेष बचे भाग को 3/4 के रूप में इंगित किया जाता है। भिन्न का एक उदाहरण है―3/
5 जिसमें 3 अंश कहलाता है और 5 हर कहलाता है।
भिन्नों के कई रूप हैं―
(1) उचित भिन्नों के अंश का परम मान उनके हर के परम मान से कम होता है,
जैसे–3/4, 2/3, 5/7.
(2) विषम भिन्नों के अंश का परम मान उनके हर के परम मान से ज्यादा होता है,
जैसे– 5/4, 8/3, 5/3
(3) मिश्रित भिन्नों के दो भाग हैं: एक भाग पूर्ण संख्या होता है और एक भाग उचित
भिन्न होता है, जैसे—1 (2/3)
(4) तुल्य भिन्नों की राशियाँ समान होती हैं, जैसे- 1/3 और 2/6
a/b में यदि a < b तो भिन्न उचित भिन्न कहलाता है और यदि a> b तो भिन्न अनुचित
भिन्न कहलाता है। इसको साधारण भाषा में दो प्रकार से समझा सकते हैं:
(1) यदि किसी राशि को कई बराबर भागों में बाटें और उनमें से भाग ले लें, तो इनके
भागों को पूरी राशि का a/b भाग कहते हैं, या
(2) इस प्रकार की यदि a राशियाँ ले और उनके b बराबर भाग करें, तो प्रत्येक को एक
राशि के a/b भाग कहते हैं। दो संख्याओं a और b के अनुपात को भी a/b भिन्न से व्यक्त
किया जाता है। यदि भिन्न a/b में a या b को किसी भिन्न से बदल दें तो इस प्रकार बनी
भिन्न को मिश्र भिन्न कहते हैं, जबकि मूल भिन्न को सरल भिन्न कहते हैं, जैसे, 3/5 सरल
भिन्न है, परंतु (3/4)/ (5/7) मिश्र भिन्न के उदाहरण हैं।
बच्चों में भिन्न की समझ विकसित करने के लिए निम्न गतिविधि कराई जा सकती है―
कक्षा के कुछ समूह में बच्चों को अलग-अलग एक-एक कागज बाँट दें। अब प्रत्येक
बच्चे को अपना कागज इस प्रकार मोड़ने को कहें कि कागज दो बराबर भागों में बट जाए।
कागज को मोड़ने की एक दो स्थितियाँ प्रदर्शित करते हुए शर्त यह रखी जाए कि कोई दो
छात्र एक जैसी स्थिति में कागज नहीं मोड़ेंगे। अब मोड़े अनुसार कागज को फाड़कर दो
भागों में बाँटने को कहें तथा दोनों भागों को एक दूसरे पर रखकर उनके बराबर होने का
परीक्षण कराएं। हो सकता है कि कुछ बच्चों के दोनों भाग आपस में बराबर न हों। इन
स्थितियों को प्रदर्शित करते हुए किसी एक वस्तु के दो भाग और दो बराबर भाग में अंतर
करते हुए आधा की अवधारणा स्पष्ट करें। इसी प्रकार एक तिहाई, एक चौथाई आदि के
संबंध में भी सभी भागों के एक समान 1/4 बराबर 1/2 होने की अवधारणा स्पष्ट की जाए।
कक्षा में पूर्ण के आधे की बात पढ़ाते वक्त दो बराबर भाग करने के महत्व पर जोर देना
चाहिए। बच्चों को यह भी दिखाया जाना चाहिए कि कब दो भाग सचमुच बराबर होते हैं।
एक अन्य गतिविधि में एक रिबन लें। दो बच्चों से कहें कि वे इसे आपस में इस तरह
बाँटें कि दोनों को आधा-आधा मिले। जब वे आपस में बाँट लें तो उनसे कहिए कि वे जाँच
करें कि क्या सचमुच दोनों का आधा भाग मिला। इस तरह शिक्षक बच्चों को 1/2, 1/4,
1/8, 1/16 आदि से परिचित करा सकते हैं। कागज को तीन बराबर भागों में मोड़ना
सिखाकर शिक्षक 1/3 व. 1/6 आदि दिखा सकते हैं।
प्रश्न 31. एक त्रिविमीय वस्तु का जाल के द्वारा द्विविमीय निरूपण करने के
कौशल का विकास किस प्रकार करेंगे ? एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर – किसी त्रिविमीय वस्तु को चित्र के द्वारा द्विविमीय सतह पर प्रस्तुत किया जा
सकता है। इसमें त्रिविमीय वस्तु की कई जानकारियाँ गुम हो जाती हैं। चित्र देखते समय
देखने वाले को इस जानकारी को दोबारा निर्मित करना होता है। जैसे—किसी चित्र को देखते
समय यह समझना पड़ता है कि चित्र के ऊपरी हिस्से में बनाई गई चीजें या तो आकाश
में उड़ती हुई चीजें हो सकती है या नीचे बनाई गई चीजें चीजों के पीछे की चीज है। उसे
यह भी समझना होता है कि पास की चीज बड़ी बनाई जाती है जबकि दूर की चीजें छोटी।
बच्चों में त्रिविमीय वस्तु के द्विविमीय निरूपण करने के कौशल का विकास ग्राफ ग्रिड
या समबाहु नेट के द्वारा किया जा सकता है। इसमें पेपर एक सीध में उभरे हुए बिंदुओं को
समबाहु त्रिभुज के आकार में आपस में जोड़कर त्रिविमीय वस्तु का द्विविमीय रूप से निरूपण
किया जाता है जैसे कि–घन ।
ph
यदि त्रिविमीय आकृति को नेट के रूप में खोलते हैं तो उसके विभिन्न फलक प्राप्त
होते हैं। इकाई भन को यदि हम नेट के रूप में खोले तो हमें लगभग कई अलग-अलग
नेट प्राप्त हो सकते हैं। इसमें तिरछी रेखाओं के उपयोग एवं सममिति रेखाओं की समझ
के बाद त्रिआयामी आकारों को चित्रित करना सरल हो जाता है।
प्रश्न 32. द्विवीमीय एवं त्रिविमीय आकृतियों से क्या समझते हैं ? बच्चों में
द्विविमीय आकृतियों एवं त्रिविमीय वस्तुओं की समझ किस प्रकार विकसित करेंगे ?
