राज्यों के प्रमुख नृत्य | Dance forms of india
राज्यों के प्रमुख नृत्य | Dance forms of india
भारतीय लोक नृत्य की सूची निबंध | List Of Indian Folk Dance Essay In Hindi
भारत विविध संस्कृतियों और परंपराओं का देश है। भारतीय लोक एवं आदिवासी नृत्य वास्तव में सरल होते हैं और इन्हें मौसमों के आगमन, बच्चे के जन्म, शादी– ब्याह और त्योहारों के मौके पर अपनी खुशी जाहिर करने के लिए किया जाता है। लोक कला एक समूह या स्थान विशेष के लोगों का आम प्रदर्शन होता है। इसके प्रवर्तकों की पहचान समाप्त हो चुकी है लेकिन वर्षों से इसकी शैली का संरक्षण किया जा रहा है।
भारत विविध संस्कृतियों और परंपराओं का देश है। भारतीय लोक एवं आदिवासी नृत्य वास्तव में सरल होते हैं और इन्हें मौसमों के आगमन, बच्चे के जन्म, शादी– ब्याह और त्योहारों के मौके पर अपनी खुशी जाहिर करने के लिए किया जाता है। लोक कला एक समूह या स्थान विशेष के लोगों का आम प्रदर्शन होता है। इसके प्रवर्तकों की पहचान समाप्त हो चुकी है लेकिन वर्षों से इसकी शैली का संरक्षण किया जा रहा है।
ज्यादातर मौकों पर नर्तक/ नर्तकियां खुद गाना गाते हैं। इनका साथ वाद्ययंत्रों से लैस कलाकार देते हैं। प्रत्येक लोक नृत्य का विशेष परिधान और लय होता है और कुछ परिधान तो गहनों और डिजाइनों के साथ बहुत ही रंगीन होते हैं। यहां अलग– अलग राज्यों और लोक नृत्यों की सूची दी जा रही है जो आपको यूपीएससी, राज्य पीएससी, एसएससी, बैंक की परीक्षाओं इत्यादि में मदद करेंगी।
18⃣पंजाब
मध्य प्रदेश के लोक नृत्य (Madhya Pradesh Folk Dance) –
पंडवानी – पंडवानी नृत्य मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ में किया जाता है .यह एकल लोक नृत्य है. इसमें गायन एवं नृत्य एक ही व्यक्ति के द्वारा किया जाता है. इसमें मुख्य रूप से पांड्वो पर आधारित घटनाओं का चित्रण किया जाता है.
गणगौर नृत्य- मध्यप्रदेश के निमाड़ में क्षेत्र का सबसे लोकप्रिय नृत्य है गणगौर. चैत्र मास की नवरात्रि में गणगौर नृत्य किया जाता है. यह पर्व माँ गौरी और शिव की उपासना के लिए होता है. इसमें रथ सर पर रख कर नृत्य किया जाता है.
असम के लोक नृत्य (Assam Folk Dance) –
बिहू – भारत के असम राज्य का लोक नृत्य है बिहू. बिहू नृत्य असम की कछारी जनजाति के द्वारा किया जाता है. बिहू नृत्य फसल की कटाई के दौरान ही किया जाता है. यह नृत्य साल में तीन बार मनाया जाता है. बिहू नृत्य की वेशभूषा बहुत ही अधिक साधारण होती है, इसे करते समय पारम्परिक वस्त्र जैसे धोती, गमछा आदि पहना जाता है.
उत्तर प्रदेश के लोक नृत्य (Uttar Pradesh Folk Dance) –
नौटंकी नृत्य – नौटंकी नृत्य को छंद, दोहा, हरी गीतिका, कव्वाली , गजल आदि के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है. इसमें गायन, अभिनय, नृत्य आदि कई सारी विधाएं शामिल रहती है. यह बहुत ही रोचक नृत्य होता है. भारत के उत्तर प्रदेश में किया जाने वाला नौटंकी लोक नृत्य प्राचीनकाल से ही प्रसिद्ध है. नौटंकी में बहुत से रस शामिल रहते है जैसे हास्य रस, वीर रस आदि. नौटंकी में प्रस्तुत की जाने वाली कथा किसी के जीवन पर आधारित भी हो सकती है. इसकी समयावधी बहुत कम होती है, जिसमे गाना, नाचना शामिल होता है. नौटंकी में कई सारे वाद्य नृत्य भी उपयोग किये जाते है.
