GJN 9th Hindi

GSEB Std 9 Hindi Vyakaran पद-भेद (Parts of Speech) (1st Language)

GSEB Std 9 Hindi Vyakaran पद-भेद (Parts of Speech) (1st Language)

GSEB Class 9 Hindi Vyakaran पद-भेद (1st Language)

व्याकरणिक दृष्टि से हिन्दी पदों को पाँच प्रकारों में बाँटते हैं :

  1. संज्ञा,
  2. सर्वनाम,
  3. विशेषण,
  4. क्रिया और
  5. अव्यय

इनका परिचय पिछली कक्षाओं में कराया जा चुका है। संक्षेप में यहाँ उसका पुनरावर्तन करेंगे।

1. संज्ञा संज्ञा की परिभाषा :

किसी वस्तु, स्थान, जाति, समूह या भाव के नाम का बोध करानेवाले शब्दों को संज्ञा कहते हैं। जैसे : अहमदाबाद, शहर, वीरता, दूध, कक्षा आदि।

संज्ञा के भेद :

  1. व्यक्तिवाचक संज्ञा : जिन शब्दों से किसी एक ही स्थान, व्यक्ति या प्राणी का बोध हो उन्हें व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – बैजू, आगरा, हिमालय, गंगा, रामायण आदि।
  2. जातिवाचक संज्ञा : जिन शब्दों से किसी एक ही जाति के संपूर्ण प्राणियों, वस्तुओं और स्थानों आदि का बोध हो उन्हें जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे – समुद्र, वन, नगर, आदमी, गाय, लड़का, लड़की, नदी।।
  3. भाववाचक संज्ञा : जिन शब्दों से प्राणियों या वस्तुओं के भाव गुण-दोष, अवस्था, धर्म, दशा आदि का बोध होता हो तो उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे : मिठास, लालिमा, शिष्टता, क्रोध, सत्य, बुढ़ापा।
  4. समुदायवाचक (समूहवाचक) संज्ञा : जिन शब्दों से अनेक व्यक्तियों के या वस्तुओं के समूह का बोध हो उन्हें समुदायवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे : सेना, कक्षा, परिवार, गुच्छा, बाली।
  5. द्रव्यवाचक संज्ञा : जिन शब्दों से किसी धातु, द्रव्य आदि पदार्थ का बोध हो उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे : पानी, लोहा, सोना, तेल आदि।

संज्ञा शब्दों को वाक्य में प्रयोग करते समय उन्हें वाक्य के लिए ‘योग्य’ बनाते समय लिंग, वचन तथा कारक के अनुरूप उनमें परिवर्तन करना पड़ता है।

(i) संज्ञा लिंग

लिंग की परिभाषा : शब्द की जाति को लिंग कहते हैं। संज्ञा के जिस रूप से व्यक्ति या वस्तु की नर या मादा जाति का बोध हो, उसे व्याकरण में ‘लिंग’ कहते हैं। व्याकरणिक लिंग प्राकृतिक लिंगों से मेल खाये यह अनिवार्य नहीं है।

हिन्दी में लिंग के दो प्रकार होते हैं :

  1. पुल्लिंग : पुरुष जाति का बोध करानेवाले शब्द पुल्लिंग कहलाते हैं। जैसे – राजा, लड़का, शेर, बैल, भाई आदि।
  2. स्त्रीलिंग : स्त्री जाति का बोध करानेवाले शब्द स्त्रीलिंग कहलाते हैं।

कुछ बहुप्रचलित पुल्लिंग एवं स्त्रीलिंग शब्द :

नित्य पुल्लिंग शब्द : अखबार, अभिमान, आकाश, खिलौना, जल, चावल, दूध, दाँत, पहाड़, पेड़, जंगल, सागर पादि।

नित्य स्त्रीलिंग शब्द : आत्मा, इज्जत, खबर, घास, थकान, पुस्तक, परीक्षा, शाम, कुर्सी, सुई, लता, कलम, डाला आदि।

(ii) वचन
वचन की परिभाषा : शब्द के जिस रूप से उसके एक या अनेक होने का बोध हो, उसे वचन कहते हैं। वचन दो प्रकार के होते हैं :

