B.ED NOTES IN HINDI | B.ED SYLLABUS IN HINDI
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Q. 16. दलीय शिक्षण विधि का वर्णन करें।
( (Describe the Team Teaching Method.)
Ans. इस शिक्षण पद्धति का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ और यद्यपि यह भारत के लिए नयी तकनीक है लेकिन अमेरिका में इस तकनीक का प्रयोग इस सदी के पाँचवें दशक से ही किया जा रहा है। दलीय शिक्षण शिक्षण-संरचना का वह व्यवस्थित स्वरूप है, जिसमें दो या दो से अधिक शिक्षक परस्पर एक-दूसरे से सहयोग करते हुए विद्यार्थियों के एक समूह को किसी विषय विशेष का शिक्षण देते हैं।
इस दल के शिक्षक अपने-अपने क्षेत्र में विशेष योग्यता प्राप्त किये हुए होते हैं तथा शिक्षण कला में दक्ष होते हैं। इन शिक्षकों के दल में से एक शिक्षक दल का नेता होता है जो पूरी शिक्षण व्यवस्था का संचालन करता है। सामान्यतः नेता उस शिक्षक को चुना जाता है, जिसमें पाठ्य-विषय की विशेष योग्यता, शिक्षण को संगठित करने की कला और विद्यार्थियों के व्यवहार को जानने एवं उसका मूल्यांकन कर सकने की क्षमता हो। ऐसे शिक्षक के निर्देशन में अन्य शिक्षक कार्य करने को तत्पर रहते हों तथा सब मिलकर निष्ठापूर्वक कार्य कर सकें। यह शिक्षण पद्धति निरन्तर परस्पर सहयोग करने पर आश्रित रहती है। अत: कुछ विद्वान् इसको ‘सहकारिता शिक्षण’ (Cooperative Teaching) कहने लगे हैं।
इस तकनीकी के दो प्रमुख उद्देश्य हैं-
(1) शिक्षक की क्षमता का अधिकतम प्रयोग करना और (2) शिक्षण स्तर में सुधार लाना। इस तकनीक में प्रत्येक शिक्षक विषय वस्तु का वही पक्ष पढ़ाता है जिसमें वह दक्ष होता है। अन्य पक्ष दल के दूसरे शिक्षक पढ़ाते हैं। अन्य शिक्षक नेता के सहयोगी कहे जाते हैं। इस तकनीक में जहाँ शिक्षक को अपनी क्षमता एवं कौशल के उपयोग का अवसर मिलता है वहीं दूसरी और
विद्यार्थियों की जिज्ञासा की अधिकतम तुष्टि होती है। विद्यार्थी को वह सब ज्ञान एक साथ मिल जाता है जो टुकड़ों टुकड़ों में कई शिक्षकों से अलग-अलग अवसरों पर मिलता है।
दलीय शिक्षण विधि की परिभाषाएँ
(Definition of Team Teaching Method)
इस तकनीक की परिभाषा अलग-अलग विद्वानों ने अपने ढंग से दी है, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं—
दलीय शिक्षण व्यवस्था में कई शिक्षक अपने स्रोतों, अभिरुचियों तथा दक्षताओं को एकत्रित करते हैं और छात्रों की आवश्यकता के अनुसार, विद्यालय की सुविधाओं का समुचित उपयोग करते हुए एक संगठनात्मक रूप में प्रस्तुत करते हैं । (Team teaching is a form of organisation in which individual teacher’s division to post resources, interest and expertise in order to device and implement a schedule of work suitable to the need to
their pupils and the facilities of their school.).
दलीय शिक्षण अनुदेशन परिस्थितियों को उत्पन्न करने की एक प्रविधि है, जिसमें दो या दो से अधिक शिक्षण अपने कौशल तथा शिक्षण योजना का कक्षा-शिक्षण में एक साथ सहयोग करते हैं। इनकी योजना खर्चीली होती है जिसको आवश्यकतानुसार बदल लिया जाता है। (Team teaching is an instructional situation where two or more teachers processing
complementary teaching skill co-operatively plan and implement the instruc- tion for single group to students using flexible scheduling and grouping to must the particular instruction.)
दलीय शिक्षण एक ऐसी शिक्षण व्यवस्था है, जिसमें दो या दो से अधिक शिक्षक सहायक शिक्षण सामग्री अथवा इसके सहकारी योजना अनुदेशन तथा मूल्यांकन के लिए एक या अधिक कक्षाओं के लिए तैयार करते हैं। इसके अन्तर्गत शिक्षकों की विशिष्ट क्षमताओं का निर्धारित समय में अधिकतम लाभ उठाया जाता है।
(Team teaching is an arrangement where by two or more teachers, with or without one or more class groups in an appropriate instructional space and give length of time so as to take advantage of the special competences of the members.)
