F-5 भाषा की समझ तथा आरम्भिक भाषा विकास
F-5 भाषा की समझ तथा आरम्भिक भाषा विकास
F-5 भाषा की समझ
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भाषा क्या-क्या काम करती है ?
अथवा, कोई बच्चा या बच्ची भाषा के जरिए कौन-कौन से काम लेता या लेती
है?
उत्तर― कोई बच्चा या बच्ची भाषा के जरिए निम्नलिखित कार्य करते हैं―
(i) अपने काम के संचालन में व्यस्त रखना―बच्चे कुछ काम करने के साथ-साथ
उसके बारे में बात करते जाते हैं। यह बात अपनी गतिविधि पर एक तरह का निजी टीका
है। यह टीका ही उनको काम में अधिक देर तक व्यस्त रखती है एवं उनकी रुचि बनाये
रखती है।
(ii) दूसरे के क्रिया-कलाप की ओर ध्यान का संचालन―बच्चे अजीब या आकर्षक
चीजों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए भाषा का उपयोग करते हैं।
(iii) खेलना―छोटे बच्चे शब्दों को खिलौने की तरह उपयोग करते हैं। शब्दों से खेलना
बच्चों को रचना शक्ति और ऊर्जा को बाहर लाने में अनोखी भूमिका निभा सकती हैं। बच्चे
अलग-अलग स्वरों में दुहराकर नये रूपों, मौलिक संदर्भो में प्रयोग कर शब्दों से खेलते हैं।
(iv) समझाना―बच्चे किसी घटना को टूटी-फूटी भाषा में समझाने का प्रयास करते
हैं। भाषा के इसी प्रयोग से कहानियाँ जन्म लेती हैं।
(v) जीवन को बयान करना—बच्चे भाषा के सहारे बड़ों की तरह बीते हुए समय
को याद करते हैं। कोई घटना हुई हो, व्यक्ति हो या कोई छोटी मोटी चीज हो, वे उसे शब्दों
में जोड़-जोड़ कर उसका वर्णन करते हैं।
प्रश्न 2. संवाद को प्रभावी बनाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर―संवाद–हिन्दी भाषा व अन्य सभी भाषाओं में साहित्य की अनेक विधाओं, जैसे–
गुद्य, पद्य, उपन्यास, कहानी, नाटक, संस्मरण, निबन्ध आदि लिखे जाते हैं। नाटक, कहानी
में प्रायः संवादों का विशेष महत्व है। नाटक और एकांकी में संवाद ही इनकी मूलभूत
विशेषता मानी जाती है।
दो या दो से अधिक पात्रों के मध्य होने वाले वार्तालाप को संवाद कहते हैं।
संवाद करते समय या संवाद को प्रभावी बनाने के लिए दोनों ही व्यक्तियों को निम्नलिखित
बातों को ध्यान में रखना चाहिए―
(i) संवाद में प्रायः छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए।
(ii) संवाद में वार्तालाप संक्षिप्त होना चाहिए।
(iii) संवाद करते समय भाषा सरल व व्यावहारिक होनी चाहिए।
(iv) संवाद में प्रथम वक्ता की बात सुनने के बाद अपनी बात कहनी चाहिए, न कि
उसकी बात को काटकर अपनी बात प्रारंभ कर दे।
(v) संवाद भाषण नहीं है।
(vi) एकांकी नाटकों में संवाद रक्षित श्रेष्ठ हैं।
(vii) संवाद की विषय-वस्तु कैसी भी हो भाषा सरल, शिष्ट व शब्दावली युक्त होती है।
(viii) विविध भाषा के शब्द प्रयोग भी संवाद को रोचक बनाते हैं।
(ix) यह आवश्यक नहीं कि उत्तर संवादपूर्ण वाक्य में हो।
प्रश्न 3. वाक्य संरचना पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
