Pedagogy of civics

B.ED Notes in Hindi | विधालय विषय का शिक्षण शास्त्र

B.ED Notes in Hindi | विधालय विषय का शिक्षण शास्त्र

Q. सतत एवं समग्र मूल्यांकन का विवेचन करें।
(Discuss trhe continuous and comprehensive evaluation (CCE)
Ans. सतत एवं समग्र मूल्यांकन (सी.सी.ई.) से अभिप्राय एक ऐसी नियमित निरंतर और व्यापक मूल्यांकन पद्धति से है, जिसमें विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास के सभी पक्षों को सम्मिलित किया गया हो। सतत् से अभिप्राय नियमित मूल्यांकन इकाई परीक्षणों की आवृति, अधिगम प्रक्रिया के अन्तरालों का विश्लेषण, संशोधन के उपाय पुनर्परीक्षण तथा शिक्षकों एंव विद्यार्थियों को
स्वमूल्यांकन के लिए जानकारी प्रदान करता है। समग्र से अभिप्राय विद्यार्थी के विकास के दोनों अर्थात् शैक्षिक एवं सह-शैक्षिक पक्षों को सम्मिलित करना है।
सतत एवं समग्र मूल्यांकन की प्रक्रिया प्राथमिक कक्षाओं में विगत कई वर्षों से चल रही है। विद्यार्थी किस क्षेत्र में कैसा प्रदर्शन कर रहा है? उसकी उपलब्धियों के आधार पर आकलन किया जाता है। सामान्य दैनंदिन गतिविधियों और क्रियाकलापों को प्रभावी ढंग से शिक्षा की प्रक्रिया के आकलन के काम में लाया जाता है। प्राथमिक कक्षाओं में प्रत्येक विषय का आकलन दक्षताओं एवं कौशलों के आधार पर किया जाता है। पढ़ाई में सुधार के लिए शिक्षण के लक्ष्य एवं उद्देश्यों को ध्यान में रखकर विद्यार्थी का मूल्यांकन किया जाता है जिसमें प्रत्येक बच्चे को सीखने के अवसर प्रदान किये जाते हैं। अपने अनुभव एवं क्षमता के अनुसार स्वयं करके सीखने की प्रक्रिया को प्रायः कक्षाओं में विशेष स्थान दिया गया है। उनके प्रयोगों के आधार पर लगातार और विस्तृत मूल्यांकन ही एकमात्र सार्थक मूल्यांकन है जिसमें विद्यार्थी की गुणवत्ता का आकलन समय-समय पर किया जाता है।
पहली और दूसरी कक्षा में लिखित परीक्षाओं के माध्यम से मूल्यांकन नहीं किया जाता है। बल्कि दैनिक कार्यों के आधार पर भिन्न-भिन्न कौशलों एवं दक्षताओं का आकलन किया जाता है। अध्यापन और अध्ययन को सार्थक और आनन्दप्रद बनाने के लिए परीक्षा के कुप्रभाव से बचाने के लिए इन कक्षाओं को लिखित परीक्षा से मुक्त किया गया है । दिन-प्रतिदिन के कार्यों से पहली और दूसरी कक्षाओं का आकलन किया जाता है।
कक्षा तीसरी से पाँचवीं तक शिक्षण की समस्त क्षमताएँ व्यवहार और कौशलों की समझ को हम स्कूली पाठ्यचर्या के माध्यम से विकसित करना चाहते हैं । इसलिए इन कक्षाओं में मौखिक तथा लिखित परीक्षाओं के आधार पर आकलन किया जाता है। बच्चों तथा अभिभावकों को भी इसकी जानकारी दी जाती है ताकि उन्हें अपने अध्ययन क्षेत्र को समझने में मदद मिले । इसलिए कक्षा तीसरी से सतत् और समग्र इन दोनों पक्षों’ के माध्यम से विद्यार्थी का मूल्यांकन-फारमेटिव (रचनात्मक) तथा समेटिव (संकलित) मूल्यांकन के रूप में किया जाता है।
केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने शिक्षा प्रणाली में सुधार एवं सुदृढता लाने हेतु मूल्यांकन के लिए सी.सी.ई. पद्धति अक्टूबर, 2009 से कक्षा नौ एवं दस में लागू की। इस पद्धति में कक्षा नौ एवं दस के विद्यार्थियों के अधिगम को सतत एवं समग्र मूल्यांकन के माध्यम से विद्यालय में ही मूल्यांकन किया जायेगा न कि अन्य बाहरी परीक्षा के द्वारा । यह सर्वविदित है कि सी.सी.ई. पद्धति लागू होने से पहले विद्यार्थी का मूल्यांकन कक्षा दस वर्ष के अंत में बोर्ड परीक्षा के द्वारा होता था किन्तु अब सी.सी.ई. पद्धति के माध्यम से मूल्यांकन लगातार पूरे वर्ष शैक्षिक एवं सह-शैक्षिक क्षेत्रों एवं गतिविधियों में विद्यार्थियों के निष्पादन के आधार पर होगा। यह मूल्यांकन तीन भागों में होगा।
विद्यार्थी का मूल्यांकन कक्षा नौ एवं दस में शैक्षिक निष्पादन के आधार पर निम्न प्रक्रियानुसार होगा-
(क) रचनात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation) (1) इसके अन्तर्गत शिक्षक विद्यार्थी के विकास का सकारात्मक वातावरण में मूल्यांकन करेंगे।
