Haryana Board 10th Class Social Science Solutions History Chapter 1 सरस्वती-सिन्धु सभ्यता
Haryana Board 10th Class Social Science Solutions History Chapter 1 सरस्वती-सिन्धु सभ्यता
HBSE 10th Class History सरस्वती-सिन्धु सभ्यता Textbook Questions and Answers
अध्याय का संक्षिप्त परिचय
◆ प्रथम नगरीय सभ्यता – सरस्वती व सिंधु नदियों के उपजाऊ मैदान में प्रथम नगरीय सभ्यता का उदय हुआ।
◆ समकालीन सभ्यता – मेसोपोटामिया व मिस्र की सभ्यता समकालीन सभ्यता मानी जाती है ।
◆ उत्खनन कर्त्ता – 1921 ई० में दयाराम साहनी ने पंजाब प्रांत में हड़प्पा तथा 1922 ई० में राखल दास बनर्जी ने सिंध प्रांत में मोहनजोदड़ो नामक पुरास्थलों का उत्खनन किया ।
◆ क्षेत्रफल – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता का क्षेत्रफल 2,15,000 वर्ग किलोमीटर, पूर्व से पश्चिम लगभग 1600 किलोमीटर एवं उत्तर से दक्षिण लगभग 1400 किलोमीटर है।
◆ पुरास्थल – पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरी राजस्थान, गुजरात और पाकिस्तान में ब्लूचिस्तान, सिंध आदि प्रांत ।
◆ हरियाणा में पुरास्थल — राखीगढ़ी, बनावली, फरमाना, मीताथल आदि ।
◆ नगर – योजना – रक्षा प्राचीर, पक्की सड़कें, नालियाँ, भवन, ईंटों का माप, स्नानागार, अन्नगार, कुआँ, शौचालय।
◆ कला – प्रस्तर (पत्थर), धातु व मिट्टी की मूर्तियाँ । –
◆ महत्त्वपूर्ण कलाकृति — 19 सेंटीमीटर लम्बी खंडित पुरुष की मूर्ति, धातु की बनी नर्तकी की मूर्ति ।
◆ भोजन – शाकाहारी व माँसाहारी दोनों प्रकार का भोजन ।
◆ आभूषण – अमीर वर्ग – सोने-चाँदी, अर्ध-कीमती पत्थर, हाथी-दांत के आभूषण। गरीब वर्ग- पक्की मिट्टी, हड्डी व पत्थर के आभूषण।
◆ सौन्दर्य उपकरण – काजल, सुरमा, सिंदूर, हाथी दांत के कंघे व ताँबे के शीशे ।
◆ मनोरंजन – शतरंज का खेल, नृत्य, शिकार, बच्चों के लिए खिलौने, झुन्झुने, सीटियाँ व गाड़ियाँ आदि ।
◆ कृषि – गेहूँ, चावल, मूंग, मसूर, मटर, सरसों, कपास, तिल आदि । –
◆ पालतू पशु – गाय, बैल, भैंस, भेड़, बकरी, कुत्ता, गधा, सुअर, घोड़ा, ऊँट । –
◆ व्यापार – आंतरिक और विदेशी व्यापार स्थल व समुद्र दोनों मार्गों से ।
◆ उपासना – मातृ शक्ति (प्राणी एवं वनस्पति जगत की उपास्य देवी), पशुपति शिव, शिवलिंग ।
◆ कांस्य – सरस्वती – सिंधु सभ्यता द्वारा सर्वप्रथम कांस्य धातु का प्रयोग किया गया ।
◆ लोहा – सरस्वती-सिंधु सभ्यता के लोग लोहे से परिचित नहीं थे।
◆ पतन – बाढ़, जलवायु परिवर्तन, महामारी (मलेरिया), विदेशी व्यापार में गतिरोध, प्रशासनिक शिथिलता । –
HBSE 10th Class History सरस्वती-सिन्धु सभ्यता Textbook Questions and Answers
अभ्यास के प्रश्न-उत्तर
⇒ आओ फिर से याद करें-
प्रश्न 1. सरस्वती-सिन्धु सभ्यता की नगर योजना की प्रमुख विशेषताएं क्या थीं ?
