CTET Notes In Hindi | गणित में मूल्यांकन
CTET Notes In Hindi | गणित में मूल्यांकन
गणित में मूल्यांकन
Evaluation in Mathematics
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने से
यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 2 प्रश्न, 2012
में 6 प्रश्न, 2013 में 4 प्रश्न, 2014 में 9 प्रश्न, 2015 में 7 प्रश्न
तथा वर्ष 2016 में 4 प्रश्न पूछे गए हैं। इस अध्याय से CTET
परीक्षा में प्रतिपुष्टि, संक्रियाओं, व्यवकलन तथा अवकलन की
अवधारणा पर आधारित प्रश्न पूछे गए हैं।
5.1 मूल्यांकन का अर्थ
मूल्यांकन (Evaluation) एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम यह जानने का
प्रयास करते है कि कक्षा अध्यापक द्वारा उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हुई
है, अर्थात् अध्यापक यह देखना चाहता है कि उसके विद्यार्थियों ने प्राप्त ज्ञान को
किस सीमा तक समझा है, उनकी रुचि तथा व्यवहार में कहाँ तक परिवर्तन हुआ
है. उनकी गणित के प्रति अभिरुचि कितनी है, उनकी बुद्धि का स्तर क्या है
आदि-आदि। यह सब मिलाकर ही मूल्यांकन की प्रक्रिया पूर्ण समझी जाती है।
इस प्रकार शिक्षा में मूल्यांकन से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसमें अध्यापक एक
छात्र की शैक्षिक उपलब्धि (Educational Achievement) का पता लगाता है।
कोठारी आयोग ने अपने प्रतिवेदन में स्पष्ट किया है कि-“मूल्यांकन एक
सतत् प्रक्रिया है तथा शिक्षा की सम्पूर्ण प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। यह शिक्षा
के उद्देश्यों से पूर्णरूप से सम्बन्धित है। मूल्यांकन के द्वारा शैक्षिक उपलब्धि
की ही जाँच नहीं की जाती बल्कि उसके सुधार में भी सहायता मिलती है।”
5.1.1 मूल्यांकन से सम्बन्धित प्रमुख परिभाषाएँ
मूल्यांकन का अर्थ व्यापक होता है फिर भी कुछ मनोवैज्ञानिको ने इसके अर्थ
को कुछ शब्दो में समेटकर बताने का प्रयास किया है। इससे सम्बन्धित कुछ
परिभाषाएँ निम्नवत् है
दिवलेन व हन्ना के मतानुसार, “विद्यालय द्वारा बालक के व्यवहार में लाए
गए परिवर्तनों के सम्बन्ध में प्रमाणो के संकलन और उनकी व्याख्या
करने की प्रक्रिया को मूल्यांकन कहते हैं।”
डान्डेकर के मतानुसार, “मूल्यांकन एक ऐसी क्रमबद्ध प्रक्रिया है जो हमे
यह बताती है कि बालक ने किस सीमा तक किन उद्देश्यों को प्राप्त
किया है।”
5.1.2 गणित शिक्षण में मूल्यांकन के उद्देश्य
गणित शिक्षण में मूल्यांकन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं
• पाठ्यक्रम में आवश्यक संशोधन करना।
• परीक्षा प्रणाली में सुधार करना।
• निर्देशन एवं परामर्श हेतु उचित अवसर प्रदान करना।
• अध्यापकों की कार्यकुशलता एवं सफलता का मापन करना।
• बालकों के व्यवहार-सम्बन्धी परिवर्तनों की जाँच करना।
• बालको की दुर्बलताओं तथा योग्यताओं की जानकारी प्रदान करने में
सहायता देना।
• नवीनतम् एवं प्रभावी शिक्षण विधियों एवं प्रविधियों की खोज करना।
• अनुदेशन की प्रभावशीलता का पता लगाना।
• प्रचलित शिक्षण विधियों तथा पाठ्य-पुस्तकों की जाँच करके उनमें
अपेक्षित सुधार करना।
5.2 मूल्यांकन की आधारभूत मान्यताएँ
प्रत्येक सिद्धान्त की भाँति मूल्यांकन में भी यदि हम कुछ स्वयं-सिद्धियों
(Axioms) को स्वीकार न करें अथवा कुछ को अन्य स्वयं-सिद्धियों द्वारा
प्रतिस्थापित न करें, तो मूल्यांकन का सम्पूर्ण स्वरूप ही बदल जाएगा।
मूल्यांकन की कुछ महत्त्वपूर्ण मान्यताएँ इस प्रकार हैं
• शैक्षिक उपलब्धि का एक अस्तित्व है और यह एक बहु-विमीय स्वरूप
(Multidimensional entity) है।
• शैक्षिक उपलब्धि ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो व्यक्ति में होती है या नहीं
होती है। यह एक अविरल (Continum) है और विभिन्न कोटि में
धारण की जा सकती है।
5.3 मूल्यांकन प्रक्रिया के सोपान
मूल्यांकन प्रक्रिया के मुख्य तीन सोपान निम्न है
1. शिक्षण उद्देश्यों का निर्धारण एवं परिभाषीकरण
(Formulation and Definition of Educational Objectives)
उद्देश्यों को निर्धारित करने से पूर्व बालक, समाज, विषय-वस्तु
की प्रकृति तथा शैक्षिक स्तर पर पूर्ण ध्यान दिया जाना चाहिए।
जिन उद्देश्यों की जाँच होनी है, उनकी परिभाषा दी जाए।
मूल्यांकन में यह आवश्यक है कि जिनका मूल्यांकन होता है,
उनको निश्चित करने तथा स्पष्ट करने को मूल्यांकन प्रक्रिया में
सदैव प्रधानता दी जाए।
2. अधिगम अनुभव की योजना बनाना (Planning Learning
Experiences) अधिगम-अनुभव से तात्पर्य एक ऐसी परिस्थिति के
निर्माण से है जिसके अन्तर्गत बालक वांछित क्रिया व्यक्त कर
सकता है। अत: अध्यापक को चाहिए कि वह कक्षा के अन्दर ऐसी
परिस्थितियों का निर्माण करे जिससे कक्षा का वातावरण एक
उद्दीपक (Stimulus) का कार्य करे।
इस बात का ध्यान रखा जाए कि अध्यापन स्थिति तथा सीखने की
स्थिति में सामंजस्य हो। कभी-कभी अध्यापक अपनी सुविधा के
लिए ऐसी अध्यापन स्थिति का चयन कर लेता है जो विद्यार्थियों के
दृष्टिकोण से उपयुक्त सीखने की स्थिति नहीं होती।
शिक्षण अनुभवों को उत्पन्न करते समय अध्यापक को निम्न बातों को
भी ध्यान में रखना चाहिए
• क्या अधिगम अनुभव (Learning Experiences) शैक्षणिक लक्ष्यों
से प्रत्यक्ष रूप में सम्बन्धित है?
