CTET Notes in Hindi | स्मृति एवं विस्मरण
CTET Notes in Hindi | स्मृति एवं विस्मरण
स्मृति एवं विस्मरण
स्मृति
(Memory)
> विस्मृति एक मानसिक क्रिया है, जिसमें व्यक्ति कुछ बातों को भूल जाता है, परंतु जब उन्हीं बातों को पुनः उसके सामने दोहराया जाए या पुनरावृत्ति होती रहे, तो वह उसे याद रखता है। पाठ की पुनरावृत्ति द्वारा धारण (Retention) क्षमता को
बढ़ाया जा सकता है।
> सीखी हुई बात को स्मरण रखने या पुनः स्मरण करने की असफलता को विस्मृति कहते हैं। जब हम कोई नई बात सीखते हैं या नया अनुभव ग्रहण करते हैं, तो हमारे मस्तिष्क में उसका चित्र अंकित हो जाता है। हम अपनी स्मृति की सहायता से उस अनुभव को अपनी चेतना में पुनः लाकर उसका स्मरण कर सकते हैं।
> स्मृति प्राणी की वह योग्यता है, जिसके द्वारा वह पूर्व में संपन्न अधिगम प्रक्रियाओं में सूचना एकत्रित करता है तथा विशिष्ट उत्तेजनाओं के प्रत्युत्तर देने में इन सूचनाओं को पुनः प्रस्तुत करता है।
> स्मृति एक मनो शारीरिक योग्यता है जिसमें निम्नलिखित चार प्रक्रियाएँ सन्निहित रहती हैं-अधिगम, धारणा, पुनःस्मरण, पहचान ।
> सीखी गई बात को धारण रखने या पुनः स्मरण करने की असफलता विस्मरण है। अर्थात विस्मरण, किसी समय प्रयास करने पर भी किसी पूर्व अनुभव को याद करने अथवा सीखे गए कार्य को करने में असफलता से है।
> मनोवैज्ञानिक सिग्मंड फ्रॉयड ने कहा कि-‘विस्मरण वह प्रवृत्ति है, जिसके द्वारा दुखद अनुभवों को स्मृति से अलग कर दिया जाता है। विस्मरण को प्रभावित करने वाले कारक इस प्रकार हैं-
1. समय अंतराल
2. अधिगम मात्रा
3. पाठ्य-वस्तु की सार्थकता
4. स्मरण की इच्छा
5. अधिगम वातावरण
6. मानसिक स्थिति
7. अभिप्रेरणा
8. सीखने की विधि
9. मादक द्रव्यों का सेवन
> स्मरण/स्मृति एक मानसिक प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति धारण की गई विषय-वस्तु का पुनः स्मरण करके चेतना में लाकर उसका उपयोग करना है। स्मृति एक क्षमता है जिसके सहारे उद्देश्यपूर्ण कार्य किए जाते हैं, तथा मनुष्य न केवल विवेकशील
चिंतन करता है, अपितु प्रभावकारी ढंग से समायोजन भी करता है।
> वुडवर्थ के अनुसार, “पूर्व में सीखे गए ज्ञान का प्रत्यक्ष उपयोग ही स्मृति हैं।”
> स्मृति एक सामान्य पद है, जिससे तात्पर्य पूर्व अनुभूतियों को मस्तिष्क में इकट्ठा कर रखने की क्षमता से होता है। मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति के दो पक्ष बताए हैं-
* धनात्मक पक्ष (Positive Aspect इसका तात्पर्य पूर्व अनुभूतियों को याद रखने से होता है। अतः यह स्मरण (Remembering) की प्रक्रिया है।
* ऋणात्मक पक्ष (Negative Aspect) इसका तात्पर्य अनुभूतियों को याद रखने की असमर्थता से है। यह पक्ष विस्मरण (Forgetting) की प्रक्रिया है।
» मनोवैज्ञानिक ने स्मृति के तीन तत्व या अवस्थाएँ बताया है-