(ii) इस मूल्यांकन में लिखित परीक्षा के स्थान पर विविध गतिविधियों से विद्यार्थी का मूल्यांकन किया जायेगा जिसमें प्रश्नोत्तरी, साक्षात्कार, दृश्य परीक्षण, मौखिक परीक्षण, परियोजना तथा प्रयोग शामिल है।
(ख) संकलित मूल्यांकन (Summative Evaluation) यह मूल्यांकन लिखित परीक्षा के रूप में प्रत्येक विद्यालय द्वारा प्रत्येक सत्र के अंत में आयोजित किया जायेगा। परीक्षा में स्तर एवं एकरूपता बनाये रखने की दृष्टि से केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड प्रश्न बैंक, समाधान और अंक योजना विद्यालयों को उपलब्ध करायेगा। इस मूल्यांकन प्रक्रिया का समय-समय पर बोर्ड के अधिकारियों द्वारा निरीक्षण भी किया जायेगा।
1. इस प्रकार एक वर्ष में दो सत्र होंगे प्रत्येक सत्र में दो रचनात्मक (फॉरमेटिव) और एक संकलित (समेटिव) मूल्यांकन के आधार पर विद्यार्थियों के निष्पादन को जांचा जायेगा। मूल्यांकन का आधार अंक न होकर श्रेणी (ग्रेड) होंगी।
2. सह-शैक्षिक क्षेत्रों जिनमें जीवन कौशल, दृष्टिकोण एवं मूल्य-बोध का मूल्यांकन किया जायेगा। पांच बिन्दुओं के आधार पर जीवन-कौशलों और तीन बिन्दुओं के आधार पर दृष्टिकोण एवं मूल्य बोध आंका जायेगा।
3. सह-शैक्षिक क्रियाकलापों में भाग लेने के आधार पर विद्यार्थियों का मूल्यांकन किया जायेगा । इसके अन्तर्गत पुस्तकालय, वैज्ञानिक, सौन्दर्यपरक गतिविधियों, गोष्ठियों में भागीदारी तथा शारीरिक एवं स्वास्थ्य शिक्षा को आधार बनाया गया है । तीन-बिन्दुओं के आधार पर इन सभी क्षेत्रों को श्रेणीकृत किया जायेगा।
सतत एवं समग्र मूल्यांकन के लाभ-
1. सम्पूर्ण अधिगम प्रक्रिया को एक ही परीक्षा के स्थान पर अब 12 मूल्यांकन के माध्यम आंका जायेगा। इस प्रकार विद्यार्थी का वास्तविक मूल्यांकन सम्भव हो पायेगा। किसी एक मूल्यांकन का प्रभाव सम्पूर्ण मूल्यांकन पर नहीं पड़ेगा।
2. इस पद्धति में न केवल शैक्षिक अपितु सह-शैक्षिक क्षेत्रों एवं गतिविधियों को भी जांचा जायेगा।
3. इस पद्धति के द्वारा विद्यार्थियों में अधिगम के प्रति लगाव बढ़ेगा।
4. इसके द्वारा विद्यार्थियों में उन जीवन-कौशलों को विकसित करना सम्भव होगा जो सृजनात्मक और सन्तोषप्रद जीवन के लिए आवश्यक है।
5. यह पद्धति विद्यार्थियों को परीक्षा के तनाव से मुक्त रखने में सहायक होगी क्योंकि-
(i) विषय- वस्तु को छोटे अंशों में विभक्त करके नियमित अधिगम प्रक्रिया की जांच की जा सकेगी।
(ii) विभिन्न विद्यार्थियों की विविध अधिगम आवश्यकता और क्षमता के अनुसार विविध उपायों पर आधारित होने के कारण शिक्षा पद्धति अधिक प्रभावशाली होगी।
(iii) विद्यार्थी के प्रदर्शन पर नकारात्मक टिप्पणियों पर रोक लगेगी।
(iv) अधिगम प्रक्रिया में विद्यार्थी सक्रिय रूप से भाग लेंगे।
6. जो विद्यार्थी शैक्षिक गतिविधियों में उत्कृष्ट प्रदर्शन नहीं कर पाते किन्तु सह-शैक्षिक क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं, उन्हें प्रोत्साहित किया जायेगा और उनकी क्षमताओं को पहचाना जायेगा।
7. विद्यार्थियों की समस्याओं का समाधान नियमित रूप से सत्र के आरम्भ से ही विभिन्न प्रकार के सुधार उपायों द्वारा किया जा सकेगा। किन्तु इस पद्धति का यह आशय नहीं निकाला जाना चाहिए कि इसमें विद्यार्थी की शैक्षिक उपलब्धियों को कम किया जायेगा। जब विद्यार्थियों को शैक्षिक क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन तो करना ही होगा। साथ ही साथ वे जीवन-कौशल, विचार-कौशल एवं भाव-कौशल के माध्यम से अतिरिक्त कौशलों का विकास करके जीवन की परिस्थितियों का अधिक परिपक्वता से सामना कर सकेंगे।
आज शिक्षकों की भूमिका में हमारे लिए यह अत्यावश्यक है कि हम विद्यार्थियों में उच्च नैतिक मूल्यों का विकास करें और उनमें वह सकारात्मक अभिवृत्ति विकसित करें जो उन्हें न केवल अपने देश का ही अपितु समूचे विश्व का एक सुयोग्य और जिम्मेवार नागरिक बनने का आधार प्रदान करें।

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