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CTET Notes In Hindi | पर्यावरण अध्ययन शिक्षण की समस्याएँ

CTET Notes In Hindi | पर्यावरण अध्ययन शिक्षण की समस्याएँ

पर्यावरण अध्ययन शिक्षण की समस्याएँ
            Problems of Environmental Studies Teaching
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने
से यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 1 प्रश्न,
2012 में 4 प्रश्न, 2013 में 2 प्रश्न, 2014 में 2 प्रश्न, 2015 में 2
प्रश्न पूछे गए हैं तथा 2016 में एक भी प्रश्न नहीं पूछा गया।
CTET परीक्षा में पूछे गए प्रश्न मुख्यतया पर्यावरण शिक्षण
प्रणाली को प्रभावशाली बनाने हेतु प्रमुख शिक्षण सूत्र एवं
पर्यावरण अध्ययन शिक्षा आदि प्रकरण से सम्बन्धित हैं।
8.1 पर्यावरण अध्ययन शिक्षण की समस्याएँ
पर्यावरण के अन्तर्गत विभिन्न जटिल क्रियाएं लगातार होती रहती हैं, ऐसा
इसलिए क्योंकि पर्यावरण का सम्बन्ध किसी एक विशिष्ट विषय से न होकर
सम्पूर्ण विश्व से सम्बन्धित है। इसलिए, इसकी विषय-वस्तु बहुत ही जटिल
व विविधता से भरी हुई है। अत: इसके शिक्षण के दौरान कुछ समस्याएँ
आती हैं, जिसका विवरण निम्नलिखित है
1. वैयक्तिक विभिन्नताएँ (Individual Difference) एक ही
कक्षा-कक्ष में विभिन्न आयु, बुद्धि क्षमता, रुचि के छात्र होते हैं, साथ
ही उनकी अधिग्रहण क्षमता (Gaining Capacity), सामाजिक तथा
आर्थिक पृष्ठभूमि भिन्न-भिन्न होती है, जिसके कारण कक्षा-कक्ष में
विज्ञान शिक्षण का कार्य काफी जटिल हो जाता है। विज्ञान में
व्यावहारिक ज्ञान अधिक महत्त्वपूर्ण है और वैयक्तिक विभिन्नता के
अनुसार सभी के लिए अधिगम के उपयुक्त साधनों की व्यवस्था करना
काफी खर्चीला हो जाता है।
2. पाठ्यक्रम सम्बन्धी समस्याएँ (Problem Related to
Curriculum) पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण की एक प्रमुख समस्या
यह भी है कि इसका पाठ्यक्रम बच्चों की आयु एवं सामान्य बुद्धि
क्षमता के अनुरूप नहीं होता है, जिसके कारण उनमें इस विषय को
सीखने की क्षमता का विकास धीरे-धीरे तथा क्रमबद्ध रूप से नहीं हो
पाता है।
3. विद्यालय में संसाधनों का अभाव (Lack of Resources in
School) पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण की एक प्रमुख समस्या है।
विद्यालयों में पर्याप्त मात्रा में संसाधन उपलव्य नहीं होता है। पर्यावरण
अध्ययन के शिक्षण हेतु सभी बुनियादी संसाधनों का होना अनिवार्य है।
यदि इस प्रकार के संसाधन उपलब्ध होते भी हैं, तो उनमें से
अधिकतर में आधुनिकता का अभाव पाया जाता है, जिसके कारण
इसके शिक्षण में अधिगम सम्बन्धी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है।
4. सामुदायिक संसाधनों का पर्याप्त मात्रा में प्रयोग न होना
(Cummunity Resources not used in Required Quantity)
पर्यावरण अध्ययन का शिक्षण केवल कक्षा-कक्ष में पढ़ने और पढ़ाने
से ही पूर्ण नहीं हो पाता है, बल्कि इसके लिए ऐसे विभिन्न संसाधनों
की आवश्यकता पड़ती है, जो समुदाय में मौजूद होते हैं;
जैसे-बिजली घर, ऊर्जा संसाधन, संग्रहालय, चिड़ियाघर आदि।
इनका प्रयोग न किया जाना पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण की प्रमुख
समस्या है, क्योकि इनके प्रयोग के बिना शिक्षण को प्रभावशाली बनाना
सम्भव नहीं है।
5. प्रायोगिक कार्य की समस्या (Problem of Experimental)
Activities पर्यावरण का घनिष्ठ सम्बन्ध विज्ञान से है और विज्ञान
एक प्रयोगात्मक विषय है। बिना प्रायोगिक कार्यों के विज्ञान शिक्षण में
ज्ञान अर्जन सम्भव नहीं है। अन्य विषयों की तुलना में विज्ञान में
प्रयोगात्मक कार्यों का महत्त्व सर्वाधिक होता है। विज्ञान शिक्षण के
दौरान प्रायोगिक कार्यों की अधिकता न होना विज्ञान शिक्षण की एक
