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Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम

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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 6 जैव प्रक्रम

HBSE 10th Class Science जैव प्रक्रम Textbook Questions and Answers

अध्याय संबंधी महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ/शब्दावली

1. जैव प्रक्रम (Life Processes ) – प्रक्रियाएँ; जैसे पोषण, श्वसन जो जीवन के निर्वाह में सहायक हैं।
2. पोषण (Nutrition) – भोजन ( पोषक पदार्थ) का अंतः ग्रहण तथा शरीर के द्वारा उसका वृद्धि विकास व रख-रखाव में उपयोग पोषण कहलाता है ।
3. श्वसन (Respiration ) – भोजन (ग्लूकोज़) का कोशिकाओं के अंदर ऑक्सीकरण प्रक्रिया जिसमें जैव प्रक्रियाओं के लिए ऊष्मा उत्सर्जित होती है ।
4. उत्सर्जन (Excretion) – शरीर में जैव प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न व्यर्थ पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया ।
5. स्वपोषी (Autotrophs)–क्लोरोफिल युक्त वे जीव; जैसे हरे पौधे, नीली हरी शैवाल तथा कुछ जीवाणु जो प्रकाशसंश्लेषण क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं संश्लेषित कर लेते हैं ।
6. एंजाइम (Enzymes) – ये जैव उत्प्रेरक होते हैं जो जैव रासायनिक अभिक्रियाओं की दर को बदल देते हैं (सामान्यतः बढ़ा देते हैं) । ये जैव प्रक्रियाओं को उत्प्रेरित कर देते हैं ।
7. विषमपोषी (Heterotrophs) – वे जीव; जैसे जंतु, मनुष्य जो प्रकाशसंश्लेषण नहीं कर सकते, वे अपना भोजन स्वयं संश्लेषित नहीं कर सकते, विषमपोषी कहलाते हैं ।
8. प्रकाशसंश्लेषण (Photosynthesis ) – हरे पौधों द्वारा सौर ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तन।
9. क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast) – पौधों की कोशिकाओं में पाए जाने वाले कोशिकांग, जो प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया से संबंधित हैं ।
10. क्लोरोफिल (Chlorophyll)-पौधों में पाया जाने वाला हरे रंग का वर्णक जो सौर ऊर्जा को अवशोषित कर लेता है तथा प्रकाशसंश्लेषण के लिए आवश्यक है ।
11. जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Biological Nitrogen Fixation) – सूक्ष्मजीवों द्वारा वायु की स्वतंत्र नाइट्रोजन को नाइट्रोजन के यौगिकों में परिवर्तित करना ।
12. परजीवी (Parasites ) – वे जीव जो अपना पोषण अन्य जीवों के शरीर पर या शरीर के अंदर रहकर अवशोषित करते हैं और उन्हें हानि पहुँचाते हैं, परजीवी कहलाते हैं ।
13. परजीवी पोषण (Parasitic Mode of Nutrition) – पोषण जिसमें परजीवी जीव अन्य जीव को हानि पहुँचाकर उससे पोषण ग्रहण करता है ।
14. दंतक्षरण (Dental Caries) – इनैमल तथा डैंटीन के धीरे-धीरे मृदुकरण के कारण, इनैमल मृदु या बिखनिजीकृत हो जाता है, जिससे दाँतों में जलन व संक्रमण हो जाता है ।
15. यकृत (Liver) – मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि जो पाचक रस पित्तरस स्रावित करती है ।
16. अग्न्याशय ( Pancreas) – एक पाचक ग्रन्थि जो क्षुद्रांत्र के मोड़ में स्थित होती है। यह अग्न्याशयिक रस का स्रावण करती है जिसमें एमिलेज, प्रोटिएज, लाइपेज एंजाइम होते हैं ।
17. दीर्घ रोम (Villi) – क्षुद्रांत्र के आंतरिक अस्तर पर अनेक अंगुली जैसे प्रवर्ध होते हैं, जिन्हें दीर्घ रोम कहते हैं । ये अवशोषण का सतही क्षेत्रफल बढ़ा देते हैं ।
18. किण्वन (Fermentation)- जटिल कार्बनिक यौगिकों के सरल पदार्थों में अपघटन की प्रक्रिया जो सूक्ष्मजीव या एंजाइमों की सहायता से होती है, जैसे शर्करा का ऐल्कोहॉल व कार्बन डाइऑक्साइड में अपघटन |
19. विसरण (Diffusion)-पदार्थों का उनकी अधिक सांद्रता से कम सांद्रता की ओर सांद्रता अंतर के कारण गति करना, परासरण कहलाता है ।
20. फुफ्फुस (फेफड़े) (Lungs) – वक्षगुहा में स्थित दो गुब्बारों जैसे स्पंजी अंग जो साँस लेने के लिए, गैसों के विनिमय के लिए (मछलियों को छोड़कर) कशेरुकियों में पाए जाते हैं। इनमें रक्त संचरण बहुत अधिक होता है ।
21. गलफड़े (Gills) – मछलियों तथा कुछ क्रस्टेशियन में झिल्लियों; जैसे अंग जिनमें गैसों ( CO2/ O2) का विनिमय होता है ।
22. हीमोग्लोबिन (Haemoglobin) – रक्त में विद्यमान लाल रंग का प्रोटीन जो O2 / CO2 का परिवहन करता है ।
23 रक्त (Blood) — यह एक तरल संयोजी ऊतक है, जो सामान्यतः लाल रंग का होता है और अनेक पदार्थों का संवहन करता है ।
24. हृदय (Heart ) – हृदय एक पेशीय अंग है जो शरीर में रक्त को शरीर के विभिन्न भागों में पंप करने का कार्य करता है ।
25. दोहरा परिसंचरण (Double Circulation) – चार कोष्ठकीय हृदय (पक्षियों में, स्तनधारियों में) में एक चक्र में वही रक्त हृदय में से दो बार होकर गुज़रता है – एक बार ऑक्सीजनित रक्त के रूप में तथा दूसरी तार विऑक्सीजनित रक्त के रूप में । इसे ही दोहरा परिसंचरण कहते हैं ।
26. रक्तदाब (Blood Pressure) – वह दाब (बल) जो रक्त वाहिकाओं की भित्तियों पर लगता है, रक्तदाब कहलाता है ।
27. लसीका (Lymph) – अंतर कोशिकीय स्थानों में भरा हुआ द्रव, जो पदार्थों के परिसंचरण में भी सहायता करता है। इसमें कुछ प्लैज़्मा, थोड़े-से प्रोटीन तथा रक्त कणिकाएँ; जैसे लिम्फोसाइटस होती हैं ।
28. प्लेटलैटस (Platelets) – रक्त कणिकाएँ जो चोट लगे भागों में रक्त को जमने में सहायता करती हैं तथा रक्त के बहने को बंद कर देती हैं ।
29. वाष्पोत्सर्जन ( Transpiration) – पौधे की सतह से, पत्तों से, तने से एवं विशेष रंध्रों की सहायता से वाष्प के रूप में पानी की हानि होना, वाष्पोत्सर्जन कहलाता है ।
30. स्थानांतरण (Translocation) – पौधे के एक भाग से दूसरे भाग तक पदार्थों (खाद्य जैसे शर्करा) का संवहन, स्थानांतरण कहलाता है।
31. वृक्काणु (Nephrons) – वृक्क की कार्यात्मक इकाई जो बहुत ही कुंडलित नलिकाओं से बनी होती है, वृक्काणु कहलाती है।
32. अपोहन (Dialysis) – किसी द्रव में उपस्थित बड़े व छोटे अणुओं को एक-दूसरे से अर्धपारगम्य झिल्ली की सहायता से अलग करने की प्रक्रिया ।
33. रक्त अपोहन (Hemodialysis) – रक्त को एक (कृत्रिम ) झिल्ली में से छानने की क्रिया ताकि रक्त में से नाइट्रोजन युक्त व्यर्थ पदार्थों; जैसे यूरिया और यूरिक अम्ल, से छुटकारा पाया जा सके।
34. पोषक तत्त्व (Nutrients) – वे पदार्थ जो शरीर को पोषकता प्रदान करते हैं जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेटस, वसा आदि ।
35. पाचन क्रिया (Digestion Process ) – वह प्रक्रिया जिसमें जटिल खाद्य पदार्थों को सरल, अवशोषण योग्य, घुलनशील सरल पदार्थों में एंजाइमों की सहायता से परिवर्तित किया जाता है ।
36. धमनियाँ (Arteries) – वे रक्त वाहिनिकाएँ जो ऑक्सीजनित रक्त को हृदय तक ले आती हैं, धमनियाँ कहलाती हैं।
37. शिराएँ ( Veins) वे रक्त वाहिनिकाएँ जो विऑक्सीजनित रक्त को शरीर के विभिन्न भागों से एकत्रित करके हृदय में लेकर जाती हैं, शिराएँ कहलाती हैं ।
38. जाइलम (Xylem) – पौधों में वह ऊतक जो जड़ों द्वारा अवशोषित जल तथा लवणों को पौधे के विभिन्न भागों तक लेकर जाता है, जाइलम कहलाता है ।
39. पोषवाह (Phloem) – पौधों में वह ऊतक जो पौधे के पत्तों द्वारा संश्लेषित भोजन को पौधे के विभिन्न भागों तक स्थानांतरित करता है ।

पाठ एक नज़र में

1. जीवन का अनुरक्षण कुछ निश्चित आधारभूत प्रक्रियाओं; जैसे पोषण, श्वसन, परिसंचरण, उत्सर्जन, जनन आदि द्वारा किया जाता है।
2. सभी जैव प्रक्रियाओं को ए०टी०पी० के रूप में ऊर्जा की आवश्यकता होती है ।
3. ए०टी०पी० को पोषक पदार्थों; जैसे ग्लूकोज़ के ऑक्सीकरण से संश्लेषित किया जाता है । इस प्रक्रिया को श्वसन कहते हैं ।
4. पोषक पदार्थ; जैसे कार्बोहाइड्रेटस, वसा, प्रोटीन आदि का अंतःग्रहण तथा पाचन शरीर में किया जाता है ताकि कुछ विसरण योग्य सरल पदार्थ जैव प्रक्रियाओं के लिए प्राप्त किए जा सकें।
5. स्वपोषी पोषण हरे पौधों तथा कुछ जीवाणुओं द्वारा किया जाता है, जो प्रकाशसंश्लेषण के द्वारा सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित कर देते हैं ।
6. प्रकाशसंश्लेषण के लिए क्लोरोफिल, जल, CO2 तथा प्रकाश ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
7. पौधों में गैसों का विनिमय विशेष प्रकार के छिद्रों से होता है जिन्हें रंध्र कहते हैं । इन रंध्रों का खुलना व बंद होना द्वार कोशिकाओं द्वारा होता है ।
8. पौधों को खनिज (N, P, Fe, Mg, K, आदि) तथा जल की आवश्यकता होती है जो वे अपनी जड़ों द्वारा मृदा से अवशोषित करते हैं ।
9. जीव जो अपना भोजन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पौधों से प्राप्त करते हैं, उन्हें विषमपोषी कहते हैं ।
10. मनुष्य में भोजन के पाचन के लिए एक विशेष तंत्र है- पाचन तंत्र | इस तंत्र में आहार नली तथा उससे जुड़ी ग्रंथियाँ; जैसे यकृत, अग्न्याशय हैं।
11. भोजन का पाचन जैव उत्प्रेरकों या एंजाइमों की सहायता से होता है। इसके पश्चात आहार का शरीर में अवशोषण तथा स्वांगीकरण किया जाता है ।
12. श्वसन वायु / O2 की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति में हो सकता है। श्वसन जो वायु की अनुपस्थिति में होता है उसे अनॉक्सी या अवायवीय श्वसन कहते हैं तथा इसमें बहुत कम मात्रा में ऊर्जा उत्सर्जित होती है। इस प्रक्रिया में एथेनॉल / लैक्टिक अम्ल तथा O2 बनते हैं।
13. वायवीय श्वसन जो माइटोकॉन्ड्रिया में होता है, में ग्लूकोज़ के पूर्ण ऑक्सीकरण के कारण बहुत अधिक ऊर्जा उत्सर्जित होती है। उत्सर्जित ऊर्जा को ए०टी०पी० के संश्लेषण में प्रयुक्त किया जाता है ।
14. जलीय जीवों में श्वसन की दर बहुत अधिक होती है, क्योंकि जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम होती है ।
15. मनुष्य में एक जोड़ी फुफ्फुस (फेफड़े), श्वास नली साँस लेने के लिए होती है जो अंत में छोटे-छोटे गुब्बारों में विकसित होती हैं, जिन्हें कूपिकाएँ कहते हैं ।
16. रक्त को शरीर के विभिन्न भागों तक पंप करने के लिए शरीर में एक पेशीय अंग, हृदय, रक्त वाहिकाएँ जिन्हें धमनी, शिराएँ तथा रक्त केशिकाएँ कहते हैं ।
17. रक्त फुफ्फुस में ऑक्सीजनित हो जाता है।
18. रक्त जो बल रक्त वाहिकाओं की भित्तियों पर डालता है, उसे रक्त दाब कहते हैं जिसे एक यंत्र स्फाईग्मोमेनोमीटर से मापा जाता है। उच्च रक्तचाप को अति तनाव कहते हैं ।
19. प्लेटलैंटस चोट के स्थान पर रक्त को जमने में सहायता करती हैं ।
20. लसीका एक और तरल ऊतक है, जो एक सुरक्षात्मक ऊतक है, क्योंकि उसमें लसीकाणु (लिम्फोसाइट) उपस्थित होते हैं।
21. पौधों में जल तथा लवणों का संवहन जाइलम ऊतक के माध्यम से होता है तथा शर्करा व अन्य पोषक पदार्थों का संवहन फ्लोयम के माध्यम से होता है ।
22. मनुष्य में उत्सर्जन का कार्य एक जोड़ी वृक्क के द्वारा किया जाता है ।
23. वृक्क की कार्यात्मक इकाई को वृक्काणु कहते हैं जो नलिकाओं की एक संरचना होती है जो रक्त के छानने व मूत्र के बनने से संबंधित है।
24. वृक्क के अप्रक्रिय होने की अवस्था में वृक्क को बदलने की आवश्यकता पड़ती है या कम समय के लिए कृत्रिम (वृक्क) तंत्र की सहायता से रक्त अपोहन किया जाता है।
25. पौधों से गोंद, रेजिन आदि पदार्थ उत्सर्जित किए जाते हैं। पौधों में दिन के समय O2 तथा रात के समय CO2 उत्सर्जित होती है ।

HBSE 10th Class Science जैव प्रक्रम Textbook Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न 

(पाठ्य-पुस्तक पृ.सं. 105)

प्रश्न 1. हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों अपर्याप्त है ?
उत्तर- हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में विसरण द्वारा ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो सकती क्योंकि विसरण द्वारा ऑक्सीजन उन्हीं कोशिकाओं में पहुँच सकती है जो वायु के सम्पर्क में होती हैं। हमारे आंतरिक अंगों की कोशिकाएँ एवं ऊतक वायु से दूर गहराई में स्थित होते हैं। अतः इन्हें विसरण द्वारा ऑक्सीजन नहीं मिल सकती।

प्रश्न 2. कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदण्ड का उपयोग करेंगे? .
उत्तर- किसी वस्तु को सजीव की संज्ञा तभी दी जा सकती है जब उसमें निम्नलिखित लक्षण उपस्थित होते हैं-

