B.ED Notes in Hindi | विधालय विषय का शिक्षण शास्त्र
B.ED Notes in Hindi | विधालय विषय का शिक्षण शास्त्र
Q. रूप देय परीक्षण या निर्माणात्मक मूल्यांकन तथा योग देय परीक्षण पर संकलनात्मक मूल्यांकन पर प्रकाश डालें।
(Throw Formative and Summative Tests or Evaluation.)
Ans. आधुनिक शैक्षिक मापन के क्षेत्र में बड़ी तेजी से विकास हो रहा है। नवीन प्रकार के परीक्षणों का विकास तथा उपयोग किया जाने लगा है। मानदण्ड परीक्षण को शिक्षण-अधिगम के मापन को दृष्टि से इन्हें दो विशिष्ट रूपों में विकसित किया जाता है-
1. रूप देय परीक्षण (Formative Test) तथा
2. योग देय परीक्षण (Summative Test) |
1. रूप देय परीक्षण (Formative Test)-शिक्षण तथा शिक्षण तथा अनुदेशन के प्रस्तुतीकरण की पाठ्यवस्तु को इकाइयों में बाँटकर शिक्षण किया जाता है। अतः प्रत्येक इकाई के अन्त में परीक्षण किया जाना चाहिए, छात्रों की अपेक्षित प्राप्ति न होने पर निदान जाये और पुन: सुधारात्मक (Remedial teaching) शिक्षण किया जाये और इसके बाद इकाई परीक्षण या रूप देय परीक्षण (Formative test) दिया जाये। इस प्रकार के परीक्षण का रूप मानदण्ड परीक्षणों के समान होता है परन्तु इसकी रचना प्रत्येक इकाई के मापन के लिए की जाती है, जिससे छात्रों को पाठ्यवस्तु के स्वामित्व का अवसर दिया जाता है । रूप देय परीक्षण (Formative test) का उपयोग अधिगम-शिक्षण को प्रभावशाली बनाने तथा छात्रों की पाठ्यवस्तु की इकाई के रूप में स्वामित्व एवं उद्देश्यों की प्राप्ति को महत्त्व दिया जाता है।
2. योग देय परीक्षण (Summative Test)—पाठ्यवस्तु की सभी इकाई के शिक्षण के अंत में जब छात्र सभी इकाईयों को पृथक्-पृथक् रूप में देय परीक्षणों (Formative Tests) को पास कर लेते हैं, उसके अंत में योग देय परीक्षण (Summative Tests) को दिया जाता है, जिससे छात्रों को सामान्य स्तर का बोध होता है और छात्रों की सफलता के आधार पर शिक्षण व आदेशन की प्रभावशीलता का मूल्यांकन होता है, जिससे शिक्षक तथा अनुदेशन को पुनर्बलन मिलता है और अपने आगे के शिक्षण के नियोजन तथा व्यवस्था में सहायता मिलती है। छात्रों की सफलता के आधार पर उद्देश्यों की प्राप्ति का भी निर्णय लिया जाता है। ये दोनों प्रकार के परीक्षण शिक्षण-अधिगम की दृष्टि से एक-दूसरे के पूरक हैं। रूप देया परीक्षण में छात्रों के अधिगम कठिनाइयों को महत्त्व दिया जाता है। योग देय परीक्षण से शिक्षण की प्रभावशीलता का मापन होता है।
निर्माणात्मक एवं संकलनात्मक मूल्यांकन की प्रक्रिया
(Process of Formative and Summative Evaluation)
निर्माणात्मक एवं संकलनात्मक शैक्षिक मूल्यांकन की प्रक्रिया लक्ष्य, शिक्षण सम्बन्धी
अध्ययन और मूल्यांकन के स्रोतों पर निर्भर करती है। इसमें किसी एक को अनुपस्थिति
मूल्यांकन प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न कर सकती है। इसलिये मूल्यांकन पूर्ण नहीं हो पाता
इसलिये संकलनात्मक एवं निर्माणात्मक शैक्षिक मूल्यांकन को तीन भागों में बाँटा गया है
