B.ED Notes in Hindi | नागरिक शास्त्र का शिक्षण शास्त्र
B.ED Notes in Hindi | नागरिक शास्त्र का शिक्षण शास्त्र
Ans. राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा, 2005 विद्यालयी शिक्षा पर नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है। इससे पूर्व भी राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा बनी है। वर्ष 1976 में शिक्षा को समवर्ती सूची में रखा गया। तभी से सम्पूर्ण राष्ट्र में संचालित विद्यालयों में कुछ मूलभूत बातों पर शिक्षा को समानता से लागू करने का चिन्तन तीव्र गति से हुआ । राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 ने पूरे देश की स्कूल पाठ्यचर्या में समान तत्वों की सिफारिश की थी। राष्ट्रीय स्तर पर सर्वप्रथम ‘राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, 1998 तैयार की गई, किन्तु बच्चों पर पाठ्यक्रम व पाठ्यपुस्तकों का भार बढ़ता ही गया । इसीलिये शिक्षा के नाम पर बच्चों पर बढ़ते बोझ से मुक्ति दिलाने हेतु 19931 प्रो. यशपाल का दस्तावेज ‘बिना बोझ की शिक्षा’ आया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 की सफारिशों के आधार पर प्रति पाँच वर्षों में एन. सी. एफ. की पुनर्समीक्षा की बात कही गई, फलतः एन. सी. एफ., 2000 की पुनर्समीक्षा की गई । वर्तमान राष्ट्रीय सरकार ने पुरानी पाठ्यचर्या 2000 की पुनर्समीक्षा कर, नई पाठ्यचर्या रूपरेखा निर्माण करने का निर्णय लेते हुए प्रो. यशपाल को अध्यक्षता में राष्ट्रीय संचालन समिति का गठन किया। इसके द्वारा शिक्षाविद् एवं समन्धत विषय विशेषज्ञों के 21 फोकस समूहों की सहायता से राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा, 2005 यार किया गया। इस राष्ट्रीय पाठ्यचर्या को तैयार करने के लिये जो 21 फोकस ग्रुप बनाये गये हैं,
ये बिन्दु इस प्रकार हैं-
1. शिक्षा का लक्ष्य,
2. पाठ्यचर्या में बदलाव,
3. भारतीय भाषाओं का शिक्षण,
4. अंग्रेजी शिक्षण,
5. गणित शिक्षण,
6. विज्ञान शिक्षण,
7. सामाजिक विज्ञान शिक्षण,
8. आवास और सीखना,
9. कला, संगीत, नृत्य और रंगमंच,
10. हस्तशिल्पों की धरोहर,
11. कार्य और शिक्षा,
12. प्रारम्भिक बाल्यावस्था का विकास,
13. अनुसूचित जाति और जनजाति के बच्चों की समस्याएँ,
14. शिक्षा में जेन्डर के मुद्दे,
15. शैक्षिक प्रौद्योगिकी,
16. स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा,
17. विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की शिक्षा,
18. शांति के लिये शिक्षा,
19. पाट्यचर्या, पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें,
20. पाठ्यचर्या नवीनीकरण के लिये अध्यापक शिक्षा,
21. परीक्षा सुधार।
पाठ्यक्रम एक ऐसी संरचना है, जिसके कारण ज्ञान के भण्डार में वृद्धि होती है। यह विकासशील अवस्था में रहती है.। समाज में होने वाले परिवर्तन का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से पाठ्यक्रम में दिखाई पड़ता है। पाठ्यक्रम में समयानुसार परिवर्तन ही शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होते हैं । शिक्षा के क्षेत्र की बहुत सारी समस्याओं के निदान हेतु एक राष्ट्रीय रूपरेखा 2005 की
आवश्यकता महसूस की गई, जिसको आधार मानते हुए सिद्धान्तों का निर्माण किया गया। इन सिद्धान्तों के आधार पर ही ‘राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005’ के उद्देश्यों को निर्धारित किया गया। साथ ही समस्याओं के समाधान हेतु सुझावों को भी प्रस्तुत किया गया ।
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 के सिद्धान्त
