Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण
Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण
HBSE 10th Class Science हमारा पर्यावरण Textbook Questions and Answers
अध्याय संबंधी महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ/शब्दावली
HBSE 10th Class Science हमारा पर्यावरण InText Questions and Answers
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न
(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 292)
प्रश्न 1. पोषी-स्तर क्या है? एक आहार श्रृंखला का उदाहरण दीजिए तथा इसमें विभिन्न पोषी स्तर बताइए।
उत्तर- पोषी-स्तर (Trophic Level) हरे पौधे सौर ऊर्जा की सहायता से अपना भोजन बनाते हैं। इन पौधों को शाकाहारी प्राणियों द्वारा खाया जाता है जिन्हें मांसाहारी प्राणियों द्वारा भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है। इस प्रकार से खाद्य के आहार के अनुसार विभिन्न प्राणियों में एक श्रृंखला निर्मित होती जाती है जिसे आहार श्रृंखला कहते है। आहार श्रृंखला की प्रत्येक कड़ी पोषी स्तर कहलाती है। एक आहार श्रृंखला नीचे दी गई है-
घास → कीट → मेंढ़क → सर्प → बाज
उपरोक्त आहार श्रृंखला में पाँच पोषी स्तर हैं –
- प्रथम पोषी स्तर घास है जो कि स्वयंपोषी है और उत्पादक कहलाती है।
- द्वितीय पोषी स्तर कीट है जो शाकाहारी है और प्राथमिक उपभोक्ता कहलाता है।
- तृतीय पोषी स्तर मेंढ़क है जो मांसाहारी है और द्वितीयक उपभोक्ता कहलाता है।
- चतुर्थ पोषी स्तर सर्प है जो मांसाहारी है और तृतीयक उपभोक्ता कहलाता है।
- पंचम पोषी स्तर बाज़ है जो मांसाहारी है और चतुर्थ उपभोक्ता कहलाता है।
प्रश्न 2. पारितंत्र में अपमार्जकों की क्या भूमिका है ?
उत्तर- पारितंत्र में अपमार्जकों (scavengers) का प्रमुख स्थान है। जीवाणु तथा अन्य सूक्ष्म जीव अपमार्जकों का कार्य करते हैं। ये पेड़-पौधों एवं जीव-जन्तुओं के मृत शरीरों पर आक्रमण कर जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल पदार्थों में बदल देते हैं। इसी प्रकार कचरा जैसे- सब्जियों एवं फलों के छिलके, जन्तुओं के मल-मूत्र, पौधों के सड़े-गले भाग अपमार्जकों द्वारा ही विघटित कर दिए जाते हैं। इस प्रकार पदार्थों के पुनः चक्रण में अपमार्जक सहायता करते हैं और वातावरण को स्वच्छ रखते हैं।
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(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 295)
प्रश्न 1. क्या कारण है कि कुछ पदार्थ जैव निम्नीकरणीय होते हैं तथा कुछ अजैव-निम्नीकरणीय ?
उत्तर- ऐसे अपशिष्ट पदार्थ जो सूक्ष्म जीवधारियों द्वारा अपघटित होकर अपेक्षाकृत सरल एवं अहानिकारक पदार्थों में बदल दिए जाते हैं, जैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते हैं। उदाहरण के लिए शाक-सब्जियों, फलों आदि के अवशेष तथा मल-मूत्र आदि पदार्थों को सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटित कर दिया जाता है। कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो इन सूक्ष्म जीव धारियों द्वारा अपघटित नहीं किये जा सकते हैं। ये लम्बे समय तक प्रकृति में बने रहते हैं। यह पदार्थ अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते हैं जैसे-प्लास्टिक, पॉलीथीन, काँच, डी. डी. टी. आदि।
प्रश्न 2. ऐसे दो तरीके सुझाइए जिनमें जैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
उत्तर- जैव निम्नीकरणीय पदार्थ निम्न प्रकार से पर्यावरण को प्रभावित करते हैं-
- जैव निम्नीकरणीय पदार्थों के सूक्ष्म जीवों द्वारा विघटन से मुक्त विषाक्त एवं दुर्गन्धमय गैसें पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं।
- कार्बनिक जैव निम्नीकरणीय पदार्थों की अधिकता से ऑक्सीजन की कमी हो जाने से सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं। इसके फलस्वरूप अपघटन क्रिया प्रभावित होती है और पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है।
प्रश्न 3. ऐसे दो तरीके बताइए जिनमें अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
उत्तर- अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ निम्न प्रकार से पर्यावरण को प्रभावित करते हैं-
- अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ लम्बे समय तक पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। ये पदार्थ विभिन्न पदार्थों के चक्रण में रुकावट उत्पन्न करते हैं।
- अनेक कीटनाशक तथा पीड़कनाशक रसायन खाद्य श्रृंखला के माध्यम से जीवधारियों तथा मनुष्य के शरीर में पहुँचकर उसे क्षति पहुचाते हैं।
(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 296)
प्रश्न 1. ओजोन क्या है तथा यह किसी पारितंत्र को किस प्रकार प्रभावित करती है ?
