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CTET Notes in Hindi | शिक्षण सहायक सामग्री | Teaching Aids

CTET Notes in Hindi | शिक्षण सहायक सामग्री | Teaching Aids

शिक्षण सहायक सामग्री
                                    Teaching Aids
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने
से यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में
2 प्रश्न, वर्ष 2012 में 4 प्रश्न, वर्ष 2013 में 4 प्रश्न, वर्ष
2014 में 3 प्रश्न, वर्ष 2015 में 1 प्रश्न पूछा गया है। CTET
परीक्षा में पूछे गए प्रश्न मुख्यतया शिक्षण सामग्रियों का
उद्देश्य, उनका महत्त्व आदि से सम्बन्धित हैं।
8.1 शिक्षण सहायक सामग्री
अध्यापन के दौरान पाठ्य सामग्री को समझाते समय शिक्षक जिन-जिन
सामग्रियों का प्रयोग करता है वह शिक्षण सहायक सामग्री (Teaching
Aids) कहलाती हैं।
आधुनिक शिक्षा प्रणाली में सहायक सामग्री के सम्बन्ध में कई नवाचार
(Innovation) हुए हैं, जिनकी सहायता से अध्ययन को रोचक व
प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है।
इन सामग्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान न केवल छात्रों में उत्साह जाग्रत करता है
वरन् इनकी सहायता से सीखे हुए ज्ञान को लम्बे समय तक याद रख
सकता है।
• सहायक सामग्रियों के प्रयोग के समय शिक्षक भी अपने अध्यापन के प्रति
उत्साहित रहता है। परिणामस्वरूप कक्षा का वातावरण हमेशा सकारात्मक
बना रहता है।
• वर्तमान समय में वही शिक्षक छात्रों के लिए आदर्श होता है और उसी
शिक्षक का शिक्षण आदर्श शिक्षण कहलाता है, जो अपनी पाठ्य सामग्री
को इन रोचक सहायक सामग्री के माध्यम से प्रस्तुत करता है। शिक्षण
सहायक सामग्री न केवल छात्रों का ध्यान केन्द्रित करती है, बल्कि उन्हें
उचित प्रेरणा भी देती है चाहे वह वास्तविक वस्तु हो, चित्र, चार्ट या
कोई तकनीकी उपकरण सभी से छात्रों के मस्तिष्क में एक बिम्ब का
निर्माण करता है। हम कह सकते हैं कि वर्तमान शिक्षण के अन्तर्गत
अध्यापन में नवीनता लाने के लिए सहायक सामग्री का प्रयोग शिक्षक के
लिए वांछनीय ही नहीं अनिवार्य भी है।
8.1.1 शिक्षण सहायक सामग्री की परिभाषाएँ
डेण्ड के अनुसार, “सहायक सामग्री वह सामग्री है जो कक्षा में या अन्य
शिक्षण परिस्थितियों में लिखित या बोली गई पाठ्य सामग्री को समझने
में सहायता प्रदान करती है।”
एलविन स्ट्राँग के अनुसार, “सहायक सामग्री के अन्तर्गत उन सभी साधनों
को सम्मिलित किया जाता है, जिसकी सहायता से छात्रों की पाठ में
रुचि बनी रहती है तथा वे उसे सरलतापूर्वक समझते हुए अधिगम के
उद्देश्य को प्राप्त कर लेते हैं।”
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सहायक सामग्री वह सामग्री,
उपकरण तथा युक्तियाँ हैं, जिनके प्रयोग करने से विभिन्न शिक्षण परिस्थितियों
में छात्रों और समूहों के मध्य प्रभावशाली ढंग से ज्ञान का संचार होता है।
8.1.2 शिक्षण सहायक सामग्री का महत्त्व
• सहायक सामग्री विषय को स्थायी रूप से सीखने व समझने में सहायक होती
है। जहाँ शिक्षक का मौखिक वक्तव्य कम प्रभाव उत्पन्न करता है वहीं दृश्य
सामग्री पाठ को रोचकता प्रदान कर उसे बोधगम्य बनाती है।
• यह अनुभवों के द्वारा ज्ञान प्रदान करती है। यह शिक्षक के समय व ऊर्जा
दोनों की बचत करती है। यह विचारों को प्रवाहत्मकता प्रदान करती है।
• भाषा सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करती है। अध्यापन रुचिकर होने से छात्र
अधिक सक्रिय रहते हैं और पाठ को अधिक सरलता से ग्रहण करते हैं।
