CTET Notes In Hindi | सतत एवं व्यापक मूल्यांकन
CTET Notes In Hindi | सतत एवं व्यापक मूल्यांकन
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन
Continuous and Comprehensive Evaluation (CCE)
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने से
यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 1 प्रश्न, 2012
में 1 प्रश्न, वर्ष 2013 में भी 1 प्रश्न, 2014 में 2 प्रश्न, 2015 में 4
प्रश्न तथा वर्ष 2016 में 7 प्रश्न पूछे गए हैं। CTET परीक्षा में पूछे
गए प्रश्न मुख्यत: मूल्यांकन के प्रकार, उसके कार्य एवं महत्त्व तथा
प्राथमिक स्तर पर मूल्यांकन आदि प्रकरणों से सम्बन्धित हैं।
6.1 मूल्यांकन क्या है?
मूल्यांकन वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा अधिगम परिस्थितियों तथा सीखने के
अनुभवों के लिए प्रयुक्त की जाने वाली समस्त विधियों और प्रविधियों की
उपयोगिता की जांच की जाती है।
टॉरगर्सन एवं एडम्स के अनुसार, किसी प्रक्रिया अथवा वस्तु के महत्त्व को
निर्धारित करना ही मूल्यांकन है।
मोफात के अनुसार, मूल्यांकन निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है तथा यह
छात्रों को औपचारिक शैक्षिक अनुभव प्रदान करता है।
• मूल्यांकन शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का एक ऐसा सोपान है, जिसमें शिक्षक
यह सुनिश्चित करता है कि उसके द्वारा की गई शिक्षण व्यवस्था तथा शिक्षण
को आगे बढ़ाने की क्रियाएँ कितनी सफल रही हैं।
• यह सफलता शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति प्रत्युत्तर का कार्य करती है। इस
तरह, मापन के आधार पर शिक्षकों एवं शिक्षार्थियों में आवश्यक सुधार लाने
के उद्देश्य से मूल्यांकन की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
• इसमें यह देखा जाता है कि पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति हुई है या नहीं
यदि नहीं हुई है तो कितनी तक। यह एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया
है, जिसका शैक्षिक उद्देश्यों से घनिष्ठ सम्बन्ध है।
• मूल्यांकन शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों के लिए पुनर्बलन (Reinforcemen)
का कार्य करता है। शिक्षा जगत् में मूल्यांकन को प्रासंगिक माना जाता है,
इसके द्वारा असफलताओं का निर्णय तथा कठिनाइयों आदि की जानकारी
प्राप्त की जाती है।
6.1.1 मूल्यांकन के प्रकार
मूल्यांकन मुख्यतया तीन प्रकार के होते हैं
1. रचनात्मक मूल्यांकन
• रचनात्मक मूल्यांकन फीडबैक मुहैया कराता है, जो विद्यार्थियों को
(शिक्षा-प्राप्ति की) त्रुटियों को समझने और उन्हें दूर करने में विशेष
सहायता देता है।
• सैडलर के अनुसार-रचनात्मक मूल्यांकन में फीडबैक और
स्व-मॉनिटरन दोनो तत्त्व शामिल होते है।’
• ब्लैक और विलियम के अनुसार-रचनात्मक मूल्यांकन प्रायः इससे
अधिक कुछ नहीं होता कि मूल्यांकन बारम्बार किया जाता है और
अध्यापन की तरह तत्काल उसी समय किया जाता है।
• रचनात्मक मूल्यांकन को रूपात्मक आकलन भी कहा जाता है।
• “प्रयोग करना” आकलन का एक विशिष्ट संकेतक माना जाता है।
हस्तपरक गतिविधि प्रयोग संकेतक का आकलन करने का सर्वाधिक
उपयुक्त तरीका माना जाता है।
• प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन में रचनात्मक आकलन में
शिक्षार्थियों की ग्रेडिंग और रैकिंग को शामिल नहीं किया जाता है।
2. संकलनात्मक/योगात्मक मूल्यांकन
• इस प्रकार का मूल्यांकन प्राय: सत्र के अन्त में किया जाता है। शिक्षक
द्वारा पढ़ाने के बाद ये देखना कि बच्चों ने ज्ञान को किस सीमा तक
ग्रहण किया है।
• किसी पाठ को पढ़ाने के बाद जब शिक्षक बच्चों से अध्याय से
सम्बन्धित प्रश्न करता है तो वह मूल्यांकन योगात्मक मूल्यांकन कहलाता
है।
3. निदानात्मक मूल्यांकन
• जो बच्चे असफल हो रहे होते हैं, उन बच्चों की असफलता का कारण
ढूँढना निदानात्मक मूल्यांकन कहलाता है।
6.1.2 मूल्यांकन पर आधारित प्रश्न-पत्र
हम बच्चों का शैक्षणिक मूल्यांकन प्रश्न पत्र के द्वारा करते है जिसमें
विभिन्न प्रकार के प्रश्न पत्र तैयार किए जाते है जिसके अन्तर्गत प्रश्नों को
निम्न आधारों पर बनाया जाता है-अन्त मुक्त मुक्त उत्तरीय प्रश्न,
अन्त-बन्द/सीमित उत्तरीय प्रश्न
अन्त-मुक्त प्रश्न
इस प्रकार के प्रश्नों में विचारों को प्रस्तुत करने को पूर्ण स्वतन्त्रता होती है।
जिसमें हम अपने विचारों को अपने तरीके से प्रस्तुत कर सकते है
जैसे—कि लघु उत्तरात्मक प्रश्न और निबन्धात्मक प्रश्न इत्यादि।
अन्त-बन्द/सीमित उत्तरीय प्रश्न
इस प्रकार के प्रश्नों में विचारों को प्रस्तुत करने को स्वतन्त्रता नहीं होती है।