उत्तर- ओजोन एक गैस है जिसका अणुसूत्र ‘o,’ है तथा इसका प्रत्येक अणु ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनता है। ओजोन गैस की परत वायुमंडल के समताप मण्डल में पायी जाती है। यह सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों को रोकती है। अतः पृथ्वी के जीवों को पराबैंगनी किरणों के घातक प्रभाव से बचाती है। पराबैंगनी किरणें ऑक्सीजन अणुओं को विघटित करके स्वतंत्र ऑक्सीजन (Nascent Oxygen; O) परमाणु बनाती हैं। ऑक्सीजन के ये स्वतंत्र परमाणु संयुक्त होकर ओजोन बनाते हैं।

यदि वायुमण्डल में ओजोन परत नहीं होती तो हानिकारक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुँच जाती और मानव सहित विभिन्न जीवधारियों में घातक रोग जैसे कैंसर, आँख के रोग आदि उत्पन्न करती।
प्रश्न 2. आप कचरा निपटान की समस्या कम करने में क्या योगदान कर सकते हैं ?
उत्तर- कचरा निपटान की समस्या कम करने में हम निम्नलिखित योगदान कर सकते हैं-
- हमें जैव निम्नीकरणीय तथा अजैव निम्नीकरणीय कचरे को अलग-अलग कर लेना चाहिए। अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों को पुनः चक्रण हेतु कारखाने भेज देना चाहिए जिससे इन्हें पुनः प्रयोग में लाया जा सके।
- जैव निम्नीकरणीय पदार्थों का प्रयोग ह्यूमस या खाद बनाने के लिए करना चाहिए जिससे पौधों को उच्च कोटि की खाद उपलब्ध हो सके।
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HBSE 10th Class Science हमारा पर्यावरण Textbook Questions and Answers
पाठ्य-पुस्तक के अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1. निम्न में से कौन से समूहों में केवल जैव निम्नीकरणीय पदार्थ हैं?
(a) घास, पुष्प तथा चमड़ा
(b) घास, लकड़ी तथा प्लास्टिक
(c) फलों के छिलके, केक एवं नीबू का रस
(d) केक, लकड़ी एवं घास।
उत्तर-(c) एवं (d)।
प्रश्न 2. निम्न में से कौन आहार श्रृंखला का निर्माण करते हैं?
(a) घास, गेहूँ तथा आम
(b) घास, बकरी तथा मानव
(c) बकरी, गाय तथा हाथी
(d) घास, मछली तथा बकरी
उत्तर- (b) घास, बकरी तथा मानव।
प्रश्न 3. निम्न में से कौन पर्यावरण-मित्र व्यवहार कहलाते हैं?
(a) बाजार जाते समय सामान के लिए कपड़े का थैला ले जाना।
(b) कार्य समाप्त हो जाने पर लाइट (बल्ब) तथा पंखे का स्विच बंद करना।
(c) माँ द्वारा स्कूटर विद्यालय छोड़ने की बजाय तुम्हारा विद्यालय तक पैदल जाना।
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर- (d) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 4. क्या होगा यदि हम एक पोषी स्तर के सभी जीवों को समाप्त कर दें (मार डाले)?
उत्तर- एक पोषी स्तर के सभी जीवों को समाप्त कर देने से पारिस्थितिक असंतुलन उत्पन्न हो जाएगा। प्रकृति में सभी आहार श्रृंखलाएँ अनेक कड़ियों से मिलकर बनी हैं। इसकी प्रत्येक कड़ी एक पोषी स्तर कहलाती है। यदि आहार श्रृंखला की किसी भी कड़ी (पोषी स्तर) को समाप्त कर दें तो उससे पहले के पोषी स्तर में जीवों की संख्या अत्यधिक बढ़ जाएगी और उसके बाद के पोषी स्तर के लिए भोजन अनुपलब्ध होने के कारण संख्या घट जाएगी। उदाहरण के लिए यदि हम प्रथम पोषी स्तर (हरी घास) को नष्ट कर दें तो इन पर निर्भर करने वाले सभी जीव भूखे मर जाएँगे।
प्रश्न 5. क्या किसी पोषी स्तर के सभी सदस्यों को हटाने का प्रभाव भिन्न-भिन्न पोषी स्तरों के लिए अलगअलग होगा? क्या किसी पोषी स्तर के जीवों को पारितंत्र को प्रभावित किए बिना हटाना संभव है ?
उत्तर- नहीं, यदि एक पोषी स्तर के जीवों को नष्ट कर दिया जाए तो पहले तथा बाद के पोषी स्तरों में आने वाले जीवधारी प्रभावित होंगे और पहले तीव्रता से तत्पश्चात् धीमी गति से सभी पोषी स्तर प्रभावित होंगे। किसी भी पोषी स्तर (trophic level) के सभी जीवधारी पारितंत्र में बिना किसी हानि के अथवा क्षति के समाप्त नहीं होते।
प्रश्न 6. जैविक आवर्धन (Biological Magnification) क्या है ? क्या पारितंत्र के विभिन्न स्तरों पर जैव आवर्धन का प्रभाव भी भिन्न-भिन्न होगा?