अधवा, किन्हीं दो भाषाओं से दो-दो उदाहरण देकर उनकी वाक्य-संरचनाओं को
समझाइए।
उत्तर―वाक्य संरचना―हर भाषा में कुछ सीमित ध्वनियों से विविध शब्द तथा उनसे
असीमित वाक्य बनाए जाते हैं। इसे भाषा को उत्पादकता कहते हैं। अर्थ सम्प्रेषण की आधारभूत
इकाई शब्द है। अन्य शब्दों के संयोजन से जब शब्द पूर्ण एवं स्वतंत्र कथन के सम्प्रेषण का
साधन बन जाता है, तो शब्द पद बन जाता है। शब्द में रूपान्तरण नहीं होता पर पदों में परस्पर
प्रभाव से आवश्यकतानुसार रूपान्तरण होता है। अपनी ऐसी पदीय भूमिका में शब्द वाक्य का
गठन करते हैं। सरल वाक्य ही वाक्य संरचना का आधार है। हर भाषा की वाक्य संरचना
अपने कुछ नियमों के आधार पर सुव्यवस्थित होती है, उदाहरण―
हिन्दी राम खाना खाता है
S O V
लड़कों ने रोटी खाई
आप खाना खाते हैं
मैं किताब पढ़ रही हूँ
English Ram eats foods
S V O
Boys eat bread.
You eat food
I am reading book
इन उदाहरणों में अंग्रेजी की वाक्य संरचना कर्ता + क्रिया + क्रम है, जबकि हिन्दी भाषा
में कर्ता + कर्म + क्रिया है। भारत की सभी भाषाओं में क्रिया वाक्य के अंत में ही आती
है। अंग्रेजी में क्रिया वाक्य के बीच में आती है जैसे कि ‘am reading’ वाक्य के बीच में
तथा हिन्दी में पढ़ रही हैं’ वाक्य के अंत में है।
प्रश्न 4. बहुभाषिकता समस्या न होकर संपदा है, कैसे?
उत्तर―प्रसिद्ध भाषाविद् सुब्बाराव की राय इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। वे अपने एक
लेख में कहते हैं, भले ही भाषाएं एक-दूसरे से बाह्य रूप से भिन्न हो, भारत की भाषाओं
में अंतर्निहित रूप से काफी समानताएँ हैं। पश्चिमी देश मुख्यतः एकभाषी देश है। कई पश्चिमी
भाषा वैज्ञानिकों की राय यह है कि इतनी सारी भाषाओं का एक ही क्षेत्र में प्रयोग किए जाने
से लोगों को एक-दूसरे को समझने में कठिनाई होती है। लेकिन वास्तविकता यह है कि ऐसी
कोई कठिनाई नहीं होती। भारत में हर पढ़ा लिखा व्यक्ति कम से कम अपनी मातृभाषा के
अलावा एक या दो भाषाएँ तो जानता ही है। वह इन भाषाओं के जरिए अपने रोजमर्रा के
कामकाज आसानी से करता है। चाहे मजदूर हो या व्यापारी, बाबू हो या अफसर, भाषा की
वजह से किसी का काम नहीं रुकता। दरअसल ‘बहुभाषिकता भारतीय अस्मिता का अभिन्न
अंग है। यहाँ तक कि दूर-दराज स्थित गाँव में तथा कथित एकभाषा बोलने वाला एक ऐसी
शाब्दिक भंडार को नियंत्रित करता है। जो उसमें कई तरह की संवादात्मक परिस्थितियों का
सामना करने की योग्यता प्रदान करता है। वस्तुत: भारतीय भाषिक स्वरों की बहुलता एक-दूसरे
से परस्पर संवाद करती हैं, जो कि कई तरह के साझे भाषिक व सामाजिक भापिक खासियतों
पर खरी होती है, दूसरी तरफ हाल के कई अध्ययनों ने दिखलाया है कि द्विभाषिकता का
संज्ञानात्मक विकास व विद्वत्त उपलब्धि से गहरा सकारात्मक संबंध है।’ (भारतीय भाषाओं
