Gujarat Board Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़
Gujarat Board Solutions Class 10 Hindi Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़
GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़
लखनवी अंदाज़ Summary in Hindi
लेखक- परिचय :
यशपाल का जन्म सन् 1903 में पंजाब के फिरोजपुर छावनी में हुआ था। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा काँगड़ा से ग्रहण किया। बाद में लाहौर के नेशनल कॉलेज से उन्होंने बी.ए. किया। वहाँ की क्रांतिकारी धारा से जुड़ने के बाद कई बार जेल भी गए । उनको मृत्यु सन् 1976 में हुई।
यशपाल हिन्दी साहित्य के आधुनिक कथाकारों में प्रमुख हैं। इनकी रचनाओं में आम व्यक्ति के सरोकारों की उपस्थिति है। इन्होंने यथार्थवादी शैली में अपनी रचनाएँ लिखी हैं। इनकी रचनाओं में सामाजिक विषमता, राजनैतिक पाखण्ड और रूढ़ियों के खिलाफ करारा प्रहार दिखलाई पड़ता है। उनकी कहानियों में ‘ज्ञानदान’, ‘तर्क का तूफान’, ‘पिंजरे की उड़ान’, ‘वो दुलिया’, ‘फूलों का कुर्ता’, ‘देशद्रोही’ उल्लेखनीय है।
‘झूठा सच’ इनका प्रसिद्ध उपन्यास है जो देशविभाजन की त्रासदी पर आधारित है। इसके अतिरिक्त अमिता’, ‘दिव्या’, ‘पार्टी कामरेड’, ‘दादा कामरेड’, ‘मेरी तेरी उसकी बात’ आदि इनके प्रमुख उपन्यास हैं। भाषा की स्वाभाविकता और जीवन्तता इनकी रचनाओं की विशेषता है।
साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में इनके योगदान के लिए भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। प्रस्तुत पाठ ‘लखनवी अंदाज’ में दिखावा पसंद लोगों की शैली का वर्णन किया है। एक नवाब जो ट्रेन में इनके साथ सफर करता है वह अपनी नवाबी का प्रदर्शन करते हुए खीरे की फांकों को खाने की जगह सूंघकर रसास्वादन करता हैं और सूंघते हुए खीरे की एक-एक फाँक को खिड़की के बाहर फेंकते जाते है। इसके बाद डकार लेकर तृप्त होने का नाटक करता है। इस व्यवहार को देख लेखक सोचते हैं कि बिना घटना, विचार और पात्रों के नई कहानी भी लिखी जा सकती है।
पाठ का सार (भाव) :
लेखक की रेलयात्रा : लेखक सेकन्ड क्लास में जाना नहीं चाहते थे क्योंकि उसके दाम अधिक थे। किन्तु वहाँ भीड़ कम होगा और वे अपनी नई कहानी के संबंध में सोच सकेंगे और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य को देख सकेंगे इसलिए उन्होंने सेकन्ड क्लास की टिकट लेकर यात्रा करने लगे। गाड़ी छूटनेवाली थी। दौड़कर डिब्बे में चढ़ गए।
लेखक को अनुमान था कि डिब्बा खाली होगा, उसने देखा कि एक बर्थ पर लखनऊ के नवावी अंदाज में एक सफेदपोश सज्जन पालथी मारकर बैठे हैं, जिनके सामने तौलिए पर दो चिकने खीरे रखे हैं। लेखक का सहसा वहाँ आ जाना उन्हें अच्छा नहीं लगा। नवाब साहब ने लेखक में कोई रूची नहीं दिखलाई और न लेखक ने अपनी ओर से कोई प्रयास किया।
नवाब साहब का लेखक के प्रति उदासीनता : लेखक सामने बैठे नवाब साहब के विषय में सोचने लगा कि नवाब साहब ने किफायत की दृष्टि से सेकन्ड क्लास का टिकट खरीदा होगा। अब उन्हें अच्छा नहीं लग रहा होगा कि कोई सेकन्ड क्लास में सफर करता हुआ उन्हें देखे। सफर का वक्त काटने के लिए उन्होंने खीर लिए होंगे। हो सकता है उन्हें किसी के सामने खीरा खाने में संकोच हो रहा होगा। नवाब साहब लेखक के प्रति उदासीन होकर खिड़की के बाहर देखते रहे।