  1. एकवचन : शब्द के जिस रूप से एक प्राणी या वस्तु का बोध हो उसे एकवचन कहते हैं। जैसे – लड़का, नंदी, किताब, गाँव आदि।
  2. बहुवचन : शब्द के जिस रूप से अनेक प्राणियों या वस्तुओं का बोध हो उसे बहुवचन कहते हैं। जैसे – लड़के, नदियाँ, किताबें, गावें आदि।

वचन का वाक्य रचना पर प्रभाव :
लिंग की तरह ही वचन का भी विशेषण, संबंधकारक, क्रिया विशेषण और क्रिया शब्दों : पर प्रभाव पड़ता है और वचन परिवर्तन होने पर इनके रूप में भी परिवर्तन हो जाता है। जैसे :

  • बैजू नया खिलौना लाया।
  • बैजू नए खिलौने लाया।

संबंध-कारक में परिवर्तन :

  • एकवचन : जग्गू का दोस्त अच्छा है।
  • बहुवचन : जग्गू के दोस्त अच्छे है।

क्रिया विशेषण में परिवर्तन :

  • एकवचन : वह पढ़ता-पढ़ता सो गया।
  • बहुवचन : वे पढ़ते-पढ़ते सो गए।

क्रिया में परिवर्तन :

  • एकवचन : नेता ने भाषण दिया।
  • बहुवचन : नेताओं ने भाषण दिये।

एकवचन शब्दों के बहुवचन रूप :



(iii) कारक
कारक की परिभाषा : संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों को उनका सम्बन्ध सूचित हो उस रूप को कारक कहते हैं। अर्थात् संज्ञा या सर्वनाम के आगे जब ने, को, से, में आदि विभक्तियाँ लगती हैं उन्हें कारक कहते हैं।

कारक के भेद : हिन्दी में कारक आठ हैं। विभक्ति से बने शब्द रूप को ‘पद’ कहा जाता है। हिन्दी कारक-विभक्तियों के चिह्न निम्न हैं :

कर्ताकारक : वाक्य में जो शब्द काम करनेवाले के अर्थ में आता है उसे कर्ता कहते हैं।
कर्मकारक : वाक्य में क्रिया का फल जिस शब्द पर पड़ता है, उसे कर्म कहते हैं।

करणकारक : वाक्य में जिस शब्द के द्वारा क्रिया के सम्बन्ध का बोध होता है, उसे करण कहते हैं।

सम्प्रदानकारक : जिसके लिए कुछ किया जाता है या जिसको कुछ दिया जाता है, इसका बोध करानेवाले शब्द को सम्प्रदानकारक कहते हैं।

अपादानकारक : संज्ञा के जिस रूप में किसी वस्तु के अलगाव का बोध होता है उसे अपादाकारक कहते हैं।

सम्बन्धकारक : सर्वनाम या संज्ञा के जिस रूप से अन्य किसी शब्द के साथ सम्बन्ध प्रकट होता है, उसे सम्बन्धकारक कहते

अधिकरणकारक : जिस शब्द से कार्य करने की सूचना हो अर्थात् जो शब्द क्रिया का आधार सूचित करता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं।

सम्बोधनकारक : जिस संकेत के द्वारा संबोधन करना, पुकारना, दुःख, हर्ष या आश्चर्य का मान प्रकट किया जाता है, उसे सम्बोधनकारक कहते हैं।

कारकों के उदाहरण :

