CTET Notes In Hindi | निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण
CTET Notes In Hindi | निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण
निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण
Diagnostic and Remedial Teaching
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने से
यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 5 प्रश्न, 2012 में
4 प्रश्न, 2013 में 3 प्रश्न, 2014 में 4 प्रश्न, 2015 में 2 प्रश्न पूछे गए
हैं। इस अध्याय से CTET परीक्षा में पूछे गए प्रश्न मुख्यत: निदानात्मक
एवं उपचारात्मक शिक्षण तथा उसकी विधियों से सम्बन्धित हैं।
8.1 निदानात्मक शिक्षण
निदानात्मक शिक्षण (Diagnostic Teaching) के द्वारा यह जानने का प्रयास
किया जाता है कि गणित के अध्ययन में छात्रों की क्या-क्या कठिनाइयाँ हैं,
वे कहाँ गलतियाँ करते हैं, किस प्रकार की गलती करते हैं तथा क्यों करते है
आदि। इस प्रकार यही जानना या पता करना ‘निदान’ कहलाता है।
अतः गणित में बालकों की कठिनाइयों एवं कमजोरियों का पता लगाने के
लिए जिन परीक्षाओं का प्रयोग किया जाता है नैदानिक या निदानात्मक
परीक्षाएँ कहलाती है।
निदानात्मक परीक्षण व्यक्ति की जाँच करने के पश्चात् किसी एक या अधिक
क्षेत्रों में उसकी विशेषताओं एवं कमियों को व्यक्त करता है। इन परीक्षाओं में
उपलब्धि परीक्षणों की भाँति अंक प्रदान नहीं किए जाते हैं बल्कि एक कमी
या गलती के कारणों का पता लगाया जाता है।
इसके अन्तर्गत सम्पूर्ण विषय-वस्तु को विभिन्न भागों में बाँट लिया जाता है
तथा प्रत्येक (प्रकरण) भाग से सम्बन्धित नियमों, सूत्रों, संक्रियाओं आदि को
प्रश्न-पत्र में सम्मिलित किया जाता है। इसमें दिए गए प्रश्न किसी एक
प्रकरण विशेष से सम्बन्धित होते हैं। निदानात्मक परीक्षणों में प्रश्नों को
अधिगम क्रम में व्यवस्थित किया जाता है। प्रत्येक अधिगम इकाई के लिए
अलग से निदानात्मक परीक्षण का निर्माण किया जाता है।
8.1.1 निदानात्मक शिक्षण की प्रमुख परिभाषाएँ
निदानात्मक शिक्षण से सम्बन्धित कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नवत् है
गुड के मतानुसार, निदान का अर्थ है, “अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयों और
कमियो के स्वरूप का निर्धारण करना।”
योकम व सिम्पसन के मतानुसार, “निदान किसी कठिनाई का उसके
चिह्नो या लक्षणों से ज्ञान प्राप्त करने की कला का कार्य है। यह तथ्यों
के परीक्षण पर आधारित कठिनाई का स्पष्टीकरण है।”
मरसेल के मतानुसार, “जिस शिक्षण में बालको की विशिष्ट त्रुटियों का
निदान करने का विशेष प्रयास किया जाता है उसको बहुधा
निदानात्मक शिक्षण या शैक्षिक निदान कहते है।”
8.1.2 निदानात्मक शिक्षण में नैदानिक परीक्षण के उद्देश्य
नैदानिक परीक्षण के कुछ मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है-
• गणित विषय की अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया में सुधार करना।
अधिगम-अनुभव तथा अधिगम-प्रक्रिया के अवरोधक तत्वो को ढूँढ़ना एवं
उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था करना।
• गणित सम्बन्धी विशिष्टताओं एवं कमजोरियो का पता लगाना। गणित के
पाठ्यक्रम में परिवर्तन लाना तथा बालकेन्द्रित बनाना।
• मूल्यांकन प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने हेतु मूल्यांकन पद्धतियों में
परिवर्तन करना।
• उपलब्धि परीक्षण हेतु परीक्षण पदों के प्रकार निर्धारित करने में सहायता
देना। छात्रों की कमियों एवं अच्छाइयों के आधार पर शैक्षिक एवं
व्यावसायिक निर्देशन देना।
8.1.3 निदानात्मक शिक्षण में निदान हेतु महत्त्वपूर्ण चरण
शैक्षिक निदान के मुख्य रूप से पाँच चरण माने जाते है। जिसके आधार पर
इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है, जोकि निम्न है-
• सर्वप्रथम यह जानने का प्रयास किया जाता है कि वे कौन-से छात्र है जो
कठिनाई का सामना कर रहे हैं अर्थात् समस्याग्रस्त बालक की पहचान की
जाती है। इसके हेतु हम विभिन्न परीक्षणों का प्रयोग करते हैं।
• इसके उपरान्त यह जानने का प्रयास किया जाता है कि त्रुटियाँ कहाँ है
अर्थात् बालक जहाँ गलती कर रहा है वह क्षेत्र कौन-सा है?