नवाब साहब का भाव परिवर्तन : अचानक नवाब साहब ने लेखक को देखकर संबोधन किया ‘आदाब-अर्ज’, जनाब खीरे का शौक फरमाएगे, नवाब का यह भाव-परिवर्तन लेखक को अच्छा नहीं लगा। लेखक समझ गए कि वे मात्र औपचारिकता के लिए पूछ रहे हैं। लेखक ने ‘शुक्रिया, किबला शौक फरमाए’ कहकर इन्कार कर दिया।
नवाब साहब का खीरा काटना : नवाब साहब ने दृढ़ निश्चयता के साथ खीरे के नीचे बिछे तौलिया को सामने बिछाया। खिड़की के बाहर खीरे को धोया, तौलिए से पोछा और अपनी जेब से चाकू निकालकर खीरे का सिर काट कर चाकू से खूब गोदा, झाग निकाला, झागवाला भाग काटकर खीरे को छीला फिर उसकी फाके काटकर तौलिए पर करीने से रख दिया।
नवाब साहब ने फाको पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुखी बुरक दी। लेखक उनकी भाव-भंगिमा देख रहे थे। लेखक को नवाब साहब ने फिर खाने के लिए कहा किन्तु एक बार मना करने पर अपना स्वाभिमान बचाए रखने के लिए इन्कार कर दिया। यद्यपि, ताजे खीरे के पनियारी फाँकों को देख लेखक के मुंह में पानी आ गया।
खीरे के फाके को खिड़की के बाहर फेंकना : नवाब साहब ने नमक-मिर्च लगी खीरे की फांकों की ओर एक बार फिर देखा, फिर खिड़की के बाहर देखा । लम्बी साँस ली। फिर एक फांक उठाई, उसे होंठो तक ले गए. सूघा, स्वाद के आनंद में पलके मुंद गई। मुंह में भर आए पानी को गले में उतार लिया और फांक को खिड़की के बाहर फेंक दिया।
इस तरह एक-एक फांक उठाते, सूंघते और बाहर फेंकते जाते । उसके बाद तौलिए से हाथ और होंठ पोंछकर गर्व से लेखक की ओर देखने लगे। इसके बाद वे जैसे इस काम को करने से थक गए हों, वे लेट गए। थोड़ी ढेर में डकार भी ले ली।
लेखक की सोच और प्रेरणा : लेखक नवाब की इस प्रक्रिया को देख शर्म महसूस कर रहे थे। वे सोच रहे थे कि खीरों के प्रयोग की नई प्रक्रिया अच्छी जरूर है किन्तु क्या इस तरह से उदर की तृप्ति हो सकती है ? नवाब साहब के डकार से लेखक के ज्ञान-चक्षु खुल गए । सोचने लगे कि खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से पेट भर जाने का डकार आ सकता हैं तो बिना विचार, घटना और पात्रों के, लेखक की इच्छा मात्र से नई कहानी क्यों नहीं बन सकती?
शब्दार्थ और टिप्पणी:
- मुफस्सिल – केन्द्रीय स्थान और उसके आस-पास
- स्थानीय उतावली – जल्दीबाजी
- प्रतिकूल – विपरीत
- निर्जन – एकांत
- सफेद पोश – भद्रव्यक्ति
- ठाली-बैठना – कुछ काम न करना
- लथेड़ लेना – लपेट लेना
- एहतियात – सावधानी
- करीने से – ढंग से
- किफायत – कम खर्च
- कनखियाँ – तिरछी नजर से देखना
- गौर करना – ध्यान से देखना
- सुखी – लाली
- भाव-भंगिमा – मन के विचार को प्रकट करनेवाली शारीरिक क्रिया
- भाप लेना – समझ जाना
- स्फरन – फड़कना, प्लावित
- होना – पानी भर जाना
- शराफत – सज्जनता, शालीनता
- गुमान – घमंड
- पनियाती – रसौली
- तलब – इच्छा
- मेदा – पेट
- सतृष्ण – इच्छा सहित
- तसलीम – सम्मान में
- तहजीब – शिष्टता
- नफासत – स्वच्छता
- नफीस – बढ़िया
- एब्सट्रेक्ट – सूक्ष्म
- सकील – आसानी से ना पचनेवाला
- नामुराद – बेकार चीज
- ज्ञान-चक्षु – ज्ञान रूपी चक्षु
- लजीज – स्वादिष्ट
- सिर खम करना – सिर झुकाना
मुहावरे और अर्थ :
- कनखियों से देखना – तिरछे देखना, आंखों की कारों से देखना।
- पानी मुंह में आना – खाने की तीव्र इच्छा होना।
वाक्य प्रयोग :
- विवाह के समय दुल्हन दूल्हे को कनखियों से देख रही थी।
- स्वादिष्ट व्यंजनों की सुगंध मात्र से अविनाश के मुंह में पानी भर गया।
Hindi Digest Std 10 GSEB लखनवी अंदाज़ Important Questions and Answers
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में लिखिए :
प्रश्न 1.
