F-1

F-1 समाज, शिक्षा और पाठ्यचर्या की समझ

F-1 समाज, शिक्षा और पाठ्यचर्या की समझ

समाज, शिक्षा और पाठ्यचर्या की समझ

                                          लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. बचपन के विविध विकासात्मक चरणों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर― बचपन के विकासात्मक चरण-बचपन के विकासात्मक चरणों को निम्न प्रकार
से अभिव्यक्त किया जा सकता है―
(i) प्रारंभिक बचपन―शैशवावस्था के बाद प्रारम्भिक बचपन आता है, और बच्चे का
लड़खड़ाते हुए चलने के साथ शुरुआत होता है, जब बच्चा बोलना और स्वतंत्र रूप से कदम
बढ़ाने लगता है। शैशवावस्था तीन साल की उम्र में समाप्त होती है। बच्चा बुनियादी जरूरतों
के लिए अपने माता-पिता पर कम निर्भर रहने लगता है। प्रारंभिक बचपन सात से आठ साल
की उम्र तक चलता है। नन्हें बच्चों को शिक्षा के लिए राष्ट्रीय संगठन के अनुसार, प्रारम्भिक
बचपन की अवधि जन्म से आठ साल की उम्र तक होती है।
(ii) मध्य बचपन― मध्य बचपन लगभग सात या आठ साल की उम्र से शुरू होता है,
जो अनुमानतः प्राथमिक स्कूल की उम्र है और लगभग यौवनकाल पर समाप्त होता है, जो
किशोरावस्था की शुरुआत है।
(iii) किशोरावस्था― किशोरावस्था या बचपन की अंतिम अवस्था, यौवन की दशा से
शुरू होती है। किशोरावस्था का अंत और वयस्कता की शुरुआत में देशवार तथा क्रियावार
भिन्नता है, और एक ही देश-राज्य या संस्कृति के भीतर अलग-अलग उम्र होती है, जिसके
व्यक्ति को इतना परिपक्व (कालक्रमानुसार तथा कानूनी रूप से) माना जाता है कि समाज
द्वारा किन्हीं कार्यों को सौंपा जा सके।
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प्रश्न 2. बालक का समाजीकरण करने में परिवार के योगदान का संक्षेप में वर्णन
कीजिए।
उत्तर―परिवार–बालक के समाजीकरण का सबसे प्रमुख और सबसे महत्वपूर्ण कारक
परिवार है। किम्बल यंग के शब्दों में, “समाज के अन्दर समाजीकरण के विभिन्न साधनों
में परिवार सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।”
          बालक का जन्म परिवार में होता है और वहीं पर उसका विकास होता है। परिवार में
ही वह खाना-पीना, उठना-बैठना, चलन-फिरना, वस्त्र पहनना, पूजापाठ करना आदि कार्यों
को करना सीखता है। परिवार में ही वह समाज को नियमों का प्रारंभिक और व्यावहारिक
ज्ञान प्राप्त करता है। परिवार में ही वह प्रेम, सहयोग, सहकारिता, सहानुभूति, दया, क्षमा, त्याग,
सद्भाव, सहनशील और कर्त्तव्यपरायणता आदि सामाजिक गुणों को सीखता है। व्यक्ति आजीवन
परिवार में रहता है। अतः परिवार समाजीकरण का सबसे अधिक स्थायी साधन है। माता-पिता,
भाई-बहन, दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई आदि परिवार के सभी सदस्य बालक के
समाजीकरण में सक्रिय रहते हैं। परिवार के सदस्य बालक को अच्छा-बुरा, उचित-अनुचित,
सही-गलत, वांछनीय-अवांछनीय, न्यायसंगत अन्यासंगत आदि का ज्ञान कराते हैं। परिवार के
सहयोगी और भावात्मक वातावरण का बालक के समाजीकरण पर अनुकूल प्रभाव पड़ता
है और अपराधी, विकृत, विघटित परिवारों का बालक के समाजीकरण पर विपरीत प्रभाव
पड़ता है।
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प्रश्न 3. समाजीकरण की दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर― समाजीकरण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(i) समाजीकरण सीखने की प्रक्रिया है― जन्म के समय शिशु न तो सामाजिक होता
है और न ही असामाजिक। परन्तु उसके बाद से ही वह समाजीकरण से संबंद्ध बातों को सीखना
शरू कर देता हैं समाज या समूह के मान्यता प्राप्त व्यवहारों को सीखना और उनका अभ्यस्त
होना ही समाजीकरण होता है। उन्हें सीखकर और अपनाकर, बालक अपने को समाज में स्थापित
करता हैं। सीखने का काम, घर-परिवार में से ही, शुरू हो जाता है। सबसे पहले बच्चा माता-पिता