1. लक्ष्यों का निर्धारण (Formulation of Objectives)- शैक्षणिक मूल्यांकन के प्रथम पद में सामाजिक विज्ञान-शिक्षण का नियोजन किया जाता है । सामाजिक विज्ञान-शिक्षण के नियोजन में सर्वप्रथम प्रस्तुत प्रकरण से सम्बन्धित शिक्षण लक्ष्यों-ज्ञान, बोध, अनुप्रयोग, कौशल, रुचि एवं अभिवृद्धि आदि का निर्धारण किया जाता है। इन्हीं लक्ष्यों के आधार पर ही बालक के
व्यवहार में होने वाले अपेक्षित व्यवहार परिवर्तनों से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त हो जाती है कि उसकी शैक्षिक प्रक्रिया सही या गलत है। इस सोपान में शिक्षण लक्ष्यों का परिभाषीकरण करना भी आवश्यक होता है।
2. अधिगम अनुभव प्रदान करना (Providing Learning Experiences)–बालक में अपेक्षित व्यवहार में परिवर्तन लाने हेतु सामाजिक विज्ञान-शिक्षण की प्रक्रिया से सम्बन्धित विविध क्रिया-कलापों के आधार पर अधिगम अनुभवों को प्रदान किया जा सकता है। अधिगम अनुभव के सम्प्रेषण से पूर्व अधिगम अनुभवों की व्यवस्था, अधिगम सम्बन्ध परिस्थितियों का सृजन अत्यन्त आवश्यक होता है। क्योंकि अधिगम अनुभव ही शैक्षिक मूल्यांकन प्रक्रिया का प्रमुख स्तम्भ है।
3. व्यावहारिक परिवर्तन के आधार पर मूल्यांकन (Evaluation Based on behavioural Changes)—सामाजिक विज्ञान-शिक्षण की प्रक्रिया में प्रदत्त अधिगम-अनुभवों द्वारा ही छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाना सम्भव है। छात्रों के व्यवहार में क्या अपेक्षित परिवर्तन हुए, यह शैक्षिक मूल्यांकन द्वारा ज्ञात किया जाता है । इसके लिए सामाजिक विज्ञान-शिक्षण
निबन्धात्मक, वस्तुनिष्ठ, मौखिक परीक्षण एवं अन्य प्रकार की मूल्यांकन प्रक्रियाओं द्वारा जाँच करता है।
सारांश—यह कहा जा सकता है कि निर्माणात्मक मूल्यांकन (Formative Evaluation) सामाजिक विषय अध्ययन में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सशक्त (मजबूत) बनाने हेतु प्रयोग किया जाता है। शिक्षण लक्ष्यों के अनुसार छात्रों में योग्यताएँ विकसित हुई है या नहीं, या हुई है तो कितनी हुई हैं, इसकी जानकारी प्राप्त करने के पश्चात् छात्र के अधिगम में यदि कोई कमी या त्रुटि पाई जाती है तो छात्र की पुनः शिक्षण देकर उसको दूर किया जाता है, इसे ही निर्माणात्मक मूल्यांकन कहते हैं इस प्रकार का मूल्यांकन इकाई परीक्षण, दत्त कार्य और कक्षा की अन्य क्रियाओं द्वारा किया जाता है। इस प्रकार का मूल्यांकन लगातार चलता रहता है। यह संकलनात्मक मूल्यांकन से भिन्न है। संकलनात्मक मूल्यांकन (Summative Evaluation) एक अलग प्रकार का मूल्यांकन है, जिसकी प्रक्रिया लगातार नहीं चलती है बल्कि वार्षिक या पाठ्यक्रम की समाप्ति पर उपयुक्त होती है। इस परीक्षण के अन्तर्गत यह देखा जाता है कि छात्रों ने कितने लक्ष्यों की प्राप्ति किस सीमा तक की है। छात्रों की उपलब्धि का ग्रेडिंग, श्रेणीकरण, प्रोनतीकरण और प्रमाण-पत्र प्रदान करने हेतु प्रयोग किया जाता है । इसमें एक विशेषता यह है कि इसमें छात्रों की उपलब्धि की जाँच के साथ-साथ शिक्षण एवं शिक्षण विधियों की प्रभावशीलता की जाँच भी हो जाती है।