अत: हमें इस प्रश्न के विकल्पो में से एक छाँटना होता है। अन्त-बन्द
प्रश्नों के कई प्रकार होते है; जैसे
• सत्य-असत्य-हाँ या ना में उत्तर देना।
• बहुविकल्प प्रल-सही विकल्प का चयन।
• मिलान प्रश्न-सही विकल्प मिलाना।
• वर्गीकृत प्रश्न-इसमें शब्दों के समूह से एक अलग शब्द का चयन।
• खाली स्थान-खाली स्थान में उपयुक्त विकल्प भरना।
• व्यवस्थीकरण प्रश्न–तथ्यों को सही क्रम में लगाना।
अन्त-बन्द प्रश्नों को वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Question) भी कहा जाता
है। बहुविकल्प, सत्य-असत्य, मिलान, खाली स्थान, व्यवस्थीकरण और
वर्गीकरण आदि में सभी प्रश्न भी वस्तुनिष्ठ प्रश्न हैं।
6.1.3 मूल्यांकन की विधियाँ
मूल्यांकन की कई विधियाँ प्रचलित हैं, जैसे
1. आत्म-प्रतिवेदन (Self Report) इस प्रकार की विधि में व्यक्ति स्वयं
के विश्वासों, मतों आदि के बारे में तथ्यात्मक सूचनाएँ प्रदान करता है।
2. प्रेक्षण (Observation) इस विधि में व्यक्ति की स्वाभाविक दशा में
घटित होने वाली तत्क्षणिक व्यावहारिक घटनाओं का व्यवस्थित
संगठित तथा वस्तुनिष्ठ ढंग से अभिलेख तैयार किया जाता है।
3. साक्षात्कार (Interview) इस विधि में परीक्षणकर्ता बातचीत के जरिए
सूचनाएँ प्राप्त करता है।
4. मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychological Test) इस विधि में व्यक्ति
की मानसिक तथा व्यवहारगत विशेषताओं का वस्तुनिष्ठ मापन किया
जाता है।
5. पोर्टफोलियो (Portfolio) यह एक निश्चित समयावधि में विद्यार्थी
द्वारा किए गए समुचित कार्यों का संग्रह होता है।
6. निर्धारण मापनी (Rating Scale) बच्चों की उनकी योग्यताओं व
उपलब्यि के आधार पर जाँचा जाता है। इसके लिए इनका निर्धारण
प्रड प्रणाली द्वारा होता है।
7. घटनावृत (Anecdotal Record) इसमें स्कूल में घटित होने वाली
दैनिक घटनाओं का विवरण प्रस्तुत होता है और उसके आधार पर ही
मूल्यांकन होता है। इसमें छात्रों की उपलब्धि के विभिन्न घटनाओं को
शामिल किया जाता है। उदाहरण के लिए किसी प्रतिस्पर्दा आदि का
अभिलेख आदि।
8. संचित अभिलेख पत्र (Commutative Record) इसमें बच्चों के
व्यक्तित्व में आए विभिन्न परिवर्तनों एवं उपलब्धियो को एक प्रपत्र में
लिखकर सुरक्षित रखा जाता है। उदाहरण के लिए बच्चे की शारीरिक,
मानसिक, सामाजिक, नैतिक, मनोवैज्ञानिक आदि अभिलेख तैयार
करना। अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो बच्चों के सर्वांगीण विकास
का अभिलेख तैयार करना।
6.1.4 उपलब्धि का मूल्यांकन
उपलव्यि का मूल्यांकन निम्न प्रकार से होता है
• छात्र की उपलब्धि का मूल्यांकन सतत एवं व्यापक रूप से होते रहना
चाहिए। इसके लिए कई विधियों को अपनाया जाता है, किन्तु ग्रेडिंग पद्धति
का प्रयोग इस कार्य हेतु सर्वाधिक बेहतर माना जाता है।
• विभिन्न क्षेत्रों में विद्यार्थियों की उपलब्धियों की रिपोर्ट तैयार करते समय
समान ज्ञान में अप्रत्यक्ष प्रणाली प्रेडिंग के 5 बिन्दुओं का प्रयोग किया जा
सकता है।
• बच्चे की उपलब्धि को प्रेड उपलब्धि कार्ड में दर्शाया जाना चाहिए, जो
प्रतिशतता की उपयुक्त श्रेणी में व्यवहार के सूचक के अनुसार प्रतिशतता
पर आधारित हो। इसके अलावा, शैक्षिक और शिक्षा से जुड़े क्षेत्रों और
बच्चे की उपलब्धि के स्तर के सम्बन्ध में कुछ टिप्पणियाँ दर्ज की जा सकती
है। ये टिप्पणियाँ शिक्षण के क्षेत्र में प्रयास करने के लिए माता-पिता और
बच्चे के लिए सहायक होती हैं।
• सतत एवं व्यापक मूल्यांकन, सतत निदान, उपचार, प्रोत्साहन और सराहना
करके विद्यार्थी की उपलब्धियों में सुधार लाने के लिए उपयोगी प्रविधियाँ
है। इसके लिए प्रधानाचार्य, अध्यापक और माता-पिता को अभिमुखी और
ठोस प्रयास करने होगे ताकि बच्चे के व्यक्तित्व का चहुंमुखी विकास हो
सके। संलग्न रेटिंग मान से विभिन्न ग्रेडों के रूप में विद्यार्थियों को उचित
रूप से रखने में अध्यापक को मदद मिलती है।
6.1.5 प्राथमिक स्तर (कक्षा 1 से V ) पर मूल्यांकन
प्राथमिक स्तर का मूल्यांकन निम्न प्रकार से होता है
• इस स्तर पर औपचारिक मूल्यांकन सर्वथा उचित नहीं होता है। शिक्षक को
बच्चे का अवलोकन करते हुए ही मूल्यांकन भी करना चाहिए और इससे
बच्चे के माता-पिता/अभिभावक को भी अवगत कराना चाहिए।
• बच्चे के प्रगति-कार्ड पर सामान्य अवलोकन से मालूम हुए उसकी
अभिरुचि, क्षमता, कुशलता, स्वास्थ्य की स्थिति आदि की सूचना होनी
चाहिए।
• कक्षा 3 से 5 तक के पठन-पाठन को ज्यादा संरक्षित किया जा सकता है
लेकिन इसे सतत मूल्यांकन पर ही आधारित रहना चाहिए।
• प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन में आकलन के लिए परियोजना कार्य
