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CTET Notes in HIndi | भाषा अधिगम में व्याकरण की भूमिका | Role of Grammar in Language Learning

CTET Notes in HIndi | भाषा अधिगम में व्याकरण की भूमिका | Role of Grammar in Language Learning

भाषा अधिगम में व्याकरण की भूमिका
           Role of Grammar in Language Learning
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने से
यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2012 में 2 प्रश्न, वर्ष
2015 में 2 प्रश्न तथा वर्ष 2016 में 2 प्रश्न पूछे गए हैं। CTET
परीक्षा में मुख्यतया व्याकरण शिक्षण की विधियों, आवश्यकता एवं
उद्देश्य से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं।
4.1 भाषा एवं व्याकरण
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जिसने विचारों के आदान-प्रदान के लिए कुछ
सार्थक ध्वनि-प्रतीकों को अपनाया, ये ध्वनि प्रतीक ही भाषा कहलाए। भाषा
व्यक्ति के जीवन की अमूल्य निधि है। इसका प्रयोग वह अपनी सुविधा के
अनुसार करता है। लगातार प्रयोग होते रहने के कारण वह स्थिर नहीं रहती,
बल्कि परिवर्तनशील बनी रहती है। व्यक्ति विशेष का प्रभाव भी उस पर
पड़ता दिखाई देता है। भाषा सदा ही विकासोन्मुख और अर्जनशील रही है।
विकास का नाम ही परिवर्तन है और यह कभी वृद्धि के रूप में तो कभी ह्रास
के रूप में दिखाई देता है।
भाषा के इस बनते-बिगड़ते स्वरूप को शुद्ध बनाए रखने के लिए या
इसकी एकरूपता निर्धारित करने के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं, इन्हीं
नियमों को व्याकरण की संज्ञा दी जाती है अर्थात् व्याकरण वह शास्त्र है,
जो हमें किसी भाषा के शुद्ध रूप को लिखने तथा बोलने के नियमों का
ज्ञान करवाता है।
महर्षि पतंजलि ने अपने महाभाष्य में इसे शब्दानुशासन कह कर परिभाषित
किया है।
डॉ. स्वीट के अनुसार, “व्याकरण भाषा का व्यावहारिक विश्लेषण अथवा
उसका शरीर विज्ञान है।”
डॉ. जैगर के अनुसार, “प्रचलित भाषा सम्बन्धी नियमों की व्याख्या ही
व्याकरण है।”
कामता प्रसाद गुरु ने भी व्याकरण के विषय में लिखा है, जिस शास्त्र में
शब्दों के शुद्ध रूप और प्रयोग में नियमों का निरूपण होता है, उसे व्याकरण
कहते हैं।
4.1.1 भाषा अधिगम में व्याकरण की भूमिका
• भाषा परिवर्तनशील है, विकासशील है। व्याकरण उसके इस विकास पर
नियन्त्रण का कार्य करता है। व्याकरण भाषा को अव्यवस्थित होने से
बचाता है। अतः भाषा के स्वरूप को शुद्ध रखने, उसको विकृतियों से
बचाने के लिए व्याकरण की शिक्षा आवश्यक है।
• व्याकरण भाषा का सहचर है। भाषा अनुकरण से सीखी जाती है पर भाषा
को प्रभावशाली बनाने के लिए हमें उसके सर्वमान्य रूप को सीखना होता
है। भाषा के सर्वमान्य रूप को जानने के लिए व्याकरण को जानना
आवश्यक होता है।
• व्याकरण के बिना कोई भी भाषा-शिक्षण अधूरा है। व्याकरण के सम्पूर्ण
ज्ञान के अभाव में शुद्ध बोलना और लिखना सम्भव नहीं है। जिस प्रकार
किसी शासन को सुचारु रूप से चलाने हेतु पर्याप्त नियमों का होना
