B.ED | नागरिकशास्त्र शिक्षण | Pedagogy of Civics Notes
B.ED | नागरिकशास्त्र शिक्षण | Pedagogy of Civics Notes
Q. नागरिकशास्त्र के प्रभावी शिक्षक के गुणों का वर्णन करें।
(Discuss the Qualities of an effective civics Teacher.)
Ans. 1. व्यावसायिक निष्ठा (Faith in Vocation)— बालक बहुत कुछ शिक्षक के कार्यो, दर्शन आदि से सीखता है। जैसा शिक्षक का दर्शन होगा, वैसा ही बालक अपना जीवन-दर्शन बनाने की चेष्टा करता है। इसी कारण शिक्षक को आशावादी बनने के लिए कहा गया है। शिक्षक का जो दृष्टिकोण शिक्षण कार्य के प्रति होगा, वैसा ही उसके बालकों पर उसका प्रभाव पड़ेगा। निष्ठा सीखने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करती है। इसलिए उसे अपने व्यवसाय तथा विषय-दोनों में पूर्णनिष्ठा होनी चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो बालकों के व्यक्तित्व को विकसित नहीं कर पायेगा जो कि शिक्षा का मुख्य लक्ष्य है। इसलिए नागरिकशास्त्र के शिक्षक को अपने कार्य को उत्साह तथा तत्परता के साथ करना चाहिए। यदि वह ऐसा करेगा तो अपने छात्रों में विद्या के लिए अनुराग उत्पन्न कर सकता है। भारतीय शिक्षकों में इसी निष्ठा की कमी है, तभी हमारी शिक्षा का स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है। यह सत्य है कि हमारे शिक्षकों को सामान्य व्यक्ति जैसा जीवन व्यतीत करना पड़ता है जबकि इससे कम योग्यता वाले व्यक्ति ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं । इस स्थिति ने उनमें हताशा उत्पन्न करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। परन्तु फिर भी जब उन्होंने इस व्यवसाय को ग्रहण कर लिया है, तब उनके लिए यह अनिवार्य है कि वे सत्यनिष्ठ होकर अपने कार्य को रुचि, तत्परता तथा उत्साह के साथ करें क्योंकि वे ही राष्ट्र के निर्माता हैं
2. विषय का ज्ञान (Knowledge of the Subject)—जैसा कि हम उसके कर्तव्य के विषय में कह चुके हैं कि वह अपने विषय का विद्यार्थी हो । नागरिकशास्त्र के शिक्षक को अपने विषय का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए तभी वह अपने छात्रों के साथ पूर्ण न्याय कर सकता है। विषय के ज्ञान के साथ ही उसे राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक दशाओं का विस्तृत ज्ञान होना चाहिए । वह जीवन-पर्यन्त विद्यार्थी-जीवन ही व्यतीत करें। यदि वह इस जीवन का त्याग करता है तो राष्ट्र, छात्र तथा अपने स्वयं के हित पर कुठाराघात करेगा। साथ ही वह अपने छात्रों को उनके कर्तव्यों तथा अधिकारों का ज्ञान सफलता के साथ नहीं दे सकता है।
क्योंकि जब तक उसे राष्ट्रीय, निर्णायक एवं कठिन क्षणों (Crisis) का ज्ञान नहीं होगा तब तक वह उनको भावी जीवन में आने वाले ऐसे क्षणों के लिए तैयार नहीं कर सकता है और उनके कर्तव्यों को नहीं बता सकता कि ऐसे समय पर उनका क्या कर्तव्य है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नागरिकशास्त्र के शिक्षक को विषय के पूर्ण ज्ञान के साथ-साथ सामाजिक जीवन
