Gujarat Board Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत
Gujarat Board Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत
GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 11 बालगोबिन भगत
बालगोबिन भगत Summary in Hindi
लेखक-परिचय :
रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म सन् 1899 ई. में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में हुआ था। बचपन में ही माता-पिता का निधन हो जाने के कारण इन्हें अभावों -कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। दसवीं तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद बेनीपुरी स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रूप से जुड़ गए। कई बार जेल भी गए।
महज 15 वर्ष की अवस्था में बेनीपुरीजी की रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगी। ये बेहद प्रतिभाशाली पत्रकार थे। उन्होंने अनेक दैनिक, साप्ताहिक एवं मासिक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। इनमें – ‘तरुण भारत’, ‘बालक’, ‘किसान मित्र’, ‘युवक’, ‘योगी’, ‘जनता’, ‘जनवाणी’ और ‘नयी धारा’ उल्लेखनीय है। – गद्यकार के रूप में प्रख्यात बेनीपुरीजी ने गद्य की कई विद्याओं में अपनी लेखनी चलाई।
इनका पूरा साहित्य बेनीपुरी रचनावली के नाम से आठ खंडों में प्रकाशित है। इनकी प्रमुख पुस्तकें हैं – ‘पतितों के देश में’ (उपन्यास), ‘चिता के फूल’ कहानी, ‘अंबपाली’ नाटक, ‘माटी की मूरतें’| (रेखाचित्र), ‘पैरों में पंख बाँधकर’, (यात्रा-वृत्तांत), ‘जंजीरें और दीवारें’ (संस्मरण) इत्यादि । बेनीपरी की रचनाओं में स्वाधीनता की चेतना, मनुष्य की चिंता और इतिहास की युगानुरूप व्याख्या है। लेखन शैली की विशिष्टता के कारण ही इन्हें ‘कलम का जादूगर’ कहा जाता है।
प्रस्तुत पाठ ‘बालगोबिन भगत’ एक रेखाचित्र है। इसके माध्यम से लेखक ने बालगोबिन भगत के चरित्र को बखूबी उभारा है। अपनी धुन में| रमनेवाले बालगोबिन भगत मनुष्यता, संस्कृति और सामुहिक चेतना के प्रतीक हैं। वेशभूषा या बाह्य अनुष्ठानों से कोई संन्यासी नहीं होता, सन्यास का आधार जीवन के मानवीय सरोकार होते हैं। इसी आधार पर लेखक को बालगोबिन भगत संन्यासी लगते हैं। इस पाठ में ग्रामीण जीवन की झांकियाँ देखने को मिलती है। वास्तव में बालगोबिन भगत एक विलक्षण व्यक्तित्व के सन्यासी थे जो अपने पुत्र की मृत्यु पर शोक न मनाकर नित्यक्रम के अनुसार गाना गाते हैं।
पाठ का सार (भाव) :
बालगोबिन भगत का परिचय : बालगोबिन भगत साठ वर्ष के मझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे। उनके पके हुए बाल, लंबी दाढ़ी, कमर में मात्र एक लंगोटी बाँधे हुए रहते थे। सिर पर कबीरपंथियों जैसी कनफटी टोपी, मस्तक पर रामानंदी चंदन, गले में तुलसी की माला आदि से सुशोभित बालगोबिन का व्यक्तित्व एकदम निराला था। सर्दियों में वे काली कमली ओढ़ लेते थे। बालगोबिन भगत दिखने में साधु लगते थे किन्तु थे वे गृहस्थ । उनके पास थोड़ी खेती बारी थी, अच्छा साफ-सुथरा मकान था । वे साधुओं की सभी परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले व्यक्ति थे।
भगत की साधु-प्रवृत्ति : बालगोबिन भगत कबीर को ‘साहब’ मानते थे। उन्हीं के गीतों को गाना, उन्हीं के आदर्शों पर चलना, उन्हीं के जैसा खरा व्यवहार रखना, स्पष्ट वक्ता, किसी की वस्तु को न छूना, बिना पूछे व्यवहार में न लाना, यहाँ तक कि शौच भी अपने खेत में करना उनकी प्रवृत्ति थी। उनकी सब चीज साहब की थी। खेत में जो कुछ पैदा होता उसे पहले ‘साहब’ को ‘भेंट’ कर घर के प्रयोग में लाते थे।
बालगोबिन और कबीर के पद : लेखक को बालगोबिन भगत द्वारा गाए जानेवाले कबीर के पद बेहद पसन्द है। जब पूरा गाँव आषाढ़ की रिमझिम बारिस में खेतों में होता है, बच्चे पानी भरे खेतों में उछलते, औरतें कलेवा लिए मढ़ पर बैठती, आसमान में बादल छाते, ठंडी हवा चलती, सभी अपने खेतों में धान की रोपाई करते उस समय भगत जब कबीर के पद गाते तो बच्चे झूम उठते, औरतें कॉप जाती । हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते । रोपाई करनावालों की ऊँगलियाँ एकक्रम में थिरकने लगीं। बालगोबिन भगत के संगीत का जादू यह सब करने पर मजबूर कर देता था।
भादों की निस्तब्धता को तोड़ता बालगोबिन का संगीत : भादों माह की निस्तब्धता में बादलों से भरे आकाश और अंधेरे में वे कबीर के पद गाकर सभी को चौंका देते थे। सब सो रहे होते तब बालगोबिन का संगीत जाग रहा होता था। उनका संगीत सोए हुओं को जगा देता था। उनका संगीत अंधेरे में अकस्मात कौंध उठनेवाली बिजली की तरह सभी को चौंका देता था – “तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा !”