उत्तर- सरस्वती- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित थीं –
(1) सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की प्रथम विशेषता यह थी कि ये नगर नदी किनारे बसे हुए थे।
(2) नगरों में प्राय: दो टीले होते थे। पूर्व दिशा के टीले पर आवास क्षेत्र होते थे व पश्चिम दिशा के टीले पर दुर्ग स्थित होता था।
(3) सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की नगर योजना में सड़कों का महत्त्वपूर्ण स्थान था। सड़कें नगरों को 5-6 खंडों में बाँटती थीं।
(4) साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता था। कूड़े-कचरे के लिए कूड़ेदान होते थे।
(5) घरों की नालियाँ बड़े नालों में गिरती थीं। नालियाँ पक्की ईंटों से बनी होती थीं।
(6) सम्पन्न घरों में रसोईघर, स्नानघर, आँगन, कुआँ, शौचालय आदि होते थे।
प्रश्न 2. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोगों का सामाजिक और धार्मिक जीवन कैसा था ?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोगों के सामाजिक और धार्मिक जीवन की प्रमुख बातों का वर्णन इस प्रकार है –
सामाजिक जीवन– (1) सरस्वती – सिन्धु सभ्यता का समाज अनेक वर्गों में विभाजित था। दुर्ग के एक क्षेत्र में शासक वर्ग व दूसरे में प्रशासनिक अधिकारी रहते थे। उनकी सुरक्षा व सुविधा का पूरा ध्यान रखा जाता था। आवासीय क्षेत्र में व्यापारी, सैनिक, अधिकारी, शिल्पी, मजदूर आदि रहते थे। इनकी सुरक्षा की कोई विशेष व्यवस्था नहीं होती थी । परन्तु कालीबंगा, लोथल, बनावली व धौलावीरा में किलेबंदी के प्रमाण मिलते हैं ।
(2) यहाँ के लोग शाकाहारी एवं माँसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे। इनका मुख्य भोजन जौ, गेहूँ, चावल, फल, सब्ज़ियाँ, दूध एवं मांस था। भोजन के लिए थाली, गिलास, कटोरा, लोटा आदि बर्तनों का प्रयोग किया जाता था।
(3) यहाँ के लोग वस्त्र और आभूषणों के भी शौकीन थे। आभूषणों में हार, भुजबंध, कंगन, अँगूठी आदि पहने जाते थे।
(4) धनी वर्ग अर्ध कीमती पत्थर, सोने, चाँदी एवं हाथी- दांत आदि के आभूषण पहनता था। निर्धन वर्ग पक्की मिट्टी, हड्डी व पत्थर के आभूषण पहनता था।
(5) यहाँ की स्त्रियाँ काजल, सुरमा, सिंदूर लगाती थीं।
(6) शतरंज खेलना, नृत्य व शिकार करना यहाँ के लोगों के प्रिय शौक थे ।
धार्मिक जीवन – (1) सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोगों का धर्म में पूरा विश्वास था।
(2) इनकी कई परम्पराओं को बाद के भारतीय समाज ने भी अंगीकृत किया ।
(3) यहाँ के लोग मातृ-शक्ति की पूजा करते थे। ये मातृ-शक्ति की उपासना प्राणी व वनस्पति जगत की उपास्य देवी के रूप में करते थे।
(4) मूर्तियों पर मिले धुएँ के निशान यह दर्शाते हैं कि यहाँ के लोग मूर्ति के समक्ष कोई वस्तु जलाते थे। (5) पशुपति शिव की उपासना के संकेत सरस्वती सिंधु सभ्यता के पुरावशेषों में देखने को मिलते हैं। प्राप्त प्रमाणों के अनुसार ये लोग शिवलिंग की पूजा के साथ-साथ पशुओं एवं वृक्षों की भी पूजा करते थे
प्रश्न 3. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की आर्थिक संरचना कैसी थी ?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की आर्थिक संरचना इस प्रकार है –
(1) सरस्वती-सिन्धु सभ्यता का आर्थिक जीवन अत्यंत समृद्ध था। यहाँ के लोग कृषि करते थे। सरस्वती-सिंधु क्षेत्र उपजाऊ था । यहाँ के लोग गेहूँ, जौ, चावल, मूंग, मसूर, मटर, सरसों, कपास, तिल आदि की कृषि करते थे।