• इससे विद्यार्थी गतिविधियों में सक्रिय बने रहते हैं। अनुसन्धान व परियोजना
कार्यों में बढ़कर हिस्सा लेते हैं। छात्रों को वस्तुओं को प्रत्यक्ष रूप से देखने,
छूने, महसूस करने का अवसर मिलता है। वे प्राकृतिक व कृत्रिम वस्तुओं के
तुलनात्मक भेद को जान पाते हैं।
B.1.3 शिक्षण सहायक सामग्री के प्रयोग के उद्देश्य
शिक्षण सहायक सामग्री के प्रयोग के प्रमुख उद्देश्य निम्न है
• छात्रों में पाठ के प्रति रुचि जाग्रत करना।
• बालकों में तथ्यात्मक सूचनाओं को रोचक ढंग से प्रस्तुत करना।
• सीखने की गति में सुधार करना।
• छात्रों को अधिक क्रियाशील बनाना।
• अभिरुचियों पर आशानुकूल प्रभाव डालना।
• तीव्र एवं मन्द बुद्धि छात्रों को योग्यतानुसार शिक्षा देना।
• जटिल विषयों को भी सरस रूप में प्रस्तुत करना।
• बालक का ध्यान अध्ययन (पाठ) की ओर केन्द्रित करना।
• अमूर्त पदार्थों को मूर्त रूप देना।
• बालकों की निरीक्षण शक्ति का विकास करना।
8.1.4 शिक्षण सहायक सामग्री के कार्य
1. प्रेरणा (Motivation) सहायक सामग्री (दृश्य-श्रव्य) से सीखे हुए ज्ञान
से छात्रों में उत्सुकता उत्पन्न होती है साथ ही उनके प्रयोग द्वारा प्राप्त
किया गया ज्ञान उसे प्रेरणा प्रदान करता है।
2. क्रिया का सिद्धान्त (Theory of Activity) इन सामग्रियों के प्रयोग से
विद्यार्थियों को नाना प्रकार की क्रियाएँ करने का अवसर मिलता है। वह
खेल-खेल में जटिल पाठ्यक्रम को भी आसानी से सीख लेते हैं।
3. स्पष्टीकरण (Explanation) सहायक सामग्री के माध्यम से
कठिन-से-कठिन पाठ्य-वस्तु को प्रत्यक्ष देखकर छात्रों के मन में
उठी शंकाओं का समाधान हो जाता है।
2. अनुभवयुक्त शिक्षण (Experienced Teaching) कहा जाता
कि रटे हुए ज्ञान से करके सीखा हुआ ज्ञान ज्यादा प्रभावशाली
और लम्बे समय तक याद रहता है। इससे छात्रों में चिन्तन के
गुण को भी प्रोत्साहन मिलता है।
5. शब्दकोश में वृद्धि (Development of Vocabulary) रेडियो,
टेलीविजन, चल-चित्र, भाषा प्रयोगशाला आदि को सुनते-सुनते
बच्चे इनसे सुने शब्दों का अनुकरण करते हैं, ये सामग्रियाँ उनके
शब्द भण्डार में वृद्धि करने के साथ-साथ उसके अभिव्यक्ति
कौशल को भी सुदृढ़ बनाती है।
6. शिक्षण में कुशलता (Skilled in Teaching) शिक्षण सहायक
सामग्रियाँ शिक्षक को उसके अध्यापन प्रक्रिया में काफी मदद
करती हैं, जिससे वह अपने विषय को बेहतर ढंग से छात्रों के
समय प्रस्तुत कर सकता है।
8.1.5 शिक्षण सहायक सामग्री प्रयोग करते समय ध्यान देने योग्य बातें
शिक्षण सहायक सामग्री प्रयोग करते समय निम्न बातें ध्यान में रखनी
चाहिए
• ये सामग्रियाँ छात्रों के अनुभव, समझ, आयु के अनुसार होनी चाहिए।
सामग्री पाठ्य-वस्तु से सम्बन्धित होनी चाहिए।
• सामग्री का चयन करते समय ध्यान रहे कि ये छात्रों में रुचि जाग्रत
करने वाली हों। अनावश्यक सामग्री का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
• सहायक सामग्री का प्रयोग जितने समय के लिए आवश्यक हो उतने ही
समय के लिए प्रयुक्त की जानी चाहिए।
• सामग्री यदि नवाचार (Innovation) से जुड़ी व तकनीक से सम्बन्धित
है तो प्रयास होना चाहिए कि इस सामग्री का संचालन सरल हो।
• प्रयुक्त की जा रही सहायक सामग्री उचित अवस्था में होनी चाहिए।
• उपयोग से पूर्व शिक्षक को एक बार उस सामग्री का कृत्रिम वातावरण
में अभ्यास कर लेना चाहिए।
• सामग्री के प्रभावशाली उपयोग के बारे में समस्त सावधानी ध्यानपूर्वक
पढ़ लेनी चाहिए। प्रयोग के तुरन्त बाद सामग्री को छात्रों के सामने से