उत्तर- फसलों में अनेक रसायनों जैसे-कीटनाशी, पीड़कनाशी, शाकना ी तथा उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। इनका कुछ भाग मृदा में मिल जाता है जो पौधों द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है. जबकि इनका कछ भाग वर्षा जल के साथ घुल कर जलाशयों में चला जाता है। जलीय पौधे इन्हें अवशोषित करते हैं जिससे यह खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाते हैं। ये रसायन अजैव निम्नीकरणीय होते हैं जो आहार श्रृंखला के विभिन्न पोषीस्तरों में संचित होते जाते हैं, इस प्रक्रम को जैव आवर्धन कहते हैं। हाँ, विभिन्न पोषी स्तरों में रसायनों की सान्द्रता भिन्न-भिन्न होती है। जैसे-जैसे आहार श्रृंखला की श्रेणी बढ़ती जाती है रसायनों की सांद्रता में भी अधिकता होती रहती है और उसका प्रभाव भी बढ़ता जाता है।
प्रश्न 7. हमारे द्वारा उत्पादित अजैव निम्नीकरणीय कचरे से कौन-कौन सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं ? .
उत्तर- हमारे द्वारा उत्पादित अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों जैसे-प्लास्टिक, चमड़ा, काँच, डी. डी. टी. आदि से युक्त कचरे से अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं-
- प्लास्टिक जैसे पदार्थों को निगल लेने से शाकाहारी जन्तुओं की मृत्यु हो सकती है।
- नाले-नालियों में अवरोध उत्पन्न होता है।
- मृदा प्रदूषण बढ़ता है।
- जीवधारियों में जैविक आवर्धन होता है।
- जल एवं वायु प्रदूषण बढ़ता है।
- पर्यावरण अस्वच्छ होता है।
- पारिस्थितिक संतुलन में अवरोध उत्पन्न होता है।
- भूमि की उत्पादकता कम होती है।
प्रश्न 8. यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय ही, तो क्या इनका हमारे पर्यावरण पर कोई प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर- यदि हमारे द्वारा (उत्पादित) सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय हो तो निपटान आसानी से कर दिया जाएगा। जैव निम्नीकरणीय पदार्थ सरलता से सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटित कर दिए जाते हैं। अतः इनसे हमारे पर्यावरण पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
प्रश्न 9. ओजोन परत की क्षति हमारे लिए चिंता का विषय क्यों है ? इस क्षति को सीमित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं ?
उत्तर- ओजोन परत सूर्य की पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करती है। यह सूर्य से आने वाले हानिकारक विकिरण को सोख लेती है। यह विकिरण हमारे शरीर में विभिन्न व्याधियों जैसे-कैंसर, त्वचा रोग, आँखों के रोग आदि उत्पन्न कर सकता है। रेफ्रिजरेशन वक्स, एरोसोल, जेट यानों आदि से उत्सर्जित रसायन जैसे-क्लोरोफ्लुओरो कार्बन्स (CFCs) ओजोन परत का क्षरण करते हैं जिससे सूर्य की पराबैगनी किरणों (UV-rays) के पृथ्वी पर आने की सम्भावना बढ़ रही है अतः ओजोन परत की क्षति हमारे लिए चिन्ता का विषय है।
ओजोन परत की क्षति को रोकने के लिए 1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) में सर्वसम्मति से यह पारित हुआ कि क्लोरोफ्लुओरो कार्बन का उत्पादन 1986 के स्तर पर सीमित रखा जाए। मांट्रियल प्रोटोकॉल में 1987 में यह पारित हुआ कि 1998 तक इसके प्रयोग में 50% तक की कमी लायी जाए। धीरे-धीरे सभी देश इस समस्या से निपटने के लिए अग्रसर हो रहे हैं।
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Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 15 हमारा पर्यावरण
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (Very short Answer Type Questions)
बहुविकल्पीय प्रश्न (Objective Type Questions)
1. किसी पारितंत्र के घटक हैं
(A) उत्पादक
(B) उपभोक्ता
(C) अपघटक
(D) यह सभी।
उत्तर- (D) यह सभी।
Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 15 हमारा पर्यावरण
Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 15 हमारा पर्यावरण
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. जैव निम्नीकरणीय तथा अजैव निम्नीकरणीय प्रदूषकों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- जैव निम्नीकरणीय तथा अजैव निम्नीकरणीय प्रदूषकों में अन्तर
| जैव निम्नीकरणीय प्रदूषक | अजैव निम्नीकरणीय प्रदूषक |
| 1. ये सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटित हो जाते हैं। | 1. ये सूक्ष्म जीवों द्वारा अपघटित नहीं होते हैं। |
| 2. इनका चक्रीकरण सम्भव है। | 2. इनका चक्रीकरण संभव नहीं है। |
| 3. ये अत्यधिक मात्रा में उत्पन्न होते हैं। उदाहरण-फल तथा सब्जियों के छिलके, घरेलू मल-मूत्र, कागज, कृषि अपशिष्ट, लकड़ी, कपड़ा आदि। | 3. ये कम मात्रा में उत्पन्न होते हैं। उदाहरण – प्लास्टिक, शीशा, पीड़कनाशी, डी. डी.टी, पारा, चमड़ा आदि। |
प्रश्न 2. अपशिष्ट के निपटारे की समस्या को कम करने में हम किस प्रकार सहायता कर सकते हैं ? तीन विधियाँ सुझाइए।