प्रमुख समस्या है। जो पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण को प्रतिकूल रूप
से प्रभावित करती है।
6. प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी (Lack of Trained Teacher)
प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी भी पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण की एक
गम्भीर समस्या है, जिसके कारण इस विषय के शिक्षण का कार्य
व्यवस्थित रूप से संचालित नहीं हो पाता है, जो इसकी एक प्रमुख
समस्या रही है।
7. तकनीक शैली के प्रयोग की कमी (Lack of Technique) नए
पैटर्न पर आधारित पाठ्यक्रम छात्रों को विषय सामग्री को प्रस्तुत करने
की व्याख्यान पद्धति पर बल देता है, जो बिना तकनीकी के भी हो
सकती है जैसा कि सभी जानते हैं कि भौतिकी संचार शैली का रूप में
विकसित हो चुकी है। इसलिए पर्यावरण अध्ययन के पाठ्य-पुस्तक को
पठनीय बनाकर एवं नवाचार का प्रयोग कर उसे रुचिकर एवं अधिक
लाभप्रद बनाया जा सकता है।
8. पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण में पिछड़े बालकों की समस्याएँ
(Problem of Backward Children in Environmental Studies)
पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण के दौरान पिछड़े छात्र स्वयं को शिक्षण
के प्रति असुरक्षित महसूस करते हैं। जिसका प्रमुख कारण उनमे विज्ञान
शिक्षण से सम्बन्धित कुछ विशिष्ट समस्याएँ है, जो निम्नलिखित है
(i) मन्द एवं अपर्याप्त शारीरिक व मानसिक विकास
(ii) सांवेगिक कठिनाइयाँ अथवा अस्थिरता
(iii) आर्थिक पिछड़ेपन की मात्रा
(iv) उसके असामान्य व्यवहार के प्रति परिवार का दृष्टिकोण
(v) प्रदत्त शैक्षिक सुविधाओं की मात्रा एवं प्रकार
(vi) अपनी बराबर-आयु वाले बालकों के साथ उसका सम्बन्ध
(vii) अपनी सीमाओं को ठीक से नहीं समझ पाना
9. निजी अनुभवों का प्रयोग न होना (Lack of use of Personal
Experience) पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण में निजी अनुभवों का
प्रयोग आवश्यक है, परन्तु विद्यालयी स्तर पर सामाजिक अध्ययन के
अध्यापन की यह एक प्रमुख समस्या है। अध्यापकों के लिए बहुत
जरूरी है कि अध्येता छात्रों और अध्यापकों के निजी अनुभवों पर भी
विशेष ध्यान दें तथा उन्हें यथासम्भव पाठ्य-सामग्री का हिस्सा बना
लें। ऐसा करने से छात्रों के मन में पर्यावरण अध्ययन के प्रति रुचि में
वृद्धि होगी।
10. प्रेरणा में कमी (Lack of Motivation) छात्रों की पाठ्य-सामग्री में
रुचि पैदा करने के लिए प्रेरणा एक महत्त्वपूर्ण कारक है। इस दृष्टि से
प्रेरणा के सिद्धान्त का तात्पर्य विद्यार्थियों में ज्ञान प्राप्त करने के लिए
रुचि उत्पन्न करना है। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि प्रेरणा छात्रों
के अधिगम को अधिक स्थायी बनाने में सक्षम होती है।
11. क्रियाशीलता के सिद्धान्त की अपर्याप्तता (Lack of Principle of
Self Activity) पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण की एक प्रमुख समस्या
यह है कि शिक्षक पूर्ण रूप से क्रियाशीलता के सिद्धान्त का अनुपालन
नहीं कर पाते हैं। यहाँ क्रियाशीलता का तात्पर्य उसके प्रयोग द्वारा
करके सीखने से है। सीखने में अधिक-से-अधिक इन्द्रियों का प्रयोग
होता है, जिसके कारण अधिगम बेहतर होता है। इसे परियोजना पद्धति
भी कहा जाता है। पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण को यथासम्भव
परियोजना पद्धति के अनुकूल विकसित करने की आवश्यकता है।
12. मनोरंजन का अभाव (Lack of Entertainment) शिक्षण को
रुचिकर बनाने के बाद ही अधिगम को प्रभावकारी बनाया जा सकता
है। ऐसा करने के लिए शिक्षण प्रक्रिया इस प्रकार होनी चाहिए, जो
मनोरंजकपूर्ण हो। यदि ऐसा नहीं होता है, तो विद्यार्थी ऊबने लगते है