व्यतीत करने में जिन बातों की आवश्यकता है, उनका भी ज्ञान होना चाहिए। नागरिकशास्त्र हमें सफल सामाजिक जीवन व्यतीत करने की कला सिखाता है। इसके लिए जो बातें अनिवार्य हैं, उनका ज्ञान उसको अवश्य होना चाहिए।
3. नागरिक समस्याओं तथा तथ्कालीन घटनाओं का ज्ञान (Knowledge of Civic Problems and Current Events)- नागरिकशास्त्र के शिक्षक को समाज की आधुनिकतम सनागरिक समस्याओं और घटनाओं से अवगत रहना आवश्यक है। इनके ज्ञान के अभाव में वह अपने छात्रों की रुचि विषय के प्रति जागृत नहीं कर पायेगा और न उनको एक योग्य नागरिक के दायित्वों से अवगत करा पायेगा । इनके ज्ञान के अभाव में वह छात्रों के नागरिक समस्याओं पर होने वाले वाद-विवाद में नेतृत्व भी नहीं कर पायेगा । इनके ज्ञान से वह छात्रों को समाचार-पत्र, जर्नल आदि को पढ़ने के लिए भी प्रोत्साहित कर सकता है। साथ ही सामाजिक जीवन की वास्तविकताओं से उनको अवगत करा सकता है
4. वैज्ञानिक तथा उदार दृश्टिकोण (Scientific and Liberal Attitude)- आधुनिक युग में वैज्ञानिक प्रवृत्ति का यह तकाजा है कि उसी तथ्य या बात को ग्रहण किया जाए जो प्रमाण-युक्त तथा तर्कसम्मत हो । इस कारण नागरिकशास्त्र के शिक्षक को वैज्ञानिक दृष्टिकोण का होना भी परम आवश्यक है। यदि उसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं होगा तो वह अपने छात्रों
में इस दृष्टिकोण को उत्पन्न नहीं कर सकेगा, जो कि उनके लिए अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि वे ही भावी नागरिक हैं और उन्हीं के कन्धों पर आदर्श समाज की स्थापना का भार है। यदि उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास नहीं किया जायेगा तो वे सफल सामाजिक जीवन व्यतीत करने में असमर्थ रहेंगे और समाज के विद्वोषों, संघर्षों, अहितों तथा कलह को दूर नहीं कर सकेंगे। इसके साथ ही नागरिकशास्त्र के शिक्षक में उदार दृष्टिकोण का होना भी अनिवार्य है इस दृष्टिकोण से वह अपने छात्रों में विनम्रता, सहानुभूति, प्रेम आदि गुणोंका विकास कर सकता है। यदि उसमें इस दृष्टिकोण का अभाव रहेगा तो वह मानव-समाज का कल्याण करने में असमर्थ रहेगा तथा अपने छात्रों में विश्व-बन्धुत्व की भावना उत्पन्न नहीं कर सकेगा, जो नागरिकशास्त्र के शिक्षक का प्रमुख लक्ष्य और विश्व की एक प्रबल माँग है। इसके बिना वैज्ञानिक आविष्कारों का उपयोग मानव-समाज के कल्याण के लिए नहीं किया जा सकेगा। अतः नागरिकशास्त्र के शिक्षक में उदार दृष्टिकोण का होना अति अनिवार्य है।
5. आदर्श नागरिक (Ideal Citizen)– नागरिकशास्त्र का शिक्षक एक आदर्श नागरिक हो, अर्थात् उसमें आदर्श नागरिकता के गुणों का समावेश हो और वह उनके अनुसार आचरण करता हो । उसे नागरिकके कर्तव्यों तथा अधिकारों का पूर्ण ज्ञान हो । इसके साथ ही वह इनके अनुसार आचरण करके अपने छात्रों या समाज के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत करें, दूसरे मनुष्यों
के अधिकारों को सम्मान की दृष्टि से देखें तथा समाज में सहयोग, सहकारिता, प्रेम, सत्यनिष्ठा तथा उत्साह के साथ कार्य करें। इसके अतिरिक्त नागरिकशास्त्र का शिक्षक लोकतन्त्रीय जीवन के ढंग से पूर्णतया परिचित हो । लोकतन्त्रीय सिद्धान्तों में उसकी पूर्णनिष्ठा होनी चाहिए। विभिन्न जातियों, उपजातियों एवं वर्गों से युक्त हमारे समाज में नागरिकशास्त्र के शिक्षक में
