Gujarat Board Class 10 Hindi Rachana कहानी-लेखन
Gujarat Board Class 10 Hindi Rachana कहानी-लेखन
GSEB Std 10 Hindi Rachana कहानी-लेखन
प्रश्नपत्र में दी हुई रूपरेखा के आधार पर एक कहानी लिखने, उसे उचित शीर्षक देने और उससे मिलनेवाली सीख (बोध) लिखने के लिए कहा जाता है।
कहानी लिखते समय ध्यान में रखने योग्य बातें :
- सबसे पहले कहानी की रूपरेखा पढ़िए और उसका क्रमशः विस्तार कीजिए।
- कहानी पूरी होने के बाद अंत में एक-दो पंक्तियों में कहानी से मिलनेवाली सीख या बोध लिखिए। इसके लिए 1 अंक होता है। उचित सीख लिखने पर पूरे अंक दिए जाते हैं।
- कहानी के प्रसंग, मुख्य विचार या संदेश के आधार पर कहानी को छोटा-सा एवं आकर्षक शीर्षक दीजिए।
- कहानी लगभग 15-20 पंक्तियों में लिखनी होती है। कहानी में रूपरेखा के आधार पर तीन-चार परिच्छेद होने चाहिए। लेखन में विरामचिहनों का उचित प्रयोग करना चाहिए। कहानी की भाषा शुद्ध और मुहावरेदार होनी चाहिए। कहानी आरंभ से अंत तक रोचक होनी चाहिए।
कहानियों के नमूने
निम्नलिखित प्रत्येक रूपरेखा के आधार पर कहानी लिखकर शीर्षक एवं बोध लिखिए :
प्रश्न 1.
एक गांव-गांव के बाहर रास्ते पर एक स्कूल-विद्यार्थियों का पढ़ने आना- एक विद्यार्थी का परीक्षा में चोरी करने का इरादा – पढ़ाई में ध्यान न देना-प्रथम परीक्षा में चोरी का मौका न मिलना-अनुत्तीर्ण होना- पछतावा होना-चोरी न करने का संकल्प-पढ़ाई में जुट जाना-अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होना-जीवन धन्य होना-चोरी न करने का इनाम-बोध।
उत्तर:
संकल्प का बल चंद्रपुर नाम का एक गाँव था। गांव के बाहर से पक्की सड़क गुजरती थी। उसी के निकट एक स्कूल था। जिसमें चंद्रपुर के ही नहीं, आसपास के गांवों के लड़के पढ़ने आते थे।
सुरेश उसी स्कूल में सातवीं कक्षा का विद्यार्थी था। उसका मन पढ़ाई में नहीं लगता था। खेल-कूद और साथियों के साथ गणाबाजी से ही उसे फुरसत नहीं मिलती थी। उसके माता-पिता बहुत साधारण स्थिति के थे। सुरेश उनकी इकलौती संतान था।
कुछ ही समय में प्रथम परीक्षा आ गई। सुरेश ने पढ़ाई तो की नहीं थी, पर उसे अपनी चालाकी पर बहुत भरोसा था। उसने परीक्षा में नकल करके पास होने का निश्चय कर लिया। परंतु परीक्षा में निरीक्षक की नजर बहुत तेज थी। सुरेश को नकल करने का मौका ही नहीं मिला।
वह परीक्षा में बुरी तरह अनुत्तीर्ण हो गया। इससे उसके माता-पिता बहुत दुःखी हुए। उन्हें दुःखी देखकर सुरेश को भी बहुत पछतावा हुआ। सुरेश ने संकल्प किया कि अब वह परीक्षा में कभी चोरी नहीं करेगा और मेहनत से पढ़ाई करके ही उत्तीर्ण होगा। बस, फिर क्या था! वह दिन-रात एक करके पढ़ाई में जुट गया। अगली परीक्षा में वह अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुआ। उसके माता-पिता को बहुत प्रसन्नता हुई।
सफलता पाकर सुरेश को भी अपना जीवन धन्य लगा। सुरेश को लगा कि यह सफलता वास्तव में उसके परीक्षा में चोरी न करने के संकल्प का ही इनाम है।
बोध (सीख) : सचमुच, दृढ निश्चय और परिश्रम से असंभव को भी संभव किया जा सकता है।
प्रश्न 2.
