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Haryana Board 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

Haryana Board 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

HBSE 10th Class Civics जाति, धर्म और लैंगिक मसले Textbook Questions and Answers

अध्याय का संक्षिप्त परिचय

1. लैंगिक मसले – स्त्री पुरुष की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियां ।
2. लैंगिक अनुपात – प्रति हजार पुरुषों के पीछे पाई जाने वाली स्त्रियों की संख्या ।
3. श्रम का लैंगिक विभाजन – काम के बँटवारे का वह तरीका जिसमें घर के सारे काम परिवार की औरतें करती हैं या अपनी देख-रेख में घरेलू नौकरों/नौकरानियों से करवाती हैं ।
4. नारीवादी – औरत और मर्द के समान अधिकारों और अवसरों में विश्वास करने वाली महिला व पुरुष |
5. पितृ-प्रधान- इसका शाब्दिक अर्थ है पिता का शासन, परन्तु इस पद का प्रयोग महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक महत्त्व, अधिक शक्ति देने वाली व्यवस्था के लिए भी किया जाता है ।
6. 2001 के बाल लिंग अनुपात की झलक – 2001 में राष्ट्रीय बाल लिंग अनुपात 927 था । वर्ष 2001 में चार राज्य ऐसे थे जहाँ प्रति हज़ार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या 800 से भी कम थी । हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में स्थिति बड़ी गंभीर है। इन राज्यों में बाल लिंग अनुपात तेज़ी से घटा है । इन राज्यों में प्रति हज़ार बालकों पर बालिकाओं की संख्या 800 से भी कम थी । प्रति हज़ार लड़कों पर 950 से अधिक लड़कियों की संख्या वर्ष वाले जिलों की संख्या वर्ष 1991 के मुकाबले वर्ष 2001 में और कम हो गई है।
7. विश्व के विभिन्न क्षेत्रों की राष्ट्रीय संसदों में महिलाओं की संख्या ( % )
8. सांप्रदायिकता – ऐसी विचारधारा जिसमें अपने धर्म को श्रेष्ठ मानना तथा अन्य धर्मों को हीन और घटिया दर्जे का मानना ।
9. धर्मनिरपेक्षता – ऐसी विचारधारा जिसमें किसी एक धर्म को विशेष महत्त्व न देते हुए सभी धर्मों को समान भाव से देखना ।
10. भारत में विभिन्न धार्मिक समूह – हिंदू, मुसलमान, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध, जैन ।
11. पारिवारिक कानून – विवाह, तलाक, गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे परिवार से जुड़े मसलों से संबंधित कानून | हमारे देश में सभी धर्मों के लिए अलग-अलग पारिवारिक कानून हैं ।
12. वर्ण-व्यवस्था – जाति समूहों का पदानुक्रम जिसमें एक जाति के लोग प्रत्येक हाल में सामाजिक पायदान में सबसे ऊपर रहेंगे तो किसी अन्य जाति समूह के लोग क्रमागत के रूप से उनके नीचे ।

HBSE 10th Class Civics जाति, धर्म और लैंगिक मसले Textbook Questions and Answers

प्रश्न-1. जीवन के उन विभिन्न पहलुओं का जिक्र करें जिनमें भारत में स्त्रियों के साथ भदेभाव होता है। या वे कमजोर स्थिति में होती हैं।
उत्तर- भारत जैसे पुरुष-प्रधान समाजों में स्त्रियों के साथ अनेकों प्रकार का भेदभाव होता है। इनमें मुख्यतया निम्नलिखित का उल्लेख किया जा सकता है :

  • परिवार में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों को कम सुविध पएँ दी जाती हैं;
  • पारिवारिक कानून अधिकांशतः पुरुषों के पक्ष में होते
  • प्रायः परिवारों में लड़कियों की शिक्षा पर कम ध्यान दिया जाता हैं;
  • अनेकों परिवारों में उन्हें बोझ समझा जाता हैं; उनके विरुद्ध उत्पीड़न के उदाहहरण हम देख सकते हैं।
  • समाज में स्त्रियों की स्थिति चार-दिवारी में सिमट कर रह गयी हैं;
  • सार्वजनिक क्षेत्र में उनकी भूमिका निम्नतर समझी जाती

प्रश्न-2. विभिन्न तरह की साम्प्रदायिक राजनीति का ब्यौरा दें और एक-एक उदाहरण भी दें।
उत्तर- साम्प्रदायिकता धर्म का नकारात्मक रूप है। इसे राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति का साधन कहा जा सकता है। साम्प्रदायिक राजनीति के अनेक उदाहरण सामने आए हैं। राजनीतिक दल चुनावों में उम्मीदवारों को धर्म के आधार पर टिकट देते हैं। चुनाव-अभियान में धर्म अक्सर सहारा लिया जाता है। राज्यतंत्र में पंथ-निरपेक्षता के जोश में धार्मिक प्रतिनिधित्व छिपे जाने के उदाहरण मिलते हैं। लोक-सेवाओं में भी साम्प्रदायिकता की भूमिका देखी जा सकती हैं।

प्रश्न-3. बताइए कि भारत में किस तरह अभी भी जातिगत असमानताएँ हैं?
उत्तर- भारत में जाति के अस्तित्व व उसकी भूमिका को भूलाया नहीं जा सकता। संविधान में छुआछूत के उन्मूलन के बावजूद भी तथा अनेकों कानूनों के चलते जो जाति के आध र पर भेदभाव की समाप्ति से जुड़े हैं, आज भी हमारे देश में जातिगत असमानताएँ हैं। अनुसूचित जातियों के साथ आज भी दुव्यवहार के अनेकों उदाहरण देखे जा सकते हैं। गरीब व उतपीड़न निम्न स्तर की जातियों के लोग आज भी राजनीतिक संरक्षण की मांग करते दिखायी पड़ते हैं। उच्चतर जाति के लोग निम्नतर जाति के लोगों के साथ सौतेला व्यवहार करते हैं।

प्रश्न-4. दो कारण बताएँ कि क्यों सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते।
उत्तर- (क) जाति हमारे समाज के आधारभूत तत्वों के नींव में बस चुकी हैं।
(ख) भारत जैसे देश में आज भी समाज, अर्थव्यवस्था, राज्यतंत्र में जाति के आधार पर निर्णय किए जाते हैं।

प्रश्न-5. भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की क्या स्थिति हैं?
उत्तर- एक अनुमान के अनुसार, भारत में विधायिकओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व केवल 8.3% हैं। स्थानीय स्वशासी इकाईयों में महिलाओं के लिए कुल सीटों का एक तिहाई आरक्षण अवश्य हे। राज्यों की विधानसभओं में स्त्रियों का प्रतिनिधित्व 5% से भी कम है। लोकसभा में महिलओं के प्रतिनिधित्व को लेकर सहमति नहीं हो पायी है।