गुजरात के लोक नृत्य (Gujarati Folk Dance) –
गरबा – गरबा गुजरात का लोक नृत्य है, लेकिन यह भारत के कई हिस्सों में किया जाता है, यह नवरात्री के अवसर पर किया जाता है. गरबा नृत्य के द्वारा माँ दुर्गा की आराधना की जाती है. गरबा नृत्य नवरात्री में पुरे भारत में किया जाता है.
कर्णाटक के लोक नृत्य (Karnataka folk dance) –
यक्षगान – यक्षगान एक पारम्परिक नृत्य नाटिका है. जो कर्णाटक प्रदेश में की जाती है. इस नृत्य को विशेष तौर पर धान के खेतो में, रात के समय प्रस्तुत किया जाता है. जिसमे युद्ध से जुड़े पहलुओं को दर्शाया जाता है.
पंजाब के लोक नृत्य (Punjab folk dance) –
भांगड़ा – मुख्यतः यह लोक नृत्य पुरुषो द्वारा किया जाता है, पंजाब में इसे त्योहारों और उत्सवो पर किया जाता है.
गिद्दा – पंजाब में ही एक और लोक नृत्य प्रसिद्ध है, जिसका नाम है गिद्दा. यह नृत्य महिलों द्वारा पारम्परिक पंजाबी वस्त्र पहन कर किया जाता है.
राजस्थान के लोक नृत्य (Folk Dance of Rajasthan) –
कालबेलिया नृत्य – कला और संस्कृति से भरपूर यह प्रदेश है. यहाँ पर कालबेलिया नाम की जनजाति होती है, जिनके द्वारा किया गया नृत्य कालबेलिया नृत्य कहलाता है.
घुमर – घुमर नृत्य राजस्थान में प्रत्येक त्यौहार, उत्सव, समारोह में प्रमुखता से किया जाने वाला नृत्य है. इसे स्त्रियों द्वारा ही किया जाता है. महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले लम्बे घाघरे इस नृत्य का विशेष आकर्षण होते है.
तेरहताली नृत्य – यह नृत्य महिलों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है एवं पुरुषो के द्वारा भजन गाये जाते है. इस नृत्य में महिलाएं अपने शरीर पर मंजीरो को बांधती है एवं गीत की लय के साथ उन्हें बजाती है.
भवाई नृत्य – राजस्थान के उदयपुर क्षेत्र में किया जाने वाला भवाई नृत्य बहुत अधिक लोकप्रिय है. इस नृत्य में मटकों को सर पर रख कर नृत्य किया जाता है. इन मटकों की संख्या 8 से 10 भी हो सकती है. इस नृत्य की खासियत यह है की नृत्य करते समय नर्तकी किसी गिलास या थाली के कटाव पर या तलवार पर खड़े हो कर नृत्य करती है.
महाराष्ट्र के लोक नृत्य (Maharashtra folk dance) –
तमाशा – यह महाराष्ट्र में किया जाने वाला नाटिका नृत्य है. ज्यादातर लोक नाटिका में पुरुष ही मुख्य भूमिका निभाते है लेकिन तमाशा में मुख्य भूमिका महिलाएं ही निभाती है. यह बहुत ही सफल लोक नृत्य है. इसमें हार्मोनियम , घुंघरू, मंजीरा, आदि यंत्रों का प्रयोग किया जाता है. तमाशा का प्रस्तुतीकरण प्रायः कोल्हाटी समुदाय के द्वारा किया जाता है.