* संकेतन (Encoding) संकेतन में किसी सूचना या बाह्य उत्तेजना का प्रत्यक्षण कर व्यक्ति उसे एक निश्चित रूप या संकेत के रूप में तांत्रिका तंत्र में ग्रहण करता है।
* संचयन (Storage)-संचयन में सांकेतिक सूचनाओं एवं उत्तेजनाओं को कुछ समय के लिए संचित रखा जाता है।
* पुनःप्राप्ति (Retrieval) इसमें संचित कर रखे गए सांकेतिक सूचनाओं (Encoded Information) का प्रत्याह्वान कर उसका उपयोग किया जाता है।
स्मृति के प्रकार
(Types of Memory)
मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति के कई प्रकार बताए हैं। समय को कसौटी (Criterion) मानकर मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति के निम्नांकित चार प्रकार बताए हैं-
1. संवेदी स्मृति (Sensory Memory) – संवेदी स्मृति वैसी स्मृति संचयन को कहा जाता है, जिसमें सूचनाओं को सामान्यतः एक सेकण्ड या उससे कम अवधि के लिए व्यक्ति रख पाता है। इस स्मृति में प्राप्त सूचनाओं को उनके मौलिक रूप में अर्थात उसमें बिना किसी तरह के फेर-बदल किए ही रखा जाता है।
> संवेदी स्मृति दो तरह की होती है-
* प्रतिमा-संबंधी स्मृति–व्यक्ति देखी गई वस्तु या व्यक्ति के बारे में एक सेकण्ड तक एक दृष्टि चिन्ह रख पाता है।
* प्रतिध्वनिक स्मृति–व्यक्ति किसी सुनी हुई आवाज उद्यीपक का श्रवण चिन्ह अपने मन में एक सेंकड से थोड़े समय अधिक तक रख पाता है।
2. लघु अवधि स्मृति (Short-Term Memory or STM) -इसे विलियम जेम्स ने प्राथमिक स्मृति भी कहा है। STM में किसी विषय या घटना को अधिक से अधिक 20-30 सेंकड तक धारित (Retain) करके रखा जाता है तथा इसमें सीखने की
मात्रा कम होती है।
3.चलन स्मृति (Working Memory) – इसका प्रतिपादन बेडेली द्वारा किया गया । इस स्मृति में सूचनाओं की संचयन क्षमता तथा सूचनाओं को संसाधित करने की क्षमता दोनों ही सम्मिलित होती है।
4. दीर्घ-अवधि स्मृति (Long-Term Memory or LTM) – विलियम जेम्स ने इसे गौण स्मृति (Secondary Memory or SM) भी कहा है। इस तरह की स्मृति में व्यक्ति किसी पाठ, घटना आदि को कम-से-कम 30 सेकण्ड तक याद किए रहता है, और
अधिक से अधिक कितने दिनों तक याद रखता है इसकी कोई सीमा नहीं है।
> बार्टलेट (Bartlett) तथा स्क्वायर (Squire) ने दीर्घकालीन स्मृति को उसके अंर्तविषय (Contents) के आधार पर दो सामान्य वर्गों में बाँटा है—घोषणात्मक स्मृति (Declarative Mamory) तथा अघोषणात्मक स्मृति (Nondeclarative Memory) 1
» घटनाओं तथा अनुभूतियों के स्वरूप के आधार पर टुलविंग (Tulving) ने दीर्घ अवधि स्मृति को निम्नांकित दो भागों में बाँटा है-
★ प्रासंगिक स्मृति (Episodic Memory) और अर्थगत स्मृति (Semantic Memory)।
स्मरण का स्वरूप
(Nature of Remembering)
स्मरण से तात्पर्य पूर्व सीखे गए विषयों या पाठों को चेतना में लाने से होता है। स्मरण की प्रक्रिया एक जटिल प्रक्रिया होती है, जिसमें चार तरह की उपप्रक्रियाएँ सम्मिलित होती है-