बालगोबिन भगत की प्रभातियाँ : कार्तिक का महिना आने पर बालगोबिन की प्रभातियाँ शुरू हो जाती थीं जो फाल्गुन तक चलती थी। इन दिनों वे सवेरे न जाने कब उठकर गाँव से दो मील दूर नदी में स्नान करके लौटते और गाँव से बाहर पोखर के ऊंचे भिंडे पर बैठकर खंजड़ी लेकर गाने लगते थे। एक दिन लेखक भी वहाँ खिंचा चला गया और उसने देखा कि दाँत किटकिटानेवाली सर्दी की भोर में काली कमली ओढ़े भगत खंजड़ी लिए चटाई पर बैठे है।
लेखक ने देखा कि खंजड़ी पर उनकी उंगलियाँ बराबर चल रही हैं। गाते-गाते इतने मस्त हो जाते कि कमली उनके शरीर से नीचे खिसक जाती थी। ठंड के मारे लेखक का बुरा हाल था किन्तु बालगोबिन के मुख पर श्रमबिंदु चमक रहा था।
गर्मी के दिनों में भीड़ : गर्मियों के दिनों में शाम के समय गाँव के कुछ लोग बालगोबिन के आँगन में एकत्रित हो जाते थे। खंजड़ियों और करताल की भरमार के बीच बालगोबिन कबीर के पद गाते और बाकी लोग उनके पद को दोहराते । धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगता । गाते-गाते एक ऐसी स्थिति आती जब बालगोबिन खड़े होकर नाचने लगते । उनके साथ सभी नाच उठते । पूरा आँगन नृत्य और संगीत से भर जाता था।
बेटे की मृत्यु और बालगोबिन : बालगोबिन भगत की संगीत साधना का चरमोत्कर्ष उस दिन देखा गया जिस दिन उनका बेटा मरा था। वह उनका एकलौता बेटा था जो थोड़ा सुस्त और बोदा-सा था इसी कारण से वे उसे ज्यादा मानते थे। बड़ी साध से उसकी शादी कराई थी, पतोहू बड़ी सुभग और सुशील मिली थी। पूरा घर उसने संभाल लिया था। अपने श्वसुर को बहुत कुछ दुनियादारी से निवृत्त करा दिया था। बेटे की मृत्यु की खबर सुनकर लेखक कौतुहलवश उनके घर गए ।
वहां वे यह देखकर दंग रह गये कि बेटे को आँगन में एक चटाई पर लिटाकर एक सफेद कपड़े से ढाँककर रखा है। कुछ फूलों को शव पर बिखरा दिया है, सिरहाने एक चिराग जला रखा है। वे उसके सामने जमीन पर आसन जमाकर गीत गाये जा रहे हैं। उसी स्वर व उसी तल्लीन के साथ। बड़े-बड़े साधक भी बेटे की मृत्यु पर विचलित हो जाते हैं किन्तु बालगोबिन तनिक भी विचलित न होकर गीत गाने में मग्न है, पतोहू को समझाते हैं, उत्सव मनाने को कहते हैं।
बालगोबिन का बहू के प्रति सजगता : बालगोबिन भगत ने अपने बेटे की चिता को आग अपनी बहू से ही लगवाई। श्राद्ध की अवधि पूरी होने पर अपनी पतोहू के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया और उसकी शादी करने का भी आदेश दे दिया। पतोहू भगत के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहती – मैं चली जाऊँगी तो आपके बुढ़ापे में भोजन कौन कराएगा, बीमार पड़ने पर कौन पानी देगा। मुझे अपने चरणों से अलग नहीं कीजिए । भगत बालगोबिन का निर्णय अटल था। भगत ने अपनी पतोहू से कह दिया – तू जा, नहीं तो मैं ही घर छोड़कर चल दूंगा। इस दलील के आगे उसकी पतोहू की एक न चली।
बालगोबिन की मृत्यु : बालगोबिन हर वर्ष गंगा स्नान करने जाते । पैदल ही जाते । करीब तीस कोस पर गंगा थी । घर से खाकर जाते और लौटकर घर पर ही खाते । रास्ते में खंजड़ी बजाते, गाते । जहाँ प्यास लगी पानी पी लेते । आने जाने में चार पाँच दिन लगते । लम्बे उपवास में वही मस्ती दिखाई देती । अब बुढ़ापा आ गया था किन्तु टेक वही जवानी वाली थी। इस बार जब लौटे तो तबियत सुस्त थी।
खाने-पीने के बाद भी तबियत नहीं सुधरी, थोड़ा बुखार भी आने लगा, फिर भी नेम व्रत नहीं छोड़ा। सुबह-शाम गीत गाना, स्नान ध्यान करना, खेती बारी देखना कुछ नहीं छेड़ा। धीरे-धीरे उनका शरीर कमजोर होने लगा। लोगों ने नहाने-धोने से मना किया, आराम करने को कहा, किन्तु वे हँसकर टाल देते थे। उस दिन भी संध्या में गीत गाया, परंतु भोर में लोगों ने गीत नहीं सुना, जाकर देखा तो बालगोबिन भगत नहीं रहे, सिर्फ उनका पंजर पड़ा था।
शब्दार्थ-टिप्पणी :
- मझोला – बीच का
- गोरे – चिढ़े गौर वर्ण का
- जटाजूट – लम्बे बालों का झुंड
- कबीरपंथी – कबीर पंथ का अनुयायी
- कमली – कंबल, खामखाह बेकार में
- कुतुहल – जिज्ञासा
- रोपनी – धान की रोपाई (बुआई) करना
- कलेवा – सुबह का जलपान
- कुहासा – कोहरा, पुरवाई, पूर्व दिशा की ओर से बहनेवाली हवा
- लिथड़े – मिट्टी से सने हुए
- हलवाहा – हल हांकनेवाला, किसान
- अधरतिया – आधी रात को
- दादर – मेंढक
- कोलाहल – शोर
- खंजड़ी – एक प्रकार का वाद्ययंत्र
- निस्तब्धता – शांति
- प्रभाती – भोर में गाया जानेवाला गीत
- चिहुँक – चौंक उठना
- श्रमबिंदु – पसीना
- बोदा – कम बुद्धिवाला
- करतल – तालियां
- विरहिनी – पति या प्रेमी का वियोग सहनेवाली
- अवधि – समय
- चाल – थोड़ा
- संबल – सहारा, जून-समय
- पंजर – हड्डियों का जाल
मुहावरे तथा अर्थ :
1. दाँत किटकिटाना- ठंड लगना।
2. दो टूक बात करना – स्पष्ट बोलना।
वाक्य प्रयोग :
1. जाड़े के मौसम में मैं अपनी जन्मभूमि अयोध्या गया था, भोर में उठकर मां काम कर रही थी और मैं दाँत किटकिटा रहा था । पुनः रजाई में जाकर सो गया।
2. रामेश्वरसिंह अपनी बात दो टूक में ही कह देते हैं, फिर चाहे किसी को बुरा लगे या अच्छा।
Hindi Digest Std 10 GSEB बालगोबिन भगत Important Questions and Answers
पाठेतर सक्रियता
प्रश्न 1.
पाठ में आषाढ़, भादो, माघ आदि में विक्रम संवत कलैंडर के मासों के नाम आए हैं । यह कलैंडर किस माह से आरंभ होता है ? महीनों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर :
विक्रम संवत केलैंडर का प्रारंभ चैत्र (चैत) माह से होता है। बारह महीनों के नाम सूची निम्नानुसार है:
- चैत्र
- वैशाख
- ज्येष्ठ
- आषाढ़
- सावन (श्रावण)
- भादो (भाद्रपद)
- क्वार
- कार्तिक (कातिक)
- अगहन (मार्गशीर्ष)
- पूस (पौष)
- माघ
- फाल्गुन (फागुन)
प्रश्न 2.
इस पाठ में जो ग्राम्य संस्कृति की झलक मिलती है, वह आपके आस-पास के वातावरण से कैसे भिन्न हैं ?
उत्तर :
हम जहाँ रहते हैं, वह शहरी वातावरण है। ग्रामीण संस्कृति और शहरी संस्कृति दोनों में जमीन-आसमान का अन्तर होता है। पाठ में हमने जिस ग्रामीण संस्कृति को पढ़ा शहर में उसका नामोनिशान नहीं होता। यहाँ न खेत है न खलिहान । न खेत की रोपाई न आषाढ़ की रिमझिम । रिमझिम बारीस में खेतों में उल्लासपूर्वक खेलतें बच्चे ।
न हल जोतते किसान, न कलेवा लेकर मेड़ पर इंतजार करती औरतें, न बालगोबिन जैसा कोई चरित्र जो भोर से भी पहले उठकर अपने गीतों से समग्र वातावरण को गुंजायमान करे । यहाँ तो शहर की भीड़भाड़ में अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए भागनेवाला जनसमुदाय है जिसे केवल अपनी ही चिंता है, औरों की नहीं। चारों ओर यातायात के साधनों का कोलाहलपूर्ण वातावरण । न यहाँ स्वच्छ हवा है, न अच्छा खान-पान । दूषित जल-प्रदूषणयुक्त वातावरण में रोगग्रस्त लोग है । शहरीजीवन शैली गाँवों की जीवनशैली से एकदम भिन्न है।
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में लिखिए :
प्रश्न 1.
बालगोबिन भगत के परिवार में कौन-कौन था ?
उत्तर :
बालगोबिन भगत की पत्नी नहीं थी। उनका एक बेटा था जो सुस्त और बोदा-सा था। उनकी पुत्रवधू थी जिसने पूरे घर का प्रबंध संभाल रखा था।
प्रश्न 2.
बालगोबिन का दूसरों के प्रति व्यवहार कैसा था ?
उत्तर :
बालगोबिन कबीर के आदर्शों पर चलनेवाले खरे व्यक्ति थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे, सबसे खरा व्यवहार रखते थे। किसी से भी दो टूक बात करने में संकोच नहीं करते थे, न किसी से खामखाह झगड़ा करते थे।
प्रश्न 3.
बालगोबिन की किस बात से लोगों को कौतुहल होता था ?