आवश्यक है, बिना नियमों के सत्ता में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो
सकती है उसी प्रकार भाषा में व्याकरण के बिना अराजकता की स्थिति
उत्पन्न हो सकती है। अतः भाषा को विकृति से बचाने, उसके शुद्ध रूप
को सुरक्षित रखने के लिए तथा भाषा में स्थायित्व लाने के लिए भाषा में
व्याकरण की आवश्यकता है।
• विद्यार्थियों द्वारा मानक भाषा का प्रयोग करने हेतु उनका व्याकरण के
नियमों से परिचित होना आवश्यक होता है, क्योंकि व्याकरण द्वारा ही भाषा
की अशुद्धियों को पहचाना जा सकता है।
4.1.2 व्याकरण शिक्षण के उद्देश्य
• छात्रों को शुद्ध बोलने, लिखने तथा पढ़ने की प्रेरणा देना। भाषा सम्बन्धी
नियमों से अवगत कराकर छात्रों को शुद्ध भाषा का प्रयोग करना सिखाना
तथा व्याकरण के द्वारा छात्रों में रचना व्यक्ता तथा सर्जनात्मकता का
विकास।
• छात्रों को ध्वनियों, ध्वनियों के मध्य के सूक्ष्म अन्तर, शब्द-योजना, शब्द
शक्तियों एवं शुद्ध वर्तनी का ज्ञान कराना। छात्रों को वाक्य रचना के नियम,
विराम चिह्नों का शुद्ध प्रयोग आदि का ज्ञान कराना।
• छात्रों को शब्द-सूक्ति, लोकोक्ति, मुहावरे आदि का प्रसंगानुकूल अर्थ
निकालने और स्वराघात एवं बलाघात के अनुसार अर्थ बोध कराने के
योग्य बनाना।
• छात्रों में भाषा के गुण-दोष परखने की रुचि उत्पन्न कराना तथा भाषा
रचना का ज्ञान प्राप्त कराना।
• नवीन भाषा को सीखने में सहायता करना।
• भाषा की प्रकृति एवं गठन का व्यावहारिक ज्ञान कराना।
• भाषिक तत्त्वों की संरचनाओं का ज्ञान प्रदान करना।
• चारों कौशल-पढ़ना, लिखना, बोलना और सुनने का विकास करना।
• भाषा की अशुद्धता की क्षमता को पहचानने की योग्यता का विकास
करना तथा मौखिक अभिव्यक्ति हेतु सर्वमान्य भाषा सिखाना।
                                   व्याकरण के अंग
• भाषा ध्वनियों पर आधारित होती है। ध्वनियों से शब्द और शब्दों से वाक्य
बनते हैं। इस आधार पर व्याकरण के तीन अंग होते हैं वर्ण विचार, शब्द
विचार एवं वाक्य विचार।
• वर्ण विचार के अन्तर्गत वर्षों से सम्बन्धित उनके आकार, उच्चारण,
वर्गीकरण तथा उनके मेल से शब्द बनाने के नियम आदि का उल्लेख किया
जाता है।
• शब्द विचार के अन्तर्गत शब्द से सम्बन्धित उसके भेद, उत्पत्ति तथा रचना
आदि का विवरण होता है।
• वाक्य विचार के अन्तर्गत वाक्य से सम्बन्धित उसके भेद, अन्वय,
विश्लेषण, संश्लेषण, रचना, अवयव तथा शब्दों से वाक्य बनाने के नियमों
की जानकारी दी जाती है।
4.1.3 व्याकरण की शिक्षण विधियाँ
निगमन विधि
• निगमन विधि (Deductive Method) व्याकरण शिक्षण की प्राचीनतम
विधि है। इस विधि में विद्यार्थियों को सर्वप्रथम व्याकरण के नियम कण्ठस्थ
अथवा याद करवाए जाते हैं, तदुपरान्त उदाहरण देकर उनका व्यावहारिक
प्रयोग करना सिखाया जाता है।
• सूत्र विधि में अध्यापक छात्रों को व्याकरण सम्बन्धी कुछ सूत्र बता देते हैं
और शिक्षार्थी उन्हें समझे बिना ही कण्ठस्थ कर लेते हैं।
• पुस्तक विधि यह सूत्र विधि का ही परिवर्द्धित रूप है। इस विधि में
नियमों का ज्ञान कराने हेतु छात्रों को व्याकरण की पुस्तक दे दी जाती है।
छात्र उसमें से नियमों को याद कर लेते हैं।