इन परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि दलीय शिक्षण अथवा टोली शिक्षण, शिक्षण की एक ऐसी सुव्यवस्थित प्रणाली है, जिसमें कई शिक्षक मिलकर छात्रों को एक साथ अनुदेशित करते हैं। दूसरे शब्दों में यों भी कह सकते हैं कि परम्परागत कक्षा-शिक्षण को बदलने एवं सुधारने की प्रेरणा देने वाली उत्तम तकनीक है । इसमें शिक्षक का एकाकीपन दूर होता है और शिक्षण में गुणात्मक वृद्धि होती है।
दलीय शिक्षण के सैद्धान्तिक पक्ष
(Theoretical Aspect of Team Teaching)
दलीय शिक्षण का सैद्धांतिक पक्ष तीन घटकों पर आधारित है-
1. छात्रों की आवश्यकता,
2. शिक्षकों की विशेष योग्यता का योगदान और
3. विद्यालय में उपलब्ध शिक्षण सामग्री । इन तीनों घटकों में निकट सम्बन्ध स्थापित करके ही शिक्षण को प्रभावी एवं उपयोगी बनाया जा सकता है।
दलीय शिक्षण के प्रकार निम्नलिखित हैं:
1. एक विभाग में शिक्षकों की टोली,
2. एक ही संस्था के विभिन्न विभागों के शिक्षकों की टोली और
3. विभिन्न संस्थाओं के एक ही विभाग के शिक्षकों की टोली।
इस प्रकार के दलों को सभी कक्षाओं के स्तर पर सभी विषयों की शिक्षण व्यवस्था की
प्रभावशाली बनाने के लिए किया जा सकता है।
इस प्रविधि के लिए सर्वमान्य क्रिया-विधि होना तो सम्भव नहीं है फिर भी निम्नलिखित
सोपानों का अनुसरण किया जा सकता है-
प्रथम सोपान : टोली-शिक्षण की योजना तैयार करना,
द्वितीय सोपान : टोली-शिक्षण की व्यवस्था करना,
तृतीय सोपान : टोली-शिक्षण के परिणामों का मूल्यांकन करना ।
इस तकनीक में प्रत्येक शिक्षक की योग्यता का उपयुक्त समय पर उपयोग करना मुख्य क्रिया इस तकनीक में प्रत्येक शिक्षक अपनी कुशलता के अनुसार भिन्न-भिन्न क्रिया करता है।
दलीय शिक्षण तकनीक के लाभ
(Advantages of Team Teaching Method)
इस विधि के लाभ निम्नलिखित हैं-
1. विद्यार्थी शिक्षकों की विशेष योग्यताओं का लाभ उठाते हैं।
2. शिक्षकों का व्यावसायिक विकास होता है।
3. विद्याथिों को खुली चर्चा करने का अवसर मिलता है।
4. विद्यार्थियों को आत्म अभिव्यक्ति का भी अवसर मिलता है।
5. शिक्षक-विद्यार्थियों में एक-दूसरे के निकट आने से घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित होता है।
6. इस तकनीक में विषय-विशेषज्ञों से सीखने का अधिक अवसर मिलता है।
7. इस तकनीक में कक्षा का वातावरण प्रजातांत्रिक एवं परिचर्चात्मक होने से विद्यार्थियों में मानव सम्बन्धों का विकास होता है।
8. शिक्षकों में उत्तरदायित्व निभाने की भावना का विकास होता है।
9. शिक्षक कठोर परिश्रम कर समुचित तैयारी करने के अभ्यस्त होते हैं।
10. शिक्षण स्तर में सुधार एवं वृद्धि का अवसर मिलता है।
दलीय शिक्षण हेतु सुझाव
(Suggestioins for Team Teaching)
दलीय शिक्षण विधि में करणीय योग्य बिन्दु निम्नलिखित हैं-
1. शिक्षकों में सहयोग एवं लगन से काम करने की भावना होनी चाहिए।
2. शिक्षण क्रियाएँ वरिष्ठता के आधार पर न सौंपकर स्वेच्छा से चयन करने का अवसर दिया जाना चाहिए।
3. दलों में परिपक्व, सहनशील एवं संतुलित शिक्षकों को ही सम्मिलित करना चाहिए।
4. दल के सभी शिक्षक संवेदनशील एवं उत्तरदायित्व को निभाने की क्षमता वाले होने चाहिए।
5. विद्यालय के उपलब्ध साधनों का अधिक से अधिक उपयोग करने की भावना होनी चाहिए।
6. यह तकनीक सामान्य व्यवस्था से अधिक खर्चीली होती है, अतः प्रत्येक व्यक्ति एवं साधन के समुचित प्रयोग पर बल देना चाहिए । अंत में यही कहना अधिक उपयुक्त होगा कि इस तकनीक के प्रयोग के समय स्थानीय साधन-सुविधाओं एवं छात्रों की आवश्यकता के अनुसार समाधान हेर-फेर कर प्रभावी बनाने का प्रयास करना चाहिए।