CTET Notes in HIndi | भाषा के कार्य एवं इसके विकास में बोलने एवं सुनने की भूमिका
CTET Notes in HIndi | भाषा के कार्य एवं इसके विकास में बोलने एवं सुनने की भूमिका
भाषा के कार्य एवं इसके विकास में बोलने एवं सुनने की भूमिका
Functions of Language and Role of Speaking and Listening
in its Development
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने से
यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 1 प्रश्न, वर्ष
2012 में 2 प्रश्न तथा वर्ष 2013 में 1 प्रश्न, वर्ष 2014 में 2 प्रश्न,
वर्ष 2015 में 4 प्रश्न तथा वर्ष 2016 में 3 प्रश्न पूछे गए हैं। CTET
परीक्षा में पूछे गए प्रश्न मुख्यतया भाषायी विकास में बोलने व सुनने
की भूमिका, भाषा के विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियों इत्यादि
के विषय में पूछे जाते हैं।
3.1 भाषा
भाषा (Language) भावों को अभिव्यक्त करने का एक माध्यम है। मनुष्य
पशुओं से इसलिए श्रेष्ठ है, क्योंकि उसके पास अभिव्यक्ति के लिए एक
ऐसी भाषा होती है, जिसे लोग समझ सकते हैं। भाषा बौद्धिक क्षमता को भी
अभिव्यक्त करती है।
• बहुत-से लोग वाणी और भाषा दोनों का प्रयोग एक-दूसरे के पर्यायवाची के
रूप में करते हैं, परन्तु दोनों में बहुत अन्तर है। हरलॉक ने दोनों शब्दों को
निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया है
– भाषा में सम्प्रेषण के वे सभी साधन आते हैं, जिसमें विचारों और भावों
को प्रतीकात्मक बना दिया जाता है, जिससे व्यक्ति अपने विचारों और
भावों को दूसरे के समक्ष अर्थपूर्ण ढंग से अभिव्यक्त कर सके।
– वाणी भाषा का एक स्वरूप है, जिसमें अर्थ को दूसरों के समक्ष
अभिव्यक्त करने के लिए कुछ ध्वनियाँ या शब्द उच्चारित किए जाते हैं।
• वाणी भाषा का एक विशिष्ट ढंग है। भाषा व्यापक सम्प्रत्यय है। वाणी,
भाषा का एक माध्यम है।
• मनुष्य में भाषा सीखने की प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती है।
उसकी इस प्रवृत्ति का प्रमाण शैशवावस्था में मिल जाता है। जब वह
अनुकरण के माध्यम से अपने माता-पिता तथा घर के अन्य सदस्यों से
ध्वनियाँ ग्रहण करता है, ध्वनि समूहों को समझने लगता है और उन्हें
बोलने लगता है। यह स्वाभाविक प्रवृत्ति ही उसे भाषा सीखने की ओर
प्रशस्त करती है।
• भाषा एक कला है, दूसरी कलाओं की भांति इसे भी सीखा जाता है और
सतत अभ्यास से इसमें प्रवीणता आती है। जिस प्रकार दूसरी कलाओं में
साधनों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार भाषा सीखने के लिए भी
साधन की आवश्यकता होती है। साधन का दूसरा नाम अभ्यास है, कला
की साधना अन्ततः आदत बन जाती है। शुद्ध एवं शिष्ट बोलने वाले
व्यक्ति को स्कूल में पढ़े व्याकरण के नियम याद न हों, लेकिन बोलते
वक्त स्वत: उसके मुख से व्याकरण सम्मत शुद्ध भाषा ही निकलेगी।
3.1.1 भाषा के कार्य एवं महत्त्व
1. इच्छाओं और आवश्यकताओं की सन्तुष्टि (Satisfaction of
Needs and Desire) भाषा व्यक्ति को अपनी आवश्यकता, इच्छा, पीड़ा
अथवा मनोभाव दूसरे के समक्ष व्यक्त करने की क्षमता प्रदान करती है,
जिससे दूसरा व्यक्ति सरलता से उसकी आवश्यकताओं को समझकर