(1) राम ने पुस्तक पढ़ी।। (कर्ताकारक)
(2) बच्चे पढ़ते हैं। (कर्ताकारक)
(3) स्वेता ने पुस्तक पढ़ी। (कर्ताकारक)
(4) मोहन गाँव जाता है। (कर्ताकारक)
(5) तुमने नहीं पहचाना। (कर्ताकारक)
(6) मोहन ने राम को कलम दी। (कर्मकारक)
(7) मोहन कलम से लिखता है। (करणकारक)
(8) हम आँखों से देखते हैं। (करणकारक)
(9) मोहन कलम से पत्र लिखता है। (करणकारक)
(10) पिताजी राम के लिए किताब लाए। (सम्प्रदानकारक)
(11) ब्राह्मण को दान दिया। (सम्प्रदानकारक)
(12) बालक छत से गिर पड़ा। (अपादानकारक)
(13) मैं घर से जा रहा हूँ। (अपादानकारक)
(14) राम का भाई (संबंधकारक)
(15) राम के पिता (संबंधकारक)
(16) राम की बहन (संबंधकारक)
(17) अपना घर (संबंधकारक)
(18) अपने लोग (संबंधकारक)
(19) अपनी माँ (संबंधकारक)
(20) मेरा घर (संबंधकारक)
(21) मेरे लोग (संबंधकारक)
(22) मेरी पुस्तक (संबंधकारक)
(23) राम घर में हैं। (अधिकरणकारक)
(24) राम पेड़ पर चढ़ा। (अधिकरणकारक)
(25) हे राम (संबोधनकारक)
(26) ओ भगवान (संबोधनकारक)
(27) अरे ! मत करो (संबोधनकारक)

शब्दों की रूप (पद) रचना

भाववाचक संज्ञा बनाना

आप जानते ही हैं कि जिस शब्द से किसी वस्तु या व्यक्ति के गुण, दशा, अवस्था, स्वभाव, भाव, व्यापार (कार्य) अथवा धर्म का बोध होता हो, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं; जैसे – दया, ममता, बचपना, दरिद्रता, क्रोध, चढ़ाई, घबराहट, मिठास आदि। लक्षण : भाववाचक संज्ञा की पहचान के लिए कुछ चिह्न हैं जो शब्द के अंत में प्रत्यय के रूप में जुड़े होते हैं। ये प्रत्यय हैं – ई, त्व, ता, पन, पा, हट, वट, स, क तथा व। इन प्रत्ययों के जुड़ने से बने एक-एक उदाहरण इस प्रकार हैं –

  • भला – भलाई,
  • शिव – शिवत्व
  • सज्जन – सज्जनता
  • बच्चा – बचपन
  • बूढ़ा – बुढ़ापा
  • चिकना – चिकनाहट
  • सजाना – सजावट
  • मीठा – मिठास
  • वैद्य – वैद्यक
  • लघु – लाघव

भाववाचक संज्ञाएँ संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया से बनती हैं। कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं –

संज्ञा शब्दों से भाववाचक संज्ञा –
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सर्वनाम से भाववाचक संज्ञा
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विशेषण से भाववाचक संज्ञा
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क्रिया से भाववाचक संज्ञा
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अव्यय से भाववाचक संज्ञा –

  • निकट – निकटता, नैकट्य
  • दूर – दूरत्व, दूरी

(क) भाववाचक संज्ञा बनाइए :

स्वयं कीजिए –
अभ्यास

निम्नलिखित शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए :
स्वामी, कुमार, नृप, कारीगर, इनसान, शत्रु, वकील, युवा, क्षत्रिय, रंग, लड़का, भाई, अमर, आलसी, देव, नीच, लम्बा, बहुत, विधवा, खट्टा, महान, बाँझ, उचित, जंगली, लाल, गंदा, वीर, वक्र, छोटा, ठीठ, सुंदर

कर्तृवाचक संज्ञा

(ख) कर्तृवाचक संज्ञा बनाइए :

1. दो बैलों की कथा
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स्वयं हल कीजिए :

उचित प्रत्यय लगाकर कर्तृवाचक संज्ञा बनाइए :
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सर्वनाम

सर्वनाम की परिभाषा : संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होनेवाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं। जैसे – मैं, तू, वह, आप, यह, वे कोई, कुछ, क्या कौन, जो, आदि।

सर्वनाम के भेद : हिन्दी में सर्वनाम के 6 भेद हैं :