उत्तर- अपशिष्ट निपटारे की प्रमुख तीन विधियाँ निम्नलिखित हैं-
- पुनः चक्रण (Recycling) : इस्तेमाल की गई पुरानी वस्तुओं को इकट्ठा कर उन्हें संबंधित उद्योगों को पुन: चक्रण के लिए देना। जैसे- कागज, काँच की वस्तुएँ, प्लास्टिक की वस्तुएँ। हमें नई वस्तुओं की अपेक्षा पुनः चक्रित वस्तुओं के इस्तेमाल को बढ़ावा देनी चाहिए।
- कम्पोस्ट बनाना-रसोई के बचे हुए भोजन, फलों, सब्जियों के छिलके, चाय की पत्तियों आदि को गड्ढे में दबाकर कम्पोस्ट बनाना चाहिए। यह एक उत्तम खाद का कार्य करता है।
- जैव निम्नीकरणीय और अजैव निम्नीकरणीय कचरे को अलग-अलग कूड़ेदान में फेंकना चाहिए।
प्रश्न 3. पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न घटकों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर- किसी भी पारिस्थितिक तंत्र के दो घटक होते हैं –
1. अजैविक घटक-इसमें जल, वायु, प्रकाश, ताप, मृदा, आदि सम्मिलित हैं।
2. जैविक घटक-ये निम्न प्रकार के हैं –
- उत्पादक – सभी हरे पौधे।
- उपभोक्ता – ये प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक आदि होते हैं।
- अपघटक – ये सूक्ष्म जीव, जीवाणु, कवक होते हैं।
प्रश्न 4. पारितंत्र की परिभाषा लिखिए। किसी पारितंत्र में ऊर्जा-प्रवाह दर्शाने के लिए ब्लॉक आरेख खींचिए।
उत्तर- पारितंत्र-पारितंत्र जैव तथा अजैव घटकों से मिलकर बना एक स्वव्यवस्थित इकाई है, जो एक-दूसरे पर निर्भर करता है। जैव घटक-पेड़-पौधे व अन्य जीव। अजैव घटक-वायु, जल, सूर्य का प्रकाश, मिट्टी आदि।

प्रश्न 5. जीवोम या बायोम का निर्माण कैसे होता है? किसी एक बायोम का उदाहरण दीजिए।
उत्तर- जैविक तथा अजैविक घटकों के बीच पारस्परिक क्रियाएँ होती रहती हैं फलस्वरूप ऊर्जा एवं पदार्थों का आदान-प्रदान चलता रहता है; जिसे हम पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं। किसी भौगोलिक क्षेत्र में समस्त पारिस्थितिक तंत्र एक साथ मिलकर एक और बड़ी इकाई का निर्माण करते हैं जिसे जीवमण्डल. कहते हैं।
उदाहरण-वन बायोम में अनेक तालाब, झीलें, वन, घास मैदान पारितंत्र स्थित होते हैं।
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प्रश्न 6. (a) पारितंत्र किसे कहते हैं ?
(b) किन्हीं दो प्राकृतिक पारितंत्रों की सूची बनाइए।
(c) हम तालाबों और झीलों की सफाई नहीं करते, परन्तु किसी जलजीवशाला को नियमित सफाई की आवश्यकता होती है ? क्यों
उत्तर-
(a) पारितंत्र किसी क्षेत्र के जैव, अजैव घटकों, प्राणियों, पेड़-पौधों, जीव जंतुओं के आपसी संबंधों का एक संगठन है।
(b) दो प्राकृतिक परितंत्र-झील, तालाब ।
(c) तालाब प्राकृतिक पारितंत्र है जबकि जलजीवशाला मानव निर्मित पारितंत्र है। तालाब में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव हैं जो अपमार्जक का कार्य करते हैं, पर जलजीवशाला में ऐसा नहीं है। इसलिए जलजीवशाला को साफ करना आवश्यक है, तालाब को नहीं।
प्रश्न 7. उत्पादक तथा उपभोक्ता में अन्तर लिखिए।
उत्तर- उत्पादक एवं उपभोक्ता में अन्तर-
| उत्पादक (Producers) | उपभोक्ता (Consumers) |
| 1. ये सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में पर्णहरित द्वारा अपना भोजन स्वयं बना सकते हैं। | 1. ये अपना भोजन स्वतः नहीं बना सकते हैं। |
| 2. ये सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलते हैं। | 2. ये पौधों से प्राप्त ऊर्जा का प्रयोग करते हैं। |
| 3. ये एक ही प्रकार के होते हैं।
उदाहरण-सभी हरे पौधे। |
3. ये प्राथमिक द्वितीयक अथवा तृतीयक हो सकते हैं। उदाहरण-सभी जन्तु एवं अपघटक। |
प्रश्न 8. स्वपोषी तथा परपोषी में अन्तर लिखिए।
उत्तर- स्वपोषी तथा परपोषी में अन्तर-
| स्वपोषी (Autotrophs) | परपोषी (Heterotrophs) |
| 1. ये अपना भोजन सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में स्वयं बना लेते हैं। | 1. ये अपना भोजन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से स्वपोषी से प्राप्त करते हैं। |
| 2. ये सौर ऊर्जा को रासाय- निक ऊर्जा में बदलते हैं। | 2. ये सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में नहीं बदल सकते। |
| 3. इन्हें उत्पादक कहते हैं। उदाहरण-सभी हरे पेड़-पौधे। | 3. इन्हें उपभोक्ता कहते हैं। उदाहरण-सभी जन्तु एवं अपघटक। |
प्रश्न 9. जीवाणु एवं कवक अपघटक क्यों कहलाते हैं ? पर्यावरण के लिए अपघटकों का महत्व लिखिए।
उत्तर- जीवाणु एवं कवक अपघटक कहलाते हैं क्योंकि ये मृत पेड़-पौधों एवं जीव-जन्तुओं के शरीरों में उपस्थित जटिल कार्बनिक यौगिकों को सरल पदार्थों में अपघटित कर देते हैं।
पर्यावरण के लिए अपघटकों का महत्व निम्न प्रकार है-
- अपघटक पदार्थों के चक्रण की क्रिया में योगदान करते हैं।
- ये पर्यावरण की स्वच्छता के लिए योगदान करते हैं।
प्रश्न 10. (a) नीचे दिए गए जीवों की आहार श्रृंखला का सृजन कीजिए-कीट, बाज, घास, साँप, मेंढक।
(b) इस सृजित आहार श्रृंखला के तृतीय पोषी के जीव का नाम लिखिए। होगी?