का शिक्षण, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् 2009:22)
इस प्रकार से स्पष्ट है कि हमारी भाषाई विविधता (बहुभाषिकता) न तो कोई समस्या
है और न ही पिछड़ेपन को निशानी है। यह हमारी समृद्धि का प्रतीक है।
प्रश्न 5. बिहार में बोली जाने वाली भाषा को संक्षेप में बताएँ।
उत्तर―यद्यपि बिहार का संबंध राजनीतिक, धार्मिक तथा सामाजिक दृष्टि से उत्तर प्रदेश
से रहा है, लेकिन उत्पत्ति को दृष्टि से यहाँ की उपभाषाएँ यंगाली की संगोत्रीय हैं। बिहारी
का क्षेत्र पूर्वी हिन्दी तथा बंगला के बीच में है। विहार की उपभाषाओं में मैथिली, मगही तथा
भोजपुरी की गणना की जाती है। बिहारी भाषा नाम ग्रियर्सन ने दिया हैं। उत्पत्ति की दष्टि
से बिहारी का संबंध मागधी अपभ्रंश से है। बिहारी की उप-भाषाएँ तीन लिपियों में लिखी
जाती हैं। छपाई में देवनागरी अक्षर का प्रयोग होता है तथा लिखने में साधारणतया कथी लिपि
का प्रयोग होता है। मैथिली लिपि बंगला लिपि से बहुत अधिक मिलती है।
प्रश्न 6. भाषा सीखने-सिखाने के संदर्भ में जीन पियाजे तथा वाइगोत्स्की के विचारों
में दो अन्तर समझाइए।
उत्तर―भाषा सीखने-सिखाने के संदर्भ में जीन पियाजे तथा वाइगोत्स्की के विचारों में
दो अन्तर निम्नलिखित हैं:
(i) जीन पियाजे के सीखने-सिखाने के प्रक्रिया में मानना है कि बच्चा जन्म के साथ
ही अंग एवं अवयव संचालन आदि दैहिक क्रियाओं से लैस होकर आता है, वहीं
आगे चलकर बच्चे को सीखने के प्रक्रिया में शक्ति प्रदान करते हैं। जबकि वाइगोत्स्की
का मानना है कि बच्चे अपने-अपने समुदाय या वर्ग के सम्पर्क में आकर भाषा
का ज्ञान प्राप्त करते हैं।
(ii) जीन पियाजे का मानना है कि कोई वच्चा जब कुछ नया विषय वस्तु को सीखता
है, तो वह उसका मानसिक विकास के आधार पर आधारित रहता है, जबकि
वाइगोत्स्की का मानना है कि बच्चे में सीखने के प्रक्रिया में वृद्धि वयस्कों के द्वारा
मिले हुए ज्ञान पर आधारित रहता है।
प्रश्न 7. जीन पियाजे तथा पूर्व स्कूल शिक्षा के बारे में संक्षेप बताएँ।
उत्तर―पियाजे ने पूर्व-स्कूल शिक्षा के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला है, अतः उनके
सिद्धान्त पूर्व-स्कूल शिक्षाविदों का उचित मार्ग दर्शन करने में सहायक सिद्ध होते हैं। वे इस
अवस्था के अनुरूप पाठ्यक्रम का निर्माण करते हैं साथ ही वे इस प्रकार के क्रियाकलापों
के बारे में सोचते हैं, जिनसे बालक को वद्धि का विकास होता है। तदपुरान्त वे इन क्रियाकलापों
के आयोजन का प्रबन्ध करते हैं। पियाजे ने इस बात पर विशेष बल दिया है कि पूर्व-स्कूल
शिक्षा छात्रों के बौद्धिक विकास के लिए आवश्यक है ताकि क्रियाशील वातावरण हो और
बच्चे क्रियाशील रहें। बच्चे के संज्ञात्मक विकास के लिए मूर्त वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए,
शब्दों, परिभाषाओं और नियमों का नहीं।
प्रश्न 8. बच्चों में भाषा का विकास कैसे होता है?