(Theories of National Curriculum Frame Work, 2005)
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना के मूलभूत सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
1. मानवता का सिद्धान्त-मानवीय मूल्यों का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। मूल्यों का महत्त्व न केवल भारतीय स्तर पर अपितु वैश्विक स्तर पर भी है। भारतीय मानवता मूल्यों पर आधारित रही है। इसलिये पाठ्यक्रम में प्रारम्भ से ही ऐसे प्रकरणों का समावेश किया गया है, जिससे छात्रों में प्रेम, सहयोग, परोपकार एवं सहिष्णुता की भावना का हो सके।
2. एकता का सिद्धान्त – राष्ट्र की अखण्डता को सुनिश्चित करने के लिये पाट्क्रम एकता के सिद्धान्त को अपनाया गया है। विभिन्न संस्कृतियों को एकता के सूत्र में पिरोया धर्मनिरपेक्षता से सम्बन्धित विषय वस्तु को प्रस्तुत किया गया है। विभिन्न भाषाओं के समाधान भी इस पाठ्यक्रम में विचार-विमर्श किया गया है।
3. नैतिकता का सिद्धान्त— भारतीय संस्कृति नैतिक मूल्यों पर आधारित रही है। नैतिक मूल्यों को आज भी उपयोगी व महत्त्वपूर्ण माना जाता है। प्रत्येक अभिभावक व शिक्षक अपने बच्चों में नैतिक मूल्यों का समावेश करना चाहते हैं। अत: राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 में मूल्यों के सिद्धान्त को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। पाठ्यक्रम में प्राथमिक स्तर से ही
शिक्षाप्रद कहानियों के माध्यम से छात्रों में नैतिकता का विकास किया जाता है।
4. संस्कृति संरक्षण का सिद्धान्त-भारतीय संस्कृति विश्व की संस्कृतियों में सर्वश्रेष्ठ है। इसके संरक्षण एवं विकास के निरन्तर प्रयास किये जाते रहे हैं। भारतीय संस्कृति के मूल तत्त्व, मानवता, नैतिकता, सामाजिकता, आदर्शवादिता एवं समन्वयता आदि को पाठ्यक्रम की विषयवस्तु में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इससे संस्कृति का संरक्षण होता है । राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना,
2005 में संस्कृति के संरक्षण के सिद्धान्त को महत्त्व प्रदान किया गया है।
5. समायोजन का सिद्धान्त – राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 का निर्माण करने से पूर्व उपलब्ध संसाधनों के समायोजन में विचार-विमर्श किया गया। इसके पश्चात् उपलब्ध संसाधनों में समन्वय करते हुए उनके सर्वाधिक उपयोग के महत्व को सुनिश्चित किया गया। इस प्रकार साधनों का उचित विदोहन एवं साधनों के मध्य समन्वय स्थापित करते हुए इस पाठ्यक्रम में
समायोजन के सिद्धान्त का अनुसरण किया गया ।
6. रुचि का सिद्धान्त—पाठ्यक्रम की प्रभावशीलता एवं सफलता का मूल्यांकन तभी किया जाता है जब उसका अनुकूल प्रभाव शिक्षक, छात्र व समाज पर दृष्टिगोचर होता है । यह सर्वविदित है कि रुचि के अभाव में शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया प्रभावी रूप से नहीं चल सकती है। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 के निर्माण के समय शिक्षकों की रुचि, छात्रों की रुचि व अभिभावकों की रुचि को विशेष स्थान दिया गया है।
7. सन्तुलित विकास का सिद्धान्त-समाज के प्रत्येक क्षेत्र में सन्तुलन बना रहे, इस हेतू राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 में सन्तुलित विकास के सिद्धान्त को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। जैसे-नैतिक एवं मानवीय मूल्यों को पाठ्यक्रम में उचित स्थान देना आदर्शवाद को प्रयोजनवाद की तुलना में कम स्थान प्रदान करना आदि । इससे समाज का विकास पूर्णतः सन्तुलित रूप में होगा तथा इस प्रकार एक आदर्श समाज का सपना साकार हो सकेगा।
