Pedagogy of civics

B.ED NOTES IN HINDI | नागरिक शास्त्र का शिक्षण शास्त्र

B.ED NOTES IN HINDI | नागरिक शास्त्र का शिक्षण शास्त्र

Ans. विभिन्न स्तरों पर नागरिकशास्त्र शिक्षण के लक्ष्य
(Aims of Teaching Civics at Different Stages)
1. प्राथमिक स्तर–प्राथमिक स्तर पर कक्षा 1-5 आती है। इस स्तर के छात्र कहानी कहना तथा सुनना अधिक पसन्द करते हैं। इसके अतिरिक्त उनकी आयु ऐसी होती है क उनको सरलता से प्रभाजित किया जा सकता है। अतः इस समय उनमें जिन आदतों एवं गुणों का विकास कर दिया जायेगा, वे उनके भावी जीवन की आधारशिला का कार्य करेंगे। इसलिए इस स्तर पर नागरिकशास्त्र-शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते हैं-
1. छात्रों में चारित्रिक गुणों का विकास करना। इसके लिए विभिन्न काल्पनिक एवं वास्तविक पात्रों की कहानियों का सहारा लिया जा सकता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए इतिहास से सह-सम्बन्ध स्थापित किया जाना चाहिए।
2. छात्रों में विभिन्न उत्तम आदतों का निर्माण करना जिससे वे अनुशासित जीवन व्यतीत करना सीख सकें।
3. छात्रों में देश-प्रेम एवं राष्ट्रीय भावना का विकास करना । इसके लिए भी कहानियों का सहारा लिया जा सकता है।
4. छात्रों में अन्तर्राष्ट्रीय भावना के विकास के लिए पृष्ठभूमि तैयार करना ।
5. छात्रों की मानसिक शक्तियों का विकास करना ।
6. स्थानीय संस्थाओं एवं नेताओं से अवगत करना ।
7. राष्ट्रीय एकता के प्रतीकों के प्रति सम्मान तथा अपनत्व की भावना का विकास ।
2. माध्यमिक स्तर—इस स्तर के छात्र किशोरावस्था के निकट पहुँचने लगते हैं। उनकी मानसिक शक्तियों का भी कुछ सीमा तक विकास हो जाता है। वे वास्तविकता में अधिक आस्था रखते हैं। अत: इस स्तर पर नागरिकशास्त्र की शिक्षा निम्नलिखित उद्देश्यों को ध्यान में रखकर दी जा सकती है-
1. नागरिक गुणों के विकास के लिए व्यावहारिकता पर बल देना ।
2. स्थानीय शासन से परिचित कराना ।
3. शासन के स्वरूप से अवगत कराना।
4. वैज्ञानिक दृष्टिकोण के निर्माण के लिए कार्य करना ।
5. राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास करना ।
6. देश की सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक समस्याओं की जानकारी प्रदान करना।
7. छात्रों की समाजिक शक्तियों का विकास करना।
8. चारित्रिक गुणों एवं अनुशासित जीवन के अंगों को दृढ़ बनाना ।
9. राष्ट्रीय एवंसामाजिक समस्याओं से अवगत कराना ।
10. छात्रों को आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से सरल उदाहरणों द्वारा अवगत कराना ।
3. उच्चतर माध्यमिक स्तर—इस स्तर के बालकों का मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, नैतिक, शब्द-ज्ञान आदि सभी दृष्टिकोण से पर्याप्त रूप से विकास हो जाता है। वह स्वयं निर्णय करने के योग्य भी हो जाता है। इस स्तर के बालक स्वयं को दूसरों से अभिस्वीकार करवाना चाहते हैं। अत: इस स्तर पर नागरिकशास्त्र की शिक्षा निम्नलिखित उद्देश्यों को ध्यान
में रखकर दी जा सकती है-
1. छात्रों में नागरिक कुशलता एवं दायित्व समझने की भावना का विकास करना ।
2. छात्रों को नागरिक कर्तव्यों एवं अधिकारों का सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करना।
3. छात्रों में राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना को दृढ़ बनाना ।
4. छात्रों के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को परिपक्व बनाना जिससे वे सत्य एवं असत्य तथा प्रचार एवं वास्तविकता के अन्तर को समझ सकें।
5. छात्रों को स्वतन्त्र चिन्तन एवं निर्णय के लिए अवसर प्रदान करना ।