लावणी – लावणी महाराष्ट्र का सबसे अधिक लोकप्रिय नृत्य हैं. लावणी नृत्य की लोकप्रियता का अन्दाज इस बात से लगाया जा सकता है कि लावणी नृत्य का प्रयोग फिल्मों में भी किया जाता हैं. यह नृत्य विशेष पारंपरिक परिधान में किया जाता है, जिसमे न्रात्यांगना 9 मीटर के साड़ी पहनती है. लावणी नृत्य में आध्यात्म एवं श्रृंगार दोनों ही भावों का मेल होता है.
जम्मू-कश्मीर के लोक नृत्य (Jammu and Kashmir folk dance) –
रऊफ नृत्य – भरत के जम्मू-कश्मीर में लोकप्रिय यह नृत्य विशेष रूप से फसल की कटाई के उपलक्ष्य में किया जाता है. यह नृत्य मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा के द्वारा ही किया जाता है.
छतीसगढ़ के लोक नृत्य (Chhattisgarh folk dance) –
पंथी नृत्य – छतीसगढ़ के महान संत गुरु घासीदास के पंथ से ही पंथी नृत्य का नामकरण हुआ है. मुख्यतः निर्गुण भक्ति पर आधारित यह लोक नृत्य छत्तीसगढ़ के सतनामी समुदाय के द्वारा किया जाता है. इस नृत्य में नर्तक झांझ एवं मृदंग की ध्वनी पर सफ़ेद धोती पहन कर नृत्य करते है. इस नृत्य के दौरान अचंभित करने वाले कारनामे भी दिखाए जाते हैं. यह नृत्य आध्यात्मिक भावनाओं पर आधारित होता है.
आन्ध्र प्रदेश के नृत्य (Andhra Pradesh folk dance) –
कुचिपुड़ी – इस नृत्य का नाम आँध्रप्रदेश के एक गाँव कुचिपुडी के नाम पर ही पड़ा है. यह नृत्य पुरे दक्षिण भारत में प्रसिद्ध है. कुचिपुड़ी नृत्य का प्रदर्शन पारंपरिक तरीके से किया जाता है. नृत्य से पहले मंच पर पूजन किया जाता है. इस नृत्य में कर्णाटक संगीत के साथ मृदंग, वायलीन आदि यंत्रों का प्रयोग किया जाता है. इसमें विशेष आभूषण एवं वस्त्र पहने जाते है.
केरल के लोक नृत्य (Kerala folk dance) –
मोहिनीअट्टम – यह नृत्य शास्त्रीय परम्परा पर ही आधारित है. यह अपने नाम के अनुसार ही मोहित करने वाला नृत्य होता है. इस नृत्य में आँखों के, हाथों के तथा चेहरे के हाव्-भाव बहुत अधिक महत्वपूर्ण होते है. इसमें न्रात्यांगना केरल की विशेष सफ़ेद रंग की सुनहरी जरी वाली साड़ी पहनती है. यह नृत्य मूल रूप से हिन्दू पौराणिक कथाओ पर आधारित होता है.
कथकली – कथकली में एक नृत्य नाटिका अर्थात एक कथा का विवरण प्रस्तुत किया जाता है. इसमें विभिन्न पुराणों जैसे महाभारत या रामायण आदि के चरित्रों का रूपांतरण किया जाता है. इस नृत्य की वेशभूषा बहुत ही सुन्दर एवं आकर्षित करने वाली होती है. इसमें विशेष वस्त्र एवं आभूषणों जैसे सर पर मुकुट आदि का प्रयोग किया जाता है. इस नृत्य में हाथों की मुद्राओं एवं चेहरे भावों का विशेष महत्व रहता है.
उत्तराखंड के लोक नृत्य (Uttarakhand folk dance) –
छौलिया नृत्य – उत्तराखंड में किया जाने वाला सबसे प्रसिद्ध लोक नृत्य छौलिया है. ऐसा माना जाता है की उत्तराखंड के छौलिया लोक नृत्य का इतिहास कई दशकों पुराना है. इस नृत्य का चलन उत्तराखंड में उस समय से है, जब विवाह तलवार की नोक पर हुआ करते थे. छौलिया नृत्य विवाह के मौके पर किया जाता है. जब बारात निकलती है तो बारात में कुछ पुरुष पारंपरिक वेशभूषा पहने यह नृत्य करते है और इसी तरह दुल्हन के घर तक जाया जाता है.