उत्तर―भाषा विकास (Language Development)―व्यक्ति की मानसिक वृद्धि
और विकास में भाषा का विकास भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। भाषा विकास के प्रारंभिक
चरण में बच्चे बोलना सीखने का प्रयत्न करते हैं। शुरू-शुरू में रोने, किलकारी भरने, चिल्लाने
आदि से संबंधित ध्वनियों द्वारा उनकी यह इच्छा व्यक्त होती है। प्रथम वर्ष में वह केवल
कुछ शब्दों का उच्चारण ही सीख पाता है, परन्तु उसके पश्चात् बोलने सम्बन्धी शब्दकोश
में बहुत तेजी से वृद्धि होती है। अनुकरण की प्रक्रिया इस कार्य में सहायता करती है। बच्चा
अपने परिवेश में अपने से बड़ों तथा साथियों का अनुकरण कर शीघ्रता से बोलना सीखता
है। बोलने और सीखने की इस प्रक्रिया में बच्चे में तुतलापन, हकलाहट और रुक रुक कर
बोलने जैसे दोष भी उत्पन्न हो सकते हैं। अतः माता-पिता और अध्यापकों को इस समय के
बोलने के प्रयत्नों पर पूरा-पूरा ध्यान देना चाहिए।
जहाँ तक भाषा सम्बन्धी शब्दकोष का प्रश्न है, इसकी उपस्थिति बचपन में बहुत सीमित
मात्रा में होती है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, वैसे-वैसे परिपक्व और औपचारिक तथा अनौपचारिक
शिक्षा के माध्यम से इसके कलेवर में निरन्तर वृद्धि होती रहती है।
प्रश्न 9. बच्चों के भाषा अर्जन में समाज की क्या भूमिका है?
उत्तर–बच्चों के भाषा अर्जन में समाज की भूमिका निम्न है―
(i) भाषा समाज में रहकर अर्जित की जाती है यानी भाषा का विकास समाज में होता है।
(ii) भाषा अर्जित करना सहज और स्वाभाविक प्रक्रिया है।
(ii) किसी भाषा विशेष को अर्जित करने के लिए उस भाषा के विभिन्न संदर्भगत प्रयोगों
को सुनना बेहद जरूरी है।
(iv) संदर्भगत भाषा-प्रयोगों के कारण बच्चा उस भाषा का व्याकरण भी अनायास अर्जित
करते जाते हैं।
(v) समाज में रहते-रहते हम भाषा की सपाट अभिव्यक्ति और उसके लाक्षणिक और
व्यंजक प्रयोगों को भी बखूबी समझते हैं।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (2005) के अनुसार, जब हम घर की भाषा और मातृभाषा
की बात करते हैं तो इसके अंतर्गत घर की भाषा, बड़े कुनबे की भाषा, आस-पड़ोस की
भाषा आदि आ जाती है, जो बच्चा स्वाभाविक रूप से अपने घर और समाज के वातावरण
से ग्रहण कर लेता है।
इस प्रकार बच्चों के भाषा अंकन में समाज को विशेष भूमिका होती है।
प्रश्न 10. आपने भाषा सीखने में चारों विचारकों के विचारों पर अध्ययन किया
होगा। आप अपने आप को किस विचारक के करीब पाते हैं और क्यों?