• क्या ये अनुभव शिक्षार्थी के लिए सार्थक (Meaningful) तथा
सन्तोषप्रद है?
• क्या ये अनुभव विद्यार्थी की परिपक्वता (Maturity) के
अनुकूल है?
3. व्यवहार परिवर्तन के आधार पर मूल्यांकन करना (Evaluating
on the Basis of Behavioural Change) शिक्षा का अन्तिम
उद्देश्य बालक के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाना होता है। बालक
का व्यवहार उसके अस्तित्व के कई पक्षों से सम्बन्धित होता है। इसके
अन्तर्गत बाह्य तथा आन्तरिक दोनों ही प्रकार के व्यवहार आते हैं।
विद्यालय में पढ़ाए जाने वाले सभी विषय बालक के ज्ञानात्मक
(Cognitive), भावात्मक (Affective) तथा क्रियात्मक (Conative)
पक्षो का विकास करते हैं। उसके व्यवहार के ये तीन मुख्य अंग है जो
बाह्य तथा आन्तरिक दोनों ही रूपों में पाए जाते है। मापन के परिणामों
का प्रयोग मापन को साध्य न मानकर किसी साध्य के लिए साधन के
रूप में लेना चाहिए। इससे अध्यापक तथा अन्य अधिकारियों के लिए
यह आवश्यक हो जाता है कि वे छात्रों की शिक्षा में इसके परिणाम का
उचित सदुपयोग करे। बालको से सम्बन्धित आँकड़ों का आँख मूँदकर
एकत्रीकरण करने तथा उन्हें इस आशा से संचित करने में कि ये
भविष्य में कभी उपयोगी सिद्ध होगे, समय व प्रयास दोनों का दुरुपयोग
होता है। केवल परिणामों के सही प्रयोग द्वारा ही उपलब्धियों में सुधार
सम्भव है।
5.4 अच्छी परीक्षाओं के लक्षण
मूल्यांकन की दृष्टि से एक अच्छी परीक्षा में सामान्यत: निम्नलिखित गुण होने
चाहिए
1. विश्वसनीयता (Reliability) किसी परीक्षा के परिणाम समान
परिस्थितियो में एकसमान बने रहते हैं तो उस परीक्षा को विश्वसनीय
(Reliable) माना जाता है। इस प्रकार किसी परीक्षा की विश्वसनीयता
परीक्षा में न्यादर्श की मात्रा (Sample Size) तथा अंको की
वस्तुनिष्ठता (Objectivity in Scoring) पर निर्भर करती है।
इसी प्रकार, कोई प्रश्न तभी विश्वसनीय कहा जाएगा जब उसके उत्तर
विद्यार्थी की सही उपलब्धि अथवा स्तर का ज्ञान कराए अर्थात् परिणामी
अंक त्रुटियों की सम्भावना से मुक्त हो। त्रुटियों की सम्भावना प्रायः
निर्देशों को अस्पष्टता के कारण होती है। यह दो स्तरों पर हो सकती
है-प्रथम, जब विद्यार्थी प्रश्न का उत्तर दे रहा है और दूसरा, जब
परीक्षक उत्तर का मूल्यांकन कर रहा है।
2. वैधता (Validity) इसका आशय यह है कि यदि कोई परीक्षण वही
मापन करता है जिसके मापन के लिए इसका निर्माण हुआ है तो वह
परीक्षण वैध कहलाता है। इस प्रकार वैधता गुणक (Validity Index)
यह सूचित करता है कि किसी परीक्षण ने वस्तुत: उसी विशेषता का
मापन किस सीमा तक किया है जिसका मापन करने के लिए वह दावा
करता है।
उदाहरणार्थ, गणित की परीक्षा को तभी वैध कहेगे जबकि उसके द्वारा
हम गणित की योग्यता का ही मापन करें, इसके अतिरिक्त भाषा की
योग्यता, स्वच्छता अथवा सामान्य बुद्धि का नहीं।
Gulikson ने निश्चित शब्दों में वैधता को इस प्रकार व्यक्त किया है
“It is the correlation of the test with some criteria.”
किसी परीक्षण की भाँति कोई प्रश्न अपनी वैधता उसी सीमा तक खो
देता है जिस सीमा तक वह अपने उद्देश्य की पूर्ति में सफल नहीं
होता। कोई प्रश्न वैध नहीं कहलाएगा यदि वह पाठ्यक्रम से सम्बन्धित
न हो जैसे हम आमतौर पर कहते हैं कि यह पाठ्यक्रम के बाहर है
अथवा इसमें कुछ ऐसी अवांछित सामग्री है जिसके मापन का हमारा
उद्देश्य नहीं है।
3. वस्तुनिष्ठता (Objectivity) जिस परीक्षा पर परीक्षक का व्यक्तिगत
प्रभाव नहीं पड़ता है, वह परीक्षा वस्तुनिष्ठ कहलाती है। किसी भी
परीक्षण के लिए वस्तुनिष्ठ होना बहुत जरूरी है, क्योकि इसका
विश्वसनीयता व वैधता पर बहुत प्रभाव पड़ता है। एक बार स्कोरिंग
कुंजी (Scoring key) बन जाने पर यह प्रश्न ही नहीं उठना चाहिए कि
प्रश्न अस्पष्ट तो नहीं है या उसके उत्तर के बारे में ठीक से निर्णय नहीं
लिया जा सकता।
अब मूल्यांकन कोई भी करे छात्र को सदैव उतने ही अंक मिलने
चाहिए. इसी को वस्तुनिष्ठता (Objectivity) कहते हैं। निबन्धात्मक
परीक्षाओं (Essury Type) में यह बात नहीं होती। इसमें कापियों का
मूल्यांकन करते समय परीक्षक का व्यक्तिगत निर्णय अधिक महत्त्व
रखता है।
यही कारण है कि इन परीक्षाओं के स्थान पर हम नवीन परीक्षा प्रणाली
जिसे वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रणाली (Objective Type Test) कहा जाता
है, को अधिक प्रयोग में लाते हैं।
4. विभेदीकरण (Discrimination) विभेदीकरण से तात्पर्य परीक्षण के
उस गुण से है जिसके द्वारा पढ़ने में तेज, सामान्य एवं पिछड़े छात्रों के
मध्य काफी सीमा तक भेद किया जा सके। इसके द्वारा यह जाना जा
सकता है कि पूरे परीक्षण पर प्राप्तांको के आधार पर अधिकतम अंक
(Maximum Score) एवं न्यूनतम अंक (Minimum Score) पाने
वाले छात्रों को अलग करने में प्रत्येक प्रश्न का क्या योगदान रहा।
परीक्षण के आइटमों को विभेदीकरण क्षमता ज्ञात करने के लिए प्रत्येक