उत्तर― द्विविमीय आकृतियाँ― एक कागज पर खींची जा सकने वाली आकृतियों
(जिनकी केवल लंबाई और चौड़ाई होती है) को द्विविमीय (two dimensional) (या तल)
कहना चाहिए। अर्थात दो विमाओं वाली आकृति को द्विविमीय आकृतियाँ कहते हैं। जैसे—
आयत, त्रिभुज, वृत्त वर्ग, चतुर्भुज आदि ।
त्रिविमीय आकृतियाँ―अपने दैनिक जीवन में हम अपने परिवेश से विभिन्न आकारों
की अनेक वस्तुएँ देखते हैं, जैसे—पुस्तकें, गेंदें, आइसक्रीम, शंकु, इत्यादि अधिकांशतः इन
सभी वस्तुओं में एक बात सर्वनिष्ठ (common) है, वह यह है कि इनमें से प्रत्येक की कुछ
लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई या गहराई है। इसी कारण ये सभी स्थान घेरते हैं और इनकी तीन
विमाएँ हैं। इसीलिए ये त्रिविमीय आकार (three dimensional shapes) कहलाते हैं।
जैसे—घन, घनाभ, गोला, शंकु, बेलन, पिरामिड, प्रिज्म आदि ।
द्विविमीय आकृतियों की समझ के लिए गतिविधि―ज्योमिति शिक्षण यदि सही
तरीके से किया जाए तो कई मायनों में इसमें देखने व अवलोकन करने की कला सीखने
की बहुत ज्यादा सम्भावना होती है। यदि केवल एक सादे चौकोर कागज को अलग-अलग
तरीकों से मोड़कर बच्चे खेल करते हैं या बिन्दुओं वाले एक कागज पर दिए बिन्दुओं को
जोड़ना शुरू करते हैं तो वे ऐसा करने से उभरती विभिन्न आकृतियों को देखना शुरू करते
हैं।
कागज मोड़ने की गतिविधि द्वारा वे जितना ज्यादा कागज के साथ काम करेंगे कागज
मोड़ने में उतने ही ज्यादा निपुण होंगे और उसमें सटीकता भी आएगी। उनसे पूछें “एक
चौकोर कागज को तुम कितने तरीकों से आधा मोड़ सकते हो ?” वे एक चौकोर कागज
को आड़े में, या खड़े में या तिरछे में आधा मोड़ सकते हैं और उसके किनारों को मिला
सकते हैं। कागज मोड़ने के बाद जो भी आकृति बने उन्हें उसका वर्णन करने के लिए कहें. J
उन्हें एक चौकोर कागज को मोड़ने के अलग-अलग तरीके खोजने को कहें—
● यदि तुम एक कोने को मोड़ दो तो तुम्हें कौन-सी आकृति मिलती है ?
● एक और कोने को मोड़ देने से आकृति में क्या बदलाव आता है ?
● क्या होगा यदि तुम चारों कोन मोड़ दो ?
अब यही सारे सवाल एक आयत के बारे में करें। वे आयताकार कागज के साथ भी
यही गतिविधियाँ कर सकते हैं और देख सकते हैं कि यदि वे एक आयत के एक कोने को
सामने वाले कोने तक मोड़ते हैं तो उसके किनारे एक सीध में नहीं होते जैसा कि चौकोर
कागज में होता है। इसके साथ भी वे अलग-अलग कोनों को मोड़ने वाला प्रयोग कर सकते
हैं और देख सकते हैं ऐसा करने से कौन-कौन सी आकृतियाँ उभरती हैं।
इसी तरह वे देख सकते हैं कि एक तिकोने कागज को केवल कुछ ही तरीकों से आधा
मोड़ा जा सकता है। वे यह भी ध्यान दे सकते हैं कि अलग-अलग तरह के तिकोन कागजों
को अलग-अलग तरह से मोड़ा जाता है। बहुत जरूरी है कि यह सब बातें बच्चे खेल और
कभी-कभार शिक्षक के दिए सुझावों के जरिए खोजें। इसके अलावा बच्चों को कागज के
आयतकार टुकड़ों को मोड़कर नियमित आकृतियाँ बनाने का प्रयास करने को कहें।
टैनग्राम: डिजाइनों को कुछ छोटा करके दिया जा सकता है। हो सकता है कि बच्चे
डिजाइन को देखकर आकृतियाँ बना लें। शिक्षक बच्चों को टैनग्राम के टुकड़ों का इस्तेमाल
कर अन्य नियमित आकृतियाँ बनाने को कह सकते हैं और इनसे जुड़े सवाल भी पूछ सकते हैं।
ph
त्रिविमीय आकृतियों की समझ के लिए गतिविधि― कक्षा में दिखाई देने वाली
त्रिविमीय आकृतियों पर चर्चा करें। कुछ आकृतियाँ नियमित त्रिविमीय आकृतियाँ होती हैं।
जैसे—घनाभ, गोला आदि। पर हमारे द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कुछ आकृतियाँ काफी
हद तक घनाभ व बेलन के समान लगती हैं लेकिन असल में घनाभ या बेलन नहीं होतीं।
उदाहरण—पानी की बोतल अक्सर पूरी तरह बेलनाकार नहीं होती बल्कि वह खुलने वाले
सिरे पर संकरी होती जाती है।
बच्चों से चर्चा करें “किन मायनों में यह एक बेलन से अलग है ?” एक टिफिन बॉक्स
की आकृति लगभग एक घनाभ जैसी लग सकती है लेकिन वह असल में पूरी तरह घनाभ
नहीं हो सकती। इसी तरह एक कम्पास बॉक्स आमतौर पर किनारों पर घुमावदार होता है।
हमें यह देखने की जरूरत है कि इस गतिविधि को करते हुए बच्चे बारीकी से अवलोकन
करें और समानताओं व विभिन्नताओं दोनों की परस्पर तुलना करें।
त्रिविमीय आकृतियों के ढाँचेनुमा नमूने बनाने जैसी गतिविधि भी बच्चों में त्रिविमीय
वस्तुओं की समझ विकसित करने में कारगर होती है। ढाँचेनुमा नमूने बनाने के लिए पेय
पीनेवाली मजबूत नलियाँ या कागज की नलियाँ इस्तेमाल की जा सकती है।
कागज की छोटी-छोटी शीट्स को कसकर मोड़कर बच्चों को कागज की नलियाँ बनाना
सिखाया जा सकता है। यह बहुत सी गतिविधियों के लिए बढ़िया सामग्री होती है। बच्चे
इन नलियों को रबर ट्यूब के जोड़ने वाले टुकड़ों से जोड़कर घन, घनाभ, प्रिज्म, पिरामिड
आदि बना सकते हैं। उनसे पूछें “यह आकृतियाँ ठोस घन या घनाभ से किन मायनों में अलग
हैं ?” फिर आसान-सी शब्दावली जैसे फलकें, किनारे, कोने, सीधी रेखाएँ, तिरछी रेखाएँ
आदि से उनका परिचय कराया जा सकता है।
प्रश्न 33. गणित में खुली व बंद, नियमित व अनियमित आकृतियों की समझ
बच्चों में किस प्रकार विकसित करेंगे ?