भीड़ के लोगों का एक आदमी पर पत्थर फेंकना – एक महात्मा का आना-लोगों द्वारा उस व्यक्ति के पापों की शिकायतमहात्मा से न्याय की मांग- महात्मा का न्याय – “ठीक है, पत्थर मारो, पर पहला पत्थर वह उठाए जो पूर्ण निष्पाप हो”-किसी का आगे न बढ़ना-भीड़ का चुप रहना – महात्मा का उपदेश – बोध।
उत्तर :
महात्मा का न्याय
एक दिन सबेरे रामपुर की बड़ी सड़क पर सैकड़ों लोगों की भीड़ जमा हुई थी। सभी लोग बीच में खड़े एक आदमी पर पत्थर फेंक रहे थे। कई लोग उसे भला-बुरा भी कह रहे थे। बहुत कोलाहल हो रहा था। वह आदमी किसी तरह अपने आपको बचाने की कोशिश कर रहा था।
संयोगवश उधर से एक बड़े महात्मा गुजरे। लोगों में उनका बहुत सम्मान था। महात्मा भीड़ और कोलाहल देखकर ज्यों ही ठहरे कि लोग उनसे उस आदमी के पापों की शिकायत करने लगे। किसी ने कहा, ‘यह बड़ा पापी है।’ दूसरे ने कहा, ‘यह चोर है, उसे सजा देनी चाहिए।’ तब तीसरा बोला, ‘यह अधर्मी है, इसे दंड दो।’ इतने में कुछ लोग महात्मा से बिनती करने लगे, ‘आप ही न्याय कीजिए। इसे क्या दंड देना चाहिए?’
सबकी बातें शांति से सुनकर महात्मा ने कहा, “ठहरो, मैं न्याय करता हूँ। यह पापी है, अधर्मी है। इसे दंड देना ही चाहिए। ठीक है, पत्थर मारो, पर पहला पत्थर वही उठाए जो पूर्ण निष्पाप हो, और किसी को उसे पत्थर मारने का अधिकार नहीं।” महात्मा की बात सुनकर भीड़ बिलकुल चुप हो गई। कोई एक कदम भी आगे न बढ़ा। ऐसा कौन है, जो पूर्ण निष्पाप हो? फिर महात्मा ने धीरे से कहा, “सुनो भाइयो, इस दुनिया में छोटे-मोटे पाप तो सभी करते हैं। हमें पापियों को दंड देने के बजाय उन्हें प्रेम से सुधारना चाहिए।”
महात्मा ने उस आदमी को उपदेश देकर विदा किया। महात्मा के व्यवहार और उपदेश का लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ा।
बोध (सीख) : दूसरे को दंड देने से पहले अपने व्यवहार की ओर भी देखना चाहिए। अथवा हमें किसी को दंड देने का अधिकार नहीं है, अगर हो सके तो भूल करनेवाले को क्षमा कर देना चाहिए।
प्रश्न 3.
जंगल में बारहसिंगा – तालाब में पानी में अपने सुंदर सींगों का प्रतिबिंब देखना- उनकी सुंदरता पर गर्व-अपने पतले पैरों को देखकर दुःखी होना- अचानक एक चीते का आना- बारहसिंगा का पतले पैरों के बल भागना-एक झाड़ी में सींगों का उलझ जाना – निकलने का असफल प्रयत्न – प्रायश्चित्त – ‘मेरी सुंदरता ही मेरी मौत का कारण।’
उत्तर :
सुंदरता का मूल्य
अथवा
बारहसिंगा के सींग
एक घना जंगल था। उसमें एक बारहसिंगा रहता था। एक दिन पानी पीने के लिए बारहसिंगा तालाब के किनारे पहुंचा। तालाब के स्वच्छ दर्पण जैसे पानी में उसने अपना प्रतिबिंब देखा। अपने टेढ़े-मेढ़े सुंदर सींग देखकर उसे बड़ा गर्व हुआ, पर अपने पतले पैर देखकर वह दु:खी हो गया। उसने कहा, “काश! मेरे पैर भी मेरे सींगों की तरह सुंदर होते।”
उसी समय एक चीता वहाँ आ पहुंचा। उसे देखते ही बारहसिंगा अपने पतले पैरों के बल पर तेजी से भागा, परंतु रास्ते में एक झाड़ी पार करते समय उसके सींग झाड़ी में उलझ गए। बहुत प्रयत्न करने पर भी वह झाड़ी में से सींग बाहर निकालने में असफल रहा। अब चीते से अपना बचना असंभव देख वह बहुत पछताया और कहा, “हाय! अपने जिन सुंदर सींगों पर मुझे गर्व था, उन्हीं के कारण आज मेरी मृत्यु हो रही है।”
देखते-ही-देखते चीते ने उसे चीर डाला। बोध (सीख) : वस्तु की सुंदरता की अपेक्षा उसकी उपयोगिता अधिक महत्त्वपूर्ण है। असुंदर वस्तु भी उपयोगी हो सकती है।
प्रश्न 4.