लेखक ने सेकन्ड क्लास का टिकट क्यों लिया ?
उत्तर :
लेखक अपनी नई कहानी के संबंध में सोच सकने और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के लिए उन्होंने सेकंड क्लास का टिकट लिया। यद्यपि इसमें सफर करने के लिए दाम अधिक देने पड़ते हैं।
प्रश्न 2.
नवाब साहब को लेखक के सामने झिझक क्यों हो रही थी?
उत्तर :
लेखक का आना नवाब साहब को अच्छा नहीं लगा। वे यह नहीं चाहते थे कि कोई सफेदपोश उन्हें मझले दर्जे में सफर करते देखे। नवाब को खीरे जैसे अपदार्थ खाते कोई देखे तो उनकी नवाबी शान धूल में मिल जाएगी। इसलिए नवाब को लेखक के सामने झिझक हो रही थी।
प्रश्न 3.
लेखक ने खीरा खाने से इंकार क्यों किया?
उत्तर :
पहली बार जब नवाब साहब ने खीरा खाने के लिए पूछा तो लेखक ने इन्कार कर दिया था अत: जब दूसरी बार पूछा गया तो आत्मसम्मान की रक्षा
के लिए उन्होंने खीरा खाने से मना कर दिया।
प्रश्न 4.
नवाब साहब ने खीरे का क्या किया?
उत्तर :
नवाब साहब ने खीरे को धो-पोछकर छीलकर उसे काट कर करीने से तौलिए पर सजा दिया। एक-एक फाँक सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया।
प्रश्न 5.
डिब्बे में घुसते ही लेखक ने क्या देखा?
उत्तर :
लेखक ने दौड़कर ट्रेन पकड़ा। जैसे ही वे डिब्बे में घुसे उन्होंने देखा कि एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक भद्र व्यक्ति पालथी मारकर बैठे हैं। उनके सामने दो ताजे चिकने खोरे तौलिए पर रखे थे।
प्रश्न 6.
नवाब साहब के खीरे खाने के नये तरीका का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
नवाब साहब ने खाने के लिए खीरे को धोकर काटा और उसे करीने से सजा दिया। उसके बाद वे खीरे को होंठ तक लाए, खीरे की सुगन्ध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट हो उन्होंने खीरे की एक एक फांकों को खिड़की के बाहर फेंक दिया। अर्थात् खीरे को खाने के बजाय सूंघकर स्वाद की कल्पना करके फेंक देना उनका नया तरीका था।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपूर्वक लिखिए :
प्रश्न 1.
‘लेखक ने लखनवी अंदाज पाठ में नवाबी परम्परा पर करारा व्यंग्य किया है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक इस पाठ के द्वारा यह बताना चाहते हैं कि नवाब लोग अपनी नवाबी दिखाने के लिए झूठा आडंबर रचते हैं। प्रस्तुत पाठ में नवाब साहब मात्र सूंघकर उदर पूर्ति का ढोंग रचते हैं और सूंघने मात्र से ही उनकी भूख शांत हो गई और वे डकार भी लेते हैं। वास्तविकता यह है कि व्यक्ति की भूख भोजन की प्रशंसा करने या सूघने मात्र से शांत नहीं होती।
कल्पना करने से उदर-पूर्ति नहीं हो सकती। उनकी नवाबी शान अब नहीं रही यह इस बात से पता चलता है कि वे सेकन्ड क्लास में यात्रा कर रहे थे। फिर भी न जाने क्यों नवाब लोग अपनी नवाबी अंदाज या परंपरा का दिखावा करते हैं। लेखक ने इस पर करारा व्यंग्य करते हुए कहा कि यदि बिना खाये व्यक्ति की भूख शांत हो सकती है, तो बिना विचार, घटना और पात्र के कहानी भी लिखी जा सकती है।
प्रश्न 2.
लेखक ने नवाब साहब द्वरा खीरे खाने के आग्रह को क्यों नकार दिया होगा ? तर्क सहित उत्तर लिखिए।
उत्तर :
लेखक जब सेकन्ड क्लास के डिब्बे में चढ़ा, जहाँ नवाब साहब सामने की बर्थ पर बैठे थे, उन्होंने लेखक के आने पर उन्हें नजरअंदाज कर दिया। और खिड़की के बाहर देखने लगे। उनके हाव-भाव से लगा कि लेखक का आना उन्हें अच्छा नहीं लगा। लेखक भी स्वाभिमानी थे। वे भला नवाबों के सामने कहाँ झुकनेवाले थे। जब प्रथम बार नवाब साहब ने खीरे खाने का आग्रह किया तो उन्होंने इन्कार कर दिया। नवाब साहब ने लेखक के आने पर न जिज्ञासा दिखाई कि वे कौन हैं और न उनसे बातचीत करने की कोशिश की। इसीके कारण लेखक ने नवाब साहब द्वारा खीरे खाने के आग्रह को नकार दिया होगा।
प्रश्न 3.