1. सीखना (Learning) – सीखना स्मरण की पहली सीढ़ी है। जबतक शिक्षार्थी (Learner) किसी विषय या पाठ को सीखते नहीं है, उन्हें स्मरण रखने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। सीखे हुए विषय को स्मृति चिन्हों के रूप में फिर शिक्षार्थी उसे धारण कर रखते हैं। वह धारण जितना लंबा एवं मजबूत होता है, स्मरण उतना ही तीक्ष्ण होता है। फिर प्रत्याह्वान (Recall) करके शिक्षार्थी धारण (Retention) की जाँच कर लेता है।
> स्मरण की प्रक्रिया स्पष्टतः एक जटिल प्रक्रिया है, क्योंकि इसमें कई उपक्रियाएँ (Sub Process) सम्मिलित होती हैं। इसके विशिष्ट स्वरूप की व्याख्या करने के लिए मनोवैज्ञानिकों में दो तरह की धारणाएँ प्रचलित है-
(a) स्मरण का स्वरूप पुनरूत्पादक होता है (The Nature of Remembering is
Reproductive) इस विचार धारा के समर्थक इबिंगहास (Ebbinghaus) हैं।
इनके अनुसार स्मरण एक पुनरूत्पादक मानसिक प्रक्रिया है। अर्थात शिक्षार्थी
(Learner) जो कुछ भी सीखते हैं, उसके बाद में ठीक उसी रूप में बिना
किसी हेर-फेर किए वह प्रत्याह्वान (Recall) करने में समर्थ होते हैं।
(b) स्मरण का स्वरूप रचनात्मक होता है (The Nature of Remembering is Reconstructive)- यह विचारधारा इबिंगहॉस (Ebbinghaus) की विचार धारा के विपरीत है तथा इसका प्रतिपादन एक अँगरेज मनोवैज्ञानिक जिसका
नाम बार्टलेट (Bartlett) था, ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘रिमेम्बरिंग’ में किया।
★ बार्टलेट ने कहानी संबंधी प्रयोगों तथा चित्र-आरेखन संबंधी प्रयोगों के आधार पर स्पष्ट किया कि स्मरण एक पुनः रचनात्मक मानसिक प्रक्रिया है, अर्थात किसी सीखी हुई सामग्री का प्रत्याह्वान शिक्षार्थी हू-ब-हू ठीक उसी रूप में नहीं करते, बल्कि उसमें कुछ परिवर्तन करते हैं। कुछ नयी सामग्री को प्रत्यावान करते समय अपनी तरफ से जोड़ देते हैं, तथा पुरानी सीखी गई सामग्री में से कुछ सामग्री को हटा देते हैं। इस प्रकार प्रत्याह्वान करते समय सीखी गई सामग्री की एक तरह से पुर्ननिर्माण या पुनः रचना की जाती है।
2. धारण (Retention) – धारण शिक्षार्थी द्वारा सीखे हुए विषयों को स्मृति चिन्ह के रूप में लाने की क्रिया है। धारण की प्रक्रिया बहुत से कारकों (Factors) द्वारा प्रभावित होती है। मनोवैज्ञानिकों ने इन कारकों को निम्नांकित दो भागों में बाटी है-
(a) धारण करने वाले शिक्षार्थी की विशेषता (Characteristics of Learner)- जब शिक्षार्थी किसी पाठ को सीखकर उसे धारण करने की कोशिश करता है, तो कुछ अपनी विशेषताएँ होती है, जो धारण की प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं। यह विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
★ शिक्षार्थी की आयु ★ शिक्षार्थी की बुद्धि ★ शिक्षार्थी की परिपक्वन
★ सांवेगिक स्थिति ★ अभिरूचि एवं अभिक्षमता
