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CTET Notes in Hindi | अभिरुचि / रुचि

CTET Notes in Hindi | अभिरुचि / रुचि

अभिरुचि / रुचि

ड्रेवर एवं वालरस्टीन (Drever and Wallerstein) के अनुसार, रुचि पद का प्रयोग सामान्यतः दो अर्थों में होता है—कार्यात्मक अर्थ (Functional Meaning) तथा संरचनात्मक अर्थ (Structural Meaning)। कार्यात्मक अर्थ में अभिरुचि का तात्पर्य
एक ऐसे भाव की अनुभूति से होता है (जिसे एक सार्थक अनुभूति कहा जाता है) जो किसी वस्तु पर दिये जानेवाले ध्यान या कोई किये जानेवाले कार्य से संबंधित होता है।
» रिली (Reilly) के अनुसार, अभिरुचि बालकों में एक प्रेरणात्मक बल के रूप में कार्य करता है, जिसके परिणामस्वरूप वह किसी वस्तु को अन्य वस्तुओं से अलग कर उस पर विशेष ध्यान देता है।
अभिरुचि के प्रकार
Types of Interest
सुपर एवं क्राइटीस (Super and Crities) द्वारा अभिरुचि को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया गया है-
(a) व्यक्त अभिरुचि (Expressed interest): व्यक्त अभिरुचि वैसी अभिरुचि को कहा जाता है जिसमें किसी एक क्रिया (Activity) की तुलना में व्यक्ति किसी दूसरी क्रिया को अधिक पसंद करने की स्पष्ट अभिव्यक्ति करता है। उदाहरण शिक्षक द्वारा पूछने पर छात्र यदि स्पष्ट रूप से यह कहता है कि उसे संस्कृत एवं हिन्दी अन्य विषयों की तुलना में अधिक रुचिकर लगता है, तो यह व्यक्त अभिरुचि (Expressed Interest) का उदाहरण होगा।
(b) प्रकट अभिरुचि (Manifestiterest): प्रकट अभिरुचि से तात्पर्य वैसी अभिरुचि से होता है जिसकी अभिव्यक्ति व्यक्ति द्वारा स्वतः अपनी इच्छा से कोई काम करने से होती है उदाहरण–यदि कोई छात्र प्रायः खाली समय में क्रिकेट खेलता है, तो ऐसा
कहा जाता है कि क्रिकेट में उसकी अभिरुचि है और यह अभिरुचि प्रकट अभिरुचि का उदाहरण होगा।
(c) आविष्कारिकात्मक अभिरुचि (Inventoried interest): आविष्कारिकात्मक अभिरुचि वैसी अभिरुचि को कहा जाता है, जिसका ज्ञान मानक अभिरुचि आविष्कारिका (Standard Interest Inventory) का क्रियान्वयन करने के बाद पता चलता है।
» शिक्षाशास्त्रियों ने परीक्षित अभिरुचि (Tested Interest) का वर्णन बाद में किया।
» परीक्षित अभिरुचि (Tested Interest) : परीक्षित अभिरुचि से तात्पर्य वैसी अभिरुचि से होता है जिसकी झलक व्यक्ति की उपलब्धियों (Achievement) से होती है। उदाहरण के लिए यदि किसी छात्र को गणित विषय में अधिक अंक मिलते हैं, तो
ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि गणित में उसकी अभिरुचि अधिक है।
स्कूलों में बालकों की अभिरुचि को प्रभावित करनेवाले कारक
Factors Influencing Children’s Interest in School
रुचि को प्रभावित करनेवाले कारक निम्नलिखित हैं-