(c) इस आहार श्रृंखला के किस जीव में अजैवनिम्नीकरण रसायनों की सांद्रता अधिकतम होगी?
(d) इससे संबद्ध परिघटना का नाम लिखिए।
(e) यदि इस प्रकार श्रृंखला में मेंढकों का 10000 जूल ऊर्जा उपलब्ध है, तो साँपों को कितनी ऊर्जा उपलब्ध
उत्तर-

(b) मेंढक और साँप
(c) बाज में।
(d) जैव-आवर्धन (Biological Magnification).
(e) चूंकि 10% नियम के अनुसार अगले पोषी स्तर पर भोजन की मात्रा का केवल 10% ही जैव मात्रा में बदल पाता है और अगले स्तर के उपभोक्ता के लिए उपलब्ध हो पाता है इसलिए साँपों को उपलब्ध ऊर्जा .
= 10,000 J का 10% = 10,000x10/100 = 1000J
प्रश्न 11. यदि सूर्य से पौधे को 20,000 जूल ऊर्जा उपलब्ध हो तो निम्नलिखित आहार श्रृंखला में शेर को कितनी ऊर्जा उपलब्ध होगी ? गणना कीजिए
पौधे हिरण→ शेर ।
उत्तर-
पौधे → हिरण → शेर
लिंडमान के ऊर्जा प्रवाह के 10% नियम के अनुसार ऊर्जा की केवल 10% मात्रा ही एक पोषी स्तर से दूसरे पोषी स्तर पर स्थानान्तरित होती है। अतः पौधे से हिरण को 200 जूल तथा हिरण से शेर को केवल 20 जूल ऊर्जा प्राप्त होगी।
प्रश्न 12. एक पारितंत्र में ऊर्जा प्रवाह का आरेखी चित्र बनाइए।
उत्तर-

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प्रश्न 13. पर्यावरणीय प्रदूषण क्या है? तीन अजैव निम्नीकरणीय प्रदूषकों के नाम लिखिए जो मानव के लिए हानिकारक हैं।
उत्तर- जल, वायु एवं मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में अवांछनीय परिवर्तन जिसके कारण ये प्रयोग हेतु नहीं रह जाते, इन परिवर्तनों को वातावरणीय प्रदूषण कहते हैं। डी.डी.टी., सीसा, प्लास्टिक अजैव निम्नीकरणीय प्रदूषक हैं, जो मानव को अधिक हानि पहुँचाते हैं।
प्रश्न 14. सुपोषण को समझाइए।
उत्तर- जलाशयों में मल-मूत्र के अत्यधिक विसर्जन से जल प्लवकों की अधिक वृद्धि होने लगती है। प्लवकों की बढ़ती संख्या के कारण जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा में कमी होने लगती है। ऑक्सीजन की कमी के कारण जल प्लवक मर कर सड़ने लगते हैं फलस्वरूप जल में घुली अधिकांश ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आने लगती है। अतः जलाशय में पोषकों का अत्यधिक संभरण तथा शैवालों की वृद्धि तथा ऑक्सीजन की मात्रा में होती कमी की प्रक्रिया सुपोषण (Eutrophication) कहलाती है।
प्रश्न 15. अम्ल वर्षा क्या है ? संक्षिप्त में समझाइए।
उत्तर- अम्ल वर्षा (Acid Rain)-प्रदूषित वायु में उपस्थित सल्फर तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड वर्षा जल से क्रिया करके क्रमशः सल्फ्यूरिक अम्ल तथा नाइट्रिक अम्ल बनाते हैं। वर्षा के साथ ये अम्ल पृथ्वी पर आते हैं, इसे अम्ल वर्षा कहते हैं। अम्ल वर्षा, फसलों, पेड़-पौधों तथा इमारतों को हानि पहुँचाती है। यह जल को प्रदूषित करती है जिससे जलीय जीव-जन्तुओं को हानि पहुँचती है। इससे कृषि उत्पादकता में कमी होती है।
प्रश्न 16. वैश्विक तापन या पौधघर प्रभाव किसे कहते हैं?