• कठिनाई की प्रकृति जानने के बाद यह जाना जाता है कि त्रुटियों के क्या
कारण है। यह प्रक्रिया जटिल है।
• ज्यादातर इसमें शिक्षक का तर्क कार्य करता है।
• कारण पता चल जाने के बाद इस पर विचार किया जाता है कि उपचार
क्या किया जाए इसका कोई विशेष नियम नहीं है।
• यह समस्या की प्रकृति पर ही निर्भर करता है।
• उपचार देने के बाद भी यह प्रक्रिया समाप्त नहीं हो जाती है बल्कि इनके
परिणामों को ध्यान में रखकर यह भी विचार किया जाता है कि ऐसा क्या
किया जाए कि वे समस्याएँ उत्पन्न ही न हो।
8.1.4 निदानात्मक परीक्षणों की आवश्यकता एवं महत्त्व
इन परीक्षणों की आवश्यकता एवं महत्त्व को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट कर
सकते है
• शैक्षिक निदान की आवश्यकता केवल समस्याग्रस्त बालकों की ही नहीं
अपितु सामान्य बालको को भी होती है।
• निदानात्मक परीक्षाओं की आवश्यकता बालकों की विषयगत व विशेष
इकाई में कठिनाई स्तर जानने में पड़ती है।
• कठिनाई उत्पन्न करने वाले प्रश्नो की विषय-वस्तु का विश्लेषण करने हेतु
इसकी आवश्यकता पड़ती है।
• विषय-वस्तु के विश्लेषण के अतिरिक्त मानसिक प्रक्रिया के विश्लेषण में
भी शैक्षिक निदान की आवश्यकता होती है।
• शैक्षिक निदान इस तथ्य का भी पता लगाता है कि छात्र किन-किन
मानसिक प्रक्रियाओं को सफलतापूर्वक सम्पादित नहीं कर पा रहा है।
• शैक्षिक निदान की आवश्यकता अध्यापक को पठन-पाठन की स्थितियों को
प्रभावशाली बनाने हेतु होता है।
• शैक्षिक निदान द्वारा बालक की वांछनीय एवं वास्तविक उपलब्धियों की
दूरी को समाप्त किया जा सकता है।
• स्कूल में अपव्यय व उपरोधन के कारणों को जानने का अच्छा साधन है।
बालक विद्यालय क्यों छोड़ते हैं तथा जिस उद्देश्य हेतु उन्होंने प्रवेश लिया
था वह पूरा हुआ या नहीं। इनके कारणों का पता लगाना। अच्छा निर्देशन,
परामर्श एवं शिक्षण हेतु महत्त्वपूर्ण है।
• छात्रों की कमियों को दूर करने के लिए उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था
करने में सहायक है। शैक्षिक निदान मूल्यांकन प्रक्रिया को अत्यधिक
प्रभावित करता है।
• निदानात्मक परीक्षाओं में निश्चित समय नहीं दिया जाता है।
आवश्यकतानुसार, यह एक से अधिक बार भी आयोजित की जा
सकती है।
• निदानात्मक परीक्षाओं में बालकों को अंक प्रदान नहीं किए जाते हैं। इसमें
यह ज्ञात किया जाता है कि कौन-कौन से प्रश्न त्रुटिपूर्ण है अथवा बालकों
ने हल ही नहीं किए हैं।
8.2 उपचारात्मक शिक्षण
यह विधि मनोवैज्ञानिक नहीं है। कमजोर तथा शिक्षण में पिछड़े छात्रों के
निदानात्मक मूल्यांकन के पश्चात् उनकी कमजोरी के क्षेत्र में सुधार के लिए
उपचारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching) का उपयोग होता है।
ब्लेअर या जोन्स ने उपचारात्मक शिक्षा के विषय में कहा है “उपचारात्मक
शिक्षण मूलत: एक उत्तम शिक्षण विधि है जो छात्रों को अपने मानसिक स्तर
के अनुरूप प्रगति करने का अवसर देती है।
यह उसे प्रेरणा की आन्तरिक विधियों के द्वारा उसकी क्षमता के अनुसार उच्च
मापदण्ड तक पहुँचाती है। यह कठिनाइयों के सतर्कतापूर्ण निदान पर आधारित
तथा छात्रों की आवश्यकताओं एवं रुचियो के अनुकूल होती है।”
निदानात्मक मूल्यांकन और उपचारात्मक शिक्षण एक-दूसरे से इस प्रकार जुड़े