सहिष्णुता, धैर्य, सहानुभूति, मानव के प्रति उदारता एवं दया, लोकतन्त्रीय दृष्टिकोण आदि गुणों का होना आवश्यक है।
6. सामाजिक सक्रियता (Social Activeness)-जैसा कि हम उसके कर्तव्यों के विषय में देख चुके हैं, नागरिकशास्त्र का शिक्षक पाठ्यक्रम-निर्माणकर्ता होना चाहिए। उसे इस कर्तव्य को पूर्ण करने के लिए समाज की ओर ध्यान देना पड़ता है। उसे अपनी पाठ्य-सामग्री तथा उद्देश्य समाज से लेने पड़ते हैं। इस कारण उसका यह मुख्य कर्तव्य हो जाता है कि वह इन उद्देश्यों की प्राप्ति करें। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उसमें ‘सामाजिक सक्रियता’ का होना आवश्यक है। उसे समाज की सेवा करनी चाहिए। इसलिए उसे स्थानीय तथा प्रादेशिक सामाजिक कार्यों में पूर्ण सक्रियता के साथ भाग लेना चाहिए और उसका नेतृत्व ग्रहण करके सफल बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। भारतीय गणत अभी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में ही है? उसका स्थायित्व तथा उन्नति नागरिकशास्त्र के शिक्षक पर ही निर्भर है। उसको सामाजिक तथा नैतिक कार्यों में पूर्णतया क्रियाशील रहकर
भाग लेना चाहिए और समाज के समक्ष सहयोग, सहकारिता, न्याय, प्रेम, सहानुभूति आदि गुणों को अपने व्यवहार में लाकर आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए जिससे वे भी उसी के कार्य करना सीख जाएँ।
हमारे कुछ राजनीतिज्ञों का विचार है कि शिक्षक को वोट देने के कर्तव्य के अतिरिक्त अन्य किसी कर्तव्य को नहीं निभाना चाहिए अर्थात् वह नागरिकों द्वारा निर्वाचित होने के अधिकार का उपयोग न करें, क्योंकि यदि वह किसी सदन की सदस्यता के लिए खड़ा होता है तो वह छात्रों के अभिभावकों को अपने प्रभाव में लाकर उनका समर्थन अनुचित ढंग से प्राप्त कर लेगा। परन्तु इस तर्क के विपक्ष में हम कह सकते हैं कि जब तक शिक्षक स्वयं सक्रिय होकर छात्रों तथा समाज के समक्ष अपने आदर्शों को प्रस्तुत नहीं करेगा, तब तक समाज के सदस्य नागरिक के कर्तव्य तथा अधिकारों का उपयोग ठीक प्रकार से नहीं कर सकेंगे क्योंकि उनमें अभी शिक्षा की कमी है। शिक्षक उनके समक्ष आदर्श प्रस्तुत करके उसको सम्यक् उपयोग के लिए प्रयत्नशील तथा क्रियाशील बना सकता है। परन्तु बहुत खेद के साथ कहना पड़ता है कि जब मूलाधिकार समान रूप से सब मनुष्यों के लिए उपभोग्य हैं तो इस गरीब शिक्षक को इस अधिकार से वंचित करना उचित नहीं है। उसी के आदर्शों पर भारतीय गणतन्त्र की सफलता निर्भर है।
7. व्यक्तित्व (Personality)-शिक्षक का व्यक्तित्व ही सफल शिक्षण की आधारशिला है । नागरिकशास्त्र के शिक्षक के व्यक्तित्व में निम्नलिखित गुणों का होना अनिवार्य है-
1. जीवन-शक्ति,
2. अच्छा स्वास्थ्य,
3. सत्य आचरण,
4. शुभ चिन्तन,
5. आशावादिता,
6. निष्पक्षता,
7. धैर्य,
8. मौलिकता,
9. सहयोग,
10. सहनशीलता,
11. प्रेम,
12. आत्म-नियन्त्रण,
13. प्रजातन्त्रीय प्रक्रियाओं के प्रयोग,
14. विशाल सहदयता, की शक्ति,
15. नेतृत्व-क्षमता,
16. उत्साह,