एक विद्यार्थी – परीक्षा में असफल होना-निराशा – घर छोड़कर जंगल में जाना – पेड़ पर मकड़ी को बार-बार चढ़ने का प्रयत्न करते देखना – सफलता का मार्ग मिलना-ध्यान से पढ़ना -सफल होना-बोध।
उत्तर:
सफलता की कुंजी
दिनेश नौवीं कक्षा का विद्यार्थी था। वह पढ़ाई के प्रति लापरवाह था। इसलिए पढ़ाई में वह बहुत कमजोर था। परिणाम यह हुआ कि वार्षिक परीक्षा में वह बुरी तरह अनुत्तीर्ण हो गया। इस असफलता ने उसे बहुत निराश कर दिया ।
एक दिन आत्महत्या करने के इरादे से वह अपने गांव के समीप के जंगल में जा पहुंचा। उसने एक बड़े पेड़ की डाली में रस्सी बाँध दी। रस्सी का फंदा अपने गले में डालकर वह मरना चाहता था।
वह रस्सी का फंदा बना ही रहा था कि उसकी नजर पेड़ पर चढ़ती हुई एक मकड़ी पर पड़ी। मकड़ी पेड़ की ऊपर की डाली पर जाना चाहती थी, पर कुछ ऊपर चढ़कर नीचे गिर पड़ती थी। इतने पर भी मकड़ी ने हिम्मत न हारी और बार-बार प्रयत्न करती रही। अंत में वह ऊँची डाली पर पहुंच गई।
मकड़ी की हिम्मत और प्रयास देखकर दिनेश बहुत प्रभावित हुआ। उसे सफलता का मार्ग सूझ गया। उसके मन में उत्साह का संचार हुआ। आत्महत्या का विचार छोड़कर वह घर लौट आया। उस दिन से यह बड़े ध्यान से पढ़ाई करने लगा। आखिर उसकी मेहनत सफल हुई और वार्षिक परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करके वह उत्तीर्ण हो गया।
बोध : मनुष्य को असफलता से निराश नहीं होना चाहिए। मेहनत और लगन से काम करते रहने पर ही सफलता मिलती है।
प्रश्न 5.
दो मित्र – समुद्र में तूफान – नौका टूटना – दोनों का एक ही तख्ते का सहारा लेना- तख्ते केवल एक का भार संभालने में समर्थ – ‘मेरी मां को संभालना’ इस सूचना के साथ अविवाहित मित्र का तख्ने को छोड देना – दूसरे मित्र का बचना-सीख।
उत्तर :
सच्ची मित्रता
अथवा
मित्र हो तो ऐसा!
श्यामू और रामू गहरे मित्र थे। वे दोनों मछुआरे थे और समुद्र के पास एक गांव में रहते थे। श्यामू की शादी हो चुकी थी और वह एक बच्चे का पिता भी था। रामू अभी अविवाहित था।
एक दिन दोनों मित्र एक ही नाव में बैठकर समुद्र में मछलियाँ – पकड़ने के लिए निकले। वे सागर में दूर तक पहुंच गए। उसी समय अचानक आकाश का रंग बदलने लगा। तूफानी हवा चल : पड़ी और सागर में ऊंची-ऊंची लहरें उछलने लगीं। दोनों मित्र : जिस नाव में बैठे थे, वह पुरानी थी। तूफानी लहरों के थपेड़ों : से वह टूट गई। उसका एक तख्ता अलग हो गया।
दोनों मित्र उस तख्ते पर बैठकर किनारे पहुंचने की कोशिश : करने लगे, पर वह तख्ता मुश्किल से एक ही आदमी का भार संभाल सकता था। दोनों को लगा कि यदि वे इस तरह तखो है पर रहेंगे तो दोनों ही डूब जाएंगे।
इस हालत में रामू ने कहा, “श्यामू, तुम इस तख्ते पर ही रहो। मैं इसे छोड़ रहा हूँ। तुम पर पत्नी और बच्चे की १ जिम्मेदारी है। मेरी तो बस एक बूढ़ी माँ ही है। तुम मेरी माँ की भी देखभाल करते रहना।”
श्यामू चिल्लाया – “नहीं”।
किंतु तब तक तो रामू ने तख्ता छोड़ दिया। देखते ही देखते वह तूफानी लहरों में समा गया। श्यामू किसी तरह किनारे पहुंच गया।
रामू के बलिदान पर सारे गाँव में शोक मनाया गया। सबके होठों पर एक ही बात थी, “मित्र हो तो रामू जैसा हो।”
बोध : सच्ची मित्रता नि:स्वार्थ और त्यागपूर्ण होती है।