  1. पुरुषवाचक सर्वनाम : बोलनेवाले, सुननेवाले या किसी अन्य व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होनेवाले सर्वनामों को पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं :
    • उत्तम पुरुष : वक्ता या लेखक अपने नाम के बदले जिस शब्द का प्रयोग करे वह उत्तम पुरुष-वाचक सर्वनाम कहलाता है। जैसे : मैं, हम।
    • मध्यम पुरुष : वक्ता या लेखक जिस शब्द को श्रोता या पाठक के लिए प्रयोग करे, उसे मध्यम पुरुष-वाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे – तू, तुम, तेरा, तुम्हारा, आपका आदि।
    • अन्य पुरुष : जो सर्वनाम वक्ता या लेखक द्वारा किसी अन्य व्यक्ति के लिए प्रयुक्त हो, उसे अन्य पुरुष वाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे – वह, वे, उसे, उनका आदि।
  2. निजवाचक सर्वनाम : जिन शब्दों से निजपन (स्वयं) का बोध होता है, उन्हें निजवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे – स्वयं, खुद अपना, अपने आप आदि।
  3. निश्चयवाचक सर्वनाम : जो सर्वनाम पास या दूर की किसी वस्तु की ओर संकेत करते हैं उन्हें निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे – यह, वह, ये, वे आदि।
  4. अनिश्चयवाचक सर्वनाम : जिन सर्वनाम शब्दों से किसी प्राणी अथवा पदार्थ का निश्चित बोध नहीं होता है उन्हें अनिश्चियवाचक सर्वनाम कहते हैं। जैसे – कई, कुछ, किसी, कोई आदि।
  5. संबंधवाचक सर्वनाम : जिन सर्वनाम शब्दों से एक बात का दूसरी बात से संबंध सूचित होता हो, वे संबंधवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे – जो, सो, वह आदि।
  6. प्रश्नवाचक सर्वनाम : जिन सर्वनाम शब्दों से प्रश्न का बोध होता हो, उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहा जाता है। जैसे – क्या, कौन, किसे, किसको इत्यादि।

सर्वनाम शब्दों की रूपरचना :

  1. लिंग के आधार पर सर्वनामों में परिवर्तन नहीं होता। केवल संबंधकारक में लिंग के कारण मेरा-मेरी, तेरा-तेरी, तुम्हारा-तुम्हारी, उसका-उसकी, उनका-उनकी आदि रूप बनते हैं।
  2. वचन तथा कारक के आधार पर सर्वनाम में परिवर्तन होता है। जैसे – मैं, तुम, यह, वह विभक्तिरहित बहुवचनकर्ता के रूप में क्रमशः हम, तुम और वे हो जाते हैं।
  3. मैं, तुम, यह, वह के रूपों में कारक की विभक्तियाँ जोड़कर लिखी जाती हैं; जैसे – मैंने, तुमने, इसने, उसने, इसका, उसका इत्यादि। विभक्ति दुहरी होगी तो पहली जोड़ी जायगी, दूसरी नहीं। जैसे – इसके लिए, तुम्हारे द्वारा, मेरे लिए, उसके लिए आदि।

विशेषण

विशेषण की परिभाषा : संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतानेवाले शब्दों को विशेषण कहते हैं। जैसे – सुन्दर, छोटा, ईमानदार, लाल आदि।

विशेष्य : जिन संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की विशेषता बताई जाती है, उन्हें विशेष्य कहते हैं। जैसे : वृक्ष पर मीठे फल लगे हैं। विशेषण के भेद : विशेषण के मुख्य पाँच भेद हैं :

1. गुणवाचक विशेषण :

जिस शब्द से संज्ञा या सर्वनाम के गुण दोष, रंग, आकार, दशा, स्थान, समय, दिशा आदि का ज्ञान हो उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं :
जैसे :

  • आलसी, अच्छा, कंजूस,
  • सफेद अच्छे लड़के पढ़ने में ध्यान देते हैं।
  • सफेद गाय खेत में चर रही है।

2. परिमाणवाचक विशेषण :

वे शब्द जो संज्ञा या सर्वनाम की मापतौल संबंधी विशेषता प्रकट करें वे परिमाणवाचक विशेषण कहलाते हैं। जैसे : थोड़ा, अधिक, सारा, किलो। मैंने ज्यादा खाना खा लिया।