उत्तर :
बालगोबिन आचरण से शुद्ध थे, वे किसी को भी अपने व्यवहार द्वारा ठेस नहीं पहुंचाना चाहते थे, इसलिए वे शौचक्रिया भी दूसरे के खेत में नहीं करते थे। अपने ही खेत में शौचक्रिया करते थे। बालगोबिन की इस बात से सभी को कुतूहल होता था।
प्रश्न 4.
बालगोबिन अपने घर का गुजारा कैसे करते थे?
उत्तर :
बालगोबिन किसान थे। खेतों में जो पैदावार होती थी उसे पहले अपने कबीर (साहब) को भेंट स्वरूप चढ़ाते थे। वहां से जो पैदावार उन्हें प्रसाद के रूप में प्राप्त होता था उसे घर लाते और उसी से अपने घर का गुजारा करते थे।
प्रश्न 5.
लेखक बालगोबिन पर क्यों मुग्ध थे ?
उत्तर :
बालगोबिन भगत कबीर के सीधे-सादे पदों को बहुत मधुर कंठ से गाते थे। उनके कंठ से निकलकर वे पद सजीव हो उठते थे। उनके इन्हीं मधुर गान पर लेखक बालगोबिन पर मुग्ध थे।
प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर भादों की आधी रात का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भादों की आधी रात को मूसलाधार वर्षा खत्म हुई। बादलों की गर्जना व बिजली की चमक के बाद झिाली की झंकार और मेढ़क की टर्र-टर्र सुनाई दे रही थी। इसी भादों की आधी रात में खेजड़ी की डिमग-डिमग बजाकर बालगोबिन भगत गीत गाते हैं।
प्रश्न 7.
कातिक मास में बालगोबिन भगत का दिन कैसे प्रारंभ होता है?
उत्तर :
कातिक मास में बालगोबिन बड़े सवेरे उठते । न जाने किस वक्त जगकर नदी स्नान को जाते, वहाँ से नहा-धोकर लौटते और गांव के बाहर ही पोखरे के ऊंचे भिडे पर खजड़ी लेकर बैठते और अपने गाने टेरने लगते थे।
प्रश्न 8.
बालगोबिन भगत की पुत्रवधू की क्या विशेषता थी?
उत्तर :
बालगोबिन भगत की पुत्रवधू बहुत अच्छी और सुशील थी । घर का पूरा प्रबंध उसने अपने हाथों में ले लिया था और भगत को बहुत कुछ दुनियादारी से मुक्त कर दिया था। अपने पति की मृत्यु के पश्चात् भी वह अपने श्वसुर की सेवा करना चाहती थी।
प्रश्न 9.
बालगोबिन भगत अपनी पुत्रवधू को अपने बेटे की मृत्यु पर शोक मनाने की जगह उत्सव मनाने को क्यों कहते थे ?
उत्तर :
बालगोबिन भगत के अनुसार बेटे की मृत्यु होने पर उसकी आत्मा परमात्मा से जा मिली। आत्मा यानी विरहिणी अपने प्रेमी यानी परमात्मा से जाकर मिल गई तो यह बड़े आनंद की बात है। शोक न मनाकर बालगोबिन अपनी पुत्रवधू से उत्सव मनाने को कहते थे।
प्रश्न 10.
बालगोबिन की पुत्रवधू अपने भाई के साथ क्यों नहीं जाना चाहती थी?
उत्तर :
बालगोबिन की पुत्रवधू को उनकी चिंता थी कि उसके जाने के बाद उनके लिए भोजन कौन बनाएगा, बीमार पड़े तो एक चुल्लू पानी कौन देगा इसी
कारण वह अपने भाई के साथ नहीं जाना चाहती थी। किन्तु बालगोबिन के दलील के सामने उसकी एक न चली।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखिए :
प्रश्न 1.
पाठ के आधार पर आषाढ़ माह में गांव के लोगों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
आषाढ़ माह वर्षा के आरंभ का महीना है। आषाढ़ लगते ही रिमझिम-रिमझिम वर्षा शुरू होने लगती है, उस समय सारा गाँव खेतों में उतर पड़ता है। कहीं हल चलता है, कहीं धान की रोपनी होती है। धान के पानी भरे खेतों में बच्चे उछल-उछल कर खेलते हैं। औरतें क्लेवा लेकर मेंड पर बैठी है। आसमान बादलों से घिरा है, धूप का कहीं नामो-निशान नहीं है।
ठंडी पूरवाई चल रही है। बालगोबिन कीचड़ी से लथपथ धान की रोपाई करते समय गीत गाते । उनके गीत ने वातावरण को चमत्कृत कर दिया है। बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं, मेड़ पर खड़ी औरतों के होठ काँप उठते है, वे गुनगुनाने लगती हैं। हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं, रोपनी करनेवालों की अंगुलियां एक अजीब क्रम में चलने लगती हैं। यह सब बालगोबिन के संगीत का जादू है।
प्रश्न 2.
माघ की दांत किटकिटानेवाली भोर में लेखक कहाँ गये और उन्होंने वहां क्या देखा?
अथवा
माघ की दात किटकिटानेवाली भोर का वर्णन अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
माघ की दाँत किटकिटानेवाली भोर में लेखक पोखरे पर गए । बालगोबिन भगत का संगीत उन्हें वहाँ खींच कर ले गया। वहां उन्होंने देखा कि आसमान में अभी तारों के दीपक बुझे नहीं थे। पूरब में लालिमा छा गई थी। उस लालिमा को शुक्रतारा और गहरा रहा था। खेत, बगीचा, घर सब पर कुहासा छाया हुआ था।
सारा वातावरण अजीब रहस्य से आवृत्त मालूम पड़ता था। उस रहस्यमय वातावरण में एक कुश की चटाई पर पूरब मुंह काली कमली ओढ़े बालगोबिन भगत अपनी खजड़ी लिए बैठे थे। उनके मुंह से शब्दों का ताता लगा था। उनकी अगुलिया खजड़ी पर लगातार चल रही थी। गाते-गाते वे इतने मस्त हो जाते, उत्तेजित हो उठते । मालूम होता अभी खड़े हो जाएगे । कमली बार बार नीचे सरक जाती थी। जाड़े की ठंड में लेखक कांप रहे थे और उस तारों की छाँव में बालगोबिन के मस्तक पर श्रमबिंदु चमक उठते थे।
प्रश्न 3.
बालगोबिन भगत की मौत उन्हीं के अनुरूप हुई। ऐसा लेखक ने क्यों कहा?
उत्तर :
बालगोबिन की मृत्यु उन्हीं के अनुरूप हुई। ऐसा लेखक ने इसलिए कहा क्योंकि उनके आदर्शों के अनुरूप बालगोबिन ने किसी से अपनी सेवा नहीं करवाई। एक बार वे गंगा स्नान करने गए । उनका विश्वास स्नान करने पर नहीं संत-समागम और लोक-दर्शन पर अधिक था। किसी से भिक्षा नहीं लेते थे।
घर से खाकर जाते तो फिर घर पर आकर ही खाना खाते । इस बार जब वे लौटे तो उनकी तबियत खराब रहने लगी। दोनों समय स्नान करना, ध्यान गीत, खेतीबाड़ी देखना आदि के कारण उनका शरीर धीरे-धीरे कमजोर होने लगा। लोग उन्हें नहाने धोने से मना करते आराम करने को कहते पैर भगतजी हंसकर टाल देते ।
एक दिन शाम के समय जब वे गा रहे थे तो उनका स्वर बिखरा हुआ था, अगले दिन भोर में लोगों ने उनका गीत नहीं सुना । लोगों ने जाकर देखा, तो उनका पंजर पड़ा था। यों आखिरी साँस तक उन्होंने संगीत साधना की। ऐसा ही वे चाहते थे। उनकी आत्मा परमात्मा में सदा के लिए विलीन हो गई । इस प्रकार बालगोबिन भगत की मौत उन्हीं के अनुरूप हुई थी।
प्रश्न 4.