उत्तर―भाषा सीखने के चारों विचारकों के विचारों का अध्ययन करने के उपरांत मैने
अपने आप को नोम चॉम्स्को, वाइगोत्स्को और पियाजे के करीब पाता हूँ।
इनके विचारों के अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि “बच्चे भाषा सीखने
की जन्मजात क्षमता को सहायता से समाज से अंत:क्रिया करते हुए भाषा सीखते हैं। जैसे-जैसे
समाज के सदस्यों और परिस्थितियों के साथ बच्चे का संपर्क बढ़ता है, वैसे-वैसे बच्चे की
भाषा समृद्ध होती जाती है।
चॉम्सकी बच्चों के भाषा सीखने की जन्मजात क्षमता में विश्वास रखते हैं और यह
स्वीकार करते हैं कि बच्चे इसी क्षमता के सहारे अपने परिवेश में भाषा को ग्रहण करते हैं
और विभिन्न भाषिक संरचनाओं को आत्मसात करते हुए नए-नए वाक्य बनाते हैं।
वाइगोत्स्की के अनुसार, बच्चे को भाषा समाज के साथ सम्पर्क का ही परिणाम है,
साथ ही बच्चा अपनी भाषा के विकास के दौरान दो तरह को बोली बोलता है―पहली
आत्मकेन्द्रित और दूसरो सामाजिक।.आत्मोन्मुख भाषा के माध्यम से वह खुद से संवाद करता
है, जबकि सामाजिक भाषा के माध्यम से वह शेष सारी दुनिया से संवाद स्थापित करता है।
पियाजे के अनुसार, जिस प्रकार बच्चा/बच्ची वातावरण के संपर्क में आता है और उसका
विकास क्रमशः होता है, उसी प्रकार भाषा का भी विकास होता जाता है। जैसे-जैसे बच्चा
वातावरण के साथ अंतःक्रिया करता है, वैसे-वैसे उसकी मानसिक संरचनाओं में गुणात्मक
बदलाव आता है। पियाजे के अनुसार सीखने के संदर्भ में आत्मसातीकरण और समायोजन
की प्रक्रिया महत्वपूर्ण होती है।
प्रश्न 11. भाषा के जरिए सम्प्रेषण ही नहीं किया जाता बल्कि समझ भी बनाई
जाती है। इस कथन को उदाहरण देकर समझाएँ।
उत्तर― भाषा सम्प्रेषण का माध्यम होने से पहले समझ का माध्यम है। अब सवाल यह
उठता है कि समझ बनने का अर्थ क्या है तथा इसमें भाषा क्या भूमिका निभाती है?
मान लीजिए आप किसी फूल को देख रहे हैं। यह आपका फूल के साथ ठोस अनुभव
है। आप उसके बारे में भी समझ बनाना चाहते हैं। अब सवाल यह है कि उस फूल के बारे
में समझ बनाने का क्या अर्थ है ? फूल के बारे में समझ बनाने के घटक वाचिक प्रतीक
उसके रंग, खुशबू, आकार, पंखुड़ियों का प्रकार, सुंदरता आदि हो सकते हैं। जब इन प्रतीकों
को रचा जाएगा और रचे जा चुके प्रतीकों का उपयोग किया जाएगा तभी कहा जा सकता
है कि आपकी उस फूल के बारे में समझ बन रही है। उस फूल के रंग, आकार आदि के
बारे में आपकी समझ जितनी स्पष्ट होगी उसके बारे में आपके द्वारा किया जाने वाला सम्प्रेषण
भी उतना ही सटीक हो सकता है।
प्रश्न 12. मौखिक अभिव्यक्ति कौशल के उद्देश्य बताइए।
उत्तर―मौखिक अभिव्यक्ति कौशल के उद्देश्य—मौखिक अभिव्यक्ति कौशल के
निम्नलिखित उद्देश्य हैं:
(i) शिक्षार्थी शुद्ध, स्पष्ट, स्वाभाविक एवं प्रवाहयुक्त वाणी में वार्तालाप एवं भाषण की
क्षमता अर्जित कर सकेंगे।
(ii) भावानुकूलन, आरोह-अवरोह, बल और अनुतान का ध्यान रखते हुए मौखिक
अभिव्यक्ति कर सकेंगे।