(2) मेहरगढ़ से प्राप्त पत्थर की दरांति, कालीबंगा से प्राप्त जुते हुए खेत व बनावली से प्राप्त हल का नमूना भी उच्च स्तरीय कृषि को प्रमाणित करते हैं ।
(3) बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, कुत्ता, गधे, सूअर प्रमुख रूप से पाले जाते थे। इनका उपयोग दूध, माँस, खाल व ऊन आदि के लिए होता था ।
(4) कृषि व यातायात के लिए बैल का प्रयोग किया जाता था। घोड़े व ऊँट को भी पालतू बनाया गया। हाथियों का पालन भी संभवत: शुरू हो गया था। इसके अतिरिक्त जंगली जानवरों; जैसे सूअर, चिंकारा, नील गाय व हिरण आदि के साथ-साथ भिन्न-भिन्न प्रकार के पक्षियों तथा जलचरों के भी साक्ष्य प्राप्त हुए हैं ।
(5) यहाँ के लोग अनेक प्रकार के आभूषण, औजार, उपकरणों के लिए धातु की ढलाई की तकनीक से भली-भाँति परिचित व दक्ष थे।
(6) मिट्टी के बर्तन, ईंट उद्योग, उत्कीर्ण शिल्प तथा वस्त्र उद्योग यहाँ की आर्थिक संरचना को मजबूती प्रदान करते थे ।
( 7 ) आंतरिक और विदेशी व्यापार के लिए स्थल मार्ग व समुद्र मार्गों का प्रयोग किया जाता था। स्थल मार्ग के लिए बैलगाड़ी व समुद्र मार्ग के लिए नाव के प्रयोग के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। उत्खनन में बाट और तराजू के पलड़े प्राप्त हुए हैं। तोल की इकाई 16 के अनुपात में थी।
प्रश्न 4. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की कलात्मक विशेषताएं क्या थीं ?
उत्तर–सरस्वती-सिन्धु सभ्यता के लोग सौन्दर्यबोध से परिचित थे । यहाँ की मुहरें, मनके व मिट्टी के बने बर्तन, मूर्तियाँ आदि यहाँ की कला के सुन्दर उदाहरण हैं। सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की कलात्मक विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है –
(1) प्रस्तर (पत्थर) की बनी मूर्ति में सबसे उल्लेखनीय 19 सेंटीमीटर लम्बी खंडित पुरुष की मूर्ति मोहनजोदड़ो से मिली है जो तिपतिया अलंकरण युक्त शाल ओढ़े हुए है।
(2) मोहनजोदड़ो से विश्व – प्रसिद्ध धातु की नर्तकी की मूर्ति के अतिरिक्त पुरुषों, स्त्रियों व पशु-पक्षियों की भी मिट्टी की मूर्तियाँ मिली हैं। मानव की मिट्टी की मूर्तियाँ शिरोवेषभूषा एवं आभूषण के साथ मिली हैं।
(3) यहाँ की मुहरें भी अत्यंत कलात्मक हैं। ये मुहरें चौकोर या आयताकार हैं जिन पर सूक्ष्म उपकरणों से पशु-पक्षियों, देवी-देवताओं एवं लिपि को अंकित किया गया है।
(4) खेल के उपकरण, मिट्टी के बर्तन, अन्य गृह उपयोगी वस्तुएँ, बच्चों के खिलौने आदि भी बनाए जाते थे।
⇒ आइए विचार करें-
प्रश्न 1. सरस्वती-सिन्धु सभ्यता के विस्तार और कालक्रम के बारे में विचार करें ।
उत्तर – विस्तार – सरस्वतीसिन्धु सभ्यता का विस्तार पूर्व में आलमगीर (पश्चिमी उत्तर प्रदेश) से लेकर पश्चिम में सुत्कागेनडोर (ब्लूचिस्तान) तक एवं उत्तर में मांडा (जम्मू) से लेकर दक्षिण में दायमाबाद (महाराष्ट्र) तक था । इस सभ्यता का क्षेत्रफल 2,15,000 वर्ग किलोमीटर है। इस सभ्यता के पुरास्थलों की दूरी पूर्व से पश्चिम तक लगभग 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक लगभग 1400 किलोमीटर है। भारत में पंजाब (हड़प्पा), हरियाणा (राखीगढ़ी, बनावली), जम्मू कश्मीर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान (कालीबंगा), गुजरात (धौलावीरा) और पाकिस्तान में ब्लूचिस्तान, सिंध (मोहनजोदड़ो) आदि प्रांतों में इसके पुरास्थल मिलते हैं।