तत्सम्बन्धी समाधान प्रदान करता है।
2. विचार-विनिमय के सरलतम एवं सर्वोत्कृष्ट साधन के रूप में
(Convenient Source of Exchange of Thought) बालक जन्म के
कुछ ही दिनों पश्चात् परिवार में रहकर भाषा सीखने लगता है। यह
भाषा वह स्वाभाविक रूप से एवं अनुकरण के द्वारा सीखता है। इसे
सीखने के लिए किसी अध्यापक की आवश्यकता नहीं होती है। यह
बालक के विचार-विनिमय में सहायक सिद्ध होती है।
3. सामाजिक सम्बन्ध के लिए (For Social Relationship) भाषा के
माध्यम से ही कोई व्यक्ति समाज के साथ आपसी ताल-मेल विकसित कर
पाता है। भाषा के जरिए अपने विचारों को अभिव्यक्त कर समाज में अपनी
भूमिका निर्धारित करता है। अन्तर्मुखी बालक समाज से कम अन्त:क्रिया
करते हैं इसलिए उनका पर्याप्त सामाजिक विकास नहीं होता।
4. ज्ञान प्राप्ति के प्रमुख साधन के रूप में (Important Source of
Knowledge) भाषा के माध्यम से ही एक पीढ़ी समस्त संचित ज्ञान
सामाजिक विरासत के रूप में दूसरी पीढ़ी को सौपती है। भाषा के
माध्यम से ही हम प्राचीन और नवीन, आत्मा और विश्व को पहचानने
सम्बन्धी ज्ञान की क्षमता प्राप्त करते हैं।
5. सामाजिक मूल्यांकन के लिए महत्त्व (Important in Social
Evaluation) बालक समाज के लोगों के साथ किस तरह बात करता
है एवं कैसे बोलता है इन सभी प्रश्नों के उत्तर के माध्यम से उसका
सामाजिक मूल्यांकन होता है।
6. व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक (Helpful in Personality
Development) भाषा व्यक्तित्व के विकास में सहायक है। व्यक्ति अपने
आन्तरिक भावों को भाषा के माध्यम से प्रकट करता है तथा इसी
अभिव्यक्ति के साथ उसके अन्दर छिपी अनन्त शक्ति अभिव्यक्त होती है।
अपने विचारों एवं भावों को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त करने तथा अनेक
भाषाएँ बोलने में समर्थता विकसित व्यक्ति के ही लक्षण हैं। अतएव किसी
व्यक्ति की अभिव्यक्ति जितनी स्पष्ट होगी उसके व्यक्तित्व का विकास
भी उतने ही प्रभावशाली ढंग से होगा।
7. शैक्षिक उपलब्धि के लिए आवश्यक (Important in Educational
Achievements) भाषा का सम्बन्ध बौद्धिक क्षमता से है। यदि बालक
अपने विचारों को भाषा के जरिए अभिव्यक्त करने में सक्षम नहीं होता,
तो इसका अर्थ है कि उसकी शैक्षिक उपलब्धि पर्याप्त नहीं है।
8. दूसरों के विचारों को प्रभावित करने के लिए (In Influencing
Others Thoughts) जिन बच्चों की भाषा प्रिय, मधुर एवं ओजस्वी होती
है। वे अपने समूह, परिवार अथवा समाज के व्यक्तियों को प्रभावित करते
हैं। लोग उन्हीं को अधिक महत्त्व देते हैं, जिनका भाषा-व्यवहार प्रभावपूर्ण
होता है।
9. साहित्य एवं कला, संस्कृति एवं सभ्यता का विकास करने में (Helpful
in Development of Literature and Arts, Culture and
Tradition) किसी भी प्रांत देश की संस्कृति, साहित्य एवं कला को
वहाँ की भाषा जीवित बनाए रखती है। भाषा के द्वारा हम अपने समाज के
आचार-व्यवहार तथा अपनी विशिष्ट जीवन-शैली से अवगत होते हैं और
भाषा के द्वारा ही हम नवीन अविष्कारों के आधार पर एक नवीन सृष्टि
का सृजन करते हैं तथा अपनी भाषा को उन्नत बनाते हैं।