(a) प्रारंभिक विद्यालय की अनुभूतियाँ (Early School Experiences): वैसे बालक जो शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्कूल जाने के लिए तैयार रहते हैं, उन्हें विद्यालय में समायोजन (Adjustment) करने में काफी सफलता मिलती है। ऐसे बालकों में प्रारंभिक विद्यालय की अनुभूतियाँ (Experiences) आनंददायक होती है।
» जब बालक अपने माता-पिता या अभिभावक के मात्र दबाव से विद्यालय भेजे जाते हैं, अर्थात् जब बालक शारीरिक एवं मानसिक रूप से तैयार नहीं रहने के स्कूल में भेज दिये जाते हैं तो उन्हें वहाँ समायोजन करने में काफी दिक्कत होती है
और धीरे-धीरे उनकी शैक्षिक अभिरुचि घटती चली जाती है।
(b) माता-पिता का प्रभाव (Parental Influences): माता-पिता का प्रभाव सामान्य रूप से विद्यालय के प्रति बालकों की मनोवृति पर पड़ता है।
(c) भाई-बहनों की मनोवृति (Sibling Attitudes): यदि बड़े भाई-बहनों की मनोवृति किसी विषय या शिक्षक के प्रति प्रतिकूल होती है, तो इसका प्रभाव बालक पर भी पड़ता है। उनमें भी वैसे ही मनोवृत्ति और उसी के अनुरूप अभिरुचि (Interest) विकसित हो जाती है। ऐसे बालक भी उन विषयों या शिक्षकों के प्रति नापसंदगी दिखाना प्रारंभ कर देते हैं।
(d) साथी-संगी की मनोवृति (Peers Attitude) : बालकों की अभिरुचि उनके साथी-संगी की मनोवृति द्वारा भी प्रभावित होती है। जब बालकों के साथियों की मनोवृति किसी विषय के प्रति प्रतिकूल हो जाती है तो इसका प्रभाव बालक पर भी पड़ता है और उनमें वैसी ही अभिरुचि विकसित हो जाती है।
(e) शैक्षिक सफलता (Academic Success): बालकों की अभिरुचि पर शैक्षिक सफलता का सीधा प्रभाव पड़ता है। यदि किसी बालक को स्कूल में लगातार शैक्षिक सफलता मिलती जाती है, तो इससे उसमें आत्मसंतोष उत्पन्न होता है और उसकी
अभिरुचि शैक्षिक क्रियाकलाप एवं अध्ययन में अधिक बढ़ जाती है।
(f) कार्य के प्रति मनोवृति (Attitude toward work): जिस वातावरण में बालक का पालन-पोषण होता है बालकों के कार्यों की रुचि भी उसी प्रकार के वातावरण में होती है।
(g) शिक्षक-छात्र (Teacher-Pupil Relationship): बालक स्कूल में दी जानेवाली शिक्षा में कितनी अभिरुचि दिखाते हैं यह इस बात पर निर्भर करता है कि उनकी शिक्षकों के साथ व्यक्तिगत अनुभूतियाँ (Personal Experience) कैसी हैं। यदि उनकी
व्यक्तिगत अनुभूतियाँ दुःखद हैं तो बालक की शैक्षिक अभिरुचि (Educational Interest) कम हो जायेगी।
(h) स्कूल का सांवेगिक वातावरण (Emotional Climate of the School): स्कूल का सांवेगिक वातावरण, शिक्षकों की मनोवृति (Attitudes) एवं शिक्षकों द्वारा प्रतिपादित अनुशासन के नियमों से प्रभावित होता है। वैसे शिक्षक जो कक्षा में प्रजातांत्रिक ढंग से (Democratically) बालकों को पढ़ाते हैं तथा आकर्षक एवं मनोरंजक ढंग बालकों के साथ अनुक्रिया करते हैं, छात्रों में स्कूल एवं शिक्षा के प्रति अभिरुचि उत्पन्न करने में सफल होते हैं।
» यदि शिक्षक कक्षा में अधिकारवादी ढंग से (Authoritatively) या अत्याधुनिक ढंग से छात्रों के साथ व्यवहार करते हैं या उनके पढ़ाने का ढंग अधिक ही उबाऊ होता है। ऐसी स्थिति में छात्रों में शिक्षा के प्रति रुचि में कमी आ जाती है या ऐसे