हुए है कि विश्लेषण और विवेचन के कार्यों के अतिरिक्त उनको पृथक् करना
कठिन है।
उपचारात्मक शिक्षण के सिद्धान्त
उपचारात्मक शिक्षण को सफल बनाने के लिए अध्यापक को निम्न सिद्धान्तो
पर ध्यान देना चाहिए
• अध्यापक एवं छात्र में निकट सम्बन्ध (Rapport) स्थापित किया जाए।
• उपचार की सम्पूर्ण व्यवस्था की योजना स्पष्ट रूप से बना लेनी चाहिए
एवं उसके कार्यान्वयन में सावधानी से काम लिया जाए। अध्यापक अपने
अनुभवों के आधार पर विस्तृत दृष्टिकोण अपनाए।
• उपचारात्मक शिक्षण का प्रत्येक पहलू बालकों की आयु, रुचि, योग्यता एवं
अनुभवों के अनुकूल हो।
• उपचारात्मक शिक्षण के दौरान बालकों की रुचि को बनाए रखने के लिए
उन्हें पर्याप्त प्रोत्साहन देते रहना चाहिए।
• उपचार विधि की यह विशेषता होनी चाहिए कि उससे विद्यार्थी को अपनी
सफलता के सम्बन्ध में शीघ्र परिणाम मिल सके। प्रक्रिया के दौरान विद्यार्थी
को अधिक-से-अधिक सक्रिय रखा जाए।
• अध्यापकों को भी निदानात्मक परीक्षणों के निर्माण में दक्ष होना चाहिए।
8.3 पिछड़े बालकों के लिए उपचारात्मक शिक्षण
उपचारात्मक शिक्षण के अन्तर्गत कक्षा के वर्ग बनाते समय कमजोर बालको
को एक ही वर्ग में रखा जाए, तो अध्यापक उनकी प्रगति में सहायक हो
सकता है। कक्षा में ऐसे बालकों की संख्या 20-25 से अधिक नहीं होनी
चाहिए। कमजोर छात्रों में व्यक्तिगत परामर्श द्वारा अध्यापन सम्बन्धी वाँछनीय
आदतो का विकास किया जा सकता है। गणित में सफलता के लिए नियमित
अभ्यास का कार्यक्रम आवश्यक है।
कमजोर बालकों के अध्यापन को प्रभावी बनाने के लिए निम्न उपाय करने
चाहिए
• कक्षा में गणित की समस्याओं को हल करते समय छात्रों का ध्यान विशेष
रूप में उन प्रत्ययों, सिद्धान्तों, प्रक्रियाओं आदि की ओर खींचा जाए जिनमें
छात्र त्रुटियाँ करते है।
• कमजोर छात्रों के लिए मॉडल, चार्ट आदि का प्रयोग कर प्रत्ययों को स्पष्ट
किया जाए।
• छात्रों को कक्षा में तथा कक्षा के बाद आवश्यकतानुसार व्यक्तिगत परामर्श
देकर गणित के सीखने में सहायता की जानी चाहिए।
• छात्रों के लिखित कार्य में सुधार यथासम्भव उनके समक्ष ही हो तथा सुधरी
हुई त्रुटियों को छात्र फिर से न दोहराएँ।
• कमजोर छात्रों को कक्षा में आगे बैठाना चाहिए।
• छात्रों में शुद्ध तथा बड़ा लिखने की आदत डाली जाए जिससे उन्हें गणना
करते समय सुविधा रहे।
• कक्षा में उदाहरणो का चयन विषय-वस्तु के विस्तार एवं कठिनाई के स्तर
को ध्यान में रखकर किया जाए।
• अंकगणित तथा बीजगणित के आधारभूत उप-विषयों को पढ़ाते समय पूरी
सावधानी बरती जाए। दशमलव, प्रतिशत, अनुपात, एकिक नियम,
समीकरण, लेखाचित्र आदि गणित के आधारभूत उप-विषय है जिनका
व्यापक प्रयोग समस्याओं को हल करने में किया जाता है। इन उप-विषयों
को अत्यन्त सावधानी से पढ़ाया जाए।
• श्यामपट्ट पर लिखी हुई सामग्री व्यवस्थित, स्पष्ट एवं उपयोगी होनी चाहिए।
श्यामपट्ट कार्य का विकास छात्रों के सक्रिय सहयोग से किया जाए।
• कक्षा में छात्रों को जागरुक रखने के लिए प्रभावी प्रश्नोत्तर प्रविधि का
प्रयोग किया जाए।
• समस्याओं को हल करने से पहले छात्रों को यह स्पष्ट कर दिया जाए कि
‘क्या ज्ञात करना है’ तथा ‘अभीष्ट उत्तर’ कैसे ज्ञात किया जाना चाहिए?