से समाजीकरण को सीखता है। बाद में परिजनों और पास-पड़ोस के लोगों के सम्पर्क से
और पुनः स्कूल और खेल के साथियों के साथ रहकर, बालक, समाजीकरण का पाठ सीखता
जाता है। आयु बढ़ने पर, जितना व्यापक और विविध स्वरूप का, समाज उसको मिलता जाता
है, उससे उसी के अनुरूप समाजीकरण का सीखना जारी रहता है।
(ii) यह जीवनपर्यन्त अनवरत रूप से चलने वाली प्रक्रिया है― समाजीकरण प्रक्रिया
अनवरत रूप से चलती रहती है। जिस समय समाज का, जो स्वरूप होता है, उस समय उसी
से व्यक्ति का समन्वय होते रहना जरूरी है। सामाजिक मान्यताएँ और विचारधाराएँ परिवर्तनशील
होती है। व्यक्ति को भी इनके साथ अपने में बदलाव लाना पड़ता है अन्यथा उसका समाज
के साथ तालमेल बैठना और समन्वय होना कठिन हो जाता है। इतना ही नहीं आयु बढ़ने
के साथ-साथ समाज में व्यक्ति की भूमिका भी बदलती जाती है तथा साथ ही जिम्मेदारियों
के स्वरूप भी बदलते जाते हैं। हर तरह की परिस्थितियों से समन्वय स्थापित करते हुए, चलते
रहना ही समाजीकरण है।
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प्रश्न 4. भाषा किस प्रकार बच्चों के समाजीकरण को प्रभावित करती है?
उत्तर–सामाजिक विकास पर भाषा का भी उचित प्रभाव पड़ता है। भाषा के द्वारा बालक
अपनी इच्छाओं, आवश्यकताओं आदि को दूसरों तक पहुँचाता है तथा दूसरे की इच्छाओं एवं
आवश्यकताओं को समझने की कोशिश करता है। हरलॉक ने यह बताया है कि भाषा बालकों
को उपयुक्त सामाजिक व्यवहार उपयुक्त सामाजिक परिस्थिति में करने में मदद करती है। स्कूल
में बालकों को शिक्षक भिन्न-भिन्न प्रकार के शिष्टाचार की बातें शिष्टाचार के माध्यम से
बताते हैं। किस परिस्थिति में किस प्रकार का सामाजिक व्यवहार करना चाहिए कि शिक्षा
बालकों को घर में माता-पिता भाषा के ही माध्यम से देते हैं। स्पष्ट है कि भाषा के माध्यम
से सामाजिक विकास की प्रक्रिया तेजी से संपन्न होती है।
      इस प्रकार स्पष्ट है कि बच्चे के समाजीकरण में भौगोलिक, सांस्कृतिक और भाषिक
कारण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रश्न 5. निःशुल्क व अनिवार्य बाल-शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के
किन्हीं दो प्रावधानों के बारे में बताएँ।
उत्तर― निःशुल्क व अनिवार्य बाल-शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के दो प्रावधान
इस प्रकार हैं―
(i) निःशुल्क व अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार (धारा 3)― इस अधिनियम के द्वारा
छ: वर्ष से चौदह वर्ष तक ही आयु के बच्चों को निःशुल्क व अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा (पहली
कक्षा से आठवीं कक्षा तक) का प्रावधान किया गया है। प्रत्येक सरकार 6 से 14 वर्ष तक
की आयु के प्रत्येक बालक को निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराएगी तथा प्रत्येक बालक
का अनिवार्य प्रवेश, उपस्थिति और उसे पूरा कराना प्रत्येक सरकार का दायित्व होगा।
(ii) ऐसे बालकों, जिन्हें प्रवेश नहीं दिया गया है, के लिए विशेष उपबन्ध
(धारा-)― जहाँ 5 वर्ष से अधिक की आयु के किसी बालक को किसी विद्यालय में प्रवेश
नहीं दिया गया है, उससे अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी नहीं की है, तो उसे उसको आयु के
अनुसार समुचित कक्षा में प्रवेश दिया जाएगा तथा ऐसे बालक को अन्य बालकों के समान
होने के लिए निश्चित समय सीमा के भीतर और निश्चित रीति से विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने
का अधिकार होगा। ऐसे बालक को चौदह वर्ष की आयु के पश्चात् भी प्रारंभिक शिक्षा को
पूरी करने तक निःशुल्क शिक्षा का अधिकार होगा।
प्रश्न 6. शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 के अन्तर्गत समुचित सरकार व
प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी के क्या-क्या कर्तव्य हैं?
