CTET

CTET Notes In Hindi | सामुदायिक गणित

CTET Notes In Hindi | सामुदायिक गणित

सामुदायिक गणित
                           Community Mathematics
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने से
यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2012 में 1 प्रश्न, 2013
में 1 प्रश्न, 2014 में 3 प्रश्न तथा वर्ष 2016 में 2 प्रश्न पूछे गए हैं।
इस अध्याय से CTET परीक्षा में पूछे गए प्रश्न मुख्यतः दृष्टिकोण
तथा क्रिया-कलाप से सम्बन्धित हैं।
4.1 सामुदायिक जीवन में गणित का महत्त्व
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा मानव जीवन एक-दूसरे के परस्पर सहयोग पर
निर्भर करता है। सामाजिक जीवन यापन करने के लिए गणित के ज्ञान की अत्यधिक
आवश्यकता होती है क्योकि समाज में भी लेन-देन, व्यापार, उद्योग आदि भी काफी
मात्रा में गणित पर ही निर्भर हैं।
एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना तथा समाज के विभिन्न अंगों को निकट लाने
में सहायक विभिन्न आविष्कारो, सामाजिक कठिनाइयो, आवश्यकताओं आदि में
सहायता देने में गणित का बहुत बड़ा योगदान है, क्योकि सभी वैज्ञानिक खोजों
का आधार गणित विषय ही है। आदर्श शिक्षा वही है जो बालक को प्रारम्भ से
ही समाज के लिए योग्य नागरिक बनाने में सहायता प्रदान करती है।
नेपोलियन ने गणित के सामाजिक महत्त्व को स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया
कि-“गणित की उन्नति तथा वृद्धि देश की सम्पन्नता से सम्बन्धित है।”
इस प्रकार समाज की उन्नति को उचित ढंग से समझने के लिए ही नहीं, बल्कि
समाज को आगे बढ़ाने में भी गणित की मुख्य भूमिका रही है।
वर्तमान में हमारी सामाजिक संरचना इतनी वैज्ञानिक एवं सुव्यवस्थित नजर आती
है, जिसका श्रेय भी गणित को ही जाता है। गणित के अभाव में सम्पूर्ण
सामाजिक व्यवस्था एवं संरचना का स्वरूप ही बदल जाएगा।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मानव का सामाजिक जीवन गणित पर निर्भर
करता है। गणित के जिस रूप का प्रयोग हम समाज में करते हैं वह स्वरूप
सामुदायिक गणित के रूप में उभर कर सामने आता है।
सामुदायिक जीवन के साथ गणित का सम्बन्ध निम्न रूप से स्पष्ट किया जा
सकता है
4.1.1 नैतिक मूल्य और गणित
नैतिकता एक ऐसा महत्त्वपूर्ण प्रत्यय है जो समय, व्यक्ति, परिस्थिति तथा
स्थान से सबसे अधिक प्रभावित है। गणित का ज्ञान बच्चों के चारित्रिक
एवं नैतिक विकास में सहायक है।
एक अच्छे चरित्रवान व्यक्ति में जितने गुण होने चाहिए, उनमें से
अधिकांश गुण गणित विषय के अध्ययन से विकसित होते हैं। गणित पढ़ने
से बच्चों में स्वच्छता, यथार्थता, समय की पाबन्दी, सच्चाई,
ईमानदारी, न्यायप्रियता, कर्तव्यनिष्ठा, आत्म-नियन्त्रण, आत्म-निर्भरता,
आत्म-सम्मान, आत्म-विश्वास, धैर्य, नियमों पर अडिग रहने की शक्ति,
दूसरों की बात को सुनना एवं सम्मान देना, अच्छा-बुरा सोचने की शक्ति
आदि गुणों का विकास स्वयं ही हो जाता है।
इस प्रकार गणित के अध्ययन से चरित्र-निर्माण तथा नैतिक उत्थान में भी
सहायता मिलती है। गणित का प्रशिक्षण लेने वाले का स्वभाव स्वयं ही
ऐसा हो जाता है कि उसके मन से ईर्ष्या, घृणा इत्यादि स्वतः ही निकल
जाते है।
गणित के नैतिक मूल्य के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए महान् दार्शनिक