कालक्रम – कालक्रम के अनुसार सरस्वती – सिन्धु सभ्यता को तीन चरणों में विभाजित किया जाता है। रेडियो कार्बन तिथियों से ज्ञात होता है कि 7500-7000 ई० पूर्व सरस्वती नदी घाटी को प्रथम कृषि संस्कृतियों के लोगों ने अपना निवास- स्थान बनाना प्रारम्भ कर दिया था। 3200 ई० पूर्व के नगर योजना के लक्षण, लेखन-कला, मुहरों का विकास तथा नाप-तोल की पद्धति के साथ इन कृषि पद्धतियों का परिवर्तन विकसित ग्रामीण संस्कृति में हुआ । इन्होंने 2600 ई० पूर्व तक नगरीय जीवन की विशेषताओं को ग्रहण कर लिया जिसके परिणामस्वरूप नगरीय सभ्यता के नगरों का उदय हुआ। 1900 ई० पूर्व तक आते-आते इस नगरीय सभ्यता का परिवर्तन ग्रामीण संस्कृति में होना प्रारम्भ हो गया। 1300 ई० से पूर्व इस नगरीय सभ्यता का पतन हो गया ।
चरण-1 | प्रारंभिक काल (>4000-600 ई०पू० ) | प्रथम कृषि संस्कृति (>4000-3200 ई०पू० ) विकसित ग्रामीण संस्कृति (>3200-2600 ई०पू० ) |
चरण-2 | नगरीय काल | (2600-1900 ई०पू० ) |
चरण-3 | उत्तर काल | (1900-1300ई०पू० ) |
प्रश्न 2. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों के बारे में विस्तार से चर्चा करें ।
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के पतन के कारण निम्नलिखित थे –
1. प्रशासनिक शिथिलता – अन्तिम चरण तक आते-आते सरस्वती-सिन्धु सभ्यता के प्रशासन में शिथिलता आ गई थी जिसके कारण बस्ती का आकार सीमित हो गया तथा स्वच्छता में कमी आई। गलियों और सड़कों में अतिक्रमण बढ़ने लगा तथा नए मकानों के निर्माण में पुराने मकानों की ईंटों का प्रयोग होने लगा। दीवारें कम चौड़ी बनने लगीं जिसके कारण धीरे-धीरे यह नगरीय सभ्यता ग्रामीण संस्कृति में बदल गई।
2. बाढ़ – मोहनजोदड़ो, चान्हुदड़ो, लोथल और भगतराव के उत्खनन से बाढ़ के साक्ष्य मिले हैं जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस सभ्यता के पतन में बाढ़ की भी भूमिका रही होगी।
3. जलवायु परिवर्तन – सरस्वती सिन्धु सभ्यता के पतन में जलवायु परिवर्तन भी एक प्रमुख कारण है। वर्षा कम होने तथा सरस्वती नदी सूखने के कारण राजस्थान, हरियाणा एवं पंजाब में इस सभ्यता की बस्तियों का विनाश हो गया।
4. महामारी – मोहनजोदड़ो से प्राप्त 42 मानव कंकालों के अध्ययन से यह जानकारी मिलती है कि इनमें से 41 लोगों की मौत मलेरिया जैसी महामारी के कारण हुई है। अनुमानतः महामारी के कारण भी इस सभ्यता का पतन हुआ होगा।
5. विदेशी व्यापार में गतिरोध – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के विदेशी व्यापार में कमी आई जिसके कारण आर्थिक स्थिति कमजोर होने लगी। फलत: बहुमूल्य वस्तुओं की जगह स्थानीय उत्पादन की माँग में वृद्धि होने लगी और लोगों के जीवन स्तर में भारी गिरावट आई जो इस सभ्यता के पतन का एक मुख्य कारण बनी।
प्रश्न 3. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की विश्व को क्या-क्या देन है ?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता ने विश्व को निम्नलिखित नवीन तथ्यों से परिचित करवाया –
(1) सर्वप्रथम कांस्य धातु के प्रयोग के कारण इसे कांस्य सभ्यता कहा जाता है।
(2) प्रथम बार नगरों के उदय के कारण इसे प्रथम नगरीकरण भी कहा जाता है ।