बिहार के लोक नृत्य (Bihar folk dance) –
विदेशिया – बिहार में किया जाने वाला विदेशिय नृत्य भोजपुरी भाषी नृत्य है. विदेशिय नृत्य बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक प्रसिद्ध है. यह नृत्य मनोरंजन से भरपूर होता है. साथ ही इसमें समाज से जुडी बुराइयों को समाप्त करने का सन्देश भी दिया जाता है.
पश्चिम बंगाल के लोक नृत्य (West Bengal folk dance) –
छाऊ नृत्य – पश्चिम बंगाल का छाऊ नृत्य गीत संगीत से भरपूर होता है. यह बहुत ही सशक्त छवि वाला नृत्य होता है. छाऊ नृत्य पश्चिम बंगाल के साथ साथ उड़ीसा और बिहार में भी किया जाता है. इन प्रदेशों में यह नृत्य कई मौको पर किया जाता है, जैसे- सूर्य पूजा आदि. इस नृत्य में रामायण एवं महाभारत आदि की घटनाओं का वर्णन किया जाता है. मुखौटे इस नृत्य का विशेष आकर्षण होते है.
जात्रा – जात्रा एक नाट्य अभिनय युक्त लोक नृत्य है. जिसमे अभिनय के साथ-साथ गीत, संगीत, वाद विवाद आदि होता है. पश्चिम बंगाल में जात्रा का इतिहास बहुत ही पुराना है.
हिमाचल प्रदेश के लोक नृत्य (Himachal Pradesh folk dance) –
थाली – हिमाचल में लोक नृत्य विशेष महत्व रखते है. यहाँ कई मौकों पर जैसे त्यौहार, शादी आदि पर विभिन्न लोक नृत्य किये जाते है. थाली नृत्य में नर्तक एवं गायक एक गोल घेरे में बैठते है, इसमें नर्तक एक-एक कर के अपनी प्रस्तुति देते है. इस नृत्य में नर्तक एक विशेष ढंग से अपने शरीर को हिलाता है. थाली नृत्य को और अधिक आकर्षित बनाने के लिए नर्तक सर पर पानी से भरा लोटा रख कर भी नृत्य करते है.
ओड़िसा के लोक नृत्य (Odisha folk dance) –
ओडिसी – ऐसा माना जाता है कि ओडिसी नृत्य का प्रारंभ मंदिरों में नृत्य करने वाली देवदासियों के नृत्य के द्वारा हुआ. ओडिसी नृत्य में मुख्यतः भगवान् कृष्णा और विष्णु के अवतार की कथाएं बताई जाती है एवं भगवान जगन्नाथ का वर्णन भी किया जाता है. ओडिसी नृत्य के भी कई पुरातात्विक प्रमाण पाए जाते है. यह बहुत ही प्राचीन कला है. ओडिसी नृत्य में हस्त मुद्राएँ बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है.
प्रत्येक राज्य के अपने लोक नृत्य होते है, जिनकी अपनी विशेषताएं होती है.