लेखक और नवाब साहब दोनों में से आप किसके स्वभाव को अच्छा कहेंगे? क्यों ?
उत्तर :
मेरे अनुसार लेखक और नवाब साहब दोनों में से मैं नवाब साहब को ही अच्छा कहूँगा क्योंकि नवाब साहब अपनी नवाबी अंदाज में दिखावा अवश्य करते हैं किन्तु लेखक से बातचीत की पहल वही करते हैं। लेखक का समाज में नाम-प्रतिष्ठा सब कुछ है किन्तु उन्होंने सामने से नवाब साहब से बातचीत करने की कोई चेष्टा नहीं की। वे भी गर्व से पूर्ण शक्ति का दिखावा ही करते हैं।
वे चाहते तो खुद पहल करके नवाब साहब से बातचीत प्रारंभ कर शिष्टाचार का परिचय दे सकते थे। किन्तु उन्होंने तो बातचीत करने के बजाय आखें चुरा ली। नवाब साहब दो बार उनसे खीरा खाने का आग्रह करते हैं, यहाँ पर भी लेखक के भावों में कोई परिवर्तन नहीं आता और वे इन्कार कर देते हैं। यहाँ पर लेखक अपने घमण्डी स्वभाव का प्रदर्शन करता है। अत: मेरे अनुसार नवाब साहब का स्वभाव लेखक से अच्छा है।
प्रश्न 4.
‘लखनवी अंदाज’ कहानी के माध्यम से लेखक समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?
अथवा
लखनवी अंबाज कहानी का संदेश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘लखनवी अंदाज’ कहानी में लेखक ने नवाबी परम्परा पर करारा व्यंग्य किया है। नवाब साहब की नवावी तो चली गई किन्तु अभी भी वे वास्तविकता से दूर है। वे सेकन्ड क्लास की यात्रा तो करते हैं साथ में उम्मीद करते हैं कि उन्हें ऐसा करते कोई न देखे। वे खीरे को मात्र सूंघकर पेट भरने का दिखावा करते हैं और उदर-पूर्ति का दिखावा करने के लिए झूठा डकार भी निकालते हैं।
जबकि वास्तविकता यह है कि भूख केवल सूंघने से शांत नहीं होगी। उसके लिए भोजन आवश्यक है। लेखक बताना चाहते हैं कि व्यक्ति को यथार्थ में जीना चाहिए। हमें बनावटीपूर्ण जीवन-शैली या झूठा दिखावा करने की आदत छेड़ देनी चाहिए। हमें हर मनुष्य को समान मानकर उसके साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए। ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए कि हम दूसरों के उपहास के पात्र बने। लेखक यही संदेश इस पाठ के द्वारा देना चाहते हैं।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1. मुफस्सिल की पैसेंजर ट्रेन चल पड़ने की उतावली में फूंकार रही थी। आराम से सेकंड क्लास में जाने के लिए दाम अधिक लगते हैं। दूर तो जाना नहीं था। भीड़ से बचकर, एकांत में नयी कहानी के संबंध में सोच सकने और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देख सकने के लिए टिकट सेकंड क्लास का हौ ले लिया। गाड़ी छूट रही थी। सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर, ज़रा दौड़कर उसमें चढ़ गए।
अनुमान के प्रतिकूल डिब्बा निर्जन नहीं था। एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे। सामने दो ताजे-चिकने खोरे तौलिए पर रखे थे। डिब्बे में हमारे सहसा कूद जाने से सज्जन की आखों में एकांत चिंतन में विघ्न का असंतोष दिखाई दिया। सोचा, हो सकता है, यह भी कहानी के लिए सूझ की चिंता में हों या खीरे-जैसी अपदार्थ वस्तु का शौक करते देखे जाने के संकोच में हों।
प्रश्न 1.
लेखक ने सेकन्ड क्लास का टिकट क्यों खरीदा?
उत्तर :
लेखक भीड़ से बचकर एकांत में नयी कहानी के संबंध में सोचना चाहते थे तथा खिड़की से प्राकृतिक दृश्य देखना चाहते थे इसलिए उन्होंने सेकन्ड क्लास का टिकट खरीदा।
प्रश्न 2.
लेखक के अनुमान के अनुसार डिब्बा कैसा था ?
उत्तर :
लेखक का अनुमान था कि डिब्बा खाली होगा किन्तु ऐसा नहीं था। वहाँ एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मार कर बैठे थे।
प्रश्न 3.