8. आदर्शवादिता का सिद्धान्त – राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना में आदर्शवादिता के सिद्धान्त को महत्त्व प्रदान करते हुए आदर्शवादी परम्परा का अनुकरण किये जाने पर बल दिया है। ईश्वर की सत्ता एवं महानता के बारे में छात्रों को प्रारम्भिक स्तर से ही ज्ञान कराया जाता है । भौतिकता के साथ-साथ आदर्शवादिता का भी जीवन में समावेश होना अत्यन्त आवश्यक है
9. सामाजिकता का सिद्धान्त-समाज और शिक्षा एक दूसरे के पूरक हैं। पाठ्यक्रम में सामाजिक पहलू को विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 में उन सभी तथ्यों एवं प्रकरणों का समावेश किया है, जो स्वस्थ एवं आदर्श समाज का निर्माण करते हैं। इस पाठ्यक्रम में सामाजिकता के सिद्धान्त को महत्त्व दिया गया है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 में उन सभी सिद्धान्तों को महत्त्व दिया गया है जो कि उत्तम पाठ्यक्रम की संरचना में सहायक सिद्ध होते हैं। पाठ्यक्रम की विषय वस्तु एवं सामाजिक परिस्थितियों ने समन्वय स्थापित करते हुए छात्र के लिए सर्वांगीण विकास की मार्ग प्रशस्त किया है।
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 के उद्देश्य
(Objectives of National Curriculum Frame Work)
सर्वप्रथम किसी भी प्रकार के शैक्षिक कार्यक्रम को सफल व प्रभावशाली बनाने हेतु सिद्धान्तों के आधार पर उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है, जिससे कि पाठ्यक्रम एवं योजना का निर्धारण किया जा सके । राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 के प्रमुख उद्देश्यों को निम्नलिखित रूप में
प्रस्तुत किया जा सकता है।
1. राष्ट्रीय एकता का विकास–भारत प्राचीन काल से ही अनेकता में एकता के लिये प्रसिद्ध रहा है। देश की एकता एवं अखण्डता से सम्बन्धित विषय वस्तु को राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 में अधिक महत्त्व प्रदान किया है। भारत विभिन्न धर्मों, भाषाओं एवं परम्पराओं का देश होने के कारण सामान्य जनजीवन में प्रतिकूल प्रभाव डालता है। विचारधाराएँ भिन्न होने
पर एकता की आवश्यकता है। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना में राष्ट्रीय एकता को सर्वोपरि स्थान दिया गया है।
2. राष्ट्रीय विकास—पाठ्यक्रम का निर्माण उद्देश्यों पर आधारित होता है। उद्देश्यों की प्राप्ति करना ही पाठ्यक्रम निर्माण की सफलता को निर्धारित करता है। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्र को विकसित करना है जो कि केवल शिक्षा द्वारा सम्भव है, राष्ट्रीय विकास उस अवस्था में सम्भव होता है, जब पाठ्यक्रम एवं शिक्षा व्यवस्था में एकरूपता
हो तथा एक उद्देश्य को ही प्राप्त करने का प्रयास किया जाये।
3. मानवीय मूल्यों का विकास—भारतीय दर्शन एवं शिक्षा मानवता एवं नैतिकता को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करती है। इसलिये पाठ्यक्रम का स्वरूप भी इस तथ्य से सम्बन्धित होगा। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 का प्रमुख उद्देश्य छात्रों में प्रारम्भिक स्तर से ही मानवीय मूल्यों का विकास करना है, जिससे कि छात्रों में प्रेम, सहयोग, दान, परोपकार एवं सहिष्णुता जैसे
मानवीय गुणों का विकास किया जा सके।
4. छात्र में अध्ययन के प्रति रुचि का विकास-पाठ्यक्रम जो स्तरानुकूल बनाया जाता है, जिससे कि प्रत्येक छात्र के द्वारा रुचि प्राप्त की जा सके। शिक्षण प्रक्रिया को रुचिपूर्ण व प्रभावपूर्ण बनाया जा सके । राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 में छात्र में अध्ययन के प्रति रुचि का विकास किया जाना प्रमुख उद्देश्य है