प्रश्न का विश्लेषण किया जाता है, जिसे पद विश्लेषण प्रक्रिया (Item
Analysis) कहते है। इससे प्रत्येक प्रश्न के कठिनाई स्तर का पता चल
जाता है।
5. कठिनाई स्तर (Difficulty Level) कठिनाई स्तर प्रश्न का बहुत
महत्त्वपूर्ण लक्षण है। सम्पूर्ण प्रश्न-पत्र में दिए गए अंकों के वितरण
को इसी के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है। उन प्रश्नों में
जिनका अंकन ‘शुद्ध अथवा अशुद्ध’ रूप में किया जा सकता है,
कठिनाई स्तर की परिभाषा सही प्रश्न हल करने वाले विद्यार्थियों की
प्रतिशतता है। निबन्धात्मक तथा लघु उत्तरीय प्रश्नों में, जो आंशिक रूप
से शुद्ध हो सकते हैं, कठिनाई स्तर का सूत्र निम्न है
D = x/A×100
जहाँ, X = प्रश्न में उस वर्ग द्वारा प्राप्त अंको का मध्यमान
A = निर्धारित पूर्णांक
कठिनाई स्तर वास्तव में सुगमता का सूचक होता है क्योंकि ज्यों-ज्यों
प्रश्न सरल होता जाता है, DI बढ़ता जाता है। स्पष्टतः यह सूचक
एक सामूहिक गुणक है जो शून्य से 100 तक जाता है।
6. व्यापकता (Comprehensiveness) व्यापकता के अन्तर्गत परीक्षण
का वह प्रारूप आ जाता है जिसके द्वारा परीक्षण उस योग्यता के
विभिन्न पक्षों का मापन करने में समर्थ हो सकता है जिसके मापन हेतु
उसको निर्मित किया गया है। परीक्षण की व्यापकता के बारे में निर्णय
करना स्वयं एक निर्माता की सूझ-बूझ एवं क्षमता पर निर्भर करता है।
7. सहजता (Usability) वह परीक्षण जो निर्माण करने, छात्रों द्वारा
उसका उत्तर देने एवं अंकदान करने, तीनों पक्षों की दृष्टि से सरल
हो, एक अच्छा परीक्षण कहलाता है अर्थात्, वह परीक्षण जिसके
निर्माण में कठिनाई न हो, छात्रों को भी उसके उत्तर देने में सहजता
हो तथा अंकन की प्रक्रिया में भी किसी प्रकार की जटिलता न आए,
सहजता के गुण वाला परीक्षण कहलाता है।
5.5 मूल्यांकन प्रविधियाँ
मूल्यांकन प्रविधियों (Evaluation Techniques) की उपयुक्तता इस बात पर
निर्भर करती है कि उनके द्वारा अध्यापक को बालक के व्यवहार में परिवर्तन
के बारे में कितनी स्पष्ट जानकारी मिलती है। उद्देश्यों एवं विषय-वस्तु की
प्रकृति को ध्यान में रखकर ही मूल्यांकन की विधि का चयन करना चाहिए।
यदि हमने दोषपूर्ण प्रविधि का प्रयोग किया तो निकाले गए निष्कर्ष दोषपूर्ण
होगे तथा हमें छात्र के बारे में गलत जानकारी प्राप्त होगी। प्रत्येक उद्देश्य
दूसरे उद्देश्यों से भिन्न होते हैं तथा उनसे सम्बन्धित व्यवहार भी भिन्न होते
हैं। मूल्यांकन की किसी एक प्रविधि को हम सभी उद्देश्यों की प्राप्ति के
लिए प्रयोग में नहीं ला सकते। कुछ मुख्य मूल्यांकन प्रविधियाँ निम्नलिखित हैं
1. लिखित परीक्षाएँ (Written Examinations) इन परीक्षाओं में
निबन्धात्मक प्रश्न (Essay type) तथा वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective
type) मुख्य हैं। निबन्धात्मक परीक्षाओं में छात्र को विस्तारपूर्वक
उत्तर लिखने होते हैं, जबकि वस्तुनिष्ठ परीक्षा में उत्तर लिखने का
ढंग अत्यन्त सरल एवं संक्षिप्त होता है।
वस्तुनिष्ठ परीक्षाएँ दो प्रकार की होती हैं। पहली, प्रमापित
(Standardised) जिनके सामान्य स्तर (Norms) पहले से ही
स्थापित किए होते हैं तथा दूसरी, अध्यापक निर्मित
(Teacher-made) जिनमें प्रश्नों का निर्माण शिक्षक स्वयं करता है।
2. मौखिक परीक्षाएँ (Oral Examinations) इन परीक्षाओं द्वारा
छात्रों की उपलब्धियों (Achievements) के उन पक्षों का मूल्यांकन
किया जाता है जिन्हें हम लिखित परीक्षाओं द्वारा नहीं माप सकते। इन
परीक्षाओं में मौखिक प्रश्न, वाद-विवाद, विचार-विमर्श एवं
नाट्य-प्रदर्शन आदि सम्मिलित है। गणित के मूल्यांकन में मौखिक
परीक्षाओं को स्थान दिया जाना चाहिए। लिखित परीक्षाओं की कमियों
की पूर्ति किसी सीमा तक मौखिक परीक्षाओं द्वारा सम्भव है।
3. प्रयोगात्मक परीक्षाएँ (Practical Examinations) गणित में
ज्यामिति, त्रिकोणमिति आदि विषयों में अनेक ऐसे उप-विषय होते हैं
जिनमें प्रयोगात्मक कार्य द्वारा प्रत्ययों एवं संकल्पनाओं (Concepts
and Hypotheses) का स्पष्टीकरण कराया जा सकता है। क्षेत्रफल,
ऊँचाई एवं दूरी आदि उप-विषयों में प्रयोगात्मक कार्य बहुत उपयोगी
हैं। गणित में इन परीक्षाओं को स्थान दिया जाना चाहिए।
4. निरीक्षण (Observation) गणित में निरीक्षण द्वारा छात्रों की
उपलब्धियों के विषय में साधारण जानकारी मिल सकती है। बालकों की
संवेगात्मक स्थिरता, मानसिक परिपक्वता तथा सोचने के तरीकों में
यथार्थता की जानकारी कक्षा में प्रतिदिन निरीक्षण द्वारा प्राप्त हो सकती है।
विद्यार्थी के व्यवहार में परिवर्तन उसके प्रश्न हल करने की क्रिया के
निरीक्षण से भी किया जा सकता है। जब विद्यार्थी प्रश्न हल करता है तो
अध्यापक उनका अवलोकन करके यह देख सकता है कि वह शीघ्रता,
स्वच्छता एवं शुद्धता से प्रश्नों को हल कर सकता है या नहीं। अवलोकन
द्वारा विद्यार्थियों के व्यक्तित्व के अन्य गुणों; जैसे- आत्मविश्वास,