परिमाणवाचक विशेषण के दो भेद हैं –

  1. निश्चित परिमाणवाचक विशेषण : जिन विशेषणों द्वारा किसी वस्तु के निश्चित परिमाण (माप-तौल) का पता चले वे निश्चित परिमाणवाचक विशेषण होते हैं। जैसे – पाँच लीटर, दो किलो। आज घर में पाँच लीटर दूध आया।
  2. अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण : जिन शब्दों से किसी वस्तु के निश्चित परिमाण का बोध न हो, वे अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण हैं। जैसे – कुछ, थोड़ा, ज्यादा, कम आदि। कुछ पैसे दे दो।

3. संख्यावाचक विशेषण :

जिन शब्दों से संज्ञा या सर्वनाम की संख्या का बोध हो, उन्हें संख्यावाचक विशेषण कहते हैं। जैसे – आधा लाख, पाँच हजार।

आधी रोटी से पेट नहीं भरता।

संख्यावाचक विशेषण के दो भेद हैं –

  1. निश्चित संख्यावाचक : जिन विशेषणों से निश्चित संख्या का बोध होता है, उन्हें निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं। जैसे – मैंने पाँच केले खाए।
  2. अनिश्चित संख्यावाचक : जिन विशेषणों से किसी निश्चित संख्या का बोध न हो उन्हें अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं। जैसे : अनेक लोग भाषण सुनने गए।

4. सार्वनामिक विशेषण :

जो सर्वनाम शब्द विशेषण के रूप में प्रयुक्त हों, उन्हें सर्वनामिक विशेषण कहते हैं।

जैसे : उस लड़के को बुलाओ। किसी काम में लग जाओ। विशेषण की अवस्थाएँ : विशेषण की अधिकता या कमी की दृष्टि से तीन अवस्थाएँ होती हैं :

  1. मूलावस्था : जब विशेष्य किसी की विशेषता को सामान्य रूप से ही बताए, किसी अन्य से तुलना न हो उसे मूलावस्था कहते हैं। जैसे : श्वेता चतुर विद्यार्थिनी है।
  2. उत्तरावस्था : जिसके द्वारा किसी एक की विशेषता की किसी दूसरे की उसी विशेषता से तुलना की जाए, उसे उत्तरावस्था कहते हैं। जैसे : सुहेल जग्गू से अधिक चतुर है।
  3. उत्तमावस्था : जिसके द्वारा व्यक्ति या वस्तु की विशेषता सबसे बढ़-चढ़ कर बताई जाए, उसे उत्तमावस्था कहते हैं। जैसे – श्रेयस सभी विद्यार्थियों में चतुरतम है।

विशेषण की अवस्थाओं के कुछ शब्द रूप इस प्रकार हैं :

मूलावस्था उत्तरावस्था उत्तमावस्था
सुन्दर सुन्दरतर सुन्दरतम
उच्च उच्चतर उच्चतम
प्राचीन प्राचीनतर प्राचीनतम
निम्न निम्नतर निम्नतम
महान महानतर महानतम
योग्य योग्यतर योग्यतम

विशेषण बनाना

हिन्दी में कुछ शब्द मूल रूप से ही विशेषण होते हैं; जैसे – मोटा, पतला, ऊँचा, नीचा, काला, लाल, चालाक, योग्य, अयोग्य, धूर्त, प्रवीण, निपुण आदि। संस्कृत से आये कुछ प्रत्यय युक्त विशेषण शब्द हिन्दी में मूल शब्द की तरह प्रयुक्त होते हैं, जैसे – सहिष्णु, आप्त, गुप्त, दीप्त, तृप्त, ध्यात, मृत, लिप्त, व्यस्त, युक्त, दत्त, कष्ट, नष्ट, भ्रष्ट, शिष्ट, कृष्ण, पूर्ण, रूग्ण, नग्न, भिन्न, यत्न, रुद्ध, लब्ध, बुद्ध, वृद्ध, सूर, पार्थिव, कुटिल, जटिल इत्यादि।

विशेषण बनानेवाले प्रमुख हिन्दी प्रत्यय हैं – इक, इत, इन, ई, ईय, इल, ईन, ईला, निष्ठ, अनीय, मान, मती, मय। इन प्रत्ययों से बने कुछ विशेषण शब्दों की सूची नीचे दी गई है –