एवं शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका नहीं निभा पाते है।
13. शिक्षण विधियों के चयन की समस्या (Problem of Selecting
Teaching Method) छात्रों की रुचि, अभिरुचि तथा क्षमता के
अनुसार सही शिक्षण विधियों के चयन की समस्या पर्यावरण अध्ययन
की एक गम्भीर चुनौती है।
14. उपचारात्मक शिक्षण की समस्या (Problem of Remedial
Teaching) पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण में शिक्षक छात्रों की त्रुटियों
के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक जानकारी नहीं रखते हैं, जिसके कारण
शिक्षण सुचारू रूप से नहीं चल पाता है।
15. अनुशासन की समस्या (Problem of Discipline) बदलते परिवेश
के साथ-साथ छात्रों की विचारधाराएँ भी बदल रही है। बच्चों पर
टेलीविजन एवं सामाजिक परिवेश का अत्यधिक प्रभाव देखा जाता है।
इन कारणों से कुछ बच्चों में अनुशासनहीनता जैसी समस्याएं उत्पन्न
होती जा रही है। अत: शिक्षक को इस प्रकार की समस्या से सही ढंग
से निपटना चाहिए। ऐसे छात्रों के साथ किसी भी परिस्थिति में कठोर
व्यवहार नहीं करना चाहिए, बल्कि उनसे सहानुभूतिपूर्ण तरीके से पेश
आना चाहिए।
16. छात्रों का गृहकार्य में रुचि न लेना (Lack of Interest in Home
work) पर्यावरण अध्ययन को अधिकतर छात्र अत्यधिक आसान मानते
है, इसलिए वे इस विषय से सम्बन्धित गृहकार्य में विशेष रुचि नहीं लेते
है। शिक्षण भी इसमें नवाचार (Innovation) का प्रयोग नहीं कर पाते।
B.1.1 पर्यावरण शिक्षण को प्रभावशाली बनाने हेतु कुछ प्रमुख शिक्षण-सूत्र
1. सरल से जटिल की ओर (Specific to Complex) विद्यार्थियों में
नवीन ज्ञान के प्रति रुचि उत्पन्न करके आत्मविश्वास विकसित करना,
सफल शिक्षण की कुंजी है। इस दृष्टि से यदि शिक्षण को सफल
बनाना है, तो सरल से जटिल बातों का ज्ञान दिया जाना चाहिए।
2. ज्ञात से अज्ञात की ओर (Known to Unknown) ज्ञात से अज्ञात
का अर्थ यह है कि हम नवीन ज्ञान का प्रमुख आधार विद्यार्थी के पूर्व
ज्ञान को बनाएं। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जब विद्यार्थी के
सामने एकदम नवीन ज्ञान को प्रस्तुत किया जाता है, तो इसे प्राप्त
करने में उन्हें परेशानी होती है, परन्तु यदि पूर्व ज्ञान से सम्बद्ध कर
नवीन ज्ञान को प्रस्तुत किया जाए, तो अधिगम अपेक्षाकृत अधिक
सफल एवं स्थायी होता है।
3. विशिष्ट से सामान्य की ओर (Specific to General) इस सूत्र का
तात्पर्य यह है कि विद्यार्थियों के समक्ष पहले विशिष्ट उदाहरण रखे
जाएँ तथा उन्हीं उदाहरणों द्वारा सामान्य नियम अथवा सिद्धान्त
निकलवाए जाएँ। अत: इस सूत्र के अनुसार शिक्षक को सबसे पहले
विद्यार्थियों के सामने कुछ विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए, इसके
बाद उन्हें इन्हीं उदाहरणों की परीक्षा करके तथ्यों को समझकर
सामान्य सिद्धान्त निकालने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
4. मनोवैज्ञानिक से तात्मक क्रम की ओर (Psychological to
Factual) इस सूत्र का तात्पर्य यह है कि विद्यार्थियों को ज्ञान देते
समय मनोवैज्ञानिक से तर्कात्मक क्रम को अपनाना चाहिए।
मनोवैज्ञानिक क्रम के अनुसार, किसी वस्तु अथवा विषय के ज्ञान को
विद्यार्थियों की आयु, जिज्ञासा, रुचि तथा आवश्यकता एवं ग्रहण-शक्ति
के अनुसार प्रस्तुत किया जाता है। इसके विपरीत, तर्कात्मक क्रम का
तात्पर्य विद्यार्थियों के समझने वाले ज्ञान को तात्मक ढंग से विभिन्न
खण्डों में विभाजित करके प्रस्तुत करना है।
5. विश्लेषण से संश्लेषण की ओर (Analysis to Synthesis)
प्रारम्भिक अवस्था में विद्यार्थी का ज्ञान अस्पष्ट तथा अनिश्चित एवं
अव्यवस्थित होता है। उसके ज्ञान को स्पष्ट तथा निश्चित एवं