चिन्तन, विवेक, कल्पना, तर्क, सूझ, भावात्मक विकास इत्यादि का भी
मूल्यांकन किया जा सकता है।
5. प्रश्नावली (Questionnaire) जब अध्यापक समय की कमी के
कारण निरीक्षण तथा साक्षात्कार प्रणाली का प्रयोग नहीं कर पाता तो वह
प्रश्नावली विधि का प्रयोग करता है। इसमें विद्यार्थियों को छपी हुई प्रश्नों
की एक सूची दे दी जाती है जिन पर वह अपने उत्तर लिखकर
अध्यापक को वापिस कर देते हैं। इस प्रविधि द्वारा विद्यार्थियों की गणित
में रुचि, दृष्टिकोण, अनुभूति, व्यक्तित्व के गुण तथा अन्य व्यावहारिक
परिवर्तनों का मूल्यांकन हो सकता है।
6. चैक-लिस्ट (Check-List) इसका स्वरूप प्रश्नावली प्रविधि की
तरह ही होता है। अन्तर केवल इतना है कि इसमें प्रश्नावली की
अपेक्षा प्रश्न तथा कथन बहुत स्पष्ट होते हैं जिन्हें पढ़कर विद्यार्थी
केवल उनसे सम्बन्धित उत्तर पर सही का निशान लगाते है।
इसमें उन्हें कुछ भी लिखना नहीं पड़ता। चैक-लिस्ट का उद्देश्य
प्रश्नावली प्रविधि के ही समान होता है। यह आत्म-मूल्यांकन
(Self-evaluation) के लिए भी उपयोगी होती है।
7. अभिलेख (Records) विद्यार्थियों की गणित की पुस्तिका,
अभिलेख संचिका (Cumulative Records) इत्यादि के अवलोकन से
उनकी रुचि, दृष्टिकोण, अनुभूति इत्यादि का मूल्यांकन किया जा
सकता है। कक्षा में तथा घर पर किए गए कार्य की पुस्तिकाओं को
भी अभिलेख का अंग माना जा सकता है।
5.6 पियाजे के संज्ञानात्मक विकास की संकल्पनाएँ
पियाजे द्वारा प्रतिपादित संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त (Theory of Cognitive
Development) मानव बुद्धि की प्रकृति एवं उसके विकास से सम्बन्धित एक
सिद्धान्त है। पियाजे के अनुसार, बालक द्वारा अर्जित ज्ञान के भण्डार का
स्वरूप विकास की प्रत्येक अवस्था में बदलता है और परिमार्जित होता रहता
है। पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धान्त को विकासात्मक सिद्धान्त भी कहा जाता
है। चूंकि उसके अनुसार, बालक के भीतर संज्ञान का विकास अनेक
अवस्थाओं से होकर गुजरता है, इसलिए इसे अवस्था सिद्धान्त भी कहा
जाता है।
पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को चार अवस्थाओं में विभाजित किया है-
1. संवेदी पेशीय अवस्था : जन्म से 2 वर्ष तक
(The Sensory Motor Stage : From birth to age 2) इस अवस्था
में बालक केवल अपनी संवेदनाओं और शारीरिक क्रियाओं की सहायता
से ज्ञान अर्जित करता है। बच्चा जब जन्म लेता है तो उसके भीतर सहज
क्रियाएँ (Reflexes) होती है।
इन सहज क्रियाओं और ज्ञानन्द्रियों की सहायता से बच्चा वस्तुओं,
ध्वनियों, स्पर्श, रसों एवं गंधों का अनुभव प्राप्त करता है और इन
अनुभवों की पुनरावृत्ति के कारण वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों की
कुछ विशेषताओं से परिचित होता है।
2. पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था : 2 वर्ष से 7 वर्ष तक
(The Pre-operational Stage : From age 2 to 7) इस अवस्था में
बालक स्वकेन्द्रित व स्वार्थी न होकर दूसरों के सम्पर्क से ज्ञान अर्जित
करता है। अब वह खेल, अनुकरण, चित्र निर्माण तथा भाषा के माध्यम
से वस्तुओं के सम्बन्ध में अपनी जानकारी अधिकाधिक बढ़ाता है।
धीरे-धीरे वह प्रतीकों को ग्रहण करता है किन्तु किसी भी कार्य का क्या
महत्व है तथा तार्किक चिन्तन के प्रति अनभिज्ञ रहता है।
3. स्थूल संक्रियात्मक अवस्था : 7 वर्ष से 11 वर्ष तक
(The Concrete-Operational Stage : From age 7 to 11) इस
अवस्था में बालक विद्यालय जाना प्रारम्भ कर देता है एवं उनमें वस्तुओं
एवं घटनाओं के बीच समानता, भिन्नता समझने की क्षमता उत्पन्न हो
जाती है।
इस अवस्था में बालकों में संख्या बोध, वर्गीकरण, क्रमानुसार वस्तुओं की
व्यवस्था, व्यक्ति के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध आदि का ज्ञान हो जाता है।
वह तर्क कर सकता है। संक्षेप में वह अपने चारों ओर पर्यावरण के साथ
अनुकूल होने के लिए अनेक नियम सीख लेता है।
4. औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था : 11 वर्ष से व्यस्क होने तक
(The Formal Operational Stage : From age 11 to
adulthood) पियाजे के अनुसार यह चौथी अवस्था है जोकि लगभग
11 वर्ष से आरम्भ होती है और वयस्कावस्था तक चलती है। इस
अवस्था में बालक का चिन्तन अधिक अमूर्त, अधिक क्रमबद्ध, लचीला
और तार्किक हो जाता है। औपचारिक संक्रिया अवस्था में चिन्तन की
अमूर्त गुणवत्ता, मौखिक कथनों की समस्या हल करने की क्षमता देखी
जा सकती है।
पियाजे के अनुसार इस अवस्था में बच्चे वैज्ञानिकों की तरह तार्किक सोच
रखते हैं। वे निगमात्मक पूर्वकल्पना तर्क का प्रयोग समस्या हल करने में
करते हैं अर्थात् वे समस्या के सम्भावित उत्तरों का परीक्षण करके बेहतर
सम्भावित उत्तर को निष्कर्ष के रूप में खोजते हैं।
अभ्यास प्रश्न
1. कोठारी आयोग के अनुसार मूल्यांकन किस
प्रकार की प्रक्रिया है?