नवाब की आंखों में असंतोष का भाव क्यों दिखाई दिया ?
उत्तर :
गाड़ी छूटने को थी। वे सहसा उस सेकन्ड क्लास के डिब्बे में कूद जाने से नवाब के एकांत चिंतन में विघ्न पड़ा इसलिए उनकी आँखों में असंतोष का भाव दिखाई दिया।
प्रश्न 4.
प्रतिकूल तथा सज्जन शब्द का विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर :
‘प्रतिकूल’ का विलोम शब्द है ‘अनुकूल’ तथा ‘सज्जन’ का विलोम शब्द है ‘दुर्जन’।
2. नवाब साहब ने संगीत के लिए उत्साह नहीं दिखाया। हमनें भी उनके सामने की बर्थ पर बैठकर आत्मसम्मान में आँखे चुरा लीं। ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है। नवाब साहब को असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान करने लगे। संभव है, नवाब साहब ने बिलकुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफायत के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीद लिया हो और सब गंवारा न हो कि शहर का कोई सफेदपोश उन्हें मंझले दर्जे में सफर करता देखे। अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खौरे खरौदे होंगे और अब किसी सफेदपोश के सामने खीरा कैसे खाएं? हम कनखियों से नवाब साहब की ओर देख रहे थे। नवाब साहब कुछ देर गाड़ी की खिड़की से बाहर देखकर स्थिति पर गौर करते रहे।
प्रश्न 1.
लेखक ने सामने की बर्थ पर बैठकर अपनी आंखें क्यों चुरा ली ?
उत्तर :
लेखक जब ट्रेन के उस सेकन्ड क्लास डिब्बे में चढ़े तो नवाब ने संगति के लिए कोई उत्साह नहीं दिखाया। इसलिए उनके सामने की बर्थ पर बैठकर आत्मसम्मान में आखे चुरा ली।
प्रश्न 2.
लेखक ने नवाब साहब के विषय में क्या अनुमान लगाया ?
उत्तर :
लेखक ने नवाब साहब की असुविधा और संकोच के कारण का अनुमान लगाया कि नवाब साहब ने बिलकुल अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफायत के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीद लिया हो और अब गंवारा न हो कि शहर का कोई सफेदपोश उन्हें मंझले दर्जे में सफर करता देखे।
प्रश्न 3.
‘हम कनखियों से नवाब साहब की ओर देख रहे थे।’ वाक्य का प्रकार बताइए।
उत्तर :
‘हम कनखियों से नवाब साहब की ओर देख रहे थे।’ यह सरल वाक्य का प्रकार है।
3. लखनऊ स्टेशन पर खीरा बेचनेवाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं। ग्राहक के लिए जीरा-मिला नमक और पिसी हुई लाल मिर्च की पुड़िया भी हाजिर कर देते हैं। नवाब साहब ने बहुत करीने से खीरे की फांकों पर जीरा-मिला नमक और लाल मिर्च की सुखी बुरक दी। उनकी प्रत्येक भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से स्पष्ट था कि उस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे से रसास्वादन की कल्पना से प्लावित हो रहा था।
हम कनखियों से देखकर सोच रहे थे, मियाँ रईस बनते हैं, लेकिन लोगों की नजरों से बच सकने के ख्याल में अपनी असलियत पर उतर आए हैं। नवाब साहब ने फिर एक बार हमारी ओर देख लिया, ‘वल्लाह, शौक कीजिए, लखनऊ का बालम खीरा है!’ नमक-मिर्च छिड़क दिए जाने से ताजे खीरे को पनियाती फाँकें देखकर पानी मुंह में जरूर आ रहा था, लेकिन इनकार कर चुके थे। आत्मसम्मान निबाहना ही उचित समझा।
प्रश्न 1.
ग्राहक को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए खीरा बेचनेवाले क्या करते हैं?
उत्तर :
ग्राहक को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए खीरा बेचनेवाले खीरे के इस्तेमाल का तरीका जानते हैं। वे ग्राहक के लिए जीरा-मिला नमक और पिसी हुई लाल मिर्च की पुड़िया भी हाजिर कर देते हैं।
प्रश्न 2.
लेखक के मुंह में पानी क्यों आ रहा था ?
उत्तर :
नवाब खीरे की फाँके काटकर उसे करीने से सजा दिया था। उन फांकों पर उन्होंने जीरा मिश्रित नमक और लाल मिर्च की सुखी बुरक दी। नमक मिर्च छिड़क दिए जाने से ताजे खीरे की पनियाती फाँके देखकर लेखक के मुंह में पानी आ गया।
प्रश्न 3.