सुव्यवस्थित करने के लिए विश्लेषण से संश्लेषण नामक सूत्र का
प्रयोग करना अनिवार्य माना जाता है। विश्लेषण का तात्पर्य किसी
समस्या को ऐसे जीवित अंशों अथवा भागों में विभाजित करना है
जिनके जोड़ने पर समस्याओं का शीघ्र समाधान हो जाए।
8.1.2 पठन-पाठन सामग्री
• पठन-पाठन सामग्री (Reading-Teaching Materials) का विकास करते
समय निम्नलिखित बिन्दुओं पर भी ध्यान रखा जा सकता है। विभिन्न
विषयों में विषय-वस्तु के वितरण में एक उचित सन्तुलन होना चाहिए और
जहाँ भी सम्भव हो सके परस्पर सम्बन्धों को भी स्पष्ट रूप से इंगित किया
जाना चाहिए।
• पाठ्यक्रम में शुरू से अन्त तक निरन्तरता बनाए रखने हेतु विषयों को उचित
एवं तर्कसंगत क्रम में व्यवस्थित किया जाना चाहिए।
• प्रकाशन से पूर्व लैगिक तथा सामाजिक पूर्वापत की जांच के लिए पुस्तको
का परीक्षण किया जाना चाहिए। अनुलिपीकरण (दोहराव) से बचने और
शैली की एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए प्रकाशन से पूर्व पाठ्य पुस्तकों
की स्पष्ट जांच की जानी चाहिए।
• प्रमुख राष्ट्रीय विषयों जैसे-लैगिक न्याय, मानव अधिकार और हाशिए के
समूहों तथा अल्पसंख्यकों के प्रति संवेदनशीलता को विकसित किए जाने के
लिए अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण अपनाए जाने की जरूरत है।
8.1.3 शिक्षक-प्रशिक्षण
• कुछ तो शिक्षकों के प्रशिक्षण (Teacher Training) कार्यक्रम पर विशेष
बल न दिए जाने के कारण पर्यावरण अध्ययन का शिक्षण बहुत प्रभावी नहीं
हो सका है। जहाँ सेवापूर्व प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के पुनरीक्षण की आवश्यकता
है, वहीं सेवाकालीन प्रशिक्षण पर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
• सेवाकालीन प्रशिक्षण के लिए राज्य को आवश्यक व्यवस्था तन्त्र और
आर्थिक सहयोग देना अनिवार्य है ताकि शिक्षकों के विषय सम्बन्धी ज्ञान को
अद्यतन किया जा सके। पर्यावरण अध्ययन के विभिन्न विषयों की
शिक्षक-पुस्तिका के प्रयोग को अनिवार्य किया जाना चाहिए। विद्यार्थियों की
समझ के विकास हेतु पुस्तकों को ‘एकमात्र स्रोत’ के रूप में न मानकर
‘स्रोतों’ में से एक के 1 में मानना चाहिए। वस्तुत: बहुत-सी समस्याओं;
जैसे-आत्मसम्मान की कमी, पाठ्यक्रम का बोझ, सामपियों की अधिकता
और रटने की प्रवृत्ति आदि को एक प्रभावी समर्थ शिक्षक ही अधिक
प्रभावशाली ढंग से सम्बोधित कर सकता है, जिसकी क्षमताओं का विकास
शिक्षक-प्रशिक्षण द्वारा हुआ है।
• सेवापूर्व और सेवाकालीन दोनों स्तरों पर गहन और प्रभावी प्रशिक्षण द्वारा ही
पर्यावरण अध्ययन सम्बन्धी अनुसन्धानों के परिणामों को शिक्षकों की वृहत
संख्या के लिए सुलभ बनाया जा सकता है।
8.1.4 शिक्षकों का सशक्तीकरण
• शिक्षकों के सशक्तीकरण (Teacher’s Empowerment) के मामले पर
लम्बे समय से बहस व विवाद होते रहे है। वर्तमान में शिक्षकों को जिस
तरह तैयार किया जाता है, उससे विज्ञान-शिक्षकों का सशक्तीकरण नहीं के
बराबर हुआ है। इसलिए शिक्षक-सशक्तीकरण की योजनाओं के चल रहे
कार्यक्रमों की संरचना पर पुनः विचार करने की जरूरत है। नई राष्ट्रीय
पाठ्यचर्या की रूपरेखा के अनुसार, इस मामले पर फिर से प्रयास करने को
प्राथमिकता मिलनी चाहिए। लक्षित विज्ञान-पाठ्यचर्या को प्राप्त करने के
लिए यह अति महत्त्वपूर्ण शर्त भी है।
• शिक्षकों के प्रोत्साहन परक स्तर को ऊँचा उठाना बहुत बड़ी चुनौती साबित
हुई है। हालांकि इसका कोई नियमित समाधान नहीं है, लेकिन हमारा
विश्वास है कि यह एक जटिल व अनसुलझी समस्या नहीं है। व्यवस्थित
सुधार, पेशे में भर्ती के लिए अपेक्षाकृत अच्छी योजनाएँ, वेतन में वृद्धि,
दूसरी तरह की भौतिक सुविधाएँ और उचित सहायक-तन्त्र तथा वर्तमान
परिस्थिति में सुधार ला सकता है तथा इससे सही व्यक्तियों को इस पेशे के