उत्तर― समुचित सरकार व प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी के कर्तव्य निम्न है:
(क) प्रत्येक बालक को निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा उपलव्ध कराएगा;
(ख) धारा 6 में यथाविर्निष्टि आसपास में विद्यालय की उपलब्धता को सुनिश्चित करेगा;
(ग) यह सुनिश्चित करेगा कि दुर्बल वर्ग के बालक और अलाभित समूह के बालक
के प्रति पक्षपात न किया जाए तथा किसी आधार पर प्राथमिक शिक्षा लेने और
पूरा करने से वे निवारित न हो;
(घ) अपनी अधिकारिता के भीतर निवास करने वाले चौदह वर्ष की आयु के बालकों
के ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, अभिलेख रखेगा;
(ङ) अपनी अधिकारिता के भीतर निवास करने वाले प्रत्येक बालक द्वारा प्राथमिक शिक्षा
में प्रवेश, उपस्थिति और उसे पूरा करने को सुनिश्चित और मॉनीटर करेगा;
(च) अवसंरचना, जिसके अन्तर्गत विद्यालय भवन, शिक्षण कर्मचारीवृंद और शिक्षा सामग्री
भी उपलब्ध कराएगा;
(छ) धारा 4 में विनिर्दिष्ट, विशेष प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराएगा;
(ज) अनुसूची में विनिर्दिष्ट, मान और मानकों के अनुरूप अच्छी क्वालिटी की प्राथमिक
शिक्षा सुनिश्चित करेगा;
(झ) प्राथमिक शिक्षा के लिए पाठ्यचार और पाठ्यक्रमों का समय से विहित किया जाना
सुनिश्चित करेगा।
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प्रश्न 7. भारत में “राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग” की स्थापना कब और
कैसी हुई?
उत्तर― राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग-इस आयोग की स्थापना संसद द्वारा
29 दिसम्बर 2006 को पारित एक्ट के द्वारा की गई। यह एक संवैधानिक निकाय है, जिसमें
अध्यक्ष के अतिरिक्त 6 सदस्य होते हैं, जो कि विभिन्न क्षेत्रों यथा—बाल स्वास्थ्य, शिक्षा,
देखभाल एवं विकास, किशोर कानून, अयोग्य बच्चे, बालश्रम उन्मूलन, बाल मनोविज्ञान एवं
बच्चों के कानून से सम्बन्धित विशेषज्ञ होते हैं। आयोग को शिकायत पर जांच करने के अधिकार
के साथ-साथ उन पर नोटिस जारी करने का अधिकार है। बच्चों के संरक्षण एवं विकास
से सम्बन्धित कानूनों के अन्तर्गत सुरक्षा हेतु दिशा-निर्देश जारी करने तथा उनके प्रभावी
क्रियान्वयन का अधिकार भी है।
        आयोग यह सुनिश्चित करता है कि बाल अधिकारों का प्रभावी रूप से संरक्षण हो। इसके
अतिरिक्त यह राज्यों को बाल विकासों से सम्बन्धित योजनाओं हेतु भी निर्देश जारी कर सकता है।
प्रश्न 8. बाल कल्ला समिति पर संक्षिप टिप्पणी लिखिए।
उत्तर–बाल कल्याण समिति–किशोर न्याय अधिनियम, 2000 व संशोधित अधिनियम
2006 की धारा 29 में देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों के प्रकरणों की सुनवाई
व विफ्टाने हेतु अतिम प्राधिकारी के रूप में प्रत्येक जिले में बाल कल्याण समिति की स्थापन
का बाध्यकारी प्रावधान किया गया है। इस समिति में एक अध्यक्ष व चार सदस्य (जिनमें
से एक महिला का होना अनिवार्य) होते हैं, जिनका चयन राज्य स्तरीय चयन समिति द्वारा
किया जाता है। अधिनियम की धारा 29 (5) के अनुसार यह समति एक न्यायपीठ के रूप
में कार्य करेगी और इसे दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अन्तर्गत महानगरीय/प्रथम श्रेणी मजिस्ट्र