एवं क्षेत्र भ्रमण प्रभावी उपकरण और तकनीक माने जाते हैं।
• मूल्यांकन में बच्चे के विविध आयामों के बारे में और ज्यादा जानने हेतु
गहरी पैठ होनी चाहिए। इनमें से कुछ आयाम प्रमुख हैं भाषा की समझ,
पढ़ने की क्षमता, अभिव्यक्ति की योग्यता, स्वयं अपने हाथो से काम करने
से लेकर सामूहिक रूप में काम करने की कुशलता, अवलोकन,
वर्गीकरण, ड्रॉइंग आदि करने के कौशल आदि। ये सभी इस अवस्था के
बच्चों के अधिगम के आवश्यक अंग माने जाते है।
• प्राथमिक शिक्षा की पूरी अवधि में किसी भी तरह की औपचारिक
जाँच-परीक्षा नहीं होनी चाहिए। साथ ही अंक या प्रेड देने, पास या फेल
करने की किसी भी तरह की पहल नहीं होनी चाहिए। इसीलिए इस स्तर
पर बच्चों को अगली कक्षा में जाने से नहीं रोका जाना चाहिए। इस स्तर
पर मेरिट कायम करने से अनिवार्यत: बचना चाहिए।
• कक्षा-शिक्षक को दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार इसके अलावा
लगातार मूल्यांकन करते रहना चाहिए, बच्चे के व्यक्तित्व के विविध पक्षो
को जानने के लिए ही मूल्यांकन होना चाहिए।
6.2 ‘सतत और व्यापक’ मूल्यांकन क्या है?
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन इस प्रकार है
• आज हमारे समक्ष पारम्परिक परीक्षा प्रणाली और मूल्यांकन को बदलने
की अनेक चुनौतियां है। माध्यमि स्तर पर सतत एवं व्यापक मूल्यांकन
को अपने सभी विद्यालयों में लागू करते हुए सीबीएसई ने यह स्पष्ट
सन्देश दिया है कि मूल्यांकन करते समय विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास को
ध्यान में रखा जाना चाहिए।
• अधिगम एक सतत प्रक्रिया है इसलिए मूल्यांकन भी सतत होना चाहिए।
मूल्यांकन अध्यापन एवं अधिगम की प्रक्रिया का एक अभिन्न हिस्सा है।
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन में मूलरूप से विद्यार्थी के ज्ञान की परीक्षा के
स्थान पर उसके अधिगम की प्रक्रिया को मूल्यांकन के लिए चुना गया है।
• सतत और व्यापक मूल्यांकन (सी सी ई)का अर्थ छात्रों के विद्यालय
आधारित मूल्यांकन की प्रणाली से सम्बन्धित है, जिसमें छात्रों के विकास
के सभी पक्ष शामिल होते हैं। यह एक बच्चे की विकास प्रक्रिया को
दर्शाता है, जिसमें दोहरे उद्देश्यों पर बल दिया जाता है। ये उद्देश्य एक
ओर मूल्यांकन में निरन्तरता और व्यापक रूप से सीखने के मूल्यांकन पर
तथा दूसरी और व्यवहार के परिणामों पर आधारित है।
• यहाँ ‘निरन्तरता’ का अर्थ इस पर विशेष बल देना है कि छात्रों की वृद्धि
और विकास’ के अभिज्ञात पक्षों का मूल्यांकन एक बार के कार्यक्रम के
बजाय एक निरन्तर प्रक्रिया है, जिसे सम्पूर्ण अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया में
निर्मित किया गया है और यह शैक्षिक सत्रों की पूरी अवधि में फैली हुई
है। इसका अर्थ है मूल्यांकन की नियमितता, अधिगम अन्तरालों का निदान,
सुधारात्मक उपायों का उपयोग, स्वयं मूल्यांकन के लिए अध्यापकों और
छात्रों के साक्ष्य का फीडबैक अर्थात् प्रतिपुष्टि इत्यादि।
दूसरा पद ‘व्यापक’ का अर्थ है शैक्षिक और सह शैक्षिक पक्षों को शामिल
करते हुए छात्रों की वृद्धि और विकास को परखने की योजना। चूँकि
क्षमताएँ, मनोवृत्तियाँ और सोच अपने आप को लिखित शब्दों के अलावा
अन्य रूपों में प्रकट करती है, इसलिए यह पद अनेक साधनों और
तकनीकों के अनुप्रयोग को सन्दर्भित करता है (परीक्षणकारी और
गैर-परीक्षणकारी दोनों संदर्भ में) और यह सीखने के क्षेत्रों में छात्रों के
विकास के मूल्यांकन पर लक्षित है; जैसे-ज्ञान, समझ, व्याख्या,
अनुप्रयोग, विश्लेषण, मूल्यांकन एवं सृजनात्मकता।
5.2.1 सतत और व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य
इस मूल्यांकन के प्रमुख उद्देश्य निम्न है
• सतत एवं व्यापक मूल्यांकन से बोधात्मक, मनोप्रेरक और भावात्मक
कौशलो के विकास में सहायता मिलती है। यह सीखने की प्रक्रिया पर बल
देता है और इससे याद रखने पर बल नहीं देना पड़ता है।
• मूल्यांकन को अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया का अविभाज्य हिस्सा बनाना।
• नियमित निदान के आधार पर उपचारात्मक अनुदेशों के बाद छात्रों की
उपलब्धि और अध्यापन-अधिगम कार्यनीतियों के सुधार के लिए मूल्यांकन का
उपयोग करना। मूल्यांकन को निष्पादन के वांछित स्तर पर बनाए रखने के
लिए गुणवत्ता नियन्त्रण युक्ति के रूप में इस्तेमाल करना।
• सामाजिक उपयोगिता, वांछनीयता या एक कार्यक्रम की प्रभावशीलता का निर्धारण
करना और छात्र, सीखने की प्रक्रिया तथा सीखने के परिवेश के बारे में उपयुक्त
निर्णय लेना।
• अध्यापन और अधिगम प्रक्रिया को छात्र केन्द्रित कार्यकलाप बनाना।
6.2.2 किस बात का मूल्यांकन किया जाना चाहिए?