डटन ने कहा कि “गणित तर्क सम्मत विचार, यथार्थ कथन तथा सत्य
बोलने की सामर्थ्य प्रदान करता है। व्यर्थ गप्पे, आडम्बर, धोखा तथा
छल-कपट सब कुछ उस मन का कहना है, जिसको गणित का प्रशिक्षण
नहीं दिया गया है।” इस प्रकार गणित ही एकमात्र ऐसा विषय है जो
वास्तविक रूप में बच्चों को अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण रखने का
अभ्यास कराता है तथा उच्च प्रशिक्षण प्रदान करता है।
4.1.2 सांस्कृतिक मूल्य और गणित
किसी राष्ट्र या समाज की संस्कृति की अपनी कुछ अलग ही विशेषताएँ
होती है। प्रत्येक समाज या राष्ट्र की संस्कृति का अनुमान उस राष्ट्र या
समाज के निवासियों के रीति-रिवाज, खान-पान, रहन-सहन, कलात्मक
उन्नति, आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक आदि पहलुओं के द्वारा हो
जाता है। गणित का इतिहास विभिन्न राष्ट्रों की संस्कृति का चित्र प्रस्तुत
करता है। प्रसिद्ध गणितज्ञ हॉगवेन ने लिखा है कि “गणित सभ्यता और
संस्कृति का दर्पण है।”
गणित हमें केवल संस्कृति एवं सभ्यता से ही परिचित नहीं कराता है,
बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित, उन्नत एवं उसे भविष्य में आने
वाली पीढ़ी तक हस्तान्तरित करने में भी सहायता प्रदान करता है।
गणित विषय को संस्कृति एवं सभ्यता का सृजनकर्ता एवं पोषक माना
जाता है। रस, छन्द, अलंकार, संगीत के सभी साज-सामान, चित्रकला
और मूर्तिकला आदि सभी अप्रत्यक्ष रूप से गणित के ज्ञान पर ही निर्भर
होते हैं। संस्कृति किसी भी राष्ट्र के जीवन-दर्शन का प्रतिबिम्ब होती है।
जीवन के प्रति दृष्टिकोण जीवन पद्धति को प्रभावित करता है,
जिसके परिणामस्वरूप हमारा जीवन-दर्शन प्रभावित होता है। इस प्रकार
नये-नये आविष्कारों से हमारे जीने का ढंग, सभ्यता एवं संस्कृति में
निरन्तर परिवर्तन होता रहता है।
4.1.3 जीविकोपार्जन सम्बन्धी मूल्य और गणित
शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य बालकों को अपनी जीविका कमाने तथा
रोजगार प्राप्त करने में समर्थ बना देना भी है। अन्य विषयों की अपेक्षा
गणित इस उद्देश्य की प्राप्ति में सर्वाधिक सहायक सिद्ध हुआ है।
आज वैज्ञानिक तथा तकनीकी समय में विज्ञान के सूक्ष्मतम नियमों,
सिद्धान्तों एवं उपकरणों का प्रयोग एवं प्रसार सर्वव्यापी हो गया है
जिनकी आधार-शिला गणित ही है। वर्तमान समय में इंजीनियरिंग तथा
तकनीकी व्यवसायों को अधिक महत्त्वपूर्ण तथा प्रतिष्ठित माना जाता है।
इन सभी व्यवसायों का ज्ञान एवं प्रशिक्षण गणित के द्वारा ही सम्भव है।
लघु एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना का आधार भी गणित ही है। अत:
यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जीविका कमाने के
लिए गणित के ज्ञान की आवश्यकता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अवश्य
ही होती है, तभी वह अपना जीवन-यापन कर सकता है तथा अपने
जीवन को सरल बना सकता है।
4.1.4 मनोवैज्ञानिक मूल्य और गणित
गणित की शिक्षा मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी उपयोगी है। गणित के
अध्ययन से बालकों की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।
गणित में क्रियाओं तथा अभ्यास कार्य पर अधिक बल दिया जाता है।
जिसके कारण गणित का ज्ञान अधिक स्थायी हो जाता है।