6. छात्रों को देश की सामाजिक, आर्थिक, रानजैतिक, धार्मिक आदि क्षेत्रों की समस्याओं से अवगत कराकर उन्हें उनके समाधान के लिए तत्पर बनाना ।
7. नैतिक चरित्र के गुणों का विकास करना। परन्तु इनका विकास उदाहरण एवं व्यावहारिक क्रियाओं के माध्यम से किया जाना चाहिए।
8. शासन के रूपों एवं लोकतन्त्रीय जीवन के ढंगों से अवगत कराना । उन्हें लोकतन्त्रीय ढंग से जीवन व्यतीत करने के लिए अवसर प्रदान किया जाए।
9. राजनैतिक दलों एवं उनके कार्यक्रमों का ज्ञान दिया जाए।
10. भावनात्मक एकता की भावना का विकास करना।
शैक्षिक उद्देश्य
(Educational Objectives)
ब्लूम तथा उसके साथियों ने शैक्षिक उद्देश्यों का जो वर्गीकरण प्रस्तुत किया है वह मौलिक रूप से शैक्षिक, तार्किक तथा मनोवैज्ञानिक वर्गीकरण पद्धति का न्यायोचित मिश्रण है। ब्लूम तथा उसके साथियों ने बाल-विकास के प्राथमिक पक्षों को अपने वर्गीकरण का आधार बनाया है। उन्होंने इस वर्गीकरण में बाल-विकास के निम्नांकित तीन पक्षों को आधार बनाया-
(अ) संज्ञानात्मक पक्ष (Cognitive Domain), (ब) भावात्मक पक्ष (Affective Domain), (स) मनोपेशीय पक्ष (Psychomotor Domain)
(अ) संज्ञानात्मक पक्ष
ब्लूम तथा उसके साथियों ने संज्ञानात्मक पक्ष की प्रक्रियाओं को निम्न छः वर्गों में रखा —
(क) ज्ञान (Knowledge), (ख) बोध (Comprehension), (ग) प्रयोग (Application), (घ) विश्लेषण (Analysis), (ङ) संश्लेषण (Synthesis), (च) मूल्यांकन (Evaluation)
(क) ज्ञान-ब्लूम तथा उसके साथियों ने इस प्रक्रिया को निम्न उपवर्गों में विभाजित किया है-
(i) विशिष्टों का ज्ञान (Knowledge of Specific),
(ii) कार्य-पद्धति का ज्ञान (Knowledge of Methodology),
(iii) अमूतों का ज्ञान (Knowledge of Abstracts) ।
ज्ञान के अन्तर्गत विशिष्टों, सार्वभौमिक, कार्य-पद्धतियों, प्रक्रियाओं, प्रतिमानों, संरचनाओं, सामान्यीकरणों आदि का पुनर्मरण निहित है। इसमें याद करने की प्रक्रिया को आधार बनाया गया है। अत: ज्ञान के अन्तर्गत निम्न के पुनर्मरण या पहचान पर बल दिया जाता है-
(i) विशिष्टों का ज्ञान (Knowledge of specifics),
(ii) पारिभाषिक शब्दावली का ज्ञान (Knowledge of terminology),
(iii) विशिष्ट तथ्यों का ज्ञान (Knowledge of specific facts),
(iv) विशिष्टों से व्यवहार करने के साधनों तथा तरीकों का ज्ञान (Knowledge of ways and means of deails with specifics),
(v) परम्पराओं या अभिसमयों का ज्ञान (Knowledge of conventions),
(vi) प्रवृत्तियों तथा क्रमों का ज्ञान (Knowledge of trends and sequences),
(vii) वर्गीकरण तथा श्रेणियों का ज्ञान (Knowledge of classifications and categories),
(viii) मानदण्डों का ज्ञान (Knowledge of criteria) ।
नागरिकशास्त्र के शिक्षण के निम्नलिखित लक्ष्यों पर बल दिया जा सकता है-
1. लोकतांत्रिक नागरिकता का विकास (Development of Democratic Citizen- ship)— भारत ने स्वयं को एक लोकतन्त्रात्मक गणराज्य घोषित किया है। उसने लोकतन्त्र को शासन के स्वरूप के साथ-साथ जीवन के ढंग के रूप में भी ग्रहण किया है। दोनों ही दृष्टिकोणों से नागरिकशास्त्र द्वारा छात्रों में लोकतन्त्रीय नागरिकता का विकास किया जाना परमावश्यक है। अत: भारतीय परिस्थितियों को ध्यान में रखकर इस उद्देश्य पर अधिक बल दिया जा सकता है। लोकतन्त्रीय नागरिकता के अर्थ को देखने से पूर्व नागरिकता का अर्थ देखना आवश्यक है। हार्न ने नागरिकता के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है, “नागरिकता राज्य में मनुष्य का स्थान है। क्योंकि राज्य समाज की स्थायी संस्था है और मनुष्य को अपने साथियों के साथ सदैव सुसंगठित सम्बन्धों