समस्याओं की भाषा सरल एवं स्पष्ट हो।
8.4 प्रतिभाशाली बालकों के लिए उपचारात्मक शिक्षण
प्रखर बुद्धि बालकों में पर्याप्त रूप से अपनी योग्यताओं को विकसित करने
का अवसर प्राप्त न होने से वे बेचैन रहते हैं तथा उनका मन कक्षा के
वातावरण में न लगकर इधर-उधर भटकने लगता है। इसके अतिरिक्त यदि
उन्हें आवश्यक परामर्श एवं मार्गदर्शन नहीं मिलता है, तो वे असामाजिक
कार्यों में भाग लेने लगते हैं तथा उनकी प्रवृत्ति बालापराधी की ओर मुड़ जाती
। कक्षा कार्य उनको फीका लगने लगता है। अतः प्रतिभाशाली बालकों की
मानसिक एवं शारीरिक शक्ति के सदुपयोग के लिए प्रभावी एवं आकर्षक
अध्ययन विधियों का इस्तेमाल आवश्यक है ताकि उन्हें उपयोगी कार्यों में
व्यस्त रखा जा सके।
प्रतिभाशाली बालकों का शिक्षण करते समय निम्न बिन्दुओं को ध्यान में
रखना आवश्यक है
• प्रतिभाशाली बालकों को सुनियोजित कार्यक्रम के माध्यम से व्यवस्थित ढंग
से कार्यरत रखा जाना चाहिए। इनको आधुनिक गणित, गणित की विभिन्न
शाखाओं में समन्वय स्थापित करके पढ़ाना चाहिए। इन बालकों को
व्यवस्थित सामग्री के माध्यम से पढ़ाना चाहिए।
• इन बालकों के शिक्षण में निगमन, संश्लेषण, प्रयोगशाला, ह्यूरिस्टिक एवं
प्रोजेक्ट विधियों का प्रयोग करना चाहिए।
• इन बालकों के सम्मुख स्थूल या प्रत्यक्ष वस्तुओं के स्थान पर गूढ़ प्रत्यय
सीधे ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं। इन बालकों के मूल्यांकन हेतु विशेष
परीक्षाओं का आयोजन किया जाना चाहिए।
• अध्यापक को चाहिए कि वह ऐसे बालकों को गणित के पाठ्यक्रम के
अतिरिक्त गणित सम्बन्धी इतिहास, गणित का विकास, पत्रिकाएँ तथा
सम्बन्धित साहित्य को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें।
• ऐसे बालकों के लिए मानसिक एवं मौखिक गणित की अपेक्षा लिखित
गणित पर अधिक ध्यान देना चाहिए। प्रतिभाशाली बालकों को एक ही
समस्या को विभिन्न तरीकों से हल करने को प्रोत्साहन देना चाहिए।
• प्रतिभाशाली बालक गणित की खोजों में अत्यधिक रुचि लेते हैं। अत: उन्हें
गणित सम्बन्धी नवीन आविष्कारों को सीखने एवं जानने के पर्याप्त अवसर
देने चाहिए।
अभ्यास प्रश्न
1. उपचारात्मक शिक्षण की व्याख्या में
शामिल है
(1) समूह अनुवर्ग शिक्षण
(2) निरीक्षण अनुवर्ग शिक्षण
(3) व्यक्तिगत अनुवर्ग शिक्षण
(4) उपरोक्त सभी
2. अधिगम सम्बन्धी गलतियों और कमियों को
दूर
करने के लिए क्या आवश्यक है?
(1) उपलब्धि परीक्षण
(2) निदानात्मक परीक्षण
(3) उपचारात्मक शिक्षण
(4) सूक्ष्म शिक्षण
3. गणित का वह शैक्षिक उद्देश्य जिसे
शिक्षक कक्षा में ही प्राप्त कर लेता है,
कहलाता है
(1) व्यवहारगत उद्देश्य
(2) सामान्य उद्देश्य
(3) विशिष्ट उद्देश्य
(4) प्राप्त उद्देश्य
4. यदि ज्यामितीय आकृतियों का अवबोधन हो
जाता है, तो छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन
होगा
(1) आकृतियों के वर्गीकरण करने का
(2) वैसी आकृतियों को खींचने का
(3) आकृतियों की प्रशंसा करने में
(4) गणित परिषद् पट्ट ज्यामितीय आकृतियों का,
प्रदर्शन करने का
5. यदि आपकी कक्षा में कोई छात्र गणित
विषय में कई बार अनुत्तीर्ण होता है, तो
छात्र गणित के किस क्षेत्र में कमजोर है,
यह जानने के लिए आप क्या करेंगे?