प्रश्न-6. किन्ही दो प्रावधानों का जिक्र करें जो भारत की धर्म-निरेपक्षता बनाते हैं;
उत्तर- (क) भारत में किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में अंगीकार नहीं किया गया है।
(ख) भारत का संविधान सभी नागरिकों और समुदायों को किसी भी धर्म का पालन करने व प्रचार करने की स्वंतत्रता देता

प्रश्न-7. जब हम लैंगिक विभाजन की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय होता है :
(क) स्त्री और पुरुष के बीच जैविक अंतर
(ख) समाज द्वारा स्त्री और पुरुष को दी गई असमान भूमिकाएं
(ग) बालक और बालिकाओं की संख्या का अनुपात।
(घ) लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में महिलाओं को मतदान का अधिकार न मिलना।
उत्तर- (ख) समाज द्वारा स्त्री और पुरुष को दी गयी असमान भमिकाएँ।

प्रश्न-8. भारत में यहां औरतों के लिए आरक्षण की व्यवस्था हैं :
(क) लोकसभा (ख) विधानसभा (ग) मंत्रिमंडल (घ) पंचायती राज की संस्थनाएँ
उत्तर – (घ) पंचायती राज की संस्थाएँ

प्रश्न-9. सांप्रदायिक राजनीति के अर्थ संबंधी निम्नलिखित कथनों पर गौर करें। सांप्रदायिक राजनीति इस धारणा पर आधारित हैं कि : .
(अ) एक धर्म दूसरों से श्रेष्ठ हैं।
(ब) विभिन्न धर्मों के लोग समान नागरिक के रूप में खुशी-खुशी साथ रह सकते हैं।
(स) एक धर्म के अनुयायी एक समुदाय बनाते हैं।
(द) एक धार्मिक समूह का प्रभुत्व बाकी सभी धर्मों पर कायम करने में शासन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
इनमें से कौन या कौन-सा-कौन कथन सही हैं?
उत्तर- (ग) ‘अ’ और ‘स’ सही हैं।

प्रश्न-10. भारतीय संविधान के बारे में इनमें कौर-सा कथन गलत हैं?
(क) यह धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही करता हैं।
(ख) यह एक धर्म को राजकीय धर्म बताता है।
(ग) सभी लोगों को कोई भी धर्म मानने की आजादी देता है।
(घ) किसी धार्मिक समुदाय में सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है।
उत्तर- (ख) यह एक धर्म को राजकीय धर्म बताता है।
प्रश्न-11. ……….. पर आधारित सामाजिक विभाजन भारत में ही है।
उत्तर- जाति।

प्रश्न-12.सूची I और सूची II का मेल कराएँ और नीचे दिए गए कोड के आधार पर सही जवाब खोजें।

सूची I सूची II
1. अधिकारों और अवसरों के मामले में स्त्री और पुरुष की बराबरी मानने वाला व्यक्ति (क) सांप्रदायिक
2. धर्म को समुदाय का मुख्य आधार मानने वाला (ख) नारीवादी
3. जाति को समुदाय का मुख्य आधार मानने वाला (ग) धर्मनिरपेक्ष
4. व्यक्तियों के बीच धार्मिक आस्था के आधार पर भेदभाव न करने वाला व्यक्ति (घ) जातिवादी

HBSE 10th Class Social Science Solutions Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले 1
उत्तर- (रे) ख, क, घ, ग ।

परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न [Long- Answer Type Questions]
प्रश्न 1. लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए। 
उत्तर- लैंगिक असमानता को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं –
1. समाज में महिलाओं का निम्न स्थान – भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज है। हमारे यहाँ परिवार और समाज में महिलाओं को सदा पुरुषों के भेदभाव का सामना करना पड़ा है। इसलिए लैंगिक असमानता को बढ़ावा मिलता है ।
2. बालिकाओं के प्रति उपेक्षा- आज भी भारतीय समाज में कन्या के जन्म के समय अप्रसन्नता प्रकट की जाती है। प्रत्येक दंपत्ति की चाह होती है कि उसके परिवार में बेटे का जन्म हो इसलिए बहुत से लोग भ्रूण अवस्था में ही कन्या की हत्या करवा देते हैं।
3. कन्या वध – यदि कुछ परिवारों में कन्या का जन्म हो जाता है तो उसकी पूर्ण देखभाल के अभाव में कुछ कन्याओं की मृत्यु हो जाती है जिसे कन्या वध कहना ही उचित होगा ।
4. नारी अशिक्षा – भारत में महिलाओं की साक्षरता दर कम है । जब महिला ही अशिक्षित होगी तो वह अपने परिवार की कन्याओं के हितों की रक्षा किस प्रकार से कर सकेगी। इससे लैंगिक असमानता को बढ़ावा मिलता है ।
5. महिला मृत्यु दर अधिक होना- भारत में महिलाओं की मृत्यु दर अधिक है। इसका एक कारण तो यह है कि बहुत-सी माताएं बच्चे को जन्म देते समय ही मृत्यु के मुंह में चली जाती हैं और दूसरे, समाज में विद्यमान दहेज रूपी दानव भी बहुत-सी महिलाओं को अपना ग्रास बना लेता है ।
प्रश्न 2. सांप्रदायिकता क्या है ? भारत में सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए । 
उत्तर–धर्म के नाम पर लोगों के बीच आपसी भेदभाव और घृणा पैदा करना सांप्रदायिकता कहलाता है। जब भी एक धार्मिक समुदाय या वर्ग किसी भी कारण से दूसरे का विरोध करता है तो सांप्रदायिक तनाव उभरने लगता है।
भारत में सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले कारक निम्नलिखित हैं –
(1) जब भी एक धार्मिक समुदाय या वर्ग किसी भी कारण से दूसरे समुदाय का विरोध करता है तो सांप्रदायिक तनाव उभरने लगता है ।
(2) कभी-कभी कोई धर्म अथवा उपधर्म दूसरे के हितों की उपेक्षा करके अपने हितों को साधने का प्रयास करता है, इसके परिणामस्वरूप सांप्रदायिक टकराव बढ़ता है।
(3) किसी धर्म द्वारा अपनी विशिष्ट पहचान बनाए जाने की प्रक्रिया से भी सांप्रदायिकता का विकास होता है ।
(4) कट्टरपंथी अपने धार्मिक समुदाय को अन्य धर्मों की तुलना में श्रेष्ठ तथा पृथक् दिखाने का प्रयास करते हैं । वे सामान्य हितों की अपेक्षा अपने हितों को अधिक महत्त्व देते हैं । वे प्रत्येक नागरिक को व्यक्तिगत रूप से नहीं अपितु सांप्रदायिक दृष्टि से देखते हैं। इस प्रकार वे अपनी पृथक् पहचान बनाए रखकर, दूसरों को अपने से तथा अपनी दूसरों से दूरी बनाए रखते हैं। इससे सांप्रदायिकता बढ़ती है और समाज का विघटन होता है ।
(5) कुछ राजनीतिक नेता सांप्रदायिक तनाव पैदा करवाकर वोटों का ध्रुवीकरण करवा देते हैं और आसानी से चुनाव जीत जाते हैं ।
प्रश्न 3. भारतीय लोकतंत्र में जातिवाद की क्या भूमिका है?
उत्तर – भारतीय समाज ही एक ऐसा समाज है जिसमें सामाजिक विभाजन का एक बड़ा आधार जाति है। भारतीय लोकतंत्र में जातिवाद की भूमिका का वर्णन इस प्रकार है –
1. उम्मीदवारों का चयन करने में – जब पार्टियाँ चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम तय करती हैं तो चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं की जातियों का हिसाब ध्यान में रखती हैं ताकि उन्हें चुनाव जीतने के लिए आवश्यक वोट मिल जाए | जब सरकार का गठन किया जाता है तो राजनीतिक दल इस बात का ध्यान रखते हैं कि उसमें विभिन्न जातियों और कबीलों के लोगों को उचित जगह दी जाए ।
2. उम्मीदवारों के प्रति समर्थन हासिल करने में –  राजनीतिक पार्टियाँ और उम्मीदवार समर्थन प्राप्त करने के लिए जातिगत भावनाओं को उकसाते हैं। कुछ दलों को कुछ जातियों के मददगार और प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है।
3. सभी, विशेषकर दलित जातियों से समर्थन हासिल करने में – सार्वभौम वयस्क मताधिकार और एक व्यक्ति एक वोट की व्यवस्था ने राजनीतिक दलों को मजबूर किया कि वे राजनीतिक समर्थन पाने और लोगों को गोलबंद करने के लिए सक्रिय हों। राजनीति में जाति पर जोर देने के कारण कई बार यह धारणा बन जाती है कि चुनाव जातियों का खेल है कुछ और नहीं।
प्रश्न 4. राजनीति में जाति अनेक रूप धारण कर सकती है। व्याख्या करें। 
अथवा 
जाति के अन्दर राजनीति का वर्णन कीजिए।
उत्तर- सांप्रदायिकता की भांति जातिवाद भी इस मान्यता पर आधारित है कि जाति ही सामाजिक समुदाय के गठन का एकमात्र आधार है। इस चिंतन पद्धति के अनुसार एक जाति के लोग एक स्वाभाविक सामाजिक समुदाय का निर्माण करते हैं और उनके हित एक जैसे होते हैं तथा दूसरी जाति के लोगों से उनके हितों का कोई मेल नहीं होता । यह अवधारणा निम्नलिखित प्रकार से भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा है –
(1) राजनीतिक पार्टियाँ प्रत्येक चुनाव क्षेत्र की जातिगत जनसंख्या के आँकड़े एकत्र करके उस क्षेत्र में बहुसंख्यक जाति के व्यक्ति को टिकट देती हैं और चुनाव जीतने के बाद वह व्यक्ति केवल एक जाति विशेष के लोगों का ही ध्यान रखता है। यह प्रथा भारतीय लोकतंत्र के लिए एक खतरा है ।
(2) जातिगत आधार पर कई बार असामाजिक तत्त्व या अपराधी किस्म के लोग चुनाव जीत जाते हैं जो देश और लोकतंत्र दोनों का अहित करते हैं ।
(3) चुनाव के बाद मत्रीमंडल का गठन या अन्य संवैधानिक पदों पर नियुक्ति जाति के आधार पर होती है न कि योग्यता के आधार पर ।
(4) लोग उम्मीदवार की जाति देखकर वोट देते हैं न कि उसका आचरण और कर्त्तव्यनिष्ठा ।
(5) जातिगत भावना के कारण कई बार हिंसा भी अपना स्थान ले लेती है ।
(6) चुनाव प्रचार में जाति का प्रचार करके सामाजिक विभाजन को गहरा कर दिया जाता है जो चुनाव के बाद विस्फोटक हो जाता है ।
प्रश्न 5. जाति व्यवस्था में भारी बदलाव के क्या कारण हैं ?
उत्तर – जाति व्यवस्था में भारी बदलाव के निम्नलिखित कारण हैं-
1. आर्थिक विकास – जैसे-जैसे लोगों का आर्थिक विकास होता गया, उसके साथ-साथ जाति व्यवस्था में भी भारी बदलाव होते गए। आज दलित वर्ग के बहुत से लोगों ने बड़े उद्योग लगा रखे हैं और बहुत सी ऊँची जाति के लोग उनके उद्योगों में काम करते हैं ।