हटा देना चाहिए।
• अनुदेशनात्मक सामग्री का प्रयोग वातावरण एवं परिस्थिति के अनुसार
सही स्थान पर होना चाहिए।
• सहायक सामग्री के प्रयोग में अति शीघ्रता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि
शीघ्रता में उद्देश्यपूर्ण नहीं होता। सामग्री का प्रयोग पूर्ण तैयारी के
आधार पर सटीक होना चाहिए।
• अनुदेशनात्मक सामग्री का प्रयोग उचित ढंग से होना चाहिए। यूनेस्को
के प्रकाशन ‘टीचिंग ऑफ मॉडर्न लैंग्वेज’ में लिखा है कि शिक्षक के
लिए किसी सहायक साधन को गलत और बुरी तरह प्रयोग करने से
अच्छा उसे प्रयोग नहीं करना है।
• प्राय: दृश्य-श्रव्य उपकरण मूल्यवान होते हैं। अत: उनकी उचित सुरक्षा
आवश्यक है।
8.1.6 हिन्दी भाषा शिक्षण एवं शिक्षण सहायक सामग्री
हिन्दी शिक्षक अनुदेशनात्मक (Instructional) सामग्री की सहायता से हिन्दी
साहित्य एवं भाषा का ठोस ज्ञान छात्रों को दे सकता है। भाषा, भावों एवं विचारों
को व्यक्त करती है। लेकिन अनुदेशनात्मक सामग्री इन भावों एवं विचारों के सूक्ष्म
स्वरूप को स्थूल रूप प्रदान करती है एवं सरस, सरल व रुचिकर बनाती है।
अत: अनुदेशनात्मक सामग्री को प्रयुक्त करते वक्त शिक्षक को निम्नलिखित बातें
ध्यान में रखनी चाहिए
• शिक्षक को प्रयुक्त की जाने वाली सामग्री की ठोस जानकारी हो, तभी इन
साधनों का प्रयोग करें।
• शिक्षक, छात्र मनोविज्ञान का ज्ञाता हो। अध्यापक छात्रों के अधिगम को
प्रभावशाली बनाने के लिए एक समय में कई साधनों का प्रयोग करे।
• उपकरणों के चयन में शिक्षक पर्याप्त सावधानी बरतें। शिक्षक को यह
महत्त्वपूर्ण तथ्य ध्यान में रखना होगा कि उपकरण साधन है, साध्य नहीं।
8.1.7 शिक्षण सहायक सामग्रियों के प्रकार
शिक्षण सहायक सामग्रियों के प्रमुख प्रकार निम्न है
दृश्य साधन (Visual Aids) का अर्थ है, जिसे देखा जा सके। इसका अभिप्राय यह
हुआ कि ये वे उपकरण हैं, जिन्हें छात्र देख सकते हैं। इसका सम्बन्ध नेत्रों से है।
श्यामपट्ट, चित्र, मानचित्र, मूकचित्र, चित्र विस्तारक यन्त्र आदि दृश्य साधन हैं।
श्रव्य साधन (Audio Aids) इनका सम्बन्ध श्रवणेन्द्रिय (कानों) से होता है।
इनके द्वारा सुनकर छात्र ज्ञान प्राप्त करते हैं। इसके मुख्य उपकरण हैं― रेडियो,
ग्रामोफोन, टेलीफोन, टेपरिकॉर्डर आदि।
दृश्य-श्रव्य साधयन (Audio-Visual Aids) इन उपकरणों का सम्बन्ध छात्रों की
आँखों एवं कानों दोनों से है। इसमें दृश्येन्द्रिय एवं श्रवणेन्द्रिय दोनों का एकसाथ
प्रयोग करके छात्र ज्ञान प्राप्त करते हैं। उदाहरणस्वरूप टेलीविजन, चल-चित्र,
नाटक इत्यादि।
8.1.8 प्रमुख श्रव्य सामग्री
रेडियो
यह शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उपकरण है वर्तमान में नवीन यन्त्रों के रहते इसके प्रयोग
में कमी अवश्य आई है, किन्तु ग्रामीण अंचलों में आज भी यह प्रभावशाली है।
इसके माध्यम से उच्च कोटि के शिक्षा शास्त्री, भाषाविदों के उद्गार,
राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय चर्चा, नाटकों, कहानियों का प्रसारण आदि से भाषा शिक्षण
में काफी मदद मिलती है।
ग्रामोफोन तथा लिंग्वाफोन
रेडियो की ही भांति यह शिक्षण का प्राचीन माध्यम है वर्तमान में इसका प्रयोग
कम ही देखने को मिलता है। इसके माध्यम से छात्रों के अशुद्ध उच्चारणों को
शुद्ध करने में काफी मदद मिलती है।
टेपरिकॉर्डर
टेपरिकॉर्डर ध्वनियों के ज्ञान हेतु विशेष भूमिका निभाता है, जिसमें छात्र अपनी ही
आवाज को रिकॉर्ड कर बार-बार सुन सकते हैं, ताकि शब्दों के सही उच्चारण,