प्रत्यय – इक

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विशेष – ‘इक’ प्रत्यय जुड़ने पर आरंभ के स्वर में प्राय: वृद्धि होती है.। यहाँ अ का आ, इ का ई, ए का ऐ, उ का ऊ तथा ओ का औ हो जाता है।

जब शब्द दो शब्दों से बना हो तो दोनों में भी वृद्धि होती है; जैसे – परलोक से पारलौकिक, अधिदेव से आधिदैविक आदि। कहीं-कहीं वृद्धि नहीं भी होती है; जैसे – क्रम से क्रमिक तथा श्रम से श्रमिक।

प्रत्यय – इत

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विशेष : इन विशेषणों में कुछ भूतकालिक कृदंत भी हो सकते हैं; जैसे – रक्षित, मुदित, लांछित, स्थापित, सिंचित, शिक्षित, पतित आदि।

प्रत्यय – ई (संज्ञा के अलावा अव्ययों में भी लगकर विशेषण की रचना करता है।)

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कतिपय अन्य प्रत्यय

सर्वनाम से विशेषण की रचना

कुछ अरबी-फारसी उपसर्गों से विशेषण की रचना

ला लाइलाज, लापरवाह, लापता, लावारिस
बे बेईमान, बेहोश, बेकसूर, बेकाबू, बेवकूफ, बेकरार, बेचारा
कम कुमजोर, कम कीमत(सस्ता), कमबख्त (अथागा)
खुश खुशकिस्मत, खुशदिल, खुशबू, खुशामद (चापलूस)
गैर गैर कानूनी, गैर मामूली (असाधारण), गैर मुनासिब (अनुचित)
बद बदइंतजामी, बदचलन, बदकिस्मत, बदज़बान, बदनाम, बदबू, बदतमीज़, बदमिज़ाज, बदसलूकी, बदहाल
उर्दू-ना नाखुश, नापसंद, नाबालिग, नालायक, नामुमकिन, नाकाबिल, नाजायज

प्रत्ययों के अतिरिक्त अनेक अर्धप्रत्ययों को जोड़कर भी विशेषण बनाया जाता है।

विशेषण बनाइए :

स्वयं करें

उचित प्रत्यय लगाकर विशेषण बनाइए :
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क्रिया

जिस शब्द से किसी काम के होने या करने का पता चलता है, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे – हँसना, पढ़ना, खाना, पीना, देना, लेना, खेलना आदि। जैसे :

  • चिड़िया उड़ती है।
  • राम प्रतिदिन व्यायाम करता है।

इन वाक्यों में ‘उड़ती’ और ‘करता’ शब्द क्रिया के रूप हैं, क्योंकि इनके द्वारा किसी कार्य के होने का बोध होता है। धात् : क्रिया के मूल रूप को धातु कहा जाता है। उपर्युक्त वाक्यों में ‘उड़’ और ‘कर’ मूल धातु हैं। धातु के दो प्रकार होते हैं :

  1. मूल धातु : जो धातु किसी दूसरे शब्द के आधार पर न बनी हो, वह मूल धातु है। जैसे – चल, उठ, उड़, खेल आदि।
  2. यौगिक धातु : जो धातु किसी अन्य शब्दों के योग से बने, उसे यौगिक धातु कहते हैं। जैसे : लिखवाना, बोलना, छुड़ाना, बजाना आदि।

क्रिया के भेद :

कर्म के आधार पर क्रिया के दो भेद हैं –
1. अकर्मक क्रिया : जिन क्रियाओं का सीधा कर्ता से सम्बन्ध होता है और उनकी क्रियाओं से कर्म सूचित नहीं होता है ऐसे कर्म न रखनेवाली क्रियाओं को अकर्मक क्रिया कहते हैं।

जैसे :

  • राम पढ़ता है।
  • सीता खाती है।

(2) सकर्मक क्रिया : जिस वाक्य में कर्म हो उससे सम्बन्धित क्रिया को सकर्मक क्रिया कहते हैं।

जैसे :

  • राम पुस्तक पढ़ता है।
  • सीता फल खाती है।

मुख्य क्रिया : जब वाक्य में एक से अधिक क्रियाएँ साथ हों तो उनमें जो क्रिया कर्ता या कर्म के मुख्य कार्य व्यापार के बारे में सूचना देती है, वह मुख्य क्रिया कहलाती है।