की शक्तियाँ प्राप्त है। अधिनियम के इस प्रावधान की अनुपालन हेतु I.C.P.S. में प्रत्येक जिले
में बाल कल्याण समिति की स्थापना व उसके कार्य के लिए आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध
कराने के लिए वित्तीय प्रावधान किया गया है।
प्रश्न 9. बालक के समाजीकरण की प्रक्रिया में शिक्षक की भूमिका का संक्षिप्त
विवेचन कीजिए।
उत्तर― समाजीकरण की प्रक्रिया में शिक्षक का कार्य—बालक के समाजीकरण की
प्रक्रिया में परिवार के बाद स्कूल में विशेष रूप से शिक्षक आता है। प्रत्येक समाज के कुछ विश्वास,
दृष्टिकोण, मान्यताएँ, कुशलताएँ और परम्पराएँ होती हैं, जिनकों ‘संस्कृति’ के नाम से पुकारा
जाता है। यही संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित की जाती है और समाज के लोगों
के आचरण को प्रभावित करती है। शिक्षक का सर्वश्रेष्ठ कार्य है-इस संस्कृति को बालक को
प्रदान करना। यदि वह यह कार्य नहीं करता है तो बालक का समाजीकरण नहीं कर सकता है।
शिक्षक, माता-पिता के साथ बालक के चरित्र और व्यक्तित्व का विकास करने में अति
महत्वपूर्ण कार्य करता है। फिर भी, शिक्षक और माता-पिता एक-दूसरे से दूर होते हैं और
सम्पर्क में नहीं आते। परिणाम यह होता है कि शिक्षक, बालक की रुचियों, मनोवृत्तियों आदि
को नहीं समझ पाता है। इसलिए वह बालक का समाजीकरण उचित दिशा में करने में असफल
होता है। इस प्रकार यह अति आवश्यक है कि शिक्षक और माता-पिता एक-दूसरे के घनिष्ठ
सम्पर्क में रहे और एक ही प्रकार के विश्वासों और दृष्टिकोणों को अपनाकर बालक का
उचित दिशा में समाजीकरण करें।
       कक्षा और खेल के मैदान में, साहित्यिक और सांस्कृतिक क्रियाओं में शिक्षक सामाजिक
व्यवहार के आदर्श प्रस्तुत करता है। बालक अपनी अनुकरण की मूल प्रवृत्ति के कारण शिक्षक
के ढंगों, कार्यों, आदतों और रीतियों का अनुकरण करता है। अतः शिक्षक को सदैव सतर्क
रहना चाहिए। उसे कोई ऐसा अनुचित कार्य या व्यवहार नहीं करना चाहिए, जिसका बालक
के ऊपर गलत प्रभाव पड़े। जो प्रभाव वह बालक पर डालता है, वह बहुत समय तक बना
रहता है। अतः उसे अपने कथनों और कार्यों से केवल उन बातों का सुझाव देना चाहिए, जिन
पर समाज की स्वीकृति की छाप लगी हैं।
              सारांश में हम कह सकते हैं कि शिक्षक बालक के समाजीकरण को प्रभावित करता
है। शिक्षक के स्नेह, पक्षपात, बुरे व्यवहार, दण्ड आदि का सभी बच्चों पर कुछ न कुछ प्रभाव
पड़ता है और उसका सामाजिक विकास उत्तर या विकृत हो जाता है। हार्ट ने इस सम्बन्ध
में परीक्षण भी किये हैं। यदि शिक्षक, मित्रता और सहयोग में विश्वास करता है तो बच्चा
में भी इन गुणों का विकास होता है। यदि शिक्षक तनिक-तनिक सी बातों पर बच्चों को दण्ड
देता है, तो उसके समाजीकरण में संकीर्णता आ जाता है। यदि शिक्षक अपने छात्रों के प्रति
सहानुभूति रखता है, तो छात्रों का समाजीकरण सामान्य रूप से होता है।
प्रश्न 10. बालक के समाजीकरण में विद्यालय की भूमिका का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
       अथवा, क्या विद्यालय भी बच्चों के समाजीकरण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाता है?
उत्तर― विद्यालय परिवार के बाद विद्यालय आता है, जहाँ बच्चे का समाजीकरण होता
है। विद्यालय ही उसे मानसिक, सामाजिक और संवेगात्मक विकास के लिए प्रेरणा देता है।
विद्यालय में ही उसे सामाजिक और सांस्कृतिक आदर्शों और मान्यताओं की शिक्षा प्राप्त होती
है। बच्चा समझने लगता है कि परिवार की अपेक्षा विद्यालय कहीं अधिक विस्तृत समाज है।
अन्य बच्चों के सम्पर्क में आने से उनका समाजीकरण तीव्र गति से होने लगता है। सबसे
महत्वपूर्ण बात जो बच्चा विद्यालय में सीखता है, वह है ‘प्रतियोगिता’। कक्षा में, खेल के
मैदान में, परीक्षा में सभी जगह प्रतियोगिता होती है। बच्चा इस प्रतियोगिता में आगे निकलना
चाहता है, भले ही वह दूसरों को हानि पहुँचाकर ऐसा करें। इसका प्रभाव उसके आगामी जीवन
पर अच्छा नहीं पड़ता है।
      विद्यालय के बच्चे को कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। यदि नियम आवश्यकता
से अधिक कठोर हैं, तो उनका बच्चे के समाजीकरण पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता हैं। यदि
विद्यालय का अनुशासन अच्छा नहीं है, तो बच्चा अपने व्यवहार पर नियंत्रण करना नहीं सीख
पाता है। बच्चे के समाजीकरण को निर्देशित करने वाली विद्यालय की अन्य बातें हैं-परीक्षाफल,
खेलों में प्रसिद्धि, आर्थिक और सामाजिक स्तर, छात्रों की संख्या, शिक्षक और उनकी योग्यता
आदि।
प्रश्न 11. विद्यालय के अनौपचारिक कार्य कौन-कौन-से है?
उत्तर― विद्यालय के अनौपचारिक कार्य इस प्रकार है―
1. समाज-सेवा तथा सामाजिक उत्सवों का आयोजन करके छात्रों को सामाजिक प्रशिक्षण
देना।
2. सक्रिय वातावरण का निर्माण करके छात्रों के रुचिकर और रचनात्मक क्रियाओं को
प्रोत्साहित करना।
3. खेल-कूद, स्काउटिंग, सैनिक शिक्षा, स्वास्थ्य-कार्य आदि की व्यवस्था करके छात्रों
को शारीरिक प्रशिक्षण देना।
4. वाद-विवाद प्रतियोगिताओं, चित्रकलाओं, प्रदर्शनियों, संगीत-सम्मेलनों और नाटकों का
प्रबन्ध करके बालक और बालिकाओं को भावात्मक प्रशिक्षण देना।
5. विद्यालय को सामुदायिक जीवन पर प्रशिक्षण देना।
प्रश्न 12. द्वितीयक समूह बालक के समाजीकरण पर किस प्रकार प्रभाव डालता
है?
उत्तर― जब परिवार व आस-पड़ोस के बच्चों के समाजीकरण का प्रथम चरण चलता
है, परन्तु वहाँ उनको उतनी विविधताओं का सामना नहीं करना पड़ता, जितनी विविधताएँ उन्हें
द्वितीयक समूह अर्थात् विद्यालय में मिलती है। भिन्न-भिन्न उम्र, लिंग, जाति, धर्म, संप्रदाय,
संस्कृति, आचार-व्यवहार, आर्थिक व सामाजिक दशा आदि से संबंधित बच्चों, शिक्षकों व
अन्य कर्मचारियों आदि की मौजूदगी, बच्चों के लिए समाज के एक लघु रूप का बिम्ब प्रस्तुत
करता है और इस प्रकार समाजीकरण हेतु बच्चों को विद्यालय में ज्यादा अवसर प्राप्त होता
है। विद्यालय में बच्चे न सिर्फ समाज के विविध रूपों से परिचित होते हैं, वरन विभिन्न प्रकार
की गतिविधियों, आयोजनों व भूमिकाओं से भी होकर उन्हें गुजरना पड़ता है। प्रार्थना,
योग-व्यायाम, खेल-कूद, कक्षा-शिक्षण, सांस्कृतिक गतिविधियों, बागवानी, वृक्षारोपण,
प्रभातफेरी, रैलियों, विभिन्न दिवसों को मनाये जाने हेतु आयोजित कार्यक्रमों तथा अपने
साथी-समूहों, शिक्षकों व अन्य लोगों के साथ होने वाले संवादों, वस्तुओं के आदान-प्रदान
आदि के माध्यम से और विद्यालय-प्रतिनिधि, कक्षा-प्रतिनिधि, बाल-संसद व विद्यालय में होने
वाले विभिन्न कार्यक्रमों में मिलने वाली भूमिकाओं व उत्तरदायित्व आदि के माध्यम से बच्चों
के अंदर संवेदनशीलता, मैत्री, समूह-भावना तथा परस्पर सहयोग व जिम्मेदारी की भावनाओं

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