3.1.2 भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक
1. स्वास्थ्य (Health) जिन बच्चों का स्वास्थ्य जितना अच्छा होता है
उनमें भाषा के विकास की गति उतनी ही तीव्र होती है।
2. बुद्धि (Intelligence) हरलॉक के अनुसार जिन बच्चों का बौद्धिक
स्तर उच्च होता है उनका भाषायी विकास अपेक्षाकृत निम्न बौद्धिक
क्षमता वालों से अच्छा होता है। टरमैन, फिशर एवं यम्बा का मानना है
कि तीव्र बुद्धि वाले बालकों का उच्चारण और शब्द भण्डार अधिक
होता है।
3. सामाजिक-आर्थिक स्थिति (Socio-Economic Condition) बालकों
का सामाजिक-आर्थिक स्तर भी भाषा विकास को प्रभावित करता है।
यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्र में पढ़ने वाले बालकों की शाब्दिक
क्षमता शहरी या अन्य पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले बालकों से
सामान्यत: कम होती है।
4. लिंगीय भिन्नता (Gender Difference) सामान्यत: बालिकाएँ,
बालकों की अपेक्षा अधिक शुद्ध उच्चारण करती हैं, किन्तु ऐसा प्रत्येक
मामले में नहीं होता है।
5. परिवार का आकार (Size of a Family) छोटे परिवार में बालक की
भाषा का विकास बड़े परिवारों की तुलना में अच्छा होता है, क्योंकि छोटे
परिवारों में माता-पिता अपने बच्चे के प्रशिक्षण के दौरान उनसे वार्तालाप
करने के कारण उन पर अधिक ध्यान देते हैं।
6. बहुजन्म (Multi Birth) कुछ ऐसे अध्ययन हुए हैं जिनसे प्रमाणित
होता है कि यदि एकसाथ अधिक सन्तानें पैदा होती है तो उनमें भाषा
विकास विलम्ब से होता है। इसका कारण है कि बच्चे एक-दूसरे का
अनुकरण करते हैं और दोनों ही अपरिपक्व.भाषा का प्रयोग करते हैं।
उदाहरण के लिए यदि एक बच्चा गलत उच्चारण करता है तो उसी की
नकल करके दूसरा भी वैसा ही उच्चारण करेगा।
7. द्वि-भाषावाद (Bilinguism) द्वि-भाषी परिवार भी बालक के भापायी
विकास को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए यदि पिता हिन्दी बोलने
वाला और माँ शुद्ध अंग्रेजी बोलने वाली हो तो ऐसे में बच्चों का भाषा
विकास प्रभावित होता है वे भ्रमित हो जाते हैं कि कौन-सी भाषा सीखें?
8. परिपक्वता (Maturity) परिपक्वता का तात्पर्य है कि भाषा अवयवों
एवं स्वरों पर नियन्त्रण होना। बोलने में जिह्वा, गला, तालु, होंठ, दाँत तथा
स्वर यन्त्र आदि सहायक होते हैं इनमें किसी भी प्रकार की कमजोरी या
कमी वाणी को प्रभावित करती है। इन सभी अंगों में जब परिपक्वता होती
है तो भाषा पर नियन्त्रण होता है और अभिव्यक्ति स्पष्ट एवं प्रभावी
होती है।
9. संवेगात्मक तनाव (Emotional Stress) जिन बच्चों के संकेगों का
कठोरता से दमन कर दिया जाता है उन बच्चों का भाषायी विकास देरी से होता है।
10. व्यक्तित्व (Personality) फुर्तीले, चुस्त और बहिर्मुखी स्वभाव वाले
बच्चों का भाषा विकास अन्तर्मुखी स्वभाव के बच्चों की अपेक्षा अधिक
जल्दी और बेहतर होता है।
11. प्रशिक्षण विधि (Method of Evaluation) प्रशिक्षण विधि भी भाषा
विकास को प्रभावित करती है। भाषा के बारे में यदि सैद्धान्तिक रूप से
शिक्षा दी जाए एवं उनका प्रयोग व्यावहारिक रूप से न किया जाए तो उस
भाषा में अभिव्यक्ति कौशल का पर्याप्त विकास नहीं हो पाता।