निबंध भारतीय लोक नृत्य के नाम की सूची ( Indian Folk Dance Name List Essay In Hindi)
भारतीय नृत्य कला
भारत में नृत्य की परंपरा प्राचीन समय से रही है| हड़प्पा सभ्यता की खुदाई से नृत्य करती हुई लड़की की मूर्ति पाई गई है, जिससे साबित होता है कि उस काल में भी नृत्यकला का विकास हो चुका था| भरत मुनि का नाट्य शास्त्र भारतीय नृत्यकला का सबसे प्रथम व प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है| इसको पंचवेद भी कहा जाता है|
नाट्यशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार नृत्य दो तरह के होते हैं- मार्गी (तांडव) तथा लास्य| तांडव नृत्य भगवान शंकर ने किया था| यह नृत्य अत्यंत पौरुष और शक्ति के साथ किया जाता है| दूसरी ओर लास्य एक कोमल नृत्य है जिसे भगवान कृष्ण गोपियों के साथ किया करते थे|19वीं शताब्दी के पूर्व तक भारत में नृत्य काफी प्रचलित थे। लेकिन 19वीं शताब्दी आते-आते इसकी लोकप्रियता में काफी गिरावट आ गई थी| । किंतु 20वीं शताब्दी में कई लोगों के प्रयासों से नृत्यकला को पुनर्जीवन मिला।
भारत के शास्त्रीय नृत्य कलाओं का संक्षिप्त विवरण निम्न है:
भरतनाट्यम
भरत मुनि के नाट्यशास्त्र पर आधारित भरतनाट्यम अत्यंत परंपराबद्ध तथा विशिष्ट शैलीयुक्त नृत्य है। इस नृत्य शैली का विकास दक्षिण भारत के तमिलनाडु में हुआ था| प्रारंभ में यह नृत्य मंदिरों में देवदासियों द्वारा किया जाता था, तब इसे आट्टम और सदिर कहते थे। इसे वर्तमान रूप प्रदान करने का श्रेय तंजौर चतुष्टय अर्थात पौन्नैया,पिल्लै तथा उनके बंधुओं को है। 20वीं शताब्दी में रवीन्द्रनाथ टैगोर, उदयशंकर और मेनका जैसे कलाकारों के संरक्षण में यह नाट्यकला पुनर्जीवित हुई थी|
भरतनाट्यम में पैरों को लयबद्ध तरीके से जमीन पर पटका जाता है, पैर घुटने से विशेष रूप से झुके होते हैं एवं हाथ, गर्दन और कंधे विशेष प्रकार से गतिमान होते हैं।
रुक्मिणी देवी अरुण्डेल भारत की सबसे पहली प्रख्यात भरतनाट्यम नृत्यांगना हुई हैं। अन्य प्रमुख कलाकारों में यामिनी कृष्णमूर्ति, सोनल मानसिंह, मृणालिनी साराभाई, मालविका सरकार शामिल हैं।

कुचिपुड़ी
आंध्र प्रदेश के कुचेलपुरम नामक ग्राम में इस नृत्य शैली का उद्भव हुआ था| यह शास्त्रीय नृत्य भरतमुनि के नाट्यशास्त्र के नियमों का पालन करता है। इस शैली का विकास तीर्थ नारायण तथा सिद्धेन्द्र योगी ने किया था| यह मूलत: पुरुषों का नृत्य है, परन्तु पिछले कुछ समय से महिलाओं ने भी इसे अपनाया है। इस नृत्य के लिए कर्नाटक संगीत का प्रयोग किया जाता है और इसका प्रदर्शन रात में होता है। कुचिपुड़ी के प्रमुख कलाकारों में वेदांतम सत्यनारायण, वेम्पत्ति चेन्नासत्यम, यामिनी कृष्णमूर्ति, राधा रेड्डी, राजा रेड्डी आदि शामिल हैं।
ओडिसी
भरतमुनि की नृत्य शैली पर आधारित इस शास्त्रीय नृत्य शैली का उद्भव व विकास दूसरी शताब्दी ई.पू. में उड़ीसा के राजा खारवेल के शासनकाल के दौरान हुआ। 12वीं शताब्दी के बाद वैष्णव धर्म से यह काफी प्रभावित हुई और जयदेव द्वारा रचित अष्टपदी इसकी एक आवश्यक अंग बन गई।
ओडिसी में सबसे महत्वपूर्ण तत्व ‘च्भंगीज्’ और ‘च्कर्णज्’ होते हैं। इसमें विभिन्न शारीरिक भंगिमाओं में शरीर की साम्यावस्था का अत्यन्त महत्व होता है।
आधुनिक काल में ओडिसी के पुनरुत्थान का श्रेय केलूचरण महापात्र को है। संयुक्ता पाणिग्राही, सोनल मानसिंह, मिनाती दास, प्रियवंदा मोहंती आदि ओडिसी की प्रसिद्ध नृत्यांगना हैं।
