B.ED Notes in Hindi | नागरिक शास्त्र का शिक्षण शास्त्र
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Q. राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 की समस्याओं पर प्रकाश डालें।
Ans. राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 के निर्माण में इसके सफलतम क्रियान्वयन में अनेक प्रकार की बाधाएँ उत्पन्न हुई हैं, जिनका समाधान करना अनिवार्य है। पाठ्यक्रम के निर्माण करने तथा उसके क्रियान्वयन को पूर्णतः समस्याओं से रहित होना चाहिये। जिससे उसको क्रियान्वित करने वालों के समक्ष किसी भी प्रकार की समस्या न हो। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 की
संरचना एवं क्रियान्वयन सम्बन्धी प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
1. शिक्षक सम्बन्धी समस्याएँ-पाठ्यक्रम का निर्माण उचित शिक्षक संख्या के आधार पर किया जाता है जबकि शिक्षक कम संख्या में होते हैं, जिससे पाठ्यक्रम का क्रियाक्रम उचित प्रकार से नहीं होता है। पाठ्यक्रम में प्रस्तुत अनेक बिन्दुओं पर शिक्षकों की संख्या सम्बन्धी समस्या उत्पन्न हो जाती है; जैसे छात्र को प्रारम्भ के दो वर्षों में मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करनी चाहिये। यह सुझाव राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 का है परन्तु शिक्षकों की उपलब्धता जो कि विभिन्न भाषाओं का ज्ञान रखते हों, सम्भव नहीं है क्योंकि एक विद्यालय में भोजपुरी हिन्दी एवं उर्दू मातृभाषा के छात्र पाये जा सकते हैं। द्वितीय स्तर पर विद्यालयों की संख्या तो अधिक है परन्तु शिक्षकों की संख्या नगण्य है।
2. भाषा की समस्या–भाषा की समस्या राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सन् 2005 के समय की उत्पन्न हुई कि शिक्षण का माध्यम कौन-सी भाषा हो? कौन-सी भाषा को प्रमुख स्थान प्रदान किया जाये? भारतीय समाज में अनेक प्रकार की भाषाओं का प्रचलन होने के कारण भाषाओं ने विवाद की स्थिति उत्पन्न कर दी है। प्रत्येक राज्य अपनी भाषा की उपेक्षा का दोष लगाना आरम्भ कर देता है कि उसकी भाषा को पाठ्यक्रम में उचित स्थान प्रदान नहीं किया जा रहा है। भाषा विवाद की जो स्थिति प्रारम्भ में थी, वहीं समस्या आज भी विद्यमान है।
3. धर्म सम्बन्धी समस्याएँ-धर्म सम्बन्धी समस्या राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना, 2005 को प्रमुख समस्या रही। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की संरचना करते समय धन को सीमितता को ध्यान में रखना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप पाठ्यक्रम में उन विषयों का समावेश नहीं हो पाता है जिनकी आवश्यकता अनुभव की जाती है, जैसे वर्तमान समय में कम्प्यूटर की सैद्धान्तिक एवं
व्यावहारिक शिक्षा प्राथमिक स्तर से ही प्रदान करनी चाहिये। इसके लिये विद्यालयों में कम्प्यूटर की व्यवस्था होनी चाहिये परन्तु धनाभाव के कारण यह सम्भव नहीं हो पाता है।
4. संसाधनों का अभाव-भारत एक विशाल देश होने के कारण संसाधनों का अभावं पाया जाना स्वाभाविक है। संसाधनों के अभाव में महत्वपूर्ण विचार-विमर्श न होने के कारण संसाधनों का अभाव पाठ्यक्रम संरचना में एक प्रमुख बाधा है।
5. वैश्वीकरण का प्रभाव-वैश्वीकरण का नकारात्मक प्रभाव भी पाठ्यक्रम संरचना की एक प्रमुख समस्या है। वैश्वीकरण के कारण प्रत्येक देश को पाठ्यक्रम शिक्षा व्यवस्था शिक्षा दर्शन एवं उद्देश्यों का ज्ञान दिया जाता है। अत: भारत को पाठ्यक्रम निर्माता भी विश्वस्तरीय पाठ्यक्रम निर्माण करने के प्रयत्न में लगे रहते हैं। संसाधन एवं विस्तृत सोच के अभाव के कारण पाठ्यक्रम का स्वरूप विश्व स्तर पर श्रेष्ठ गणना में नहीं आ पाता है।