बोलने की गति, आरोह-अवरोह, विराम चिह्नों का प्रयोग, अपने वक्तव्य तथा
उच्चारण सम्बन्धी त्रुटियों को भली-भाँति समझकर उसमें सुधार कर सके।
8.1.9 प्रमुख दृश्य सामग्री
श्यामपट्ट
श्यामपट्ट (Black-Board) के बगैर हिन्दी शिक्षण की कल्पना नहीं की जा
सकती है। हिन्दी शिक्षण में शब्दों के उच्चारण, स्पष्टीकरण, विषय को रुचिकर
बनाने, कठिन अंशों को सरल करने, लिखावट में सुधार लाने, व्याकरण शिक्षण में
परिभाषा लिखने, उदाहरण बताने अभ्यासार्थ प्रश्न देने इत्यादि में श्यामपट्ट की
आवश्यकता होती है।
सूचनापट्ट
बुलेटिन बोर्ड या सूचनापट्ट (Notice-Board) के द्वारा छात्रों को राजनीतिक,
सामाजिक, आर्थिक, साहित्यिक व समसामयिक आदि पक्षों की जानकारी से
सम्बन्धित सूचना दी जाती है। साथ ही यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि
सूचनापट्ट की सूचनाएं छात्रों की रुचि प्रवृत्ति व योग्यता के अनुरूप होनी चाहिए।
वास्तविक पदार्थ
ये सामग्री बालक की इन्द्रियों को प्रेरणा देती है, जिन्हें छूकर, उनका निरीक्षण व
परीक्षण कर छात्र अपनी सोच व कल्पनाशक्ति को सुदृढ़ बना सकते हैं;
जैसे―तितली, फूल, पतंग।
नमूने (मॉडल)
ये वास्तविक वस्तु का ही छोटा रूप होता है ऐसी सामग्री जो आकार में बड़ी है
• अथवा जिसको कक्ष में लाना या दिखाना सम्भव नहीं हो उन वस्तुओं के नमूने
(Modal) को शिक्षण सामग्री के रूप में प्रयुक्त किया जाता है; जैसे― हाथी,
जहाज, कहानी में शेर आदि।
चित्र
वास्तविक वस्तुएँ और नमूने प्राप्त न होने पर इन सामग्रियों का प्रयोग किया जाता
है। शिक्षक चाहे तो श्यामपट्ट पर स्वयं चित्र (Picture) बनाकर अथवा तैयार
चित्रों का प्रयोग कर अपना शिक्षण कार्य कर सकता है; जैसे― महापुरुषों के
चित्र, पेड़, बादल आदि के चित्र।
मानचित्र व रेखाचित्र
प्रायः ऐतिहासिक घटनाओं व भौगोलिक स्थान के अध्ययन के लिए ये प्रयुक्त होते
हैं; जैसे―नक्शे के माध्यम से दर्शाना कौन-सा देश है, किस प्रदेश में कौन-सी
भाषा बोली जाती है, किस भाषा को बोलने वाले लोगों का प्रतिशत कितना है?
आदि।
चार्ट
शिक्षण की सफलता में चार्ट (Chart) का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भाषा के वर्ण,
मात्रा, वाक्य, विभिन्न शब्दों, मानव अंगों, ध्वनि अवयवों के चित्रों को चार्ट के
माध्यम से समझाया जा सकता है। इसी तरह के कई चार्ट हम नर्सरी कक्षाओं में
लगे देखते हैं।
फ्लेनेल बोर्ड Flanel Board
यह बच्चों की कल्पनाशक्ति व सृजन क्षमता को विकसित करने का अच्छा
माध्यम है। छात्रों को कुछ विषय दिए जा सकते हैं, जिनके बारे में उन्हें कोई
जानकारी या चित्र एकत्र करने को कहा जाए; जैसे-चाचा नेहरू के बारे में 10
वाक्य एक सुन्दर चित्र के साथ लिखकर फ्लेनेल बोर्ड पर चस्पा करें, साँची पर
चित्र सहित लेख, बाल-केन्द्रित कविता आदि।
संग्रहालय
जहाँ महत्त्वपूर्ण व दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह होता है उन्हें संग्रहालय
(Museum) कहा जाता है। विद्यार्थियों को समय-समय पर ऐसे
संग्रहालयों में ले जाकर उन्हें वहाँ महान् सन्तों, कवियों, साहित्यकारो,
प्राचीन ग्रन्थों, समाचार-पत्र-पत्रिकाओं,डाक टिकटों, अस्त्र-शस्त्रों के
संग्रह के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जा सकती है।
प्रक्षेपण
प्रक्षेपण (Projector) के माध्यम से स्लाइड के द्वारा चित्र प्रभावशाली
ढंग से छात्रों को दिखाए जा सकते हैं। फिल्म स्ट्रिप प्रोजेक्टर पर चित्रों
को बड़ा करके परदे पर दिखाने से छात्र आकृष्ट होते हैं।
मूक चित्र