5. भाषायी समस्या का समाधान-भारतीय समाज में विभिन्न प्रांतों में भाषा का स्वरूप भिन्न-भिन्न पाया जाता है। इससे राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना में भाषा की समस्या सदैव से रही है, कि किस भाषा को राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकार किया जाये । राष्ट्रीय पाठ्यक्रम, 2005 में विभिन्न भाषाओं एवं मातृभाषा को उचित स्थान प्रदान कर भाषायी समस्या का समाधान किया है।
6. स्तरानुकूल शिक्षण विधियाँ—पाठ्यक्रम में स्तर के अनुकूल शिक्षण विधियों के प्रयोग की मान्यता प्रदान की है, जैसे प्राथमिक एवं पूर्व प्राथमिक स्तर पर सामान्य रूप से उन शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाना चाहिये, जो कि खेल से सम्बन्धित हो तथा व्याख्यान व कथन विधि का प्रयोग माध्यमिक स्तर पर किया जाना चाहिये । अत: इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य शिक्षण विधियों का विकास करना है
7. छात्रों का सर्वांगीण विकास-राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना का प्रभुत्व उद्देश्य छात्रों का सर्वांगीण विकास करना है। इस पाठ्यक्रम में छात्रों के क्रियात्मक पक्ष को बनाये रखने के लिये प्रायोगिक एवं सैद्धान्तिक पक्षों का समन्वय किया गया है। शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर प्रायोगिक कार्यों का स्वरूप भिन्न-भिन्न होता है, जैसे प्राथमिक स्तर पर सृजनात्मक स्तर को कार्यानुभव का
नाम दिया गया है तथा माध्यमिक स्तर पर इसकी प्रायोगिक कार्य के नाम से जाना जाता है। इस तरह से छात्र को क्रियात्मक एवं सैद्धांतिक पक्ष दोनों दृष्टिकोण से सुदृढ़ बनाया जाता है
8. शिक्षकों में आत्मविश्वास का विकास करना—पाठ्यक्रम को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित किये जाने के लिये शिक्षकों में आत्मविश्वास का विकास करना राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना का उद्देश्य है । आत्मविश्वासपूर्ण शिक्षण कार्य निरन्तर प्रगति पर चलता है।
9. सामाजिक एकता का विकास-राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 में सामाजिक एकता से सम्बन्धित विषय वस्तु को समाहित कर सामाजिक एकता के विकास में महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। सामाजिक एकता से आशय उस विकास से है, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकार, कर्तव्य एवं स्वस्थ सामाजिक परम्पराओं का पालन एवं संरक्षण करता हो, साथ ही सामाजिक विचारधाराओं में तारतम्य बनाये रखें।
10. शिक्षण साधनों में समन्वय स्थापित करना—यह पूर्णतया स्पष्ट है कि पाठ्यक्रम निर्माण से पूर्व उपलब्ध शैक्षिक संसाधनों पर विचार किया जाता है । राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 का उद्देश्य शिक्षण कार्य के मानवीय एवं भौतिक साधनों में समन्वय स्थापित करना है पाठ्यक्रम में इनके समन्वय को प्राथमिकता दी गयी है। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2005 के उद्देश्य वास्तविक सन्दों में स्पष्ट एवं प्रभावपूर्ण है। इससे छात्रों के सर्वांगीण विकास सम्बन्धी सभी पक्षों को ध्यान में रखा गया है। अत: यह निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि पाठ्यक्रम के उद्देश्य राष्ट्र, समाज, छात्र एवं शिक्षक सभी के हितों को ध्यान में रखकर निर्धारित किये गये हैं।