बच्चे की शिक्षा-प्राप्ति का एक पूरा ग्राफ प्राप्त करने के लिए, मूल्यांकन का
ध्यान इस बात पर केन्द्रित होना चाहिए, कि निम्नलिखित बातों के लिए
शिक्षार्थी के पास कितनी योग्यता है
• विभिन्न विषय क्षेत्रों के सम्बन्ध में वांछित कौशल सीखना और प्राप्त
करना
• विभिन्न विषय क्षेत्रों में अपेक्षित मात्रा में सफलता का स्तर प्राप्त करना
• बच्चे के वैयक्तिक कौशलो, रचियों, अभिवृत्तियों और अभिप्रेरण का
विकास करना
• एक स्वस्थ और उत्पादक मूल्य जीवन का अर्थ समझना और उसके
अनुरूप जीवन विताना
• समय-समय पर बच्चे के ज्ञान, आचरण और प्रगति में होने वाले परिवर्तनी
की निगरानी करना
• स्कूल के अन्दर और बाहर दोनों स्थानों पर विभिन्न परिस्थितियों और
अवसरों में प्रतिक्रिया की जाँच करना। जो कुछ सीखा है, उसका उपयोग
विभिन्न पर्यावरणों, परिस्थितियों और स्थितियों में करना
• स्वतन्त्र व व्यक्तिगत रूप में मिलकर या सामंजस्यपूर्ण तरीके से कार्य का
संचालन करना। विश्लेषण और मूल्यांकन की परख की क्षमता होना
• सामाजिक और पर्यावरणिक मुद्दों से भली-भाँति सुपरिचित होना
• सामाजिक और पर्यावरणिक परियोजनाओं में और उद्देश्यों के लिए भाग
लेना तथा जो कुछ भी सीखा है, उसे हमेशा याद करना
मूल्यांकन की प्रक्रिया में, निम्नलिखित कार्य नहीं करने चाहिए
• शिक्षार्थियों को मन्द, कमजोर, बुद्धिमान आदि के रूप में वर्गीकृत करने से
बचना। उनके बीच तुलना करना
• सार्वजनिक रूप से नकारात्मक बयान देना
6.2.3 व्यापक और सतत मूल्यांकन के कार्य एवं महत्त्व
सतत और व्यापक मूल्यांकन के कार्य एवं महत्त्व निम्नलिखित है
• यह अध्यापक को प्रभावकारी कार्यनीतियों को आयोजित करने में सहायता
प्रदान करता है।
• सतत मूल्यांकन शिक्षार्थियों की प्रगति की सीमा और मात्रा को नियमित
रूप से आंकने में सहायता देता है (विशिष्ट शैक्षिक और सह-शैक्षिक
क्षेत्रों के सन्दर्भ में योग्यता और उपलब्धि)।
• सतत मूल्यांकन कमजोरियों का निदान करने का कार्य करता है और
अध्यापक को अलग-अलग शिक्षार्थियों की शक्तियों और कमजोरियों और
उसकी आवश्यकताओं का पता लगाने में सहायता देता है। यह अध्यापक
को तत्काल फीडबैक मुहैया उपलव्य करता है, जो तब यह फैसला कर
सकता है कि कोई विशेष यूनिट अथवा संकल्पना समूची कक्षा को फिर से
पढ़ाए जाने की आवश्यकता है।
• सतत मूल्यांकन के द्वारा, बच्चे अपनी शक्तियों और कमजोरियों को मापक
एवं प्रभावी तरीके से समझ सकते है।
• यह बच्चों में अध्ययन की अच्छी आदते विकसित करने, गलतियों को
सुधारने और अपने क्रियाकलापों को वांछित लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में
मोड़ने के लिए अभिप्रेरित कर सकता है।
• इससे शिक्षार्थी को शिक्षा के उन क्षेत्रों को निर्धारित करने में सहायता
मिलती है, जिस पर अधिक बल दिए जाने की आवश्यकता है।
• सतत और व्यापक मूल्यांकन अभिरुचियों और प्रवृत्ति वाले क्षेत्र अभिज्ञात
करता है। यह अभिवृत्तियों और मूल्य प्रणालियों में होने वाले परिवर्तनों का
पता लगाने में विशेष सहायता देता है।
• यह विषयों, पाठ्यक्रमों और जीवनवृत्तियों (करियर) के चयन के सम्बन्ध
में, भविष्य के लिए फैसले करने में सहायता देता है।
• यह शैक्षिक और सह-शैक्षिक क्षेत्रों में विद्यार्थियों की प्रगति के बारे में
सूचनाएँ रिपोर्ट देता है और इस प्रकार शिक्षार्थी की भावी सफलताओं के
बारे में पूर्वानुमान लगाने में भी सहायता देता है।
• सतत मूल्यांकन समय-समय पर बच्चे, अध्यापकों और माता-पिता को
उपलब्धि के बारे में जागरूक बनाने में काफी सहायता देता है। यदि