‘लाल मिर्च’ तथा ‘नमक मिर्च का समासभेद बताइए।
उत्तर :
समास भेद निम्नानुसार है –
लाल मिर्च – कर्मधारय समास
नमक मिर्च – द्वन्द्व समास
4. नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फांकों की ओर देखा। खिड़की के बाहर देखकर दीर्घ निश्वास लिया। खीरे की एक फाँक उठाकर होठों तक ले गए। फाँक को सूंघा। स्वाद के आनंद में पलके मुंद गईं। मुंह में भर आए पानी का घुट गले से उतर गया। तब नवाब साहब ने फांक को खिड़की से बाहर छोड़ दिया। नवाब साहब खीरे की फांकों को नाक के पास ले जाकर वासना से रसास्वादन कर खिड़की के बाहर फेंकते गए।
नवाब साहब ने खीरे की सब फांकों को खिड़की के बाहर फेंककर तौलिए से हाथ और होंठ पोंछ लिए और गर्व से गुलाबी आंखों से हमारी ओर देख लिया मानो कह रहे हों यह है खानदानी रईसों का तरीका ! नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल में थककर लेट गए। हमें तसलीम में भी खम कर लेना पड़ा – यह है खानदानी तहजीब, नफासत और नज़ाकत !
हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, नफीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीका जरूर कहा जा सकता है। परंतु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है? नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊंचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, ‘खीरा लजीज होता है लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है।’
प्रश्न 1.
नवाब साहब ने कटे हुए खीरे का क्या किया?
उत्तर :
नवाब साहब कटे हुए खीरे को नाक के पास ले जा कर सूंघा और एक-एक करके उन्होंने खीरे की सभी फांकों को खिड़की के बाहर फेंक दिया।
प्रश्न 2.
नवाब साहब अपने खीरा खाने के ढंग के माध्यम से क्या दिखाना चाहते थे?
उत्तर :
नवाब साहब खीरे के सुगंध का रसास्वादन करके तृप्त होने के अपने विचित्र ढंग के माध्यम से अपनी रईसी और नवाबी का प्रदर्शन करना चाहते थे। वे लेखक को ये दिखाना चाहते थे कि नवाब लोग खीरा जैसी साधारण-सी वस्तु का रसास्वादन इसी प्रकार करते हैं।
प्रश्न 3.
‘लजीज’ और ‘नामुराद’ शब्द का अर्थ लिखिए।
उत्तर :
‘लजीज’ का अर्थ है स्वादिष्ट और ‘नामुराद’ का अर्थ है बेकार चीज!
अति लघुत्तरी-प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर चुनकर लिखिए।
प्रश्न 1.
आराम से सेकन्ड क्लास में जाने के लिए यात्रियों को क्या करना पड़ता है?
(क) कम दाम देना पड़ता है।
(ख) अधिक दाम देना पड़ता है।
(ग) रुपये नहीं देना पड़ता है।
(घ) टिकट लेना पड़ता है।
उत्तर :
(ख) अधिक दाम देना पड़ता है।
प्रश्न 2.
लेखक को कौन-सी पुरानी आदत हैं?
(क) कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
(ख) लिखने रहने की पुरानी आदत है।
(ग) सोते रहने की पुरानी आदत है।
(घ) ट्रेन में सफर करने की पुरानी आदत है।
उत्तर :
(क) कल्पना करते रहने की पुरानी आदत है।
प्रश्न 3.
लेखक ने खीरा खाने से क्यों इन्कार कर दिया?
(क) खीरा खाना पसन्द नहीं था।
(ख) खीरा देखकर उनके मुंह में पानी आ रहा था।
(ग) आत्मसम्मान की रक्षा के लिए।
(ग) पेट खराब होने के कारण।
उत्तर :
(ग) आत्मसम्मान की रक्षा के लिए
प्रश्न 4.
नवाब साहब ने नमक-मिर्च लगी खीरें की फांकों का क्या किया?