(iii) मानक भाषा में सहज भाव से अपनी बात प्रस्तुत कर सकेंगे।
(iv) उचित एवं अवसरानुकूल भाषा शैली का प्रयोग कर सकेंगे तथा आत्मविश्वास एवं
अपेक्षित हाव-भाव सहित बोलने में निपुण हो सकेंगे।
(v) अपने मनोभावों यथा हर्ष, विषाद, क्रोध, विस्मय आदि को स्वाभाविक एवं भावमय
ढंग से अभिव्यक्त करने में सक्षम हो सकेंगे।
(vi) सामाजिक, साहित्यिक, वैज्ञानिक, विषयों पर आयोजित वार्तालापों एवं परिचर्चाओं
में भाग ले सकेंगे।
(vii) स्वागत, परिचय, धन्यवाद, कृतज्ञता, संवेदना एवं बधाई आदि के लिए उपयुक्त भाषा
का प्रयोग कर सकेंगे।
(viii) विचार अभिव्यक्ति के अवसर पर अन्य वक्ताओं से असहमत होते हुए भी अपनी
प्रतिक्रियाओं को शिष्ट एवं संयत भाषा में व्यक्त कर सकेंगे।
प्रश्न 13. लिखित व मौखिक अभिव्यक्ति में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर―लिखित तथा मौखिक अभिव्यक्ति में अन्तर― हम अपने विचारों को दूसरों
के समक्ष दो रूपों में रख सकते हैं― मौखिक और लिखित रूप में । बालक छोटे-छोटे वाक्यों
को बोलना सीख जाता है और वह धीरे-धीरे अपने विचारों को दूसरों के सामने मौखिक रूप
में व्यक्त करना सीखता है। बालक को लिखने-पढ़ने से पूर्व मौखिक अभिव्यक्ति का अभ्यास
कराना परम आवश्यक है। मौखिक अभिव्यक्ति का विकास जीवनपर्यन्त चलता रहता है।
मौखिक अभिव्यक्ति का प्रयोग हमारे व्यावहारिक जीवन में लिखित अभिव्यक्ति की अपेक्षा
अधिक होता है। प्रात:काल से जितने भी व्यक्ति हमारे सम्पर्क में आते हैं, उन सबसे
हम मौखिक अभिव्यक्ति के माध्यम से ही विचार-विनिमय करते हैं। लिखित अभिव्यक्ति का
विकास बाद में और धीरे-धीरे होता है लिखित अभिव्यक्ति से पूर्व बालकों की शुद्ध बोलने
(उच्चारण) और शद्ध लिखने का अभ्यास कराना परमावश्यक है। स्पष्ट है कि मौखिक
अभिव्यक्ति के द्वारा ही बालक का उच्चारण शुद्ध होता है। रचना कार्य मौखिक अभिव्यक्ति
से ही प्रारम्भ होता है।
प्रश्न 14. भाषा व लिपि का सम्बन्ध अलंघनीय है, विवेचना करें।
उत्तर―भाषा के लिखित रूप में लिपि का प्रयोग होता है। भाषा की ध्वनियों का चिह्न
लिपि है। भाषा को स्थायी रूप देने के लिए ही लिपि का आविष्कार हुआ है। यदि लिपि
न ही ती भाषा अस्थायी है। उसकी ध्वनियाँ क्षणिक है। भाषा का अर्थग्रहण करने वाला श्रोता
का वक्ता के सामने उपस्थित होना अनिवार्य है। यदि श्रोता न हो तो वक्ता की भाषा अरण्य
रोदन मात्र है। इसी आधार पर हम यह भी कह सकते हैं भापा को जीवन्त रखने के लिए
लिपि का होना अनिवार्य है। पुस्तकें ज्ञान का भण्डार है और यह भण्डार तब ही रह सकता
है जब लिपि हो। यदि लिपि न हो तो भाषा का अस्तित्व तो बना रहता है, परन्तु वह क्षणिक
होता है। लिपि भाषा की जीवन-रस दायिनी है। पशु-पक्षियों के पास अभिव्यक्ति के साधन
तो हैं, परन्तु उनके पास लिपि नहीं हैं। यही कारण है कि वे विकसित नहीं हो सके। अतः
भाषा व लिपि का सम्बन्ध अलंघनीय है।
प्रश्न 15. प्रथम भाषा और मातृभाषा में क्या अन्तर है?