• अधिकांश विद्वान् निगमन विधि को अमनोवैज्ञानिक व अरुचिकर मानते हैं,
क्योंकि इस विधि में नियम केवल याद करवाए जाते हैं। इस प्रणाली में
चिन्तन, निरीक्षण और नियमीकरण का अवसर नहीं मिलता। अत: यह
विधि त्याज्य है।
आगमन विधि
इस विधि में छात्र उदाहरणों की सहायता से व्याकरण के सामान्य सिद्धान्तों
तक पहुँचते हैं। आगमन विधि (Inductive Method) में चार पदों का
अनुसरण करके छात्र व्याकरण के नियम व उपनियम स्वयं सीखते हैं।
आगमन विधि के चार पद
1. उदाहरण सर्वप्रथम बच्चों के सामने एक ही प्रकार के कई उदाहरण
प्रस्तुत किए जाते हैं।
2. निरीक्षण छात्र इन उदाहरणों को देखते हैं, इनका विश्लेषण करते हैं
और इनमें जो समानता होती है उसका पता लगाते हैं।
3. सामान्यीकरण इस समानता को वे नियम का रूप देते हैं।
4. परीक्षण निकाले गए नियमों की सत्यता हेतु अध्यायक उनका परीक्षण
करते हैं।
यह विधि सरस, रुचिकर व ग्राह्य है, क्योंकि इस प्रणाली में छात्रों को स्वयं
करके सीखने का अवसर मिलता है, जिससे उनका मानसिक विकास होता है,
इस प्रकार सीखा हुआ ज्ञान स्थायी होता है। अत: इस प्रणाली में कुछ शिक्षण
सूत्रों ‘ज्ञात से अज्ञात’, ‘मूर्त से अमूर्त’ ‘सरल से कठिन’ आदि का पालन
किया जाता है।
भाषा संसर्ग विधि
यह विधि उच्च माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है। इसमें
भाषा पर अधिकार रखने वाले कतिपय लेखकों की कृतियाँ पढ़ाई जाती है,
जिससे छात्र भाषा के सही रूप का ज्ञान प्राप्त करते हैं, लेकिन यह विधि
अपने आप में पूर्ण नहीं है।
इसमें हमें निम्नलिखित चार तथ्यों (बातों) को ध्यान में रखना पड़ता है
1. इस विधि से केवल व्यावहारिक व्याकरण की शिक्षा दी जा सकती है।
नियमित व्याकरण पढ़ाने के लिए हमें आगमन विधि का ही सहारा लेना
पड़ता है।
2. इस विधि से भाषा के शुद्ध रूप का ज्ञान देने में अधिक समय लगेगा।
3. शुद्ध एवं अशुद्ध विवेचन करने का कोई आधार न होने के कारण शुद्धता
में कमी स्वाभाविक होगी।
4. बिना विवेचन के आत्मविश्वास नहीं होगा और आत्मविश्वास के अभाव
में भाषा पर अधिकार करने की कल्पना सार्थक नहीं। अत: व्याकरण
शिक्षण की यह विधि अपने आप में पूर्ण न होने के कारण इस पर
निर्भर नहीं रहा जा सकता।
प्रयोग विधि
इसमें उदाहरण प्रस्तुत करके समान लक्षण वाले अंशों के कार्य एवं गुण
निकलवाए जाते हैं तत्पश्चात् उसका अभ्यास कराया जाता है, जिसमें शिक्षण के
दौरान इन सौपानों का प्रयोग किया जाता है-तुलना एवं विश्लेषण, नियमीकरण
एवं निष्कर्ष, प्रयोग और अभ्यास।
सह-सम्बन्ध विधि
इस विधि का प्रयोग शब्द शिक्षण, वर्तनी शिक्षण, उच्चारण शिक्षण आदि के
समय किया जाता है। यह व्याकरण शिक्षण की कोई पृथक् विधि नहीं है,
बल्कि इसमें गद्य रचना के अभ्यास के दौरान आए व्याकरण के नियमों की
जानकारी प्रदान की जाती है।
प्रत्यक्ष भाषा शिक्षण विधि
यह विधि बिना व्याकरण नियमों का ज्ञान कराए भाषा के शुद्ध रूप का
अनुकरण करने के अवसर प्रदान करती है। ऐसे लेखक जिनका भाषा पर
पूर्णाधिकार है, उनसे बालकों को वार्तालाप के अवसर प्रदान किए जाते हैं,