6. राजनैतिक समस्याएँ राजनैतिक समस्याएँ पाठ्यक्रम निर्माण में बाधा उत्पन्न करती है। लोकतांत्रिक देश होने के कारण सरकारों के परिवर्तन का क्रम चलता रहता है। सरकार में पदासीन व्यक्तियों की मनोदश का पाठ्यक्रम निर्मण में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है । अभी कुछ समय पूर्व पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा के अध्याय का समावेश किया गया है, जिसका अन्य संगठनों के द्वारा कड़ा विरोध किया गया। परिणामस्वरूप यह अध्याय पाठ्यक्रम से पृथक करना पड़ा। अत: इस प्रकार से पाठ्यक्रम का परिमार्जित एवं पारदर्शी स्वरूप विकसित नहीं हो पाता।
7. क्रियान्वयन एवं निर्णय की समस्या–यदि पाठ्यक्रम का क्रियान्वयन उचित रूप में नहीं होता है तो निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति भी सम्भव नहीं होती है। पाठ्यक्रम में प्रस्तुत सुझावों के क्रियान्वयन की समस्या भी एक प्रमुख समस्या है। पाठ्यक्रम में विषय वस्तु एवं प्रकरणों को स्थान प्रदान करने में एक सीमित को निर्णय लेना पड़ता है। इस निर्णयकी प्रक्रिया में विचार एवं
सोच की विविधता के कारण अनावश्यक विलम्ब होता है। अतः उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2000 के समक्ष अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं, जिन्होंने पाठ्यक्रम को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है।
राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सम्बन्धी समस्याओं का समाधान : राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना का क्रम सन् 1988 से अनवरत रूप से प्रारम्भ है जिसमें राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना सन् 2000 तथा राष्ट्रीय संरचना सन् 2005 प्रस्तुत किये जा चुके हैं । पाठ्यक्रम संरचना सम्बन्धी समस्याओं को निम्नलिखित रूप में समाप्त किया जा सकता है-
1. शिक्षकों में आत्मविश्वास की भावना का विकास करते हुए कर्त्तव्य पालन के दृष्टिकोण को विकसित करना चाहिए।
2. समाज के व्यक्तियों में कार्य के प्रति निष्ठा की भावना जागृत की जानी चाहिये । किसी भी पद एवं गौरव की इच्छा को सामान्य रूप में प्रदर्शित करने की योग्यता विकसित नी चाहिये।
3. भाषा सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के लिए कोई एक सूत्रीय व्यवस्था को निरूपित करना चाहिये जिसमें किसी को भी आपत्ति न हो।
4. भारतीय समाज में विकसित दृष्टिकोण का समावेश करते हुए आधुनिक विचारधाराओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न करना चाहिये ।
5. पाठ्यक्रम निर्माताओं को उपलब्ध संसाधनों में श्रेष्ठतम पाठ्यक्रम का स्वरूप निर्मित करना चाहिये । इसके लिये पाठ्यक्रम निर्माण समिति से अनुभवी व योग्य व्यक्तियों को स्थान करना चाहिये।
6. शिक्षा को राजनैतिक दोषों से दूर करने के लिए राजनीतिज्ञों में जागरूकता उत्पन्न करनी चाहिये जिससे वे शिक्षा के विकास पर ही ध्यान दें।
7. धार्मिक संकीर्णता से ऊपर उठकर मानव कल्याण एवं मानव विकास की भावना का समावेश जनसामान्य में करना चाहिये।
8. सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में अधिक मात्रा में धन उपलब्ध कराना चाहिये क्योंकि शिक्षा द्वारा ही राष्ट्र एवं समाज का उत्थान होता है। उपरोक्त सुझावों के आधार पर राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना को नवीन आधार प्राप्त होगा तथा पाठ्यक्रम निर्माण में किसी प्रकार की समस्या उत्पन्न नहीं होगी। पाठ्यक्रम निर्माण स्वयं में एक बहुत महत्वपूर्ण कार्य होता है। यह कार्य बाधारहित एवं स्वस्थ वातावरण में सम्पन्न करना चाहिये।