(1) लिखित कार्य
(2) मौखिक कार्य
(3) निदानात्मक कार्य
(4) उपचारात्मक कार्य
6. निदानात्मक परीक्षणों से ज्ञात किया जा
सकता है
(1) छात्रों के लिए कठिनाई के क्षेत्र एवं उनके द्वारा
की जाने वाली विशेष प्रकार की त्रुटियाँ
(2) छात्रों की गणितीय पृष्ठभूमि का अभाव
(3) छात्रों की गणित के प्रति रुचि होना
(4) छात्रों के लिए गणित का कठिन होना
7. कमजोर तथा पिछड़े छात्रों के लिए उपचारात्मक
शिक्षण का उपयोग किया जाता है
(1) निदानात्मक मूल्यांकन के बाद
(2) उपलब्धि परीक्षण के बाद
(3) निदानात्मक परीक्षण के पहले
(4) उपलब्धि परीक्षण के पहले
8. छात्र विद्यालय में रहकर जो कुछ सीखता है
उसकी जाँच हेतु जो परीक्षाएँ आयोजित की
जाती हैं, वे कहलाती हैं
(1) उपलब्धि परीक्षण
(2) निष्पत्ति परीक्षण
(3) निदानात्मक मूल्यांकन
(4) ‘1’ व ‘2’
9. यदि कक्षा VI का एक छात्र किसी प्रश्न
को हल करते समय गणना सम्बन्धी त्रुटियाँ
करता है, जैसे-12 + 5 = 16, तो इस
प्रकार की त्रुटियों के उपचार हेतु संशोधन
के लिए आवश्यक है
(1) प्रश्नों को मौखिक रूप से हल करवाएँ
(2) छात्र को अधिक से अधिक गृह कार्य प्रदान करें
(3) त्रुटियों पर आधारित प्रश्नों को उससे
श्यामपट्ट पर हल करवाएँ
(4) छात्र को गणना सम्बन्धी उपकरणों का उपयोग
करने की सलाह दें
10. मन्द-बुद्धि छात्रों के स्तर में सुधार हेतु
उपयोगी परीक्षा है
(1) मन्द-बुद्धि परीक्षण
(2) निदानात्मक परीक्षण
(3) सृजनात्मक परीक्षण
(4) विश्लेषणात्मक परीक्षण
11. निम्न में से क्या उपचारात्मक शिक्षण का
सिद्धान्त है?
(1) अध्यापक व छात्र में निकट सम्बन्ध
(2) कार्य-अनुभव
(3) अध्यापक का व्यापक दृष्टिकोण
(4) उपरोक्त सभी
12. उपचारात्मक शिक्षण आवश्यक है
(1) मन्द-बुद्धि बच्चों के लिए
(2) पिछड़े बच्चों के लिए
(3) प्रतिभाशाली बच्चों के लिए
(4) उपरोक्त सभी के लिए
13. अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयों और कमियों
के स्वरूप का निर्धारण करना कहलाता है
(1) उपचार
(2) निदान
(3) त्रुटि
(4) विचार
14. निदानात्मक परीक्षण का उद्देश्य है
(1) अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया में सुधार लाना
(2) पिछड़े बालकों की पहचान करना
(3) छात्रों की कमियों के आधार पर उनको शैक्षिक
निर्देशन देना
(4) उपरोक्त सभी
15. निदानात्मक परीक्षण का महत्त्व है
(1) निर्देशन में
(2) शिक्षण में
(3) उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था करने में
(4) उपरोक्त सभी
16. कक्षा में छात्रों को गणित विषय के प्रति प्रेरित
करने के लिए निम्नलिखित बात का ध्यान
रखना चाहिए
(1) छात्रों से कठिन अभ्यास करवाना
(2) सभी छात्रों को समान रूप से शिक्षा देना
(3) छात्रों में आत्मविश्वास की भावना का विकास
करना
(4) छात्रों के हल की गई समस्याओं में
अधिक-से-अधिक कमी निकालना
17. कक्षा VII के छात्रों में गणित विषय के प्रति
रुचि पैदा करने के लिए शिक्षक को
कौन-सा तरीका अपनाना चाहिए?