प्राथमिक स्तर के लिए यह विधि उपयुक्त है।
समवाय विधि
इस विधि के प्रतिपादकों का मत है कि व्याकरण की शिक्षा स्वतन्त्र रूप से न
देकर विद्यार्थियों को साहित्य के प्रतिष्ठित विद्वानों की रचनाएँ पढ़ाई जाएँ।
इसके अन्तर्गत मौखिक एवं लिखित कार्य कराते समय, गद्य की पुस्तक पढ़ाते
समय, रचना कार्य कराते समय प्रासंगिक रूप से व्याकरण के नियमों का
ज्ञान कराया जाता है।
यह विधि मनोवैज्ञानिक है, लॉर्ड मैकाले के अनुसार “बालक उस भाषा को
शीघ्र सीखता है, जिसका व्याकरण वह नहीं जानता।” यह विधि उच्च
कक्षाओं के अनुरूप है।
खेल विधि
इस विधि में शिक्षक, विद्यार्थियों को व्याकरण के नियमों से अवगत कराने के
लिए किसी खेल का चयन करके पाठ की आवश्यकतानुसार नियमों का
निर्धारण करते हैं।
इस प्रणाली द्वारा व्याकरण सिखाने से व्याकरण की नीरसता छात्रों के मार्ग में
बाधक नहीं बनती। विद्यार्थी खेल-खेल में शब्द-भेद, लिंग भेद, वचन आदि
व्याकरण के नियमों को सहजता से सीख लेते हैं।
व्यावहारिक व्याकरण शिक्षण विधि
इसमें भाषा शिक्षक द्वारा रोचक व आकर्षक विधि का प्रयोग करते हुए ध्वनि,
वर्तनी, वचन, शब्द, लिंग, क्रिया, काल आदि से सम्बन्धित विकारों को दूर
करने का प्रयास किया जाता है। इसके सोपान हैं उदाहरण, प्रश्नोत्तर,
नियमीकरण।
विश्लेषणात्मक विधि
इस विधि में शिक्षक आगमन विधि की तरह विद्यार्थियों को व्याकरण पढ़ाते
हुए पहले उदाहरण देते हैं फिर उन पर विचार-विमर्श करके छात्रों से नियम
निकलवाए जाते हैं। इन नियमों पर निगमन विधि की भाँति विश्लेषणात्मक
अध्ययन किया जाता है, तदुपरान्त विद्यार्थी परीक्षण के लिए नियमों से
उदाहरण की ओर जाते हैं। इस विधि द्वारा छात्रों में व्याकरण के नियमों को
जानने के प्रति रुचि उत्पन्न होने के कारण इसे व्याकरण शिक्षण की सर्वोत्तम
विधि माना जाता है।
4.1.4 व्याकरण शिक्षण प्रक्रिया
व्याकरण शिक्षण प्रक्रिया हेतु निम्नलिखित सोपानों को प्रयुक्त करना
अनिवार्य है
पूर्वज्ञान विद्यार्थी को सर्वनाम पढ़ाने हेतु संज्ञा शब्द का पूर्व ज्ञान होना चाहिए।
प्रस्तावना पूर्व ज्ञान के आधार पर प्रश्नों का विकास कराया जाता है।
उद्देश्य कथन समस्यात्मक प्रश्न को मुख्य प्रकरण से सम्बन्धित करते हुए,
उद्देश्य कथन बोले जाते हैं, जो संक्षिप्त व सारगर्भित होते हैं।
4.1.5 व्याकरण शिक्षण को रुचिकर बनाने के उपाय
• बोलचाल और लिखित भाषा में जिन नियमों का प्रयोग होता है, उन्हें
व्यावहारिक व्याकरण की संज्ञा दी जाती है, इन्हीं नियमों का सूक्ष्म विवेचन
नियमित व्याकरण कहलाता है। व्याकरण शिक्षण को सरस एवं रुचिकर
बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं।
• व्याकरण की पाठ्यचर्या छात्रों के स्तरानुकूल बनाई जाए। प्रारम्भिक
कक्षाओं में बच्चों को व्याकरण की व्यावहारिक शिक्षा दी जाए।
व्यावहारिक व्याकरण की शिक्षा भाषा-संसर्ग विधि से दी जाए।
• बच्चों के भाषा सम्बन्धी ज्ञान को ध्यान में रखते हुए उनके सामने उत्तरोत्तर
कठिन रचनाएँ प्रस्तुत की जाएँ।
• व्याकरण शिक्षण को दृश्य-श्रव्य व शिक्षक सहायक सामग्री के प्रयोग से