जैसे :

  • स्वेता सोती है।

सहायक क्रिया : मुख्य क्रिया के बाद बची हुई क्रिया को सहायक क्रिया के रूप में पहचानते हैं।

जैसे :

  • स्वेता गाती है।

वाक्य में रेखांकित अंश में ‘गाती’ और ‘है’ दो क्रियाएँ हैं। ‘गाती’ मुख्य क्रिया है और ‘है’ सहायक क्रिया है। सहायक क्रिया मुख्य क्रिया के काल (वर्तमान-भूत-भविष्य) को सूचित करती है। और मुख्य क्रिया की निरन्तरता, पूर्णता – अपूर्णता की सूचना देती है तथा वह कर्मवाच्य, भाववाच्य की मुख्य क्रिया की सहायता करती है। कालसूचक वह पढ़ता है (वर्तमान) वह पढ़ता था (भूतकाल) वह पढ़ता होगा (भविष्य) निरन्तरता सूचक वह जा रहा है। वह लिख रहा था। वह खा रहा होगा। वाक्य सूचक वह लिखा जाता है। अब मुझसे और चला नहीं जाता।

काल की सूचना में ‘हो’ निरन्तरता में ‘रह’ और वाच्य में ‘जा’ सहायक क्रिया काम में आती है। हिन्दी में ‘हो’ (कालसूचक) सहायक क्रिया का सर्वाधिक उपयोग होता है।

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क्रिया के रूप में परिवर्तन लिंग, वचन, कारक के साथ ही काल पर भी निर्भर करता है। साथ ही क्रिया से संज्ञा या विशेषण पद भी बनते हैं। क्रिया के प्रेरणार्थक क्रिया रूप भी बनते हैं। प्रेरणार्थक क्रिया बनाना प्रेरणार्थक क्रिया – प्रेरणार्थक क्रिया मूल रूप से सकर्मक क्रिया होती है। इसमें क्रिया से कर्ता के स्वयं काम करने का बोध नहीं होता बल्कि किसी अन्य व्यक्ति से कराए जाने का बोध होता है; जैसे – अध्यापक विद्यार्थियों से काम कराता है। यहाँ अध्यापक स्वयं काम नहीं कर रहा है बल्कि विद्यार्थियों से करा रहा है।

प्रेरणार्थक क्रिया दो प्रकार की होती है –

(क) प्रथम प्रेरणार्थक और
(ख) द्वितीय प्रेरणार्थक

प्रेरणार्थक बनाने के नियम –

1. अकर्मक मूल धातु के अंत में ‘आना’ जोड़ने से प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया बनती है और ‘वाना’ जोड़ने से द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया;

जैसे –
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2. सकर्मक मूल धातु के अंत में ‘आ’ जोड़ने से प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया तथा ‘वा’ जोड़ने से द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया बनती है;

जैसे –
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3. प्रेरणार्थक क्रिया बनाते समय दो अक्षरवाली धातु का पहला स्वर यदि दीर्घ हो, तो वह ह्रस्व हो जाता है। यदि ‘ए’ या ‘ओ’ हो तो वह भी ‘इ’, ‘उ’ हो जाता है;

जैसे –
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4. एक अक्षरवाली धातु के अंत में पहली प्रेरणार्थक क्रिया बनाने के लिए ‘ला’ और दूसरी प्रेरणार्थक क्रिया बनाने के लिए ‘लवा’ जोड़कर दीर्घ स्वर को ह्रस्व कर देते हैं;

जैसे –
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अभ्यास – स्वयं हल कीजिए।

1. निम्नलिखित वाक्यों में प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया तथा द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया का प्रयोग करके पुन: लिखिए :

  1. बच्चा दूध पीता है।
  2. लड़के फुटबाल खेलते हैं।
  3. मीना कपड़े सिलती है।
  4. रेखा कहानी लिखती है।
  5. रेणुका दौड़ती है।

निम्नलिखित क्रियाओं के प्रथम प्रेरणार्थक तथा द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया रूप लिखिए :
गिरना, चमकना, बढ़ना, बिगड़ना, फूटना, रखना, लूटना, सीना