2. शहरीकरण – शहरीकरण के कारण शहरों में अलग-अलग स्थानों से लोग आकर बस गए हैं और उनकी जाति के बारे में लोगों को जानकारी न होने के कारण इस व्यवस्था में भारी बदलाव आए हैं ।
3. साक्षरता और शिक्षा का विकास – साक्षरता और शिक्षा का विकास होने से आधुनिक शिक्षित युवा जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं करता है ।
4. व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता – स्वतंत्र भारत में देश के सभी नागरिकों को अपनी मर्जी के अनुसार कोई भी व्यवसाय चुनने की पूरी स्वतंत्रता है। जबकि भारत में प्राचीनकाल के अपने परंपरागत व्यवसाय को पेशे के रूप में चुनने की ही प्रथा रही थी ।
5. ज़मींदारी प्रथा का उन्मूलन — गाँवों में ज़मींदारी व्यवस्था के कमजोर पड़ने से जाति व्यवस्था के पुराने स्वरूप औ व्यवस्था पर टिकी मानसिकता में बदलाव आ रहा है ।
6. संवैधानिक प्रावधान – भारतीय संविधान में किसी भी तरह के जातिगत भेदभाव का निषेध किया गया है। छुआछूत को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया है । संविधान ने जाति व्यवस्था से पैदा हुए अन्याय को समाप्त करने वाली नीतियों का आधार तय किया है ।
प्रश्न 6. “केवल राजनीति ही जातिग्रस्त नहीं होती बल्कि जाति भी राजनीतिग्रस्त हो जाती है । ” स्पष्ट कीजिए । 
उत्तर – भारतीय राजनीति में केवल जाति ही राजनीति को प्रभावित नहीं करती, बल्कि दूसरी तरफ राजनीति भी जातियों को राजनीति के मैदान में लाकर जाति व्यवस्था और जातिगत पहचान को प्रभावित करती है । इस प्रकार केवल राजनीति ही जातिग्रस्त नहीं होती, बल्कि जाति भी राजनीतिग्रस्त हो जाती है। यह कथन अग्रलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है –
(1) भारतीय समाज में प्रत्येक जाति स्वयं को बड़ा एवं प्रभावशाली बनाना चाहती है। इसलिए, पहले वह अपने समूह की जिन उपजातियों को छोटा या नीचा बताकर अपने से बाहर रखना चाहती थी, अब उन्हें अपने प्रभाव में वृद्धि करने के लिए अपने साथ लाने का प्रयास करती है।
(2) भारतीय समाज की वर्तमान संरचना के अनुसार चूँकि, कोई भी एक जाति अपने स्वयं के बल पर सत्ता पर अधिकार नहीं कर सकती इसलिए वह अधिक राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने के लिए दूसरी जातियों या समुदायों को अपने साथ लेने की कोशिश में लगी है और इस प्रकार उनके बीच संवाद और मोल-तोल की स्थिति उत्पन्न होती है ।
(3) राजनीति में नए किस्म की जातिगत गोलबन्दी भी हुई है; जैसे ‘अगड़ा’ और ‘पिछड़ा’ आदि।
इस तरह जाति भी राजनीति में कई तरह की भूमिकाएँ निभाती है और इस तरह से यही बातें दुनिया भर की राजनीति में प्रायः चलती रहती हैं। पूरी दुनिया में राजनीतिक पार्टियाँ वोट प्राप्त करने के लिए सामाजिक समूहों और समुदायों की गोलबंदी करने का प्रयास करती हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों में राजनीति में जातिगत विभिन्नताएँ और असमानताएँ समाज के वंचित और कमज़ोर समुदायों के लिए अपनी बातें आगे बढ़ाने और सत्ता में अपनी भागीदारी माँगने की गुंजाइश भी पैदा करती हैं। इस प्रकार जातिगत राजनीति ने दलित और पिछड़ी जातियों के लोगों के लिए सत्ता तक पहुँचने तथा निर्णय प्रक्रिया को बेहतर ढंग से प्रभावित करने की परिस्थितियाँ भी पैदा की हैं। अनेक पार्टियाँ और गैर-राजनीतिक संगठन विशेष जातियों के खिलाफ भेदभाव समाप्त करने, उनके साथ ज़्यादा सम्मानपूर्ण व्यवहार करने, उनके लिए ज़मीन-जायदाद और अवसर उपलब्ध कराने की माँगों को लेकर आंदोलन करते रहे हैं। लेकिन यहाँ यह उल्लेखनीय है कि केवल जाति पर जोर देना खतरनाक हो सकता है। केवल जातिगत समीकरणों पर आधारित राजनीति लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं होती क्योंकि इसके परिणामस्वरूप गरीबी, विकास, भ्रष्टाचार जैसे गम्भीर मुद्दों से लोगों का ध्यान भी भटक जाता है। कई बार जातिवाद तनाव, टकराव और हिंसा को भी उग्र रूप में बढ़ावा देता है। फिर भी सामान्यतया यही देखने में आया है कि भारत में राजनीतिक गतिविधियों में संलिप्त लोग अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति करने के लिए जातीय तत्त्वों का जमकर सहारा लेते हैं। इसीलिए यह कहा जाता है कि भारत में जैसे राजनीति जातिग्रस्त है वैसे ही जाति भी पूर्णतः राजनीतिग्रस्त हो गई है।
लघुत्तरात्मक प्रश्न [Short – Answer Type Questions]
प्रश्न 1. श्रम लैंगिक विभाजन का क्या अर्थ है? उदाहरण सहित समझाइए ।
उत्तर- काम के बँटवारे का वह ढंग जिसमें घर के सभी काम परिवार की औरतें करती हैं या अपने घरेलू नौकरों/नौकरानियों से कराती हैं ।
उदाहरण – लड़के और लड़कियों के पालन-पोषण के क्रम में यह मान्यता उनके मन में बैठा दी जाती है कि औरतों की प्रमुख जिम्मेवारी गृहस्थी चलाने और बच्चों का पालन-पोषण करने की है। यह चीज अधिकतर परिवारों के श्रम के लैंगिक विभाजन से झलकती है। औरतें घर के सारे काम काज; जैसे सफाई करना, कपड़े धोना, खाना बनाना और बच्चों की देख-रेख करना आदि करती हैं जबकि पुरुष घर के बाहर का काम करते हैं।
प्रश्न 2. भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने के लिए भारतीय संविधान में क्या प्रावधान किए गए हैं? अथवा बताइए कि कैसे भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है?
उत्तर – भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने के लिए भारत के संविधान में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं –
(1) भारत ने किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में स्वीकार नहीं किया है । श्रीलंका में बौद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम धर्म और इंग्लैंड में ईसाई धर्म का जो दर्जा है उसके विपरीत भारत का संविधान किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता।
(2) संविधान सभी समुदायों और नागरिकों को किसी भी धर्म का पालन और उसका प्रचार करने की आज़ादी देता है।
(3) संविधान धर्म के आधार पर किए जाने वाले किसी प्रकार के भेदभाव को अवैधानिक घोषित करता है ।
(4) इसके साथ ही संविधान धार्मिक समुदायों में समानता स्थापित करने के लिए शासन को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार देता है। जैसे, यह छुआछूत की इजाजत नहीं देता ।
प्रश्न 3. राजनीति में साम्प्रदायिकता की क्या भूमिका है?