लिए आकर्षित कर सकते हैं।
पर्यावरण अध्ययन के शिक्षको की पाठ्यचर्या में सुधारों की जरूरत है,
उनमें से कुछ निम्न है
• पर्यावरण अध्ययन के शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए ऐसी पाठ्यचर्या की
जरूरत है, जो समय के साथ उत्पन्न प्राथमिकताओं व चुनौतियों के साथ
कदम से कदम मिलाकर चल सके। स्कूल में पर्यावरण अध्ययन पाठ्यचर्या
में किया गया कोई भी परिवर्तन, शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यचर्या में भी
परिवर्तन लाए, यह जरूरी है। पर्यावरण अध्ययन शिक्षको की सेवापूर्व
शिक्षा की कमियों को सेवारत कार्यक्रमों के द्वारा पूरा नहीं किया जा
सकता।
• पर्यावरण अध्ययन शिक्षण-शिक्षा पाठ्यचर्या को आलोचनात्मक कौशल
और उन योग्यताओं के मानदण्ड पर आधारित होना चाहिए, जिसकी
उम्मीद पर्यावरण अध्ययन के शिक्षक से की जाती है।
8.2 समता और पर्यावरण अध्ययन शिक्षा
किसी भी जनतान्त्रिक समाज की तरह हमारे समाज का भी प्रमुख उद्देश्य
समता है, लेकिन अभी तक हमारी व्यवस्था ‘सबके लिए’ गुणवत्तापूर्ण
पर्यावरण अध्ययन शिक्षा उपलब्ध कराने में असफल रही है।
• अधिकांश विद्यार्थी स्कूल से वैज्ञानिक-स्तर पर अमूमन निरक्षर’ ही बाहर
आते है या कुछ ही दिनों में हासिल की गई साक्षरता को भूल जाते है।
इसकी वजह है, उनमें से अधिकांश विद्यार्थियों का विज्ञान शिक्षा के
मामले में सुविधा वंचित स्थिति में होना। इनमें लड़कियाँ, ग्रामीण इलाकों
के बच्चे, आदिवासी व सामाजिक-आर्थिक स्तर पर पिछड़े तबके, चाहे
वे गाँव में हो या शहर में, के बच्चे शामिल हैं। सीखने की कठिनाइयो
और शारीरिक चुनौतियों का सामना कर रहे अधिकांश बच्चे हैं। इस तरह
की सुविधाओं से वंचित समूहों के बच्चों को सिखाना ज्यादा गम्भीरता व
ध्यान की माँग करता है। व्यवस्था और खासकर शिक्षकों को इन विविध
तबकों के बच्चो के प्रति जागरूक व संवेदनशील होने की जरूरत है।
• पर्यावरण अध्ययन शिक्षा का उपयोग सामाजिक-आर्थिक विषमता को दूर
करने के लिए एक साधन के रूप में होना चाहिए। तमाम पूर्वाग्रहो के
साथ-साथ लिंग, जाति, धर्म एवं क्षेत्र के आधार पर विद्यमान पूर्वाग्रहों को
खत्म करने में इसे सहायक होना चाहिए। यह विद्यार्थियों में प्रश्न पूछने
की उत्सुकता को जगा सकती है। ऐसे प्रश्न उन विश्वासों, धारणाओं और
व्यवहारों पर हो जो सामाजिक असमानता को परिपोषित करते है।
• स्थानीय प्रौद्योगिकी शिक्षा भी बच्चे को समाज से जोड़ने में सहायक हो
सकती है। साथ ही सन्दर्भो, सामग्रियों व चित्रों के चुनाव में संवदेनशीलता
भी उक्त की असमानता को कम करने में सहायक होगी।
• सभी बच्चे स्कूल जाना प्रारम्भ कर दें केवल यही पर्याप्त नहीं है। व्यवस्था को
कुछ ऐसे उपाय करने होंगे ताकि सभी बच्चों को उचित व गुणवत्ता वाली
शिक्षा मिल पाए। यहाँ विज्ञान शिक्षा के सम्बन्ध में पहुंच और गुणवत्ता के
जुड़वाँ उद्देश्यों को साथ-साथ चलना चाहिए एक के बाद दूसरा नहीं।
• सूचना एवं संचार तकनीकी, (इन्फॉर्मेशन एण्ड कम्युनिकेशन
टैक्नोलॉजी-आई.सी.टी.) सामाजिक विषमता को कम करने में सहायक
हो सकती है। दूरदराज इलाको तक सूचना,संचार और कम्प्यूटिंग संसाधन
के रूप में आई.सी.टी. अवसरों की समानता के लिए महत्त्वपूर्ण साबित
हो सकती है।
                                        अभ्यास प्रश्न
1. पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण में व्याख्यान
के प्रयोग की क्या एक प्रमुख समस्या है?
(1) अधिक खाली
(2) अध्यापक का कार्य आसान बनाती है
(3) व्यक्तिगत विभिन्नताओं को नकारती है
(4) यह बहुत प्रभावी
2. पिछड़े बालक के सन्दर्भ में निम्न में से क्या
पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण सम्बन्धी
समस्या नहीं है?