अव्यय

अव्यय की परिभाषा : अव्यय अविकारी पद हैं। ऐसे शब्द जिन पर लिंग, वचन, कारक आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता अव्यय कहलाते है। जैसे : जब, तब, अभी, किंतु, चूंकि आदि।

  • मैं समझती हूँ कि रूठा है, तब मेरी गोद में लेकर प्यार करती हूँ।
  • बालक में बुद्धिमानी अच्छी नहीं लगती।
  • वह अपने साथियों में जाता है और खेलकर देर से लौटता है।

अव्यय के मुख्य पाँच भेद हैं :

1. क्रियाविशेषण अव्यय :

जो शब्द क्रिया विशेषण की विशेष जानकारी का बोध कराते हैं वे क्रियाविशेषण अव्यय कहलाते हैं। जैसे : उधर, दिनभर, जल्दी, तेज आदि।

  • आप वहाँ क्या कर रहे हैं ?
  • वह धीरे-धीरे साइकिल चला रहा है।

क्रियाविशेषण के मुख्य चार भेद हैं –

  • रीतिवाचक क्रियाविशेषण : जैसे – धीरे-धीरे, ध्यानपूर्वक तेज आदि
  • स्थानवाचक क्रियाविशेषण : जैसे – यहाँ, वहाँ, जहाँ, सर्वत्र, कहाँ, यहीं आदि
  • कालवाचक क्रियाविशेषण : जैसे – आज, कल, अभी, कब, सदैव, परसों आदि
  • परिमाणवाचक क्रियाविशेषण : जैसे – कम, अधिक, ज्यादा, थोड़ा, कितना, जितना आदि।

2. संबंधसूचक अव्यय :

जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम का सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्दों के साथ कराते हैं, उन्हें सम्बन्धसूचक अव्यय कहते हैं। जैसे –

  • खातिर, द्वारा, सिवा आदि।
  • वह घर से दूर चला गया।
  • मेरी पाठशाला के आगे बस स्टैण्ड हैं।

(3) समुच्चयबोधक अव्यय :

जो शब्द एक वाक्य का सम्बन्ध दूसरे वाक्य या वाक्यांशों से जोड़ते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक अव्यय कहते जैसे –

  • लेकिन, क्योंकि, और, तब, बल्कि आदि।
  • यदि मेहनत करोगे तो अवश्य सफल होगे।
  • स्वेता ने कहा कि वह घर जा रही है।

समुच्चयबोधक अव्यय के दो भेद हैं –

  • समानाधिकरण समुच्चयबोधक : जैसे – और, या, तथा, लेकिन, इसलिए
  • व्यधिकरण समुच्चयबोधक : जैसे – क्योंकि, कि, ताकि, आदि।

विस्मयादिबोधक अव्यय : हर्ष, शोक, भय, आश्चर्य आदि विविध भावों को सूचित करनेवाले शब्द जिनका सम्बन्ध वाक्य या विशेष पद से नहीं होता हैं विस्मयादिबोधक अव्यय कहलाते हैं। जैसे :

  • अहा ! हाय ! अरे ! आदि।
  • आह ! वह गिर गया।
  • अरे ! वह कहाँ गया।

निपात

निपात : ‘निपात’ नये भाव प्रकट करने के लिए प्रयुक्त होते हैं। निपात का कोई लिंग, वचन नहीं होता अतः इन्हें अवयवों में रखा जाता है। मूलतः इसका प्रयोग अव्ययों के लिए होता है फिर भी अव्यय और निपात में किंचित भेद है। इनका प्रयोग वाक्य में अर्थ के अनुसार भिन्न-भिन्न स्थान पर हो सकता है। निपातों का प्रयोग निश्चित शब्द, शब्द-समुदाय या पूरे वाक्य को अन्य भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है। जैसे : ही, भी, तो, तक

पायल ने ही उसे मारा था।
पायल ने उसे ही मारा था।

अव्यय की भाँति ये भी अविकारी होते हैं, अतः इन पर लिंग, वचन, कारक या काल का प्रभाव नहीं पड़ता। इनका रूप सदैव एक ही बना रहता है।

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