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कत्थक
उत्तर भारत का यह शास्त्रीय नृत्य मूलत: भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर आधारित है। इसका उद्भव वैदिक युग से माना जाता है। बाद में मुस्लिम शासकों के दौरान यह नृत्य शैली मंदिरों से निकलकर राजदरबारों में पहुँच गई। जयपुर, बनारस, राजगढ़ तथा लखनऊ इसके मुख्य केंद्र थे। लखनऊ के वाजिद अली शाह के काल में यह कला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई थी|
यह अत्यंत नियमबद्ध एवं शुद्ध शास्त्रीय नृत्य शैली है, जिसमें पूरा ध्यान लय पर दिया जाता है। इस नृत्य में पैरों की थिरकन पर विशेष जोर दिया जाता है। इसके प्रसिद्ध कलाकार हैं- लच्छू महराज, शम्भू महराज, बिरजू महराज, सितारा देवी, गोपीकृष्ण, शोभना नारायण, मालविका सरकार इत्यादि।
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कथकली
केरल राज्य में जन्मी यह नृत्य शैली भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर आधारित है। कथकली भी मंदिरों से जुड़ा नृत्य है और इसे मात्र पुरुष ही करते हैं।
कथकली नृत्य में गति अत्यन्त उत्साहपूर्ण और भड़कीली होती है। इसके साथ इसमें शारीरिक भाव-भंगिमाओं का विशेष महत्व होता है। नर्तक अत्यन्त आकर्षक श्रृंगार का प्रयोग करते हैं। इस नृत्य में कथाओं के पात्र देवता या दानव होते हैं। 20वीं शताब्दी में वल्लाठोल ने इसके पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कथकली के प्रख्यात कलाकारों में गोपीनाथ, रागिनी देवी, उदयशंकर, रुक्मिणी देवी अरुण्डेल, कृष्णा कुट्टी, माधवन आनंद, शिवरमण इत्यादि शामिल हैं।
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मणिपुरी
15-16वीं शताब्दी में वैष्णव धर्म के प्रचार-प्रसार की वजह से मणिपुर में इस नृत्य शैली का उद्भव व विकास हुआ। मणिपुरी के विषय मुख्यतया कृष्ण की रासलीला पर आधारित होते हैं। मणिपुरी की सबसे खास बात शरीर की अत्यन्त आकर्षक एवं मृदु गति होती है जो इसे एक विशिष्ट सौंदर्य प्रदान करती है।
1917 में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा इस नृत्य को शांतिनिकेतन में प्रवेश दिलाने के बाद यह पूरे देश में लोकप्रिय हो गया। इसके प्रमुख कलाकार हैं- गुरु अमली सिंह, आतम्ब सिंह, झावेरी बहनें, थम्बल यामा, रीता देवी, गोपाल सिंह इत्यादि।
पश्चिमी नृत्य कला
मोहिनी अट्टम
यह केरल राज्य में प्रचलित देवदासी परंपरा का नृत्य है। 19वीं सदी में भूतपूर्व त्रावणकोर के महाराजा स्वाति तिरुनाल ने इसे काफी प्रोत्साहन दिया। बाद में कवि वल्लाठोल ने इसका पुनरुत्थान किया। इस नृत्य के प्रमुख कलाकार हैं- कल्याणी अम्मा, भारती शिवाजी, हेमामालिनी इत्यादि।
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कृष्णअट्टम
यह नृत्य शैली लगातार आठ रातों तक चलती है और इसमें भगवान कृष्ण के सम्पूर्ण चरित्र का वर्णन किया जाता है। यह केरल में प्रचलित है।
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यक्षगान
कर्नाटक में प्रचलित यह मूल रूप से ग्रामीण प्रकृति का नृत्य नाटक है। हिंदू महाकाव्यों से संबंधित इस नृत्य शैली में विदूषक और सूत्रधार मुख्य भूमिका निभाते हैं।
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