गणित का शिक्षण मनोविज्ञान के विभिन्न नियमों एवं सिद्धान्तों का
अनुसरण करता है। उदाहरण के लिए गणित में छात्र करके सीखना,
अनुभवों द्वारा सीखना तथा समस्या समाधान आदि महत्त्वपूर्ण
मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर ज्ञान प्राप्त करता है।
गणित शिक्षण द्वारा बालकों की जिज्ञासा, रचनात्मक प्रवृत्तियाँ,
आत्म-तुष्टि तथा आत्म-प्रकाशन आदि मानसिक भावनाओं की तृप्ति
तथा सन्तुष्टि होती है।
4.1.5 वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सम्बन्धित मूल्य और गणित
गणित का अध्ययन करने से बच्चों को समस्याओं का सामना करने के लिए एक
विशेष प्रकार की विधि का प्रशिक्षण मिलता है जिससे छात्र नियमित रूप से अपना
कार्य करते हैं, जिसे हम वैज्ञानिक ढंग कहते हैं। सामान्यत: गणित की समस्या को
वैज्ञानिक ढंग से हल करने के लिए निम्न पदों का प्रयोग किया जाता है
• समस्या क्या है?
• क्या ज्ञात करना है तथा उसके उद्देश्य क्या है?
• समस्या पर चिन्तन करना।
• प्राप्त परिणामों की अन्य परिस्थितियों में जाँच करना।
• जो परिणाम सही सिद्ध हों, उन्हें नियम मान लेना।
4.1.6 समाज और गणित
समाज के प्रत्येक व्यक्ति को गणित के ज्ञान की आवश्यकता होती है। चाहे वह
व्यक्ति सामाजिक दृष्टि से उपेक्षित हो अथवा महत्त्वपूर्ण। ऐसा नहीं है कि गणित
के ज्ञान की आवश्यकता केवल इंजीनियर, उद्योगपति, बैंककर्मी, डॉक्टर, गणित
अध्यापक अथवा अन्य वित्तीय संस्थानों तथा व्यवसायों से सम्बन्धित व्यक्तियों को
ही होती है; बल्कि समाज के छोटे-से-छोटे व्यक्ति जैसे-मजदूर, रिक्शा चालक,
बोझा ढोने वाला कुली, फुटपाथ पर सामान बेचने वाला दुकानदार, सब्जी बेचने
वाला, बढ़ई, मोची आदि अन्य सभी व्यक्तियों को अपनी रोजी-रोटी कमाने तथा
अपने परिवार की देखभाल करने के लिए भी गणित की आवश्यकता पड़ती है।
इस प्रकार सार रूप में यह कहा जा सकता है कि हमारे समाज में प्रत्येक व्यक्ति
जो अपनी जीविका कमाता है तथा आय-व्यय करता है उसे किसी न किसी रूप
में गणित के ज्ञान की आवश्यकता होती है। इस सम्बन्ध में यंग महोदय का कथन
सत्य ही प्रतीत होता है कि “लौह, वाष्प और विद्युत के इस युग में जिस ओर भी
मुड़कर देखें, गणित ही सर्वोपरि है। यदि रीढ़ की हड्डी’ निकाल दी जाए तो
हमारी भौतिक सभ्यता का ही अन्त हो जाएगा।”
                                               अभ्यास प्रश्न
1. अंकगणित शिक्षण का उद्देश्य है
(1) दैनिक जीवन के कार्य हेतु
(2) मजदूरी एवं व्यवसाय हेतु
(3) व्यावहारिक उपयोग हेतु
(4) उपरोक्त सभी
2. गणित की सर्वप्रथम विकसित शाखा है
(1) अंकगणित
(2) बीजगणित
(3) सांख्यिकी
(4) ज्यामिति
3. मनुष्य के जीवन की जिन गतिविधियों में
गणित का सर्वाधिक प्रयोग होता है, वह
(1) मनोवैज्ञानिक
(2) सांस्कृतिक
(3) सामाजिक
(4) आर्थिक
4. गणित का सामुदायिक महत्त्व है।
(1) नैतिक दृष्टि से
(2) सामाजिक दृष्टि से
(3) सांस्कृतिक दृष्टि से
(4) उपरोक्त सभी
5. गणितीय पदों को परिभाषित करने का
सामुदायिक उद्देश्य है
(1) ज्ञानात्मक
(2) भावात्मक
(3) व्यवहारगत
(4) क्रियात्मक
6. “गणित एक विज्ञान है जिसकी सहायता से
आवश्यक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।” यह
कथन है
(1) न्यूटन का
(2) पियर्स का
(3) आइन्स्टीन का
(4) आर्यभट्ट का
7. निम्न में से कौन गणित का प्रयोग नहीं कर
रहा है?