उत्तर- जीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोलियम) के जलने से उत्पन्न CO2, तथा मेथेन गैसें पृथ्वी से होने वाली ऊष्मीय विकिरण को रोक लेती हैं। इसके फलस्वरूप पृथ्वी का ताप बढ़ता है, इसे पौधघर प्रभाव या हरित गृह प्रभाव कहते हैं। इसके कारण मौसम में परिवर्तन होने के साथ-साथ पहाड़ों से बर्फ तीव्रता के साथ पिघल रही है और समुद्र जल के स्तर में वृद्धि हो रही है जिसके भविष्य में घातक परिणाम हो सकते हैं।
प्रश्न 17. अम्लीय वर्षा, घनी आबादी और बड़ी संख्या में फैक्ट्रियों के चारों ओर वाले क्षेत्रों में क्यों होती
उत्तर- घनी आबादी तथा फैक्ट्रियों के चारों ओर के क्षेत्र में वायु को प्रदूषित करने वाली गैसों CO2, SO3, एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड की मात्रा अधिक होती है। अतः ये गैसें वर्षा जल के साथ मिलकर अम्ल वर्षा उत्पन्न करती हैं। क्योंकि ये प्रदूषक घनी आबादी वाले क्षेत्रों एवं फैक्ट्रियों से अधिक उत्पन्न होते हैं अतः अम्ल वर्षा इन क्षेत्रों में अधिक होती है।
प्रश्न 18. वायुमण्डल के उच्चतर स्तर पर ओजोन किस प्रकार बनती है ? ओजोन परत के अपक्षय के लिए उत्तरदायी यौगिक कौन से हैं ?
उत्तर- वायुमण्डल के उच्चतर स्तर पर पराबैंगनी विकिरण (UV-Rays) के प्रभाव से ऑक्सीजन के अणुओं से ओजोन का निर्माण होता है। उच्च ऊर्जा वाली पराबैंगनी विकिरण किरणें ऑक्सीजन अणुओं को विघटित कर स्वतंत्र ऑक्सीजन (O) परमाणु बनाती है। ऑक्सीजन के ये स्वतंत्र परमाणु संयुक्त होकर ओजोन बनाते हैं

क्लोरोफ्लुओरो कार्बन्स (CFCs) यौगिक ओजोन के अवक्षय के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी हैं।
प्रश्न 19. (a) किसी आधार श्रंखला में सामान्यतः तीन या चार पोषी स्तर ही होते हैं। व्याख्या कीजिए।
(b) जैव आवर्धन किसे कहते हैं ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
(a) किसी आहार श्रृंखला में सामान्यत : तीन या चार पोषी स्तर होते हैं क्योंकि प्रत्येक स्तर या चरण पर ऊर्जा का ह्रास इतना अधिक होता है कि चौथे स्तर के बाद उपयोगी ऊर्जा की मात्रा बहत कम हो जाती है।
(b) जैव-आवर्धन (Biological magnification) : अनेक प्रकार की फसलों को रोग एवं पीड़कों से बचाने के लिए पीड़कनाशक एवं रसायनों का प्रयोग किया जाता है जो बहकर मिट्टी अथवा जल स्त्रोत में चले जाते हैं। मिट्टी, से पौधों में तथा जलाशयों से जलीय पौधों और जंतुओं में, फिर आहार श्रृंखला के द्वारा खाद्यान्न-जैसे-गेहूँ, चावल, फल, सब्जियों से हमारे शरीर में, ये रसायन संचित हो जाते हैं, इसे ‘जीव-आवर्धन’ कहते हैं।
जैसे-जैसे पोषी स्तर में ऊपर की ओर बढ़ते हैं, जैवआवर्धन की मात्रा बढ़ती जाती है। चूँकि मनुष्य आहार श्रृंखला में शीर्ष पर है इसलिए हमारे शरीर में यह रसायन मात्रा में संचित हो जाते हैं।
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Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 15 हमारा पर्यावरण
निबन्धात्मक प्रश्न [Essay Type Questions]

Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 15 हमारा पर्यावरण
Haryana Board 10th Class Science Notes Chapter 15 हमारा पर्यावरण
→ पर्यावरण (Environment)-हमारे आस-पास का वह आवरण जो हमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित करता है, पर्यावरण कहलाता है।
→ पारिस्थितिकी (Ecology)-जीवधारियों पर पर्यावरण के प्रभावों के अध्ययन की शाखा को पारिस्थितिकी कहते हैं पारिस्थितिकी शब्द का सबसे पहले प्रयोग रेटर ने किया था।
→ पर्यावरणीय कारक (Environmental factors)-पर्यावरण के प्रमुख दो कारक होते हैं –
- अजैविक कारक (Abiotic factors)-इसमें अजीवित अंश सम्मिलित होते हैं, जैसे-जल, वायु, वर्षा, ताप, नमी, मृदा, आदि ।
- जैविक कारक (Biotic factors)-इसमें जीवित अंश सम्मिलित होते हैं, जैसे-उत्पादक, उपभोक्ता, अपघटक।
→ पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) किसी स्थान विशेष पर पाये जाने वाले जीवधारियों तथा उनके पर्यावरण के बीच प्रकार्यात्मक सम्बन्ध को पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं। इकोसिस्टम शब्द सर्वप्रथम ए. जी. टेन्सले ने दिया।
→ पारिस्थितिक तंत्र के घटक (Components of ecosystem) : पारिस्थितिक तंत्र के निम्नलिखित दो प्रमुख घटक
होते हैं –
(A) अजैविक घटक (Abiotic components)-ये निम्न प्रकार हैं –
- अकार्बनिक (Inorganic) इसमें H2O, CO2 एवं अन्य गैसें, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, अमोनिया, पोटैशियम, मैग्नीशियम, लवण, आदि सम्मिलित हैं।
- कार्बनिक (Organic)-इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, आदि वृहत्त् अणु सम्मिलित हैं।
- भौतिक (Physical)-इसमें वातावरणीय कारक जैसे-वायु, जल, ताप, प्रकाश आदि सम्मिलित हैं।
(B) जैविक घटक (Biotic components)-इसमें विभिन्न जीवधारी सम्मिलित किये जाते हैं। ये निम्न प्रकार होते |
- उत्पादक (Producers)-सभी हरे प्रकाश संश्लेषी पौधे उत्पादक कहलाते हैं। ये सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पर्णहरित की सहायता से पानी एवं CO2 द्वारा भोजन संश्लेषित कर लेते हैं। यह भोजन प्रायः। मंड, प्रोटीन एवं वसा के रूप में संचित कर लिया जाता है।

उपभोक्ता (Consumers)-जन्तु भोजन प्राप्ति के लिए पौधों द्वारा बनाये गये भोजन पर आश्रित होते हैं।
अतः ये उपभोक्ता कहलाते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं
- प्राथमिक उपभोक्ता-ये सीधे पौधों को खाते हैं अत: शाकाहारी होते हैं, जैसे-टिड्डा।।
- द्वितीयक उपभोक्ता-ये शाकाहारी जन्तुओं को खाते हैं, जैसे-मेंढ़क।
- तृतीयक उपभोक्ता-ये द्वितीयक उपभोक्ताओं को खाते हैं, जैसे-सर्प।
(iii) अपघटक (Decomposers)-ये सूक्ष्म जीव होते हैं जो पेड़-पौधों एवं जीव-जन्तुओं के मृत शरीरों का अपघटन करके ऊर्जा प्राप्त करते हैं। ये पदार्थों का चक्रण करते हैं।
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→ आहार श्रृंखला (Food chain) किसी पारितंत्र में जीव भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए घास को टिड्डा खाता है, टिड्डे को मेंढ़क और मेंढ़क को सर्प खा लेता है। इस प्रकार पारितंत्र में जीवधारियों की निर्भरता के आधार पर एक श्रृंखला बन जाती है, इसे खाद्य श्रृंखला या आहार श्रृंखला कहते हैं। प्रकृति में तीन प्रकार की खाद्य शृंखलाएँ देखने को मिलती हैं – जलीय खाद्य श्रृंखला, स्थलीय खाद्य श्रृंखला तथा अपरद (detrites) खाद्य श्रृंखला।
कुछ प्रमुख खाद्य श्रृंखलाओं के उदाहरण निम्न प्रकार हैं –
- घास स्थल : घास → टिड्डा → मेढक → सर्प।
- वन स्थल : पौधे → हिरन → शेर।
- तालाब : पादप प्लवक → कीड़े-मकोड़े → मछलियाँ।।
- अपरद : सड़ी-गली पत्तियाँ → जीवाणु → जीवाणु भोजी, कवक → कवक भोजी।
→ पोषण स्तर (Trophic level)—आहार श्रृंखला के विभिन्न स्तरों पर ऊर्जा का स्थानान्तरण होता है, इन स्तरों को पोषण स्तर कहते हैं।
→ आहार जाल (Food web)-प्रकृति में कोई भी आहार श्रृंखला एकल नहीं होती। अनेक आहार श्रृंखलाएँ आपस मेंसम्बन्धित भी होती हैं। उदाहरण के लिए घास को टिड्डा खाता है, लेकिन घास हिरन, खरगोश आदि द्वारा भी खायी | जा सकती है। इसी प्रकार हिरन को शेर खाता है परन्तु हिरन को चीता, भेड़िया, तेंदुआ आदि भी खा सकते हैं। अतः । यह आवश्यक नहीं है कि किसी भी जीव को किसी भी विशिष्ट जीव द्वारा ही खाया जाए। स्पष्ट है कि एक जीव | के एक से अधिक भक्ष्य हो सकते हैं और स्वयं भी जीव अनेक जीवों का भक्ष्य बन सकता है। इस प्रकार अनेक | खाद्य श्रृंखलाएँ आपस में जुड़कर एक जाल जैसी रचना बनाती हैं जिसे खाद्य जाल या आहार जाल कहते हैं।