(3) यहाँ की नगर योजना अत्यंत नियोजित थी।
(4) नालियों का पक्की ईंटों से ढका होना इस बात का सुन्दर उदाहरण है कि इस सभ्यता के लोग स्वच्छता का कितना ध्यान रखते थे।
(5) मोहजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर पुरुष की आकृति पद्मासन मुद्रा में है। इससे ज्ञात होता है कि यहाँ के लोग योग के महत्त्व से परिचित थे ।
(6) वृक्षों की पूजा किया जाना पर्यावरण व वनस्पति के प्रति उनकी सजगता को दर्शाता है।
(7) मुहरें, मनके तथा मिट्टी व पत्थर की मूर्तियाँ यहाँ की शिल्पकला से विश्व का परिचय करवाती हैं।
(8) दरांती, जुते हुए खेत, हल का नमूना आदि उस समय की उन्नत कृषि पद्धति के उदाहरण हैं ।
(9) अनाज को लम्बे समय तक संग्रह करके रखने के लिए अन्नागार बनाए जाते थे ।
⇒ आइए करके देखें
प्रश्न 1. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के व्यापारिक केन्द्रों की सूची बनाएं |
उत्तर – (1) मेसोपोटामिया, (2) लोथल, (3) मोहनजोदड़ो, (4) फारस । –
प्रश्न 2. हरियाणा में सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के स्थलों की सूची बनाएं।
उत्तर — राखीगढ़ी (हिसार) – डॉ० सूरजभान 1969 – फरमाना (रोहतक) — डॉ० आर० एस० विष्ट 1974 बनावली (फतेहाबाद ) – डॉ० आर० एस० विष्ट 1974
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प्रश्न 1. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की भवन – निर्माण प्रणाली पर एक विस्तृत लेख लिखें।
उत्तर – सरस्वती-सिन्धु सभ्यता के नगरों के भवन निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं –
1. आवासीय मकान – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता तथा मोहदजोदड़ो स्थानों में नागरिक निचले नगर में भवन समूहों में रहते थे । । ये मकान योजनापूर्वक बनाए जाते थे । प्रत्येक मकान के बीच एक खुला आंगन तथा चारों तरफ छोटे-बड़े कमरे होते थे । बाढ़ से सुरक्षा हेतु मकान ऊँचे चबूतरे पर तथा गहरी नींव के होते थे । दीवारें मोटी एवं पक्की ईंटों तथा गारे की थीं। छतों में लकड़ी और ईंटों तथा फर्श में भी ईंटों का प्रयोग था । प्रकाश व हवा के लिए दरवाजे, खिड़कियाँ तथा रोशनदान बनाए जाते थे । दरवाजे एवं खिड़कियाँ मुख्य सड़क की तरफ न खुलकर गली की तरफ खुलती थीं। घर में रसोईघर, शौचालय एवं स्नानघर होते थे । बड़े घरों में कुआँ भी होता था। कई मकान तो दो मंजिलों के बने होते थे। मकानों में भी विविधता थी । गरीब लोगों के मकान छोटे थे। छोटी बैरकों में मजदूर तथा दास रहते थे । निचले शहर के मकानों में बड़ी संख्या में कर्मशालाएँ (कारखाने) (Workshops) भी थीं।
2. विशाल भवन – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के नगरों के दुर्ग वाले भाग में विशाल भवन प्राप्त हुए हैं। मोहनजोदड़ो तथा सरस्वती-सिन्धु सभ्यता में ऐसे अनेक विशाल भवन मिले हैं जो शायद शासक वर्ग के लोगों द्वारा प्रयोग में लाए जाते होंगे।