“गरमी की उमसभरी संध्याएं भी भगत के स्वरों को निढाल नहीं कर पाती थीं।” इस कथन के आलोक में भगत के मधुर गायन की विशेषताएं लिखिए।
अथवा
गर्मियों में बालगोबिन भगत की संझा’ का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
गर्मियों में बालगोबिन भगत शाम के समय अपने घर के आँगन में आसन जमाकर बैठते। गाँव के कुछ संगीत प्रेमी भी उनके साथ जुट जाते। खंजड़ियों और करतालों की भरमार से वातावरण गूंज उठता था। एक पद बालगोबिन भगत कहते, उनकी प्रेमी मंडली उस पद को दोहराते, तिहराते, धीरे-धीरे संगीत का स्वर ऊंचा उठने लगता, एक निश्चित ताल एक निश्चित गति से।
उस ताल-स्वर के चढ़ाव के साथ-साथ श्रोताओं के मन भी ऊपर उठने लगते । धीरे-धीरे मन तन पर हावी हो जाता। होते-होते एक क्षण ऐसा आता कि बीच में खंजड़ी लिए बालगोबिन भगत नाच रहे हैं और उनके साथ ही सबके तन-मन नृत्यशील हो उठते ।.सारा आँगन नृत्य और संगीत से ओतप्रोत हो जाता। यों गर्मी को उमसभरी संध्याएँ भी भगत के स्वरों को निढाल नहीं कर पाती थीं।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1. बालगोबिन भगत मॅझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे। साठ से ऊपर के ही होंगे। बाल पक गए थे। लंबी दाढ़ी या जटाजूट तो नहीं रखते थे, किंतु हमेशा उनका चेहरा सफ़ेद बालों से ही जगमग किए रहता । कपड़े बिलकुल कम पहनते । कमर में एक लंगोटी-मात्र और सिर में कबीरपंथियों को-सी कनफटी टोपी ।
जब जाड़ा आता, एक काली कमली ऊपर से ओढ़े रहते । मस्तक पर हमेशा चमकता हुआ रामानंदी चंदन, जो नाक के एक छोर से ही, औरतों के टीके की तरह, शुरू होता । गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला बांधे रहते। ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे। नहीं, बिलकुल गृहस्थ ! उनकी गृहिणी की तो मुझे याद नहीं, उनके बेटे और पतोहू को तो मैंने देखा था। थोड़ी खेतीबारी भी थी, एक अच्छा साफ-सुथरा मकान भी था।
प्रश्न 1.
बालगोबिन भगत की कद-काठी के विषय में बताइए।
उत्तर :
बालगोबिन भगत ‘मझोले’ कद के गोरे-चिढ़े आदमी थे। उनकी उम्र साठ के आस-पास थी। उनका चेहरा सफेद बालों से ढका रहता था। कपड़े बिल्कुल कम पहनते थे। कमर में एक लंगोटी मात्र तथा कबीरपंथियों-सी कनफटी टोपी पहनते थे। मस्तक पर रामानंदी चंदन लगाते थे। गले में तुलसी की बेडौल माला पहने रहते थे।
प्रश्न 2.
बालगोबिन भगत संन्यासी थे या गृहस्थ ?
उत्तर :
बालगोबिन भगत दिखने से सन्यासी लगते थे किन्तु थे वे गृहस्थ । उनको एक बेटा और पतोहू थी। खेती, बारी थी अच्छा-सा मकान भी था। अत: वे गृहस्थ थे।
प्रश्न 3.
‘जाड़ा’ व ‘कमली’ शब्द का अर्थ लिखिए।
उत्तर :
‘जाड़ा’ का अर्थ है ठंडी और ‘कमली’ का अर्थ है कंबल ।
2. किंतु, खेतीबारी करते, परिवार रखते भी, बालगोविन भगत साधु थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरनेवाले। कबीर को ‘साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते । किसी की चीज़ नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते । इस नियम को कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतुहल होता ! – कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते !
वह गृहस्थ थे; लेकिन उनकी सब चीज़ ‘साहब’ की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते – जो उनके घर से चार कोस दूर पर था – एक कबीरपंथी मठ से मतलब ! वह दरबार में ”मेंट’ रूप रख लिया जाकर ‘प्रसाद’ रूप में जो उन्हें मिलता, उसे घर लाते और उसी से गुजर चलाते!
प्रश्न 1.
‘बालगोबिन भगत कबीर के अनुयायी थे ।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
बालगोविन भगत कबीर के अनुयायी थे। कबीर पंथियों के नियम के अनुसार वे चलते थे। कबीर पंथियों के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते । कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी को दो टूक बात कहने में संकोच नहीं करते थे। किसी से झगड़ा मोल नहीं लेते। उनका पूरा आचरण कबीरपंथियों का था। अत: वे कबीर के अनुयायी थे।
प्रश्न 2.
बालगोबिन अपने घर का गुजारा कैसे करते थे?
उत्तर :
बालगोबिन भगत खेत की पैदावार को पहले साहब के दरबार में ले जाकर भेंट स्वरूप रखते। वहां से उन्हें जो प्रसाद के रूप में प्राप्त होता था, उसी से वे अपने घर का गुजारा करते थे।
प्रश्न 3.
‘झूठ’ तथा ‘घर’ शब्द का विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर :
झूठ का विलोम शब्द है सच और घर का विलोम शब्द है बेघर अथवा बाहर ।
3. आसाढ़ की रिमझिम है। समूचा गाँव खेतों में उतर पड़ा है। कहीं हल चल रहे हैं; कहीं रोपनी हो रही है। धान के पानी-भरे खेतों में बच्चे उछल रहे हैं। औरतें कलेवा लेकर मेंड़ पर बैठी हैं। आसमान बादल से घिरा; धूप का नाम नहीं । ठंडी पुरवाई चल रही। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग झंकार-सी कर उठी । यह क्या है – यह कौन है ! वह पूछना न पड़ेगा ।
बालगोबिन भगत समूचा शरीर कीचड़ में लिथड़े, अपने खेत में रोपनी कर रहे हैं। उनकी अंगुली एक-एक धान के पौधे को, पंक्तिबद्ध, खेत में बिठा रही है। उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है और कुछ को इस पृथ्वी की मिट्टी पर खड़ें लोगों के कानों की ओर ! बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं; मेंड़ पर खड़ी औरतों के होंठ कांप उठते हैं, वे गुनगुनाने लगती हैं; हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं; रोपनी करनेवालों की अंगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं ! बालगोबिन भगत का यह संगीत है या जादू !
प्रश्न 1.
आषाढ़ के महीने में किसान क्या करते हैं ?
उत्तर :
आषाढ़ के महीने में बरसात होने पर किसान खेतों में हल चलाते हैं, धान की रोपनी करते हैं। यह खेतों में बुआई, जोताई का कार्य करते हैं।
प्रश्न 2.
आषाढ़ के महीने में बच्चे और औरतें क्या करती हैं ?
उत्तर :
आषाढ़ के महीने में बच्चे धान के पानी भरे खेतों में उछल कर खेलते हैं तथा औरतें कलेवा लेकर मेड़ पर बैठकर इंतजार करती हैं।
प्रश्न 3.
बालगोबिन भगत खेत में क्या कर रहे हैं?
उत्तर :
बालगोबिन भगत का पूरा शरीर कीचड़ से सना है, वे खेतों में घान रोपने का कार्य कर रहे है तथा वे रोपाई के साथ साथ मधुर कंठ से गीत गा रहे है।
प्रश्न 4.
बालगोबिन के गीतों का प्रभाव लोगों पर कैसे पड़ता हैं?