(1) सीता सब्जी वाले से सब्जी खरीद रही है
(2) रमन अपने पिता की दुकान का बहीखाता जाँच
रहा है
(3) राहुल खेत में अपने चाचा के साथ काम कर रहा है
(4) सुनीता धूप में सूख रहे कपड़ों को गिन रही है
8. गणित का ज्ञान समाज में जीने के लिए
प्रत्येक को होना आवश्यक माना जाता है,
क्योंकि
(1) गणित शिक्षण व्यवहारगत होता है
(2) बहुत-सी सामाजिक क्रियाएँ गणित पर निर्भर
होती हैं
(3) गणित व्यक्ति में तर्कात्मक कौशल का विकास
करता है
(4) उपरोक्त सभी
9. गणित की समाज में आवश्यकता
होती है
(1) लेन-देन में
(2) व्यापार व उद्योग में
(3) ‘1 एवं 2’
(4) इनमें से कोई नहीं
10. “गणित की उन्नति और वृद्धि देश
की सम्पन्नता से सम्बन्धित है” निम्न
में से किसका कथन है?
(1) स्किनर
(2) नेपोलियन
(3) जीन पियाजे
(4) इनमें से कोई नहीं
11. सामुदायिक गणित अन्त:निहित
होता है
(1) त्रिकोणमिति में
(2) अंकगणित में
(3) समाकलन गणित में
(4) अवकलन गणित में
12. विद्यालयी पाठ्यक्रम में गणित का
महत्त्व होता है
(1) बच्चों को सामाजिक गतिविधियों में
सक्रिय भूमिका निभाने में सक्षम बनाना
(2) बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास
करना
(3) बच्चों के बौद्धिक स्तर का विकास
करना
(4) उपरोक्त सभी
13. गणित शिक्षण का महत्त्व है
(1) विज्ञान में
(2) समुदाय में
(3) सिद्धान्त एवं तर्क में
(4) उपरोक्त सभी
14. आदर्श शिक्षा वह है जो बालक को
के लिए योग्य नागरिक बनाने में
सहायता प्रदान करती है।
(1) पाठ्य-पुस्तक
(2) समाज
(3) सहायक सामग्री
(4) उपरोक्त सभी
15. “गणित तर्क संगत, यथार्थ कथन
तथा सत्य बोलने की सामर्थ्य प्रदान
करता है” निम्न में से किसका कथन
है?