(b) सीखे गए पाठ से संबंधित कारक (Factors Relating to the Learnt Tesle) – धारण कुछ वैसे कारकों द्वारा भी प्रभावित होता है, जो सीखे गए पाठ से संबंधित होता है। ऐसे प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं-
★ सीखने की विधि ★ सीखे गए विषय का स्वरूप
★ सीखने की मात्रा ★ विषय की लंबाई
धारण की जाँच की विधियाँ
(Methods of Testing Retention)
(a) प्रत्याह्वान विधि (Recall Method)- इसे पुनरूत्पादन विधि (Reproduction Method) भी कहा जाता है। इस विधि में धारण की जाँच प्रत्याह्वान (Recall) करके की जाती है। पूर्व सीखे गए विषय या पाठ को व्यक्ति अपने सामने से हटा देता है तथा उसकी अनुपस्थिति में ही उसे बोलकर या लिखकर उसका प्रत्याह्वान करता है।
(b) प्रत्यभिज्ञान विधि (Recognition Method)- इस विधि में मूल पाठ या विषय को उससे मिलते-जुलते पाठ या विषय के साथ मिलाकर व्यक्ति के सामने उपस्थित किया जाता है और व्यक्ति को पूर्व सीखे गए विषय की पहचान करनी होती है।
(c) पुनः सीखना विधि (Relearning Method)- इस विधि का प्रतिपादन इंबिंगहॉस ने किया था। इसे बचत विधि भी कहा जाता है। इस विधि में पाठ या एकांशों (Items) को शिक्षार्थी एक निश्चित कसौटी तक सीख लेता है। इसके कुछ दिन या कुछ घंटे बीतने के बाद शिक्षार्थी उसी पाठ या विषय को उसी कसौटी तक ‘पुनः सीखना (Relearn) करता है। धारण की जाँच शिक्षार्थी द्वारा पुनः सीखने में लगे प्रयास या समय या त्रुटि के आधार पर की जाती है।
(d) पुनर्निमाण विधि (Reconstruction Method)- इस विधि में पूर्व सीखे गए पाठ या विषय को कुछ समय अंतराल के बाद व्यक्ति के सामने एक यादृच्छिक क्रम में उलट पुलट कर प्रस्तुत किया जाता है। व्यक्ति को इन एकांशों को फिर उसी क्रम में पुर्ननिर्माण या पुर्नव्यवस्थित करने को कहा जाता है, जिस क्रम में उसने इस एकांश को सीखा था। इस विधि में धारण की जाँच पूर्वक्रम में पुर्नव्यवस्थित किए गए एकांशों की संख्या से की जाती है।
3. प्रत्याहान (Recall)- प्रत्याान एक ऐसी मानसिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा हम अपनी पूर्व अनुभूतियों को उनकी अनुपस्थिति में चेतना में लाते हैं। जैसे यदि हम किसी किताब से एक कविता सीखते हैं, फिर किताब बन्द करके उस कविता को बोलकर या लिखकर पुनरूत्पादन करते हैं, तो यह प्रत्याान का उदाहरण होगा।
4. प्रत्यभिज्ञान (Recognition):- प्रत्यभिज्ञान एक ऐसी मानसिक क्रिया है जिसके द्वारा शिक्षार्थी पूर्व सीखे गए पदों को सदृश तथा नए पदों के साथ मिलाकर उपस्थित करने पर उन्हें अलग करता है। जैसे मान लिया जाय कि एक शिक्षार्थी के 15 शहरों के नाम की एक सूची याद करता है। इसके बाद उसे 20 अन्य शहरों के नाम के साथ मिलाकर उन्हें पहचान करने के लिए दे दिए जाते हैं कि पहले सीखे गए शहरों के नाम पर सही टीक लगा दें। यह प्रक्रिया प्रत्यभिज्ञान (Recognition) का उदाहरण होगा।
विस्मरण
(Forgetting)
> विस्मरण स्मृति का एक नकारात्मक या ऋणात्मक पक्ष है। जब शिक्षार्थी पूर्व सीखे गए अनुभवों को किसी कारण खो देते हैं तो उसे विस्मरण की संज्ञा दी जाती है।