(1) कमजोर छात्रों के लिए अतिरिक्त कक्षाओं की
व्यवस्था करना
(2) गणित विषय को दो कालांश देना
(3) छात्रों को आकर्षक पुस्तके उपलय कराना
(4) गणित पहेलियों तथा अन्य मनोरंजक क्रियाओं के
माध्यम से शिक्षण प्रदान करना
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
18. एक ‘अच्छा’ गणितज्ञ होने के लिए जरुरी
है। [CTET June 2011]
(1) सभी अवधारणाओं को समझना, लागू करना और
उनमें सम्बन्ध बनाना
(2) सवालों के उत्तर देने की तकनीक में निपुणता
(3) अधिकतर सूत्रों को याद करना
(4) बहुत जल्दी सवालों को हल करना
19. एक शिक्षक ‘आकार’ पढ़ाने के लिए
ऐतिहासिक स्थानों के भ्रमण की योजना बना
सकता है, क्योंकि [CTET June 2011]
(1) क्षेत्र भ्रमण सी.बी.एस.ई. द्वारा अनुशंसित किए
गए है, इसलिए ये अतिआवश्यक है
(2) आकार किसी भी वास्तु-कला का अभिन्न हिस्सा
होते हैं और इस तरह के भ्रमण सभी विषयों के
आपसी सम्बन्धों को बढ़ावा देते है
(3) उसने समय रहते अधिकांश पाठ्यक्रम पूरा कर
लिया है और उसे अवकाश उपलब्ध कराने की
आवश्यकता है।
(4) यह गणित की रोजाना कक्षा के लिए एक अच्छा
अवकाश होगा और साथ ही सम्प्रेषणपरक
कौशलों में सुधार के लिए एक बेहतर अवसर
होगा
20. क्षेत्रफल की अवधारणा से परिचित कराने के
लिए शिक्षक से शुरुआत कर सकता
है। [CTET June 2011]
(1) इकाई वर्ग गणन की सहायता से आकृतियों
का क्षेत्रफल ज्ञात करना
(2) भिन्न आकारों की आकृतियों का
क्षेत्रफल ज्ञात करने के लिए सूत्रों को स्पष्ट
करना
(3) हथेली, पत्ते, पेंसिल, नोटबुक, आदि विभिन्न
वस्तुओं की सहायता से किसी आकृति के
धोत्रफल की तुलना करना
(4) आयत की लम्बाई और चौड़ाई का पता लगाना
और आयत के क्षेत्रफल के सूत्र (लम्बाई x
चौड़ाई) का प्रयोग करते हुए क्षेत्रफल ज्ञात
करना
21. एन.सी.ई.आर.टी. की कक्षा IV की गणित
की पाठ्य-पुस्तक के पाठों में इस तरह
के शीर्षक है-‘कबाड़ी वाली’, ‘भोपाल
की सैर’, ‘दुनिया कुछ ऐसी दिखती है।
यह परिवर्तन किया गया है।
[CTET June 2011]
(1) दैनिक जीवन से जोड़ते हुए उन्हें रोचक
बनाने के लिए
(2) कबाड़ बेचने और यात्रा करने के बारे में
जानने के लिए
(3) पाठों में गणितीय विषय वस्तु का अनुमान
लगाने हेतु विद्यार्थियों को चुनौती देने के
लिए
(4) उन्हें अलग-सा समझाने के लिए
22. गणित में निदानात्मक परीक्षण का
उद्देश्य है [CTET June 2011]
(1) प्रगति पत्रक को भरना
(2) सत्रान्त परीक्षा के लिए प्रश्न-पत्र की योजना
बनाना
(3) बच्चों की समझ में निहित रिक्तियों को
जानना
(4) अभिभावकों को प्रतिपुष्टि (फीडबैक) देना
23. सबसे उपयुक्त व्यूह-रचना, जिसका
प्रयोग धनराशि के योग की कुशलता को
आत्मसात करने के लिए किया जा सकता
है,……….है। [CTET Jan 2012]
(1) प्रतिरूपों का प्रयोग करना
(2) भूमिका निर्वाह
(3) बहुत सारे सवाल हल करना