3. सार्वजनिक स्नानागार – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता सबसे प्रसिद्ध भवन मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार है। आयताकार में बना यह स्नानागार 11.88 मीटर लम्बा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.45 मीटर गहरा है । इसके उत्तर और दक्षिण में सीढ़ियाँ बनी हैं। ये सीढ़ियाँ स्नानागार के तल तक जाती हैं । यह स्नानागार पक्की ईंटों से बना है। इसे बनाने में चूने तथा तारकोल का प्रयोग किया गया था। इसके साथ ही एक कुआँ था जिससे इस स्नानागार को पानी से भरा जाता था । इसे साफ करने के लिए इसकी पश्चिमी दीवार के तल पर नालियाँ बनी थीं । स्नानागार के चारों ओर मंडप एवं कक्ष बने हुए थे । विद्वानों का मानना है कि इस स्नानागार और भवन का धार्मिक समारोहों के लिए प्रयोग किया जाता था ।
4. अन्नागार – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता में 50 × 40 मीटर के आकार का एक भवन मिला है जिसके बीच में 7 मीटर चौड़ा गलियारा था । पुरातत्ववेत्ताओं ने इसे विशाल अन्नागार बताया है जो अनाज, कपास तथा व्यापारिक वस्तुओं के गोदाम के काम आता था ।
5. जलाशय तथा डॉकयार्ड – धौलावीरा में एक विशाल जलाशय के अवशेष मिले हैं। यह जलाशय 80.4 मीटर लम्बा, 12 मीटर चौड़ा तथा 7.5 मीटर गहरा था । कच्छ क्षेत्र में पानी की कमी रहती थी । अतः ऐसे जलाशय का प्रयोग जल संग्रहण के लिए किया जाता होगा । इसी प्रकार लोथल में अन्नागार तथा डॉकयार्ड (गोदी) मिला है । पक्की ईंटों से बना यह स्थल 214 मीटर लम्बा, 36 मीटर चौड़ा तथा 4.5 मीटर गहरा है । यह डॉकयार्ड एक जलमार्ग से पास की खाड़ी से जुड़ा है ।
प्रश्न 2. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन का वर्णन करें।
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोगों का सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन उच्चकोटि का था । वे विकसित शहरी जीवन व्यतीत करते थे। उनके जीवन की विशेषताएँ इस प्रकार हैं –
1. भोजन – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग खाने-पीने के बड़े शौकीन थे । वे गेहूँ, चावल, जौ, खजूर, दूध, फल तथा सब्जियों का प्रयोग करते थे। सब्जियों के साथ-साथ वे माँस तथा मछलियों का भी प्रयोग करते थे। कई स्थानों पर मसाले पीसने वाले सिलबट्टों के अवशेषों की प्राप्ति यह सिद्ध करती है कि ये लोग स्वादिष्ट तथा मसालेदार भोजन के शौकीन थे ।
2. वस्त्राभूषण – सरस्वती- सिन्धु सभ्यता के लोग सूती तथा ऊनी वस्त्र पहनते थे । पुरुष धोती, कुर्ता पहनते थे तथा कन्धे पर शाल या दुपट्टा डालते थे । स्त्रियाँ रंगीन बेलबूटेदार वस्त्र पहनती थीं । वे लोग वस्त्रों की सिलाई भी करते थे । ऐसा संकेत कई स्थानों पर सूइयाँ मिलने से प्राप्त होता है । स्त्री और पुरुष दोनों ही आभूषण भी पहनते थे। उनके आभूषणों में गले का हार, अंगूठियाँ, कुण्डल, बाजूबन्द, कर्णफूल, चूड़ियाँ, तगड़ी, पाज़ेब आदि प्रमुख थे। आभूषण सोने, चाँदी, हाथी- दाँत तथा कीमती पत्थरों के बनाए जाते थे ।
3. हार-शृंगार- सरस्वती-सिन्धु सभ्यता के लोग शृंगार – प्रिय थे । महिलाएँ विशेष रूप से सजा करती थीं । वे कई प्रकार के पाउडर, सुगन्धित तेल तथा लिपिस्टिक का प्रयोग करती थीं । वे अपने बालों को कई प्रकार से सजाया करती थीं । पुरुष भी अपने बालों, मूँछों तथा दाढ़ियों का शृंगार करते थे । ये लोग हाथी – दाँत की कंघियों का प्रयोग करते थे।
4. मनोरंजन के साधन – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग विभिन्न साधनों द्वारा अपना मनोरंजन करते थे। वे शिकार खेलने, मछली पकड़ने, पशु-पक्षी पालने, पशु-पक्षियों की लड़ाइयाँ देखने, शतरंज खेलने, संगीत तथा नृत्य के शौकीन थे। खुदाई में प्राप्त खिलौनों के अवशेषों से इस बात की पुष्टि होती है कि बच्चों के मनोरंजन के लिए खिलौनों का खूब प्रचलन था । खुदाई में मिले बारहसिंगों के सींग उनके शिकार प्रेम को प्रदर्शित करते हैं ।