उत्तर :
बालगोबिन के गीतों को सुनकर बच्चे झूम उठते हैं, औरतों के ओंठ काँप उठते हैं, वे भी गीत गुनगुनाने लगती हैं, हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं, रोपनी करनेवालों की अंगुलियां एक अजीबकम से चलने लगती हैं।
4. भादों की वह अधेरी अधरतिया । अभी, थोड़ी ही देर पहले मुसलधार वर्षा खत्म हुई है। बादलों की गरज, बिजली की तड़प में आपने कुछ नहीं सुना हो, किंतु अब झिल्ली की झंकार या दादुरों की टर्र-टर्र बालगोबिन भगत के संगीत को अपने कोलाहल में डूबो नहीं सकती। उनकी खंजड़ी डिमक-डिमक बज रही है और वे गा रहे हैं – “गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया, चिहुँक उठे ना !”
हाँ, पिया तो गोद में ही है, किंतु वह समझती है. वह अकेली है, चमक उठती है, चिहुँक उठती है। उसी भरे-बादलोंवाले भादो की आधी रात में उनका यह गाना अँधेरे में अकस्मात कौंध उठनेवाली बिजली की तरह किसे न चौंका देता? अरे, अब सारा संसार निस्तब्धता में सोया है, बालगोबिन भगत का संगीत जाग रहा है, जगा रहा है! – तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा !
प्रश्न 1.
भादों की आधी रात का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
भादों की रात अंधकार से पूर्ण है। थोड़ी देर पहले मुसलाधार वर्षा खत्म हुई है। चारों ओर झिल्ली की झनकार और मेढ़कों की टर्र-टर्र आवाज से वातावरण कोलाहलपूर्ण है।
प्रश्न 2.
सारा संसार निस्तब्धता में सोया है तब बालगोबिन क्या करते हैं ?
उत्तर :
सारा संसार निस्तब्धता में सोया है तब बालगोबिन अपनी खंजड़ी डिमग-डिमग बजाकर गीत/पद गा रहें हैं। उनका संगीत जाग रहा है और जगा रहा है।
प्रश्न 3.
‘अधरतिया’, ‘पियवा’ तथा ‘सखिया’ का मानक रूप लिखिए।
उत्तर :
उपर्युक्त शब्दों का मानक रूप निम्नवत् है –
- अधरतिया – अर्ध रात्रि
- पियवा – पिया/प्रिया
- सखिया – सखी
प्रश्न 4.
प्रभातियां क्या है ? बालगोबिन के संदर्भ में प्रभातियां’ की विशेषता लिखिए।
उत्तर :
भोर में गाये जानेवाले गीतों को प्रभातियां कहा जाता है। बालगोबिन भगत भोर में नदी-स्नान से लौटते समय पोखर के किनारे भिड़े पर प्रभातियाँ – गाया करते थे। वे ताल मिलाने के लिए खंजड़ी का इस्तेमाल करते थे। कार्तिक मास से लेकर फाल्गुन तक वे ‘प्रभातियां’ गाते थे।
प्रश्न 5.
माघ की कड़ी सर्दी में भी बालगोबिन के माथे पर पसीना क्यों चमक रहा था?
उत्तर :
माघ की बड़ी सर्दी में बालगोबिन बड़ी तन्मयता से प्रभाती गायन करते थे। वे गाते-गाते मस्त हो जाते थे, सुरूर में आ जाते थे और उत्तेजित हो उठते थे, मालूम होता कि बस वे अब खड़े हो जाएंगे। गायन और खंजेड़ी वादन की तन्मयता के कारण उन्हें ठंडी का एहसास ही नहीं होता और इसी श्रम से उनके माथे पर पसीना चमक उठता था।
प्रश्न 6.
‘नदीस्नान’ व ‘श्रमबिंदु’ को आप किसके अन्तर्गत रखेंगे ? क्यों ?
उत्तर :
‘नदी-स्नान ‘ व ‘श्रमबिंदु’ को हम समास के अन्तर्गत रखेंगे। ये दोनों सामासिक शब्द हैं। उनका विग्रह और भेद निम्नानुसार है –
नदी-स्नान – नदी में स्नान – तत्पुरुष समास
श्रमबिंदु- श्रम का बिंदु- तत्पुरुष समास
5. बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया जिस दिन उनका बेटा मरा । इकलौता बेटा था वह ! कुछ सुस्त और बोदा-सा था, किंतु इसी कारण बालगोबिन भगत उसे और भी मानते । उनकी समझ में ऐसे आदमियों पर ही ज्यादा नजर रखनी चाहिए या प्यार करना चाहिए, क्योंकि ये निगरानी और मुहब्बत के ज्यादा हकदार हैं।
बड़ी साध से उसकी शादी कराई थी, पतोहू बड़ी ही सुभग और सुशील मिली थी। घर की पूरी प्रबंधिका बनकर भगत को बहुत कुछ दुनियादारी से निवृत्त कर दिया था। उसने उनका बेटा बीमार है, इसकी खबर रखने की लोगों को कहाँ फुरसत ! किंतु मौत तो अपनी ओर सबका ध्यान खींचकर ही रहती है। हमने सुना, बालगोबिन भगत का बेटा मर गया।
प्रश्न 1.
बालगोबिन भगत अपने बेटे को अधिक क्यों मानते थे?
उत्तर :
बालगोबिन भगत का एक ही बेटा था जो कुछ सुक्त और बोदा-सा था। बालगोबिन के अनुसार ऐसे आदमियों पर भी ज्यादा नजर रखनी चाहिए या प्यार करना चाहिए। उनको अधिक प्यार की जरूरत पड़ती हैं इसलिए बालगोबिन भगत अपने बेटे को अधिक मानते थे।
प्रश्न 2.
बालगोबिन भगत की पतोहू की क्या विशेषता थी?
उत्तर :
बालगोबिन भगत की पतोहू बड़ी ही सुभग और सुशील थी। घर का पूरा प्रबंध अपने हाथों में ले लिया था। एक प्रकार से बालगोबिन भगत को
बहुत कुछ दुनियादारी से मुक्त करा दिया था।
प्रश्न 3.
‘प्रबंधिका’, ‘दुनियादारी’ शब्द में से प्रत्यय अलग कीजिए।
उत्तर :
प्रबंधिका में इका प्रत्यय तथा दुनियादारी में दारी प्रत्यय लगा है।
6. हमने सुना, बालगोबिन भगत का बेटा मर गया । कुतूहलवश उनके घर गया। देखकर दंग रह गया। बेटे को आँगन में एक चटाई पर लिटाकर एक सफ़ेद कपड़े से ढाँक रखा है। वह कुछ फूल तो हमेशा ही रोपते रहते, उन फूलों में से कुछ तोड़कर उस पर बिखरा दिए हैं; फूल और तुलसीदल भी । सिरहाने एक चिराग जला रखा है।
और, उसके सामने जमीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं ! वही पुराना स्वर, वही पुरानी तल्लीनता । घर में पतोहू रो रही है जिसे गाँव की स्त्रियाँ चुप कराने की कोशिश कर रही हैं। किंतु, बालगोबिन भगत गाए जा रहे हैं ! हाँ, गाते-गाते कभी-कभी पतोहू के नजदीक भी जाते और उसे रोने के बदले उत्सव मनाने को कहते ।
आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिनी अपने प्रेमी से जा मिली, भला इससे बढ़कर आनंद की कौन बात? मैं कभी-कभी सोचता, यह पागल तो नहीं हो गए। किंतु नहीं, वह जो कुछ कह रहे थे उसमें उनका विश्वास बोल रहा था – वह चरम विश्वास जो हमेशा ही मृत्यु पर विजयी होता आया है।
प्रश्न 1.
बालगोबिन की पतोहू क्यों रो रही है?
उत्तर :
बालगोबिन की पतोहू का पति यानी बालगोबिन का इकलौता बेटा मर गया है इस कारण उनकी पतोहू रो रही है।
प्रश्न 2.