(1) एकांकी
(2) सतत्
(3) उपयोगी
(4) अनुपयोगी
2. निम्न में से कौन मूल्यांकन का सोपान नहीं है?
(1) अधिगम अनुभव की योजना बनाना
(2) शिक्षण उद्देश्यों का निर्धारण करना
(3) शिक्षण उद्देश्यों को परिभाषित करना
(4) उपरोक्त सभी
3. एक अच्छी परीक्षा का लक्षण नहीं है
(1) आसान स्तर
(2) विश्वसनीयता
(3) वैधता
(4) व्यापकता
4. निम्न में से कौन मूल्यांकन की एक
प्रविधि है?
(1) लिखित परीक्षा
(2) मौखिक परीक्षा
(3) प्रयोगात्मक परीक्षा
(4) ये सभी
5. गणित शिक्षण में मूल्यांकन की प्रक्रिया है
(1) प्रश्नावली
(2) साक्षात्कार
(3) पड़ताल सूची
(4) ये सभी
6. “मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे सही
ढंग से किसी वस्तु का मापन किया जा सकता
है” निम्न में से यह कथन किसका है?
(1) गुड्स
(2) डान्डेकर
(3) स्किनर
(4) जीन पियाजे
7. गणित शिक्षण में मूल्यांकन का कौन एक
उद्देश्य नहीं है?
(1) पाठ्यक्रम में आवश्यकतानुसार बदलाव करना
(2) बालकों के व्यवहार के साथ छेड़छाड़ करना
(3) नवीनतम् शिक्षण विधियों की खोज करना
(4) बालकों की अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयों का
पता लगाना
8. गणित शिक्षण में मूल्यांकन निम्न में से किस
उद्देश्य की पूर्ति करता है?
(1) शिक्षण-व्यूह रचना का विकास करना
(2) बालकों को सीखने का उत्तम तरीका बताना
(3) उपचारात्मक शिक्षण पर बल देना
(4) उपरोक्त सभी
9. मूल्यांकन क्या है?
(1) बच्चे के व्यवहार में परिवर्तन लाना
(2) विद्यालय की सुन्दरता को बढाना
(3) ‘1’ एवं ‘2
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
10. बच्चों के वर्गीकरण और कक्षा उन्नति के
लिए निम्न में से कौन-सा मूल्यांकन अति
आवश्यक है?
(1) व्यापक मूल्यांकन
(2) सतत् मूल्यांकन
(3) मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन
(4) व्यक्तित्व मूल्यांकन
11. निम्न में से कौन-सी गणित में मूल्यांकन
की एक तकनीक नहीं है?
(1) प्रेक्षण तकनीक
(2) अनुसूची
(3) साक्षात्कार
(4) इनमें से कोई नहीं
12. विचार-विमर्श का महत्त्व है
(1) लिखित परीक्षाओं में
(2) मौखिक परीक्षाओं में
(3) प्रयोगात्मक परीक्षाओं में
(4) उपरोक्त सभी
13. छात्रों की शैक्षिक उपलब्धियों का पता
लगाने का सर्वोत्तम उपाय है
(1) मापन
(2) मूल्यांकन
(3) लिखित परीक्षा
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
14. महोदय समरफील्ड ने मूल्यांकन की कितनी
मान्यताओं का वर्णन किया है?
(1) चार
(2) छः
(3) आठ
(4) दस
15. निम्न में से कौन प्रयोजना विधि का एक
सिद्धान्त नहीं है?
(1) क्रियाशीलता
(2) वास्तविकता
(3) उपयोगिता
(4) मूल्यांकन
16. अधिगम अनुभव की योजना बनाने से पूर्व
आवश्यक है कि अनुभव
(1) पर्याप्त हो
(2) परिपक्वता के अनुकूल हो
(3) सन्तोषप्रद हो
(4) उपरोक्त सभी
17. गणित शिक्षण में मूल्यांकन किया जाना
चाहिए
(1) सीखने के अनुभव प्रदान करते समय
(2) उद्देश्यों का स्पष्टीकरण करते समय
(3) उद्देश्यों का स्पष्टीकरण तथा अनुभव प्रदान
करने के बाद में
(4) उपरोक्त सभी स्तरों पर
18. “मूल्यांकन-परिणामों के आधार पर छात्र के
सम्बन्ध में पूर्ण सार्थकता के साथ भविष्यवाणी
की जा सकती है।” इस कथन से आप
(1) पूर्णतः सहमत हैं
(2) आंशिक रूप से सहमत हैं
(3) सहमत नहीं हैं
(4) कुछ कहा नहीं जा सकता
19. एक अध्यापक अपनी कक्षा में छात्रों को
त्रिभुजों की रचना सम्बन्धी प्रश्न हल
करवाता है। वह कक्षा में किस क्षेत्र से
सम्बन्धित शिक्षण कर रहा है?