उत्तर– जिन वस्तुओं को हम देखते हैं, उनके आकार हैं। आकृतियाँ केवल इन
आकारों को कागज पर प्रदर्शित करती हैं। जब हम कागज के टुकड़े पर किसी आकार को
रेखांकित करते हैं तब हम इसे आकृति कहते हैं। मापन के उद्देश्य से ये हमें रेखागणित
शब्दावली का प्रयोग करने में सहायता करते हैं। रेखागणितीय आकृतियाँ, वास्तविक वस्तुओं
के आकारों से ली गई कल्पनाएँ हैं। रेखागणितीय आकृतियाँ हमें उन गुणों से संबंध स्थापित
करने में सहायता करती हैं जो हम आकार के संदर्भ में मापते हैं। बच्चे जिन वस्तुओं को
प्रतिदिन देखते हैं, उन वस्तुओं की आकृतियों को कागज पर बनाकर, उन्हें रेखागणित
आकारों से परिचित करवाया जा सकता है।
बच्चे एक आकृति का रेखांकन कर सकते हैं जो उनके खेल के मैदान की तरह दिखे।
वह उन स्थानों को भी अंकित कर सकते हैं जहाँ पर वे भिन्न-भिन्न प्रकार के खेल खेलते
हैं। वे इनमें रंग भर के, रेखाएँ खीचकर इन क्षेत्रों को बंद कर सकते हैं। एक बल्ले का
रेखांकन करना एक गेंद की तुलना में अधिक आसान है। जब हम किसी गोलाकार आकार
को कागज पर रेखांकित करते हैं तो वह एक घेरे की तरह दिखता है। बच्चों को इस प्रकार
की वस्तुओं की आकृतियों के बारे में संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है।
खुली व बंद आकृतियाँ- बहुत से बच्चे तथा किशोर भी यह निश्चित नहीं कर पाते
कि ये चित्र बंद चित्र है।
ph
बंद आकृति
ph
खुली आकृति
वे यह समझते हैं कि इसका कुछ भाग ही बंद है जबकि ये बंद चित्र की तरह नहीं
लगता इसकी समझ बनाने के लिए अध्यापक कागज पर रेखांकित बंद आकृति को प्रदर्शित
करते हैं । वे बताते हैं कि कैसे पेंसिल आकृति के आस-पास एक दिशा में चलती है। किसी
भी स्थिति से आरंभ करके आकृति के किसी भी भाग को बिना दो बार पार किए फिर वह
उसी स्थिति पर वापस पहुँचती है। किसी आकृति पर आप किसी भी स्थिति से किसी दिशा
में आरंभ करे, यदि आपके लिए यह संभव है कि आप उसी स्थिति पर आकृति के किसी
भाग को दो बार पार किए बिना पहुँच जाते हैं, तब यह बंद आकृति है।
तब अध्यापक खुली आकृति बनाते हैं। बच्चों ने पाया कि वे आरंभिक स्थान पर वापस
नहीं पहुँच पाएँ। इसलिए यह बंद चित्र नहीं है। फिर अध्यापिका ने एक और आकृति बनाते
हैं जो अपने आपको काटती है और बच्चों से पूछते हैं कि क्या यह आकृति बंद चित्र है?
वे बच्चों से कहते हैं कि वे आकृति के चारों तरफ पेंसिल घुमा कर देखें कि क्या वे किसी
स्थिति से आरंभ करके उसी बिन्दु पर पहुँच सकते हैं जहाँ से शुरू किया था। उन्होंने पाया
कि यह संभव था, इसलिए यह बंद आकृति है। इस तरह के कई अभ्यास से बच्चों को खुली
व बंद आकृति की पहचान करायी जा सकती है।
इसके लिए एक अन्य गतिविधि भी करायी जा सकती है। इस गतिविधि को माचिस
की तीलियों से करवाएँ। इसमें दो-दो विद्यार्थी कार्य कर सकते हैं। दोनों के मुँह विपरीत दिशा
में रखें। एक विद्यार्थी आकृति बनाएगा। दूसरा पूछ-पूछ कर बिना देखे वही आकृति
बनाएगा। जैसे—
बच्चे को आकृति पुस्तक में देखने को कहें।-
उनसे पूछें—आकृति बंद है या खुली ? इसकी कितनी भुजाएँ हैं ?