  • सजीवों का एक निश्चित आकार एवं आकृति होती
  • सजीवों का शरीर कोशिका/कोशिकाओं/ऊतकों का बना होता है।
  • सजीवों में पोषण होता है।
  • सजीवों में विभिन्न उपापचयी क्रियाएँ; जैसे-पाचन, श्वसन, स्वांगीकरण आदि पायी जाती हैं।
  • सजीव जनन करके अपनी संतति को बढ़ाते हैं।
  • सजीवों में वृद्धि होती है।
  • सजीव गति करते हैं तथा संवेदनशीलता प्रदर्शित करते हैं।
  • सजीवों की मृत्यु होती है।

यद्यपि सजीव रूप-रंग, आकार आदि में समान भी होते हैं और भिन्न भी। जन्तु दौड़ते-भागते हैं, साँस लेते हैं, बोलते हैं, उत्सर्जन करते हैं। परन्तु पौधों में चलने, साँस लेने, बोलने या उत्सर्जन की क्षमता नहीं होती फिर भी पौधे सजीव हैं, क्योंकि इनमें अन्य सभी क्रियाएँ सामान्य रूप से होती हैं।

प्रश्न 3. किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर- किसी जीव द्वारा कच्ची सामग्रियों का उपयोग कार्बन आधारित अणुओं के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 4. जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे?
उत्तर- जीवन के अनुरक्षण के लिए, हम पोषण (Nutrition), श्वसन (Respiration), परिवहन (Transportation), वृद्धि (Growth), उत्सर्जन (Excretion) आदि को आवश्यक प्रक्रम मानेंगे।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 111)

प्रश्न 1. स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में क्या अन्तर है ?
उत्तर- स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में अन्तर –

स्वयंपोषी पोषण  (Autotrophic Nutrition) विषमपोषी पोषण (Heterotrophic Nutrition)
1. वे जीवधारी जो सरल अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक भोज्य पदार्थों का निर्माण स्वयं कर लेते हैं, स्वयंपोषी कहलाते हैं और पोषण की यह विधि स्वयंपोणी पोषण कहलाती है। वे जीवधारी जो सरल अकार्बनिक पदार्थों से भोजन निर्मित नहीं कर पाते और दूसरे जीवों से प्राप्त करते हैं, विषमपोषी कहलाते हैं और यह पोषण विधि विषमपोषी पोषण कहलाती है।
2. सभी हरे पौधे स्वयंपोषी पोषण विधि अपनाते हैं और ये सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पर्णहरित द्वारा जल व CO2, से ग्लूकोज का निर्माण करते हैं | उदाहरण-सभी हरे पौधे, नीले-हरे शैवाल तथा कुछ प्रकाश-संश्लेषी जीवाण।। सभी जन्तु विषमपोषी पोषण विधि प्रदर्शित करते हैं, तथा ये शाकाहारी, माँसाहारी, परजीवी या मृतोपजीवी हो सकते हैं। उदाहरण-सभी जन्तु, कवक, अधिकांश जीवाणु, परजीवी पादप।

प्रश्न 2. प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्त करता है ?
उत्तर- प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री के रूप में पौधे को प्रकाश सूर्य से प्राप्त होता है। जल पौधे की जड़ों द्वारा मृदा से ग्रहण किया जाता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड वायुमण्डल से ली जाती है। पौधे के प्रकाशसंश्लेषी भागों में रन्ध्र (Stomata) उपस्थित होते हैं जिनसे होकर CO2, ऊतकों तक पहुँचती है। मृदा से जड़ों द्वारा अवशोषित जल जाइलम द्वारा प्रकाश-संश्लेषी भाग तक पहुँचता है। जलीय पौधे जल में घुली हुई CO2, तथा जल तने की सतह द्वारा अवशोषित करते हैं।

प्रश्न 3. हमारे आमाशय में अम्ल की क्या भूमिका है?
उत्तर- हमारे आमाशय में उपस्थित जठर ग्रन्थियों (Gastric glands) द्वारा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) स्रावित होता है। यह आमाशय में अम्लीय माध्यम बनाता है जिससे पेप्सिन नामक विकर प्रभावशाली होकर प्रोटीन पाचन का कार्य करता है। HCl भोजन के साथ आए जीवाणुओं को नष्ट करके भोजन को सड़ने से बचाता है। यह भोजन में उपस्थित Ca को कोमल बनाता है। यह पाइलोरिक वाल्वों के खुलने एवं बन्द होने पर भी नियन्त्रण रखता है। साथ ही यह वसा के इमल्शीकरण में भी सहायक होता है।

प्रश्न 4. पाचक एन्जाइमों का क्या कार्य है ?
उत्तर- एन्जाइम (Enzymes) कार्बनिक जैव-उत्प्रेरक (Biocatalysts) हैं जो विभिन्न जैव-रासायनिक क्रियाओं की दर बढ़ा देते हैं। ये पाचन क्रिया में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व वसा के पाचन को सुगम बनाते हैं। मुख गुहा में एमिलेस नामक एन्जाइम कार्बोहाइड्रेट का आंशिक पाचन करके इसे माल्टोज में बदलता है। उदर में लाइपेज नामक एन्जाइम वसा को वसीय अम्ल एवं ग्लिसरॉल में बदलता है। आंत्र लाइपेज, सुक्रेज, माल्टेज एवं लैक्टेज क्रमशः वसा, सुक्रोज, माल्टोज एवं दुग्ध शर्करा का पाचन करते हैं। अतः पाचक एन्जाइम हमारी पाचन क्रिया को सुगम बनाते हैं।

प्रश्न 5. पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है?
उत्तर- छोटी आंत अर्थात् क्षुद्रांत्र (small intestine) की भीतरी सतह पर असंख्य उंगली सदश रसांकर (villi) तथा सूक्ष्म रसांकुर (microvilli) पाए जाते । ये क्षुद्रांत्र की अवशोषी सतह को लगभग 600 गुना बढ़ा देते हैं। प्रत्येक रसांकुर में रुधिर कोशिकाओं तथा लसीका कोशिकाओं का जाल फैला रहता है। वसीय अम्लों एवं ग्लिसरॉल का अवशोषण लसीका कोशिकाओं द्वारा तथा अन्य भोज्य पदार्थों का अवशोषण रुधिर कोशिकाओं द्वारा होता है। अतः क्षुद्रांत्र को पचे हुए भोजन के अवशोषण का स्तम्भ माना जाता है।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 116)

प्रश्न 1. श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है ?
उत्तर- जलीय जीव श्वसन के लिए जल में घुली हुई ऑक्सीजन का प्रयोग करते हैं। जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा सीमित होती है। स्थलीय जीव वायु से ऑक्सीजन लेते हैं जहाँ ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है। अतः स्थलीय जीव को जलीय जीव की अपेक्षा अधिक ऑक्सीजन मिल जाती है।

प्रश्न 2. ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं ?
उत्तर- विभिन्न जैविक-क्रियाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा ग्लूकोज के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है, जोकि ATP के रूप में संचित रहती है। विभिन्न जीवधारियों में ग्लूकोज का ऑक्सीकरण निम्न प्रकार से हो सकता है –
1. वायवीय श्वसन (Aerobic respiration)- यदि ग्लूकोज का ऑक्सीकरण ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है तो इसे वायवीय श्वसन कहते हैं। अधिकांश जीवों में इसी प्रकार से ऊर्जा उत्पादन होता है।

2. अवायवीय श्वसन (Anaerobic respiration)यदि ग्लूकोज का ऑक्सीकरण ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है तो इसे अवायवीय श्वसन कहते हैं। , .
(i) जब अवायवीय श्वसन किसी सूक्ष्म जीव (जैसेयीस्ट) में होता है तो इथाइल ऐल्कोहॉल, CO2, तथा ऊर्जा उत्पन्न होती है।

(ii) जब अवायवीय श्वसन माँसपेशियों में होता है तब लैक्टिक अम्ल एवं ऊर्जा उत्पन्न होती है।

प्रश्न 3. मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?
उत्तर- श्वासोच्छ्वास की क्रिया में खींची गयी वायु फेफड़ों की कूपिकाओं (Alveoli) में भर जाती है। फेफड़ों के अन्दर रुधिर केशिकाओं का जाल फैला रहता है। लाल रुधिराणुओं में उपस्थित हीमोग्लोबिन में ऑक्सीजन के प्रति काफी सहिष्णुता होती है। अतः वायु कूपिकाओं से विसरित होकर ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन के अणुओं से बँध जाती है। रुधिर इस ऑक्सीजन को ऑक्सीजन की कमी वाले ऊतकों में पहुँचा देता है। CO2, रुधिर में विलेय होकर फेफड़ों तक लायी जाती है। वायु कूपिकाओं में CO2,’ की सान्द्रता कम होने के कारण रुधिर से यह विसरित होट र फेफड़ों में आ जाती है। अब CO2, युक्त वायु निःश्वसन द्वारा शरीर से बाहर निकाल दी जाती है।

प्रश्न 4. गैसों के विनिमय के लिए मानव फुफ्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अभिकल्पित किया गया है?
उत्तर- श्वास नाल अथवा ट्रैकिया (Trachea) वक्ष गुहा में प्रवेश करके दाईं तथा बाईं दो शाखाओं में बँट जाती है। अब इन्हें श्वसनियाँ (Bronchi) कहते हैं। फेफड़ों में प्रवेश करके प्रत्येक श्वसनी, पुनः बारम्बार विभाजित होकर अनेक श्वसनिकाओं (Bronchioles) में बँट जाती हैं। श्वसनिकाएँ पुनः कूपिका नलिकाओं (Alveolar ducts) में बँट जाती हैं। प्रत्येक कूपिका नलिका दो-तीन छोटी-छोटी थैलीनुमा रचनाओं में खुलती है जिन्हें कूपिकाएँ (alveoli) कहते हैं। हमारे प्रत्येक फेफड़े (Lung) में लगभग 15 करोड़ वायु कूपिकाएँ (Alveoli) होती हैं। इस प्रकार दोनों फेफड़ों का सतह धरातल जिसके द्वारा गैस विनिमय होता है, लगभग 80 वर्ग मीटर होता है। इस प्रकार हमारे फेफड़े गैसों के अधिकतम आदान-प्रदान के लिए उपयोजित होते हैं।

(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 122)

प्रश्न 1. मानव में परिवहन तन्त्र के घटक कौन से हैं ? इन घटकों के क्या कार्य हैं ?
उत्तर- मानव में परिवहन तन्त्र के घटक एवं इनके कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. हृदय (Heart)-यह मानव शरीर में एक पम्पिंग स्टेशन का कार्य करता है। यह रुधिर को विभिन्न अंगों में पम्प करता है।
  2. धमनियाँ (Arteries)-ये मोटी भित्ति वाली रुधिर वाहिकाएँ हैं जो हृदय से रुधिर को विभिन्न अंगों में पहुँचाती
  3. शिराएँ (Veins)-ये पतली भित्ति वाली वाहिकाएँ हैं जो विभिन्न अंगों से रुधिर एकत्र कर हृदय में लाती हैं।
  4. केशिकाएँ (Capillaries)-ये अत्यधिक पतली एवं संकीर्ण वाहिकाएँ हैं जो धमनियों को शिराओं से जोड़ती हैं।
  5. रुधिर (Blood)-रुधिर में एक प्रकार के तरल संर्योजी ऊतक होते हैं, जो भोजन, ऑक्सीजन, लवणों, विकरों, हॉर्मोनों एवं अपशिष्ट पदार्थों को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक पहुँचाते हैं।

प्रश्न 2. स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर- स्तनधारी तथा पक्षियों में दोहरा रुधिर परिसंचरण (Double blood circulation) पाया जाता है। इसका अर्थ है कि रुधिर अपने एक चक्र में दो बार हृदय से होकर गुजरता है। स्तनधारी एवं पक्षियों का हृदय चार कक्षों में बँटा होता है-दो अलिन्द तथा दो निलय। हृदय का बायाँ भाग दैहिक हृदय (Systemic heart) तथा दायाँ भाग पल्मोनरी हृदय (Pulmonary heart) कहलाता है। बाएँ भाग में शुद्ध रुधिर तथा दाएँ भाग में अशुद्ध रुधिर भरा होता है।

शुद्ध अथवा ऑक्सीजन युक्त रुधिर शरीर के विभिन्न अंगों को पहुँचाया जाता है जबकि अशुद्ध रुधिर फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए भेजा जाता है। शुद्ध तथा अशुद्ध रुधिर के पृथक् होने से ऑक्सीजन का ऊतकों में वितरण अधिक प्रभावी तरीके से किया जाता है। स्तनधारी तथा पक्षियों के शरीर का ताप सदैव एक जैसा बनाए रखने एवं अधिक ऊर्जा की उत्पत्ति के लिए अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 3. उच्च संगठित पादपों में परिवहन तन्त्र के घटक क्या हैं?
उत्तर- उच्च संगठित पादपों में परिवहन तन्त्र के निम्नलिखित घटक हैं –

  • जाइलम (Xylem)-यह ऊतक जड़ों द्वारा अवशोषित जल एवं खनिज लवणों को पौधे के विभिन्न वायवीय भागों में परिवहन करता है।
  • फ्लोएम (Phloem)-यह ऊतक पत्तियों में प्रकाशसंश्लेषण के फलस्वरूप बने कार्बनिक भोज्य पदार्थों तथा हॉर्मोन्स का पौधे के विभिन्न भागों में परिवहन करता है।

प्रश्न 4. पादप में जल और खनिज लवण का परिवहन कैसे होता है ?
उत्तर- पादप में जल एवं इसमें घुलित लवणों का परिवहन जाइलम ऊतक (Xylem tissue) द्वारा किया जाता है। जाइलम वाहिकाएँ तथा वाहिनिकाएँ आपस में सम्बद्ध होकर पादप की जड़ से लेकर पत्तियों तक एक अनवरत जल संचालक मार्ग बनाती हैं। ऐसे अनेक मार्ग पौधे के विभिन्न भागों तक पहँचते हैं। पौधे की पत्तियों में उपस्थित रंध्रों (Stomata) से जल का वाष्पोत्सर्जन होता है जिससे अनवरत जलमार्ग में एक ‘ वाष्पोत्सर्जन अपकर्ष उत्पन्न होता है। साथ ही जल के अणुओं में ससंजक एवं आसंजक क्षमता भी पायी जाती है जिसके फलस्वरूप जड़ों से लेकर पत्तियों तक जल का एक सतत स्तम्भ बना रहता है और जल ऊपर की ओर चढ़ता है!