मूक चित्रों (Silent Pictures) का अध्ययन में अपना विशेष स्थान होता
है, क्योकि इसमें भावाभिव्यक्ति सशक्त होती है। यह एक प्रकार से मौन
भाषा का ही रूप है, जिसमें मुँह के अलावा शरीर का सभी अंग भाव
व्यक्त करते हैं और यह बच्चों में बेहद लोकप्रिय भी हैं।
संवाद सामग्री
यह नई तकनीकी की देन है यह संवाद सामग्री (Dialogue Aids) जो
निःसन्देह दृश्य-श्रव्य सामग्री के साथ छात्रों से परस्पर संवाद भी करती
है तथा उन्हें सही-गलत का बोध भी कराती है।
यद्यपि यह सुविधा भारत जैसे देश में समस्त छात्रों को उपलब्ध नहीं है;
जैसे―इन्टरेक्टिव ब्लैक बोर्ड, इण्टरनेट, वीडियो कॉलिंग आदि, किन्तु
फिर भी कम्प्यूटर में वे इण्टरनेट की मदद से भाषाओं का अनुवाद,
अक्षरों का ज्ञान व उन्हें सही रूप में लिखना सीख सकते हैं।
8.1.10 प्रमुख दृश्य-श्रव्य सामग्री
प्रमुख दृश्य-श्रव्य सामग्रियों के प्रमुख प्रकार निम्न है
चलचित्र अथवा सिनेमा
वर्तमान समय में शिक्षण का सबसे सस्ता और सर्वसुलभ साधन है,
जिसके माध्यम से कई अनुसन्धानात्मक जानकारी छात्रों तक पहुँचाई
जाती है।
टेलीविजन
20वीं शताब्दी में वैज्ञानिक और सबसे लोकप्रिय साधनों में टेलीविजन
का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसमें शिक्षक चाहे तो स्वयं अपनी पाठ
योजना तैयार कर टेप कर सकता है। योग्य शिक्षकों को पढ़ाने की शैली
आदि को अपने अध्यापन के लिए प्रयोग कर सकता है। इसके लिए
अतिरिक्त बाल सभा, प्रश्नोत्तर प्रतियोगिताएँ, जैसे कई कार्यक्रमों का
प्रसारण टेलीविजन में किया जाता है।
नाटक
नाटक (Theatre) दृश्य एवं श्रव्य दोनों प्रकार की विधा है। नाटक को
रंगमंच पर अभिनीत कर पाठकों, दर्शकों व अनपढ़ या जनसाधारण के
लिए भी ग्राह्य एवं सम्प्रेषणीय बनाया जा सकता है। छात्रों को नाटक
देखने के पश्चात् हाव-भाव, भाषा में उतार-चढ़ाव, संवाद अदायगी,
शुद्ध उच्चारण की शिक्षा प्राप्त होगी।
8.1.11 अन्य शिक्षक सहायक सामग्री
भ्रमण
इसे सरस्वती यात्रा भी कहते हैं। ये पुस्तक के बाहर की दुनिया का व्यावहारिक
ज्ञान प्रदान करती है जहाँ छात्र वस्तुओं को प्रत्यक्ष देख–समझकर उसका ज्ञान
अर्जन करते हैं, उसके सम्बन्ध में स्वतन्त्र विचार प्रस्तुत करने की स्थिति में होते
है, जैसे–पाठ्य-पुस्तक में निर्धारित पर्यावरण, डाकघर, बैंक, मेला जैसे पाठों
के अध्ययन के लिए यह विधि बेहद उपयोगी है।
फ्लैश कार्ड
यह सामग्री प्रायः छोटी कक्षाओं के लिए ज्यादा उपयुक्त है, जिसमें कार्ड के
मध्यम से शब्द चित्र को जोड़ना, मात्राओं आदि के लिए कार्ड तैयार किए जा
सकते हैं।
भाषा खेल
भाषा संबंधी खलों को उपयोग भाषा शिक्षक के लिए बेहद लाभकारी होता है।
यह कक्षा के वातावरण को रोचक व उत्साहवर्धक बनाए रखता है। इसलिए उसे
समय-समय पर खेल गतिविधियाँ करानी चाहिए; जैसे― छात्रों को दो भागों में
विभाजित कर उनसे दोहों, कविताओं को लेकर अन्त्याक्षरी, वाद-विवाद, भाषण,
कविता पाठ, पहेली, नाटक आदि बुलवाई जाएँ।
8.2 भाषा शिक्षण में पाठ्य-पुस्तक का
महत्त्व
राठ्य-पुस्तकों का निर्माण पाठ्यक्रम में निर्धारित किए गए शैक्षिक उद्देश्यों की
प्राप्ति के लिए किया जाता है। पाठ्य-पुस्तकें विद्यार्थियों के लिए ज्ञान का प्रमुख
एवं आधारभूत साधन होती हैं, जिनका अध्ययन कर छात्र अपने ज्ञान में वृद्धि
करते हैं। भाषा शिक्षण में पाठ्य-पुस्तकों का महत्त्व निम्न प्रकार है
• पाठ्य-पुस्तकें विद्यार्थी के भाषायी कौशलों श्रवण, वाचन, पठन और लेखन
में निपुणता प्राप्त करने में सहायक होती हैं।
• पाठ्य-पुस्तकें विद्यार्थी में स्व-अध्ययन के गुण को विकसित करने में