(1) स्किनर
(2) गप्पे
(3) उटन
(4) पियाजे
                                विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
16. कक्षा v के विद्यार्थियों को समतल आकृतियों के
क्षेत्रफलों की संकल्पना से किसके द्वारा परिचित कराया
जा सकता है?                     [CTET Jan 2012]
(1) विभिन्न वस्तुओं जैसे हथेली, पत्ती, पेन्सिल, आदि की
सहायता से किसी भी आकृति के क्षेत्रफल को मापना
(2) आयत की लम्बाई और चौड़ाई का पता लगाते हुए और
आगन के क्षेत्रफल के सूत्र का प्रयोग करके आयत के
क्षेत्रफल की गणना करना
(3) आयत और वर्ग के क्षेत्रफल का सूत्र बताना
(4) इकाई वर्गों के गणन की सहायता से आकृतियों के
क्षेत्रफल की गणना करना
17. एक शिक्षक शिक्षार्थियों को ‘दैनिक जीवन में गणित
का अनुप्रयोग’ विषय के साथ गणितीय जरनल
(पत्रिका) तैयार करने के लिए बढ़ावा देता है। यह
गतिविधि है                         [CTET July 2013]
(1) गणितीय संकल्पनाओं और उनके अनुप्रयोगों में सम्बन्ध
बैठाने और अपने ज्ञान तथा विचारों को साझा करने में
शिक्षार्थियों की सहायता करना
(2) शिक्षार्थियों की गणितीय संकल्पनाओं की परीक्षा करना
(3) अपने ज्ञान और समझ को साझा करने के लिए
शिक्षार्थियों को अवसर उपलब्ध कराना
(4) गणित की समझ में शिक्षार्थियों की सहायता करना
18. प्राथमिक स्तर पर टेनग्राम, बिन्दु के खेल, प्रतिरूप
इत्यादि का प्रयोग विद्यार्थियों की सहायता करते हैं
                                                 [CTET Feb 2014]
(1) मूलभूत संक्रियाओं को समझने में
(2) स्थानिक समझ की योग्यता में वृद्धि के लिए
(3) संख्याओं की तुलना का बोध विकसित करने में
(4) परिकलन कौशलों के संवर्धन में
19. एक शिक्षक कक्षा III में निम्नलिखित कार्यों का
वितरण करता है और बच्चों को समान आकृतियों
का मिलान करने के लिए कहता है।     [CTET Sept 2014]
ph
इस खेल का उद्देश्य है
(1) क्या-कक्षा के वातावरण को व्यक्त और आनन्ददायक
बनाना
(2) विभिन्न अभिविन्यासों में समान आकृतियों
की पहचान करने में बच्चों की मदद करना
(3) आँख-हाथ के समन्वय को बढ़ाना
(4) समानता और सर्वांगसमता की अवधारणा
विकसित करना
20. कक्षा V में गणित के पीरियड में यह
वाद-विवाद रखा गया “शून्य सबसे
अधिक प्रभावशाली संख्या है।” यह
क्रियाकलाप बच्चे को प्रोत्साहित करता है
                                   [CTET Sept 2014]
(1) विश्लेषण और सम्प्रेषण में
(2) वे संख्याएँ लिखने में, जिनमें शून्य हो
(3) वे समस्याएँ हल करने में, जिन संख्याओं के
अन्त में शून्य हो
(4) मित्रों को सहयोग देने में
21. एक दिए हुए आयत और
समान्तर-चतुर्भुज का क्षेत्रफल समान है,
परन्तु कक्षा IV के अनेक शिक्षार्थियों ने
उत्तर दिया कि समान्तर-चतुर्भुज का
क्षेत्रफल अधिक है। शिक्षक, शिक्षार्थियों
को यह समझने में किस प्रकार सहायता
कर सकता है कि दोनों के क्षेत्रफल
समान है?                  [CTET Sept 2016]
(1) कागज मोड़ने के प्रयोग से
(2) पैमाने के प्रयोग से
(3) जियोबोर्ड के प्रयोग से
(4) आलेख (ग्राफ) पेपर के प्रयोग से
22. गणितीय खेल और पहेलियाँ मदद करते हैं
(A) गणित के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति
को विकसित करने में
(B) गणित और प्रतिदिन के विचारों में
सम्बन्धन स्थापित करने में
(C) गणित को आनन्ददायक बनाने में
(D) समस्या समाधान के कौशल को
प्रोत्साहित करने में
सही विकल्प का चयन कीजिए।
                                   [CTET Sept 2016]
(1) A.B और C
(3) A और B
(2) A,B,C और D
(4) A और D
                                              उत्तरमाला
1.(4) 2. (1) 3. (4) 4. (4) 5. (3) 6. (2) 7. (3) 8. (4) 9. (3) 10. (2)
11. (2) 12. (4) 13. (4) 14. (2) 15. (3) 16. (1) 17.(1) 18. (2)
19. (2) 20. (1) 21. (4) 22. (3)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *