F-4 विद्यालय संस्कृति, परिवर्तन और शिक्षक विकास
F-4 विद्यालय संस्कृति, परिवर्तन और शिक्षक विकास
विद्यालय संस्कृति, परिवर्तन और शिक्षक विकास
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. बाल संसद का गठन किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर–बाल संसद का गठन-संयोजक शिक्षक द्वारा पूर्व सूचना देकर विद्यालय के
सभी छात्र एवं छात्राओं को बुलाया जाता हैं। सभा के सभी छात्र-छात्राओं को उनके वर्ग
के अनुसार बैठाया जाता है। सभी बच्चों को बाल-संसद के बारे में अच्छी तरह समझाया
जाता हैं। तत्पश्चात् छात्र-छात्राओं की सभा द्वारा एक प्रधानमंत्री और उपप्रधानमंत्री का चयन
किया जाता हैं। जिसमें एक पद लड़की का होना आवश्यक हैं । प्रधानमंत्री एवं उपप्रधानमंत्री
के चयन के बाद सभी वर्गों के बच्चों को पाँच समूहों में इस प्रकार बाँटा जाता है कि विभिन्न
प्रकार के बच्चे सभी समूहों में हो । पाँचों समूहों के नाम महापुरुष, नदियों, फूलों और पहाड़ों
के नाम पर रखे जा सकते हैं। सभी समूहों को अलग-अलग बैठाकर प्रत्येक समूह से एक
मंत्री और एक उपमंत्री (जिसमें एक लड़की अनिवार्य रूप से हो) चुनने को कहा जाता हैं।
इन चुने हुए मंत्रियों के समूह से एक प्रधानमंत्री का चुनाव होता है, जिस पर सभी की सहमति
होती है। इसके बाद प्रधानमंत्री द्वारा सभी मंत्री और उपमंत्री की बैठक बुलाई जाती हैं तथा
दायित्वों का बँटवारा किया जाता है। बाल-संसद का कार्यकाल एक वर्ष का होता है। शैक्षणिक
सत्र के प्रथम माह में ही इसका गठन अनिवार्य रूप से कर लेना चाहिए।
प्रश्न 2. मीना मंच के कार्यों का विवरण दे।
उत्तर―मीना मंच के कार्य निम्न प्रकार से है :
1. अनामांकित तथा अनियमित बच्चों की पहचान कर उन्हें विद्यालय से जोड़ने का प्रयास
करना।
2. लड़कियों को शिक्षा, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के प्रति जागरूक बनाना ।
3. घरों में जाकर लड़कियों के माता-पिता को स्कूल में दाखिला कराने के लिए जोर
देना।
4. विद्यालय की गतिविधियों में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाना ।
5. लड़का-लड़की के बीच भेदभाव पर रोक लगाना ।
6. दहेज-प्रथा एवं बाल विवाह रोकने के लिए समाज को जागरूक बनाना ।
7. बालिकाओं के शैक्षिक तथा समाजिक स्थिति पर मुहल्ला, टोला से बैठकें आयोजित
करना।
प्रश्न 3. शिक्षण प्रक्रिया में कम्प्यूटर तथा सूचना एवं संचार तकनीक किस प्रकार
सहायता करता है?
उत्तर―कम्प्यूटर के द्वारा हम किसी भी विषय के संबंध में नई सामग्री विकसित कर
सकते है । जैसे—चार्ट, डायग्राम, ग्राफिक्स चित्र, कार्यशीटें आदि । इसके अलावा कम्प्युटर की
सहायता से इंटरनेट की विभिन्न वेबसाइटों से नई जानकारियाँ, मॉडल आदि ढूँढ सकते हैं । शिक्षण
अधिगम सामग्री में हमें कई कई तरह को तथ्यात्मक जानकारियाँ चाहिए होती है, जिन्हें हम
आसानी से इंटरनेट पर खोज सकते हैं । शिक्षण प्रशिक्षण में सूचना संचार तकनीकी बहुत महत्वपूर्ण
साधन है। भाषण विधि के बारे में अक्सर यह माना जाता है कि यह विधि ऊबाई और बोझिल
होती है तथा एक पक्षीय संवाद पर आधारित होती है। सूचना एवं संचार तकनीक की सहायता
से हम दिए गए विषय से संबंधित सामग्रियों को दिखा सकते है, तथा हरेक दृश्य पर सामूहिक
चर्चा करवा सकते हैं। इन तकनीकों के द्वारा हम संबंधित विषय से जुड़े चित्र, ग्राफिक्स, स्लाइड,
वीडियो, फ्लोचार्ट आदि दिखा सकते है तथा जरूरत पड़ने पर श्रव्य सामग्री के अंश भी सुनवा
सकते हैं। यह माना गया है कि सुनकर, देखकर या अनुकरण करके सीखना अधिक प्रभावी
होता है। इसके अलावा इन संचार साधनों का उपयोग करके हम अपने छात्रों/छात्राओं को समय
पर फीड बैक देकर उनका मूल्यांकन कर सकते है। इस प्रकार सूचना एवं संचार तकनीक
के बिना वर्तमान वैश्वीकृत युग में शिक्षा प्राणहीन हो जाएगी।
प्रश्न 4. सूचना एवं तकनीकी छात्रों के लिए उपयोगी है, कैसे?
उत्तर―निम्नलिखित बातों से सूचना एवं तकनीकी छात्रों के लिए उपयोगी हैं :
1. सूचना तकनीकी से छात्रों को अपने आत्म-सुधार के लिए सूचना करने और उसका
उपयोग करने के अवसर प्राप्त होते है।
2. इसके माध्यम से आविष्कार करने की उनकी जिज्ञासा और निर्माण की स्वाभाविक
प्रवृत्ति परिष्कृत होती है। आविष्कार करने की उनकी लालसा को भी सन्तुष्टि प्राप्त
होती है।
3. सूचना तकनीकी के माध्यम से वे सूचना के उपयोगी स्रोतों, आवश्यक जानकारी प्राप्त
करने के ढंगों, सूचना प्रक्रियाकरण की विधियों से परिचित होते हैं।
4. छात्रों को सूचना नियंत्रण के लिए परिष्कृत इलेक्ट्रानिक उपकरणों को सम्भालने का
ज्ञान और प्रशिक्षण प्राप्त होता है।
5. सूचना प्राप्त करने, परिवर्तित करने और उसका उपयोग करने में सूक्ष्मता, गति, शुद्धता
आदि प्राप्त होती है।
उपर्युक्त बातों के आधार पर हम कह सकते है कि सूचना एवं तकनीकी छात्रों के विकास
के लिए नितान्त आवश्यक है।
प्रश्न 5. शिक्षा का अधिकार के वजह से विद्यालय के भौतिक संरचनाओं में किस
प्रकार के बदलाव हुए हैं ?
उत्तर―भौतिक संरचनायों में परिवर्तन–इन बदलावों का अर्थ है, कि विद्यालय की
भौतिक संरचना में कई तरह से परिवर्तन जरूरी है, विद्यालयों की संख्या में स्वतः ही वृद्धि
होगी। जिन क्षेत्रों में 1 किमी की आवासीय दायरे में विद्यालय नहीं है, सरकारों को वहाँ
विद्यालय का निर्माण कराना चाहिए। इसी तरह वर्ग 8 तक के विद्यालयों को भी बनवाना
पड़ेगा। विद्यालयों का निर्माण करवाते समय उन्हें जरूरतों को ध्यान में रखते हुए निर्मित करवाया
जायेगा ताकि ये बच्चे आसानी से अपनी पढ़ाई कर सके।
शिक्षा का अधिकार कानून के प्रावधान के अनुसार विद्यालयी परिसर के लिए काफी
खुली जमीन उपलब्ध करवानी होगी ताकि विद्यालय में पाठ्योत्तर गतिविधियों को भी आसानी
से आयोजित किया जा सके।
शिक्षा के अधिकार के वजह से विशेष बदलाव :
I. हरेक छात्र के 1 किमी० के आवासीय दायरे में एक प्राथमिक विद्यालय होगा
ताकि प्रत्येक छात्र/छात्रा का स्कूल जाना सुनिश्चित हो सकें । इस तरह प्रत्येक 3 किमी०
के आवासीय दायरे में वर्ग 8 तक का बुनियादी या माध्यमिक स्तर का विद्यालय
खोला जायेगा।
2. छात्र/छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालयों की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि यात्रा
के विद्यालय छोड़ने की प्रवृत्ति कम हो सके।
3. विद्यालय भवन की सुरक्षा के लिए चहारदिवारी या बाद का निर्माण होना चाहिए
ताकि बच्चे मध्यावकाश में विद्यालय से बाहर नहीं जा सके । साथ ही साथ असामाजिक
तत्वों से होनेवाले व्यवधानों से विद्यालय परिवेश को मुक्त रखा जा सके।
4. विद्यालय भवन में एक खेल का मैदान होना चाहिए ताकि बच्चे स्वच्छंद होकर व्यायाम
एवं खेल का आनंद ले सके।
प्रश्न 6. नेतृत्व के विशेषताओं का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर―एक कुशल एवं प्रभावी नेतृत्व की निम्नलिखित विशेषताएं होती है―
1. आपसी हितों की एकता― नेता और अनुयायियों के बीच हितों की एकता का होना
जरूरी है, यह नेतृत्व की प्रकृति बतलाती है। किसी संगठन में प्रभावी नेतृत्व उसी समय माना
जाता है जबकि नेता और अनुयायी एक ही उद्देश्य प्राप्ति हेतु प्रयास कर रहे हों। इस संदर्भ
में जार्ज आर० टैरी ने कहा है कि “नेतृत्व पारस्परिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु व्यक्तियों को
स्वैच्छिक प्रयल करने के लिए प्रभावित करने की क्रिया है।”
2. सामान्य उद्देश्य लक्ष्य― नेतृत्व में यह प्रकृति पायी जाती है कि नेतृत्व करने वाला
व्यक्ति अर्थात् नेता उपक्रम के सामान्य उद्देश्यों/लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने अनुयायियों
के प्रयासों का निर्देशन व मार्गदर्शन करता है । नेतृत्व के अन्तर्गत नेता अपने अनुयायियों को
उपक्रम के सामान्य लक्ष्यों की जानकारी देता है, उन लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता
है और उन लक्ष्यों की प्राप्ति में आने वाले संभावित बाधाओं व समस्याओं को दूर करने का
प्रयास करता है।
3. आचरण एवं व्यवहार को प्रभावित करना―नेता में यह गुण होना चाहिए कि उसके
अनुयायी उसके आचरण एवं व्यवहार से प्रभावित हों । उरविक के अनुसार, “नेता का प्रभाव
केवल इससे नहीं होता है कि वह क्या कहता है तथा क्या लिखता है? इसका निश्चय उसके
अनुयायी उसके आचरण एवं व्यवहार एवं काम से करते है।” प्रशासन में यह आवश्यक
है कि कोई कार्यकारी अधिकारी किस सीमा तक अपने सहयोगी के आचरण अथवा व्यवहार
को अपेक्षित दिशा में प्रभावित कर सकता है, यहाँ पर अन्य व्यक्तियों के आचरण को प्रभावित
करने का आशय यह नहीं है कि वह अधीनस्थों से अनुचित रूप से कार्य कराए। उसका
कार्य तो अधीनस्थों को निर्देश प्रदान करना तथा एक निश्चित ढंग से विधिसम्मत कार्य करने
के लिए प्रेरित करना है।
4.क्रियाशील सम्बन्ध―नेतृत्व क्रिया में नेता एवं अनुयायियों के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध
निष्क्रिय न होकर क्रियाशील होता है। नेतृत्व में नेता अपने अनुयायियों को सामान्य लक्ष्यों
की प्राप्ति हेतु मार्गदर्शन प्रदान करता है एवं उन्हें अपना अनुसरण करने के लिए प्रेरित करता है।
5.अनुयायियों का होना―नेतृत्व करने के लिए यह जरूरी है कि नेता के कुछ अनुयायी
हों, बिना अनुयायियों के नेतृत्व संभव नहीं हो सकता है। अनुयायियों से हमारा आशय उन
व्यक्तियों से है जो नेता के आदेशों एवं निर्देशों का अक्षरतः पालन करें ।
6. नेतृत्व एक गतिशील प्रक्रिया― किसी शैक्षिक प्रबन्ध में नेतृत्व एक निरन्तर चलन
वाली प्रक्रिया है। नेतृत्व की क्रिया में प्रबन्ध वर्ग नई-नई तकनीकों को अपनाते रहते हैं और
इनके सम्बन्ध में कर्मचारियों के अनुसार परिवर्तनशील होता है।
7. नेतृत्व वैयक्तिक गुण―नेतृत्व करना नेता का एक विशिष्ट व्यक्तिगत गुण होता है।
जो उसकी क्षमता व योग्यताओं को प्रमाणित करने का अवसर प्रदान करता है। यदि किसी
व्यक्ति में व्यावसायिक प्रतिष्ठान की योजना व नीतियों के निर्धारण सम्बन्धी प्रखर ज्ञान होते
हप भी यदि उसमें नेतृत्व गुण नहीं है तो वह सफल प्रवन्धक नही बन सकता है।
प्रश्न 7. NCTE के क्या उद्देश्य है ?
उत्तर―NCTE के उद्देश्य―राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद् (N.C.T.E.) की स्थापना
निम्नांकित आवश्यकताओं और उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की गई थी―
1. भारतीय विद्यालयों में पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध कराने तथा शैक्षिक गतिविधियों का
समुचित विकास करना।
2. भारतीय विद्यालयों में प्रशिक्षित अध्यापकों की नियुक्ति के लिए प्रशिक्षण संस्थाओं
की नियमबद्ध व्यवस्था करना अर्थात् प्रशिक्षित अध्यापकों की अधिकता व कमी की
समस्या को दूर करने के लिए वांछित प्रावधानों की व्यवस्था करना।
3. शिक्षा का विस्तृत प्रचार-प्रसार करने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर शैक्षिक संस्थाओं
एवं योजनाओं की स्थापना करना ।
4. अच्छी शिक्षा के लिए अच्छे अध्यापकों की नियुक्ति के सम्बन्ध में विशेष व्यवस्था
करना।
5. अध्यापन से पूर्व और बाद में आवश्यकतानुसार प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था करना
इत्यादि।
NCTE का उद्देश्य सम्पूर्ण देश में नियोजित एवं समन्वित तरीके से अध्यापक शिक्षा
सम्बन्धी नियमों और मानकों को स्थापित करना था। इसके अन्तर्गत अध्यापक शिक्षा सम्बन्धी
समस्त संस्थाएँ एवं अनुसन्धान परिषदें आती हैं। इसमें पूर्व प्राथमिक शिक्षा से लेकर प्रौढ़
शिक्षा एवं पत्राचार व दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र भी सम्मिलित किए गए हैं। सम्पूर्ण राष्ट्र में परिषद्
के कार्य को सुचारु रूप से चलाने हेतु इसको क्षेत्रीय परिपदों में विभाजित किया गया हैं―
1. पूर्वी क्षेत्रीय, राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद्, भुवनेश्वर ।
2. उत्तर क्षेत्रीय, राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद्, तिलक नगर जयपुर ।
3. पश्चिमी क्षेत्रीय, राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद्, भोपाल ।
4. दक्षिण क्षेत्रीय, राष्ट्रीय अध्यापक परिपद्, बंगलौर।
प्रश्न 8. केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के कार्यों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर―केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के कार्य― केन्द्र सरकार के अधीन कर्मचारियों
के बालकों हेतु शिक्षा की व्यवस्था करने, बालकों की शिक्षण प्रक्रिया को सुचारू रखने, उनकी
शिक्षा में गुणात्मक सुधार करने आदि के उद्देश्य से स्थापित CBSE द्वारा पाठ्यक्रम निर्धारण,
संघ शासित क्षेत्रों में शिक्षा व्यवस्था, परीक्षाओं का आयोजन, शैक्षिक विषमता को दूर करने,
शैक्षिक सेमीनारों का आयोजन जैसे अनेक कार्यों का सम्पादन किया जाता है । शैक्षिक विकास
की दृष्टि से केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा किए जाने वाले मुख्य कार्य निम्न प्रकार हैं :
1. माध्यमिक शिक्षा स्तर को ऊँचा उठाने के लिए एकरूपता लिए हुए पाठ्यक्रम का
निर्धारण करना।
2. माध्यमिक शिक्षा की परीक्षाओं का आयोजन करवाना।
3. संघ शासित क्षेत्रों के व्यक्ति के लिए शिक्षा की व्यवस्था करना।
4. राष्ट्र में पायी जाने वाली शैक्षिक विषमता को दूर करना ।
5. विद्यालयों में कार्योन्मुखी पाठ्यक्रमों का संचालन करना ।
6. केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित माध्यमिक शिक्षा के लिए पाठ्यपुस्तकों
का प्रकाशन करवाना।
7. नवीन शिक्षण विधियों को अपनाने तथा मूल्यांकन प्रक्रिया में सुधार लाने के लिए
निर्देश प्रदान करता है तथा इससे सम्बन्धित शोध कार्यों को करवाता है।
8. माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के क्षेत्र में नवीन प्रयोगों यथा-गणित प्रयोगशाला एवं शारीरिक
शिक्षा विषय को प्रभावी बनाने के लिए पहल करता है।
9. छात्रों की सहायाता निर्देशन एवं सहायता केन्द्रों की व्यवस्था करता है।
10. विद्यालयों की मान्यता, मार्गदर्शन एवं मानदण्डों के अनुपालन का कार्य भी बोर्ड
द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 9. बालकेन्द्रित उपागम की कुछ मान्यताएँ बताएँ ।
उत्तर–बालकेन्द्रित उपागम की कुछ मान्यताएँ निम्नलिखित है :
(i) विमर्श/खेल के माध्यम से भी अधिगम संभव है।
(ii) शिक्षक अधिगम का ही एकमात्र स्रोत नहीं है बल्कि छात्र दूसरे छात्रों से अंत:क्रिया
करके भी सीखते हैं।
(iii) अवधारणाओं का पूर्ण अधिगम तभी संभव है, जब हम स्वयं से करके सीखते हैं।
(iv) कर के सीखने की प्रक्रिया में उत्पन्न कौतुहल छात्र को चिंतन के लिए अभिप्रेरित
करता है।
(v) किसी के अनुभव को सुनकर/देखकर भी छात्र पुनरावृति कर सीखते हैं।
अतः हम यह कह सकते हैं कि बालकेन्द्रित उपागम में विद्यार्थियों में करके सीखने
के विभिन्न अनुभव प्राप्त होते हैं और यह सफलता उन्हें आनन्द प्रदान करती है तथा उनमें
आत्मविश्वास का विकास होता है।
प्रश्न 10. लोकतांत्रिक कक्षा की संकल्पना समझाएँ।
उत्तर―लोकतांत्रिक कक्षा की संकल्पना-कक्षा ऐसे विद्यार्थियों का समूह है, जिसमें
प्रत्येक विद्यार्थी की सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक पृष्ठभूमि भिन्न है। ऐसी स्थिति में सभी
विद्यार्थी के बीच अधिगम की प्रक्रिया को संचालित करना शिक्षक के लिए एक बड़ी चुनौती
है। कक्षा को लोकतांत्रिक स्वरूप प्रदान करने में शिक्षक के व्यवहार की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण
है। कक्षाकक्ष के संदर्भ में लोकतंत्र की अवधारणा को मुख्यतः दो रूपों में देखा जा सकता है।
(i) विद्यार्थी के सदंर्भ में लोकतंत्र―इस संदर्भ में लोकतंत्र से हमारा आशय यह है
कि छात्रों के बीच किसी खास वर्ग या धर्म या जाति के आधार पर कक्षा में किसी
का बचाव न हो बल्कि सभी विद्यार्थियों को समान सीखने का अवसर मिलें।
(ii) शिक्षक के संदर्भ में लोकतंत्र इससे हमारा तात्पर्य यह है कि शिक्षक में उन
लोकतांत्रिक भावनाओं को विकसित करना है, जिससे वह कक्षा के स्वरूप को
अधिगम के ऐसे सदन के रूप में विकसित कर सके, जिसमें वह अपने विद्यार्थियों
की भावनाओं का सम्मान करें और अधिगम प्रक्रिया को नियंत्रित न करे बल्कि
उसे उचित दिशा प्रदान करता रहे ।
बालकेन्द्रित कक्षाओं का स्वरूप सदैव लोकतांत्रिक ही होता है और यदि इसका स्वरूप
परिवर्तित हुआ अर्थात् शिक्षक की भूमिका यदि कक्षा पर हावी होने लगी तो कक्षा का स्वरूप
लोकतांत्रिक न होकर शिक्षक केन्द्रित हो जाएगा । लोकतांत्रिक अधिगम प्रक्रिया में अधिगमकर्ता
मार्गदर्शक द्वारा सम्मानित महसूस करता है और मार्गदर्शक अधिगमकर्ता की भावनाओं का सम्मान
कर उसकी योग्यता को बढ़ाने के लिए अभिप्रेरित करते हैं।
प्रश्न 11. प्रगति रिपोर्ट का विश्लेषणात्मक अध्ययन क्या है ?
उत्तर― प्रगति रिपोर्ट का विश्लेषणात्मक अध्ययन-सतत् व्यापक मूल्यांकन के क्रम
में यह आवश्यक हो जाता है कि शिक्षक द्वारा शिक्षण प्रक्रिया, आवश्यकतानुसार उसमें लाए
जानेवाले बदलाव, बच्चों की उपलब्धि स्तर में वास्तविक परिवर्तन आदि का अभिलेखन किया
जाए। इसके लिए शिक्षा के अधिकार कानून-2009 के अनुसार प्रत्येक बच्चों का संचयी
प्रगति पत्रक तैयार करना है। सिर्फ लिखित और मौखिक परीक्षा के द्वारा बच्चों की प्रगति
का आकलन न्यायपूर्ण नहीं है। शिक्षक द्वारा बच्चों का लगातार अवलोकन कर यह पता
लगाना कि बच्चा क्या नहीं जानता है को स्थान पर बच्चा क्या जानता है को मूल्यांकन
का आधार बनाना चाहिए। इस संबंध में राज्य शिक्षा शोध एवं प्रशिक्षण परिषद्, बिहार ने
शिक्षा का अधिकार कानून-2009, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या को रूपरेखा 2005 एवं विहार पाठ्यचर्या
की रूपरेखा-2008 को ध्यान में रखकर सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के तरीकों के लिए
विभिन्न सामग्रियों का निर्माण किया है। ये सामग्नियाँ निम्न्वत हैं :
1. शिक्षण सहयोग संदर्शिका, 2. वच्चों का प्रगति पत्रक एवं 3. विद्यालय का प्रगति पत्रक
ये तीनों सामग्रियाँ आपस में खास संबंध रखती हैं। शिक्षण सहयोग संदर्शिक वर्गकक्ष
संचालन में सहयोग करती हैं एवं साथ ही पाटवार बच्चों को प्रगति को संधारित करने के
संकेतक भी बताती है। इन संकेतकों को समेकित कर बच्चेवार प्रगति पत्रक तैयार किया
जाता है।
प्रश्न 12. चाइल्ड पोर्टफोलियो क्या है ? इसका विभाजन कैसे किया जाता है ?