सहायक होती हैं।
• पाठ्य-पुस्तकें पाठ्यक्रम को व्यवस्थित एवं सुचारु रूप से चलाने में सहायक
होती हैं।
• पाठ्य-पुस्तकें विद्यार्थियों में शिक्षा के प्रति रुचि उत्पन्न करने में सहायक
होती है।
• पाठ्य-पुस्तकें परीक्षणों के निर्माण में सहायक होती हैं।
8.2.1 अच्छी पाठ्य-पुस्तक के गुण
• एक अच्छी पाठ्य-पुस्तक में सम्पूर्ण पाठ्यक्रम व्यवस्थित ढंग से
संगृहीत होता है।
• एक अच्छी पाठ्य-पुस्तक में संकलित अध्याय विद्यार्थियों की आयु,
मानसिक एवं बौद्धिक अवस्था के अनुसार होना चाहिए।
• एक अच्छी पाठ्य-पुस्तक विद्यार्थियों में ज्ञान प्राप्ति के लिए जिज्ञासा
उत्पन्न करने वाली होनी चाहिए।
• पाठ्य-पुस्तक की भाषा सरल एवं स्पष्ट तथा छात्रों की योग्यता के
अनुसार होनी चाहिए।
• भाषा की एक अच्छी पाठ्य-पुस्तक में साहित्य की विभिन्न विधाओं;
यथा-कहानी, कविता, नाटक, निबन्ध इत्यादि का समावेश होना
चाहिए।
8.2.2 बाल साहित्य एवं उसका महत्त्व
बाल साहित्य बच्चों की आयु, उनके मानसिक स्तर, रुचि इत्यादि को ध्यान
में रखकर लिखा जाता है, इसमें जातक कथाएँ, कविताएँ इत्यादि का
समायोजन होता है। बाल साहित्य विद्यार्थियों के जीवन एवं भाषा शिक्षण में
निम्नलिखित कारणों से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है–
• बाल साहित्य बच्चों के मानसिक विकास में सहायक होता है। बाल
साहित्य बच्चों की कल्पनाशक्ति में वृद्धि करने में सहायक होता है।
• बाल साहित्य रुचिकर होने के कारण विद्यार्थियों के भाषायी कौशलों के
विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
• बाल साहित्य विद्यार्थियों में पठन कौशल का तीव्रता से विकास करने में
सहायक होता है।
• बाल साहित्य बच्चों के शब्द कोश में वृद्धि करने में सहायक होता है
• बाल साहित्य बच्चों को विभिन्न विधाओं से परिचित करवाने के साथ
ही भाषा की बारीकियों से अवगत करवाता है।
                                          अभ्यास प्रश्न
1. कक्षा 4 में भाषा की अध्यापिका विद्यार्थियों
को पढ़ाते समय चलचित्रों का उपयोग
करती है, इसके पीछे उसका उद्देश्य है
(1) विद्यार्थियों के समक्ष तथ्यों को रोचकता के
साथ प्रस्तुत करना
(2) विद्याथियों को चलचित्र दिखना
(3) विद्यार्थियों को चलचित्र के विषय में बताना
(4) उपरोक्त सभी
2. शिक्षण सहायक सामग्री का/के लाभ है/है
(1) इससे पाठ अधिक सरल, रोचक तथा
मनोरंजक बन जाता है
(2) इसके प्रयोग से बालकों में पाठ के प्रति रुचि
का विकास होता है
(3) इसके प्रयोग से शिक्षण में कुशलता आती है
(4) उपरोक्त सभी
3. शिक्षण सहायक सामग्री
(1) ज्ञान को स्थायित्व प्रदान करते हैं
(2) शिक्षण शैली में रोचकता उत्पन्न करते हैं
(3) भाषा सम्बन्धी कठिनाइयों को दूर करते हैं
(4) उपरोक्त सभी
4. शिक्षण सहायक सामग्रियाँ
(1) विद्यार्थी के लिए लाभकारी होती
(2) अध्यापक के लिए लाभकारी होती हैं।
(3) दोनों के लिए लाभकारी होती
(4) शिक्षण प्रक्रिया को जटिल करती हैं
5. शिक्षण सहायक सामग्री नहीं है
(1) विज्ञान
(2) कम्प्यूटर
(3) चित्र
(4) प्रक्षेपक
6. शिक्षक द्वारा कक्षा में नाटक कराने का
उद्देश्य है
(1) नाटक विधा से परिचित कराना
(2) विद्यार्थियों को रंगमंच से अवगत कराना
(3) रोचकता के साथ विषय-वस्तु को समझाना
(4) उपरोक्त सभी
7. श्रव्य शिक्षण सहायक सामग्री का साधन
नहीं है
(1) रेडियो
(2) भ्रमण
(3) टेलीफोन
(4) ग्रामोफोन
8. भाषा-शिक्षण के सन्दर्भ में निम्नलिखित में
से कौन-सी पाठ्य-पुस्तकों की उपयोगिता
है?