उत्तर–प्रथम भाषा और मातृभाषा में अन्तर-प्रतिदिन के जीवन में ‘अनौपचारिक’
रूप से प्रयोग में लाई जाने वाली भाषा या बोली, जिसे व्यक्ति अपने परिवार के लोगों से
सहज रूप में ग्रहण किया है― वह ‘मातृभाषा’ है।
परन्तु प्रतिदिन के जीवन में. ‘औपचारिक रूप से प्रयोग में लाई जाने वाली भाषा या
बोली, जिसे व्यक्ति ने शिक्षित समुदाय से विशेष प्रयास करके ग्रहण किया है― वह ‘प्रथम
भाषा’ है। वस्तुतः मातृभाषा और प्रथम भाषा के समन्वित रूप का प्रयोग शिक्षण के माध्यम
के रूप में स्वयं किया जाता है।
प्रश्न 16. बोली क्या है?
उत्तर―भाषाविदों के वार्तालाप में बोली गई भाषा वस्तुतः भाषा है। बोली भाषा सम्प्रेषण
का एक आधार है, सम्प्रेषण से तात्पर्य है, एक-दूसरे को जानकारी देना। बोली भाषा का एक
सरल रूप है जो किसी क्षेत्र विशेष में प्रयोग किया जाता है। इसमें परम्परा व प्रभाववश अनेक
स्वरूप भी मिल जाते हैं। एक ही स्थान पर रहने वाले कभी-कभी एक ही बोली को विभिन्न
रूप से बोलते हैं। बोली भाषा का सोमित रूप है। डॉ. श्याम सुन्दर ने लिखा है, “वोली
से हमारा तात्पर्य उस घरेलू एवं बोल-चाल की भाषा से है जो साहित्यिक नहीं होती और
बोलने वालों के मुख पर ही रहती है।” इस प्रकार बोली किसी स्थान, क्षेत्र विशेष के लोगों
द्वारा बोलचाल की भाषा है।
प्रश्न 17. ‘स्कीमा’ क्या है ? जीन पियाजे के सिद्धांत के आलोक में सीखने में
आत्मसात करने और समायोजन की भूमिका की पड़ताल करें।
उत्तर―जीन पियाजे एक जीव वैज्ञानिक की तरह भाषा सीखने को व्याख्यायित करते
हैं। उनका मानना है कि मानसिक विकास में जन्मजात कारकों की भूमिका नहीं होती, विकास
का कारण है-जीव और वातावरण के बीच अन्त:क्रिया। इसका एक निहितार्थ यह है कि
जिस प्रकार बच्चा/बच्ची वातावरण के संपर्क में आता है और उसका विकास क्रमशः होता
है उसी प्रकार ठसकी भाषा का भी विकास होता जाता है। जैसे-जैसे बच्चा वातावरण के
संपर्क में आता है अथवा वातावरण से अंत:क्रिया करता है। वैसे-वैसे उसकी मानसिक संरचनाओं
में गुणात्मक बदलाव आता है। पियाजे के अनुसार सीखने के संदर्भ में आत्मसातीकरण और
समायोजन को प्रक्रिया महत्वपूर्ण होती है। एक उदाहरण के माध्यम से इसे समझने का प्रयास
करते हैं। एक बच्चा अपनी माँ के साथ बाजार जाता है। वहाँ वह एक गाय देखता है और
उसकी माँ उस गाय की ओर संकेत कर कहती है देखो गाय आ गई। बच्चा गाय की ‘छवि’
को उसके नाम के साथ ध्वनि/आवाज संयोजित कर लेता है। यानी वच्चे की बौद्धिक संरचना
में ‘गाय’ की छवि और ध्वनि अपना स्थान ले लेती है। पियाजे के अनुसार यह छवि ‘स्कीमा’