उत्तर- राजनीति में सांप्रदायिकता की भूमिका बहुत अहम् है। सांप्रदायिक सोच अपने धार्मिक समुदाय का राजनीति में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए प्रयासरत् रहती है। सांप्रदायिकता की भावना अल्पसंख्यक लोगों को अलग राजनीतिक इकाई बनाने के लिए प्रेरित करती है। बहुत-से राजनेता अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए धर्म के नाम पर वोट माँगते हैं जिससे राजनीति में सांप्रदायिक हस्तक्षेप में वृद्धि होती है ।
प्रश्न 4. भारत एक पंथ निरपेक्ष राज्य है, वर्णन कीजिए ।
उत्तर – भारत एक पंथ-निरपेक्ष राज्य है। यहाँ पर सरकार का अपना कोई धर्म नहीं है। सरकार सभी धर्मों को सम्मान प्रदान करती है। यहाँ हिंदू, मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, जैन, सिक्ख, पारसी, यहूदी तथा बहुत बड़ी संख्या में अन्य धर्म हैं, जिन्होंने भारत को ऐसा समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का भंडार बना दिया है, जैसा संसार ने शायद ही कभी देखा हो । पंथों, संप्रदायों, भाषाओं तथा संस्कृतियों की विभिन्नता के बावजूद भारत के लोग मानवता, सभी धर्मों के प्रति आदर और सहिष्णुता जैसे मौलिक विचारों के प्रति निष्ठावान रहे हैं, जो इस राष्ट्र को पंथ-निरपेक्षता का एक गढ़ बनाने में सहायक हुए हैं ।
प्रश्न 5. अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – भारत के संविधान में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित नहीं किया गया है। संबंधित राज्य के राज्यपाल की सलाह से राष्ट्रपति के आदेश द्वारा उनका विशेष उल्लेख किया गया है। अनुसूचित जाति के अंतर्गत आने वाला व्यक्ति केवल हिंदू अथवा सिक्ख के अतिरिक्त किसी अन्य समुदाय का व्यक्ति नहीं हो सकता । यदि अनुसूचित जाति का व्यक्ति हिंदू या सिक्ख धर्म के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को स्वीकार कर ले तो अनुसूचित जाति का होने के नाते प्राप्त सभी सुविधाएँ उससे छिन्न जाएंगी। परंतु एक अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति, किसी भी धर्म में परिवर्तन के पश्चात् भी प्राप्त स्थिति तथा सुविधाओं से वंचित नहीं होता ।
प्रश्न 6. सांप्रदायिकता तथा जातिवाद की समस्याओं से निपटने के लिए कुछ सुझाव दीजिए । 
उत्तर- सांप्रदायिकता और जातिवाद देश की राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है। यदि इस पर नियंत्रण न किया गया तो इससे राष्ट्र के सामने अनेक गंभीर समस्याएँ पैदा हो सकती हैं। इससे निपटने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं –
(1) सामाजिक, राजनीतिक तथा चुनावी प्रक्रिया में इन सांप्रदायिक तथा जातिगत शक्तियों को प्रभावहीन करने के लिए प्रबुद्ध नागरिकों को प्रयास करने चाहिएँ ।
(2) देश की राजनीतिक तथा मतदान प्रक्रिया में सांप्रदायिक तथा जातिगत दलों को कोई महत्त्व न दिया जाए ।
(3) सांप्रदायिक खून-खराबे तथा जातीय झगड़ों से कठोरता से निपटा जाना चाहिए ।
(4) किसी को भी धार्मिक संस्थाओं का प्रयोग सांप्रदायिक प्रचार करने के लिए नहीं दिया जाना चाहिए।
(5) धर्म तथा राजनीति को जाति के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए ।
प्रश्न 7. राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए उठाए गए कदमों का वर्णन कीजिए। 
उत्तर – राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं –
(1) स्थानीय सरकारों अर्थात् पंचायतों और नगरपालिकाओं में एक तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए हैं ।
(2) महिला संगठनों और कार्यकर्ताओं की ओर से लोकसभा तथा राज्यसभा में भी महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण की मांग की गई है।
(3) निर्वाचित संस्थाओं में महिलाओं के लिए कानूनी रूप से एक निश्चित भाग तय करने की मांग की जा रही है ।
(4) महिलाओं के लिए शिक्षा तथा रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए योजनाएँ तैयार की गई है।
(5) महिला संगठनों द्वारा महिलाओं को जागरूक बनाने के लिए विभिन्न आयोजन किए जा रहे हैं ।
(6) सरकार द्वारा महिलाओं को उनके राजनीतिक अधिकारों के प्रति जागरूक किया जा रहा है ।
प्रश्न 8. सांप्रदायिकता के लिए धार्मिक स्थानों का कैसे दुरुपयोग किया जा रहा है ?
उत्तर – प्रत्येक धर्म के अपने धार्मिक स्थल होते हैं । ये स्थल पवित्र और पूजा करने के योग्य होते हैं। लेकिन सांप्रदायिकता की भावना से ग्रसित होकर कुछ नेतागण इन स्थलों का दुरुपयोग करने लग गए हैं। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं –
(1) इन स्थलों में कुछ धार्मिक नेता सांप्रदायिक प्रचार करते हैं और एक धर्म विशेष के लोगों को दूसरे धर्म के लोगों के विरुद्ध भड़काते हैं।
(2) धार्मिक स्थलों में अपराधियों और आतंकवादियों को शरण दी जाती है ।
(3) कुछ धार्मिक स्थलों में आतंकवादियों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है ।
(4) कई धार्मिक स्थल राजनीतिक के केंद्र बन गए हैं और वहाँ बैठकर इन धर्मों के नेता राजनीति के खेल खेलते हैं।
प्रश्न 9. कट्टरवाद क्या है? कट्टरपंथी के कुछ लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – कट्टरपंथी वे लोग होते हैं जो केवल अपने धर्म को ही श्रेष्ठ मानते हैं। वे लोगों में इस बात का प्रचार करते हैं कि उनका धर्म अन्य सभी धर्मों से श्रेष्ठ है । वे दूसरे धर्म के लोगों के हितों की अपेक्षा अपने हितों को अधिक महत्त्व देते हैं। वे प्रत्येक नागरिक को व्यक्तिगत रूप से नहीं अपितु सांप्रदायिक दृष्टि से देखते हैं। इस प्रकार वे अपनी पृथक पहचान बनाए रखकर, दूसरों की अपने से तथा अपनी दूसरों से दूरी बनाए रखते हैं । यह विचारधारा समाज को विघटन की ओर ले जाती है। यदि इस प्रकार की प्रवृत्ति पर रोक न लगाई जाए तो इससे आतंकवाद को भी बढ़ावा मिलता है ।
प्रश्न 10. लैंगिक असमानता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – लैंगिक असमानता का अर्थ है स्त्रियों और पुरुषों में गैर-बराबरी का व्यवहार करना। महिलाओं से केवल इस भावना के तहत भेदभाव करना कि वे महिलाएँ हैं, लैंगिक असमानता के अन्तर्गत आता है। इसमें सिर्फ महिलाओं के साथ ही भेदभाव किया जाता है।
प्रश्न 11. गाँधी जी के धर्म और राजनीति के बारे में क्या विचार थे?
उत्तर – गाँधी जी कहते थे कि धर्म को कभी भी राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता। धर्म से उनका अभिप्राय हिंदू या इस्लाम जैसे धर्म से न होकर नैतिक मूल्यों से था जो सभी धर्मों से जुड़े हैं। उनका मानना था कि राजनीति धर्म द्वारा स्थापित मूल्यों से निर्देशित होनी चाहिए ।