उपलब्धि में कोई कमी हुई हो, तो वे उसके सम्भाव्य कारणों की जाँच कर
सकते हैं और शिक्षा के उस क्षेत्र में, जिसमें अधिक जोर देने की
आवश्यकता हो, उपचारी उपाय कर सकते हैं।
• कभी-कभी कुछ वैयक्तिक कारणों से, पारिवारिक समस्याओं अथवा
समायोजन की समस्याओं के कारण, बच्चे अपने अध्ययन की उपेक्षा
करना शुरू कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनकी उपलब्धि में गिरावट
आने लगती है। यदि अध्यापक, बच्चे और माता-पिता की उपलब्धि में
अचानक आई गिरावट का पता न चले, तो बच्चे द्वारा अपने अध्ययन की
उपेक्षा लम्बे समय तक की जाती रहती है और इसके परिणामस्वरूप
उपलब्धि निम्नस्तरीय हो जाती है।
• सतत और व्यापक मूल्यांकन का मुख्य जोर विद्यार्थियों की निरन्तर संवृद्धि
पर और उनका बौद्धिक, भावनात्मक, शारीरिक, सांस्कृतिक और सामाजिक
विकास सुनिश्चित करने पर होता है।
• इसलिए यह विद्यार्थी की केवल शैक्षिक उपलब्धियों को आँकने तक
सीमित नहीं होता है। यह मूल्यांकन का उपयोग शिक्षार्थियों को अन्य
कार्यक्रमों के लिए अभिप्रेरित करने, सूचना प्रदान करने, फीडबैक की
व्यवस्था करने और शिक्षा में शिक्षा प्राप्ति में सुधार करने के लिए अनुवर्ती
कार्रवाई करने और शिक्षार्थी के विवरणों की एक व्यापक तस्वीर प्रस्तुत
करने के एक साधन के रूप में करता है।
अभ्यास प्रश्न
1. मूल्यांकन के बारे में कौन-सा कथन सही है?
(1) मूल्यांकन शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों का
होता है
(2) मूल्यांकन शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का एक
सोपान है
(3) मूल्यांकन निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है
जिसका शैक्षिक उद्देश्य से निकट का सम्बन्ध
होता है
(4) उपरोक्त सभी
2. निम्नलिखित में से कौन-सा सतत् एवं
व्यापक मूल्यांकन के उद्देश्य में शामिल
होता है?
1. मूल्यांकन सीखने की प्रक्रिया पर बल
देना न कि याद रखने पर बल देता है।
2. मूल्यांकन, बोधात्मक, मनोप्रेरक और
भावात्मक कौशलों के विकास में
सहायता प्रदान करता है।
(1) केवल 1
(2) केवल 2
(3) 1 और 2 दोनों
(4) न तो 1 और न ही 2
3. निम्नलिखित में से बच्चे का आकलन करने
का वह सर्वश्रेष्ठ तरीका कौन-सा होगा
जिसमें बच्चों का आकलन योजनाबद्ध तथा
पारदर्शी होता है?
(1) गृह कार्य
(2) योगात्मक कार्य
(3) पोर्टफोलियो
(4) आवधिक परीक्षाएँ
4. सहयोगात्मक अधिगम में बड़े और अधिक
दक्ष शिक्षार्थियों, छोटे और कम दक्ष
शिक्षार्थियों के आकलन की सबसे उपयोगी
विधि क्या होती है?
(1) उच्च उपलब्धि और स्व-गरिमा
(2) उच्च नैतिक विकास
(3) गहन प्रतियोगिता
(4) समूहों में द्वन्द्व
5. एक शिक्षिका संकल्पना पढ़ाते समय
विद्यार्थियों से अक्सर प्रतिपुष्टि (feedback)
लेती है।
(1) इस क्रिया को ‘रूपात्मक आकलन’ कहा जा
सकता है
(2) यह क्रिया विद्यार्थियों की चिन्तन-प्रक्रिया में
व्यवधान उत्पन्न कर सकती है, अतः ऐसा नहीं
किया जाना चाहिए
(3) यह क्रिया शिक्षक को उसके उद्देश्यों की
प्राप्ति से विचलित कर सकती है
(4) यह क्रिया कक्षा में प्रेरक वातावरण का निर्माण
कर सकती है
6. पर्यावरण अध्ययन में आकलन हेतु
विद्यार्थियों की ………… की योग्यता के
परीक्षण पर ज्यादा बल दिया जाना चाहिए।
(1) मुक्त अन्त वाले प्रश्नों के उत्तर देने
(2) उच्च अधिगम के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम होने
(3) विज्ञान के तथ्यों और सिद्धान्तों को सही रूप
में बताने
(4) दैनिक जीवन की अपरिचित परिस्थितियों में
संकल्पनाओं की समझ को व्यवहार में लाने
7. रचनात्मक आकलन का उपयोग शिक्षक
द्वारा किया जाता है जिसमें ………. शामिल
होता है?