प्रश्न 5. पादप में भोजन का स्थानान्तरण कैसे होता है।
उत्तर- पादप की पत्तियों में प्रकाश-संश्लेषण द्वारा निर्मित भोज्य पदार्थों का पौधे के अन्य भागों में स्थानान्तरण फ्लोएम (Pholem) नामक ऊतक द्वारा होता है। फ्लोएम चालनी नलिका तथा सहचर कोशिकाओं द्वारा निर्मित होता है। ऊर्जा का उपयोग करके फ्लोएम द्वारा भोजन का स्थानान्तरण होता है। वह स्थान जहाँ भोजन का निर्माण होता है, स्त्रोत (Source) कहलाता है तथा जहाँ इसका प्रयोग होता है, उपभोग (Sink) कहलाता है। स्रोत से भोज्य पदार्थ ATP की ऊर्जा का प्रयोग करके फ्लोएम की चालनी नलिकाओं में भरा जाता है।

अब शर्करायुक्त चालनी नलिका में परासरण द्वारा जल प्रवेश करता है जिससे फ्लोएम ऊतकों में दाब बढ़ जाता है। फ्लोएम भोज्य पदार्थों का उच्च दाब क्षेत्र से कम दाब क्षेत्र की ओर परिवहन करता है। भोज्य पदार्थों का परिवहन उपभोग स्थल एवं संचय स्थल की ओर अधिक होता है।

(पाठ्य-पुस्तक घृ. सं. 124)

प्रश्न 1. वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रिया विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर- वृक्काणु (Nephrons)-वृक्काणु मानव के वृक्क की उत्सर्जी इकाई कहलाते हैं। प्रत्येक वृक्क का निर्माण असंख्य सूक्ष्म कुण्डलित वृक्क नलिकाओं या वृक्काणु से होता है। प्रत्येक वृक्काणु के दो भाग होते हैं-

  • मैल्पीघी कोष (Malpighian corpuscles) तथा
  • स्रावी नलिका (Secretory tubule)।

मैल्पीघी कोष में प्यालेनुमा संरचना बोमैन सम्पुट (Bowman’s capsule) तथा रुधिर केशिकाओं का गुच्छा ग्लोमेरुलस (glomerulus) होता है।

स्रावी नलिका के तीन भाग होते हैं-
(a) समीपस्थ कुण्डलित नलिका (Proximal convulated tube),
(b) मध्य का हेनले लूप (middle Henle’s loop) तथा
(c) अन्तिम कुण्डलित नलिका (Distal convulated tube)।

मध्य U-आकार की नलिका हेनले लप के चारों ओर रुधिर केशिकाओं का बना परिनालिका केशिका चालक होता है। वृक्काणु का अन्तिम कुण्डलित भाग चौड़ी गुहा वाली संग्रह नलिका में खुलता है। ग्लोमेरुलस के रुधिर का परानिष्यंदन (ultrafiltration) होता है। इसके फलस्वरूप नेफ्रिक फिल्ट्रेट (nephric filtrate) बनता है। इससे पुनः अवशोषण (re-absorption) तथा स्रावण (secretion) द्वारा मूत्र (Urine) का निर्माण होता हैं। मूत्र में विभिन्न उत्सर्जी पदार्थ; जैसे-यूरिया, अमोनिया, यूरिक अम्ल, औषधि आदि होते हैं।

प्रश्न 2. उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं ?
उत्तर- उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए पादपों ‘ में निम्नलिखित विधियाँ पायी जाती हैं-

  • पादपों का मुख्य उत्सर्जी पदार्थ CO2, है। इसका निर्माण श्वसन क्रिया में होता है। श्वसन क्रिया में उत्पन्न CO2, तथा जलवाष्प का निष्कासन सामान्य विसरण द्वारा रन्ध्रों (Stomata) एवं वातरन्ध्रों (Lenticels) द्वारा किया जाता
  • पौधों के उत्सर्जी वर्ण्य पदार्थों को पत्तियों, छाल एवं फलों में पहुँचा दिया जाता है। इनके पौधों से पृथक् होने पर पौधों को इनसे छुटकारा मिल जाता है।
  • अनेक उत्सर्जी पदार्थ कोशिकाओं की रिक्तिकाओं में संचित कर दिए जाते हैं।
  • गोंद, रेजिन, टेनिन आदि पदार्थ मृत काष्ठ में पहुँचा दिए जाते हैं।
  • अनावश्यक जल वाष्पोत्सर्जन द्वारा वायुमण्डल में मुक्त कर दिया जाता है।
  • कुछ अपशिष्ट पदार्थों को पौधों की जड़ों द्वारा मृदा में स्रावित कर दिया जाता है।

प्रश्न 3. मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर- मूत्र बनने की मात्रा प्रमुख रूप से पुनः अवशोषण पर निर्भर करती है। वृक्काणु नलिका द्वारा पानी का पुनः अवशोषण निम्न बातों पर निर्भर करता है-

  • जब शरीर के ऊतकों में पर्याप्त मात्रा में जल हो, तब एक बड़ी मात्रा में तनु मूत्र का उत्सर्जन होता है और पुनः अवशोषण कम होता है। यदि शरीर के ऊतकों में जल की मात्रा कम हो, तब सान्द्र मूत्र का उत्सर्जन होता है और पुनः अवशोषण अधिक होता है।
  • जब मूत्र में घुलनशील उत्सर्जकों (जैसे-यूरिया, यूरिक अम्ल, औषधि) की मात्रा अधिक हो तो इनके उत्सर्जन के लिए अधिक जल की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है।

HBSE 10th Class Science जैव प्रक्रम InText Activity Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के अभ्यास के प्रश्न 

प्रश्न 1. मनुष्य में वृक्क एक तन्त्र का भाग है जो सम्बन्धित है –
(a) पोषण से
(b) श्वसन से
(c) उत्सर्जन से
(d) परिवहन से।
उत्तर- (c) उत्सर्जन से।

प्रश्न 2. पादप में जाइलम उत्तरदायी है –
(a) जल का वहन
(b) भोजन का वहन
(c) अमीनो अम्ल का वहन
(d) ऑक्सीजन का वहन।
उत्तर- (a) जल का वहन।

प्रश्न 3. स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है –
(a) कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल
(b) क्लोरोफिल
(c) सूर्य का प्रकाश
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर- (d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 4. पायरूवेट के विखण्डन से यह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है और यह क्रिया होती है
(a) कोशिका द्रव्य
(b) माइटोकॉण्ड्रिया
(c) हरित लवक
(d) केन्द्रक।
उत्तर-
(d) केन्द्रक।

प्रश्न 5. हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है ? यह प्रक्रम कहाँ होता है?
उत्तर- हमारे शरीर में वसा (Fat) का पाचन आहार नाल (alimentary canal) में लाइपेज (lipase) नामक विकर द्वारा होता है। पित्त रस (bile juice) में उपस्थित पित्त लवण (bile salts) वसा का इमल्सीकरण करते हैं। जठर रस, अग्न्याशयी रस तथा आंत्रीय रस में लाइपेज एन्जाइम उपस्थित होता है। यह इमल्सीकृत वसा को वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल में बदलता है। इस प्रकार वसा का पाचन होता है।

प्रश्न 6. भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है?
उत्तर- भोजन के पाचन में लार की भूमिका निम्न प्रकार है-

  • यह भोजन को गीला एवं चिकना करती है जिससे भोजन को चबाने तथा निगलने में आसानी होती है।
  • लार में उपस्थित टायलिन (Ptylin) विकर भोजन की मंड को माल्टोज शर्करा में बदलता है।
  • लार में उपस्थित लाइसोजाइम (Lysozyme) जीवाणु एवं अन्य सूक्ष्म जीवों को नष्ट करता है।
  • लार दाँतों के बीच फंसे अन्न के कणों को निकालने में सहायता करती है।

प्रश्न 7. स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ कौन-सी हैं और उनके उपोत्पाद क्या हैं ?
उत्तर- स्वपोषी पोषण (Autotrophic nutrition) के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ अथवा कारक निम्नलिखित

  • सूर्य का प्रकाश,
  • पादपों में उपस्थित पर्णहरित,
  • जल तथा
  • कार्बन डाइऑक्साइड।

सभी हरे पौधों में पर्णहरित (chlorophyll) उपस्थित होता है। इसकी सहायता से ये पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल द्वारा भोजन (कार्बोहाइड्रेट) का निर्माण करते हैं।

ग्लूकोज प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया का मुख्य उत्पाद ग्लूकोज है तथा. इसके उपोत्पाद जल तथा ऑक्सीजन हैं।

प्रश्न 8. वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अन्तर है? कुछ जीवों के नाम लिखिए जिनमें अवायवीय श्वसन होता है। (नमूना प्रश्न-पत्र 2012)
उत्तर- वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में अन्तर-

वायवीय श्वसन (Aerobic Respiration) अवायवीय श्वसन  (Anaerobic Respiration)
1. इसे ऑक्सीश्वसन भी कहते हैं। 1. इसे अनॉक्सीश्वसन भी कहते हैं।
2. यह ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है। 2. ऑक्सीजन की उपस्थिति अनिवार्य नहीं है।
3. इसके द्वारा भोज्य पदार्थों का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है। 3. इसके द्वारा भोज्य पदार्थों का अपूर्ण ऑक्सीकरण होता है।
4. इसके अन्तिम उत्पाद कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल होते हैं। 4. इसके अन्तिम उत्पाद कार्बन डाइऑक्साइड तथा कार्बनिक अम्ल होते हैं।
5. इसमें अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। 5. इसमें अपेक्षाकृत कम ऊर्जा उत्पन्न होती है।

यीस्ट में अवायवीय श्वसन होता है। इसके द्वारा ग्लूकोज के अपघटन से इथाइल ऐल्कोहॉल तथा CO2, उत्पन्न होते

प्रश्न 9. गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित हैं ?
उत्तर – श्वसन नली (Trachea) वक्ष गुहा में प्रवेश करके दाईं तथा बाईं दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है। अब इन्हें श्वसनियाँ कहते हैं। फेफड़ों में प्रवेश करके प्रत्येक श्वसनी पुनः बार-बार विभाजित होकर अनेक श्वसनिकाओं (Bronchioles) में बँट जाती हैं। श्वसनियाँ पुनः कूपिका नलिकाओं में बँट जाती हैं। प्रत्येक कूपिका नलिका दो-तीन छोटी-छोटी थैलीनुमा रचनाओं में खुलती है जिन्हें कूपिकाएँ (Alveoli) कहते हैं।

हमारे प्रत्येक फेफड़े में लगभग 15 करोड़ कूपिकाएँ होती हैं। इस प्रकार दोनों फेफड़ों की सतह के धरातल का क्षेत्रफल जिसके द्वारा गैस-विनिमय होता है, लगभग 80 वर्ग मीटर होता है। कूपिकाओं की इतनी अधिक संख्या के कारण सतह का धरातल भी अत्यधिक बड़ा होता है जिससे गैस-विनिमय अधिक दक्षतापूर्वक होता है।

प्रश्न 10. हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं ?
उत्तर- हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन का प्रमुख कार्य फेफड़ों से ऑक्सीजन ग्रहण करके शरीर के विभिन्न ऊतकों तक पहुँचाना है अतः इसे श्वसन वर्णक भी कहते हैं। हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन (haemoglobin) की कमी के कारण फेफड़ों से शरीर की कोशिकाओं के लिए ऑक्सीजन की उपलब्धता में कमी हो जाएगी, फलस्वरूप भोज्य पदार्थों के ऑक्सीकरण में बाधा उत्पन्न होगी। ऐसा होने से शरीर की विभिन्न क्रियाओं के संचालन के लिए आवश्यक ऊर्जा में कमी हो जाएगी। इसके कारण स्वास्थ्य खराब हो सकता है तथा शरीर में थकान रहने लगती है। हीमोग्लोबिन की कमी से होने वाले रोग को रक्ताल्पता (anaemia) कहते हैं। इसकी अत्यधिक कमी से रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।

प्रश्न 11. मनुष्य में दोहरे परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है?
उत्तर- मनुष्य के हृदय में चार कक्ष पाए जाते हैं-दो अलिंद तथा दो निलय। ऐसी व्यवस्था होने से मनुष्य में शुद्ध (ऑक्सीकृत) तथा अशुद्ध (अनॉक्सीकृत) रुधिर पृथक रहता है। मनुष्य के रुधिर परिसंचरण में रुधिर को हृदय से होकर दो बार गुजरना पड़ता है। पहले चक्र में अशुद्ध रुधिर को हृदय फेफड़ों में ऑक्सीकृत होने के लिए पम्प करता है। फेफड़ों से ऑक्सीकृत रुधिर वापस बाएँ निलय में आता है जहाँ से दूसरे चक्र में इसे विभिन्न अंगों को पम्प किया जाता है। शरीर के अंगों से अशुद्ध रुधिर पुनः हृदय के दाएँ अलिन्द में आता है। अतः रुधिर का परिसंचरण दो बार होता दोहरा परिसंचरण होने के कारण शरीर के विभिन्न ऊतकों को अधिक-से-अधिक ऑक्सीजन उपलब्ध हो पाती है। मनुष्य को नियततापी होने के कारण ताप नियन्त्रण के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो श्वसन से प्राप्त होती है।

प्रश्न 12. जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में क्या अन्तर है?
उत्तर- जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में अन्तर –

जाइलम में वहन फ्लोएम में वहन
1. जाइलम में जल एवं इसमें घुलित खनिज लवणों का वहन होता है। 1. इसमें पत्तियों में संश्लेषित खाद्य पदार्थों का वहन होता है।
2. जाइलम में वहन केवल ऊपर की ओर होता है। 2. फ्लोएम में वहन ऊपर तथा नीचे की ओर दोनों दिशाओं में होता है।
3. जाइलम में वहन भौतिक बलों द्वारा सम्पन्न होता है। 3. फ्लोएम में वहन ऊर्जा का उपयोग करके होता है।

प्रश्न 13. फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रिया-विधि की तुलना कीजिए।
उत्तर- फुफ्फुस में कूपिकाओं तथा वृक्क  में वृक्काणु की तुलना

फुफ्फुस में कूपिकाएँ वृक्क में वृक्काणु
1. वायु कूपिकाएँ फेफड़ों की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाइयाँ हैं। 1. वृक्काणु वृक्क की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाइयाँ हैं।
2. इनकी संख्या अत्यधिक (लगभग 15 करोड़ प्रति फेफड़ा) होती है। 2. इनकी संख्या भी अत्यधिक (लगभग 10 लाख  प्रति वृक्क) होती है।
3. इनमें पतली केशिकाओं का जाल होता है। 3. इनमें भी पतली केशि काओं का जाल होता है।
4. वायु कूपिकाएँ गैसों के आदान-प्रदान के लिए अत्यधिक सतह धरातल उपलब्ध कराती हैं। 4. वृक्काणु रुधिर से उत्सर्जी पदार्थों को पृथक् करने के लिए अत्यधिक सतह धरातल उपलब्ध करात हैं।
5. कूपिकाओं में CO2, रुधिर से अलग तथा O2, रुधिर होते हैं। 5. वृक्काणु में रुधिर से वर्ण्य नाइट्रोजनी पदार्थ पृथक् में मिलती है।

Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (Very ShortAnswer Type Questions)

बहुविकल्पीय प्रश्न (Objective Type Questions)

1. पौधों में प्रकाश-संश्लेषण क्रिया सम्पन्न होती है-
(a) माइटोकॉण्ड्रिया में
(b) हरितलवक में
(c) केन्द्रक में
(d) जड़ में।
उत्तर- (b) हरितलवक में।

2. निम्नलिखित में से स्वपोषी है –
(a) मनुष्य
(b) फफूंद
(c) हरा शैवाल
(d) अमरबेल।
उत्तर- (c) हरा शैवाल।

3. लार में उपस्थित एन्जाइम है-.
(a) लाइपेज
(b) टायलिन
(c) पेप्सिन
(d) रेनिन।
उत्तर- (b) टायलिन।

4. वायवीय श्वसन में ग्लूकोज के विखण्डन से उत्पन्न ATP की संख्या होती है –
(a) 2
(b) 8
(c) 16
(d) 38.
उत्तर- (d) 38.