3.1.3 भाषा विकास में सुनने की भूमिका
1. श्रवण कौशल (Listening Skill) बच्चों में भाषायी कौशलों के
विकास क्रम में सर्वप्रथम श्रवण कौशल का विकास होता है। श्रवण का
अर्थ है-सुनना एवं कौशल का अर्थ है-निपुणता प्राप्त करना। इस
प्रकार श्रवण कौशल से अभिप्राय है विद्यार्थियों में दूसरों के विचारों को
भली-भाँति सुनकर उनका अर्थ ग्रहण करने की क्षमता को विकसित
करना। श्रवण कौशल अन्य भाषायी कौशलों के विकास का आधार है,
क्योकि सुनना भाषा के विकास का पहला चरण होता है और इसके
अभाव में अन्य कौशलों का समुचित विकास होना कठिन है।
2. शुद्ध उच्चारण करने में (For Pronunciation) सुनना एक स्वाभाविक
प्रक्रिया है इसके माध्यम से बच्चों में शुद्ध उच्चारण करने के कौशल का
विकास होता है। सुनने के माध्यम से ही बच्चा बोलने में आने वाली
उच्चारण सम्बन्धी अशुद्धियों को दूर करने में सफल हो पाता है, जिसके
परिणामस्वरूप उसके भाषा सम्बन्धी कौशल में सुधार होता है।
3. शब्द भण्डार में वृद्धि (Development of Vocabulary) सुनने की
प्रक्रिया से बच्चों के शब्दकोश में वृद्धि होती है, जिसके माध्यम से उसके
भाषा विकास में वृद्धि होती है।
4. महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने में (To Extract Information)
बालक लोगों द्वारा कही गई बातों एवं रेडियो, ऑडियो जैसे उपकरणों को
सुनकर समाज, सामाजिक व्यवहार, जीवन आदि से सम्बन्धित उपयोगी
जानकारियाँ प्राप्त करता है।
5. दूसरों की अभिवृत्तियों को ग्रहण करने में (To Grasp Others
Knowledge) सुनना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से एक बालक
दूसरों के भावों, विचारों एवं अनुभवों जैसी अभिवृत्तियों को ग्रहण करता
है। यही अभिवृत्तियाँ उसमें कौशलों का विकास करती हैं।
6. ध्वनियों का विभेदीकरण करने में (Differentiation of
Sounds) सुनना, ध्वनियों के विभेदीकरण करने का सबसे अच्छा
माध्यम है। इसके द्वारा बालक विभिन्न प्रकार की ध्वनियों के मध्य
अन्तर करना सीखता है, जिससे उसके श्रवण कौशल के साथ ही
वाचन, लेखन एवं पठन कौशलों का विकास होता है।
3.1.4 भाषा विकास में बोलने की भूमिका
वाचिक कौशल (Speaking Skills) भाषिक कौशलों में वाचिक
कौशल से अभिप्राय विद्यार्थियों द्वारा मौखिक रूप से अर्थात् बोलकर
अपने भावों को अभिव्यक्त करने से है। वाचिक या मौखिक कौशल
द्वारा व्यक्ति अपने विचारों एवं भावों को अभिव्यक्त करने के साथ
ही लोगों से संवाद स्थापित करता है। मौखिक कौशल में दक्षता
विद्यार्थी में आत्मविश्वास का संचार करती है।
बच्चों में सुनकर प्राप्त किए गए ज्ञान का मूल्यांकन करने में
सहायक (Evaluation of Knowledge Enhanced by
Listening) सहायक बोलना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से
छात्रों में सुनकर प्राप्त किए गए ज्ञान का मूल्यांकन करने में सहायता
मिलती है। इसके माध्यम से एक शिक्षक बच्चों में भाषा सम्बन्धी त्रुटियों
की जाँच करता है तथा इसके द्वारा वह कक्षा-कक्ष में हुई शिक्षण
प्रक्रिया का मूल्यांकन कर सकता है।
बच्चों के संकोच को समाप्त करने में सहायक (Helps in Avoiding