रोचक बनाया जाए।
• छात्रों के अनुसार शिक्षण विधि का प्रयोग किया जाए।
• छात्रों को नियम व परिभाषाएँ कण्ठस्थ कराने की अपेक्षा व्याकरण का
व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया जाए।
• बच्चों को सिखाए गए नियमों का अभ्यास कराने के लिए रोचक एवं
भिन्न-भिन्न प्रकार के अभ्यास कराए जाएँ, जैसे―
– रिक्त स्थान की पूर्ति             – वाक्य निर्माण
– वचन परिवर्तन                    – लिंग परिवर्तन
– पर्यायवाची शब्द                  -विलोम शब्द
उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए अध्यापक व्याकरण शिक्षण को सरल
एवं सरस बना सकता है।
4.2 सम्प्रेषण कौशल के विकास में व्याकरण का महत्त्व
सम्प्रेषण कौशल के विकास में व्याकरण का महत्त्व निम्न है
• व्याकरण बालकों के अशुद्ध उच्चारण को शुद्ध करने में सहायक है।
• व्याकरण शुद्ध एवं सही वाचन का अभ्यास कराने में सहायक है।
• यह बालकों की अभिव्यक्ति में स्पष्टता लाने में सहायक है।
• यह बालकों में सृजनात्मक कौशल का विकास करने में सहायक है।
• यह बालकों में ऐसी क्षमता का विकास करने में सहायक है, जिससे कि वे
पूछे गए प्रश्नों का उत्तर प्रवाहपूर्ण तरीके से दे सकें।
• यह बालकों को साधारण वार्तालाप में शुद्ध भाषा का प्रयोग सिखाने में
सहायक है।
• यह बच्चों में भाषण सम्बन्धी अभिव्यक्ति का विकास करने में सहायक है।
• लोकोक्तियों व मुहावरों का प्रयोग भाषा को प्रभावी बनाने में सहायक है।
लेखन कौशल के विकास में व्याकरण का महत्त्व
• यह बच्चों को पढ़ी या सुनी हुई बातों को शुद्ध-वर्तनी तथा विराम-चिह्नों का
सही प्रयोग करते हुए लेखन कौशल का विकास करने में सहायक है।
• यह बच्चों के लेखन में संज्ञा,सर्वनाम, क्रिया, विशेषण, प्रत्यय, उपसर्ग,
तत्सम और तद्भव शब्द आदि के प्रयोग से उनके लेखन कौशल में
विकास करने में सहायक है।
• यह बच्चों में विभिन्न सन्दर्भ में शब्दों की समझ पैदा करने में सहायक है।
• यह बच्चों की लेखन शैली में मुहावरों का प्रयोग करने का शिक्षण देकर
उनके लेखन कौशल में विकास करने में सहायक है।
• यह बच्चों को लेखन क्रिया में गद्य-पद्य में अन्तर समझाकर उनके लेखन
कौशल का विकास करने में सहायक है।
अभ्यास प्रश्न
1. छात्र व्याकरण के माध्यम से……………
करना सीखते हैं।
(1) ध्वनियों का शुद्ध उच्चारण
(2) विराम-चिह्नों का शुद्ध प्रयोग
(3) भाषा का लिखित एवं मौखिक रूप से शुद्ध
प्रयोग
(4) ध्वनियों में सूक्ष्म अन्तर
2. भाषा की शिक्षिका होने के नाते व्याकरण
पढ़ाते हुए आपका उद्देश्य होगा
(1) बच्चों को व्याकरणिक नियमों से अवगत
कराना
(2) बच्चों को भाषिक संरचनाओं से अवगत कराना
(3) बच्चों को वाक्य रचना के नियम बताना
(4) भाषा का शुद्ध प्रयोग करना सिखाना
3. निगमन विधि है
(1) नियम बताकर उदाहरण देना
(2) उदाहरण देकर नियम समझाना
(3) भाषा का अनुकरण करने की विधि
(4) बिना उदाहरण दिए भाषा सिखाना
4. पाँचवीं कक्षा की अध्यापिका छात्रों को
व्याकरण पढ़ाने के लिए प्रसिद्ध लेखकों की
पुस्तकें पढ़ाती है। वह व्याकरण पढ़ाने के
लिए किस विधि का प्रयोग कर रही है?