छात्र प्रायः स्कूल से अपने-आपको दूर रखने का कोई-न-कोई बहाना खोजते रहते हैं ।
अभिरुचि का मापन
Measurement of Interest
अभिरुचि के मापन के दो तरीके सर्वाधिक लोकप्रिय हैं-
1.शिक्षक-निर्मित प्रविधियाँ (Teacher-made Techniques): छात्रों की अभिरुचियों को मापने की कुछ ऐसी प्रविधियाँ (Techniques) हैं जिन्हें शिक्षकों द्वारा विशेष उद्देश्य से बनाया जाता है। यह विधि निम्नलिखित है-
(a) चिह्नांकन सूची (Check List): चिह्नांकन सूची में शिक्षक विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रम (Educational Activities) की एक सूची तैयार करते हैं। छात्रों को यह सूची इस निवेदन के साथ दे दिया जाता है कि जिन शैक्षिक क्रियाओं में उनकी अभिरुचि हो
उनमें सही का चिह्न (1) लगा दें।
> इससे शिक्षकों को छात्रों की सभी प्रमुख रुचि का कम समय में ही अच्छा ज्ञान हो जाता है। छात्रों की अभिरुचि मापने की यह सरल विधि है।
(b) श्रेणीकरण (Ranking) : इस विधि में शिक्षक विभिन्न तरह की शैक्षिक क्रियाओं की एक सूची तैयार करते हैं जो छात्रों को इस निवेदन के साथ देते हैं कि वे इन क्रियाओं को अपनी अभिरुचि के क्रम में श्रेणीकरण कर दें। 1 की कोटि (Rank) उस क्रिया को दें जिसमें उनकी रुचि सबसे अधिक हो, उससे कम पसंद की रुचि को 2 की कोटि दें और इस प्रकार अंतिम कोटि उसे दें जिसमें उनकी रूचि सबसे कम हो।
> श्रेणीकरण से पहले छात्रों की विशेष रुचि का पता चलता है। दूसरा, जब प्रत्येक क्रिया का प्रत्येक छात्र द्वारा दी गयी कोटि के द्वारा औसत कोटि (Average Rank) ज्ञात कर ली जाती है, तो इससे पूरी कक्षा के अधिमान (Class Preferences) का
आसानी से मूल्यांकन हो जाता है।
(c) रेटिंग मापनी (Rating Scales): इस विधि में प्रत्येक क्रिया पर छात्र अपनी पसंदगी एवं नापसंदगी की मात्रा को दी गयी मापनी (Scale) के बिन्दुओं में से किसी एक पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करके करते हैं। जैसे-
(A) पत्रिका पढ़ना अत्यधिक पसंद-पसंद-तटस्थ-नापसंद-अत्यधिक नापसंद
(B) संगीत सुनना-अत्यधिक पसंद-पसंद-तटस्थ-नापसंद-अत्यधिक नापसंद दिये गये उत्तर का विश्लेषण करके छात्रों की पसंदगी तथा नापसंदगी का पता किया जाता है। सामान्यतः विश्लेषण करने के लिए अत्यधिक पसंद, पसंद, तटस्थ नापसंद तथा अत्यधिक नापसंद के लिए क्रमशः 5,4,3,2 एवं 1 का अंक दिया जाता है।
(d) स्वतंत्र अनुक्रिया प्रविधि (Free Response Technique): इस विधि में शिक्षक छात्रों से कुछ ऐसे प्रश्न करते हैं जो उनकी आदत, शौक (Hobby) या उन क्रियाओं से संबंधित होते हैं जिनमें उनकी अभिरुचि अधिक होती है। यहाँ छात्र उन प्रश्नों की
अभिव्यक्ति करने में अपनी इच्छानुसार शब्दों का प्रयोग करते हैं।
2. मानक अभिरुचि आविष्कारिका (Standard Interest Inventory): अभिरुचि मापने के लिए विशेषज्ञों द्वारा लगभग 62 मानक अभिरुचि आविष्कारिका उपलब्ध कराये गये हैं। शिक्षा के दृष्टिकोण से तीन मानक अभिरुचि आविष्कारिका महत्वपूर्ण हैं-