Hesitation) सहायक बोलना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से भाषा शिक्षण
के अन्तर्गत बच्चों में पैदा होने वाली झिझक को दूर किया जा सकता है। कक्षा-कक्ष
में शिक्षण प्रक्रिया के दौरान कुछ बच्चे बड़ी ही सहज मुद्रा में अधिगम प्राप्त करते
है, परन्तु जब शिक्षक उनसे कुछ पूछता है तो वे मौन धारण कर लेते हैं। ‘बोलना’
बच्चों में इस प्रकार के संकोच को समाप्त कर भाषा-विकास में सहायता करता है।
भाव, विचार तथा ज्ञान को अभिव्यक्त करने में सहायक (Helps in Expressing
Emotion, Thought and Knowledge) बोलने के माध्यम से एक बालक अपने भाव,
विचार तथा ज्ञान को अभिव्यक्त करता है, जिससे कि उसमें भाषा का विकास होता है।
यदि उसमें बोलने का कौशल विकसित नहीं होगा तो इस स्थिति में उसके सीखने की
प्रक्रिया बहुत धीमी हो जाती है।
भाषा-प्रवाह को कुशल बनाने में सहायक (Making Fluent in Speaking
Skill) बोलना भाषा विकास की प्रक्रिया का वह साधन है, जिसके माध्यम से बालक
अपने भाषा प्रवाह में प्रवीणता तथा कुशलता का विकास कर सकता है। इसके माध्यम
से उसके भाषा के विकास में कुशलता आती है तथा साथ ही भाषा पर उसकी दक्षता
और मजबूत होती जाती है।
विद्यालय आधारित कार्यक्रमों में सक्रिय भूमिका निभाने में सहायक (Helps
in Active Participation in School Based Programmes) भाषा विकास में
बोलने का विशेष महत्त्व है। बालक की बोलने की क्षमता ही उसे विद्यालय आधारित
विभिन्न कार्यक्रमों; जैसे―भाषण, वाद-विवाद, प्रश्नोत्तरी, अन्त्याक्षरी आदि में सक्रिय
भूमिका निभाने को प्रेरित करती है, जो उसके भाषा विकास में सहायक सिद्ध होती है।
अभ्यास प्रश्न
1. भाषा प्रयोग की कुशलता सम्भव है
(1) केवल साहित्य पढ़ने से
(2) भाषा की पाठ्य-पुस्तक पढ़ने से
(3) अधिक-से-अधिक भाषा प्रयोग से
(4) केवल भाषा सुनने से
2. भाषा एक……..विषय है।
(1) सैद्धान्तिक
(2) व्यावहारिक
(3) नीरस
(4) चुनौतीपूर्ण
3. भाषा की प्रकृति के सम्बन्ध में कौन-सा
कथन उचित नहीं है?
(1) भाषा कठोरता से व्याकरणिक नियमों का
अनुसरण करती है।
(2) भाषाएँ एक-दूसरे के सान्निध्य में
फलती-फूलती हैं।
(3) भाषा एक नियमबद्ध व्यवस्था है।
(4) भाषा का जितना अधिक प्रयोग किया जाएगा,
उतनी ही भाषा पर पकड़ मजबूत होती जाएगी।
4. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य
नहीं है?
(1) वाणी अस्थायी होती है और लिखित भाषा की
तुलना में काफी तेजी से बदलती रहती है।
(2) भाषा और लिपि के बीच सम्बन्ध नहीं होता है।
(3) विश्व की सभी भाषाएँ थोड़े से फेरबदल से
एक ही लिपि में नहीं लिखी जा सकती हैं।
(4) उपरोक्त सभी
5. सृजनात्मकता का विकास करने में कौन-सा
सहायक नहीं है?
(1) कविता पूरी करना
(2) चित्र पर आधारित मौखिक अथवा लिखित वर्णन
(3) प्रश्नों के उत्तर देना
(4) अधूरी कहानी को पूरा करना
6. जो बच्चे सुन नहीं सकते
(1) वह शीघ्र भाषा सीख जाते हैं।
(2) उन्हें भाषा सीखने में समय लगता है।
(3) वह भाषा सीख नहीं सकते।
(4) वह भाषा का प्रयोग लिखित रूप में कर
सकते हैं।
7. दैनिक कार्यों में मनुष्य किन दो कौशलों का
सर्वाधिक प्रयोग करता है?