(क) लेखक को दे दिया
(ख) नवाब साहब खुद खा गए
(ग) खिड़की के बाहर फेंक दिया
(ग) करीने से सजा दिया।
उत्तर :
(ग) खिड़की के बाहर फेंक दिया।
सविग्रह समासभेद बताइए :
- भावपरिवर्तन – भाव में परिवर्तन – तत्पुरुष समास
- रसास्वादन – रस का आस्वाद – तत्पुरुष समास
- ज्ञान-चक्षु – ज्ञान के चक्षु – तत्पुरुष समास
- ज्ञान-चक्षु – ज्ञान रूपी चक्षु – कर्मधारय समास
भाववाचक संज्ञा बनाइए:
- प्रतिकूल – प्रतिकूलता
- सज्जन – सज्जनता
- नाजुक – नजाकत
- नफीस – नफासत
- सुर्ख – सुखी
विलोम शब्द लिखिए :
- प्रतिकूल × अनुकूल
- निर्जन × जनमेदनि
- असंतोष × संतोष
- असुविधा × सुविधा
- किफ़ायत × फिजूलखर्ची
- स्वर्ग × नरक
दो-दो समानार्थी शब्द दीजिए :
- आराम – विश्राम, विराम
- सज्जन – भद्र, सद्पुरुष
- उत्साह – उल्लास, जोश
- किफ़ायत – मितव्ययिता
- तृष्णा – लोभ, लालच
संधि-विच्छेद कीजिए:
- सज्जन = सत् + जन
- निर्जन = निः(निर्) + जन
- निश्वास = निः + श्वास
- रसास्वादन = रस + आस्वादन
उपसर्ग/प्रत्यय अलग कीजिए :
- सतृष्ण – उपसर्ग
- पनियाती – प्रत्यय आती
- प्लावित – प्रत्यय
- प्राकृतिक – प्रत्यय
- खानदानी – प्रत्यय ई
- किफ़ायती – प्रत्यय ई
विशेषण बनाइए:
- प्रतिकूलता – प्रतिकूल
- सज्जनता – सज्जन
- नजाकत – नाजुक
- नफासत – नफीस
- सुर्थी – सुर्ख
- संतोष – संतोषी, संतुष्ट
पाठ से संयुक्त क्रियाएं छोटिए :
- कह दिया – कहना और देना से
- सुनाई दिया – सुनना और देना से
- देख लिया – देखने और लेना से
- खुल गए – खुलना और जाना से
- बन सकती – बनना और सकना
- फेंकते गए – फेंकना और जाना से
- लेट गए – लेटना और जाना से
- पोंछ लिए – पोंछना और लेना से
- भर जाने – भरना और जाना से
- डाल देता है – डालना-देना-होना से
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प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.
लेखक को नवाब के किन-किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सक नहीं है?
उत्तर :
लेखक जब सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़े तो उनको देखकर नवाब साहब के चेहरे पर असंतोष का भाव छा गया। उन्हें लगा कि उनके एकान्तवास में खलेल पड़ गयी हो । वे अनमने होकर खिड़की के बाहर झांकते रहे और लेखक को न देखने का नाटक करने लगे। नवाब साहब के इन हाव-भावों को देखकर लेखक अनुमान लगा रहा था कि वे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं है।
प्रश्न 2.
नवाब साहब ने बहुत ही यल से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका अंततः सूंघकर खिड़की के बाहर फेंक दिया । उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा ? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?
उत्तर :
नवाबों की आदत है अपनी शान-शौकत का प्रदर्शन करना । उन्होंने प्रदर्शन करने के लिए ही खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका अतत: सूंघकर खिड़की के बाहर फेंक दिया। वास्तव में वे अपनी नवाबी का प्रदर्शन करने के लिए ही उन्होंने खीरे को सूंघकर बाहर फेंक दिया। उनके अनुसार खीरा जैसी तुच्छ वस्तु खाकर अपना तौहीन नहीं करवाना चाहते थे। खीरा खाकर पेट भरना आम लोगों की बात है। उनका ऐसा करना नवाबी झाड़ना अर्थात् अमीरी का प्रदर्शन करने की ओर संकेत करता है।
प्रश्न 3.
बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती हैं ? यशपाल के इस विचार से आप कहां तक सहमत हैं?
उत्तर :
‘लखनवी अंदाज’ के माध्यम से यशपाल का कहना है कि जब खीरा को सूंघकर व्यक्ति तृप्ति का डकार ले सकता है तो बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी लिखी जा सकती है। मैं यशपालजी के इस विचार से सहमत नहीं हूँ। हर कहानी का कोई न कोई उद्देश्य होता है, उसमें पात्र और घटनाओं विचारों की प्रस्तुति होती है। उसमें किसी चरित्र का वर्णन होता है, इन सभी के कारण कहानी में रोचकता आती है, पाठकों को पढ़ने की जिज्ञासा होती है। कहानी में यह सब न होने पर वह कपोल कल्पना मात्र बन जाएगी। इसलिए मेरे अनुसार कहानी में विचार घटना, पात्र का होना
आवश्यक है। तभी कहानी रोचक होगी।
प्रश्न 4.
आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?
उत्तर :
मेरे अनुसार इस निबंध का और नाम हो सकता है –
- थोथा प्रदर्शन
- थोथा चना बाजे घना
- नवाबी दिखावा आदि
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 5.