(1) ज्ञान-प्राप्ति के लिए पुस्तकें सर्व सुलभ एवं
मितव्ययी साधन है
(2) पुस्तकें अर्जित ज्ञान का स्थायीकरण है
(3) छात्र व शिक्षक दोनों को ही पुस्तकों के माध्यम
से पाठ्यक्रम का ज्ञान रहता है
(4) उपरोक्त सभी
9. भाषा शिक्षण के सन्दर्भ में निम्नलिखित में
से कौन-सी पाठ्य-पुस्तकों की
उपयोगिता है?
(1) पाठ्य-पुस्तकें शिक्षक का मार्गदर्शन करती हैं
(2) पुस्तकें ज्ञान-प्राप्ति का सशक्त साधन हैं,
पुस्तकों के सहारे व्यक्ति बिना गुरु के भी
अपना ज्ञानार्जन कर सकता है
(3) पुस्तकें मौलिक चिन्तन की सशक्त पृष्ठभूमि
तैयार करती हैं
(4) उपरोक्त सभी
10. भाषा की पाठ्य-पुस्तक में ऐसे पाठ रखे
जाएँ जो
(1) केवल व्याकरणिक नियमों का ही अभ्यास
कराते हों
(2) अत्यन्त छोटे हों
(3) सरल भाषा से युक्त हों
(4) बच्चों के परिवेश से जुड़े हों
11. श्रव्य-दृश्य साधनों के प्रयोग का तर्काधार
इस तथ्य पर आधारित है कि
(1) इससे अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया सुगम हो
जाती है
(2) इससे अधिगम स्थूल हो जाता है
(3) इससे हमारी दोनों इन्द्रियों सक्रिय हैं
(4) यह मात्र किसी चीज को करने का दूसरा
तरीका है
12. दृश्य-श्रव्य सामग्री कैसी नहीं होनी चाहिए?
(1) जो शिक्षण के उद्देश्य की प्राप्ति में सहायता दे
(2) सुन्दर तथा आकर्षक
(3) बालक को विचलित करने वाली
(4) बालकों की रुचि को बढ़ाने वाली
13. पाठ्यचर्या सहगामी क्रियाएँ; जैसे-गीत,
संवाद, अन्त्याक्षरी, भाषण, वाद-विवाद
आदि में सहायक है।
(1) भाषा और साहित्य को समझने
(2) अधिक अंक प्राप्त करने
(3) समय और श्रम की बचत करने
(4) शिक्षक के कार्य भार को कम करने
14. पाठ्य-पुस्तक भाषा शिक्षण में मुख्यत: क्या
सहायता करती है?
(1) व्याकरणिक नियम कण्ठस्थ कराती है
(2) भाषा की विभिन्न छटाएँ प्रस्तुत करती है
(3) बच्चों का आकलन करती है
(4) बच्चों को विभिन्न पर्वो की जानकारी देती है
15. भाषा की पाठ्य-पुस्तक के लिए पाठों का
चयन करते समय क्या सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण है?
(1) पाठों की संख्या
(2) प्रसिद्ध लेखकों की रचनाएँ
(3) ऐसे पाठ जो बच्चों के संवेदना लोक के साथी
बन सकें
(4) ऐसे पाठ जो अलंकारिक भाषा से युक्त हों
16. भाषा की कक्षा में समाचार-पत्र-पत्रिकाओं
का उपयोग यह सुनिश्चित करता है कि
(1) बच्चों की भाषा पर समाचार-पत्र-पत्रिकाओं का
प्रभाव पड़े
(2) बच्चों को मुख्य शीर्षक याद है
(3) बच्चे प्रमाणित लेख, समाचार आदि पर अपनी
प्रतिक्रिया देने की क्षमता रखते हैं
(4) शिक्षण सामग्री का उपयोग हो रहा है
17. बच्चों को बाल साहित्य उपलब्ध कराने से
क्या लाभ है?
(1) बच्चों को विविधतापूर्ण भाषिक सामग्री पढ़ने के
अवसर देना
(2) पात्रों का चरित्र-चित्रण करने की कुशलता का
विकास
(3) श्रवण-कौशल का विकास
(4) लेखकों से परिचय
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
18. भाषा-शिक्षण में पाठ्य-पुस्तक
                                        [CTET June 2011]
(1) अनावश्यक है
(2) एकमात्र संसाधन है
(3) साध्य है
(4) साधन है
19. पाठ में दिए गए चित्रों का क्या उद्देश्य
होता है?                                   [CTET June 2011]
(1) चित्र अमूर्त संकल्पनाओं को समझने में
सहायता करते हैं
(2) चित्रों से पाठ्य-पुस्तक आकर्षक बनती है
(3) चित्र पाठ की शोभा बढ़ाते हैं
(4) पाठ्य-पुस्तक में चित्र देने का प्रचलन है
20. प्राथमिक स्तर पर भाषा की पाठ्य-पुस्तकों
में किस तरह की रचनाओं को स्थान दिया
जाना चाहिए?