प्रश्न 12. विश्व व्यापक स्तर पर औरतों के आंदोलनों की राजनीतिक माँग क्या थी?
उत्तर – (1) पहले सिर्फ़ पुरुषों को ही सार्वजनिक मामलों में भागीदार करने, वोट देने या सार्वजनिक पदों के लिए चुनाव लड़ने की अनुमति थी ।
(2) दुनिया के अलग हिस्सों में औरतों ने अपने संगठन बनाए और बराबरी के अधिकार हासिल करने के लिए आंदोलन किए।
(3) इन आंदोलनों में महिलाओं के राजनीतिक और वैधानिक दर्जे को ऊँचा उठाने और उनके लिए शिक्षा तथा रोज़गार के अवसर बढ़ाने की माँग की।
प्रश्न 13. हमारे देश की स्वतंत्रता से लेकर अब तक औरतों की स्थिति में कैसे सुधार हुआ ? उदाहरण सहित स्पष्ट करें। 
उत्तर – (1) राजनीति में औरतों की भागीदारी कई गुणा बढ़ी है; स्थानीय सरकार में औरतों के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित हैं।
(2) साक्षरता अनुपात तथा संभावित जीवन अनुपात में बढ़ौतरी हुई है।
(3) अब औरतें कई क्षेत्रों में जैसे वैज्ञानिकों, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, अध्यक्ष तथा स्कूल, कालेजों में अध्यापकों के तौर पर कार्य कर रही हैं जो पहले इनके लिए सही क्षेत्र नहीं माने जाते थे ।
इससे यह पता चलता है कि औरतें आर्थिक तथा सामाजिक विकास में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं ।
अति लघुत्तरात्मक प्रश्न [Very Short – Answer Type Questions]
प्रश्न 1. श्रम के लैंगिक विभाजन का क्या अर्थ है?
उत्तर–काम के बँटवारे का वह तरीका जिसमें घर के सारे काम परिवार की औरतें करती हैं या अपनी देख-रेख में घरेलू नौकरों और नौकरानियों से करवाती हैं ।
प्रश्न 2. नारीवादी आंदोलन क्या है?
उत्तर – औरतों के व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में बराबरी की माँग उठाने वाले आंदोलन को नारीवादी आंदोलन कहते हैं ।
प्रश्न 3. पितृ-प्रधान परिवार किसे कहते हैं ?
उत्तर–वह परिवार जिसमें निर्णय लेने की शक्ति का स्रोत पिता होता है उसे पितृ-प्रधान परिवार कहते हैं ।
प्रश्न 4. बाल लिंग अनुपात किसे कहते हैं ?.
उत्तर–प्रति हजार बालकों पर पाई जाने वाली बालिकाओं की संख्या को बाल लिंग अनुपात कहते हैं ।
प्रश्न 5. 2001 की जनगणना में पाए गए उन चार राज्यों के नाम लिखो जिनका बाल लिंग अनुपात 800 से भी कम था। 
उत्तर- 2001 की जनगणना में पाए गए चार राज्य पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और गुजरात हैं जिनका बाल लिंग अनुपात 800 से भी कम था।
प्रश्न 6. धर्मनिरपेक्ष राज्य क्या है?
उत्तर- धर्मनिरपेक्ष राज्य से अभिप्राय उस राज्य से है जिसमें सरकार का अपना कोई धर्म नहीं होता। सरकार सभी धर्मों को समान महत्त्व देती है। नागरिकों को अपनी इच्छानुसार कोई भी धर्म अपनाने या छोड़ने की स्वतंत्रता होती है।
प्रश्न 7. किन दो जातियों में गरीबी रेखा से नीचे लोगों की संख्या सबसे अधिक है?
उत्तर – अनुसूचित जातियाँ और अनुसूचित जनजातियाँ जिनकी गरीबी रेखा से नीचे लोगों की संख्या सबसे अधिक है।
प्रश्न 8. एथनिक अथवा जातीय से क्या अभिप्राय है?  
उत्तर- एक समान राष्ट्रीय तथा सांस्कृतिक परम्पराओं वाले लोगों का समूह एथनिक अथवा जातीय कहलाता है ।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न [Objective Type Questions]
I. एक शब्द या एक वाक्य में उत्तर दीजिए
प्रश्न 1. सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में महिला साक्षरता दर कितनी है ?
उत्तर- सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में महिला साक्षरता दर 65.46 प्रतिशत है।
प्रश्न 2. सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में पुरुष साक्षरता दर कितनी है? 
उत्तर- सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में पुरुष साक्षरता दर 82.14 प्रतिशत है।
प्रश्न 3. भारत में 2011 के अनुसार राष्ट्रीय लैंगिक अनुपात कितना है? 
उत्तर – भारत में राष्ट्रीय लैंगिक अनुपात 940 प्रति हजार है।
प्रश्न 4. वर्तमान में भारतीय लोकसभा में महिला जनप्रतिनिधियों की संख्या कितनी है?
उत्तर – वर्तमान में भारतीय लोकसभा में 78 महिला जनप्रतिनिधि हैं ।
प्रश्न 5 सांप्रदायिकता का क्या अर्थ है ?
उत्तर – एक धर्म के विचारों को दूसरे से श्रेष्ठ मानना सांप्रदायिकता कहलाता है ।
प्रश्न 6. श्रीलंका में किस धर्म को विशेष महत्त्व प्राप्त है ?
उत्तर – श्रीलंका में बौद्ध धर्म को विशेष महत्त्व प्राप्त है ।
प्रश्न 7. पाकिस्तान में किस धर्म को विशेष महत्त्व प्राप्त है ? 
उत्तर – पाकिस्तान में इस्लाम धर्म को विशेष महत्त्व प्राप्त है ।
प्रश्न 8. इंग्लैंड में किस धर्म को विशेष महत्त्व प्राप्त है ? 
उत्तर- इंग्लैंड में ईसाई धर्म को विशेष महत्त्व प्राप्त है ।
प्रश्न 9. भारत में किस धर्म को विशेष महत्त्व प्राप्त है ?
उत्तर – भारत में किसी भी धर्म को विशेष महत्त्व प्राप्त नहीं है। यहाँ सभी धर्म समान हैं ।
प्रश्न 10. ऐसा कौन-सा सामाजिक विभाजन है जो केवल भारत में ही देखने को मिलता है ?
उत्तर – भारत में जाति पर आधारित विभाजन है ।
प्रश्न 11. वर्ण-व्यवस्था क्या है?
उत्तर – जातिगत आधार पर लोगों को वर्ग समूहों में बाँटना वर्ण-व्यवस्था है ।
प्रश्न 12. शहरीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर – ग्रामीण क्षेत्रों से निकलकर लोगों का शहरों में बसना शहरीकरण कहलाता है ।
प्रश्न 13. रिजर्व बैंक के वार्षिक विवरण के अनुसार भारत के ग्रामीण क्षेत्र में कितने प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं?
उत्तर–रिजर्व बैंक के वार्षिक विवरण के अनुसार भारत के ग्रामीण क्षेत्र में लगभग 26 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं।
प्रश्न 14. रिजर्व बैंक के वार्षिक विवरण के अनुसार भारत के शहरी क्षेत्र में कितने प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं?
उत्तर–रिजर्व बैंक के वार्षिक विवरण के अनुसार भारत के शहरी क्षेत्र में लगभग 14 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं।
प्रश्न 15. दलित समूह ने डरबन में हुए संयुक्त राष्ट्र के नस्लभेद विरोधी सम्मेलन में हिस्सा लेने का फैसला किस वर्ष किया?
उत्तर- 2001 में ।
II. बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर दीजिए-
1. भारत में सामाजिक विभाजन का कौन-सा कारण विद्यमान है?
(A) जाति
(B) धर्म
(C) लिंग
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(D)
2. औरत और मर्द के समान अधिकारों और अवसरों में विश्वास करने वाली महिला या पुरुष कहलाते हैं-