A. भय रहित और सहयोगी वातावरण
B. शिक्षार्थियों की ग्रेडिंग और रैंकिंग
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) A और B दोनों
(4) न तो A और न ही B
8. पर्यावरण अध्ययन में योगात्मक आकलन
को पर बल देना चाहिए।
(1) अवलोकन कौशलों का आकलन करने
(2) विद्यार्थियों के अधिगम-कठिनाई वाले क्षेत्रों का
निदान करने
(3) मुख्य रूप से प्रायोगिक कौशलों का परीक्षण करने
(4) महत्त्वपूर्ण सैद्धान्तिक संकल्पनाओं का परीक्षण
करने
9. निम्नलिखित में से कौन-सा पर्यावरण
अध्ययन में रूपात्मक आकलन की मुख्य
विशेषता है?
(1) इसका उद्देश्य है विद्यार्थियों में वैज्ञानिक
दृष्टिकोण का विकास करना
(2) इसका उद्देश्य है प्रायोगिक कौशलों को
समुन्नत करना
(3) यह वर्ष के अन्त में आयोजित किया जाता है
(4) यह अपनी प्रकृति में निदानात्मक है
10. निम्न में से किसका आकलन हो सकता है
जब गीता ‘मनुष्य में पोषण’ विषय का
केवल बहुविकल्पीय प्रश्नों द्वारा मूल्यांकन
कर रही है?
(1) भोजन सम्बन्धी आदतों से जुड़ी गलत
अवधारणाएँ
(2) शिक्षार्थियों के ज्ञान का प्रयोग करके रोल-प्ले
तैयार करके प्रार्थना सभा में प्रस्तुत करने की
क्षमता
(3) भोज्य अवयवों के महत्त्व को समझने की
शिक्षार्थियों की क्षमता व उस पर एक लम्बा
निबन्ध लिखने की क्षमता
(4) भोज्य पदार्थों को वर्गीकृत करने व पोस्टर
बनाने के लिए विश्लेषण क्षमता
11. पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण में मूल्यांकन
हेतु प्रयोगात्मक परीक्षणों का महत्त्व है
(1) बच्चे के व्यवहार की जाँच करना
(2) बच्चे में सृजनात्मकता का मूल्यांकन करना
(3) बच्चे की रचनात्मक क्षमता की जाँच करना
(4) उपरोक्त सभी
12. रुचि कक्षा V के EVS विषय में नीचे दी
गई मूल्यांकन तकनीक का प्रयोग करती है
A. मौखिक परीक्षा
B. गृहकार्य मूल्यांकन
C. परियोजना कार्य मूल्यांकन
D. हस्तसिद्ध क्रियाकलापों का मूल्यांकन
उपरोक्त लिखी गई तकनीकों का कौन-सा
युग्म अधिक सटीक व वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन
दे सकता है?
(1) A और B
(2) A और C
(3) A और C
(4) B और C
13. पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण में मूल्यांकन
का उद्देश्य क्या होना चाहिए?
(1) पत्रों के पर्यावरण अध्ययन के सिद्धान्तों की
जानकारी का परीक्षण
(2) पत्रों के पर्यावरण अध्ययन के व्यावहारिक
ज्ञान का परीक्षण
(3) पत्रों की विज्ञान में रुचि का परीक्षण
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
14. एक विज्ञान शिक्षक के दृष्टिकोण से किस
स्तर पर औपचारिक मूल्यांकन नहीं होना
चाहिए?
(1) प्राथमिक स्तर
(2) उच्च प्राथमिक स्तर
(3) माध्यमिक स्तर
(4) उच्च माध्यमिक स्तर
15. सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का अर्थ है
(1) अध्यापकों का विद्यालय आधारित मूल्यांकन
(2) विद्यालय आधारित मूल्यांकन जिसमें बाल
विकास के सभी पहलू शामिल है
(3) शिक्षार्थियों का विद्यालय आधारित मूल्यांकन
(4) विद्यालय आधारित मूल्यांकन जिसमें अध्यापक
और बालक के विकास के सभी पहलू
शामिल है
16. पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण में मूल्यांकन
का उद्देश्य है
A. विश्वसनीय जानकारी
B. अधिगम प्रक्रिया में सुधार
C. पाठ्य वस्तु की उपयुक्तता की जांच
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) A और B
(4) उपरोक्त सभी
17. पर्यावरण की कक्षा में रूपात्मक आकलन
के कार्य में निम्नलिखित में से कौन-सा
शामिल है?
A. पाठ में दी गई महत्त्वपूर्ण शब्दावली की
परिभाषा की व्याख्या करना
B.दिए गए प्रयोगात्मक क्रियाकलापों को
पूरा करना और अपने अवलोकन को
दर्ज करना
C. दिए गए प्रयोगात्मक प्रारूप के चिह्नांकन
वाले आरेख बनाना।
(1) A और B
(2) A और C
(3) B और C
(4) A, B और C
18. प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन के
आकलन में निम्नलिखित में से कौन-सा
संकेतक उपयुक्त है?