(1) मापन सम्बन्धी
(2) मूल्यांकन सम्बन्धी
(3) अधिगम सम्बन्धी
(4) सांख्य विधि सम्बन्धी
20. यदि किसी छात्र की उत्तर पुस्तिका का
मूल्यांकन दो शिक्षकों के द्वारा करवाने पर
अलग-अलग प्राप्तांक आते है, तो परीक्षा में
कमी थी
(1) विश्वसनीयता
(2) वैधता
(3) वस्तुनिष्ठता
(4) कठिनाई स्तर
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
21. विकास 56 विद्यार्थियों की कक्षा को गणित
पढ़ाता है। उसका यह विश्वास है कि यदि
परीक्षा के तुरन्त बाद प्रतिपुष्टि (फीडबैक)
दी जाए तो वह प्रभावी होती है। वह
10 अंकों की एक छोटी कक्षा परीक्षा का
आयोजन करता है। प्रभावी तरीके से
प्रतिपुष्टि (फीडबैक) देने का सबसे अच्छा
तरीका कौन-सा है? [CTET June 2011]
(1) वह पूरी कक्षा के लिए चर्चा का आयोजन कर
सकता है कि वे किन तरीकों से अपने उत्तरों पर
पहुँचे और सही उत्तर पर पहुँचने की प्रभावी
युक्ति कौन-सी है
(2) वह यादृच्छिक रूप से किसी भी एक कॉपी का
चयन करे और बोर्ड की सहायता से उस कॉपी में
उत्तर प्राप्त करने की विधि पर चर्चा करे
(3) यह विद्यार्थियों को एक दूसरे के उत्तरों की जाँच
करने दे
(4) वह प्रत्येक सवाल के हल को बोर्ड पर समझाए
और विद्यार्थियों से कहे कि वे स्वयं अपने उत्तरों
को जाँचें
22. ‘माप’ की अवधारणा विकसित करने हेतु
अपनाए गए निम्नलिखित कार्यों को क्रम से
लगाइए
a. शिक्षार्थी लम्बाई मापने के लिए मानक
इकाइयों का प्रयोग करते हैं।
b. शिक्षार्थी लम्बाई मापने के लिए
अमानक इकाइयों का प्रयोग करते हैं।
c. शिक्षार्थी सरल अवलोकन द्वारा वस्तुओं
को सत्यापित करते है।
d. शिक्षार्थी मीटरी (मैट्रिक) इकाइयों के
बीच के सम्बन्धों को समझते हैं।
[CTET June 2011]
(1) c, b, a, d
(2) d, a, c, b
(3) a, b, d, c
(4) b, a, c, d
23. कक्षा के विद्यार्थियों को संख्या-पद्धति
पढ़ाने का उद्देश्य है [CTET Jan 2012]
(1) संख्याओं को सैकड़ा, दहाइयों और इकाइयो
के समूह के रूप में देखना और स्थानीय मानों
की सार्थकता को समझना
(2) चार अकों वाली संख्या के योग और व्यवकलन
के कौशल में प्रवीणता प्राप्त करना
(3) बड़ी संख्याओं को पढ़ने के कौशल में प्रवीणता
प्राप्त करना
(4) 6 अंकों तक गणना करना
24. कक्षा III के विद्यार्थियों को लम्बाई की
विभिन्न इकाइयाँ पढ़ाने के लिए शिक्षक
निम्नलिखित सामग्री कक्षा में ले जाएगा
[CTET Jan 2012]
(1) सेन्टीमीटर वाला रूलर और नापने वाली टेप
(2) विभिन्न लम्बाइयों और इकाइयों वाले रूलर
(फुट्टा), नापने वाली छड, नापने वाली पट्टी
जो वास्तुकार द्वारा प्रयोग में लाई जाती है
(3) नापने वाली टेप जिसके एक तरफ सेन्टीमीटर
हो और दूसरी तरफ मीटर हो
(4) विभिन्न इकाइयों का सम्बन्ध-चार्ट
25. योग और व्यवकलन पर आधारित, शब्दों में
दिए गए सवालों को हल करने की विद्यार्थियों
की दक्षता का आकलन करने के लिए
आकलन के शीर्षक है [CTET Jan 2012]
(1) सवाल का बोधन, निष्पादित की जाने वाली
संक्रिया की पहचान, समस्या का गणितीय रूप
में निरूपण, सवाल का समाधान और
प्रस्तुतीकरण
(2) सवाल का बोधन और सही जवाब लिखना
(3) सवाल की पहचान, सही संक्रिया निष्पादित करना
(4) गलत, आंशिक रूप से सही, पूर्णतः सही
26. भिन्नों की योग संकल्पना के पाठ पर
योजना बनाते समय, शिक्षक पट्टी मोड़ने
वाली गतिविधि का प्रयोग कर रहा है
ph
उपरोक्त गतिविधि ….. है।
[CTET Jan 2012]
(1) विषय-वस्तु सम्बन्धी गतिविधि
(2) विषय-वस्तु पश्च गतिविधि
(3) समय की बर्बादी
(4) विषय-वस्तु से पूर्व की गतिविधि
27. पियाजे का विश्वास था कि सामाजिक
अनुदेशन से सीखना होता है और गणित
का एक शिक्षक पियाजे के सिद्धान्त में
विश्वास करते हुए [CTET Nov 2012]
(1) विभेदित अनुदेशन का प्रयोग करेगा
(2) चॉक और टॉक पद्धति का प्रयोग करेगा
(3) कक्षा में बहुत सारे हस्तपरिचालाको
(Manipulatives) का प्रयोगशाला गतिविधियों
का प्रयोग करेगा
(4) सामूहिक परियोजना और सामूहिक परिचर्चा
का प्रयोग करेगा
28. उच्च क्रमीय चिन्तन कौशल (HOTS) पर
आधारित प्रश्न …..की माँग करते है।
[CTET Nov 2012]
(1) संकेतों और चित्रों के ज्ञान
(2) कुछ सीमा तक संज्ञानात्मक प्रयास और ज्ञान
(3) तथ्यों, नियमों, सूत्रों के ज्ञान
(4) ऐल्गोरिथम के ज्ञान
29. राशिद कक्षा V में पढ़ता है। वह विभिन्न
प्रकार के त्रिभुजों को भिन्न श्रेणियों में
वर्गीकृत कर सकता है लेकिन त्रिभुज में
तीन कोणों का योग 180° होता है, के
अमूर्त प्रमाण को समझने में उसे कठिनाई
होती है। पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धान्त के
अनुसार राशिद ……… चरण पर है।
[CTET July 2013]
(1) पूर्व सक्रियात्मक अवस्था
(2) मूर्त संक्रियात्मक अवस्था
(3) औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था
(4) संवेदीगतिक अवस्था
30. “1/3 के समतुल्य भिन्न लिखिए।” कक्षा छ
के शिक्षार्थियों से पूछा गया यह सवाल …… की
ओर संकेत करता है। [CTET July 2013]
(1) उच्च स्तरीय माँग-कार्य, क्योंकि संयोजन के
बिना प्रक्रिया पर आधारित है