(A) कम्युनिस्ट
(B) समाजवादी
(C) नारीवादी
(D) सम्प्रदायवादी
उत्तर-(C)
3. निम्नलिखित में से किस देश में सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी का स्तर काफी ऊँचा है?
(A) स्वीडन में
(B) नार्वे में
(C) फिनलैंड में
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(D)
4. किसको अपने द्वारा किए गए अधिकतर कार्य की कीमत नहीं मिलती ?
(A) महिला को
(B) पुरुष को
(C) (A) और (B) दोनों
(D) नौकर को
उत्तर – (A)
5. भारत में प्रायः किस वर्ग को लैंगिक असमानता का सामना करना पड़ता है ?
(A) महिला
(B) पुरुष
(C) बच्चे
(D) वृद्ध
उत्तर – (A)
6. भारत का समाज कैसा है ?
(A) मातृ – प्रधान
(B) पितृ-प्रधान
(C) बाल – प्रधान
(D) वृद्ध-प्रधान
उत्तर-(B)
7. पितृ – प्रधान निम्नलिखित में से किस शाब्दिक अर्थ की ओर संकेत है?
(A) पिता का शासन
(B) महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा महत्व
(C) महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा शक्ति
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(D)
8. 2001 में जनगणना के अनुसार भारत का बाल लिंग अनुपात कितना था ?
(A) 800
(B) 827
(C) 900
(D) 927
उत्तर-(D)
9. निम्नलिखित में से किस राज्य का बाल लिंग अनुपात सन् 2001 की जनगणना के अनुसार 800 से भी कम है ?
(A) पंजाब का
(B) हरियाणा का
(C) हिमाचल प्रदेश एवं गुजरात का
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(D)
10. भारत में किस राज्य का बाल लिंग अनुपात सबसे अधिक है?
(A) केरल का
(B) पंजाब का
(C) उत्तर प्रदेश का
(D) बिहार का
उत्तर – (A)
11. भारत में किस स्तर की सरकार में महिलाओं की संख्या संतोषजनक है?
(A) केंद्रीय सरकार
(B) राज्य सरकार
(C) स्थानीय निकाय
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(C)
12. भारत कैसा देश है?
(A) धर्मनिरपेक्ष
(B) तानाशाही
(C) (A) व (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (A)
13. 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का लिंग अनुपात कितना था?
(A) 943
(B) 910
(C) 840
(D) 950
उत्तर – (A)
14. अपने धर्म को श्रेष्ठ मानना और दूसरे के धर्म को हीन मानना क्या कहलाता है?
(A) जातिवाद
(B) सांप्रदायिकता
(C) धर्मनिरपेक्षता
(D) लैंगिक असमानता
उत्तर-(B)
15. जाति समूहों का पदानुक्रम जिसमें जातियों को सबसे ऊपर या सबसे नीचे रखते हैं क्या कहलाता है?
(A) सांप्रदायिकता
(B) धर्मनिरपेक्षता
(C) वर्ण-व्यवस्था
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(C)
16. भारतीय जातिवाद की विशेषता है –
(A) राजनीतिक दल जाति के आधार पर टिकट वितरण करते हैं
(B) लोग जाति के आधार पर वोट देते हैं
(C) मंत्रीमंडलों का गठन जाति के आधार पर होता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(D)
17. 2001 की जनगणना के अनुसार अन्य पिछड़ी जातियों में देश की कुल आबादी का कितने प्रतिशत हिस्सा था?
(A) 25%
(B) 27%
(C) 41%
(D) 51%
उत्तर-(C)
18. वर्तमान में भारत में 17वीं लोकसभा में निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों की संख्या कितनी है?
(A) 49
(B) 78
(C) 56
(D) 65
उत्तर-(B)
19. 2001 में देश की आबादी में अनुसूचित जातियों का हिस्सा कितना था ?
(A) 16.2%
(B) 17.2%
(C) 18.2%
(D) 25%
उत्तर – (A)
20. भारत में किस स्तर पर महिलाओं के लिए जनप्रतिनिधित्व हेतु महिलाओं को आरक्षण दिया गया है?
(A) संघीय स्तर
(B) राज्य स्तर
(C) स्थानीय स्तर
(D) उपर्युक्त तीनों
उत्तर-(C)
21. पंचायती राज अधिनियम के अंतर्गत भारत में ग्राम स्तर पर महिलाओं हेतु कितने प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान कर दिया गया ?
(A) एक-तिहाई
(B) दो-तिहाई
(C) तीन-चौथाई
(D) पचास प्रतिशत
उत्तर – (A)
22. पंचायत में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रावधान वाले प्रस्ताव को सिद्धांततः केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कब स्वीकार किया?
(A) 15 अगस्त, 2009 में
(B) 27 अगस्त, 2009 में
(C) 26 जनवरी, 2010 में
(D) 25 अगस्त, 2008 में
उत्तर-(B)
23. पंचायतों के अतिरिक्त शहरी निकायों में भी महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण करने संबंधी प्रस्ताव को सिद्धांततः केंद्रीय मंत्रिमंडल में कब स्वीकार किया गया?
(A) 22 अक्तूबर, 2009 में
(B) 27 अगस्त, 2009 में
(C) 15 जनवरी, 2010 में
(D) 31 मार्च, 2010 में
उत्तर – (A)
24. भारत में ग्राम पंचायतों एवं शहरी निकायों में महिलाओं का कितने प्रतिशत आरक्षण प्रस्तावित है?
(A) एक-तिहाई
(B) दो-तिहाई
(C) तीन-चौथाई
(D) पचास प्रतिशत
उत्तर-(D)
25. भारत में महिलाओं हेतु लोकसभा एवं राज्य विधानसभा में कितने प्रतिशत आरक्षण की माँग महिला संगठनों द्वारा की जा रही है?
(A) एक-तिहाई
(B) दो-तिहाई
(C) तीन-चौथाई
(D) पचास प्रतिशत
उत्तर – (A)
III. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. भारत में प्रायः …………………. वर्ग को लैंगिक असमानता का सामना करना पड़ता है ।
2. भारत का समाज ……………… है।
3. भारत में ………………… राज्य का बाल लिंग -अनुपात सबसे अधिक है I
4. भारत में ………………… की सरकार में महिलाओं की संख्या संतोषजनक है।
5. अपने धर्म को श्रेष्ठ मानना और दूसरे के धर्म को हीन मानना …………….. कहलाता है।
6. भारत में ………………… पर महिलाओं के लिए जनप्रतिनिधित्व हेतु महिलाओं को आरक्षण दिया गया है।
7. श्रीलंका में ………………. धर्म को विशेष महत्त्व प्राप्त है ।
8. इंग्लैंड में ………………. धर्म को विशेष महत्त्व प्राप्त है ।
9. सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में पुरुष साक्षरता दर …………….. है।
10. भारत एक ……………… राज्य है ।
उत्तर – 1. महिला, 2. पितृ-प्रधान, 3. केरल, 4. स्थानीय स्तर, 5. सांप्रदायिकता, 6. स्थानीय स्तर, 7. बौद्ध, 8. ईसाई, 9. 82.14 प्रतिशत, 10. धर्मनिरपेक्ष ।
IV: निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर हाँ/नहीं में दीजिए
1. क्या स्वीडन में महिलाओं की सार्वजनिक जीवन में भागीदारी बहुत अधिक है ?
2. क्या दक्षिणी अफ्रीका में सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी काफी निम्न स्तर की है ?
3. एक व्यक्ति जो दूसरे के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता क्या उसे धर्मनिरपेक्ष कहते हैं?
4. क्या भारतीय संविधान एक धर्म को राजकीय धर्म बताता है?
उत्तर – 1. हाँ, 2. हाँ, 3. हाँ, 4. नहीं ।