(1) आगमन विधि
(2) भाषा संसर्ग विधि
(3) समवाय विधि
(4) सह-सम्बन्ध विधि
5. आगमन विधि द्वारा व्याकरण पढ़ाने में
कौन-सा/से शिक्षण सूत्र कार्य करता/करते
है/है?
(1) मूर्त से अमूर्त की ओर
(2) कठिन से सरल की ओर
(3) ज्ञात से अज्ञात की ओर
(4) 1 और 3
6. व्याकरण पढ़ाते हुए एक शिक्षक का
उद्देश्य नहीं होता
(1) छात्र भाषिक संरचनाओं का ज्ञान प्राप्त कर
सके
(2) छात्र शुद्ध एवं अशुद्ध भाषा में अन्तर कर सके
(3) छात्र केवल शुद्ध लेखन कर सके
(4) छाव शुद्ध उच्चारण कर सके
7. मुहावरे और लोकोक्तियों का प्रयोग करना
(1) व्याकरण का प्रमुख हिस्सा है
(2) हिन्दी भाषा-शिक्षण का सबसे महत्त्वपूर्ण
उद्देश्य है
(3) भाषिक अभिव्यक्ति को प्रभावी बनाता है
(4) केवल गद्य पाठों के अभ्यासों का हिस्सा है
8. ‘उसने पढ़ा।’, ‘उसने खाया।’ और ‘उसने
चीखा।’ जैसे भाषा-प्रयोग दर्शाते हैं
(1) नियम का उल्लंघन
(2) सन्दर्भ की समझ न होना
(3) नियम कण्ठस्थ न होना
(4) नियमों का अति सामान्यीकरण
9. व्याकरण शिक्षण के सन्दर्भ में कौन-सा
कथन सही है?
(1) व्याकरण शिक्षण के लिए समय-सारणी में
अलग से कालांशों की व्यवस्था होनी चाहिए
(2) भाषा प्रयोग की अपेक्षा भाषा-नियमों को ही
महत्त्व देना चाहिए
(3) बच्चे परिवेश में उपलब्ध भाषिक प्रयोगों के
आधार पर स्वयं भाषा के नियम बनाने की
क्षमता रखते हैं
(4) व्याकरण शिक्षण अत्यन्त आवश्यक है
10. व्याकरण शिक्षण को सरस एवं रुचिकर
बनाने के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा
उपाय नहीं किया जा सकता?
(1) व्याकरण की पाठ्यचर्या छात्रों के स्तरानुकूल
बनाना
(2) व्यावहारिक व्याकरण की शिक्षा भाषा संसर्ग
विधि से देना
(3) छात्रों को नियम व परिभाषाएँ रटने के
लिए प्रोत्साहित किया जाना
(4) व्याकरण शिक्षण को दृश्य-श्रव्य सामग्री के
प्रयोग से रोचक बनाया जाए
11. स्कूलों में प्रायः व्याकरण शिक्षण नीरस व
अरुचिकर हो जाता है। इसका कारण
क्या है?