(1) मन्द शारीरिक विकास
(2) स्थिरता
(3) सांवगिक कठिनाई
(4) सहपाठियों के साथ सम्बन्ध
3. उपचारात्मक शिक्षण ……. विद्यार्थियों को
नहीं दिया जा सकता।
(1) डिस्लेक्सक
(2) प्रतिभाशाली
(3) औसत से कम निष्पादन प्रदर्शित करने वाले
(4) औसत से अधिक निष्पादन प्रदर्शित करने
वाले
4. शिक्षक विद्यार्थियों को ‘बल वस्तु की
आकृति को परिवर्तित कर सकता है
संकल्पना को पढ़ाने के लिए निम्नलिखित
गतिविधियों की योजना बनाता है
A. सामान्य रूप से अवलोकित उदाहरणों
का प्रयोग करते हुए संकल्पना को स्पष्ट
करना।
B. विद्यार्थियों को एक प्लेट में गुंथा हुआ
आटा देकर उसे हाथों से दबाने के लिए
कहना।
C. कुछ उदाहरणों के साथ संकल्पना को
स्पष्ट करने वाली दृश्य-श्रव्य फिल्म
दिखाना।
शिक्षक सिखाने के लिए अलग-अलग
उपागमों का प्रयोग करता है, क्योंकि
(1) वह जानता है कि उसे पाठ योजना के अनुसार
चलना है
(2) वह विद्यार्थियों को परीक्षा के लिए तैयार करना
चाहता है
(3) कक्षा में विभिन्न प्रकार के शिक्षार्थी हैं और वह
बहु-आयामी बौद्धिकता को सम्बोधित करना
चाहता है
(4) वह अपने ज्ञान को सिद्ध करना चाहता है
5. सेवापूर्व व सेवा के दौरान शिक्षकों में
के प्रति जागरूकता लाना जेण्डर
विज्ञान शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है।
(1) जेण्डर, पूर्वाग्रह-युक्त
(2) जेण्डर, पूर्वाग्रह-मुक्त
(3) प्रयोगों, प्रयोग-मुक्त
(4) प्रयोगों, प्रयोग-युक्त
6. प्रथम पीढ़ी के अधिगमकर्ता के अभिभावक,
शिक्षक अभिभावक संघ (PTA) में अपने
बच्चों की शैक्षिक समस्याओं से निपटने में
अपनी अयोग्यता को अभिव्यक्त करते हैं।
एक शिक्षक के रूप में आप
(1) उन्हें प्रौढ़ शिक्षा के लिए स्थापित केन्द्रों में
जाने के लिए कहेंगे
(2) उन्हें अपने बच्चे द्वारा घर पर पढ़ाई पर दिए
जाने वाले समय को ध्यानपूर्वक देखने के लिए कहेंगे
(3) उन्हें यह बताते हुए तसल्ली देंगे कि अपने
बच्चे के विषय में उनका ज्ञान उन बच्चों से
व्यवहार करने में सहायता करने के लिए
सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है
(4) उन्हें घर पर विभिन्न प्रकार की अधिगम
सामग्री से समृद्ध वातावरण उपलब्ध कराने के
लिए कहेंगे
7. पर्यावरण अध्ययन के किसी शिक्षक के लिए
कक्षा में हाल ही में हुई चर्चा के विषय में
कौन-सा तथ्य सर्वाधिक ध्यान देने योग्य है?
(1) विद्यार्थी सीधे ही अपने सह-विद्यार्थियों से प्रश्न
करने लगे थे
(2) विद्यार्थियों ने अपने सह-विद्यार्थियों को बीच ही में
टोकना शुरू कर दिया था
(3) कोई भी विद्यार्थी दूसरे विद्यार्थियों से पूर्णरूपेण
सहमत नहीं था
(4) विद्यार्थियों ने सह-विद्यार्थियों की बात सुनने से
बिल्कुल मना कर दिया था
8. एक कक्षा में कुछ आदिम जनजाति के
बच्चे भी शामिल है तथा इसके कारण उस
कक्षा में सांस्कृतिक विविधता का माहौल है।
शिक्षक द्वारा इसका प्रभावी ढंग से इस्तेमाल
करने हेतु निम्नलिखित में से कौन-सा
तरीका सबसे उपयुक्त होगा?
(1) आदिम जनजाति के विद्यार्थियों से कहना कि
वे अपनी जनजाति के विषय में बताएँ और
पढ़ाए जाने वाले प्रकरणों के साथ उसे जोड़ना
(2) स्वतन्त्रता आन्दोलन में बिरसा मुण्डा जैसे
स्वतन्त्रता सेनानियों की भूमिका को उजागर करना
(3) विद्यार्थियों से अपनी संस्कृति और उनके द्वारा
सबसे अधिक मूल्यवान अथवा सम्मानित
बिन्दुओं से जुड़े प्रकरणों पर क्रियात्मक शोध
करने के लिए कहना
(4) आदिम जनजातीय शिल्पकृतियों पर पोशाकों
को प्रदर्शित करना
9. पाठ्य-पुस्तक में वर्णित, किसी समुदाय
विशेष के लिए संवेदनशील मुद्दे को पढ़ाते
समय?
(1) शिक्षक को पाठ्य-पुस्तक का सम्मान करना
चाहिए और तथ्यों को उसी प्रकार व्याख्यायित
करना चाहिए जैसे कि दिया गया है
(2) शिक्षक को सक्षम अधिकारियों को लिखना
चाहिए कि वे पाठ्यचर्या में ऐसे विवादास्पद
प्रकरण को हटा दें
(3) शिक्षक को सभी विद्यार्थियों की गरिमा का
सम्मान करते हुए संकल्पना को संवेदनशील
और पूर्ण निष्ठा के साथ व्याख्यायित करना
चाहिए
(4) शिक्षक को विद्यार्थियों से कहना चाहिए कि वे
इन पर पुस्तकालय में या घर पर नोट्स
बनाएँ
10. पर्यावरण अध्ययन में निदानात्मक परीक्षण
शिक्षक को क्या समझने में सहायता करेगा?