Haryana Board 10th Class Social Science Notes Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

Jati Dharm Aur Langik Masle Class 10 Notes HBSE

→ सामाजिक विभाजन और भेदभाव वाली तीन सामाजिक असमानताओं को लिंग, धम्र व जाति के आधार पर बताया जा सकता है।

→ स्त्री व पुरुष में कार्य-विभाजन को लेकर जो भेद सामने आया है : वह है लिंग का भेद। घर के अन्दर किए जाने वाला कार्य ‘निजी’ (प्राइवेट) कार्य कहा जाता है और यह कार्य प्रायः स्त्रियाँ करती हैं।

→ घर से बाहर के कार्यों को प्रायः करते हैं और इस कारण उन कार्यों को ‘सार्वजनिक’ (पब्लिक) कार्य कहा जाता है। महिला-पुरुष विभेद ‘निजी-सार्वजनिक’ भेद का रूप धारण कर चुका है।

→ स्त्री व पुरुष में भेद अवश्य होता है-यौन का भेद। यौन के कारण कोई स्त्री होती है तथा कोई पुरुष होता है। जब हम ‘लिंग’ शब्द का प्रयोग करते हैं। यह भेद सामाजिक रूप का भेद होता हैं, कार्य-विभाजन का भेद।

→ यौन-भेद प्राकृतिकहैं, लिंग भेद सामाजिक है। लिंग भेद के कारण महिलाओं की स्थिति को पुरुष की अपेक्षा कम अधिकार प्राप्त होते हैं।

Jati Dharm Aur Langik Masle Notes HBSE 10th Class

→ पारिवारिक कानून भी पुरुष के पक्ष में होते हैं;उनकी शिक्षा व उन्हें दी जाने वाली सुविधाएं पुरुषों के मुकाबले में कम होती है।

→ सार्वजनिक जीवन में उनका प्रवेश बहुत कम होता है। राजनीति में महिलाओं का पतिनिधित्व न होने के बराबर होता है। और फिर सामाजिक दृष्टि से महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है।

→ उनके समान व आदर की समस्या सदैव बनी रहती हैं; सुसराल में उन्हें अनेक प्रकार की तकलीफों को सहना पड़ता है। दहेज व दाहउत्पीड़न उदाहरण अक्सर सुनने में आते हैं सरकार द्वारा उनकी स्थिति से सम्बन्धित अनेक कानून बनाए जा रहे हैं।

→ समाज में उनके उत्थान से सम्बन्धित जागृति जरूरी बन गयी हैं। धर्म के नकारात्मक रूप से साम्प्रदायिकता का प्रश्न जुड़ा है। साम्प्रदायिकता धर्म का राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति का साध न बन गयी है।

→ धर्म को साम्प्रदायिक रंग से समाज, राज्य व राजनीति में बुरे परिणाम देखने को मिलते है। धर्म के आधार पर सामाजिक विभाजन अनेक समस्याओं को जन्म देता है।

→ सामप्रदायिकता का समाधान पंथनिरपेक्षता ने अनुसरण से जुड़ा है। धन का राजनीतिकरण तथा राजनीति का धार्मिकीकरण दोनों ही समाज व राज्य के लिए हानिकारक हैं।

→ जाति सामाजिक विभाजन का एक अन्य कारण है। भारत जैसे देश में वर्ण-अवस्था से उभरी जाति-व्यवस्था ने समाज, राज्य व राजनीति को प्रदुषित कर दिया हैं कुछेक राजनीतिक दल अपने वोट-बैंक को सुदृढ़ करने के लिए जाति व धर्म का सहारा लेते हैं।

→ जाति द्वारा राजनीतिकरण उतना ही दूषित हे। जितना राजनीति का जातिकरण। समाज को स्वस्थ व सुचारू रूप देने के लिए जाति की नकारात्मक भूमिका के विरुद्ध क्रान्ति आवश्यक हैं।

→ श्रम का लैगिक विभाजन : काम के बँटवारे का वह तरीका जिसमें घर के अन्दर के सारे काम परिवार की औरतें करती हैं या अपनी देख-रेख के नौकर/नौकरानियों से कराती हैं।

Jati Dharm Aur Langik Masle Notes In Hindi HBSE 10th Class

→ नारीवाद : औरत और मर्द के समान अधिकारों और अवसरों में विश्वास करने वाली महिला या पुरुष।

→ पितृ-प्रधान : इसका शाब्दिक अर्थ पिता का शासन होता है परन्तु, इस पद का प्रयोग महिलाओं की तुलना में पुरुषों का ज्यादा महत्व, ज्यादा शक्ति देने वाली व्यवस्था के लिए भी किया जाता है।

→ पारिवारिक कानून : विवाह, तलाक, गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे परिवार से जुड़े मसलों से सम्बन्धित कानून। भारत में सभी धर्मों के लिए अलग-अलग पारिवारिक कानून है।

→ वर्ण-अवस्था : जाति समूहों का पदानुक्रम जिसमें जाति के लोग हर हाल में सामाजिक पायदान में सबसे ऊपर रहेंगे तो किसी अन्य जाति समूह के लोग क्रमागत के रूप से नीचे।

→ शहरीकरण : गाँवों से निकलकर लोगों का शहरों में बसना

→ लैंगिक मुद्दे : वह मुद्दे जो महिला-पुरुष से जुड़े हों।

→ यौन विभेद : महिलाओं व पुरुषों में यौन के आधार पर भेद करना।

Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले HBSE 10th Class

→ लिंग विभेद : स्त्र्यिों व पुरुषों में स्त्री व पुरुष को दिए जाने वाले कार्यों का समाजशास्त्रीय विभेद।

→ साम्प्रदायिकता : धर्म का राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयोग।

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