> विस्मरण के स्वरूप के बारे में मनोवैज्ञानिकों के बीच दो तरह की परस्पर-विरोधी विचारधाराएँ हैं-
(a) विस्मरण एक निष्क्रिय मानसिक प्रक्रिया है— इस विचारधारा के समर्थक इबिंगहास (Ebbinghaus) है । इसके अनुसार विस्मरण समय बीतने के साथ-साथ निष्क्रिय ढंग से अपने-आप होता जाता है। उन्होंने विस्मरण का एक प्रयोगात्मक
अध्ययन किया, जिसमें उन्होंने निरर्थक पदों की कई सूचियों को स्वयं सीखा तथा उसके धारण की जाँच भिन्न-भिन्न समय अंतरालों पर किया। उस प्रयोग के परिणाम में उन्होंने पाया कि सीखने के बाद जैसे-जैसे समय बीतता गया, वैसे-वैसे निष्क्रिय रूप से मस्तिष्क में थने स्मृति चिन्ह अपने-आप ही क्षीण एवं कमजोर पड़ते गए और विस्मरण की मात्रा भी बढ़ती गई।
★ समय बीतने के साथ विस्मरण की मात्रा तथा दर में हुए परिवर्तन को इबिंगहास ने एक विशेष वक्र द्वारा दिखाया है, जिसे विस्मरण-वक्र या इबिंगहास-वक्र कहा जाता है।
(b) विस्मरण एक सक्रिय मानसिक प्रक्रिया है (Forgetting is an active mental process) जेनकिन्स तथा डैलेनबैक, मूलर तथा पिजलेकर, फ्रॉयड, मेल्टन एवं इर्विन ने अपने-अपने प्रयोगों में स्पष्ट रूप से पाया कि विस्मरण निष्क्रय
रूप से समय बीतने के साथ अपने आप नहीं होता है, बल्कि उस बीते हुए समय में जब व्यक्ति सक्रिय होकर किसी पाठ को सीखता है, तो इससे विस्मरण होता है।
विस्मरण के कारण
(Causes of Forgetting)
1. शिक्षार्थी से संबंधित कारक — विस्मरण के कुछ ऐसे कारक हैं, जो स्वयं शिक्षार्थी से संबंधित होते हैं और विस्मरण की मात्रा को प्रभावित करते हैं। यह कारक निम्नलिखित है-
★ मानसिक वृत्ति
★ शिक्षार्थी का स्वास्थ्य
★ अभिप्रेरणात्मक कारक
★ सांवेगिक कारक
2. सीखना से संबंधित कारक — किसी भी विषय के विस्मरण का प्रश्न तब उठता है जब पहले कभी उसे सीखा गया हो। अतः किसी विषय को सीखने से संबंधित कारकों द्वारा विस्मरण की मात्रा प्रभावित होती है, ऐसे कारक निम्नलिखित हैं-
★ सीखने की मात्रा
★ सीखे जानेवाले विषय का स्वरूप
★ सीखने की विधि
★ सीखे गए विषय की लंबाई
3. धारण अंतराल से संबंधित कारक — विस्मरण के कुछ ऐसे कारण जो धारण अवधि (Retention Interval) में होने वाले कारकों से संबंधित हैं। किसी विषय को सीखने तथा उसके धारण की जाँच करने तक के अंतराल को धारण अवधि कहा जाता
है। इस धारण अवधि से संबंधित दो प्रमुख कारक हैं-
★ पृष्ठोन्मुख अवरोध या पूर्वलक्षी प्रावरोध * अग्रलक्षी प्रावरोध
विस्मरण के सिद्धांत
(Theories of Forgetting)
विस्मरण की व्याख्या के लिए मनोवैज्ञानिकों ने कई सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। शिक्षा की दृष्टि से निम्नांकित सिद्धांत अधिक महत्वपूर्ण है-
1. ह्रास सिद्धांत (Decay Theory): इसे अनुपयोग सिद्धांत (Disuse Theory) भी कहा जाता है। इस सिद्धांत का प्रतिपादन इबिंगहॉस (Ebbinghaus) ने किया था। इस सिद्धांत का मूल तथ्य यह है कि सीखने के बाद जैसे-जैसे समय बीतता जाता