A. प्रश्न पूछना
B. सहयोग
C. न्याय और समानता के प्रति चिन्ता
(1) A और B
(2) A और C
(3) B और C
(4) A, B और C
19. पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण में गुणात्मक
व्यवहार परिवर्तनों के मूल्यांकन हेतु
उपयुक्त तकनीक नहीं है
(1) रेटिंग स्केल
(2) ग्रेडिंग व्यवस्था
(3) निबन्धात्मक परीक्षा
(4) रूपात्मक आकलन
20. पर्यावरण अध्ययन के शिक्षक को
निम्नलिखित में से किसका मूल्यांकन नहीं
करना चाहिए?
(1) बालक के अधिगम
(2) पाठ्य सहगामी गतिविधियों
(3) बालक की उपलब्धि
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
21. प्राथमिक स्तर पर, आकलन में शामिल होना
चाहिए [CTET June 2011]
(1) अर्द्धवार्षिक और वर्ष के अन्त में वार्षिक
परीक्षाएँ
(2) छोटे बच्चों को उत्तीर्ण अथवा अनुत्तीर्ण की
श्रेणी के अन्तर्गत आँकने के लिए प्रत्येक
सप्ताह गृह-कार्य और कक्षा-कार्य
(3) शिक्षक द्वारा सतत और असंरचनात्मक तरीके
से किए गए अवलोकन को बच्चों और
अभिभावकों के साथ बाँटना
(4) प्रत्येक सप्ताह औपचारिक परीक्षाएँ और खेल
तथा उन्हें प्रगति पत्र में दर्ज करना
22. सहयोगात्मक अधिगम में पुराने एवं अधिक
दक्ष विद्यार्थी छोटे एवं कम कुशल
विद्यार्थियों का आकलन करते हैं।
[CTET Nov 2012]
(1) समूहों में द्वन्द्र
(2) गहन प्रतियोगिता
(3) उच्च उपलब्धि और स्व-गरिमा
(4) उच्च नैतिक विकास
23. प्राथमिक स्तर पर बच्चे को आकलन करने
का सर्वश्रेष्ठ तरीका है ………. का प्रयोग
करना।
(1) गृह कार्य
(2) योगात्मक कार्य
(3) पोर्टफोलियो
(4) आवधिक परीक्षाएँ
24. प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन में
रचनात्मक अवकलन ……….को शामिल
नहीं करता। [CTET July 2013]
(1) शिक्षार्थियों की ग्रेडिंग और रैकिंग
(2) शिक्षाधियों की अधिगम-रिक्तियों की पहचान
(3) शिक्षण में कमियों की पहचान
(4) शिक्षार्थियों के सीखने को बढ़ाने
25. नेहा कक्षा के EVS विषय में नीचे दी गई
मूल्यांकन तकनीक का प्रयोग करती है
[CTET Feb 2014]
A. हस्तसिद्ध क्रियाकलापों का मूल्यांकन
B. गृहकार्य मूल्यांकन
C. परियोजना कार्य मूल्यांकन
D. मौखिक परीक्षा
नीचे दिए गए तकनीको का कौन-सा युगल
अधिक वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन दे सकता है?
(1) Bऔर C
(2) A और D
(3) B और D
(4) A और B
26. निम्न में से कौन-सा पर्यावरण की कक्षा में
रूपात्मक आकलन का समुचित कार्य नहीं
है? [CTET Sept 2014]
(1) पाठ में दी गई महत्त्वपूर्ण शब्दावली की
परिभाषा की व्याख्या करना
(2) दिए गए प्रयोगात्मक क्रियाकलापों को पूरा
करना और अपने अवलोकन को दर्ज करना
(3) दिए गए प्रयोगात्मक प्रारूप के चिन्हांकन वाले
आरेख बनाना
(4) जल प्रदूषण की हानियों के बारे में चर्चा करना
27. निम्नलिखित में से कौन-से प्राथमिक स्तर
पर पर्यावरण अध्ययन में आकलन के लिए
उपकरण और तकनीकें है/है?
[CTET Feb 2015]
A. परियोजना कार्य
B. क्षेत्र भ्रमण
C. जर्नल (Journal) लिखना
D. विचार मानचित्रण
(1) B और C
(2) केवल D
(3) A और B
(4) उपरोक्त सभी
28. पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण से उन
प्रक्रिया पर आधारित कौशलों को बढ़ावा
दिया जाना चाहिए जो पूछताछ आधारित
प्रत्यक्ष अनुभवों के केन्द्र बिन्दु है।
निम्नलिखित में से कौन-सा एक ऐसा
कौशल नहीं है? [CTET Feb 2015]
(1) पूर्वानुमान
(2) निर्धारण
(3) निष्कर्ष निकालना
(4) अवलोकन
29. प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन के
आकलन में निम्नलिखित में से कौन-सा
एक संकेतक उपयुक्त नहीं है?
[CTET Feb 2015]
(1) स्मरण रखना
(2) प्रश्न पूछना
(3) न्याय और समानता के प्रति चिन्ता
(4) सहयोग
30. शिक्षार्थियों का आकलन करते समय
पर्यावरण अध्ययन की शिक्षिका को
निम्नलिखित में से क्या नहीं करना चाहिए?
[CTET Sept 2015]
(1) बच्चों के पूर्व आकलन के साथ तुलना करना
(2) शिक्षार्थियों की सीखने की क्षमताओं को ध्यान
में रखकर सूचना दर्ज करना
(3) बच्चों के कार्य के केवल कुछ पक्षों पर ध्यान
(4) बच्चों के कार्य से सम्बन्धित गुणात्मक उल्लेख
करना
31. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन आकलन
प्रक्रियाओं के बारे में सबसे कम उपयुक्त है?