(1) पर्यावरण अध्ययन में विद्यार्थी सीखने सम्बन्धी
किन कठिनाइयों का सामना कर रहा है
(2) पुनरावृत्ति किस प्रकार विद्यार्थी की सहायता
करती है
(3) उसके विद्यार्थी कितने बुद्धिमान हैं
(4) प्रकरण का वह हिस्सा जिसे विद्यार्थी ने
कण्ठस्थ नहीं किया है
11. “कक्षा में पढ़ने वाले छात्र विभिन्न पृष्ठभूमि
वाले होते हैं, जिनमें आर्थिक, पारिवारिक
तथा सामाजिक रूप से भिन्नता के
साथ-साथ उनके शारीरिक तथा मानसिक
विकास में भी भिन्नताएँ पाई जाती है।”
उपरोक्त कथन निम्न में से किस तथ्य की ओर
इशारा करता है?
(1) विभिन्न पृष्ठभूमि के छात्र शिक्षण कार्य को
सुगम बनाने में सहायक हैं
(2) शिक्षण कार्य पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता
है कि पत्रों की पृष्ठभूमि क्या है
(3) यह शिक्षण कार्य में आने वाली एक प्रमुख
समस्या है
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
12. निम्नलिखित में से क्या पर्यावरण अध्ययन
शिक्षण की समस्या नहीं है?
(1) पत्रों में उचित दृष्टिकोण का अभाव
(2) सामुदायिक साधनों का उपयोग शिक्षण कार्यो
में न होना
(3) संसाधनों की पर्याप्तता
(4) व्यक्तिगत अनुभवों की कमी
13. “शिक्षक जितना प्रेरणादायक होगा, छात्र
उतनी ही अधिक रुचि से सीखेगे। अत:
शिक्षक को चाहिए कि वह ऐसी
शिक्षण विधि का चयन करे जो छात्रों को
सीखने के लिए प्रेरित करे।
उपरोक्त कथन से निम्नलिखित में से क्या
निष्कर्ष निकलता है?
(1) प्रेरणा पर आधारित शिक्षण-विधि शिक्षण
सम्बन्धित समस्याओं को दूर करने में सहायक
(2) प्रेरणा पर आधारित शिक्षण विधि शिक्षण में
समस्याएँ पैदा करने में सहायक है
(3) प्रेरणा के माध्यम से पत्रों को आपस में लड़ना
सिखाया जाना चाहिए
(4) सभी शिक्षण विधियों प्रेरणा पर आधारित है
                                         विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
14. दत्त कार्य के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से
कौन-सा कथन सही है?              [CTET June 2011]
(1) दत्त कार्य बच्चों को सूचना खोजने, अपने विचारों
का निर्माण करने और उन्हें उच्चारित करने का
अवसर प्रदान करता है
(2) दत्त कार्य अभिभावकों, भाइयों या बहनों द्वारा
अपनी क्षमता के अनुसार किया जा सकता है
(3) प्रतिदिन विविधता और अभ्यास कराने के लिए
कक्षा कार्य और गि गृहकार्य के रूप में दत्त
कार्य देने की आवश्यकता है
(4) दत्त कार्य आकलन का एकमात्र तरीका है
15. एक विज्ञान शिक्षिका ‘श्वसन’ प्रकरण पढ़ाने
के बाद परीक्षा का आयोजन करती है और
यह देखती है कि अधिकांश विद्यार्थी श्वसन
और साँस लेने के बीच के अन्तर को नहीं
समझते हैं। यह किसके कारण हो सकता
है?                                 [CTET Jan 2012]
(1) वह कक्षा में प्रभावी तरीके से सम्बन्धित
संकल्पना को व्याख्यायित नहीं कर सकी
(2) वह उनकी कक्षा अध्यापिका नहीं है
(3) विद्यार्थी प्रश्न को सही तरीके से नहीं समझ सके
(4) शिक्षिका की कक्षा में प्रायः बहुत
अनुशासनहीनता रहती है
16. एक कक्षा में औसत से कम वाले चार
विद्यार्थी हैं। उन्हें अन्य विद्यार्थियों के समान
लाने के लिए निम्नलिखित में से कौन-सी
व्यूह-रचना सबसे प्रभावी होगी?
                                   [CTET Jan 2012]
(1) उन्हें अगली पंक्ति में बैठाना और उनके काम
का लगातार पर्यवेक्षण करमा
(2) उनके अधिगम के कमजोर क्षेत्रों की पहचान
करना और उसके अनुसार सुधारात्मक उपाय
उपलब्ध कराना
(3) यह सुनिश्चित करना कि वे नियमित रूप से
विद्यालय आएँ
(4) .उन्हें घर पर करने के लिए अतिरिक्त
दत्त-कार्य देना
17. कक्षा v का समीर अक्सर समय पर
पर्यावरण अध्ययन की शिक्षिका के पास
दत्त-कार्य जमा नहीं कराता। इससे निबटने
का सर्वोत्तम सुधारात्मक उपाय हो सकता है
                                   [CTET Jan 2012]
(1) इस बात के विषय में प्रधानाचार्य को सूचित करना
(2) उसे खेल-कूद की कक्षा में जाने से रोकना
(3) अनियमितता के कारण पता करना और समीर
को परामर्श देना
(4) उसकी अनियमितता के विषय में अभिभावकों
के लिए एक नोट लिखना
18. एक पब्लिक स्कूल में प्रत्येक कक्षा में
लगभग दो से तीन बच्चे विशेष आवश्यकता
वाले हैं। कुछ बच्चे शारीरिक या मानसिक
रूप से विकलांग (बाधित) हैं। ये बच्चे
अन्य बच्चों के साथ उसी कक्षा में एक
साथ पढ़ते हैं। उपरोक्त पब्लिक स्कूल निम्न
में से किसका अनुपालन करता है?