है, स्मृति चिन्हों का ह्रास अपने आप होता चला जाता है। इस हास का मूल कारण बीते हुए समय अंतराल में सीखे गए पाठ या विषय का अनुपयोग, अर्थात उसका नहीं दोहराया जाना है।
» इसका समर्थन थार्नडाइक ने भी अपने अध्ययनों से किया था।
» इस सिद्धांत का शैक्षिक आशय यह है कि शिक्षकों को किसी पाठयविषय का पुनरीक्षण अक्सर करते रहना चाहिए ताकि वे उन्हें स्वयं ना भूलें। तथा छात्रों को भी उन्हें समय-समय पर सीखे गए विषयों का पूनरीक्षण करने की प्रेरणा देनी चाहिए ताकि
वे भी सीखे गए विषयों या पाठों को भूल न जाएँ।
2. बाधक या हस्तक्षेप सिद्धांत (Interference Theory) — इस सिद्धांत को व्यवहारवादियों का सिद्धांत भी कहा जाता है। बाधक सिद्धांत के अनुसार जब किसी पूर्व सीखी गई अनुक्रियाओं या विषयों का प्रत्याह्वान किया जाता है तो उस समय उन सभी अनुक्रियाओं एवं विषयों, जिसे छात्र मौलिक विषय के पहले एवं बाद में सीख चुका होता है, से उत्पन्न स्मृति चिन्ह आपस में अंतः क्रिया करते हैं। इस अंतः क्रिया के दो परिणाम होते हैं-सरलीकृत प्रभाव तथा बाधक प्रभाव । विस्मरण इन्हीं बाधक
प्रभावों का परिणाम होता है।
» शिक्षा के दृष्टिकोण से यह सिद्धांत महत्वपूर्ण निम्नलिखित दो कारकों से है-
(a) यह सिद्धांत संकेत देता है कि जब शिक्षक छात्रों को नया पाठ पढ़ावे या नया विषय पढ़ाये तो उन्हें इस नए विषय या पाठ को इतना स्पष्ट रूप से छात्रों के सामने रखना चाहिए कि पुराने पाठ या पहले सीखे गए पाठ से उसकी विभिन्नता एवं समानता स्पष्ट हो जाए।
(b) जब छात्र किसी पाठ या विषय को आंशिक रूप से सीखते हैं तो इसका बाधक प्रभाव दूसरे विषय या पाठ के पूर्णतः या अंशतः सीखने में अधिक होता है। अतः ऐसे पाठ या विषय के बाधक प्रभाव यानी विस्मरण को कम करने के लिए शिक्षकों को चाहिए कि वे छात्रों के किसी पाठ या विषय का आधिक्य सीखना कराएँ ताकि उसका विस्मरण कम-से-कम हो।
3. संज्ञानात्मक सिद्धांत (Cognitive Theory): इस सिद्धांत का प्रतिपादन संज्ञानात्मक सिद्धान्तियों जैसे कोहलर, कॉफ्का, लेविन, उसूबेल आदि द्वारा किया गया है।
» रिली (Reilly) के अनुसार, इस सिद्धांत का शैक्षिक आशय यह है कि शिक्षकों को चाहिए कि वे जब भी छात्र को नया पाठ या विषय पढ़ावें, तो वे उसका संबंध पहले पढ़ाए गए पाठ या विषय से ठीक ढंग से पहले बता दें, ताकि छात्र मूल पाठ या विषय का पुर्नसंगठन इस ढंग से करें कि उनमें कम-से-कम विकृति आए, ताकि उनका विस्मरण भी कम-से-कम हो।
4. अभिप्रेरणात्मक सिद्धांत (Motivational Theory): इस सिद्धांत का प्रतिपादन साइमण्ड फ्रायड द्वारा किए गए प्रेक्षणों एवं उनके व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर किया गया है। फ्रायड ने इस सिद्धांत में स्पष्ट किया कि भूलने में हमारी इच्छा
की प्रधानता होती है।