उत्तर–चाइल्ड पोर्टफोलियो—यह प्रत्येक विद्यार्थी के लिए अलग अलग बनाया जाना
चाहिए। इसमें बच्चों से संबंधित सभी प्रकार की जानकारियों का संकल्न होता है। जिसे
देखकर उसकी सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक स्थिति का मूल्यांकन किया जा सकता है।
इसमें तीन प्रकार की चीजें होंगी :
(क) चाईल्ड प्रोफाइल ‘अ’― इसमें बच्चे एवं उसके परिवार के बारे में सामान्य जानकारी
एवं उसके स्वास्थ्य संबंधी टिप्पणियाँ होंगी।
(ख) चाईल्ड प्रोफाइल ‘ब’― संज्ञानात्मक और सह-संज्ञानात्मक प्रगति का ब्योरा इसमें
अंकित होगा। साथ ही, शिक्षकों के सुझाव एवं टिप्पणियाँ भी लगी रहेंगी।
(ग) बच्चों द्वारा बनाई और जुटाई गई सामग्री, उसके द्वारा लिखी गई सामग्री, पूछे गए
सवाल एवं किए गए उल्लेखनीय कार्यों का ब्योरा भी उसके पार्टफोलियों में होगा।
प्रश्न 13. चाईल्ड पोर्टफोलियो में बच्चे, अभिभावक और समुदाय की भूमिका
बतावें।
उत्तर–बच्चे, अभिभावक और समुदाय की भूमिका― आकलन सीखनेवाले का होना
है या सीखने की प्रक्रिया का । एक बार यह बात साफ हो जाने पर भूमिकाओं का निर्धारण
आसानी से हो सकता है। सी सी ई. का उद्देश्य बच्चे का सर्वांगीण विकास है। अतः इसका
फोकस अपनाई जा रही प्रक्रिया पर ही रखना होगा।
सीखने की प्रक्रिया में सीखनेवाले की भूमिका और ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है। चूंकि
सतत् आकलन सीखने की प्रक्रिया का ही हिस्सा है, अतएव सीखनेवाला इसे ज्यादा ठीक
तरीके से अद्यतन (अपडेट) कर सकता है। अपनी बनाई चीजें उसमें रख सकता है। उसे
समय-समय पर देख सकता है। अपने लिए सुझावों पर अमल कर सकता है । पोर्टफोलियो
से वह न केवल अपनी प्रगति को देखता रहता है वरन् उसके लिए प्रयास भी कर सकता है।
पोर्टफोलियो अभिभावकों और समुदाय के लिए भी काफी मददगार होता है। शुरुआत
में उसे पूरा करने में शिक्षकों को मदद कर सकते हैं। घर पर लगातार बच्चों पर नजर
रख समय-समय पर स्कूल में सुझाव भी दे सकते हैं।
समुदाय में सही शिक्षा का मतलब फैलाने में भी पोर्टफोलियो की भूमिका महत्त्वपूर्ण
होगी, विशेषकर उन जगहों पर जहाँ अब भी बच्चों पर कड़े अनुशासन और रटने को ही
शिक्षा समझा जाता है। बच्चों के अन्दर पनप रहे गुणों का लगातार देखते रहने से समाज
में बच्चों और शिक्षा के प्रति नजरिया को बदला जा सकता है।
प्रश्न 14. विद्यालयी अभिलेखों की आवश्यकता को संक्षेप में स्पष्ट करें।
उत्तर―विद्यालय अभिलेखों की आवश्यकता हो हम निम्न रूप से स्पष्ट कर सकते हैं―
1. समाज को सन्तुष्ट करने के लिए― स्कूल की स्थापना समाज ने अपने बच्चों की
शिक्षा-व्यवस्था के लिए की है। इसका सारा प्रबन्ध समाज के सदस्य आपस में मिल-जुलकर
करते हैं । अतः वे किसी भी समय यह जाँच करने की इच्छा प्रकट कर सकते हैं कि स्कूल
का कार्य ठीक प्रकार से चल रहा है या नहीं। विद्यालय में शिक्षा की व्यवस्था किस स्तर
की हो रही है ? उन्होंने चंदा करके जो पैसा एकत्रित करके विद्यालय को दिया है उसका
सदुपयोग हो रहा है या नहीं? इन सब बातों का उत्तर देने के लिए स्कूल के रिकॉर्ड व
रजिस्टरों का होना आवश्यक है। इन अभिलेखों के द्वारा मुख्याध्यापक समाज के सदस्यों के
प्रश्नों का उत्तर आसानी से दे सकता है और विद्यालय की प्रगति से उनको परिचित करा
सकता है।
2. स्कूल प्रबन्धकों को सन्तुष्ट करने के लिए― हमारे यहाँ सरकारी विद्यालयों के
अलावा बहुत से विद्यालय ऐसे हैं, जिनका प्रबन्ध, प्रबन्ध समिति के हाथ में होता है। प्रबन्ध
समिति के सदस्यों को विद्यालय के हिसाब-किताब. शिक्षण में प्रगति आदि बातों की जानकारी
देने के लिए अभिलेखों एवं रजिस्टरों की आवश्यकता पड़ती है।