5. कोशिका की ऊर्जा मुद्रा है
(a) ATP
(b) RNA
(c) DNA
(d) ADP.
उत्तर- (a) ATP.

6. मनुष्य में सामान्य प्रकुचन रुधिर दाब तथा अनुशिथिलन रुधिर दाब क्रमशः होता है –
(a) 100 एवं 60
(b) 120 एवं 80
(c) 140 एवं 100
(d) 160 एवं 120.
उत्तर- (b) 120 एवं 80.

7. मनुष्य द्वारा निश्वसन में फेफड़ों द्वारा खींची गयी वायु में ऑक्सीजन का प्रतिशत होता है –
(a) 16%
(b) 21%
(c) 0.03%
(d) 78%
उत्तर- (b)21%.

8. मनुष्य के रुधिर में पाया जाने वाला श्वसन वर्णक है-
(a) हीमोसायनिन
(b) क्लोरोफिल
(c) हीमोग्लोबिन
(d) जैन्थोफिल।
उत्तर- (c) हीमोग्लोबिन।

9. उत्सर्जन की क्रिया में भाग लेने वाली वृक्क की इकाई
(a) केशिका
(b) रुधिराणु
(c) कूपिका
(d) वृक्काणु।
उत्तर- (d) वृक्काणु।

10. प्रकाश-संश्लेषण में पौधे द्वारा निकाली गयी O2 आती
(a) CO2 से
(b) जल से
(c) ग्लूकोज से
(d) ATP से।
उत्तर- (b) जल से।

11. रुधिर से मूत्र का पृथक्करण होता है
(a) यकृत में
(b) वृक्क में
(c) आमाशय में
(d) मूत्राशय में।
उत्तर- (b) वृक्क में।

12. निम्नलिखित में से कौन-सा जीव प्राणी समभोजी है?
(a) कवक
(b) जीवाणु
(c) पौधे
(d) मनुष्य
उत्तर-(d) मनुष्य
13. प्रकाशसंश्लेषण में किस ऊर्जा का प्रयोग होता है ?
(a) रासायनिक ऊर्जा का
(b) ताप ऊर्जा का
(c) सौर ऊर्जा का
(d) पवन ऊर्जा का
उत्तर – (c) सौर ऊर्जा का
14. प्रकाशसंश्लेषण का उपोत्पाद है –
(a) कार्बन डाइऑक्साइड
(b) पानी
(c) ग्लूकोज़
(d) ऑक्सीजन
उत्तर-(d) ऑक्सीजन
15. प्रकाशसंश्लेषण का स्थान है –
(a) क्लोरोप्लास्ट
(b) ल्यूकोप्लास्ट
(c) क्रोमोप्लास्ट
(d) एमाइलोप्लास्ट
उत्तर – (a) क्लोरोप्लास्ट
16. प्रकाश अभिक्रिया में उत्पादित अपचायक शक्ति है –
(a) ए०टी०पी०
(b) ए०टी०पी०
(c) NADPH
(d) ए०टी०पी० + NADPH
उत्तर-(d) ए०टी०पी० + NADPH
17. प्रकाशसंश्लेषण की दर निम्नलिखित में से किस कारक पर निर्भर करती है ?
(a) प्रकाश
(b) कार्बन डाइऑक्साइड
(c) क्लोरोफिल
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर – (d) उपरोक्त सभी
18. कार्बन डाइऑक्साइड के स्थिरीकरण का अर्थ है –
(a) श्वसन
(b) प्रकाशसंश्लेषण
(c) पोषण
(d) उत्सर्जन
उत्तर—(b) प्रकाशसंश्लेषण
19. प्रकाशसंश्लेषण के समय उत्सर्जित ऑक्सीजन प्रयोग की जाती है –
(a) श्वसन में
(b) पोषण में
(c) उत्सर्जन में
(d) जल का प्रकाशीय अपघटन में
उत्तर – (a) श्वसन में
20. अमीबा में पोषण का प्रकार है –
(a) प्राणी समभोजी
(b) मृतजीवी
(c) परजीवी
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर – (a) प्राणी समभोजी,
21. भोजन का पाचन निम्नलिखित में से किस अंग में नहीं होता ?
(a) मुखगुहा में
(b) आमाशय में
(c) क्षुद्रांत्र में
(d) ग्रसिका में
 उत्तर-(d) ग्रसिका में
22. भोजन का पाचन पूर्ण होता है –
(a) मुखगुहा में
(b) आमाशय में
(c) क्षुद्रांत्र में
(d) बृहदांत्र में
उत्तर – (c) क्षुद्रांत्र में
23. प्रोटीन का पाचन आरंभ होता है –
(a) मुखगुहा में
(b) ग्रसिका में
(c) आमाशय में
(d) क्षुद्रांत्र में
उत्तर-(c) आमाशय में
24. दीर्घ रोम मुख्यतः विद्यमान होते हैं –
(a) क्षुद्रांत्र में
(b) बृहद्रांत्र में
(c) आमाशय में
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर – (a) क्षुद्रांत्र में
25. जठर रस में स्रावित HCI का कार्य है-
(a) यह अम्लीय माध्यम उपलब्ध करवाता है
(b) सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देता है
(c) भोजन को नरम कर देता है
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर – (d) उपरोक्त सभी
26. मानव शरीर की सबसे (बड़ी) पाचक ग्रंथि है –
(a) अग्न्याशय
(b) यकृत
(c) लार ग्रंथि
(d) जठर ग्रंथियाँ
उत्तर-(b) यकृत
27. निम्नलिखित में से कौन-सी एक मिश्रित ग्रंथि है ?
(a) यकृत
(b) अग्न्याशय
(c) क्षुद्रांत्र ग्रंथि
(d) लार ग्रंथि
उत्तर-(b) अग्न्याशय
28. पित्त कहाँ से स्रावित होता है ?
(a) अग्न्याशय
(b) लार ग्रंथि
(c) यकृत
(d) जठर ग्रंथि
उत्तर – (a) अग्न्याशय
29. आमाशय रस में होता है –
(a) पेप्सिन
(b) ट्रिप्सिन
(c) ऐमिलेज
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर-(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
30. टाएलिन विद्यमान है –
(a) पित्तरस में
(b) अग्न्याशय रस में
(c) जठर रस में
(d) लार में
उत्तर-(d) लार में
31. जंतुओं में संचित भोजन होता है –
(a) ग्लूकोज़
(b) ग्लाइकोजन
(c) स्टार्च
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर- (b) ग्लाइकोज़न
32. ग्लूकोज़ के एक अणु के अनॉक्सी श्वसन द्वारा कितने ए०टी०पी० उत्पादित होते हैं?
(a) 2 ए०टी०पी०
(b) 4 ए०टी०पी०
(c) 36 ए०टी०पी०
(d) 38 ए०टी०पी०
 उत्तर – (a) 2 ए०टी०पी०
33. ग्लूकोज़ के एक अणु के पूर्ण ऑक्सीकरण से कुल कितने ए०टी०पी० का लाभ होता है?
(a) 38 ए०टी०पी०
(b) 36 ए०टी०पी०
(c) 4 ए०टी०पी०
(d) 2 ए०टी०पी०
उत्तर-(b) 36 ए०टी०पी०
34. श्वसन के उत्पाद हैं –
(a) O2, H2O तथा ऊर्जा
(b) CO2, O2 + ऊर्जा
(c) CO2, H2O + तथा ऊर्जा
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर – (c) CO2, H2O + तथा ऊर्जा
35. पायरुवेट का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है –
(a) माइटोकॉन्ड्रिया में
(b) क्लोरोप्लास्ट में
(c) साइटोप्लाज्म में
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर – (a) माइटोकॉन्ड्रिया में
36. अनॉक्सी श्वसन के उत्पाद हैं –
(a) CO2 तथा H2O
(b) पायरुवेट
(c) C2H5OH तथा CO2
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर–(c) C2H5OH तथा CO2
37. कोशिका की ऊर्जा मुद्रा है –
(a) ए०एम०पी०
(b) ए०डी०पी०
(c) ए०टी०पी०
(d) NADPH
उत्तर-(c) ए०टी०पी०
38. मनुष्य में श्वसनी वर्णक है –
(a) हीमोग्लोविन
(b) हिमोसाएनिन
(c) हिमोलिंफ
(d) प्लाज्मा
उत्तर- (a) हीमोग्लोबिन
39. मृदा से अवशोषित जल तथा खनिज पादप के किस ऊतक में ऊपर की ओर प्रवाहित होते हैं ?
(a) जाइल्म
(b) फ्लोएम
(c) दोनों (A) तथा (B)
(d) (A) तथा (B) दोनों में नहीं
उत्तर- (a) जाइल्म
40. पौधों में जल तथा खनिजों का स्थानांतरण होता है – 
(a) फ्लोयम
(b) जाइलम
(c) मिजोफिल
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर-(b) जाइलम
41. हमारे शरीर में दिल के कितने कोष्ठ हैं ?
(a) 2
(b) 4
(c) 3
(d) 1
उत्तर-(B) 4
42. रक्त थोड़ा-सा क्षारीय प्रकृति का होता है इसका pH मान है –
(a) 6.8
(b) 7
(c) 7.4
(d) 8.8
उत्तर-(c) 7.4
43. रक्त संवहन करता है –
(a) केवल ऑक्सीजन
(b) केवल कार्बन डाइऑक्साइड
(c) (A) तथा (B) दोनों
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर-(c) (A) तथा (B) दोनों,

Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम

एक शब्द / वाक्यांश प्रश्न
प्रश्न 1. रंध्र क्या होते हैं?

उत्तर – पौधों में पत्तों ( व तने) की सतह में पाए जाने वाले विशेष प्रकार के छिद्र, जिनसे गैसों का आदान-प्रदान तथा वाष्पोत्सर्जन होता है, रंध्र कहलाते हैं ।

प्रश्न 2. जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – वायु की स्वतंत्र नाइट्रोजन का सूक्ष्मजीवों (कुछ जीवाणु तथा नीली हरी शैवाल ) के द्वारा नाइट्रोजन के यौगिकों में परिवर्तित करने की क्रिया, जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहलाती है ।
प्रश्न 3. विषमपोषी पोषण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – पोषण जिसमें कोई जीव भोजन का स्वयं संश्लेषण नहीं कर सकता, बल्कि पोषण के लिए अन्य जीवों, पौधों व जंतुओं पर निर्भर करता है, विषमपोषी पोषण कहलाता है ।
प्रश्न 4. ‘कवक’ में पोषण की कौन-सी विधि अपनाई जाती है ?
उत्तर – अधिकतर कवक मृतजीवी होते हैं ।
प्रश्न 5. मृतजीवी पोषण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – पोषण का प्रकार जिसमें कोई जीव किसी मृतजीव के शरीर (कार्बनिक पदार्थ) से, उन्हें अपने शरीर के बाहर अपघटित करके, घुलनशील पोषक तत्त्वों को अवशोषित करता है, मृतजीवी पोषण कहलाता है।
प्रश्न 6. परजीवी प्रकार के पोषण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – पोषण का प्रकार जिसमें कोई जीव अन्य जीव के शरीर में / पर रहकर उससे पोषक तत्त्व अवशोषित कर लेता है तथा इससे जीव (Host) को हानि पहुँचती है ।
प्रश्न 7. परजीवी जीव क्या होते हैं?
उत्तर – वे जीव जो अन्य जीवों के शरीर में/ पर रहकर, उन्हें हानि पहुँचाकर पोषण प्राप्त करते हैं, परजीवी कहलाते हैं।
प्रश्न 8. एक परजीवी पौधे का नाम बताएँ ।
उत्तर – अमर बेल ।
प्रश्न 9. ‘खाद्य रिक्तिकाएँ’ क्या होती हैं ?
उत्तर – रिक्तिकाएँ जिनमें खाद्य पदार्थ के कण विद्यमान होते हैं, खाद्य रिक्तिकाएँ कहलाती हैं ।
प्रश्न 10. अमीबा में किस प्रकार का पोषण होता है?
उत्तर – ‘भक्षाणु’ (Phagocytosis) प्रकार का पोषण अमीबा में होता है ।
प्रश्न 11. पोषण की भक्षाणु विधि से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – पोषण की प्रक्रिया जिसमें कोई कोशिका ठोस भोजन के कण ग्रहण करती है ।
प्रश्न 12. लार के अंदर कौन-सा एंजाइम उपस्थित होता है ?
उत्तर – एमिलेज (टायलिन ) ।
प्रश्न 13. आमाशय की भित्ति में कौन-सी ग्रंथियाँ विद्यमान होती हैं ?
उत्तर – जठर ग्रंथियाँ |
प्रश्न 14. आमाशय में कौन-सा अम्ल स्रावित होता है ?
उत्तर – हाइड्रोक्लोरिक अम्ल ।
प्रश्न 15. प्रोटीन का पाचन करने वाले दो एंजाइमों के नाम लिखें ।
उत्तर – पैप्सिन तथा ट्रिप्सिन |
प्रश्न 16. जठर रस में उपस्थित श्लेष्मा का क्या कार्य है? 
उत्तर – श्लेष्मा भोजन को चिकना बना देता है जिससे आहारनाल में इसकी गति नियमित हो जाती है l
प्रश्न 17. अम्लता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का अधिक स्रावण होना जिससे आंत में जलन तथा दर्द होता है ।
प्रश्न 18. बाघ में क्षुद्रांत्र छोटी क्यों होती है ?
उत्तर – बाघ एक माँसाहारी जीव है। माँस का पाचन सेल्युलोज / घास की अपेक्षा अधिक शीघ्रता से हो जाता है l
प्रश्न 19. मानव शरीर में उपस्थित सबसे बड़ी ग्रंथि का नाम बताएँ ।
उत्तर – यकृत मानव शरीर में उपस्थित सबसे बड़ी ग्रंथि है ।
प्रश्न 20. पित्तरस क्या है?
उत्तर – यकृत से स्रावित रस जिसमें बहुत सारे लवण होते हैं।
प्रश्न 21. अग्न्याशय क्या है?
उत्तर – अग्न्याशय एक मिश्रित ग्रंथि है जो आंत के मोड़ में स्थित होती है, जो एक रस स्रावित करती है जिसमें अनेक पाचक एंजाइम होते हैं ।
प्रश्न 22. क्षुद्रांत्र में दीर्घरोम होने का क्या लाभ है?
उत्तर – दीर्घरोम क्षुद्रांत्र का भोजन को अवशोषित करने का क्षेत्र बढ़ाते हैं।
प्रश्न 23. प्रकाशसंश्लेषण में कौन-सी गैस का उपयोग होता है तथा कौन-सी गैस उत्पादित होती है?
उत्तर – प्रकाशसंश्लेषण में CO2 प्रयुक्त होती है तथा O2 उत्पादित होती है ।
प्रश्न 24. हरे पौधों में प्रकाशसंश्लेषण कहाँ पर होता है ?
उत्तर – क्लोरोप्लास्ट के अंदर ।
प्रश्न 25. प्रकाशसंश्लेषण को प्रभावित करने वाले दो कारकों के नाम बताएँ ।
उत्तर – (i) प्रकाश, (ii) CO2 l
प्रश्न 26. एंजाइम क्या होते हैं?
उत्तर – एंजाइम विशेष प्रकार के प्रोटीन होते हैं जो जैव-उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं। वे जैव प्रक्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं ।
प्रश्न 27. प्रकाशसंश्लेषण में क्लोरोफिल की क्या भूमिका है?
उत्तर–क्लोरोफिल प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित कर लेता है जिसे CO2 के कार्बोहाइड्रेटस में स्थिरीकरण के लिए प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 28. उन कारकों के नाम बताएँ जिन पर रंध्रों का खुलना व बंद होना निर्भर करता है?
उत्तर- -यह द्वार कोशिकाओं के परासरण दाब पर निर्भर करता है । जब द्वार कोशिकाएँ फूली हुई होती हैं, तो रंध्र खुलते हैं।
प्रश्न 29. पौधों के उस ग्रुप का नाम बताइए जिनमें रंध्र रात के समय खुलते हैं ।
उत्तर – कैक्टस (मरुदभिद पौधे ) ओपनसिया ।
प्रश्न 30. पैरामीशियम में पोषण किस प्रकार होता है?
उत्तर – पैरामीशियम में भोजन एक विशिष्ट स्थान से ही ग्रहण किया जाता है, भोजन इस स्थान तक पक्ष्माभ की गति द्वारा पहुँचता है, जो जीव के पूरे शरीर को ढके रहते हैं ।
प्रश्न 31. जठर रस क्या होता है ?
उत्तर – आमाशय की भित्ति में स्थित जठर ग्रंथियों द्वारा स्रावित रस जिसमें पेप्सिनोजन, HCI तथा श्लेषमा, विद्यमान होते हैं।
प्रश्न 32. ‘श्वसन’ शब्द को परिभाषित करें।
उत्तर—भोजन; जैसे ग्लूकोज़ के CO2 तथा H2O में ऑक्सीकरण की क्रिया जो श्वसन एंजाइमों की सहायता से संपन्न होती है और जिस क्रिया में ए0टी0पी0 रूप में ऊर्जा सर्जित होती है, श्वसन कहलाती है।
प्रश्न 33. किण्वन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर – सूक्ष्मजीवों या एंजाइमों की सहायता से अवायवीय परिस्थितियों में कार्बनिक पदार्थों; जैसे शर्करा का ऐथेनॉल तथा CO2 में अपघटन किण्वन कहलाता है ।
प्रश्न 34. किण्वन के उत्पादों के नाम लिखें।
उत्तर – किण्वन के उत्पाद ऐथिल ऐल्कोहॉल तथा कार्बन डाइऑक्साइड होते हैं ।
प्रश्न 35. कोशिका के अंदर वायवीय श्वसन कहाँ पर होता है ?
उत्तर – माइटोकॉन्ड्रिया में ।
प्रश्न 36. ग्लाइकोलिसिस क्या है?
उत्तर – साइटोप्लाज्म के अंदर ग्लूकोज़ का वायु की अनुपस्थिति में पायरुवेट में परिवर्तन, ग्लाइकोलिसिस कहलाता है।
प्रश्न 37. कोशिका के अंदर ग्लाइकोलिसिस कहाँ पर होती हैं ?
उत्तर – क्लाइकोलिसिस कोशिका के कोशिकाद्रव्य/जीवद्रव्य में होती है ।
प्रश्न 38. ए०टी०पी० का पूर्ण रूप लिखें ।
उत्तर – एडिनोसीन ट्राईफॉस्फेट ।

Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1. सजीवों के चार लक्षण लिखिए।
उत्तर-

  1. सजीव गति करते हैं।
  2. इनमें श्वसन होता है।
  3. ये पोषण एवं पाचन करते हैं।
  4. इनमें वृद्धि होती है।

प्रश्न 2. पोषण, गैस-विनिमय तथा उत्सर्जन के सन्दर्भ में एक कोशिकीय जीविता क्यों उत्तम है ? ..
उत्तर-किसी भी एक कोशिकीय जीव की पूरी सतह पर्यावरण के सम्पर्क में रहती है अतः इन्हें भोजन ग्रहण करने के लिए, गैसों का आदान-प्रदान करने के लिए या वयं पदार्थों के निष्कासन के लिए किसी विशेष अंग की आवश्यकता नहीं होती है। अतः इनमें ऊर्जा का व्यय भी कम होता है।

प्रश्न 3. पोषण किसे कहते हैं ? विभिन्न प्रकार की पोषण विधियों के नाम लिखिए।
उत्तर- पोषण-जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा के स्रोत को भोजन के रूप में शरीर के अन्दर लेना पोषण कहलाता है।
पोषण के प्रकार –
I. स्वपोषी पोषण
II. विषमपोषी पोषण
1. मृतोपजीवी पोषण
2. प्राणी समभोजी पोषण
3. परजीवी पोषण
4. सहजीवी पोषण
5. परभक्षी पोषण।

प्रश्न 4. परपोषी जीव किस प्रकार स्वपोषी जीवों पर निर्भर करते हैं?
उत्तर- स्वपोषी (Autotrophic) जीव अपना भोजन स्वयं तैयार करते हैं। इसका कुछ भाग तो पौधों द्वारा स्वयं उपयोग कर लिया जाता है और शेष भाग संचित कर लिया जाता है। विषमपोषी अपना भोजन स्वयं तैयार नहीं करते हैं और स्वपोषियों द्वारा संचित भोजन को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ग्रहण करते हैं।

प्रश्न 5. पोषण सभी जीवों के लिए आवश्यक है। क्यों?
अथवा
जीव को भोजन की क्यों आवश्यकता होती हैं?
उत्तर- सभी जीवों को कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो भोजन में उपस्थित कार्बोहाइड्रेट्स तथा वसा के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है। प्रोटीन शरीर की टूट-फूट की मरम्मत के लिए आवश्यक होती है। यह उचित वृद्धि और परिवर्धन के लिए भी आवश्यक है। इसीलिए सभी जीवों के लिए भोजन आवश्यक है।

प्रश्न 6. भोजन के पाचन में पित्त रस की क्या भूमिका
अथवा
पित्त रस भोजन को पचाने में किस प्रकार सहायता करता है?
उत्तर- पित्त रस का स्रावण यकृत से होता है। यह निम्न प्रकार भोजन को पचाने में सहायक है-

  • यह आंत्र में भोजन की अम्लीयता को समाप्त करके माध्यम को क्षारीय बनाता है जिससे कि आंत्र में एन्जाइम भोजन का पाचन कर सके।
  • यह वसा अणुओं को छोटी-छोटी ग्लोब्यूल, में तोड़ देता है जिससे वसाओं का पाचन सुगम हो जाता है।

प्रश्न 7. प्रकाश संश्लेषण प्रक्रम में होने वाली मुख्य तीन घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। 
उत्तर- प्रकाश संश्लेषण प्रक्रम के दौरान निम्नलिखित घटनाएँ होती हैं-
1. क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करना-यह प्रक्रिया क्लोरोप्लास्ट के ग्रेना भाग में होती है। ग्रेना में उपस्थित क्लोरोफिल अणु प्रकाश ऊर्जा अवशोषित करके इलेक्ट्रॉन निष्कासित करते हैं।

2. प्रकाश द्वारा जल के अणुओं का प्रकाशीय अपघटन होता है जिससे ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन आयन बनते हैं। ऑक्सीजन वायुमण्डल में चली जाती है।

3. उपरोक्त दोनों क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न इलेक्ट्रॉन तथा हाइड्रोजन आयनों से परिपाचन पदार्थ का निर्माण होता है जो क्लोरोप्लास्ट के स्ट्रोमा भाग में कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन कर देता है।

प्रश्न 8. पत्ती की अनुप्रस्थ काट के आरेख में उन कोशिकाओं को प्रदर्शित कीजिए जिनमें क्लोरोफिल पाया जाता है ?
उत्तर-

प्रश्न 9. अमीबा में पोषण की विधि लिखिए। 
उत्तर- एक कोशिकीय जीव होने के कारण अमीबा में भोजन कोशिका की सम्पूर्ण सतह से ग्रहण किया जाता है। यह सूक्ष्म कीटों तथा डायटम्स को खाता है। जल में तैरते हुए भोज्य कण जब अमीबा के सम्पर्क में आते हैं तो अमीबा में पादाभ उत्पन्न हो जाते हैं। ये पादाभ भोजन कण को चारों ओर से घेर लेते हैं और एक रिक्तिका बना लेते हैं जिसे खाद्यधानी कहते हैं। खाद्यधानी में भोजन कणों का पाचन कर लिया जाता है।

प्रश्न 10. यकृत के कार्य लिखिए।
उत्तर- यकृत के निम्नलिखित कार्य हैं-

  1. यकृत पित्त रस का स्रावण करता है, जो आमाशय से आये भोजन को क्षारीय बनाता है, वसा के इमल्सीकरण में सहायक होता है, भोजन को सड़ने से रोकता है एवं आहार नाल में क्रमाकुंचन गति को उद्दीपित करता है।
  2. यकृत ग्लाइकोजन के रूप में भोजन का संचय करता है।
  3. यकृत में ग्लूकोजिनोलाइसिस की क्रिया होती है जिसमें आवश्यकता पड़ने पर ग्लाइकोजन से ग्लूकोज बनता है।
  4. यकृत में ग्लाइकोनियोजेनेसिस की क्रिया होती है जिसमें आवश्यकता पड़ने पर अमीनो एवं वसीय अम्लों से ग्लूकोज का निर्माण होता है।
  5. यकृत वसा एवं विटामिन्स का संचय करता है।

प्रश्न 11. निम्नलिखित को किस रूप में संग्रहित किया जाता है?
(i) पौधों में अनुपयोगी कार्बोहाइड्रेट
(ii) मनुष्यों में भोजन से उत्पन्न ऊर्जा।
उत्तर-
(i) पौधों में अनुपयोगी कार्बोहाइड्रेट मंड के रूप में संग्रहित रहता है।
(ii) मनुष्यों में भोजन से प्राप्त ऊर्जा ATP या ADP के रूप में संग्रहित रहती है।

प्रश्न 12. तालिका के रूप में स्वपोषी पोषण और विषमपोषी पोषण के बीच तीन विभेदनकारी अभिलक्षणों की सूची बनाइए। 
उत्तर-

स्वपोषी पोषण विषमपोषी पोषण
(i) भोजन प्रकाश संश्लेषण द्वारा स्वयं बनाया जाता है। भोजन स्वयं न बनाकर दूसरे जीवों से प्राप्त किया जाता है।
(ii) प्रायः क्लोरोफिल वाले हिस्से में होता है-हरे पौधे एवं शैवाल। क्लोरोफिल का अभाव प्रायः कवक, जन्तुओं एवं कुछ जीवाणुओं में।
(iii) सौर ऊर्जा को रासा यनिक ऊर्जा (भोजन) में बदलते हैं। रासायनिक ऊजां का भोजन के रूप में उपभोग करते हैं।
(iv) भोजन स्टार्च के रूप में संचित होता है। भोजन ग्लाइकोजन के रूप में संचित होता है।

प्रश्न 13. “जैव-विकास तथा जीवों का वर्गीकरण परस्पर सम्बन्धित है।” इस कथन की कारण सहित पुष्टि कीजिए। 
उत्तर- जैव विकास से अभिप्राय, क्रमिक परिवर्तनों द्वारा प्रारम्भिक निम्न कोटि के सरल जीवों से जटिल जीवों की उत्पत्ति है। वर्गीकरण में इन्हीं जीवों को समानता तथा विभिन्नता के आधार पर समूहों और उपसमूहों में रखा जाता है। दो जीवों (प्रजातियों) में जितनी अधिक समानतायें पायी जाती हैं, वह उतनी ही एक-दूसरे से सम्बन्धित होती हैं। अतः वर्गीकरण की सहायता से दो जीवों के बीच में सम्बन्ध पता किया जा सकता है। अतः जैव विकास और वर्गीकरण परस्पर सम्बन्धित है।

प्रश्न 14. जैव-विकास क्या है? इसे प्रगति के समान नहीं माना जा सकता। एक उपयुक्त उदाहरण की सहायता से व्याख्या कीजिए।
उत्तर- प्रारम्भिक निम्न कोटि के सरल जीवों से क्रमिक परिवर्तनों द्वारा उच्च कोटि एवं जटिल जीवों की उत्पत्ति को जैव-विकास कहते हैं। जैव-विकास को प्रगति के समान नहीं माना जा सकता, क्योंकि जैव-विकास से सरल जीवों से जटिल जीवों की उत्पत्ति/उद्भव होती है परन्तु सरलतम जीव भी जटिल जीवों के साथ अस्तित्व में रहते हैं। उदाहरण के लिए, मानव का विकास चिंपैंजी से नहीं हुआ है, परन्तु दोनों के ही पूर्वज समान थे।

प्रश्न 15. निश्वसन तथा उच्छवसन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- निश्वसन-वह प्रक्रिया जिसमें वातावरण से वायु अन्दर खींची जाती है, निश्वसन कहलाती है। उच्छवसन-वह प्रक्रिया जिसमें फेफड़ों से वायु बाहर निकाली जाती है, उच्छवसन कहलाती है।

प्रश्न 16. किसी कीट की प्रत्येक कोशिका में वायु कैसे प्रवेश करती है?
अथवा
कीट किस प्रकार श्वसन करते हैं?
उत्तर- कीटों में श्वसन वायु नलिकाओं द्वारा होता है जिन्हें देकिया (Trachea) कहते हैं। ट्रेकिया वायु को सीधे ही कोशिकाओं तक पहुँचाती है। वातावरण से वायु ट्रेकिओल्स में प्रवेश करती है जहाँ से यह कोशिकाओं और ऊतकों में पहुँचती है।

प्रश्न 17. पौधों में श्वसन क्रिया किस प्रकार होती है ?
उत्तर- पौधों में ऑक्सी तथा अनॉक्सी दोनों प्रकार का श्वसन पायो जाता है। ऑक्सी श्वसन वायु की उपस्थिति में होता है। इसमें रन्ध्रों द्वारा ऑक्सीजनयुक्त वायु उपरन्ध्रीय गुहा में प्रवेश करती है तथा CO2, युक्त वायु बाहर निकलती है। यह प्रक्रिया पौधों में लगातार होती रहती है जिसमें गैसीय विनिमय दो चरणों में होता है-

  • श्वसनी कोशिकाओं तथा अन्त:कोशिकीय वायु के बीच गैसों का विनिमय।
  • वातावरणीय वायु तथा अन्त:कोशिकीय वायु में विनिमय।

प्रश्न 18. वातरन्ध्र क्या हैं ? चित्र बनाकर समझाइए।
उत्तर- वातरन्ध्र (Lenticels)-वातरन्ध्र पौधों के तनों में पाये जाने वाले सूक्ष्म छिद्र हैं जो बाह्य त्वचा के फटने पर बनते हैं और गैसों का विनिमय करते हैं। वातरन्ध्रों के निर्माण के समय कॉर्क कैम्बियम बाहर की ओर कॉर्क न बनाकर पतली भित्ति वाली मृदुतकीय कोशिकाओं को बनाता है जिन्हें पूरक कोशिकाएँ कहते हैं। इन पूरक कोशिकाओं के निर्माण के कारण बाह्य त्वचा टूट जाती है, और वातरन्ध्र बन जाते हैं।