[CTET Feb 2016]
(1) बच्चे का निजी विवरण और वैयक्तिक
पृष्ठपोषण (फीडबैक) देना वांछनीय अभ्यास है
(2) सीखने के संकेतकों और उप-संकेतकों की
सूची बनाना रिपोर्टिंग को अधिक विस्तृत
बनाता है
(3) ‘ठीक’, ‘अच्छा’ और ‘बहुत अच्छा’ जैसी
टिप्पणियाँ बच्चे के सीखने के बारे में एक
समझ प्रदान करती हैं
(4) बच्चों के पोर्टफोलियो में केवल उनके सबसे
बेहतर कार्य न होकर सभी तरह के कार्य होने
चाहिए
32. दिए गए प्रश्न को ध्यान से पढ़िए।
“क्या आपने अपने घर या स्कूल के
आस-पास जानवर देखे हैं जिनके छोटे
बच्चे हैं? अपनी नोटबुक में उनके नाम
लिखिए।”
इस प्रश्न के माध्यम से किस प्रक्रमण
कौशल का आकलन किया गया है?
[CTET Feb 2016]
(1) वर्गीकरण एवं चर्चा
(2) परिकल्पना एवं प्रयोग करना
(3) न्याय के लिए सरोकार
(4) अवलोकन एवं रिकॉर्डिंग
33. कक्षा I में पर्यावरण अध्ययन में शिक्षार्थियों
के आकलन के बारे में निम्नलिखित में से
कौन-सा/से सत्य है/हैं?
[CTET Feb 2016]
A. मौखिक परीक्षाएँ, क्योंकि हो सकता है
कि बच्चे लिखने में सक्षम न हो
B. ड्रॉइंग, क्योंकि बच्चों को इसमें आनन्द
आता है
C. शिक्षकों को अवलोकन और रिकॉर्डिंग
D. किसी को न रोके नीति’ को ध्यान में
रखते हुए आकलन की कोई
आवश्यकता नहीं है
(1) A, Bऔर C
(2) केवल D
(3) A और B
(4) C और D
34. ‘प्रयोग करना’ आकलन का एक संकेतक
है। निम्नलिखित में से कौन-सा एक प्रयोग
करने सम्बन्धी संकेतक का आकलन करने
का सबसे उपयुक्त तरीका है?
[CTET Feb 2016]
(1) चित्र-पठन
(2) सृजनात्मक लेखन
(3) निदर्शन/प्रदर्शन
(4) हस्तपरक गतिविधि
35. निम्नलिखित प्रश्नों को पढ़िए
[CTET Sept 2016]
A. मैंने क्रियाकलाप की योजना कितनी
अच्छी बनाई?
B. मैंने योजना का अनुसरण कितना अच्छा
किया?
C. मेरी शक्तियाँ क्या थीं?
D. मुझे सचमुच कठिन क्या लगा?
ऊपर दिए गए चार प्रकार के प्रश्नों के
उत्तरों से होगा
(1) बच्चों और शिक्षकों, दोनों का स्व-आकलन
(2) शिक्षक द्वारा समग्र आकलन
(3) बच्चों का स्व-आकलन
(4) शिक्षकों का स्व-आकलन
36. कक्षा III के एक शिक्षक ने अपने बच्चों
को निम्नलिखित पेड़ों/पौधों की पत्तियों को
विभिन्न वर्गों में वर्गीकृत करने को कहा
जैसे-नींबू, आम, तुलसी, पुदीना, नीम,
केला आदि। कुछ विद्यार्थियों ने पत्तियों का
वर्गीकरण इस प्रकार किया-(a) दवाओं के
गुणों वाली पत्तियाँ और दवाओं के गुण से से
रहित पत्तियाँ, (b) बड़ी पत्तियाँ और छोटी
पत्तियाँ। शिक्षक ने समूह (a) को सही माना
और समूह (b) को गलत
निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा कथन
अधिगम और आकलन के प्रति शिक्षक के
दृष्टिकोण को प्रतिबिम्बित करता है?
[CTET Sept 2016]
(1) यह क्रियाकलाप पत्तियों से सूचना ग्रहण करने
पर केन्द्रित है, जिसका भिन्न अर्थ लगाया जा
सकता है।
(2) बच्चे बहुत प्रकार के सन्दर्भो को कक्षा में ले
आते हैं, जिसकी सराहना होनी चाहिए।
(3) अपने अनुभवों पर निर्भर करते हुए बच्चे
वर्गीकरण के बहुत-से तरीकों का उपयोग कर
सकते हैं।
(4) वर्गीकरण का काम बहुत विशिष्ट और
स्तरीकृत है तथा इसका एक ही सही उत्तर
होता है।
37. समूह कार्य से पर्यावरण अध्ययन कर रहे
बच्चों की सामाजिक-वैयक्तिक विशेषताओं
के आकलन के लिए निम्नलिखित में से
कौन-सा उपकरण सर्वाधिक उपयुक्त होगा?
[CTET Sept 2016]
(1) दत्तकार्य
(2) कागज-पेन्सिल परीक्षण३
(3) मौखिक प्रश्न
(4) निर्धारण मापनियों
उत्तरमाला
1. (4) 2. (3) 3. (3) 4. (1) 5. (1) 6. (4) 7. (1) 8. (2) 9. (1) 10. (1)
11. (4) 12. (3) 13. (2) 14. (1) 15. (2) 16. (4) 17. (4) 18. (4)
19. (1) 20. (2) 21. (3) 22. (3) 23. (3) 24. (1) 25. (2) 26. (4)
27. (3) 28. (2) 29. (1) 30. (3) 31. (1) 32. (4) 33. (1) 34. (4)
35. (4) 36. (4) 37. (3)