के साथ रहना चाहिए, इसलिए नागरिकता को शिक्षा के आदर्श क्षेत्र से बाहर नहीं निकाला जा सकता है।” आधुनिक युग में उत्तम नागरिकता की धारणा को नागरिक एवं वैयक्तिक सद्गुणों का मिश्रण माना जाता है। इसके अनुसार वैयक्तिकता के विकास तथा सामाजिक दायित्वों को एक-दूसरे का विरोधी नहीं माना जाता वरन् पूरक माना जाता है। माध्यमिक शिक्षा आयोग ने लोकतन्त्रीय नागरिकता के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है, “लोकतन्त्र में नागरिकता एक चुनौतीपूर्ण दायित्व है जिसके लिए प्रत्येक नागरिक को प्रशिक्षित किया जाता है। इसमें बहुत-से बौद्धिक, सामाजिक तथा नैतिक गुण निहित हैं, जिनके अपने आप विकसित होने की अपेक्षा नहीं की जा सकती है।”
इन गुणों को विकसित करने के लिए एक विशेष प्रकार का प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। देश के विद्यालयों को इस प्रशिक्षण को प्रदान करने का दायित्व अपने ऊपर लेना होगा। बिना सोच-समझ के अपने वोट को देकर लोकतन्त्र को सफल नहीं बनाया जा सकता वरन् इसके सफल संचालन के लिए व्यक्ति को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक मामलों के विषय में अपना स्वतन्त्र विचार बनाना होगा और उसके अनुसार अपनी कार्य-प्रणाली को निर्धारित करना होगा। व्यक्ति ऐसा तभी कर सकता है जब उसमें लोकतान्त्रिक नागरिकता के गुणों का विकास किया गया हो । स्वतः प्रश्न उठता है कि व्यक्ति में किन गुणों का विकास किया जाये ? इसके उत्तर में हम माध्यमिक शिक्षा आयोग के शब्दों का उल्लेख कर सकते हैं- 
“एक योग्य नागरिक को समझदारी एवं बौद्धिक सत्यनिष्ठा रखनी चाहिए जिससे वह असत्य से सत्य तथा प्रचार से तथ्यों को छाँटकर निकाल सके, कट्टरता एवं पक्षपात के पातक अनुरोध को रद्द कर सके। उसे स्वयं में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए जिससे वह वस्तुपरक ढंग से सोच सके तथा प्रमाणिक सामग्री के आधार पर अपना निर्णय बना सके उसको सदैव खुली मस्तिष्क रखना चाहिए जिससे वह नवीन विचारों को ग्रहण कर के और स्वयं को प्राचीन परम्पराओं, रीति-रिवाजों एवं विश्वासों की चहारदीवारी में न बाँध सके उसे प्राचीन को इसलिए रद्द नहीं करना चाहिए क्योंकि वह प्राचीन है और न नवीन को इसलिए ग्रहण करना चाहिए क्योंकि वह नवीन है वरन् उसे संयमित होकर विवेकपूर्ण ढंग से दोनों की जाँच करनी चाहिए तथा उन बातों को साहस के साथ रह करना चाहिए जो न्याय एवं प्रगति की शक्तियों को सीमित बनाते हैं।”
योग्य नागरिक में उक्त बौद्धिक गुणों के साथ सामाजिक एवं नैतिक गुणों का होना भी आवश्यक है। उसमें अनुशासन, सहयोग, सामाजिक, संवेदनशीलता तथा सहिष्णुता का विकास किया जाना चाहिए, क्योंकि अनुशासन नामक गुण सफल सामूहिक कार्यों के लिए अनिवार्य है। साथ ही सहयोग नामक गुण सफल सामाजिक जीवन व्यतीत करने के लिए परमावश्यक है। इसके विकास के लिए सामाजिक अभिप्रदायों हेतु छात्रों में निष्ठा उत्पन्न की जाये । सामाजिक संवेदनशीलता सामाजिक न्याय एवं अच्छे चरित्र की नैतिक आधारशिला है। सहिष्णुता के अभाव में लोकतन्त्र का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है। अत: लोकतन्त्र के अस्तित्व को कायम रखने के लिए सहिष्णुता नामक गुण का विकास परमावश्यक है। साथ ही यह धर्म-निरपेक्ष दृष्टिकोण के विकास में भी सहायक है।
2. नेतृत्व का विकास (Develoment of Leadership)-माध्यमिक शिक्षा आयोग का विचार है, “लोकतन्त्र सफलतापूर्वक तब तक कार्य नहीं कर सकता जब तक उसको किसी वर्ग-विशेष को नहीं वरन् समस्त लोगों को अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाये और इसमें अनुशासन के साथ-साथ नेतृत्व का प्रशिक्षण निहित है।” नेतृत्व में सामाजिक मामलों की समझदारी तथा नागरिककुशलता निहित है। अतः नेतृत्व का विकास करने के लिए छात्रों को सामाजिक मामलों की स्पष्ट एवं गहन जानकारी प्रदान की जाये। उनमें इन्हें समझदारी के साथ सुलझाने की भी क्षमता विकसित की जानी