(a) स्ट्राँग अभिरुचि आविष्कारिका (Strong Interest Inventory or SII): इस आविष्कारिका का निर्माण ई. के. स्ट्राँग (EKStrong) द्वारा किया गया । इस आविष्कारिका के दो फार्म हैं—एक फार्म का प्रयोग पुरुषों की अभिरुचि मापने में किया जाता है और दूसरे फार्म का प्रयोग महिलाओं की रुचि मापने में किया जाता है। दोनों फार्म द्वारा उच्च विद्यालय, कॉलेज के छात्रों एवं वयस्कों की रुचि का मापन होता है।
> प्रत्येक फार्म में 400-400 एकांश हैं जिनके द्वारा व्यक्तियों की रुचि मूलतः विभिन्न स्कूल के विषयों, पेशा (Occupation), विभिन्न तरह के मनोरंजन (Amusements) इत्यादि के प्रति मापी जाती है।
> SII में व्यक्तियों की अभिरुचि को मानक प्राप्तांक (Standard Score) यानी प्राप्तांक के रूप में व्यक्त किया जाता है।
> कैंपबेल (Campbell) के अनुसार यदि किसी छात्र या व्यक्ति का प्राप्तांक 57 या 58 से अधिक आता है, तो यह समझा जाता है कि उस व्यक्ति या छात्र की अभिरुचि उस विषय या क्षेत्र में एक सामान्य व्यक्ति की अभिरुचि से श्रेष्ठ है।
> SBIV के पुरुष फार्म का दो बार संशोधन हो चुका है—एक बार 1938 में दूसरी बार 1966 में । महिला फार्म का भी दो बार संशोधन हो चुका है—एक बार 1946 में और दूसरी बार 1969 में ।
> 1974 में कैम्पबेल ने SBIV का संशोधित प्रारूप प्रस्तुत किया, जिसे स्ट्राँग कैंपबेल अभिरुचि आविष्कारिका कहा गया। इसमें 325 एकांश थे जिसके द्वारा पेशा (Occupation), स्कूल विषय (School Subjects), क्रियाएँ (Activities), मनोरंजन
(Amusements), व्यक्तियों के प्रकार (School Subjects), दो क्रियाओं के बीच वरीयता इत्यादि के प्रति अभिरुचि का मापन होता है।
(b) कुडर परीक्षण (Kuder Tests) : इस परीक्षण का निर्माण जी. एफ. कुडर द्वारा 1954 में तथा उसके बाद के भिन्न वर्षों में किया गया। विभिन्न वर्षों में कुडर (Kuder) ने अभिरुचि मापने के लिए कुल 4 परीक्षणों का निर्माण किया है। कुडर व्यक्तिगत अधिमान रिकार्ड (Kuder Personal Preference Record), कुडर वोकेशनल इंटरेस्ट सर्वे, फार्म B तथा C (Kuder Vocational Interest Survey), औकुपेशनल इंटरेस्ट सर्वे, फार्म डी तथा जेनरल इंटरेस्ट सर्वे ।
» जेनरल इंटरेस्ट सर्वे द्वारा 10 विभिन्न क्षेत्रों में व्यक्तियों की अभिरुचि का मापन होता है यांत्रिक (Mechanical), वैज्ञानिक (Scientific), लिपिक (Clerical), सामाजिक सेवा (Social Service), संगीत (Musical), साहित्यिक (Literary), कलात्मक (Artistic), परिकल्पनात्मक (Computational), बाहर (Outdoors) तथा प्रत्ययकारी (Persuasive)।
» औकुपेशनल इंटरेस्ट सर्वे, फार्म डी द्वारा 52 विभिन्न पेशाओं में व्यक्तियों की
अभिरुचि मापी जाती है तथ फार्म डी द्वारा महिलाओं के लिए 57 विभिन्न पेशा में
तथा पुरुषों के लिए 79 विभिन्न पेशा में रुचि मापी जाती है।