प्रश्न 19. मनुष्य में श्वास लेने की क्रियाविधि के दो आधारों को समझाइए।
उत्तर- मनुष्य में श्वासोच्छ्वास की क्रिया दो चरणों में पूर्ण होती है-
1. निश्वसन (Inspiration)-वायुमण्डलीय वायु को खींचकर पंकड़ों में भरने की क्रिया निश्वसन कहलाती है। इस क्रिया के लिए मस्तिष्क के श्वसन केन्द्र से उद्दीपन प्राप्त होता है। इसके कारण बाह्य इंटरकास्टल पेशियाँ संकुचित होती हैं जिससे पसलियाँ बाहर की ओर झुक जाती हैं। इसी समय डायफ्राम की अरीय पेशियाँ संकुचित तथा उदर पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं, जिससे वक्षीय गुहा का आयतन बढ़ जाता है। इसके साथ ही फेफड़े का आयतन भी बढ़ जाता है, फलस्वरूप श्वास मार्ग से होती हुई वायु फेफड़ों में भर जाती है।

2.निःश्वसन (Expiration)-फेफड़ों की वायु का बाहर निकाला जाना नि:श्वसनं कहलाता है। मस्तिष्क के श्वसन केन्द्र से उद्दीपन प्राप्त होने पर अन्तः इंटरकास्टल पेशियाँ, संकुचित डायफ्राम की पेशियाँ शिथिल तथा उदर गुहा की पेशियाँ संकुचित होती हैं, फलस्वरूप वक्षीय गुहा के साथ फेफड़ों का आयतन कम हो जाता है। अतः फेफड़ों की वायु श्वसन मार्ग से होती हुई बाहर निकल जाती है।

प्रश्न 20. निश्वसन तथा निःश्वसन में अन्तर लिखिए।
उत्तर- निश्वसन एवं निःश्वसन में अन्तर-

निश्वसन (Inspiration) निःश्वसन (Expiration)
1. इसमें ऑक्सीजन युक्त वायु फेफड़ों में प्रवेश करती है। 1. इसमें CO2 युक्त वायु फेफड़ों से बाहर निकलती है।
2. इसमें बाह्य अन्तरापर्युक पेशियों तथा डायफ्राम की अरीय पेशियों में संकुचन होता है। 2. इसमें अन्तः अन्तरापर्शक पेशियों तथा अरीय पेशियों में संकुचन होता है।
3. इसमें डायफ्राम चपटा तथा स्टर्नम नीचे की ओर झुक जाता है। 3. इसमें डायफ्राम गुम्बद नुमा तथा स्टर्नम ऊपर खिसक जाता है।
4. इसमें पसलियाँ बाहर और आगे की ओर खिसकती है। 4. इसमें पसलियाँ भीतर और पीछे की ओर खिसकती है।
5. इसमें प्लूरल गुहाओं का आयतन बढ़ जाता है। 5. इसमें प्लूरल गुहाओं का आयतन कम हो जाता है।

प्रश्न 21. कठिन व्यायाम का श्वसन दर पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों ?
उत्तर- सामान्य अवस्था में मनुष्य की श्वास दर (Breathing rate) 15-18 प्रति मिनट होती है। कठिन परिश्रम या व्यायाम के बाद यह दर बढ़कर 20-25 प्रति मिनट हो जाती है। इसका कारण है कि व्यायाम के समय अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अत्यधिक ऊर्जा प्राप्ति के लिए अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इसीलिए कठोर व्यायाम के बाद श्वास दर बढ़ जाती है।

प्रश्न 22. प्रकाश संश्लेषण तथा श्वसन में अन्तर लिखिए।
उत्तर- प्रकाश संश्लेषण तथा श्वसन में अन्तर-

प्रकाश संश्लेषण(Photosynthesis) श्वसन  (Respiration)
1. यह एक सृजनात्मक क्रिया है। 1. यह एक विघटनात्मक क्रिया है।
2. यह क्लोरोफिल युक्त पादप कोशिकाओं में होती है। 2. यह सभी जीवित भागों में होती है।
3. यह क्रिया सूर्य के प्रकाश पर निर्भर है। 3. इसमें प्रकाश की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति का कोई प्रभाव नहीं होता।
4. इसमें CO2 ग्रहण की जाती है तथा O2 निकलती 4. इसमें O2 ग्रहण की जाती है तथा CO2 निकलती
5. इसमें ऊर्जा अवशोषित की होती है। 5. इसमें ऊर्जा उत्सर्जित जाती है।
6. इस क्रिया में शुष्क भार में वद्धि होती है। 6. इस क्रिया में शुष्क भार में कमी होती है।

प्रश्न 23. पौधों में परिसंचरण के सम्बन्ध में वहन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- पत्तियों द्वारा बनाए गए भोजन को पौधे के विभिन्न भागों में पहुँचाने की प्रक्रिया को वहन कहते हैं। यह परिसंचरण की भाँति ही आवश्यक है क्योंकि पौधे के प्रत्येक भाग को कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है जिसे पौधे इस भोजन से प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 24. मनुष्य के फेफड़ों का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर-

प्रश्न 25. धमनी एवं शिरा में अन्तर लिखिए।
उत्तर- धमनी एवं शिरा में अन्तर-

धमनी (Arteries) शिरा (Veins)
1. ये मोटी और लचीली दीवार वाली नलिकाएँ हैं। 1. ये पतली और दृढ़ दीवार वाली संकरी नलिकाएँ हैं।
2. ये शुद्ध रुधिर को हृदय से शरीर में विभिन्न अंगों में पहुँचाती हैं (पल्मोनरी धमनी को छोड़कर)। 2. ये अशुद्ध रुधिर को शरीर के अंगों से हृदय में लाती हैं (पल्मोनरी शिरा को छोड़कर)।
3. इनमें वाल्व अनुपस्थित होते हैं। 3. वाल्व उपस्थित होते हैं।
4. इनमें रुधिर का बहाव तीव्र व झटके के साथ होता है। 4. इनमें रुधिर का बहाव सामान्य व धीरे-धीरे होता है।
5. ये अधिक गहराई में उपस्थित होती हैं। 5. ये माँस में कम गहराई पर स्थित होती हैं।

प्रश्न 26. खुला परिसंचरण तथा बन्द परिसंचरण तन्त्र में अन्तर कीजिए। .
उत्तर- खला परिसंचरण तथा बन्द परिसंचरण तन्त्र में अन्तर

खुला परिसंचरण बन्द परिसंचरण
1. इसमें रुधिर किसी प्रकार की वाहनियों में नहीं बहता है। 1. इसमें रुधिर महीन, लचीली धमनियों एवं शिराओं में बहता है।
2. इसमें रुधिर आंतरांगों के आस-पास पाया जाता है। 2. इसमें रुधिर हृदय से विभिन्न अंगों को पम्प किया जाता है।
3. इसमें किसी प्रकार का दाब उत्पन्न नहीं होता है। 3. इसमें रुधिर दाब उत्पन्न होता है।

प्रश्न 27. शरीर में O2 तथा CO2 के परिवहन व्यवस्था का चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर- मनुष्य का हृदय अपने एक चक्र में रुधिर को दो बार पम्प करता है जिसे दोहरा परिसंचरण कहते हैं। फेफड़ों में उपस्थित वायु कूपिकाओं से ऑक्सीजन लेकर फुफ्फुस महाशिरा हृदय में खुलती है। ऑक्सीजनयुक्त रुधिर हृदय से अब महाधमनी द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों को भेजा जाता है। शरीर के ऊतकों से CO2 युक्त रुधिर शिराओं से महाशिरा में आता है जो CO2 युक्त रुधिर को पुनः हृदय में लाती है। CO2 युक्त रुधिर अब हृदय फुफ्फुस धमनी द्वारा फेफड़ों में भेज देता है। फेफड़ों में जाकर CO2 वायु कूपिकाओं में चली जाती है जहाँ से CO2 वायु के साथ बाहर निकाल दी जाती है।

प्रश्न 28. रुधिर एवं लसीका में भेद कीजिए।
उत्तर- रुधिर एवं लसीका में अन्तर-

रुधिर (Blood) लसीका (Lymph)
1. यह लाल रंग का होता है। 1. यह रंगहीन या हल्के पीले रंग का होता है।
2. इसमें रुधिर कणिकाएँ RBCs, WBCs तथा बिम्बाणु उपस्थित होती हैं। 2. इसमें कणिकाएँ अनुप स्थित होती हैं।
3. इसमें हीमोग्लोबिन होता है। 3. इसमें हीमोग्लोबिन नहीं होता है।
4. यह हृदय से अंगों तक तथा अंगों से हृदय तक बहता है। 4. यह केवल एक ही दिशा में बहता है अर्थात् ऊतकों से हृदय की ओर।
5. इसमें श्वसन वर्णक, ऑक्सीजन, CO2 एवं  वर्ण्य पदार्थ होते हैं। 5. इसमें अल्प मात्रा में प्रोटीन होते हैं।

प्रश्न 29. फ्लोएम में भोजन का संवहन किस प्रकार होता है? फ्लोएम ऊतक का चित्र खींचिए। (RBSE 2015)
उत्तर- फ्लोएम द्वारा पत्तियों में निर्मित खाद्य पदार्थों का पौधे के विभिन्न भागों को स्थानान्तरण होता है। फ्लोएम द्वारा खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण ATP की ऊर्जा का उपयोग करके होता है।

ऊर्जा द्वारा फ्लोएम का परासरण दाब बढ़ जाता है जिससे जल इसमें प्रवेश कर जाता है। यह दाब पदार्थों को फ्लोएम से उस ऊतक तक ले जाता है जहाँ दाब कम होता है। यह फ्लोएम को पादप की आवश्यकतानुसार पदार्थों का स्थानान्तरण करता है।

प्रश्न 30. मानवों में वहन तंत्र के दो प्रकारों की सूची बनाइए तथा इनमें से किसी एक के कार्य लिखिए। 
उत्तर- मानवों में वहन तंत्र के दो प्रकार –

  • रक्त परिवहन,
  • लसीका परिवहन तंत्र।

मनुष्य में दो वहन तंत्र के कार्य हैं-

  1. यह ऑक्सीजन, प्रोटीन्स, खनिज आदि को शरीर के – एक भाग से दूसरे भाग में पहुँचाता है।
  2. यह विभिन्न अपशिष्ट पदार्थों को विभिन्न अंगों से मुख्य उत्सर्जी अंगों तक पहुँचाता है।

प्रश्न 31. डायलिसिस क्या है ? नेफ्रॉन को डायलिसिस का थैला क्यों कहते हैं ?
उत्तर- अपोहन या डायलिसिस (Dialysis)- यदि किसी लवण एवं मंड के विलयन को सैलोफेन की थैली में भरकर उसे आसवित जल में लटका दिया जाए तो लवण के आयन सैलोफेन से होते हुए आसवित जल में प्रवेश कर जाते हैं और स्टार्च थैली के अन्दर ही रह जाता है। यह प्रक्रिया डायलिसिस कहलाती है।

नेफ्रॉन को डायलिसिस का थैला इसीलिए कहा जाता है क्योंकि नेफ्रॉन की प्यालेकार संरचना बोमैन सम्पुट में उपस्थित केशिका गुच्छ की दीवारों से रुधिर छनता है।  रुधिर में उपस्थित प्रोटीन के अणु बड़े होने के कारण नहीं ) छन पाते जबकि ग्लूकोज एवं लवण अणु छोटे होने के कारण छन जाते हैं। इस प्रकार नेफ्रॉन डायलिसिस की थैली की 7 तरह कार्य करता है। वृक्कों के अनियमित कार्य करने पर डायलिसिस विधि द्वारा रोगी में वृक्क का कार्य कराया जाता है।

प्रश्न 32. पौधों और जन्तुओं में वर्त्य पदार्थ क्या हैं?
अथवा
पौधों और जन्तुओं के उत्सर्जी पदार्थ बताइए।
उत्तर- जन्तुओं में उत्सर्जी पदार्थ-CO2 पित्तवर्णक, नत्रजनी पदार्थ, अमोनिया, यूरिया, यूरिक अम्ल, लवण व जल। पौधों के उत्सर्जी पदार्थ-अमोनिया जो पत्तियों में एकत्र होती है, गोंद, रेजिन, घुलनशील वर्ण्य पदार्थ।

प्रश्न 33. वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं? इसके दो कार्य लिखिए।
अथवा
(a) स्थानान्तरण किसे कहते हैं? पादपों के लिए यह क्यों आवश्यक है?
(b) स्थानान्तरण के फलस्वरूप पादपों में पदार्थ कहाँ पहुँचते हैं? 
उत्तर- वाष्पोत्सर्जन एक जैव प्रक्रम है इसमें पानी की अत्यधिक मात्रा पौधों के वायवीय भाग (प्रायः पत्तियों की सतह पर अवस्थित रन्ध्र) द्वारा जल वाष्प में परिवर्तित होती है। इसके निम्नलिखित कार्य हैं-

  • जड़ों से पानी एवं खनिज को पत्तियों तक पहुँचाना (परिवहन में सहायक)।
  • पौधों को गर्मियों में ठंडा रखना, वातावरण को ठंडा करना।
  • पत्तियों द्वारा निर्मित कार्बोहाइड्रेट ग्लूकोज को पौधों के अन्य भागों में स्थानान्तरित करना।

अथवा
(a) स्थानान्तरण से अभिप्राय है, पौधे के सभी भागों में आवश्यक पदार्थों; जैसे-जल, खनिज, भोज्य पदार्थ, पादप हॉर्मोन की पूर्ति करना एवं वर्ण्य पदार्थों को इकट्ठा कर उन्हें पौधे से अलग करने में सहायता करना ताकि पौधे स्वस्थ एवं व्यवस्थित जीवन प्राप्त कर सकें।
(b) स्थानान्तरण के फलस्वरूप जल एवं खनिज जाइलम के रास्ते पौधों के ऊपरी भाग में एवं भोज्य पदार्थ फ्लोइम के द्वारा पौधों के विशिष्ट भाग, जड़/तना/पत्ती/बीज/फल में एकत्र होते हैं।

प्रश्न 34. मानव में परिसंचरण तंत्र के निम्नलिखित घटकों में से प्रत्येक का एक कार्य लिखिए-
(a) रुधिर वाहिनियाँ,
(b) लिम्फ,
(c) हृदय
उत्तर-
(a) रुधिर वाहिनियाँ-ये पूरे शरीर में रक्त को लेकर जाती हैं।
(b) लिम्फ-इसकी लिम्फोसाइड कोशिकाएँ रोगोत्पादक पदार्थों, जीवाणुओं आदि को नष्ट करती हैं।
(c) हृदय-यह पूरे शरीर में रुधिर को पम्प करता है अर्थात् रुधिर का परिसंचरण करता है।

Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम

निबन्धात्मक प्रश्न [Essay Type Questions]
प्रश्न 1. मानव की आहार नाल ( पाचन तंत्र ) की संरचना का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर- मानव की आहार नाल के निम्नलिखित भाग होते हैं
(i) मुखगुहा, (ii) फैरिंक्स, (iii) ग्रसिका, (iv) आमाशय, (v) क्षुद्रांत्र, (vi) बृहदांत्र, (vii) गुदा, (viii) मल द्वार ।
(i) मुख तथा मुखगुहा-मुख एक क्षैतिज छिद्र होता है जो दोनों ओर होठों से घिरा होता है । यह भोजन को ग्रहण करने के लिए होता है। मुख, मुखगुहा में खुलता है जो एक बड़ा स्थान होता है। मुखगुहा में लार ग्रंथियाँ लार स्रावित करती हैं ।
(ii) फेरिंक्स – यह आहार तथा वायु दोनों के लिए एक ही इकट्ठा / सामान्य रास्ता होता है ।
(iii) ग्रसिका – यह एक लंबी, पतली, पेशीय नलिका होती है जो मुखगुहा को आमाशय से जोड़ती है ।
(iv) आमाशय – यह एक बड़ा, पेशीय ‘J’ की आकृति की थैली नुमा संरचना है, जो डायाफ्राम के नीचे स्थित होती हैं ।
(v) क्षुद्रांत्र – यह आहार नाल का सबसे लंबा भाग है और लगभग 6 मीटर लंबा है । यह एक मुड़ी हुई पतली नलिका होती है जो उदर गुहा के निचले भाग में स्थित होती है।
(vi) बृहदांत्र – यह क्षुद्रांत्र से मोटी / चौड़ी होती है। यह लगभग 1.5 मीटर लंबी होती है ।
(vii) गुदा / मलाशय – यह बृहद्रांत्र का अंतिम भाग होता है जहाँ पर मल / वर्ज्य पदार्थ एकत्रित होता है ।
(viii) मल द्वार – मलाशय जिस छिद्र के द्वारा बाहर की ओर खुलता है, उसे मल द्वार कहते हैं । इसका खुलना या बंद होना गुदा अवरोधिनी द्वारा नियंत्रित किया जाता है ।
प्रश्न 2. आहार नाल के विभिन्न भागों में पाचन प्रक्रिया का वर्णन करें ।
उत्तर-  हम विभिन्न प्रकार का भोजन खाते हैं जो उसी पाचन नलिका में से होकर गुजरता है। भोजन का उपचार कर उसे छोटे-छोटे कणों में विभक्त किया जाता है। मुखगुहा में दांत भोजन को चबाते हैं। भोजन के पाचन का आरंभ मुखगुहा से ही आरंभ हो जाता है ।
1. मुखगुहा में पाचन-मुखगुहा में जिह्वा भोजन का स्वाद चखती है । दाँत भोजन को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देते हैं, लार ग्रंथियों से लार मुखगुहा में आती है। लार में टाएलिन नामक एंजाइम होता है जो भोजन में विद्यमान स्टार्च को माल्टोज में परिवर्तित कर देता है।
2. ग्रसिका – इसके पश्चात आहार खाद्य नली या ग्रसिका में प्रवेश करता है । ग्रसिका में कोई भी एंजाइम स्रावित नहीं होता । इसके बाद आहार आमाशय में प्रवेश करता है ।
3. आमाशय – आमाशय की आंतरिक भित्ति से तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा जठर रस स्रावित होता है
(i) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल माध्यम को अम्लीय बना देता है ।
(ii) यह कठोर आहार को कोमल कर देता है ।
(iii) यह हानिकारक सूक्ष्मजीवों / जीवाणुओं को मार देता है l
जठर रस में दो एंजाइम होते है –
(i) रेनिन-दूध को फाड़ देता है।
(ii) पेप्सिन आहार में उपस्थित प्रोटीनों को पेप्टॉन में तोड़ देता है।
4. ड्युओडिनम – क्षुद्रांत्र का प्रथम भाग ड्युओडिनम कहलाता है। इसमें दो प्रकार के पाचक रस स्रावित होते हैं। अग्न्याशय से अग्न्याशय रस तथा यकृत से पित्तरस। यकृत से स्रावित पित्तरस एक क्षारीय जूस होता है जो अम्लीय माध्यम को क्षारीय कर देता है। पित्तरस वसा को छोटी-छोटी गोलियों में तोड़ देता है तथा उसे इमलसीकृत कर देता है।
(a) यकृत से स्त्रावित पित रस एक प्रकार का क्षारीय रस होता है जो माध्यम को अम्लीय से क्षारीय कर देता है। पित वसा के बड़े कणों को छोटे कणों में परिवर्तित कर देता है तथा उसे इम्लसीकृत कर देता है ।
(b) अग्न्याशय से स्रावित अग्न्याशय रस में निम्नलिखित तीन एंजाइम होते हैं :
(i) ट्रिप्सिन – यह पेप्टॉन को पेस्टाइड में परिवर्तित कर देता है ।
(ii) एमिलेज-यह कार्बोहाइड्रेटस को माल्टोज में परिवर्तित करता है ।
(iii) लाइपेज – यह अम्लसीकृत वसा को वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल में परिवर्तित कर देता है I
5. क्षुद्रांत्र – क्षुद्रांत्र की भित्ति से पाचक रस स्रावित होता है, जिसमें पाँच एंजाइम होते हैं
(i) पेप्टाइडेज-यह पेप्टाइड को अमीनो अम्ल में परिवर्तित कर देता है ।
(ii) लाइपेज – यह शेष वसा को वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल में परिवर्तित कर देता है।
(iii) सुक्रेज – यह सुक्रोज को ग्लूकोज़ में परिवर्तित कर देता है।
(iv) माल्टेज- यह माल्टोज को ग्लूकोज़ में परिवर्तित कर देता है।
(v) लैक्टेज- यह लैक्टोज को ग्लूकोज़ में परिवर्तित कर देता है।
क्षुद्रांत्र की आंतरिक अवस्तर अंगुली जैसी संरचनाएँ बनती हैं जिन्हें दीर्घ रोम कहते हैं जो पाचित भोजन को अवशोषित कर लेती है, जो रक्त में मिश्रित हो जाता है। इस प्रक्रिया को अवशोषण कहते हैं । रक्त पाचित भोजन को परासरण प्रक्रिया द्वारा शरीर की सभी कोशिकाओं तक स्थानांतरित करता है ।
6. बृहदांत्र – इसमें आहार का पाचन नहीं होता। इसमें अतिरिक्त पानी को अवशोषित कर लिया जाता है। वर्ज्य पदार्थ गुदे में एकत्रित हो जाते हैं जिसका समय-समय पर बहिःक्षेपण किया जाता है ।
प्रश्न 3. रक्त के संघटन का विस्तार से वर्णन कीजिए ।
उत्तर – मानव रक्त रक्त लाल रंग का एक योजी ऊतक है । इसके दो प्रमुख घटक होते हैं –
(a) रक्त प्लैज्मा, (b) रक्त कणिकाएँ
(a) रक्त प्लैज्मा – यह हल्के पीले रंग का द्रव होता है । इसका 90% भाग पानी होता है तथा शेष लवण ग्लूकोज़, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, हार्मोन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड गैस, कुछ पाचित तथा कुछ अपाचित पदार्थ होते हैं।
कार्य- इसमें एक प्रोटीन जैसा फाइब्रिनोजन होता है जो रक्त के जमने में सहायक है। इसमें प्रतिरक्षी भी होते हैं जो बाहरी पदार्थ जैसे जीवाणुओं को निष्क्रिय कर देते हैं ।
(b) रक्त कणिकाएँ – रक्त में मुख्यतः तीन प्रकार की कणिकाएँ होती हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है –
(i) लाल रक्त कणिकाएँ (RBCs) – ये गोलीय, बीच में से दबी हुई कोशिकाएँ होती हैं। इनका जीवनकाल लगभग 4 महीने ( 120 दिन) का होता है। उनमें लाल रंग का एक प्रोटीन होता है जिसे हीमोग्लोबिन कहते हैं । ये गोल, छोटी एवं स्पाट होती हैं। परिपक्क होने पर इनमें केंद्रक नहीं होता। इनकी संख्या बहुत अधिक होती है । (50 लाख/मिमी03)।
कार्य – (1) ये रक्त को लाल रंग प्रदान करती हैं ।
(2) इनमें उपस्थित हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन को शरीर के सभी भागों में पहुँचाता है। ये ऑक्सीजन के साथ क्रिया करके ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनाती हैं ।
(ii) श्वेत रक्त कणिकाएँ – इनकी संख्या लाल रक्त कणिकाओं से कम होती है, लेकिन ये आकार में बड़ी होती हैं। ये रंगहीन होती हैं तथा इनमें हीमोग्लोबिन नहीं होता। उनकी आकृति भी कुछ निश्चित नहीं होती। इनमें केंद्रक भी होता है। ये पाँच प्रकार की होती हैं ।
कार्य- जो रोगाणु शरीर में प्रवेश करते हैं ये उन्हें मार देती हैं या निगल जाती हैं। इस प्रकार ये हमारे शरीर को रोगाणुओं से बचाती हैं । ये शरीर को प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती हैं ।
(iii) थ्रोम्बोसाइटस/विम्बाणु- ये बीच में से मोटी तथा किनारे से पतली होती हैं। ये आकार में बहुत ही छोटी होती हैं तथा इनमें केंद्रक होता है।
कार्य- ये रक्त के जमने में सहायक हैं। जब चोट के स्थान से रक्त बाहर आता है तो वे चोट के स्थान पर एकत्रित हो जाती हैं तथा एक रासायनिक अभिक्रिया का आरंभ करती हैं ताकि और अधिक रक्त बाहर न निकले ।
प्रश्न 4. (a) रक्तदाब से आप क्या समझते हैं ?
(b) रक्तदाब धमनियों में अधिक होता है या शिराओं में ?
(c) संकुचन दाब तथा विकुंचन दाब में क्या अंतर है?
(d) सामान्य संकुचन तथा विकुंचन दाब कितना होता है?
(e) रक्तदाब मापने के लिए किस यंत्र का उपयोग किया जाता है?
(f) अति तनाव का क्या अर्थ है ?
उत्तर- (a) वह बल, जो रक्त, धमनी की भित्तियों पर डालता है, ‘रक्तदाब’ कहलाता है।
(b) रक्तदाब धमनियों में अधिक होता है ।
(c) निलयों के संकुचन के कारण धमनियों में उत्पन्न रक्तदाब संकुचन दाब कहलाता है ? निलयों के फैलने के कारण धमनियों में उत्पन्न दाब विकुंचन दाब कहलाता है।
(d) सामान्य संकुचन दाब लगभग 120 mm Hg. है ।
सामान्य विकुंचन दाब लगभग 80mm Hg. है ।
(e) स्फाइग्मोमैनोमीटर
(f) उच्च रक्तदाब को अति तनाव कहते हैं ।
प्रश्न 5. (a) कृत्रिम वृक्क क्या होते हैं ?
(b) हमें उनकी आवश्यकता क्यों पड़ती है ?
(c) ये किस प्रकार कार्य करती हैं ?
उत्तर – (a ) कृत्रिम वृक्क – यह एक उपकरण होता है जो नाइट्रोजनी व्यर्थ पदार्थों को अपोहन के द्वारा रक्त से अलग करता है।
(b) हमें कृत्रिम वृक्क की आवश्यकता इसलिए पड़ती है, क्योंकि बहुत सारे कारक ; जैसे संक्रमण, चोट, कम रक्त का प्रवाह वृक्क की कार्य प्रणाली को कम कर देता है। इससे शरीर में हानिकारक पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है जिससे हो मृत्यु सकती है।
(c) कृत्रिम वृक्क अपोहन के सिद्धांत पर कार्य करता है ।
अपोहन – वह प्रक्रिया जिसमें रक्त से छोटे अणुः जैसे पानी, यूरिया तथा यूरिक अम्ल आदि छानकर अलग किया जाता है, लेकिन बड़े अणु जैसे प्रोटीन छनकर बाहर नहीं आते, अपोहन कहलाता है |
कृत्रिम वृक्क बहुत-सी अर्धपारगम्य अस्तर वाली नलिकाओं से युक्त होती है । ये नलिकाएँ अपोहन द्रव से भरी टंकी में लगी होती हैं। इस द्रव का परासरण दाब रुधिर जैसा ही होता है लेकिन इसमें नाइट्रोजनी अपशिष्ट उत्पाद नहीं होते। रोगी के रुधिर को इन नलिकाओं से प्रवाहित कराते हैं। इस मार्ग में रुधिर से अपशिष्ट उत्पाद विसरण द्वारा अपोहन द्रव में आ जाते हैं। शुद्धिकृत रुधिर वापस रोगी के शरीर में पंपित कर दिया जाता है । यह वृक्क के कार्य के समान है लेकिन एक अंतर है कि इसमें कोई पुनर्वाशोषण नहीं है । प्रायः एक स्वस्थ वयस्क में प्रतिदिन 180 लिटर आरंभिक निस्यंद वृक्क में होता है । यद्यपि एक दिन में उत्सर्जित मूत्र का आयतन वास्तव में एक या दो लिटर है क्योंकि शेष निस्यंद वृक्क नलिकाओं में पुनर्वाशोषित हो जाता है ।

Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 6 जैव प्रक्रम

महत्त्वपूर्ण प्रायोगिक क्रियाकलाप
प्रयोग 1. सिद्ध करना कि प्रकाशसंश्लेषण के लिए क्लोरोफिल की आवश्यकता होती है।
अथवा
पत्ती के परीक्षण में मंड की उपस्थिति का परीक्षण करना ।
आवश्यक सामग्री- गमले में लगा एक पौधा जिसके रंग-बिरंगे पत्ते हों बीकर, जल, ऐल्कोहॉल, आयोडीन घोल ।
विधि – (i) गमले में लगा एक संश्लेषित पत्ती वाला पौधा लीजिए (जैसे मनी प्लांट या क्रोटोन ) ।
(ii) पौधे को तीन दिन अंधेरे वाले कमरे में रखिए ताकि उसका संपूर्ण मण्ड प्रयुक्त हो जाए ।
(iii) फिर पौधे को छह घंटे के लिए सूर्य के प्रकाश में रखिए ।
(iv) पौधे की एक पत्ती तोड़ लीजिए | इसके हरे भाग को अंकित करिए तथा उन्हें कागज़ पर ट्रेस कर लीजिए |
(v) कुछ मिनट के लिए इस पत्ती को उबलते हुए पानी में डाल दीजिए ।
(vi) इसके बाद इसे ऐल्कोहल से भरे बीकर में डुबा दीजिए |
(vii) इस बीकर को सावधानी से जल ऊष्मक में रखकर तब तक गर्म कीजिए जब तक ऐल्कोहल उबलने न लगे ।
पत्ती रंगहीन हो जाती है तथा विलयन का रंग हरा हो जाता है ।
(viii) पत्ती को बाहर निकालकर तनु आयोडीन विलयन में कुछ समय के लिए डालिए ।
(ix) पत्ती को बाहर निकालिए व इसे पानी से धो डालिए ।
(x) पत्ती का रंग देखिए ।
अवलोकन – जहाँ पर पत्ती में क्लोरोफिल विद्यमान है वहाँ पर पत्ती का रंग नीला हो जाता है ।
परिणाम/निष्कर्ष–प्रकाशसंश्लेषण के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है। हरे पौधों द्वारा प्रकाशसंश्लेषण में मंड/ स्टार्च का संश्लेषण किया जाता है ।
प्रयोग 2. सिद्ध करना कि प्रकाशसंश्लेषण के लिए CO2 आवश्यक है ।
आवश्यक सामग्री – गमले में लगे हुए दो पौधे, बेलजार पोटैशियम हाइड्रोक्साइड, आयोडीन घोल ।
विधि –
(i) लगभग समान आकार के गमले में लगे दो पौधे लीजिए।
(ii) तीन दिन तक उन्हें अँधेरे कमरे में रखिए।
(iii) फिर प्रत्येक पौधे को अलग-अलग काँच पट्टिका पर रखिए। एक पौधे के पास वाच ग्लास में पोटैशियम हाइड्रोक्साइड रखिए । पोटैशियम हाइड्रोक्साइड का उपयोग कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने के लिए किया जाता है ।
(iv) दोनों गमलों को अलग-अलग बेलजार से ढक दीजिए ।
(v) जार की तली को सील करने के लिए काँच पट्टिका पर वैसलीन लगा देते हैं, इससे उपकरण वायुरोधी हो जाता है
(vi) लगभग दो घंटे के लिए पौधों को सूर्य के प्रकाश में रखिए ।
(vii) फिर प्रत्येक पौधे की एक एक पत्ती तोड़िए तथा आयोडीन घोल की सहायता से मंड की उपस्थिति की जाँच कीजिए ।
अवलोकन – पौधा जिसके पास KOH नहीं रखा गया था, अधिक स्टार्च की उपस्थिति को दर्शाता है।
परिणाम निष्कर्ष- KOH वायु से CO2 को अवशोषित कर लेता है। प्रकाशसंश्लेषण क्रिया बहुत ही कम या बिल्कुल नहीं हुई है जहाँ पर CO2 की उपस्थिति नहीं थी। इसका अर्थ यह है कि प्रकाशसंश्लेषण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड आवश्यक है।
प्रयोग 3. सिद्ध करना कि श्वसन प्रक्रिया में CO2 उत्पन्न होती है ।
आवश्यक सामग्री-चूने का पानी, परखनलियाँ, काँच की नली ।
विधि –
(i) दो परखनलियों में कुछ ताजा तैयार किया गया चूने का पानी लें ।
(ii) इस चूने के पानी में निःश्वास द्वारा निकली वायु प्रवाहित कीजिए।
(iii) एक पिचकारी की सहायता से दूसरी परखनली में उपस्थित चूने के पानी में से वायु गुजारें ।
(iv) नोट कीजिए कि चूने के पानी को दूधिया होने में कितना समय लगता है ।
अवलोकन – निःश्वास द्वारा छोड़ी गई वायु द्वारा चूने के पानी को दूधिया करने में बिल्कुल कम समय लगता है जबकि वायु द्वारा लगने वाला यह समय अधिक है।
परिणाम / निष्कर्ष – श्वसन में CO2 उत्पन्न होती है l CO2 की यह मात्रा वायु में उपस्थित CO2 की मात्रा से कहीं अधिक होती है ।
प्रयोग 4. किण्वन प्रक्रिया तथा उसके उत्पादों का अध्ययन करना ।
आवश्यक सामग्री – फलों का रस, शर्करा का घोल, यीस्ट पाउडर, चूने का पानी, परखनली आदि।
विधि :
(i) किसी फ्लास्क में कुछ फलों का जूस या शर्करा का घोल लीजिए |
(ii) इसमें कुछ पेस्ट पाउडर डालिए ।
(iii) फ्लास्क के मुँह पर कार्क लगाइए तथा उसमें से मुड़ी हुई (U) काँच की नली लगाइए ।
(iv) काँच की नली के स्वतंत्र सिरे को ताजे चूने के पानी वाली परखनली में ले जाइए। अवलोकन करें तथा गंध का अनुभव करें ।
अवलोकन – (i) चूने का पानी दूधिया हो जाता है ।
(ii) फलों का रस/शर्करा में से एक विशेष गंध आती है तथा बुलबुले उत्पन्न होते हैं l
परिणाम / निष्कर्ष – (i) किण्वन का एक उत्पाद CO2 है।
(ii) दूसरा उत्पाद ऐथिल ऐल्कोहॉल है जिसकी विशेष गंध है ।

Haryana Board 10th Class Science Notes Chapter 6 जैव प्रक्रम

→ सजीव (Living)-सप्राण या जीवित वस्तुओं को सजीव कहते हैं। सभी पौधे और जन्तु सजीव वस्तुएँ हैं।

→ सजीवों के लक्षण (Characteristics of Livings)-गति, प्रचलन, पोषण, वृद्धि, श्वसन, उत्सर्जन, नियंत्रण एवं समन्वयन, प्रजनन, मृत्यु आदि सजीवों के प्रमुख लक्षण हैं।

→ निर्जीव (Non-Living)-जिन वस्तुओं में उपरोक्त लक्षण नहीं पाए जाते हैं, उन्हें निर्जीव कहते हैं।

→ जैव प्रक्रम (Life Processes)-जीवधारियों में जीवित रहने के लिए होने वाली समस्त क्रियाओं को सामूहिक रूप से जैव प्रक्रम कहा जाता है, जैसे-पोषण, पाचन, श्वसन, वहन, उत्सर्जन, प्रचलन, नियन्त्रण एवं समन्वयन इत्यादि।

→ पोषण (Nutrition)-जीवधारी द्वारा पोषकों, जैसे-कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन्स, खनिज, विटामिन तथा जल के अन्तर्ग्रहण के साथ-साथ जीवधारी द्वारा इन पोषकों के उपयोग की प्रक्रिया को पोषण कहते हैं।

→  स्वपोषी पोषण (Autotrophic Nutrition)-पोषण की वह विधि जिसमें जीवधारी, पर्यावरण में उपस्थित सरल । कार्बनिक पदार्थों (जैसे-CO2, जल) से अपना भोजन स्वयं बनाते हैं, स्वपोषण विधि (mode of autotrophic nutrition) कहलाती है तथा ऐसे जीवधारी स्वपोषी (autotrophs) कहलाते हैं।

→ प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis)-पौधों के हरे भागों द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पर्णहरित (chloro phyll) की सहायता से CO2 तथा जल को ग्रहण करके जटिल कार्बनिक भोज्य पदार्थों (कार्बोहाइड्रेट्स) का संश्लेषण करना प्रकाश-संश्लेषण कहलाता है।

→ प्रकाश संश्लेषण के लिए सूर्य के प्रकाश, पर्णहरित, कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल की आवश्यकता होती है। यह एक संश्लेषी (anabolic) प्रक्रिया है जिसमें सरल पदार्थों से जटिल पदार्थों का निर्माण होता है।

→ विषमपोषी पोषण (Heterotrophic Nutrition)-पोषण की वह विधि जिसमें जीवधारी अपना भोजन स्वयं बनाकर, दूसरे जीवधारियों से प्राप्त करते हैं, पोषण की विषमपोषी विधि (mode of heterotrophic nutrition) ! कहलाती है तथा ऐसे जीवधारी विषमपोषी (Heterotrophic) कहलाते हैं।

→ शाकाहारी (Herbivorous)-वे जन्तु जो सीधे ही पौधों या पौधों के उत्पादों पर निर्वाह करते हैं, शाकाहारी कहलाते हैं; जैसे-हिरण) गाय आदि। |

→ माँसाहारी (Carnivorous)-ये जन्तु दूसरे जन्तुओं के माँस पर निर्वाह करते हैं; जैसे- शेर, बाघ आदि। |

→ सर्वाहारी (Omnivorous)-ये जन्तु पौधों एवं जन्तुओं तथा इनके उत्पादों पर निर्वाह करते हैं; जैसे-मानव, कुत्ता, बिल्ली आदि।

→ परभक्षी (Predators)- ऐसे जन्तु जो अपना भोजन किसी अन्य जन्तु को मार कर प्राप्त करते हैं; जैसे-बाघ, चीता आदि।

→ परजीवी (Parasites)- ऐसे जीव जो दूसरे जीवों पर निर्वाह करते हैं, किन्तु इनका उद्देश्य पोषक को मारना नहीं होता है; जैसे-घु, अमरबेल आदि।

→ कीटभक्षी पौधे (Insectivorous Plants)-ये वे पौधे होते हैं जो अपना भोजन तो स्वयं बना लेते हैं, किन्तु कुछ तत्वों (जैसे-नाइट्रोजन) की पूर्ति के लिए कीटों को पकड़ कर उनका पाचन करते हैं; जैसे-घटपर्णी, ड्रासेरा आदि।

→ पाचन (Digestion)-वह प्रक्रिया जिसके द्वारा भोज्य पदार्थों के बड़े, जटिल तथा अघुलनशील पदार्थ छोटे, सरल । एवं घुलनशील अणुओं में परिवर्तित हो जाते हैं, पाचन कहलाती है।

→ एककोशिकीय जीवों जैसे अमीबा में भोजन सम्पूर्ण सतह से ग्रहण किया जा सकता है, परन्तु जीव की जटिलता बढ़ने । । के साथ-साथ भोजन ग्रहण करने की जटिलता बढ़ती जाती है।

→ मानव पाचन तंत्र (Human Digestive System) मनुष्य में पाचन तंत्र जटिल प्रकार का होता है। जिसमें मुख, । ग्रासनली, आमाशय, आँत एवं विभिन्न पाचक ग्रन्थियाँ सम्मिलित होती हैं। |

→ श्वसन (Respiration)-जीवों में होने वाली वह जैव-रासायनिक प्रक्रिया जिसमें ऑक्सीजन की कोशिकीय आवश्यकता के अनुसार खाद्य पदार्थों का विघटन होकर ऊर्जा उत्पन्न होती है, श्वसन कहलाती है। इस क्रिया में ऑक्सीजन ग्रहण की जाती है तथा CO2, मुक्त होती है।

→ साँस लेना या श्वासोच्छवास (Breathing) – वह क्रियाविधि जिसके द्वारा जीवधारी वायु से ऑक्सीजन लेते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड निकालते हैं, साँस लेना कहलाती है।

→ श्वसन दो प्रकार का होता है-वायवीय श्वसन (जिसमें वायु की आवश्यकता होती है) तथा अवायवीय श्वसन । i जिममें वायु की आवश्यकता नहीं होती है।

→ किण्वन (Fermentation)-यह एक प्रकार का अवायवीय श्वसन है जिसमें यीस्ट द्वारा शर्करा का विघटन होकर ऐल्कोहॉल, कार्बन डाइऑक्साइड तथा ऊर्जा मुक्त होती है।

→ पौधों एवं जन्तुओं में साँस लेने की क्रिया भिन्न होती है किन्तु कोशिकीय श्वसन क्रियाएँ समान होती हैं। |

→ उपापचय (Metabolism)-उपचय (संश्लेषणात्मक) तथा अपचय (विघटनात्मक) क्रियाओं को सम्मिलित रूप से उपापचय कहते हैं।

→ उपचय क्रियाएँ (Anabolic Activities)-वे जैव-रासायनिक क्रियाएँ जिनमें सरल पदार्थों से जटिल पदार्थों का संश्लेषण होता है, उपचय क्रियाएँ कहलाती हैं। इन क्रियाओं में ऊष्मा अवशोषित की जाती है; जैसे-प्रकाश संश्लेषण।

→ अपचय क्रियाएँ (Catabolic Activities)-वे जैव-रासायनिक क्रियाएँ जिनमें जटिल पदार्थों का सरल पदार्थों में . विघटन होता है, अपचय क्रियाएँ कहलाती हैं। इन क्रियाओं में ऊष्मा उत्सर्जित होती है; जैसे – श्वसन।

→ सन्तुलन प्रकाश तीव्रता बिन्दु (Compensation Point)-सूर्योदय तथा सांय के समय पौधे वातावरण से CO2, तथा O2 का विनिमय नहीं करते हैं, उस समय को सन्तुलन प्रकाश तीव्रता बिन्दु कहते हैं।

→ विभिन्न प्राणियों में श्वसन विभिन्न अंगों द्वारा होता है; जैसे-अमीबा में कोशिका झिल्ली द्वारा, केंचुए में नम त्वचा द्वारा, जलीय जीवों में क्लोमों (Gills) द्वारा, कीटों में श्वासनली (Trachea) द्वारा तथा मनुष्य, कुत्ता, बन्दर आदि में फेफड़ों (Lungs) द्वारा श्वसन होता है जबकि मेंढक में त्वचा व फेफड़ों द्वारा श्वसन होता है।

→ वहन (Transportation)-शरीर में विभिन्न पदार्थों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर संचरण वहन कहलाता है। निम्न श्रेणी के जन्तुओं में वहन देहगुहीय द्रव, रुधिर प्लाज्मा या सीधे कोशिकाओं द्वारा होता है। उच्च श्रेणी के जन्तुओं में वहन रुधिर एवं लसीका द्वारा होता है।

→ मनुष्य में रुधिर परिवहन (Blood Circulation in Human)- मनुष्य के शरीर में परिवहन मुख्यतः रुधिर द्वारा होता है। मानव के परिसंचरण तन्त्र में हृदय (Heart), धमनियाँ (Arteries), शिराएँ (Veins) तथा केशिकाएँ (Capillaries) सम्मिलित हैं। हृदय पंपिंग स्टेशन का कार्य करता है तथा धमनियाँ रुधिर को विभिन्न अंगों तक पहुँचाती हैं और शिराएँ रुधिर को विभिन्न अंगों से हृदय में लाती हैं।

→ फुफ्फुस महाधमनी से अशुद्ध रुधिर फेफड़ों तक पहुँचाया जाता है तथा फुफ्फुस शिरा द्वारा शुद्ध रुधिर फेफड़ों से हृदय में लाया जाता है। शेष सभी धमनियाँ शुद्ध रुधिर तथा सभी शिराएँ अशुद्ध रुधिर का वहन करती हैं।

→ रुधिर के मुख्यतः दो भाग हैं-रुधिर प्लाज्मा तथा रुधिर कणिकाएँ। रुधिर कणिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं-लाल रुधिर कणिकाएँ (RBCs), श्वेत रुधिर कणिकाएँ (WBCs) तथा बिम्बाणु (Platelets)।

→ पौधों में परिवहन (Transportation in Plants)-पौधों में जल एवं इसमें घुलित लवणों तथा कार्बनिक भोज्य पदार्थों का स्थानान्तरण परिवहन कहलाता है।

पौधों में यह कार्य मुख्य रूप से दो ऊतकों द्वारा किया जाता है –

  • जाइलम (Xylem)- यह ऊतक जल एवं जल में घुलित लवणों को पौधों की जड़ों से विभिन्न भागों तक पहुँचाता है। !
  • फ्लोएम (Phloem)- फ्लोएम पत्तियों में निर्मित भोज्य पदार्थों को पौधों के विभिन्न भागों में पहुँचाता है।

→ विसरण (Diffusion)-पदार्थ के अणुओं का अधिक सान्द्रता (concentration) से कम सान्द्रता वाले स्थान की ओर गति करना विसरण कहलाता है।

→ परासरण (Osmosis)-वह प्रक्रिया जिसमें जल के अणु अर्द्ध-पारगम्य कला से होकर अधिक सान्द्रता वाले घोल की ओर प्रसरण करते हैं, परासरण कहलाती है।

→ वाष्योत्सर्जन (Transpiration)-पौधों के हरे भागों से जल का जलवाष्प के रूप में उड़ना वाष्पोत्सर्जन कहलाता |

→ बिन्दुस्राव (Guttation)-प्रातः के समय पत्तियों के शीर्ष एवं किनारों से पानी की बूंदों का निकलना बिन्दुस्राव कहलाता है।

→ उत्सर्जन (Excretion)-शरीर में उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न हानिकारक अपशिष्ट पदार्थों का शरीर से बाहर निकाला जाना उत्सर्जन कहलाता है।

→ जनन (Reproduction)-जीवधारियों द्वारा अपने जैसे प्रतिरूप (सन्तान) उत्पन्न करना जनन कहलाता है।

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