(4) सूचना और सम्प्रेषण तकनीक (ICT) का
प्रयोग करना
24. एक शिक्षक आधार 10 और स्थानीय
मान की संकल्पना का विकास करते
समय कक्षा में निम्नलिखित पहेली का
प्रयोग करता है
‘मैं 8 दहाइयों और 4 इकाइयों से कम
इस गतिविधि का उद्देश्य है
[CTET Jan 2012]
(1) कक्षा में कुछ मजा करना और एकरसता को
तोड़ना
(2) आधार और स्थानीय मान की
संकल्पना को दृढ करना
(3) योगात्मक आकलन करना
(4) विद्यार्थियों को दहाई और इकाई की
संकल्पना से परिचित कराना
25. कक्षा III में दो-अकीय संख्याओं के
व्यवकलन को प्रस्तुत करने के लिए शिक्षक
निम्नलिखित चरणों का अनुगमन करता है
चरण। स्थानीय मान व्यवस्था को समझ
के साथ दो-अंकीय संख्याओं को पुनरावृत्ति
करना।
चरण ॥ यह प्रदर्शित करने के लिए कि
छोटी संख्या को बड़ी संख्या से घटाया
जा सकता है टैली चिहो का प्रयोग करना।
चरण III स्थानीय मान के प्रत्येक कॉलम के
अन्तर्गत संख्याओं के व्यवकलन का अनुप्रयोग
करना।
इस स्थिति में शिक्षक………..के पाठ का विकास
कर रहा है। [CTET Nov 2012]
(1) परिकलन प्रक्रिया – व्यवस्था-संकल्पना
→संक्रिया
(2) व्यवस्था-संकल्पना- परिकलन-प्रक्रिया
→ संक्रिया
(3) व्यवस्था-संकल्पना- संक्रिया
→ परिकलन-प्रक्रिया
(4) संक्रिया – व्यवस्था-संकल्पना
→ परिकलन-प्रक्रिया
26. कक्षा में शिक्षिका विद्यार्थियों को विभिन्न
प्रकार से चतुर्भुज को परिभाषित करने के
लिए कहती है
शिक्षिका का उद्देश्य [CTET Nov 2012]
(1) सभी परिभाषाओं को कंठस्थ करने में
विद्यार्थियों की सहायता करना
(2) परिभाषाओं पर आधारित चतुर्भुज की सभी
समस्याओं को व्याख्या करने में विद्यार्थियों की
सहायता करना
(3) विभिन्न परिभाषाओं को खोजने में विद्यार्थियों
की सहायता करना
(4) विभिन्न परिप्रेक्ष्यों से चतुर्भुज को समझने में
विद्यार्थियों की सहायता करना
27. कक्षा II के शिक्षार्थियों का सरल
आकृतियों, उसके लम्बों और किनारों से
परिचय कराने का सबसे उत्तम उपकरण है
[CTET July 2013]
(1) श्यामपट्ट का तल
(2) जियो-बोर्ड
(3) 3-D सोलिड्स के नेट्स
(4) क्यूब्स
28. निम्नलिखित कक्षा V की पाठ्य-पुस्तक में से
एक सवाल है
“यहाँ 4 खम्भे हैं जिनका माप क्रमश: 105
सेमी, 215 सेमी, 150 सेमी तथा 235 सेमी
है। यदि उन्हें समान लम्बाई के टुकड़ों में
काटना है, तो प्रत्येक टुकड़े की अधिकतम
लम्बाई क्या होगी?” यह सवाल……….. के
लिए पूछा गया है। [CTET July 2013]
(1) एचसीएफ तथा एलसीएम पर आधारित
शब्द-समस्याओं का अभ्यास देने
गुणक और गुगज के भान की परीक्षा
म एचसीएफ छात करने के पीरुल की जाँच
(4) सीखी गई सकरचनाओं का प्रयोग करते हुए
समस्या समाधान कौशल को बढ़ाने
29. निम्नलिखित कक्षा III की पाठ्य-पुस्तक में से
एक समस्या है
“निम्नलिखित समस्या को हल करने के
लिए कौन-सी गणितीय संक्रिया का प्रयोग
किया जाएगा?