                             [CTET Nov 2012]
(1) समवयस्क शिक्षा
(2) प्रतिपूरक अधिगम
(3) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन
(4) समावेशी शिक्षा
19. पर्यावरण अध्ययन में एक अच्छे दत्त कार्य
का मुख्य लक्ष्य होना चाहिए
                                 [CTET July 2013]
(1) अधिगम-विस्तार के अवसर उपलब्ध कराना
(2) प्रभावी अधिगम के लिए पाठ की दोहराई
(3) समय का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करना
(4) शिक्षार्थियों को अनुशासन में बनाए रखना
20. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राथमिक स्तर
पर पर्यावरण अध्ययन की पाठ्यचर्या की
आवश्यकता के अनुरूप नहीं है?
                                  [CTET July 2013]
(1) उसे शिक्षार्थियों के मानसिक स्तर के अनुकूल
होना चाहिए
(2) उसे काम की दुनिया में प्रवेश के लिए
शिक्षार्थियों को ज्ञान एवं कौशल से लैस करना
चाहिए
(3) उसे शिक्षार्थियों में पर्यावरण के सरोकार को
उत्पन्न करना चाहिए
(4) उसे शिक्षार्थियों को उन पद्धतियों और
प्रक्रियाओं को अर्जित करने में शामिल रखना
चाहिए, जो नए ज्ञान को उत्पन्न करने में आगे
ले जाएँगे
21. पर्यावरण अध्ययन की एक अच्छी
पाठ्यचर्या को बच्चे के प्रति सही, जीवन
के प्रति सही और विषय के प्रति सही होना
चाहिए।’ पाठ्यचर्या की निम्नलिखित
विशेषताओं में से कौन-सी उपरोक्त
आवश्यकता को पूरा नहीं करती?
                            [CTET Feb 2014]
(1) यह शब्दावली और परिभाषाओं पर अधिक बल
देती है
(2) यह भय एवं पूर्वाग्रहों से मुक्त होने के मूल्य को
बदावा देती है
(3) यह विषय को एक सामाजिक प्रक्रम के रूप में
देखने के लिए शिक्षार्थियों हेतु आवश्यक है
(4) यह शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया पर अधिक बल
देती है
22. कक्षा V के शिक्षार्थियों को ‘यदि यह
समाप्त हो जाए’ पाठ पढ़ाने के बाद शीला
प्रकरण के विषय में शिक्षार्थियों की समझ
के स्तर के विषय में जानने के लिए एक
परीक्षण प्रशासित करती है। उसे यह
जानकर आश्चर्य होता है कि एक बड़ी
संख्या में शिक्षार्थी सम्बन्धित अवधारणा को
नहीं समझ पाए। इसका प्रमुख कारण हो
सकता है।                    [CTET Sep 2014]
(1) उसने प्रकरण को पढ़ाने के लिए सही पद्धति
का प्रयोग नहीं किया था
(2) शिक्षाथियों का संज्ञानात्मक स्तर अच्छा नहीं था
(3) यह प्रकरण पाठ्य-पुस्तक में शामिल किए जाने
योग्य नहीं था
(4) शिक्षार्थियों को यह प्रकरण रोचक नहीं लगा
23. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF), 2005
ने कक्षा । और ॥ के लिए पर्यावरण अध्ययन
के किसी पाठ्यक्रम या पाठ्य-पुस्तकों की
संस्तुति नहीं की है। इसके लिए सबसे
उपयुक्त कारण है।                  [CTET Feb 2015]
(1) पाठ्यक्रम का भार कम करने के लिए
(2) पर्यावरण अध्ययन केवल कक्षा 1 से आगे की
कक्षाओं के लिए है
(3) कक्षा । और ॥ के शिक्षार्थी पढ़ना-लिखना नहीं
जानते
(4) सन्दर्भ युक्त अधिगम परिवेश प्रदान करना
24. प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन की
पाठ्य-पुस्तक में निम्नलिखित में से
कौन-सी विशेषता नहीं होनी चाहिए?
                                   [CTET Sept 2015]
(1) यह शिक्षार्थियों की वैविध्यपूर्ण पृष्ठभूमि की
जरूरतों को पूरा करती है
(2) यह वास्तविक कहानियों और घटनाओं को
शामिल करती है
(3) यह परिभाषाओं और अमूर्त अवधारणाओं की
व्याख्या करने पर ध्यान केन्द्रित करती है
(4) यह प्राकृतिक और समाज-सांस्कृतिक परिवेश
को एकीकृत तरीके से प्रस्तुत करती है
                                          उत्तरमाला
1. (3) 2. (2) 3. (2) 4. (3) 5. (2) 6. (2) 7. (1) 8.(3) 9.3) 10. (1)
11. (3) 12. (3) 13. (1) 14 (1) 15 (1) 16. (2) 17. (3) 18 (4)
19. (1) 20. (2) 21. (1) 22 (1) 23. (4) 24 (3)

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