(1) लेखन एवं भाषा कौशल
(2) श्रवण एवं पठन कौशल
(3) श्रवण एवं वाचन कौशल
(4) वाचन एवं लेखन कौशल
8. सस्वर वाचन का मुख्य उद्देश्य है
(1) पढ़ने में आनन्द की अनुभूति करना
(2) बच्चों में पढ़ने सम्बन्धी झिझक को समाप्त
करना
(3) बोल-बोलकर पढ़ना
(4) द्रुत गति से वाचन करना
9. इनमें से किस प्रतियोगिता के लिए मौखिक
अभिव्यक्ति की आवश्यकता नहीं होती है?
(1) वाद-विवाद प्रतियोगिता
(2) भाषण
(3) अन्त्याक्षरी
(4) कविता लेखन
10. सुनना कौशल में शामिल है
(1) दूसरों की बात सुनने में रुचि, धैर्य और प्रतिक्रिया।
(2) प्रश्नों को ध्यानपूर्वक सुनने की क्षमता का विकास।
(3) शान्तिपूर्वक सुनना।
(4) सुने हुए शब्दों की केवल पुनरावृत्ति।
11. ‘सुनना-बोलना’ कौशलों के विकास के लिए
सर्वोत्तम विधि कौन-सी हो सकती है?
(1) कहानी कहना और उस पर बच्चों की प्रतिक्रिया
जानना।
(2) कविता याद करवाकर बुलवाना।
(3) कक्षा के कुछ बच्चों द्वारा पाठ के अनुच्छेद
पढ़कर सुनाना।
(4) अन्त्याक्षरी गतिविधि का आयोजन करना।
12. विकास ने अपने क्षेत्र में आयोजित रंगारंग
कार्यक्रम के विषय में अपने मित्रों को
सुनाया। इस स्थिति में वह किस कौशल का
प्रयोग कर रहा है?
(1) भाषण कौशल
(2) लेखन कौशल
(3) वाचन कौशल
(4) श्रवण कौशल
13. ध्वनियों के विभेदीकरण में सहायक है
(1) श्रवण कौशल
(2) भाषण
(3) वाद-विवाद करना
(4) वाचन कौशल
14. भाषा के प्राथमिक कौशल हैं
(1) वाचन और लेखन
(2) श्रवण और लेखन
(3) श्रवण और वाचन
(4) श्रवण और पठन
15. भाषायी विकास को प्रभावित नहीं करता है
(1) संकोच
(2) व्यक्तित्व
(3) बुद्धि
(4) मधुर वाणी
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
16. ‘बोलना’ कौशल में महत्त्वपूर्ण है [CTET June 2011]
(1) मधुर वाणी
(2) सन्दर्भ एवं स्थिति के अनुसार अपनी बात कह
सकना
(3) स्पष्ट एवं शुद्ध उच्चारण
(4) आलंकारिक भाषा का प्रयोग
17. भाषा का प्रयोग [CTET Nov 2012]
(1) जीवन के विभिन्न सन्दर्भो में होता है
(2) केवल परीक्षा में होता है
(3) केवल पाठ्य-पुस्तक में होता है
(4) केवल मुद्रित सामग्री में होता है
18. भाषा स्वयं में [CTET Nov 2012]
(1) एक जटिल चुनौती है
(2) एक विषय मात्र है
(3) सम्प्रेषण का एकमात्र साधन है
(4) एक नियमबद्ध व्यवस्था है
19. भाषा के बारे में कौन-सा कथन उचित
है? [CTET July 2013]
(1) भाषा अनिवार्यतः लिखित होती है
(2) भाषा एक नियमबद्ध व्यवस्था है
(3) भाषा व्याकरण का अनुसरण करती है
(4) भाषा और बोली में कभी भी कोई भी
संबंध नहीं होता है
20. भाषा …….और………..का
एक उत्तम साधन है। [CTET Feb 2014]
(1) सुनने, बोलने, सोचने
(2) पढ़ने, लिखने, सम्प्रेषण
(3) सोचने, महसूस करने, चीजों से सुनने
(4) पढ़ने, लिखने, समझने
21. प्राथमिक स्तर पर एक भाषा शिक्षक से
सर्वाधिक अपेक्षित है [CTET Sep. 2014]
(1) पाठ्य-पुस्तक में दी गई सभी