एक दूधवाला 10 दिन में 1410 लीटर दूध
बेचता है। वह एक दिन में कितने लीटर
दूध बेचता है? उपरोक्त सवाल में ब्लूम के
संज्ञानात्मक क्षेत्र की किस दक्षता की ओर
संकेत है? [CTET July 2013]
(1) संश्लेषण
(2) ज्ञान
(3) बोधन
(4) विश्लेषण
30. शिक्षिका ने कक्षा V में समाचार-पत्र
वितरित करके छात्रों से सबसे बाद के मैच
में भारतीय टीम के खिलाड़ियों के क्रिकेट
के स्कोर को पढ़ने के लिए कहा। इसके
पश्चात् उसने छात्रों से इन स्कोरों का दण्ड
ग्राफ खींचने के लिए कहा। वह शिक्षिका
प्रयास कर रही थी [CTET Feb 2014]
(1) छात्रों की, वास्तविक जीवन और गणितीय
संकल्पनाओं के बीच सम्बन्ध जानने में,
सहायता करने की
(2) परियोजना उपगमन द्वारा छात्रों को शिक्षा देने
की
(3) कक्षा को आनन्दमय एवं अभिव्यक्तशील बनाने
की
(4) छात्रों की तार्किक क्षमता में वृद्धि करने की
31. कक्षा IV के लिए ‘समय’ के मूल्यांकन
का/के प्राचल होगा/होंगे [CTET Feb 2014]
(1) केवल सदृश घड़ी पर समय पढ़ना
(2) अंकीय घड़ी और सदृश घड़ी पर समय पढ़ना,
आधा घण्टा अधिक, चौथाई घण्टा अधिक,
चौथाई घण्टा कम, am , pm की संकल्पना,
मिनट और सेकण्ड में सम्बन्ध
(3) केवल अंकीय घड़ी पर समय पढ़ना, am और
pm की संकल्पना
(4) केवल अंकीय घड़ी पर समय पढ़ना
32. गणित में प्रक्रमण सम्बन्धी प्रवाहपूर्णता का
अर्थ है नियमों सूत्रों और कलन
विधियों/कलन गणित का ज्ञान होना और
परिशुद्धता लचीलेपन एवं निपुणता के साथ
उनका क्रियान्वयन करना गणित में
लचीलापन””की ओर संकेत करता है।
[CTET Sept 2014]
(1) समान प्रकरण से विभिन्न प्रकार की समस्याओं
का समाधान करने की योग्यता
(2) समान निपुणता के साथ अंकगणित और
ज्यामिति की समस्याओं का समाधान करने की
योग्यता
(3) एक से अधिक उपागमों का प्रयोग करते हुए
एक खास प्रकार की समस्या का समाधान
करने की योग्यता
(4) परिशुद्धता के साथ समस्याओं का समाधान
करने और सभी चरणों को लिखने की योग्यता
33. प्राथमिक कक्षा का एक बच्चा संख्या
संक्रिया चिह्नों सिक्कों एवं घड़ी की सूइयों
में अन्तर स्थापित नहीं कर पाता है। यह
तथ्य इंगित करता है कि इस बच्चे को
निम्नलिखित में से किस प्रक्षेत्र में समस्या है?
[CTET Sept 2014]
(1) श्रवण स्मृति
(2) प्रक्रिया स्मृति
(3) दृश्य प्रक्रमण
(4) भाषा प्रक्रमण
34. एक अध्यापिका अपनी कक्षा में गुणा को
बार-बार किए जाने वाले जोड़ के रूप में
बता रही है। उसके बाद समान संख्या की
वस्तुओं का समूहन कर गुणा के रूप में
बताती है। तत्पश्चात् चिह्न ‘x’ से परिचित
कराती है तथा अन्त में गुणनफल पता करने
के लिए आड़ी-तिरछी रेखाओं अथवा
माचिस की तीलियों की सहायता से एक
छोटा क्रियाकलाप कराती है। यहाँ
अध्यापिका कर रही है [CTET Feb 2015]
(1) गणित में कम सफल बच्चों के लिए
उपचारात्मक युक्तियाँ प्रदान करना
(2) कक्षा को आनन्ददायी बनाने के लिए तरह-तरह
के प्रस्तुतीकरण
(3) ‘मूर्त से अमूर्त सम्प्रत्यय की ओर, के रूप में
एक पाठ का विकास
(4) विभिन्न अधिगम शैलियों वाले शिक्षार्थियों का
ध्यान रखना
35. यदि एक शिक्षार्थी पूर्णांकों, भिन्नों और
दशमलव संख्याओं पर चारों आधारभूत
संक्रियाएँ सम्पन्न करने में समर्थ है, तो वह
[CTET Sept 2015]
(1) विभाजनात्मक अवस्था में है
(2) उपादान अवस्था में है
(3) संक्रियात्मक अवस्था में है
(4) परिमाणात्मक अवस्था में है
उत्तरमाला
1. (4) 2. (3) 3. (4) 4. (1) 5. (3) 6. (1) 7. (1) 8. (4) 9. (3) 10. (2)
11. (3) 12. (4) 13. (2) 14. (4) 15. (4) 16. (3) 17. (4) 18. (1)
19. (2) 20. (3) 21. (1) 22. (3) 23. (2) 24. (2) 25. (2) 26. (4)
27. (2) 28. (4) 29. (4) 30. (1) 31. (2) 32. (3) 33. (3) 34. (3)
35. (3)