कहलाती है। बच्चा अपनी बौद्धिक संरचना के आधार पर उसे आत्मसात करता है। अब बच्चा
कुत्ता, बेल, बिल्ली आदि देखता है और उसे ‘गाय’ कहकर संबोधित करता है। यह सामान्यीकरण
की प्रवृत्ति है। बच्चे ने गाय और शेष जानवरों में संभवत: पैरों के आधार पर सामान्यीकरण
किया। लेकिन अब अलग-अलग समय पर बच्चे के समक्ष उन जानवरों को अलग-अलग
नाम से पुकारा जाता है तो बच्चा पूर्व में बनाई गई छवि में परिवर्तन करता है। इस परिवर्तन
के आधार पर वह गाय, कुत्ता, बैल, बिल्ली आदि जानवरों में भेद करना सीखता है और
उनके साथ क्रमशः उनके नामों (ध्वनियों/शब्दों) को जोड़ता है। इतना ही नहीं वह धीरे-धीरे
समय के बढ़ते क्रम में अलग-अलग तरह की गायों (सफेद, काली, भूरी, चितकबरी आदि)
में भी अंतर करने लगता है और उसी के अनुरूप शब्दों का प्रयोग करता है। यह समायोजन
को स्थिति है।
प्रश्न 18. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें:
(क) भाषिक अर्जन क्षमता क्या है?
(ख) ‘लघु व्याकरण’ को समझाएँ।
उत्तर:
(क) ‘भाषिक अर्जन क्षमता’ वह क्षमता है जिससे बच्चा सीमित वाक्य को सुनकर
असीमित वाक्यों को बोलता है।
या यूँ कहें कि भाषा सीखने की क्षमता जन्मजात होती है, इसी क्षमता के सहारे बच्चा
रोज नए-नए भाषिक प्रयोग करता है। इस तरीके से भाषा सीखने की प्रक्रिया को नीचे दिए
गए चित्र के द्वारा स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है―
आगम → भाषा अर्जन क्षमता → निर्गम
(Input) (L.A.D.) (Output)
(ख) बच्चा अपने परिवेश में जो भाषा और जिस तरह की भाषा सुनता है उसे अपनी
भाषिक क्षमता के सहारे विश्लेपित करता है। समाज से प्राप्त भाषिक आँकड़ों के आधार पर
अपने कुछ नियम बनाता है। जिसे चॉम्स्की ‘लघु व्याकरण’ कहते हैं। इस ‘लघु व्याकरण’
में बच्चे के अपने नियम होते हैं जिसे वह सामान्यीकरण की प्रक्रिया के द्वारा बनाता है। इन्हीं
नियमों के आधार पर वह भाषा का प्रयोग करता है। उदाहरण के लिए बच्चा निम्नलिखित
वाक्य सुनता है―
• रोहित केला खाता है।
• नदीम केला खाता है।
• शोभा केला खाती है।
• नीलम केला खाती है।
इन वाक्यों के आधार पर वह सामान्यीकरण करते हुए नियम बनाता है कि लड़कों
(पुल्लिंग) के लिए ‘आ’ से समाप्त होने वाला शब्द ( क्रिया) आएगा जबकि लड़कियों
(स्त्रीलिंग) के लिए ‘ई’ समाप्त होने वाले शब्दों (क्रिया) का इस्तेमाल किया जाता है।
इस तरह वह अपनी भाषा में लिंग-भेद करना प्रारंभ कर देता है।
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