(2) निम्न स्तरीय माँग-कार्य, क्योंकि इसमें केवल
प्रक्रमणकारी कौशलों की आवश्यकता होती है
(3) निम्न स्तरीय मांग-कार्य, क्योंकि यह केवल
रटने पर आधारित है
(4) उच्च स्तरीय माँग-कार्य, क्योंकि यह संयोजन
के साथ प्रक्रिया पर आधारित है
31. वेन हीले के ज्यामितीय विचार के स्तर के
अनुसार पाँच स्तर है, चाक्षुषीकरण,
विश्लेषण, अनौपचारिक निगमन,
औपचारिक निगमन और दृढ़ता (rigour)|
कक्षा III के एक बच्चे को छाँटने के लिए
कुछ बहुभुज दिए गए। वह भुजाओं की
संख्याओं के आधार पर बहुभुजों को
वर्गीकृत करता है। यह बच्चा वेन हीले के
ज्यामितीय विचार के …….. स्तर पर है।
[CTET July 2013]
ph
(1) औपचारिक निगमन
(2) चाक्षुषीकरण
(3) विश्लेषण
(4) अनौपचारिक निगमन
32. एक बच्चा संख्याओं, संक्रियाओं और
संकेतों घड़ी के दो काँटों, विभिन्न सिक्कों
आदि में अन्तर करने में कठिनाई प्रदर्शित
करता है। इसका निहितार्थ है कि विशिष्ट
बाधाएँ उसके सीखने को प्रभावित कर रही
है, वे है [CTET July 2013]
(1) कमजोर गतिक कौशल, पढ़ना और लिखना
कौशल
(2) कमजोर शाब्दिक. चाक्षुष, अव्य और कार्यकारी
स्मृति
(3) कमजोर धाशुष-प्रक्रमण योग्यता, जैसे चाक्षुष
विभेदीकरण, स्थानिक संगठन और चाक्षुष
समन्वयन
(4) कमजोर भाषा प्रक्रमण योग्यता, जैसे
अभिव्यक्ति, शब्द-भण्डार और श्रव्य प्रक्रमण
33. कक्षा II में सम संख्या और विषम संख्या की
संकल्पना का परिचय मूर्त (प्रत्यक्ष) वस्तुओं का
दी गई संख्या के साथ युगलन के क्रिया-कलाप
द्वारा दिया गया। इसके पश्चात् शिक्षिका ने छात्रों
से यह जाँच करने के लिए कहा है कि वे यह
देखें कि
(i) रंगों की डिब्बों में क्रेयानों की कुल
संख्या सम है अथवा विषम
(ii) उनकी गणित की कापी में कागजों
(पेजों) की संख्या सम है अथवा
विषम
क्रेयानों/पेजों की सम अथवा विषम
संख्या ज्ञात करने का यह कार्य
[CTET Feb 2014]
(1) अधिगम के लिए मूल्यांकन है
(2) अधिगम के रूप में मूल्यांकन है
(3) अधिगम के अन्त में मूल्यांकन है
(4) अधिगम का मूल्यांकन है
34. कक्षा II में व्यवकलन (घटाने) के प्रचालन
की व्याख्या करने के पश्चात् शिक्षक ने
श्यामपट पर नीचे दिया गया चित्र खींचा और
बच्चों से रिक्त वृत्तों को भरने के लिए कहा
ph
इस अभ्यास का उद्देश्य है
[CTET Feb 2014]
(1) संकलन और व्यवकलन की कुशलता को प्रबल
करना
(2) संकलित मूल्यांकन
(3) छात्रों के लिए मजेदार क्रिया-कलाप की
व्यवस्था करना
(4) मस्तिष्क का गणितीकरण
35. नीचे दिए गए चित्र में कुल कितने
आयत है?
ph
उपरोक्त प्रश्न जाँच कर रहा है
[CTET Feb 2014]
(1) शिक्षार्थी के ज्ञान की
(2) शिक्षार्थी के समझ (बोधगम्यता) की
(3) शिक्षार्थी की सूजनता की
(4) शिक्षार्थी के याद करने की शक्ति को
36. कक्षा III में ‘गुणन’ की इकाई में अनुमोदित
मूल संकल्पना है [CTET Feb 2014]
(1) दो अंकीय संख्या को दो अंकीय संख्या से
गुणा करना
(2) गुणन के गुणधर्म-क्रय गुण और समूह गुण
(3) गुणन पर आधारित शब्द समस्या
(4) तीन अंकीय संख्याओं को 10 से गुणा करना
37. ‘भिन्न’ की इकाई से शिक्षक ने छात्रों से
किन्हीं पाँच भिन्नों की सूची बनाने के
लिए कहा। यह प्रश्न संकेत करता है
[CTET Feb 2014]
(1) सोचने के उच्च स्तर को
(2) विश्लेषणात्मक सोच को
(3) त्रिविमीय/आकाशीय सोच को
(4) सोचने के निम्न स्तर को
38. कक्षा IV के किसी छात्र को निम्नलिखित
शब्द-समस्या दी गई। मुम्बई में 336 बस
स्टॉप हैं। दिल्ली में मुम्बई से 127 बस
स्टॉप अधिक है। दिल्ली में कुल कितने
बस स्टॉप है?
छात्र ने उपरोक्त समस्या का उत्तर इस
प्रकार लिखा
ph
दिल्ली में कुल 336 + 127 = 463 बस
स्टॉप है।
शिक्षक इस छात्र के प्रदर्शन के विषय में
क्या रिपोर्ट देगा? [CTET Feb 2014]
(1) छात्र सही उत्तर ज्ञात कर सकता है परन्तु
उसकी अभिव्यक्ति निकृष्ट है
(2) छात्र समस्या को समझने और उसका
विश्लेषण करने में अच्छा है तथा उसकी
समस्या हल करने की योग्यता प्रशंसनीय है
(3) छात्र ने सही क्रियाविधि नहीं अपनाई। उसे
अधिक अभ्यास की आवश्यकता है
(4) छात्र सभी आवश्यक चरणों को लिखने की
योग्यता नहीं रखता
39. निम्न ग्रिड वर्गाकार कागज पर खींचा गया है
ph
यह निरूपण किसकी ओर संकेत करता
है? [CTET Sept 2014]
(1) गिनतारा (अबेकस) पर संख्याओं की स्थिति
(2) स्थानीय मान की अवधारणा
(3) दहाई और इकाई की तुल्यता
(4) गणितीय खेल
40. जियो-बोर्ड (Geo-Board) किसके शिक्षण का
एक प्रभावी साान है? [CTET Sept 2014]
(1) आधारभूत ज्यामितीय अवधारणाओं जैसे किरणे,
रेखाएँ और कोण
(2) ज्यामितीय आकृतियों और उनकी विशेषताएँ
(3) द्विविमा और त्रिविमा आकृतियों में अन्तर करना
(4) सममिति की अवधारणाएँ
41. भाग की अवधारणा पढ़ाने के बाद एक
शिक्षक कक्षा-कक्ष में ‘गणितीय दीवार’ का
निर्माण करते हैं और शिक्षार्थियों को
48 घण्टों में दिए गए कॉलमों में भाग
सम्बन्धी कोई दो तथ्य लिखने के लिए
कहते हैं
गणितीय दीवार
अंकित अंकुर बबीता बॉबी
25+5=5 0÷6=0
प्रज्ञा ध्रुव सोहन हर्ष
राहुल स्मिता सुनील तुषार