17. तत्परता,
18. निष्ठा तथा चातुर्य ।
नागरिकशास्त्र के शिक्षक में किसी वस्तु या तथ्य को रोचक ढंग से वर्णन करने की शक्ति होनी चाहिए। जो शिक्षक अपने तथ्यों को अपने कथन या वर्णन द्वारा सफलता के साथ अपने छात्रों के समक्ष क्रमबद्धता से रख सकता है, वह अपने छात्रों के मस्तिष्क पर प्रभाव डाल सकता है। नागरिकशास्त्र के शिक्षक में इस कला का होना बहुत ही आवश्यक और उपयोगी है ।
8. नागरिकशास्त्र के शिक्षण का ज्ञान (Knowledge of Teaching Civics)- नागरिकशास्त्र के शिक्षक के लिए प्रशिक्षित होना अत्यन्त आवश्यक है। यदि उसको प्रशिक्षण नहीं मिलेगा तो वह आधुनिक शैक्षिक विचारधारा तथा विविध नवीन शिक्षण-पद्धतियों से अपने को अवगत नहीं कर सकेगा। किस स्तर पर किस शिक्षण विधि का प्रयोग करना उचित होगा, ऐसी बातों का जानना उसके लिए आवश्यक है। शिक्षण एक कला है। इसके सामान्य सिद्धान्त तथा नियम हैं, जिनको प्रत्येक शिक्षक को जानना आवश्यक है। इन सिद्धान्तों तथा नियमों का ज्ञान देने के लिए शिक्षक को प्रशिक्षित करना चाहिए ।
नागरिकशास्त्र के शिक्षक को निम्नलिखित बातों में प्रशिक्षण मिलना चाहिए-
(i) नागरिकशास्त्र का व्यावहारिक शिक्षण ।
(ii) सामान्य तथा मुख्य शिक्षण-विधियों का ज्ञान (नागरिकशास्त्र के शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली शिक्षण-विधियों का ज्ञान ।
(iii) निम्नलिखित व्यावसायिक विषयों का ज्ञान-
1. शिक्षा का तिहास तथा उसके सिद्धान्त,
2. शिक्षा मनोविज्ञान (विशेषत: बाल मनोविज्ञान तथा बाल-विकास के सिद्धान्त),
3. शिक्षा का दार्शनिक आधार,
4. शिक्षा का सामाजिक आधार,
5. शिक्षालय-व्यवस्था,
6. स्वास्थ्य शिक्षा,
7. शिक्षा में मूल्यांकन,
8. प्रारम्भिक शिक्षा की समस्याओं का ज्ञान ।
उपर्युक्त बातों में प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात् उसको समय-समय पर अभिनव पाठ्यक्रम भी प्रदान किया जाए। इसके अतिरिक्त उसे व्यावसायिक साहित्य पढ़ने के लिए प्रदान किया जाए, जिससे वह अपने प्रशिक्षण को नवीन बनाता रहे तथ अपने शिक्षण को रोचक तथा आकर्षक बना सके। इसके अतिरिक्त शिक्षकों के लिए सतत् शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
9. शिक्षण नवाचारों का ज्ञान (Knowledge of Innovations in Teaching)- विभिन्न आविष्कारों तथा शोध कार्यों ने शिक्षा के क्षेत्र को अछूता नहीं छोड़ा है। इन आविष्कारों ने नये विचारों को जन्म दिया है। इन नवीन विचारों ने शिक्षण को प्रभावी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। नागरिकशास्त्र को इन नवीन विचारों का ज्ञान होना आवश्यक है। इनके
ज्ञान से वह अपने शिक्षण कार्य को सफल एवं समृद्ध बनाने में समर्थ हो सकेगा।
10. शिक्षण की स्वतन्त्रता (Freedom of Teaching)– नागरिकशास्त्र के शिक्षक को विभिन्न समस्याओं, वाद-विवादपूर्ण प्रकरणों तथा विषयों का शिक्षण करना पड़ता है। इसके लिए उसे शिक्षण की स्वतन्त्रता की आवश्यकता है। उसे छात्रों को सत्य विषय-वस्तु तथा तथ्यों को ग्रहण करना ही सीखाना है। इसके लिए उसे अपने तथ्यों का विश्लेषण तथा संश्लेषण निष्पक्षता से करना पड़ेगा। यह तभी हो सकेगा जब उसको भेद, स्वार्थ नीति आदि से ग्रसित नहीं किया जाए। शिक्षण की स्वतन्त्रता व्यावहारिक योग्यता से ही प्राप्त की जा सकती है। स्कूल ही एक ऐसा स्थान है जहाँ छात्र निष्पक्ष रूप से सत्य की खोज कर सकता है।
11. मानवीय सम्बन्ध (Human Relations)– नागरिकशास्त्र मानवीय सम्बन्धों का एक अध्ययन है। अतः इसके शिक्षक को मानवीय सम्बन्धों का एक विशेषज्ञ होना चाहिए। उसे विद्यालय में छात्रों, अपने साथी-शिक्षकों, अभिभावकों, विद्यालय कर्मचारियों, प्रशासकों, समुदाय, खेल-कूद के सामान विक्रेताओं, व्यावसायिक संगठनों आदि से सम्बन्ध कायम करने
पड़ते हैं। अत: उसको मानवीय सम्बन्ध स्थापित करने की कला को जानना परमावश्यक है।
12. शिक्षण कौशल (Teaching Skills)-नागरिकशास्त्र-शिक्षक में अधोलिखित कौशलों का होना आवश्यक है-
(अ) कक्षा-प्रबन्ध कौशल (Skill of Class Management) उसमें अपने मौखिक हाव-भावों (Fascial expressions) को नियंत्रित एवं उनको परिवर्तित करने की क्षमता होनी चाहिए। उसका कक्षा में संचलन (Movement) भी नियन्त्रित एवं उपयुक्त होना चाहिए। उसमें विभिन्न परिस्थितियों में उपयुक्त ढंग से स्वीकृति, सराहना, अस्वीकृति आदि को अभिव्यक्त करने का कौशल होना चाहिए।
(ब) सम्प्रेषण-कौशल (Skill of Communication)—इसके अन्तर्गत उसमें पाँच कौशलों का होना आवश्यक है-1. कथन-कौशल, 2. वाचन- -कौशल, 3. अभिनयीकरण
(Dramatization), 4. स्पष्टीकरण (Explanation) तथा 5. प्रदर्शन-कौशल
(स) पारस्परिक या अन्तःक्रिया कौशल (Skill of Interaction)—इसमें प्रश्न करने की कला, वाद-विवाद कराने का कौशल, समस्या-समाधन, समस्या-विश्लेषण तथा पथ-प्रदर्शन करने की क्षमता आती है।
(द) शिक्षण-साधनों को प्रयुक्त करने का कौशल (Skill in Use of Teaching Aids)-इसमें शिक्षण-साधनों का चयन करने, चार्ट, प्रतिरूप, मानचित्र तथा रेखाचित्र बनाने, यांत्रिक साधनों को संचालित करने, श्यामपट या चाकपट पर लिखने आदि से सम्बन्धित कौशल आते हैं।
(य) अभिवृत्ति तथा व्यवहार से सम्बन्धित कौशल (Skills for Attitude and Behaviour)—इसमें धैर्य के साथ सुनना, सुझाव देना, पथ प्रदर्शित करना तथा परामर्श देना निहित हैं।
13. विभिन्न अनुभवों का व्याख्याता (An Interpreter of Various Experiences)- नागरिकशास्त्र-शिक्षक को विभिन्न अनुभवों की व्याख्या करने वाला होना चाहिए। उसे छात्रों के अनुभवों की ही व्याख्या नहीं करनी चाहिए वरन् उसे समुदाय के अतीतकालीन एवं वर्तमान से सम्बन्धित अनुभवों की भी व्याख्या करने वाला होना चाहिए। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) ने वृहद् सेवारत शिक्षक अभिनवीकरण कार्यक्रम 1988 में नागरिकशास्त्र-शिक्षक में निम्न गुणों की आशा की थी-
1. अभिव्यक्ति की सुस्पष्टता
2. व्यावहारिकता तथा साधन सम्पन्नता
3. बालक का पूर्ण ज्ञान
4. प्रेम तथा सहानुभूति
5. विषय हेतु उत्साह
6. निष्कपटता
7. नियन्त्रण शक्ति
8. पाठ की उत्तम तैयारी
9. धैर्य तथा सहनशीलता
10. प्रखर बुद्धि
11. सामाजिकता
12. नवीन विचारों के प्रति जिज्ञासा
13. सरल तथा रोचक भाषा
14. विषय पर अधिकार आदि ।