→ सुपोषण (Eutrophication)-वाहित मलमूत्र जब बहकर जलाशयों में पहुँचते हैं तो इनमें कार्बनिक पदार्थों की मात्रा | काफी बढ़ जाती है जिसके फलस्वरूप जलीय प्लवकों की संख्या भी काफी बढ़ जाती है। प्लवकों की अत्यधिक | संख्या बढ़ने पर इन्हें जलीय ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। ऑक्सीजन के अभाव में असंख्य जीव मरने और सड़ने लगते हैं। अतः जलाशय में पोषकों के अत्यधिक संभरण तथा ऑक्सीजन की कमी को सुपोषण कहते हैं। ।
→ ऊर्जा स्थानान्तरण का दस प्रतिशत का नियम-इसके अनुसार किसी भी आहार श्रृंखला में प्रत्येक पोषण स्तर पर उपलब्ध ऊर्जा उससे पहले स्तर पर उपलब्ध ऊर्जा का 10% होती है। प्रत्येक श्रेणी के जीव एक पोषण स्तर बनाते हैं।। प्रत्येक पोषण स्तर पर लगभग 90% ऊर्जा जैवीय क्रियाओं तथा ऊष्मा के रूप में निकल जाती है तथा केवल 10% ऊर्जा ही इसमें संचित रहती है। यह ऊर्जा ही अगले पोषण स्तर के लिए उपलब्ध रहती है। इस प्रकार अन्तिम पोषण स्तर तक पहुँचते-पहुँचते बहुत कम ऊर्जा रह जाती है। इसे लिन्डेमान का ऊर्जा सम्बन्धी 10% का नियम कहते हैं।
→ पारिस्थितिक पिरैमिड (Ecological pyramids)-किसी भी पारितंत्र में उत्पादकों, विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं की संख्या, जीवभार तथा संचित ऊर्जा के पारस्परिक संबंधों के चित्रीय निरूपण को पारिस्थितिक पिरैमिड कहते हैं। पारिस्थितिक पिरैमिड तीन प्रकार के होते हैं
- जीव संख्या का पिरैमिड,
- जीव भार का पिरैमिड तथा
- ऊर्जा का पिरैमिड।
→ जैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट पदार्थ (Bio-degradable wastes)-ऐसे अपशिष्ट पदार्थ जो समय के साथ प्रकृति में सूक्ष्मजीवों की क्रियाओं द्वारा हानिरहित पदार्थों में अपघटित कर दिए जाते हैं, जैव-निम्नीकरणीय अपशिष्ट पदार्थ कहलाते हैं, जैसे-घरेलू कचरा, कृषि अपशिष्ट।
→ जैव-अनिम्नीकरणीय अपशिष्ट पदार्थ (Non-biodegradable wastes)-ऐसे अपशिष्ट पदार्थ जो प्रकृति में लम्बे समय तक बने रहते हैं और जिनका अपघटन सूक्ष्म जीवों की क्रियाओं द्वारा नहीं किया जा सकता है। जैव-अनिम्नीकरणीय अपशिष्ट पदार्थ कहलाते हैं, जैसे-प्लास्टिक, डी. डी. टी. आदि।।
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→ जैविक-आवर्धन (Biological-magnification)-जब कोई हानिकारक रसायन, जैसे-डी. डी. टी. भोजन के साथ किसी स्व-आहार श्रृंखला में प्रवेश कर जाता है तो इसका सान्द्रण धीरे-धीरे प्रत्येक पोषी स्तर में बढ़ता जाता है। इस | परिघटना को जैविक आवर्धन कहते हैं। इस आवर्धन का स्तर अलग-अलग पोषी स्तरों पर भिन्न-भिन्न होता है, जैसे

→ ओजोन (Ozone)-ओजोन प्रकृति में गैस के रूप में पायी जाती है। इसके एक अणु में ऑक्सीजन के तीन परमाणु होते हैं। यह ऑक्सीजन का एक अपरूप है। ओजोन पृथ्वी के ऊपर लगभग 16 किमी की ऊँचाई पर एक सघन परत के रूप में स्थित है। यह सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों (UV-rays) से पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करती है।
→ रेफ्रिजरेशन वर्क्स, अग्निशामक यंत्रों, जेट उत्सर्जन तथा ऐरोसोल स्प्रे से उत्सर्जित होने वाले एक रसायन क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन (CFC) से वायुमण्डलीय ओजोन का क्षरण हो रहा है जिससे कुछ स्थानों पर ओजोन परत काफी पतली हो गयी है।
→ पराबैंगनी किरणों से त्वचा रोग, आँखों के रोग तथा प्रतिरक्षी तंत्र के रोग उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है। जीवमण्डल (Biosphere)-पृथ्वी का वह समस्त भाग जिसमें जीवधारी पाये जाते हैं, जीवमण्डल कहलाता है।
→ स्थलमण्डल (Lithosphere)-पृथ्वी की स्थल-सतह, जैसे-रेगिस्तान, मैदान, चट्टान आदि स्थलमण्डल कहलाती हैं।
→ जलमण्डल (Hydrosphere)-पृथ्वी का वह भाग जिस पर जल है, जलमण्डल कहलाता है।
→ वायुमण्डल (Atmosphere)-पृथ्वी के चारों ओर विभिन्न गैसों वाला क्षेत्र वायुमण्डल कहलाता है।