बालगोबिन बेटे की मृत्यु पर उत्सव मनाने को क्यों कहते हैं ?
उत्तर :
बालगोबिन कबीरपंथ के अनुयायी थे। मृत्यु के बाद आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिनी अपने प्रेमी से जा मिली इससे बढ़कर आनंद की बात क्या हो सकती है। इसलिए बालगोबिन अपने बेटे की मृत्यु पर उत्सव मनाने को कहते हैं।
प्रश्न 3.
आनंद तथा ‘विजय’ का विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर :
आनंद का विलोम शब्द ‘शोक’ तथा विजय का विलोम शब्द ‘पराजय’ हैं।
7. बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं किया; पतोहू से ही आग दिलाई उसकी। किंतु ज्योंहीं श्राद्ध की अवधि पूरी हो गई, पतोहू के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया, यह आदेश देते हुए कि इसकी दूसरी शादी कर देना। इधर पतोहू रो-रोकर कहती – मैं चली जाऊँगी,तो बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा, बीमार पड़े तो कौन एक चुालू पानी भी देगा? मैं पैर पड़ती हूँ, मुझे अपने चरणों से अलग नहीं कीजिए ! लेकिन भगत का निर्णय अटल था। तू जा, नहीं तो मैं ही इस घर को छोड़कर चल दूंगा- यह थी उनकी आखिरी दलील और इस दलील के आगे बेचारी की क्या चलती?
प्रश्न 1.
श्राद्ध की अवधि पूरी होने पर बालगोबिन ने क्या किया ?
उत्तर :
श्राद्ध की अवधि पूरी होने पर बालगोबिन ने अपनी पतोहू के भाई को बुलाकर उसके साथ भेज दिया और आदेश दिया कि उसकी दूसरी शादी कर देना।
प्रश्न 2.
बालगोबिन की पतोहू अपने भाई के साथ क्यों नहीं जाना चाहती थी ?
उत्तर :
बालगोबिन अकेले थे। पतोहू के चले जाने पर उनके लिए खाना कौन बनाएगा, बीमार पड़े तो पानी कौन देगा। इसकारण वह अपने भाई के साथ
नहीं जाना चाहती थी।
प्रश्न 3.
बालगोबिन की पतोहू को अपने भाई के साथ क्यों जाना पड़ा?
उत्तर :
बालगोबिन भगत ने अपने पतोहू को आखिरी दलील सुनाते हुए कहा कि तू जा नहीं तो मैं ही इस घर को छोड़कर चल दूंगा। इस दलील के आगे उनकी पतोहू की एक न चली। इसलिए उसे अपने भाई के साथ जाना पड़ा।
अति लघुत्तरी प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर चुनकर लिखिए :
प्रश्न 1.
बालगोबिन भगत की उम्र कितने वर्ष की रही होगी?
(क) पचास वर्ष से ऊपर
(ख) पचास वर्ष से नीचे
(ग) साठ वर्ष से ऊपर
(घ) साठ वर्ष से नीचे
उत्तर :
(ग) साठ वर्ष से ऊपर
प्रश्न 2.
धान की रोपाई किस महीने में होती है?
(क) आषाढ़
(ख) भादो
(ग) कार्तिक
(घ) फाल्गुन
उत्तर :
(क) आषाढ़
प्रश्न 3.
बालगोबिन कहाँ पर अपने गाने टेरने लगते थे ?
(क) गाँव के बाहर
(ख) नदी के किनारे
(ग) घर के आंगन में
(घ) पोखरे के ऊँचे भिंडे पर
उत्तर :
(घ) पोखरे के ऊँचे भिंडे पर
प्रश्न 4.
बालगोबिन भगत का बेटा कैसा था?
(क) तेज और सुन्दर
(ख) चालाक और होशियार
(ग) सुस्त और बोदा-सा
(घ) मंदबुद्धि और सुंदर
उत्तर :
(ग) सुस्त और बोदा-सा
प्रश्न 5.
बालगोबिन के घर से गंगा कितनी दूरी पर थी?
(क) करीब पचीस कोस की दूरी पर
(ख) करीब तीस कोस की दूरी पर
(ग) कबीर बीस कोस की दूरी पर
(घ) करीब चालीस कोस की दूरी पर
उत्तर :
(ख) करीब तीस कोस की दूरी पर
प्रश्न 6.
बालगोबिन भगत की संगीत साधना का चरमोत्कर्ष किस दिन देखा गया?
(क) जब बालगोबिन भगत के बेटे की शादी हुई थी।
(ख) जब बालगोबिन भगत गीत गाते थे।
(ग) जब बालगोबिन भगत गंगा स्नान करने जाते थे।
(घ) जब बालगोबिन भगत का बेटा मरा था।
उत्तर :
(घ) जब बालगोबिन भगत का बेटा मरा था।
सविग्रह समास भेद बताइए :
- गोरा-चिट्टा – एकदम गोरा (गोरा और चिट्टा) – द्वंद्व समास
- जटाजूट – जटाओं का बना समूह – तत्पुरुष समास
- साफ-सुथरा – साफ और सुथरा (स्वच्छ) – द्वंद्व समास
- सदा-सर्वदा – हमेशा – अव्यवी भाव समास
- सीधा-सादा – सीधा और सादा – द्वंद्व समास
- स्वर-तरंग – स्वर की तरंग- तत्पुरुष समास
- पंक्तिबद्ध – पंक्ति में बद्ध – तत्पुरुष समास
- नदी-स्नान – नदी में किया गया स्नान – तत्पुरुष समास
- श्रमबिंदु – श्रम के बिन्दु – तत्पुरुष समास
- संगीत-साधना – संगीत की साधना- तत्पुरुष समास
- स्नान-ध्यान – स्नान और ध्यान – द्वंद्व समास
- दिन-दिन – दिन प्रतिदिन – अव्ययीभाव समास
- संत-समागम – संतों के साथ समागम – तत्पुरुष समास
- लोक-दर्शन – लोक का दर्शन – तत्पुरुष समास
- खेतीबारी – खेती और बारी (बाग) – द्वंद्व समास
खाना-पीना – खाना और पीना – द्वंद्व समास
भाववाचक संज्ञा बनाइए:
- तल्लीन – तल्लीनता
- विरहिणी – विरह
- प्रेमी – प्रेम
- निस्तब्ध – निस्तब्धता
- मुसाफिर – मुसाफिरी
- साफ़ – सफ़ाई
- मुग्ध – मुग्धता
- सजीव – सजीवता
- बच्चा – बचपन
- गुनगुनाना – गुनगुनाहट
- रहस्यमय – रहस्यमयता
- प्रबंधिका – प्रबंध
- सुस्त – सुस्ती
विशेषण बनाइए:
- रामानंद – रामानंदी
- कबीरपंथ – कबीरपंथी
- सुख – सुखी
- संगीत – संगीतज्ञ
- रहस्य – रहस्यमय
- बुढ़ापा – बूढा
- प्रेम – प्रेमी
- विरह – विरहिणी/विरही
लिंग बदलिए:
- प्रबंधिका – प्रबंध
- विरहिणी – विरही
- बूढ़ा – बुढ़िया
- मुग्ध – मुग्धा
- नदी – नद
संधि-विच्छेद कीजिए :
- वातावरण – वात + आवरण
- पर्यावरण – परि + आवरण
- क्षोभावरण – क्षोभ + आवरण
- निरावरण – निः + आवरण
- रामानंद – राम + आनंद
- निजानंद – निज + आनंद
- समागन – सम + आगम
GSEB Class 10 Hindi Solutions बालगोबिन भगत Textbook Questions and Answers
प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.
खेतीबाड़ी से जुड़े बालगोबिन भगत अपनी किन विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे ?