» शिक्षा के दृष्टिकोण से शिक्षकों को चाहिए कि वे छात्रों को पहले वैसे विषय पढ़ाएँ जो अभिप्रेरणात्मक रूप से दिलचस्प एवं मनोरंजक हों। इससे छात्रों में सीखने के साथ ही साथ अभिरूचि एवं रूझान उत्पन्न होगी और वे विषय को जल्द नहीं भूलेंगे।
मेटासंज्ञान
(Metacognition)
» मेटासंज्ञान पद के उद्धव का श्रेय जॉन फ्लेवेल्ल (John Flavell) को जाता है। इन्होंने संज्ञानात्मक विकास के संदर्भ में मेटासंज्ञान का विशेष रूप से अध्ययन किया है।
» मेटासंज्ञान से तात्पर्य ‘संज्ञानात्मक परिघटनाओं के बारे में संज्ञान’ से होता है। शोधकर्ताओं के अनुसार संज्ञान के कई पहलुओं को मेटा पद के साथ जोड़ा जा सकता है जैसे, मेटाभाषा, मेटाबोध, मेटास्मृति इत्यादि ।
» मनोवैज्ञानिकों ने मेटासंज्ञान में मेटास्मृति पर सर्वाधिक बल डाला है। मेटास्मृति से तात्पर्य स्मृति के बारे में ज्ञान से होता है। छात्र यह समझते हैं कि उनकी स्मृति किस तरह से कार्य करती है तथा वे स्मृति के अन्य पहलुओं का भी ज्ञान प्राप्त करते हैं।
PQRST विधि — इस विधि का प्रतिपादन थॉमस तथा रॉबिन्सन के विचार के आधार पर किया गया है। इस विधि का मूल उद्देश्य पाठ्यपुस्तक की सामग्री का छात्रों द्वारा अध्ययन करने तथा स्मरण करने की क्षमता को बढ़ाना है। इस विधि का नामकरण इसकी पाँच अवस्थाओं के प्रथम अक्षरों को मिलाकर किया गया है-
अच्छी स्मृति के लक्षण
(Symptoms of Good Memory)
शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने अच्छी स्मृति की कुछ विशेषताओं का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है-
* तीव्रता (Repidity)
* यथार्थता (Accuracy)
* सीखे गए विषय को लंबे समय तक धारण करना
* सही सामग्री का सही समय पर प्रत्याहान
* किसी विषय या पाठ को सूझ द्वारा एवं समझकर सीखना
* अधिक मात्रा में धारण करना।
परीक्षोपयोगी तथ्य
> स्मृति एक सामान्य पक्ष है, जिससे तात्पर्य पूर्व अनुभूतियों को मस्तिष्क में इकट्ठा कर रखने की क्षमता से होता है।
> स्मृति की तीन अवस्थाएँ या तत्व हैं संकेतन (Encoding), संचयन (Storage) तथा पुनः प्राप्ति (Retrieval)।
> स्मरण के स्वरूप के बारे में कुछ मनोवैज्ञानिकों का मत है कि यह एक पुनरूत्पादक मानसिक प्रक्रिया है तथा कुछ लोगों का मत यह है कि यह एक रचनात्मक प्रक्रिया है।
> धारण को प्रभावित करने वाले कई कारक है जिनमें कुछ कारक शिक्षार्थी से संबंधित है तथा कुछ कारक सीखे गए पाठ से संबंधित हैं।
> मनोवैज्ञानिकों ने धारण की जाँच की चार विधियों का वर्णन किया है—प्रत्याह्वान विधि, प्रत्यभिज्ञान विधि, पुनः सीखना विधि एवं पुर्ननिर्माण विधि । इन विधियों में प्रत्याह्वान विधि सबसे लोकप्रिय है।
> मेटासंज्ञान को उन्नत बनाना शिक्षकों के लिए एक उत्तम शिक्षण रणनीति है। इसमें उत्तम सूचना संसाधन मॉडल की भूमिका सबसे ज्यादा सार्थक है।
> स्मृति पर संस्कृति एवं लिंग का सार्थक प्रभाव पड़ता है।