यह गतिविधि…………..में शिक्षक की सहायता
कर सकती है। [CTET Sept 2014]
(1) शोरमुक्त कक्षा-क्स वातावरण बनाने
(2) अगले दो दिनों के लिए शिक्षार्थियों को किसी
गणितीय कार्य में व्यस्त रखने
(3) प्रत्येक बच्चे को अभिव्यक्ति के और एक दूसरे
से सीखने के अवसर देने
(4) शिक्षार्थियों द्वारा सीखे गए तथ्यों की संख्या का
रिकॉर्ड रखने
42. प्राथमिक अवस्था में गणित में रचनात्मक
मूल्यांकन में अन्तर्निहित है।
[CTET Feb 2015]
(1) अधिगम में असंगति को और शिक्षण में कमियों
को पहचानना
(2) सामान्य त्रुटियों को पहचानना
(3) क्रिया-प्रणाली के ज्ञान और विश्लेषणात्मक
प्रतिभाओं की परीक्षा
(4) विद्यार्थियों के ग्रेड (श्रेणी) और रैक (स्थिति)
43. कक्षा में गणितीय मनोरंजनात्मक क्रियाकलाप
तथा चुनौतीपूर्ण ज्यामितीय पहेलियों सम्बन्धी
क्रियाकलाप महत्त्वपूर्ण है क्योकि
[CTET Feb 2015]
(1) वे गणित में कम सफल शिक्षार्थियों तथा मन्द
गति से सीखने वाले शिक्षार्थियों में रुचि उत्पन्न
करने में सहायक होते हैं
(2) वे विद्यार्थियों को उनकी गणित कक्षा की
एकरूपता तथा दैनिकचर्या के कारण होने वाली
ऊब से बाहर लाते हैं
(3) वे प्रतिभाशाली शिक्षार्थियों को उचित अवसर
प्रदान करते हैं
(4) वे प्रत्येक शिक्षार्थी की स्थानिक व
विश्लेषणात्मक योग्यता के संवर्द्धन में
सहायक है
44. गणित की शिक्षा का मुख्य ध्येय है
[CTET Feb 2015]
(1) ज्यामिति के प्रमेयों और उनके प्रमाणों को
स्वतन्त्र रूप से सृजन करना
(2) विद्यार्थियों को गणित समझने में सहायता
करना
(3) उपयोगी क्षमताओं को विकसित करना
(4) बच्चों की गणितीय प्रतिभाओं का विकास
करना
45. ‘आकृतियों’ की इकाई से अध्यापक,
विद्यार्थियों से “आकृतियों के उपयोग की
सहायता से किसी भी चित्र की रचना
करने” के लिए कहता है।
इस क्रियाकलाप से निम्नलिखित में से
कौन-सा उद्देश्य प्राप्त किया जा
सकता है? [CTET Feb 2015]
(1) अनुप्रयोग
(2) ज्ञान
(3) समझ/बोध
(4) रचना/सृजन
46. एक शिक्षक गणित के सम्प्रत्ययों को
सिखाते हुए खोजपरक उपागम का उपयोग
करती है, विद्यार्थियों की व्यवहारिक
क्षमताओं का उपयोग करती है और उनको
चर्चा में शामिल करती है। वह इस युक्ति
का प्रयोग किस लिए करती है?
[CTET Feb 2015]
(1) गणित शिक्षण के उच्चतर उद्देश्य की प्राप्ति
के लिए
(2) विद्यार्थियों में व्यवहारिक क्षमताओं के विकास
के लिए
(3) एक निश्चित प्रकार की सोच व तार्किकता
विकसित करने के लिए
(4) गणित शिक्षण के संकीर्ण उद्देश्य की प्राप्ति के
लिए
47. ‘वैन हिले के ज्यामितीय स्तर’ के अनुसार
जो विद्यार्थी आकृतियों को दिखावट के
अनुसार वर्णित और वर्गीकृत कर सकते हैं,
वे हैं [CTET Sept 2015]
(1) स्तर 1-विश्लेषण
(2) स्तर 2-अनौपचारिक निगमन
(3) स्तर 3-औपचारिक निगमन
(4) स्तर 0-मानसिक चित्रण
48. कक्षा IV में ‘सममिति’ और ‘परावर्तन’ की
ज्यामितीय संकल्पनाओं की वृद्धि के लिए
निम्नलिखित में से कौन-से व्यवहार-कौशल
उपकरणों की आवश्यकता है?
[CTET Sept 2015]
(1) मोतियों की माला
(2) बिन्दु शीट (डॉट पेपर)
(3) गिनतारा
(4) द्विमुखी पटल (काउण्टर)
49. गणित में ‘प्रतिचित्रण’ के लिए निम्नलिखित
कथनों में से कौन-सा सत्य है?
[CTET Sept 2016]
(1) प्रतिचित्रण, स्थानिक चिंतन को बढ़ाता है।
(2) प्रतिचित्रण, आनुपातिक विवेचन को प्रोत्साहित
करता है।
(3) प्रतिचित्रण, गणित पाठ्यक्रम का भाग नहीं है।
(4) प्रतिचित्रण का गणित के कई विषयों से
समाकलन किया जा सकता है।
50. दो दशमलव संख्याओं के योग की
संकल्पना को पढ़ाने के लिए निम्नलिखित
में से शिक्षण-अधिगम का कौन-सा साधन
सर्वाधिक उपयुक्त है? [CTET Sept 2016]
(1) जियोबोर्ड
(2) मोती और माला
(3) ग्राफ पेपर
(4) गिनतारा
51. गणित के कक्षा-कक्ष में दृष्टिबाधितों के
लिए निम्नलिखित में से किनका प्रयोग
शिक्षा के साधनों के रूप में किया जा
सकता है? [CTET Sept 2016]
(1) टेलर का गिनतारा, भिन्न का किट, संख्या
चार्ट
(2) संख्या चार्ट, कम्प्यूटर, जियोबोर्ड
(3) टेलर का गिनतारा, कम्प्यूटर, जियोबोर्ड
(4) कम्प्यूटर, संख्या चार्ट, जियोबोर्ड
52. ‘संख्याओं के सन्दर्भ में प्राथमिक कक्षा के
बच्चे अर्थात् वे बच्चे जिनका आयु वर्ग
8-9 वर्ष है, निम्नलिखित में से किस
समुच्चय में प्रवीण हैं? [CTET Sept 2016]
(1) वर्गीकरण, प्रतिवर्त्यता, आनुपातिक विवेचन
(2) पंक्तिबद्धता, प्रतिवर्त्यता, आनुपातिक विवेचन
(3) पंक्तिबद्धता, वर्गीकरण, आनुपातिक विवेचन
(4) पंक्तिबद्धता, वर्गीकरण, प्रतिवर्त्यता
उत्तरमाला
1. (2) 2. (4) 3. (1) 4. (4) 5. (4) 6. (1) 7. (2) 8. (4) 9. (1) 10. (1)
11. (4) 12. (2) 13. (2) 14. (3). 15. (4) 16. (4) 17. (4) 18. (1)
19. (1) 20. (1) 21. (4) 22. (1) 23. (1) 24. (2) 25. (1) 26. (4)
27. (4) 28. (2) 29. (2) 30. (2) 31. (2) 32. (3) 33. (1) 34. (1)
35. (2) 36. (2) 37. (4) 38. (2) 39. (2) 40. (2) 41. (3) 42. (1)
43. (4) 44. (4) 45. (4) 46. (3) 47. (4) 48. (2) 49. (1) 50. (1)
51. (1) 52. (2)