यहाँ उद्देश्य मात्र बच्चे को आकृति सिखाना नहीं है। इसलिए जल्दी से सही आकृति
तक पहुँचाने का प्रयास न करें। वह जितने प्रयास करेगा/करेगी, उतनी समझ बढ़ेगी। इसमें
सही प्रश्न पूछना और निर्देशों को समझना भी जुड़ा हुआ है। इस अवसर का लाभ विद्यार्थी
को उठाने दें।
नियमित व अनियमित आकृतियाँ―जिन आकृतियों को रेखागणितीय आकारों
(त्रिभुज, चतुर्भुज, वृत्त, अर्धवृत्त इत्यादि) में विभाजित किया जा सकता है वे नियमित
आकृतियाँ होती है तथा जिन आकृतियों को रेखागणितीय आकारों में विभाजित नहीं कर
सकते हैं वे अनियमित आकृतियाँ कहलाती है। जैसे-
ph
नियमित आकृतियाँ
ph
अनियमित आकृतियाँ
बच्चों को नियमित व अनियमित आकृतियों में अंतर समझाने के लिए शिक्षक बच्चों
के साथ एक क्रियकलाप का आयोजन कर सकते हैं। क्रियाकलाप आरंभ करने से पहले
यह सुनिश्चित कर लें कि बच्चे त्रिभुज, चतुर्भुज व वृत्त जैसे आकारों को पहचानते हैं। उन्हें
इनके नाम पता होने चाहिए। पहले समतल सतहों व बंद आकृतियों के बारे में आरंभ कर
सकते हैं। कुछ लकड़ी के टुकड़े/खपच्चियाँ इकट्ठी करें व कागज की त्रिभुज, चतुर्भुज, वृत्त,
अर्ध वृत्त वाली आकृतियों की कतरने लें। बच्चों को उनके नाम बताने दें व उनके कोनों
और किनारों को गिनने दें। उन्हें यह बता दें कि ये नियमित आकृतियाँ हैं। एक बार उन्हें
नियमित आकृतियों की जानकारी हो जाए तब उन्हें विभिन्न प्रकार के त्रिभुज व चतुर्भुज से
परिचित करवाया जा सकता है। सीधे किनारों वाले नियमित आकारों से परिचय करवाने के
बाद बच्चों का वृत्त, वृत्त के भागों तथा त्रिभुज व चतुर्भुत द्वारा उन्हें मिलाकर आकार/नमूने
बनाने के लिए कह सकते हैं।
फिर उन्हें ऊपर दर्शायी गयी अनियमित आकृतियों को गणितीय आकारों जैसे त्रिभुज,
वृत्त आदि में विभाजित करने के लिए कहें। यह करने से वे जान जाएंगे कि ये करना संभव
नहीं है तथा वे इस बात को मान लेंगे कि आकृतियाँ ऐसी भी होती हैं, जो नियमित नहीं
होती ।
बच्चों को अनियमित आकृतियों के अनुभव के लिए एक अन्य गतिविधि भी कराई जा
सकती है। जो बच्चों को यह अनुभव कराने में सहायता करेगी कि सभी आकृतियाँ नियमित
नहीं होती। एक पानी का गिलास लें व जोर से पानी को सूखी जमीन या दीवार पर फेंके।
बच्चों को पानी द्वारा बने इस नमूने का अवलोकन करने दें। उन्हें देखने दें कि क्या वे लकड़ी
के टुकड़ों का प्रयोग करके उसे परिचित आकारों में विभाजित कर सकते हैं? जैसा उन्होंने
पहले किया है। वह देखेंगे कि कोने न तो सीधे हैं वे न ही किसी वृत्त का भाग हैं। शिक्षक
कागज के टुकड़े पर स्याही बिखरे कर भी उन्हें नमूना दिखा सकते हैं। उन्हें यह अहसास
होने दें कि ऐसी आकृतियों को परिचित आकारों जैसे कि त्रिभुज, चतुर्भुज तथा वृत्त में नहीं
बाँटा जा सकता। ऐसे आकार नियमित नहीं होते। इसलिए ऐसे आकारों को अनियमित कहा
जाता है।
प्रश्न 34. ज्योमिति के विभिन्न अवयव बिंदु, रेखा एवं किरण से क्या समझते
हैं? बच्चों में इनकी समझ कैसे विकसित करेंगे ?
उत्तर– बिंदु― दूरी को हमेशा किन्हीं दो बिंदुओं के बीच मापा जाता है। व्यावहारिक
दृष्टिकोण से, बिंदु एक छोटा धब्बा है जो कागज पर रहता है, यदि बच्चे इसे पेंसिल या कलम
के साथ चिपकाते हैं। एक बिंदु सेट करने के लिए एक और अधिक बेहतर तरीका दो पतली
रेखाओं के साथ एक क्रॉस खींचना है, जिसके परिणामस्वरूप बिंदु उनके चौराहों के कटान
बिंदु पर स्थित होता है। पुस्तकों में चित्र में, एक बिंदु को अक्सर छोटे काले घेरे के रूप
में दर्शाया जाता है, लेकिन ये सभी केवल अनुमानित दृश्य चित्र है और एक सख्त गणितीय
अर्थ में बिंदु-यह एक काल्पनिक वस्तु है, जिसका आकार सभी दिशाओं में शून्य है।
सीधी रेखा–पेंसिल को दो बच्चे पर रखते हुए, उनके माध्यम से एक सीधी रेखा
खींच सकते हैं। काल्पनिक गणितीय रूप में एक काल्पनिक आदर्श रेखा, शून्य मोटाई और
दोनों दिशाओं में अनंत तक फैली हुई है। एक वास्तविक ड्राइंग पर यह काल्पनिक डिजाइन
रूप लेती है। चित्र में रेखा की मोटाई स्पष्ट रूप से शून्य से अधिक है, और यह नहीं कह
सकते कि रेखा अनंत तक फैली हुई है। फिर भी इस तरह के अनियमित चित्र कल्पना के
समर्थन के रूप में बहुत उपयोगी हैं, और लगातार उनका उपयोग होता है। एक बिंदु को
दूसरे से अलग करना आसान बनाने के लिए उन्हें आमतौर पर लैटिन वर्णमाला के बड़े अक्षरों
के साथ लेबल किया जाता है। उदाहरण के लिए अंक अक्षरों द्वारा इंगित किए जाते हैं और
BA संक्षिप्तता के लिए, पदनाम (AB), जहाँ “सीधी रेखा’ शब्द छोड़ा गया है और कोष्ठक
जोड़े गए हैं। अक्षरों द्वारा सीधी रेखाओं को भी निरूपित किया जा सकता है। एक ही बिंदु
से कई अलग-अलग रेखाएँ खींची जा सकती हैं।
रेखाखंड —दो बिंदुओं से बंधी रेखा के हिस्से को काट दिया जाता है तो ये बाउंडिंग
पॉइंट भी रेखाखंड से संबंधित है, जिसके सिरे बिंदुओं पर आते हैं और B “खंड” द्वारा चिह्नित
AB रेखाखंड कहलाते हैं। हर खंड की विशेषता है लंबाई जो एक छोर से दूसरे छोर तक
जाने के लिए खंड के साथ होनी चाहिए। कागज की एक शीट पर बच्चों द्वारा स्केल से
रेखाखंड खींचने के अभ्यास कराये जा सकते हैं। खींचे गए खंडों की लंबाई को सबसे अच्छे
तरीके से मापा जाता है सेंटीमीटर द्वारा। यदि खंड के छोर बिंदुओं पर आते हैं और B, फिर
इसकी लंबाई के रूप में दर्शाया जाता है। AB। नीचे दूरी से दो बिंदुओं के बीच उन्हें जोड़ने
वाले खंड की लंबाई है।
किरण―किरण रेखा का एक भाग होता है। यह एक बिंदु से प्रारंभ होती है (जिसे
प्रारंभिक बिंदु (initial point) कहते हैं और एक दिशा में बिना किसी अंत के विस्तृत होती है।
ph
बिन्दु
रेखा
रेखाखंड
किरण
बच्चों को बिंदु, रेखाखंड तथा किरण की समझ विकसित करने के लिए एक अन्य
गतिविधि भी करायी जा सकती है। कागज पर एक पेंसिल के नुकीले सिरे से एक चिह्न
(कवज) अंकित कीजिए, सिरा जितना नुकीला होगा चिह्न उतना ही सूक्ष्म (छोटा) होगा।
लगभग एक बिना दिखाई देने वाला सूक्ष्म चिह्न बच्चों को एक बिंदु की अवधारणा का आभास
कराएगा। बिंदु (point) एक स्थिति (या अवस्थिति) (location) निर्धारण करता है।
बच्चों को एक कागज को मोड़ने और फिर उसे खोलने दें। इससे एक रेखाखंड (line
segment) की अवधारणा का आभास होता है। इसके दो अंत बिंदु (end point) A और
B हैं। एक पतला-धगा (या डोरी) लें, इसके दोनों सिरों को कसकर पकड़ें ताकि धागे में
कोई ढील न रहे। यह एक रेखाखंड निरूपित करता है। हाथों से पकड़े हुए सिरे इस
रेखाखंड के अंत बिंदु हैं। बच्चों को कहें कि A से B तक के रेखाखंड (अर्थात् AB) को
A से आगे एक दिशा में और B से आगे दूसरी दिशा में बिना किसी अंत के विस्तृत किया
गया है। उन्हें रेखा (line) का एक उदाहरण प्राप्त हो जाएगा। उन्हें बताएं कि दो बिंदुओं
A और B से होकर जाने वाली रेखा को AB से निरूपित करते हैं। यह दोनों दिशाओं में
अनिश्चित रूप से विस्तृत होती है। इस पर असंख्य बिंदु स्थित होते हैं।
प्रश्न 35. पैटर्न की अवधारणा स्पष्ट करें। बच्चों में पैटर्न की समझ कैसे
विकसित करेंगे ? इसका क्या महत्व है ?
उत्तर–पैटर्न–गणितीय सोच का एक महत्वपूर्ण पहलू है पैटनों और कड़ियों को
पहचानने की क्षमता पैटर्न एक के बाद एक आने वाली संख्याओं की बीच कुछ विशिष्ट
तथा क्रमिक संबंधों को दर्शाता है जिससे उनका क्रम उन गणितीय संबंधों के अनुसार चलता
रहता है। बच्चे इस अवलोकन तथ निरीक्षण द्वारा समझते हैं तथा उस पैटर्न को आगे बढ़ाते
या उनके बीच गणितीय संबंधों पर अपनी समझ स्पष्ट करते हैं। उदाहरण के तौर पर―
5, 7, 9, 11, 13….विषम संख्याओं की कड़ी है जो इनका पैटर्न बना रहा है।
7, 14, 21, 287 के गुणजों का पैटर्न है। बच्चे इनके बीच गणितीय संबंध
को समझ कर पैटर्न को आगे बढ़ा सकते हैं।
महत्व— गणित में विभिन्न अवधारणाओं को पैटर्न की मदद से समझने और विकसित
करने में मदद मिलती है। जैसे—चर की अवधारणा, सूत्रों का निर्माण करना और समझना
आदि। साथ ही हम आगमनिक एवं निगमनात्मक तर्क में भी इसका प्रयोग देख सकते हैं।
यह बच्चों को गणित सिखाने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। पैटर्न के खेल तथा चीजों
को क्रम लगाने के खेल से उनकी समझ बढ़ती है तथा उनमें व्यापीकरण की अवधारणा का
विकास होता है। जब बच्चे पैटर्न पहचानने, समझने एवं बनाने लगते हैं तब वे गणित के
सवालों को हल करने में भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
समझ के विकास में पैटर्न की भूमिका―बच्चों में गणितीय समझ के विकास में
पैटर्न की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसे एक उदाहरण से समझ सकते है—
एक बच्चे को 2×76 का सवाल हल करने को दिया गया। इसका जवाब आया 432
बच्चे ने 2 × 76 के बजाय 72 × 6 कर दिया था। अब इसकी त्रुटि को उसे स्वयं से समझने
के लिए पैटर्न का उपयोग किया जा सकता है। इससे वह स्वयं अपनी समझ का विकास
कर सकता है ।
उसे एक पैटर्न हल करने को दिया जाता है—
2 x 100 = ?, बच्चे का उत्तर 200
2 x 90 = 2, बच्चे का उत्तर 180
2 x 80 = ?, बच्चे का उत्तर 160
2 x 76 = ?, कुछ देर रूकने के बाद 432
2 x 70 = ?, बच्चे का उत्तर 140
2 x 80 = ?, बच्चे का उत्तर 160
2 x 76 = ?, बच्चे का उत्तर 432
2 x 100 = ?, बच्चे का उत्तर 200
अब बच्चा रूक कर स्वयं सोचेगा कि यदि गुणा के प्रश्न में 10 कम होने पर उत्तर
20 कम हो रहा है मतलब 2 गुणा कम हो रहा है, इसका मतलब यदि 80 से 76 यानि 4
कम हुआ तो परिणाम 8 कम होना चाहिए अर्थात 2 × 76 = 152 अब वह स्वयं से यह
जान लेगा कि उसने कहाँ गलती की थी। तथा वह स्वयं कहेगा कि उससे गलती हुई। फिर
वह ठीक गुणा कर के 2 x 76 का उत्तर 152 निकाल लेगा।
इस प्रकार बच्चे बीज गणित तथा सूत्रों के निर्माण में भी पैटर्न द्वारा उनकी अवधारणा
को समझ कर अपनी गणितीय सोच का विकास करता है। इस प्रकार पैटर्न गणितीय सोच
बढ़ाने हेतु महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 36. औपचारिक गणित को ठोस अनुभवों से जोड़ने की क्या जरूरत है ?
अथवा
औपचारिक गणित को ठोस अनुभवों से जोड़कर सिखाना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर―औपचारिक गणित या मन में हिसाब अच्छी तरह कर पाने के बावजूद भी बच्चों
को अवधारणाओं, संक्रियाओं, सवालों, आदि को समझने के लिए वास्तविक चीजों और
अनुभवों की जरूरत पड़ सकती है। उनके विकास का यह पेचदार (spiral) स्वरूप गणित
सीखने की प्रक्रिया की विशेषता है। उदाहरण के लिए जब दो अंकों वाली संख्याएँ सिखायी
जाती हैं उससे पहले बच्चों को “स्थानीय मान” समझने की जरूरत होती है। इसके लिए
उन्हें समूह बनाने के ढेर सारे ठोस अनुभवों से गुजरने की जरूरत होगी। इससे उन्हें धीरे-धीरे
“दहाई” और “इकाई” समझने में मदद मिलेगी। इसके बाद वे छोटी संख्याओं के
औपचारिक गुणा और भाग करने के लिए तैयार हो जाएंगे और फिर उनमें बड़ी संख्याओं
के संदर्भ में “स्थानीय मान” की समझ विकसित करने के लिए फिर विभिन्न प्रकार की
सीखने के ठोस अनुभवों से गुजरने की जरूरत होगी। इस तरह से पहले छोटी संख्याओं और
फिर बड़ी संख्याओं के संदर्भ में काम करने से बच्चों को अवधारणा की बेहतर समझ बनाने
का मौका मिलता है।
इसे एक अन्य उदाहरण से भी समझ सकते हैं। जैसे—यदि हम एक पूर्वस्कूली बच्चे
को “दो” का अर्थ सिखाने की कोशिश कर रहे हैं तो एक अच्छा तरीका होगा कि उसे
“मुझे दो पेंसिलें दो” जैसे कई सवाल दें। इस तरह के सवालों को हल करते हुए बच्ची
अभ्यास करती है और धीरे-धीरे “दो” का अर्थ पूरी तरह से समझ लेती है। इसी तरह
“तुम्हारे पास पाँच पेंसिलें थीं, यदि मैंने तुम्हें बारह और दीं तो तुम्हारें पास कुल मिलाकर
कितनी पेंसिलें हो जाएंगी ?” की तरह के इबारती सवाल करने से बच्चे जोड़ की अवधारणा
बनाते हैं। एक बच्चे को किसी भी अवधारणा को समझने के लिए उसे ठोस अनुभवों से
शुरू करके अमूर्त स्तर तक पहुँचने के लिए सीखने के अनुभव एक क्रम में देने चाहिये ।
मोटे तौर पर यही क्रम रख कर इसमें थोड़ी बहुत तब्दीलियाँ की जा सकती हैं। जिससे बच्चे
गणित को वास्तविक जीवन से जोड़ कर सीख पाएं।
प्रश्न 37. गणित के संकेतों की भाषा सीखने में बच्चों को किस प्रकार की
समस्याएँ आती हैं ? इसका समाधान आप कैसे कर सकते हैं ?
उत्तर― गणित एक भाषा है। संप्रेषण का भी एक प्रकार है। इसमें बड़े-बड़े वक्तव्यों
के लिए कुछ सर्वमान्य फार्मूलों और संकेतों का इस्तेमाल कर एक निष्कर्ष पर पहुँचा जाता
है। गणित की अवधारणाएँ जैसे—संख्या, सॅक्रियाएँ, ज्योमिति आदि के सीधे-सीधे उदाहरण
भौतिक जगत में नहीं मिलते। अतः इन अवधारणाओं को संकेतों में व्यक्त किया जाता है।
जिसे बच्चे अपने वास्तविक जीवन के अनुभव से जोड़ कर नहीं सीख पाते। इसकी
अवधारणाओं को बताने के लिए ठोस चीजों का उपयोग किया जाता है, अर्थात् कोई दो चीज
बताकर यह कहा जाता है कि ये दो हैं तथा उसके लिए लिखित संकेत ‘2’ सिखाया जाता
है । यह संकेत कोई अन्य संकेत भी हो सकता है जैसे कि II, जूव, दो इत्यादि । लेकिन इससे
दो की अवधारणा ना तो प्रभावित होती है ना ही निर्धारित होती है। इनमें दो की आकृति
जैसा कुछ नहीं होता । जब हम ‘दो आम’, ‘दो शहर’, ‘दो ग्रह’ अथवा ‘दो रुपये’ इनमें से
आम, शहर, ग्रह, रुपया इत्यादि को हटाकर जब केवल ‘दो’ बोलते हैं अथवा सुनकर समझते
हैं तो हम किसी विशेष चीज के संदर्भ में ‘दो’ का ना समझकर इसे एक गणितीय विचार
के रूप में ही समझ रहे होते हैं अर्थात् ‘दो’ को अपना कोई विशिष्ट रूप नहीं होता। यह
‘दो’ की अवधारणा की प्रति की अमूर्तता है।
गणितीय संकेतों की समस्याएँ हल करना सिखाने के लिए गणितीय अवधारणा और
विद्यार्थियों को परिचित एक वास्तविक जीवन के सन्दर्भ के बीच संबंध बनाकर जोड़ने से वे
सक्रिय सहभागी बनकर इसे हल करना सीखते हैं। उदाहरण के लिए विद्यार्थियों को जोड़
सिखाने के लिए पहले शिक्षक वास्तविक कंचे देते हैं ताकि विद्यार्थी उत्तर पाने के लिए।
आसानी से उन्हें गिन कर जोड़ सकें। बाद में वे उसी बात को चीजों (बिस्किट) की छवियों
की मदद से ब्लैकबोर्ड पर चित्रित करती हैं, और फिर वह जो कहता है उसे पहले शब्दों
में और फिर चिह्नों में लिखते है।
साथ ही इन प्रस्तुतियों के बार में लगातार बातें करके उन्हें आपस में जोड़ते हैं। उदाहरण
के लिए वह एक-एक करके ‘जोड़ना’, ‘साथ में’ और ‘धन’ शब्द का अर्थ बताते हैं और
इन तीनों को जोड़ने की क्रिया के साथ संबद्ध करते हैं। इससे विद्यार्थियों को अलग-अलग
संदर्भों में कई बार शब्दावली का सामना करने का अवसर मिलता है। विद्यार्थियों को उनकी
अपनी कहानी या शब्द समस्याएँ बनाने देने, 3+4=7 जैसे गणितीय वाक्यों का वर्णन करने
देने से गणितीय विचारों की समझ विकसित करने में मदद मिलती है और समस्या सुलझाने
का कौशल बढ़ता है।
प्रश्न 37. खुली व बंद ज्यामितीय आकृतियाँ तथा नियमित एवं अनियमित
बहुभुज तथा बहुभुज को उदाहरणसहित वर्णन करें।
उत्तर – खुली हुई आकृतियाँ — यदि कोई आकृति बंद है, तो हम एक पेंसिल ले सकते
हैं और इसे वापस चारों ओर ट्रेस कर सकते हैं, जहाँ आपने शुरू किया था बिना किसी ब्रेक
के यदि आकार में कोई विराम है, तो इसका मतलब है कि यह बंद नहीं है और इसे एक
‘खुली आकृति’ कहा जाता है।
एक खुला आकार लाइन सेंगमेंट से बना है, लेकिन, कम-से-कम एक लाइन सेगमेंट
है जो इसके किसी भी समापन बिन्दु पर किसी भी चीज से जुड़ा नहीं है। आकृति एक बंद
आँकड़ा नहीं है।
Ph
बंद आकार– यदि किसी आकृति को सभी पक्षों से अन्त-अन्त तक संलग्न किया जाता
है और बिना किसी उद्घाटन के एक आकृति बनाई जाती है, उसे बंद आकार कहा जाता
है।
ph
उदाहरण 1. ph यदि स्टार्ट प्वाइंट और एण्ड प्वाइंट अलग है, तो यह ओपन शेप है।
उदाहरण 2. ph यदि कोई आकृति सभी पक्षों से संलग्न है, यह बंद आकार
है। अतः दी गई आकृति बंद है।
एक खुला आकार लाइन सेगमेंट से बना है, लेकिन कम-से-कम एक लाइन सेगमेंट
है जो इसके किसी भी समापन बिन्दु पर किसी भी चीज से जुड़ा नहीं है। आकृति एक बंद
आँकड़ा नहीं है।
यदि किसी आकृति को सभी पक्षों से अन्त-अन्त तक संलग्न किया जाता है और बिना
किसी उद्घाटन के एक आकृति बनाई जाती है, तो उसे बंद आकार कहा जाता है।
नियमित और अनियमित बहुभुज―एक नियमित बहुभुज वह होता है जहाँ सभी
भुजाएँ समान हों और सभी कोण समान हों।
ph
Regular polygons
एक अनियमित बहुभुज वह है जो नियमित नहीं है।
ph
उदाहरण 1. ph यह त्रिभुज एक नियमित त्रिभुज है। सभी तीनों पक्ष लम्बाई और कोण
समान हैं।
उदाहरण 2. ph
पक्षों की गिनती करके, हम देख सकते हैं कि यह एक पाँच तरफ आँकड़ा है। यह
एक पंचकोण है। चूँकि, पक्ष समान नहीं है। इसलिए, यह एक अनियमित पंचकोण है।
इस प्रकार, बहुभुज एक बंद आकृति है जो रेखाखण्डों से बनी होती है। एक नियमित बहुभुज
वह होता है जो नियमित नहीं है।
बहुभुज एक समतल सतह पर बनी ज्यामितीय आकृतियों का सामान्य नाम है। बहुभुज
कई सरल रेखाओं से बंद होता है। इस सरल रेखाओं को बहुभुज की भुजा कहते हैं। जहाँ
दो भुजाएँ मिलती हैं, वह कोण कहलाता है।
प्रश्न 39. संतत एवं व्यापक मूल्यांकन के दौरान कक्षा में गणित के संदर्भ में
किन-किन बिंदुओं का आकलन किया जाता है ?
उत्तर―सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के दौरान कक्षा में शिक्षक निम्नलिखित बिंदुओं
का आकलन करते हैं—
● शिक्षक अवलोकन करते हैं कि कौन-कौन से विद्यार्थी बातचीत में सक्रिय हैं तथा
योगदान दे रहे हैं तथा कौन-से विद्यार्थी ऐसा नहीं कर पा रहे हैं।
● वह देखते हैं कि सहपाठियों द्वारा आकलन भी हो रहा है।
● शिक्षक अवलोकन करते हैं कि क्या बच्चे समस्या का संभावित समाधान ढूंढ़ने
की कोशिश कर रहे हैं और क्या वे संभावित समाधानों में से सबसे उत्तम हल
ढूंढ़ने का प्रयास कर रहे हैं या नहीं।
● शिक्षक समूह में बच्चों की भागीदारी, समस्या समाधान और संप्रेषण कौशल का
अवलोकन करते हैं।
● शिक्षक कुछ गुणों का आकलन अवलोकन द्वारा करते हैं जैसे—समूह में कार्यशैली
(सहयोग करना, एक दूसरे की सहायता करना, मिलकर काम करना), तार्किक
सोच और सटीक संप्रेषण, जिम्मेदारियों का बँटवारा करना, समूह के अन्य सदस्यों
के साथ सामंजस्य स्थापित करना आदि ।
● शिक्षक आकलन करते हैं कि बच्चे विभिन्न तरीकों से आँकड़े एकत्रित करने का
प्रयास कैसे कर रहे हैं और क्या वे उचित तरीका उपयोग कर रहे हैं।
● शिक्षक आकलन करते हैं कि बच्चे किस प्रकार एकत्रित आँकड़ों को व्यवस्थित
और सारणीबद्ध कर रहे हैं।
● आँकड़ों का आलेख द्वारा प्रदर्शन का शिक्षक द्वारा आकलन, इत्यादि ।
प्रश्न 40. गणित के संदर्भ में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की कुछ विधियों का
उल्लेख करें।
उत्तर―सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन की कुछ प्रमुख प्रविधियाँ निम्नलिखित है―
(क) परीक्षा प्रविधि―परीक्षा प्रविधि में मौखिक तथा लिखित एवं प्रायोगिक परीक्षाएँ
ली जाती है। लिखित परीक्षा में वस्तुनिष्ठ तथा निबंधात्मक दो परीक्षाएँ होती है।
(ख) अभिवृत्ति मापनी―इसा प्रविधि में किसी कार्य के संबंध में कथनों या विचारों
का संग्रह होता है। उसमें से उत्तरदाता जिससे सहमत होता है उस पर सही का चिह्न लगा
देता है। अभिवृत्ति मापनी द्वारा एक या अधिक से व्यक्तियों की धारणा की मात्रा अथवा
अभिवृत्ति ज्ञात की जाती है।
(ग) अवलोकन–विशिष्ट लक्षणों के संदर्भ में किसी भी घटना या कार्य को ध्यान
से देखना ही अवलोकन कहलाता है। अवलोकन के द्वारा छात्रों की बौद्धिक परिपक्वता तथा
उनके सामाजिक और संवेगात्मक विकास की परख की जाती है, जिससे छात्रों में विकसित
आदतों तथा अन्य कौशलों की जानकारी प्राप्त हो जाती है।
(घ) क्रम निर्धारण मान―क्रम निर्धारण मान द्वारा छात्र के अंदर किसी गुण अथवा
योग्यता के विकास की मात्रा का पता लगाया जाता है। इस स्केल में कुछ मानदंड दिए रहते
हैं जिनके आधार पर रेटिंग की जाती है।
(ङ) समाजमिति विधि―एण्डु एवं विलि के शब्दों में “समाजमिति एक रेखाचित्र
है जिसमें कुछ चिह्न व अंक किसी सामाजिक समूह के सदस्यों द्वारा सामाजिक स्वीकृति
अथवा त्याग का ढंग प्रदर्शित करने के लिए उपयुक्त करते हैं।
(च) छात्रों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ―छात्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं से अभिप्राय उन
वस्तुओं से है जिन्हें छात्र स्वयं तैयार करते हैं जैसे—चित्र, मानचित्र, प्रतिरूप आदि। छात्रों
द्वारा निर्मित वस्तुओं से उनकी रुचि अभिरुचि, योग्यता तथा कुशलता की जांच की जाती
है।
(छ) पड़ताल सूचियाँ―पड़ताल सूचियाँ व्यक्तिगत सूचना तथा विचार जानने का
प्रमुख साधन है। राइटस्टोन के अनुसार “पड़ताल सूची जैसा कि उसके नाम से स्पष्ट है।
कुछ चयनित शब्दों, वाक्यांशों तथा वाक्य अनुच्छेदों की एक सूची होती है जिसके आगे
निरीक्षक सही का चिह्न अंकित कर देता है जो कि निरीक्षक की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति
का सूचक होती है।”
(ज) अनुसूची―इस विधि द्वारा सर्वेक्षणकर्त्ता स्वयं अपने अध्ययन क्षेत्र में जाकर
निर्धारित व्यक्तियों से प्रश्न पूछता है तथा अनुसूची तैयार करता है।
(झ) प्राप्तांक पत्र― प्राप्तांक पत्र के अंतर्गत उत्तरदाता के एक व्यापक तथा विस्तृत
स्तर की किसी वस्तु या व्यक्ति के भिन्न-भिन्न पक्षों से संबंधित रूपरेखा दी जाती है।
उत्तरदाता केवल एक ही पक्ष का निर्धारण करता है। प्राप्तांक पत्रों को अनेक कार्यों के
मूल्यांकन के लिए प्रयोग किया जाता है।
(ट) साक्षात्कार–साक्षात्कार के द्वारा व्यक्ति की समस्याओं तथा गुणों का ज्ञान प्राप्त
किया जा सकता है। शिक्षा प्राप्त करने में छात्रों के समक्ष कई समस्याएँ उत्पन्न होती है।
इन विभिन्न समस्याओं को समझाने तथा उनका समाधान करने हेतु छात्रों की सहायता करने
के लिए साक्षात्कार एक महत्वपूर्ण युक्ति है। साक्षात्कार में निम्नलिखित तत्व समान रूप
से पाए जाते हैं—विशिष्ट उद्देश्य, मौखिक वार्तालाप, साक्षात्कारकर्त्ता, साक्षात्कार देने वाला
व्यक्ति ।
(ठ) अभिलेख–छात्रों द्वारा तैयार किए गए घटनावृत्त तथा संचित अभिलेख पत्र और
छात्रों की डायरी भी मूल्यांकन की महत्वपूर्ण प्रविधियाँ है। अभिलेख निम्नलिखित तीन प्रकार
के होते हैं—घटना वृत्त, संचित अभिलेख पत्र, प्रश्नावली ।
(ङ) प्रश्नावली–बोर्गार्ड्स के शब्दों में “प्रश्नावली विभिन्न व्यक्तियों के उत्तर देने
के लिए दी गई प्रश्नों की तालिका है। प्रश्नावली निम्नलिखित चार प्रकार की होती है—
प्रतिबंधित प्रश्नावली, चित्र प्रश्नावली, खुली प्रश्नावली, तथा मिश्रित प्रश्नावली ।
(च) प्रगति पत्रक–सीखने की प्रक्रिया एवं आकलन साथ-साथ चलते हैं सभी
स्कूलों में विद्यार्थियों के सीखने और प्रगति के आकलन से संबंधित जानकारियाँ विद्यार्थियों
को प्रगति पत्रक के माध्यम से प्रदान की जाती है। ये प्रगति पत्रक एक प्रकार से सभी विषयों
में विद्यार्थियों के प्रदर्शन और निष्पादन का एक चित्र स्कूल सत्र में आयोजित टेस्टों, परीक्षाओं
में प्राप्त अंकों और ग्रेडों के आधार पर प्रस्तुत करता है।
(छ) विद्यार्थी प्रोफाइल– विद्यार्थियों के साथ की गई गतिविधियों के दौरान अवलोकनों
एवं प्रगति को रिकार्ड करना सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन का मुख्य भाग है। विद्यार्थी
फ्रोफाईल के तीन प्रमुख भाग हैं—