क. नवाब साहब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
नवाब द्वारा खौरा काटने की प्रक्रिया का जो वर्णन किया गया है वह निम्नानुसार है “नवाब साहब ने तौलिए पर रखे दो खीरों को खिड़की के बाहर धोया। उसके बाद उसे तौलिए से अच्छी तरह से पोछ लिया। अपनी जेब से चाकू निकाला। खीरे के सिर के काट कर उसे अच्छी तरह से गोदकर झाग निकाला। फिर उसे काटकर फेंक दिया। उसके बाद खीरे को सावधानी से छीला।
उसकी फाँके काटकर तौलिया बिछाकर उसे करीने से सजा देते हैं। फिर कटी हुई फांकों पर जीरा मिश्रित नमक-मिर्च छिड़का। इस प्रकार नवाब साहब खीरा खाने की तैयारी करते हैं। किन्तु मन-ही-मन उसका रसास्वादन करते हैं। एक-एक खीरे की फांको उठाकर सूंघते हैं और खिड़की के बाहर फेंकते जाते हैं।”
ख. किन-किन चीजों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं?
उत्तर :
फल-फ्रूट खाने के लिए, भोजन के साथ सलाद आदि खाने के लिए हमें पहले से तैयारी करनी पड़ती है। फल खाने के लिए पहले उसे पानी से अच्छी तरह धोकर फिर काटकर प्लेट में करीने से सजाकर उस पर नमक मिर्च स्वादानुसार छिड़क देते हैं फिर उसे खाया जाता है। इसी प्रकार भोजन के साथ सलाद खाने के लिए इसी प्रकार तैयारी करके खाने योग्य बनाया जाता है।
प्रश्न 6.
खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी समकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा । किसी एक के बारे में लिखिए ।
उत्तर :
पाठ के संदर्भ में नवाब साहब का व्यवहार सनकी कहा जाएगा। यदि खीरे को खाना ही नहीं था तो उसे धोकर छिलकर नमक-मिर्च लगाकर रखने की जरूरत ही नहीं थीं। ऐसे कई सनक और शौक के विषय में हमें जानकारी है। उनमें से एक है- “नवाब लोगों में दिखावे को संस्कृति ज्यादा होती है। उनके यहां पर कार के काफिले होते हैं। दिखावा करने के लिए एक-से-एक बंदूके होती हैं, इसका इस्तेमाल करने की कभी जरूरत ही नहीं पड़ती। अत: इन वस्तुओं का अधिकाधिक संग्रह कर प्रदर्शन करना, डींगे हाँकना, सनकी व्यवहार की ओर इंगित करता है।”
प्रश्न 7.
क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है ? यदि हाँ तो ऐसी सनको का अलेख कीजिए।
उत्तर :
हाँ, सनक का सकारात्मक रूप हो सकता है। सनक का अर्थ है किसी भी वस्तु या शौक का जुनून छा जाना। यानी किसी कार्य को करने के लिए दृढ़ निश्चयी होना, धुन का पक्का होना । जो लोग किसी कार्य को लेकर सनकी होते हैं वे अवश्य अपने लक्ष्य को पाकर रहते हैं। अलग-अलग लोगों को अलग तरह की सनक होती है – एक सनक का उल्लेख निम्नानुसार है –
पढ़ने की सनक सवार होना । धर्मवीर भारती को बचपन से पढ़ने की सनक सवार थी। खाना खाने बैठते तब भी पढ़ते रहते थे। पुस्तकालय में जब तक उनको कहा न जाय तब तक पुस्तकालय से बाहर नहीं निकलते थे। आगे चलकर वे हिन्दी साहित्य के वरिष्ठ साहित्यकार बने।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में से क्रियापद छांटकर क्रिया-भेद भी लिखिए :
(क) एक सफेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारे बैठे थे।
(ख) नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
(ग) ठाली बैठे, कल्पना करते रहने की पुरानी आदत हैं।
(घ) अकेले सफर का वक्त काटने के लिए ही खीरे खरीदे होंगे।
(ङ) दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला।
(च) नवाब साहब ने सतृष्ण आँखों से नमक-मिर्च के संयोग से चमकती खीरे की फांकों की ओर देखा।
(छ) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए।
(ज) जेब से चाकू निकाला।
उत्तर:
क्रियापद – भेद
(क) बैठे थे – अकर्मक क्रिया
(ख) नहीं दिखाया – सकर्मक क्रिया
(ग) आदत है – सकर्मक क्रिया
(घ) खरीदे होंगे – सकर्मक क्रिया
(ङ) निकाला – सकर्मक क्रिया
(च) देखा – सकर्मक क्रिया
(छ) लेट गए – अकर्मक किया
(ज) निकाला – सकर्मक किया