कहानी-कविताओं को कंठस्थ करना
(2) बच्चों को मानक भाषा का प्रयोग करना
सिखाना
(3) कक्षा और कक्षा के बाहर बच्चों को
भाषा-प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करना
(4) बच्चों की निरंतर परीक्षाएँ लेना
22. भाषा विकास के सम्बन्ध में कौन-सा
कथन सही है? [CTET Feb 2015]
(1) भाषा विकास व्यक्ति निरपेक्ष है
(2) बड़ों का सम्पर्क भाषा विकास की गति को
तीव्र कर देता है
(3) भाषा विकास व्यक्ति सापेक्ष है
(4) प्रारम्भिक भाषायी परिवेश की समृद्धता
भाषायी विकास में सहायक होती है
23. किसी भी भाषा पर अधिकार प्राप्त करने
के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है [CTET Sept 2015]
(1) शब्दों के अर्थ जानना
(2) उस भाषा की वाक्य-संरचना जानना
(3) उस भाषा का अधिकाधिक प्रयोग करना
(4) उस भाषा का व्याकरण जानना
24. प्राथमिक कक्षाओं में बच्चे बहुत कुछ
लेकर विद्यालय आते हैं, जैसे-अपनी
…………….अपने अनुभव, दुनिया के
देखने का अपना दृष्टिकोण आदि।
[CTET Sept 2015]
(1) समस्याएँ
(2) भाषा
(3) पाठ्य-पुस्तकें
(4) कमियाँ
25. प्राथमिक स्तर पर बच्चों की भाषायी क्षमताओं
का विकास करने का अर्थ है [CTET Sept 2015]
(1) भाषिक संरचनाओं पर अधिकार
(2) भाषा-प्रयोग की कुशलता पर अधिकार
(3) भाषा-अनुकरण की कुशलता पर अधिकार
(4) भाषिक नियमों पर अधिकार
26. पहली कक्षा की भाषा अध्यापिका अपने एक
विद्यार्थी के भाषायी विकास के सम्बन्ध में
चिन्तित है, क्योंकि [CTET Feb 2016]
(1) विद्यार्थी पठन-पाठन में रुचि प्रदर्शित नहीं
करता है
(2) विद्यार्थी को घर पर बात करने के बहुत कम
अवसर मिलते हैं
(3) विद्यार्थी के माता और पिता की मातृभाषा
अलग-अलग है
(4) विद्यार्थी अपने साथियों से बहुत झगड़ता है
27. बच्चों के बोलना सीखने के सन्दर्भ में
कौन-सा कथन सही है? [CTET Feb 2016]
(1) सभी बच्चों की ‘बोलना’ सीखने की गति एक
समान होती है
(2) बड़े परिवार में बच्चों की ‘बोलना सीखने की गति
तेज होती है
(3) निर्धन परिवारों से आए बच्चों की ‘बोलना’ सीखने
की गति धीमी होती है
(4) कहने-सुनने के अधिक से अधिक अवसर मिलने पर
बच्चे बोलना सरलता से सीखते हैं
28. प्राथमिक कक्षाओं के भाषा-शिक्षक होने के
नाते आपकी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका है
[CTET Sept 2016]
(1) बच्चों की भाषायी क्षमता के विकास के लिए
तरह-तरह के अवसर जुटाना
(2) बच्चों को वाद-विवाद के लिए तैयार करना
(3) विद्यार्थियों को सर्वाधिक अंक प्राप्त करने के लिए
तैयार करना
(4) कक्षा में पाठ्य-पुस्तक का अच्छी तरह से निर्वाह
करना
उत्तरमाला
1. (3) 2. (2) 3. (1) 4. (3) 5. (3) 6. (4) 7. (3) 8. (2) 9. (4) 10. (2)
11. (1) 12. (3) 13. (1) 14. (3) 15. (4) 16. (2) 17. (1) 18. (4)
19. (2) 20. (2) 21. (2) 22. (2) 23. (3) 24. (2) 25. (2) 26. (2)
27. (4) 28. (1)
★★★