चाहिए।
3. राष्ट्रीय दृष्टिकोण का विकास (Development of National Outlook)-इस दृष्टिकोण के विकास के लिए छात्रों में निम्नलिखित भावनाओं का विकास करना आवश्यक है
(i) अपनी सर्वोत्तम क्षमता के अनुसार देश की सेवा करने की भावना ।
(ii) अपने देश की निर्बलताओं को सहर्ष स्वीकार करने की भावना । साथ ही निर्बलताओं को दूर करने के लिए, प्रेरित करना।
(iii) अपने देश की उपलब्धियों को समझने एवं उनकी सराहना करने की क्षमता का विकास।
(iv) राष्ट्रीय हित के समक्ष अपने व्यक्तिगत हितों को न्यौछावर करने की भावना ।
4. शासन के स्वरूप का ज्ञान प्रदान करना (To Impart Knowledge of the form of Government)-नागरिकशास्त्र शिक्षण का एक लक्ष्य छात्रों को सरकार के स्वरूप से परिचित कराना होना चाहिए। इसके लिए उनको संघीय, राज्यीय तथा स्थानीय तीनों स्तरों के ढाँचों का ज्ञान कराया जाये। साथ ही छात्रों के उनके प्रति क्या कर्तव्य है? उन कर्तव्यों का
निर्वाह किस प्रकार किया जाये ? कर्त्तव्यों को सफलतापूर्वक निभाने से क्या सम्भावित परिणाम निकल सकते हैं? आदि बातों को स्पष्टतः समझाया जाये ।
5. विश्व नागरिकता की भावना का विकास (Development of the Feeling of World Citizenship)–आधुनिक भारत में विश्व नागरिकता तथा भावात्मक एकता के विकास के लिये नागरिकशास्त्र के प्रभावी कार्यक्रम की परम आवश्यकता है। भारत सदैव से ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ तथा ‘सभी भूमि गोपाल की’ की अवधारणा में आस्था व्यक्त करता रहा है। आज के अन्तर्ग्रथित विश्व में इसकी अत्यन्त आवश्यकता है। अतः भारतीय लोकतंत्र में सच्ची देशभक्ति के साथ-साथ विश्व नागरिकता के विकास को नागरिकशास्त्र-शिक्षण एक प्रमुख लक्ष्य माना गया है।
6. वैज्ञानिक प्रवृत्ति एवं आधुनिकीकरण का विकास (Development of Scientific Temper and Modernization)-आज हम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के युग में निवास कर रहे हैं। ये प्रगति एवं समृद्धि के मूलाधार माने जाते हैं। अतः नागरिकशास्त्र का प्रमुख लक्ष्य वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास (Development of Scientific Temper) माना गया है वैज्ञानिक प्रवृत्ति के विकास के लिये नागरिकशास्त्र-शिक्षण द्वारा छात्र में स्पष्ट चिन्तन, भाषण तथा निर्णय के विकास पर बल दिया जाता है। वर्तमान युग में आधुनिकीकरण का प्रयोग व्यक्ति के आन्तरिक गुणों जैसे सामाजिक सम्बन्धों में विवेकशीलता तथा व्यापक दृष्टकोण के लिए किया जाता है। आधुनिकीकरण एक गत्यात्मक संकल्पना है जिसमें परिवर्तन तथा अनुकूलन की प्रक्रिया निहित है। यह विभेदीकरण की प्रक्रिया है जो आधुनिक समाजों की विशेषताओं को व्यक्त करती है। यह राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया है। यह मानव व्यवहार तथा मामलों के विषय में नवीन ज्ञान के प्रयोग पर बल देती है।
उपर्युक्त लक्ष्यों के अतिरिक्त नागरिकशास्त्र के शिक्षण में निम्नलिखित की प्राप्ति पर बल
दिया जाना चाहिए-
1. चारित्रिक गुणों का विकास ।
2. मानसिक शक्तियों का विकास ।
3. सामाजिक व्यवस्था का सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करने पर बल दिया जाये।
4. भावात्मक एकता के विकास में सहायता प्रदान करना ।

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