उत्तर :
बालगोबिन भगत वास्तव में गृहस्थ थे किन्तु अपनी कुछ विशेषताओं के कारण लोग उन्हें साधु मानते थे। वे कबीर को अपना साहब (ईश्वर) मानते थे। वे कबीर के पदों को गाते थे और उनके आदेशों का पालन करते थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे, खरा व्यवहार रखते थे। किसी से दो टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते थे।
किसी की चीज नहीं छूते थे, न बिना पूछे व्यवहार में लाते थे। उनकी हर चीज साहब की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते, उन्हें भेंट में रखते । जो कुछ प्रसाद के रूप में मिलता उसी में गुजारा करते । उनका बाह्य दिखावा भी साधुओं के जैसा ही था । अतः अपने त्याग की प्रवृत्ति और साधुतापूर्वक व्यवहार के कारण ही वे साधु कहलाते थे।
प्रश्न 2.
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थीं?
उत्तर :
लेखक के अनुसार बालगोबिन भगत की गृहिणी को उन्होंने देखा नहीं था। उनके घर पर उनका बेटा और पतोहू थे। बेटे की मृत्यु के बाद बालगोबिन का ध्यान रखनेवाला कोई नहीं था। पूत्रवधू यदि अपने भाई के साथ मायके चली जाती तो बुढ़ापे में उनके लिए भोजन कौन बनाता? वे बीमार पड़ते तो उनको एक चुल्लू पानी कौन देगा? इसी चिंता के कारण भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी।
प्रश्न 3.
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएं किस तरह व्यक्त की?
उत्तर :
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखा । वे रोने धोने या शोक मनाने में विश्वास नहीं करते थे। अपने नित्य क्रम के अनुसार ही वे कबीर के पदों को गाते रहे। अपने बेटे के शव को सफेद कपड़े से ढंक दिया। उस पर कुछ फूल और तुलसीदल बिखेर दिया। सिरहाने एक दीपक जला दिया और उसके सामने जमीन पर आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे है।
वही पुराना स्वर, वही पुरानी तल्लीनता। वे गाते – गाते अपनी पुत्रवधू को समझाते कि रोने के बदले उत्सव मनाओ। आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिणी अपने प्रेमी से जा मिली भला इससे अधिक आनंद की बात क्या हो सकती है।
इस प्रकार बालगोबिन भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएं व्यक्त की । इस प्रकार का आचरण कोई सिद्धहस्त साधु ही कर सकता है। आम आदमी के बस की बात नहीं है यह।
प्रश्न 4.
भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
बालगोबिन भगत का व्यक्तित्व सबसे अनोखा था। वे साठ वर्ष के गोरे-चिट्टे व मॅझोले कद के थे। उनके बाल पके हुए थे। उनका चेहरा हमेशा सफेद बालों से जगमगाता रहता था। वे सन्यासियों की भांति जटाजूट नहीं रखते थे। प्राय: वे कम कपड़े पहनते थे। कपड़े के नाम पर कमर में एक लँगोटी और सिर पर कबीरपंथियों की तरह कनफटी टोपी पहनते थे।
सर्दियों में काला कम्बल ओढ़ते थे। माथे पर रामानंदी चंदन लगाते थे जो नाक से शुरू होकर ऊपर की ओर जाती थी। वे गले में तुलसी के जड़ों की बनी बेडौल माला पहनते थे। वे साधु के वेश में रहते थे। आचरण से भी पूर्णत: साधु थे। अपने जीवन में उन्होंने कबीर ‘साहब’ के आदर्शों का अनुकरण करते थे। कभी किसी से झगड़ा नहीं करते थे। जो बात है उसे खरा-खरा बोलने में विश्वास करते थे। कबीर के पदों को गाना उनके जीवन का सच्चा आनंद था। इस प्रकार बालगोबिन भगत का पहनावा यानी वेशभूषा और व्यक्तित्व सबसे अलग था।
प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरच का कारण क्यों थी ?
उत्तर :
बालगोबिन भगत की दिनचर्या सब लोगों से अलग थी। जब सारा गाँव सोता था तब वे जागते थे और कबीर के पद गाते रहते थे। कबीरपंथी होने के कारण उनके नियमों का चुस्तता से पालन करते थे। भोर से पहले न जाने कब उठकर दो मील दूर नदी में स्नान करते । गाँव के पोखर के पास भिडे पर खंजड़ी बजाकर गीत गाते ।
आषाढ़ के दिनों में कीचड़ से लथपथ धान की रोपाई करते समय जब गीत गाते थे बच्चे उछल पड़ते, औरतों के ओंठ कांप उठते। उनके संगीत में एक प्रकार का जादू था। वे उपवास रखकर गंगा स्नान करने जाते तो घर आकर ही कुछ खाते-पीते थे। कभी झूठ नहीं बोलते थे, खरा व्यवहार रखते थे।
किसी की चीज़ छूते नहीं थे, न बिना पूछे व्यवहार में लाते थे। यहाँ तक कि वे कभी दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते थे। मरणासन्न स्थिति में भी वही जवानीवाली आवाज, वही नियम, संगीत के प्रति वही तन्मयता सबको अचरज में डाल देती थी।
प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएं लिखिए।
उत्तर :
बालगोबिन भगत के संगीत में एक अद्भुत जादू था। वे सदैव कबीर ‘साहब’ के सीधे-सादे पद गाया करते थे। वे पद उनके कंठ से निकल कर सजीव हो उठते थे। स्वयं लेखक भी उनके संगीत पर मुग्ध थे। उनके गीतों को सुनकर बच्चे झूम उठते थे, औरतों के होंठ काँप उठते थे और वे भी गीत गुनगुनाने लगती थौं । हल चलाते हलवाहों के पैर विशेष क्रम ताल से उठने लगते थे, उनके संगीत की ध्वनि तरंगें लोगों को झंकृत कर देती थी।
उनके संगीत से ऐसा लगता था कि स्वर की एक तरंग स्वर्ग की ओर जा रही है, तो दूसरी तरंग लोगों के कानों की ओर । भयंकर सर्दी या उमसभरी गर्मी उनके स्वर को डिगा नहीं सकती। वे पूर्ण तल्लीनता के साथ गाते थे। झिाली की झंकार या दादुरों की टर्र-टर उनके संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सकती।
उनकी खंजड़ी डिमग-डिमग बजती रहती और वे गा रहे होते – गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया । भादों की आधी रात को भी वे गाने लगते तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा तो उस समय अंधेरे में अकस्मात कौंध उठनेवाली बिजली की तरह सभी को चौंका देती थी। यों बालगोबिन भगत का संगीत अद्भुत था।
प्रश्न 7.
कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे । पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
यह सच है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ में कई जगह इसका उल्लेख मिलता है। जो निम्नानुसार है
- बेटे का अग्निदाह अपनी पुत्रवधु से करवाया। सदियों से चली आ रही परंपरा का उन्होंने यहाँ खंडन किया। इस सामाजिक परंपरा को उन्होंने नकार दिया, जो स्त्रियों को श्मशान जाने से रोकती है।
- अपनी पुत्रवधु के लिए आदेश दिया कि उसकी दूसरी शादी करवा दी जाय । यहाँ पुनर्विवाह धार्मिक परम्परा के विरुद्ध है, इसे उन्होंने दृढ़ता के साथ नकार दिया।
- आम तौर पर साधु लोग भिक्षा मांगकर अपना गुजरान चलाते है। वे साधुओं द्वारा भिक्षा मांगकर भोजन करने की परंपरा के विरोधी थे। गंगा नदी स्नान करने जाते समय वे चार पाँच दिन तक कुछ नहीं खाते थे, केवल पानी पीकर रह जाते थे।
प्रश्न 8.
धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर-लहरिया किस तरह चमत्कृत कर देती थीं ? इस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
बालगोबिन भगत के संगीत में जादु था । इसे आषाढ़ में जब धान की रोपाई होती थी तब उनके संगीत से पूरा माहौल चमत्कृत हो उठता था। आषाढ़ की रिमझिम बारीस में पूरा गाँव खेतों में होता था। आसमान बादलों से घिरा, घूम का कोई नामोनिशान न रहता था। ठंडी हवा चलने लगती थी। उस समय अपने खेतों में धान की रोपाई करते बालगोबिन कीचड़ से सने होते।
जब वे गीत गाने लगते तो लगता उनके कंठ से निकला एक स्वर स्वर्ग की ओर जा रहा है और दूसरा पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों की ओर । बच्चे खेलते हुए झूम उठते । मेड़ पर खड़ी औरतों के ओठ कांप उठते थे, वे भी गुनगुनाने लगती थीं। हलवाहों के पैर संगीत की ताल पर उठने लगते, रोपाई करनेवालों की अंगुलियां एक अजीब क्रम में चलने लगती थौं । चारों तरफ का वातावरण अद्भुत हो जाता था।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 9.
पाठ के आधार पर बताएं कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हई है?
उत्तर :
बालगोबिन भगत कबीर को अपना साहब मानते थे। वे कबीरपंथी के नियमों व आदर्शों का अनुकरण करते थे। कबीर के प्रति उनकी श्रद्धा बहुत थी। वे कबीर के सीधे-साधे पदों को गाते थे। कबीर की तरह ही उनका व्यवहार था। वे सभी को खरी बात कहते थे, झूठ नहीं बोलते थे। वे कबीरपंथियों की तरह कनफटी टॉपी पहनते थे।
खेतों में जो फसल पैदा होती उसे पहले अपने ‘साहब’ को भेंट के रूप में चढ़ाते थे, जो प्रसाद के रूप में मिलता उसे घर लातें और उसी में से गुजारा करते थे। अपने बेटे की मृत्यु पर शोक न मनाकर वे गीत गाने में ही मग्न थे। उनके अनुसार आत्मा का परमात्मा से मिलन हो गया तो शोक की बजाय वे अपनी पुत्रवधू को उत्सव मनाने के लिए कहते हैं। उपरोक्त सभी घटनाएं बताती हैं कि बालगोबिन भगत कबीर पर बहुत श्रद्धा रखते थे।
प्रश्न 10.
आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?
उत्तर :
कबीर और बालगोबिन भगत के विचारों में काफी समानता है। कबीर का फकीरी स्वभाव, सरल-सादा जीवनशैली, कुरीतियों व बाह्याडंबरों का खुलकर विरोध करना, समाज सुधार की लगन, व्यवहार में खरापन जैसी विशेषताओं से बालगोबिन भगत बहुत आकर्षित हुए होंगे। इन्हीं गुणों को उन्होंने अपने जीवन में अपना लिया होगा और धीरे-धीरे उनकी कबीर में आस्था बढ़ती गई होगी। और कबीर ही उनके साहब बन गए थे।
प्रश्न 11.
गांव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर :
ज्येष्ठ की भयंकर गर्मी से त्रस्त गांवों के लोग आषाढ़ मास का बेसब्री से इंतजार करते हैं। किसानों को खेतों में बुआई करने के लिए वर्षा के आगमन की प्रतीक्षा रहती है। आषाढ़ लगते ही बादल छा जाते हैं, रिमझिम-रिमझिम बारीस से पूरा वातावरण शीतलता से भर उठता है। वातावरण में ठंडक आने से उदासीन मन प्रफुल्लित हो उठता है।
बारीस होने पर किसान, बच्चे, महिलाएं सभी खुश हो उठते हैं। खेतों में धान की रोपाई करने के लिए सारा गाँव खेतों में उमड़ पड़ता है। बच्चे धान की रोपाई करते समय कीचड़ में खेलते हैं, हलवाहे हल चलाते हैं, महिलाएं कलेवा लेकर मेड़ों पर इंतजार करती हैं। इस तरह आषाढ़ लगते ही गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश उल्लास से भर उठता है।
प्रश्न 12.
“ऊपर की तस्वीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।” क्या साधु की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति साधु’ है?
उत्तर :
नहीं, साधु की पहचान पहनावे के आधार पर कदाप नहीं होनी चाहिए। व्यक्ति अपने कर्म व स्वभाव के आधार पर जाना जाता है। पहनावे से साधु हो और मन में छल-कपट और हीन कृत्य करें तो उसे साधु नहीं कहा जा सकता। हमारे अनुसार व्यक्ति बिना साधु की वेशभूषा धारण किए केवल अपने आचरण में शुद्धता लाए, नि:स्वार्थ भावना से समाज सेवा करे, किसी को अपनी वाणी द्वारा आहत न करे व अपने कर्म करके जीवन-यापन करे वही व्यक्ति साधु कहलाएगा। अतः सांसारिक जीवन जीते हुए व्यक्ति अपने आचरण व कर्म से साधु हो सकता है। साधु होने के लिए किसी निश्चित वेशभूषा की जरूरत नहीं।
प्रश्न 13.
मोह और प्रेम में अंतर होता है । भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे?
उत्तर :
मोह और प्रेम दोनों में अंतर है। मोह में व्यक्ति की स्वार्थभावना छिपी होती है, जिसमें व्यक्ति अपना हित-अहित नहीं देख पाता। प्रेम शुद्ध सात्विक भावना है, जिसमें स्वार्थ की भावना नहीं होती। भगत कबीर पंथी थे। वे प्रेम और मोह के भाव को भलिभाँति जानते थे। जब उनके बेटे की मृत्यु हुई तो बेटा खोने के कारण रोये बिलखे नहीं बल्कि उसी तल्लीनता से गाते रहे।
उनके अनुसार आत्मा परमात्मा से मिल गई तो दुःख नहीं बल्कि उत्सव मनाने को कहते हैं। दूसरा प्रसंग वहाँ है जहां वे मोह नहीं प्रेम दर्शाते हैं । अपनी पुत्रवधू को उसके भाई के हवाले कर उसे पुर्नविवाह की सलाह देते हैं। यदि उनके भीतर मोह की भावना होती तो वे अपना स्वार्थ साधने के लिए अपनी पूत्रवधू को अपने साथ रखते । जिससे वह उन्हें, भोजन आदि बनाकर देती, उनका ख्याल रखती।
किन्तु यहाँ पर भी पुत्रवधू से मोह नहीं निःस्वार्थ प्रेमभावना के कारण अपने सुखों का त्याग कर उसे पुनर्विवाह करने को कहते हैं। वे अपनी पुत्रवधू के भविष्य को अपने से अधिक महत्त्व देते हैं। अत: इन दो प्रसंगों के आधार पर कह सकते हैं कि मोह और प्रेम में अंतर होता है।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 14.
इस पाठ में आए कोई दस क्रियाविशेषण छाँटकर लिखिए और उसके भेद भी बताइए।
उत्तर :
इस पाठ में आए दस क्रियाविशेषण निम्नानुसार है – क्रियाविशेषण
- कपड़े बिलकुल कम पहतने थे। (परिमाणवाचक क्रियाविशेषण)
- उनके मधुर गान सदा-सर्वदा ही सुनने को मिलते। (कालवाचक क्रियाविशेषण)
- इन दिनों वे सवेरे ही उठते थे। (कालवाचक क्रियाविशेषण)
- बच्चे खेलते हुए झूम रहे थे। (रीतिवाचक क्रियाविशेषण)
- उनकी अंगुलियाँ खैजड़ी पर लगातार चल रही थीं। (रीतिवाचक क्रियाविशेषण)
- हरवर्ष गंगा स्नान करने के लिए जाते। (कालवाचक क्रियाविशेषण)
- मैं कभी-कभी सोचता हूँ। (कालवाचक क्रियाविशेषण)
- धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगता। (रीतिवाचक क्रियाविशेषण)
- मैं जाड़े से कंपकंपा रहा था। (रीतिवाचक क्रियाविशेषण)
- हंसकर टाल देते रहे। (रीतिवाचक क्रियाविशेषण)