(1) केवल कहानियाँ अथवा कविताएँ
(2) विदेशी साहित्य की रचनाएँ
(3) ऐसी रचनाएँ जो बच्चों के परिवेश से जुड़ी हो
और जिनमें भाषा की अलग-अलग छटाएँ हो
(4) जो प्रत्यक्ष रूप से मूल्यों पर आधारित हो
21. भाषा की पाठ्य-पुस्तक का निर्माण करते
समय सबसे कम महत्त्वपूर्ण बिन्दु है
(1) भाषा की विभिन्न छटाएँ
(2) अभ्यासों में वैविध्य
(3) पाठों की संख्या
(4) विषय-वस्तु में वैविध्य
22. भाषा की पाठ्य-पुस्तके         [CTET Nov 2012]
(1) भाषा सीखने का एकमात्र संस्थान है
(2) अभ्यासपरक भी होनी चाहिए
(3) साधन हैं
(4) साध्य है
23. पत्र-पत्रिकाएँ भाषा सीखने में
                                            [CTET Nov 2012]
(1) त्रुटियों को बढ़ावा देती हैं
(2) बड़ों के पढ़ने की वस्तु हैं
(3) साधक हैं
(4) बाधक हैं
24. भाषा-कक्षा में विभिन्न दृश्य-श्रव्य साधनों
के उपयोग का उद्देश्य नहीं है
                                      [CTET July 2013]
(1) आधुनिक तकनीक को कक्षा में लाना
(2) सभी प्रकार के बच्चों की आवश्यकताओं का
ध्यान रखना
(3) सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को रुचिकर बनाना
(4) विद्यालय-प्रमुख के निर्देशों का पालन करना
25. पाठ्य-पुस्तक की भाषा            [CTET July 2013]
(1) बच्चों के घर व समुदाय की भाषा से
मिलती-जुलती होनी चाहिए
(2) तत्सम प्रधान होनी चाहिए
(3) तद्भव प्रधान होनी चाहिए
(4) अधिकाधिक कठिन शब्दों से युक्त होनी चाहिए
26. हिन्दी प्रयोग के विविध रूपों को जानने के
लिए सर्वाधिक उपयोगी साधन हो सकता है
                                                  [CTET July 2013]
(1) बाल साहित्य का विविध उपयोग
(2) शिक्षण की विधियों का सम्पूर्ण ज्ञान
(3) सुन्दर ढंग से छपी पुस्तकें
(4) उच्चस्तरीय लेखन सामग्री
27. प्राथमिक कक्षाओं में ‘रोल प्ले’ (भूमिका
निर्वाह) का उद्देश्य होना चाहिए
                                            [CTET July 2013]
(1) बच्चों को अभिनय सिखाना
(2) एक पद्धति के रूप में इसका उपयोग करना
(3) विभिन्न सन्दर्भो में भाषा प्रयोग के अवसर
प्रदान करना
(4) बच्चों को अनुशासित रखना
28. प्राथमिक स्तर पर बच्चों के लिए
बाल-साहित्य के चयन का मुख्य आधार
क्या होना चाहिए?                [CTET Feb 2014]
(1) छोटी रचनाएँ
(2) रोचक विषय-वस्तु
(3) रंगीन चित्र
(4) सरल जानकारी
29. एक समावेशी कक्षा में भाषा-शिक्षक को
किस बिंदु का सबसे अधिक ध्यान रखना
चाहिए?                        [CTET Sept 2014]
(1) सभी बच्चों को समान रूप से गृहकार्य देना
(2) सभी बच्चों को समान गतिविधि में शामिल होने
के लिए प्रोत्साहित करना
(3) सभी बच्चों से समान अपेक्षाएँ रखना
(4) विविध प्रकार की दृश्य-श्रव्य सामग्री का
उपयोग करना
30. प्राथमिक स्तर की पाठ्य-पुस्तकों का निर्माण
करते समय आप किस बिन्दु पर विशेष
ध्यान देंगे?                    [CTET Sept 2014]
(1) प्रसिद्ध लेखकों की रचनाएँ शामिल हों
(2) हिन्दी भाषा के वैविध्यपूर्ण रूप शामिल हों
(3) उपदेशात्मक पाठ शामिल हो
(4) कहानियाँ अधिक-से-अधिक शामिल हों
31. भाषा की पाठ्य-पुस्तक में सबसे महत्त्वपूर्ण
पक्ष है                              [CTET Sept 2015]
(1) आकर्षक चित्र
(2) पाठों का उद्देश्यपूर्ण चयन
(3) अभ्यासों की बहुलता
(4) कागज की गुणवत्ता
                                             उत्तरमाला
1. (1) 2. (4) 3. (4) 4. (3) 5. (1) 6. (3) 7. (2) 8. (1) 9. (4) 10. (3)
11. (1) 12. (3) 13. (1) 14. (2) 15. (3) 16. (3) 17. (1) 18. (4) 19. (1)
20. (3) 21. (3) 22. (3) 23. (3) 24. (4) 25. (1) 26. (1) 27. (3) 28. (2)
29. (4) 30. (2) 31. (2)
                                                      ★★★

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