(c) माइनेसोटा वोकेशनल इंटरेस्ट इन्वेंट्री (Minnesota Vocational Interest Inventory or MVII) : इस परीक्षण का निर्माण 1965 में किया गया था तथा इसके द्वारा 21 पेशाओं में वैसे व्यक्तियों की अभिरुचि की माप की जाती है जिनमें कॉलेज की शिक्षा ठीक से नहीं हो पायी है जिनमें अर्द्ध-कौशल कार्य के प्रति उन्मुखता अधिक होती है।
अभिरुचि में शिक्षा का महत्व
Importance of Interest in Education
कक्षा में छात्रों की रुचि पठन-पाठन में बनाये रखने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
(a) शिक्षकों को कक्षा में प्रजातंत्रात्मक माहौल बनाना चाहिए ताकि छात्र के मन में शिक्षक या स्कूल के प्रति किसी प्रकार का भय तथा संशय न रहे ।
(b) शिक्षक को कक्षा में सरल भाषा या समझने योग्य भाषा का प्रयोग करना चाहिए ताकि शिक्षक की बातों को सुनने तथा समझने में छात्रों की रुचि बना रहे ।
(c) शिक्षकों को कक्षा में छात्रों की रुचि बनाये रखने के लिए पढ़ाते समय चित्र मॉडल तथा श्रव्य-दृश्य उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।
(d) शिक्षकों को कक्षा में पठन-पाठन का स्तर छात्रों के बुद्धि-स्तर के अनुरूप रखना चाहिए।
(e) शिक्षकों को समय-समय पर छात्रों को गैर-शैक्षिक कार्यक्रम जैसे-खेल-कूद, वाद-विवाद, प्रतियोगिता तथा भ्रमण इत्यादि में भाग लेने के लिए प्रेरित करते रहना चाहिए।
(f) प्रत्येक शिक्षक को अभिरुचि के सिद्धांत का ज्ञान होना चाहिए।
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परीक्षोपयोगी तथ्य
» अभिरुचि में व्यक्ति वस्तुओं या क्रियाओं का चयन करके उसे पसंद-नापसंद विमा में कोटिबद्ध करता है।
» अभिरुचि/रुचि (Interest) के कई प्रकार हैं जिनमें व्यक्त अभिरुचि (Expressed Interest), प्रकट अभिरुचि (Manifest Interest) तथा आविष्कारिकात्मक अभिरुचि (Inventoried Interest) प्रधान है।
» अभिरुचि को प्रभावित करनेवाले कारक हैं – प्रारंभिक विद्यालय की अनुभूतियाँ माता-पिता का प्रभाव, भाई-बहनों की मनोवृत्ति, साथी-संगी की मनोवृत्ति, शैक्षिक सफलता, कार्य के प्रति मनोवृत्ति, शिक्षक, छात्र तथा स्कूल का सांवेगिक वातावरण
इत्यादि।
» अभिरुचि के मापन की दो विधि है – शिक्षक-निर्मित प्रविधियाँ (Teacher Made Techniques) तथा मानक अभिरुचि आविष्कारिका मानक अभिरुचि आविष्कारिका (Standard Interest Inventories)
» ध्यान को केंद्रित करने की आंतरिक दशा रूचि है, जिसमें व्यक्ति उन्हीं उद्यीपकों के प्रति अपना ध्यान केंद्रित करता है जिनमें उनकी रूचि होती है, जैसे विद्यार्थियों की पुस्तकों के प्रति, संगीतज्ञ की संगीत के प्रति, खिलाड़ियो की खेल के प्रति।
जिज्ञासा, प्रवृत्ति, आदत तथा अभ्यास के फलस्वरूप भी व्यक्ति की रूचि बन जाती है, तथा वे अपनी जिज्ञासा, आदत, अभ्यास से संबंधित उद्यीपकों के प्रति अधिक आकर्षक हो जाते हैं।

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