(1) शिक्षकों को व्याकरण का पर्याप्त ज्ञान न होना
(2) अन्य विषयों के शिक्षण में किसी भाषा के
व्याकरण का कोई योगदान नहीं होता
(3) व्याकरण को सिखाने के लिए प्रायः पुस्तक
प्रणाली का सहारा लिया जाता है
(4) व्याकरण सीखने में छात्रों की कोई रुचि
नहीं होती
12. ‘मैंने चाट खाई और फिर मैं हँसी।’
शर्मिला का यह भाषा प्रयोग मुख्यत: किस
ओर संकेत करता है?
(1) व्याकरणिक नियमों की जानकारी न होना
(2) नियमों का अति सामान्यीकरण
(3) भाषा प्रयोग में असावधानी
(4) भाषा की समझ न होना
13. व्याकरण शिक्षण के सन्दर्भ में आपका
बल किस बिन्दु पर होगा?
(1) व्याकरणिक नियमों की सैद्धान्तिक विवेचना
पर
(2) व्याकरणिक कोटियों की पहचान पर
(3) व्याकरण के व्यावहारिक पक्ष पर
(4) व्याकरणिक नियमों को कण्ठस्थ करने पर
14. प्राथमिक कक्षाओं में खेल द्वारा शिक्षण
विधि के अन्तर्गत व्याकरण शिक्षण किस
प्रकार बेहतर रहता है?
(1) रिक्त स्थानों की पूर्ति द्वारा
(2) वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के आधार पर
(3) उच्चस्तरीय खेल प्रतियोगिता द्वारा
(4) पाठ्य-पुस्तक का अध्ययन करवाकर
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
15. मन्दिरा पहली कक्षा में पढ़ती है और मुझे
आम बहुत अच्छा लगता है’ ‘मैं थक गई
आदि वाक्यों का प्रयोग करती है। मन्दिरा
(1) लिंग, वचन, क्रिया आदि की दृष्टि से सर्वनाम
का प्रयोग करना जानती है
(2) केवल सर्वनाम का ही प्रयोग जानती है
(3) केवल लिंग की दृष्टि से ही सर्वनाम का समुचित
प्रयोग करना जरूरी है
(4) केवल ‘मैं’ वाले वाक्य ही बोल सकती है
16. भाषा के व्याकरण की समझ को
                                            [CTET Nov 2012]
(1) केवल लघुतर प्रश्नों के माध्यम से आँका जाना
चाहिए
(2) निबन्धात्मक प्रश्नों के माध्यम से आँका जाना
चाहिए
(3) सन्दर्भ पूर्वक प्रश्नों के माध्यम से आँका जाना
चाहिए
(4) केवल वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के माध्यम से औंका जाना
चाहिए
17. भाषा-शिक्षण में खेल का महत्त्वपूर्ण स्थान है,
क्योकि।                           [CTET Feb 2015
(1) भाषा शिक्षक को कम श्रम करना पड़ता है
(2) खेल भाषा को विस्तार देते हैं
(3) खेल में आनन्द आता है
(4) खेल में शारीरिक विकास होता है
18. व्याकरण-शिक्षण की आगमन विधि की
विशेषता है                          [CTET Sept 2015]
(1) पहले नियम बताना
(2) पहले नियम का विश्लेषण करना
(3) पहले मनोरंजन गतिविधियाँ कराना
(4) पहले उदाहरण प्रस्तुत करना
19. भाषा की कक्षा में भाषायी खेलों का आयोजन
मुख्यतः                               [CTET Feb 2016)
(1) भाषा सीखने की प्रक्रिया में स्वाभाविकता लाता है
(2) आकलन का काम करता है
(3) रोचकता और जोश लाता है
(4) अध्यापक के काम को सरल बनाता है
20. निम्नलिखित में से किसके अभाव में हम पढ़
नहीं सकते?                     (CTET Sept 2016)
(1) लिपि से परिचय
(2) बारहखड़ी से परिचय
(3) वर्णमाला की क्रमबद्धता का ज्ञान
(4) संयुक्ताक्षरों की पहचान
                                                  उत्तरमाला
1. (3) 2. (4) 3. (1) 4. (2) 5.(4) 6. (3) 7. (3) 8. (4) 9. (4) 10. (3)
11. (3) 12. (2) 13. (3) 14 (1) 15 (1) 16. (3) 17. (2) 18. (4)
19. (1) 20. (1)
                                             ★★★

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