5. मृतक संस्कार – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग अपने मृतकों का संस्कार तीन प्रकार से करते थे । वे प्रायः मृतकों को जलाकर उनकी राख को किसी बर्तन में भरकर ज़मीन में गाढ़ देते थे। कई बार वे शव को भूमि में गाढ़ देते थे। कभी-कभी वे अपने मृतकों के शवों को खुले में ही छोड़ देते थे । जब उनका कंकाल बाकी रह जाता था ( माँस चीलों, गिद्धों व अन्य पक्षियों द्वारा खा लेने के बाद) तो उसे ज़मीन में दबा दिया जाता था ।
6. लिपि- प्राचीन मैसोपोटामियाइयों की भाँति सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोगों ने भी लेखन-कला का आविष्कार किया था । 1923 ई० तक पूरी हड़प्पाई लिपि प्रकाश में आ गई थी । किन्तु इसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। इस लिपि में कुल 250 से 400 तक चित्राक्षर हैं। चित्र के रूप में लिखा गया हर अक्षर किसी ध्वनि, भाव या वस्तु का सूचक है। इस लिपि का पश्चिमी एशिया की लिपियों से कोई सम्बन्ध दिखाई नहीं देता। यह लिपि दाईं से बाईं ओर को लिखी जाती है। प्रसिद्ध भारतीय पुरातत्ववेत्ता ( Archaeologist ) श्री वी० कृष्ण राव ने (9 मार्च, 1969) दावा किया है कि उन्होंने इस लिपि को पढ़ने में सफलता प्राप्त कर ली है किन्तु यह लिपि अभी भी इतिहासकारों के लिए रहस्य बनी हुई है । ।
प्रश्न 3. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के शिल्प उत्पादों पर लेख लिखें ।
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोगों ने शिल्प उत्पादों में महारत हासिल कर ली थी। मनके बनाना, सीपी उद्योग, धातु-कर्म (सोना-चांदी के आभूषण, ताँबा, कांस्य के बर्तन, खिलौने उपकरण आदि), तौल निर्माण, प्रस्तर उद्योग, मिट्टी के बर्तन बनाना, ईंटें बनाना, मुद्रा निर्माण आदि हड़प्पा के लोगों के प्रमुख शिल्प उत्पाद थे। कई बस्तियाँ तो इन उत्पादों के लिए ही प्रसिद्ध थीं। ।
1. मनके बनाना – सरस्वती-सिन्धु सभ्यता के लोग गोमेद, फिरोजा, लाल पत्थर, स्फटिक (Crystal), क्वार्ट्ज़ (Quartz), सेलखड़ी (Steatite), जैसे बहुमूल्य एवं अर्द्ध-कीमती पत्थरों के अति सुन्दर मनके बनाते थे । मनके व उनकी मालाएं बनाने में ताँबा, कांस्य और सोना जैसी धातुओं का भी प्रयोग किया जाता था । शंख, फयॉन्स (faience), टेराकोटा या पक्की मिट्टी से भी मनके बनाए जाते थे। इन्हें अनेक आकारों चक्राकार, गोलाकार, बेलनाकार और खंडित इत्यादि में बनाया जाता था। कुछ पर चित्रकारी की जाती थी और रेखाचित्र उकेरे जाते थे । कुछ मनके अलग-अलग पत्थरों को जोड़कर बनाए जाते थे। पत्थर के ऊपर सोने के टोप वाले सुन्दर मनके भी पाए गए हैं ।
2. धातु – कर्म–सरस्वती-सिन्धु सभ्यता के लोगों को अनेक धातुओं की जानकारी थी । वे इन धातुओं से विविध सामान बनाते थे। तांबे का प्रयोग सबसे ज्यादा किया गया है। इससे कई उपकरण; जैसे उस्तरा, छैनी, चाकू, तीर व भाले का अग्रभाग, कुल्हाड़ी, मछली पकड़ने के कांटे, आरी तलवार आदि बनाए जाते थे । तांबे में संखिया व टिन मिलाकर काँसा बनाया जाता था | ताँबे और काँसे के बर्तन भी बनाए जाते थे। कांस्य की मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं । सोने के आभूषणों के संचय मोहनजोदड़ो तथा सरस्वती – सिन्धु सभ्यता से मिले हैं। सोना हल्के रंग का था। इसमें चाँदी की मिलावट काफी मात्रा में थी । भारत में चाँदी का सर्वप्रथम प्रयोग सरस्वती – सिन्धु सभ्यता में हुआ। चाँदी के आभूषण और बर्तन बनाए जाते थे । सर जॉन मार्शल लिखते हैं कि सोने-चाँदी के आभूषणों को देखकर ऐसा महसूस होता है कि यह पांच हजार वर्ष पूर्व की कला कृतियाँ नहीं, अपितु इन्हें अभी-अभी लन्दन स्थित जौहरी बाजार (बांडस्ट्रीट) से खरीदा गया हो ।
3. पाषाण उद्योग – इस काल में पत्थर के उपकरण भी बनाए जाते थे । सुक्कूर में इसके प्रमाण मिले हैं। पत्थर के विशेष प्रकार के बरमें, खुरचनियाँ, काटने के उपकरण, दरांती, फलक आदि बनाए जाते थे । उपकरण खेती, मणिकारी, दस्तकारी, नक्काशी (लकड़ी, सीपी) एवं छेद करने में प्रयोग किए जाते थे । पत्थर की मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं। इसमें सेलखड़ी तथा चूना पत्थर का उपयोग होता था ।
4. मिट्टी के बर्तन – सरस्वती सिन्धु सभ्यता के सभी स्थलों से सादे और अलंकृत वर्तन प्राप्त हुए हैं। इन बर्तनों पर पहले लाल रंग का घोल चढ़ाया जाता था, फिर काले रंग के गाढ़े घोल से डिज़ाइन बनाए जाते थे। ये बर्तन चाक पर बनाए जाते थे तथा भट्टियों में पकाए जाते थे। बर्तनों पर नदी तल की चिकनी मिट्टी का प्रयोग होता था। इस मिट्टी में बालू, अभ्रक या चूने के कण मिलाए जाते थे। बर्तनों पर वृक्षों व पशुओं की आकृतियाँ बनी मिली हैं। विकसित सरस्वती सिन्धु सभ्यता में उच्चकोटि के चमकदार मृदभाण्डों का उत्पादन होने लगा था। बर्तनों के अतिरिक्त मिट्टी की मूर्तियाँ, खिलौने, घरेलू सामान, चूड़ियाँ, छोटे मनके एवं पशुओं की छोटी मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं ।
5. ईंटें बनाना तथा राजगिरी – सरस्वती सिन्धु सभ्यता के नगरों में विशाल भवनों का निर्माण तथा बड़े पैमाने पर ईंटों का प्रयोग इस बात की तरफ संकेत करता है कि वहाँ पर ईंटों का निर्माण करने का अलग उद्योग रहा होगा। परकोटों तथा भवनों को बनाने वाले मिस्त्री का काम करने वाला समुदाय भी रहा होगा ।
6. सीपी उद्योग – इस सभ्यता के समय सीपी के कई उत्पाद बनाए जाते थे। समुद्री शंख का प्रयोग चूड़ियाँ, मनके, जड़ाऊ वस्तुएँ एवं छोटी आकृतियाँ बनाने में किया जाता था । बालाकोट, लोथल एवं कुतांसी स्थलों से कच्चा माल प्राप्त किया जाता था। यहाँ पर स्थानीय कार्यशालाएँ थीं ।
7. कताई और बुनाई – घरों में तकुए तथा तकलियाँ मिली हैं। इनका प्रयोग सूती ऊनी वस्त्रों की बुनाई में किया जाता था। तकलियों को मिट्टी, सीपी और ताँबे से बनाया हुआ था । यहाँ से कपड़े का कोई टुकड़ा नहीं मिला है। परंतु यह तथ्य सत्य है कि कपास का उत्पादन होता था तथा वस्त्रों का प्रयोग किया जाता था। कपड़ों की रंगाई भी की जाती थी।
लघुत्तरात्मक प्रश्न [SHORT-ANSWER TYPE QUESTIONS]
प्रश्न 1. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के नामकरण पर टिप्पणी करें।
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता नदियों के उपजाऊ मैदान में भारत की प्रथम नगरीय सभ्यता का जन्म हुआ। इस सभ्यता के पुरास्थल बहुत अधिक मात्रा में सरस्वती व सिन्धु नदियों के किनारे पर मिलने से इस सभ्यता को ‘सरस्वती – सिन्धु सभ्यता’ कहा जाता है। इस सभ्यता को ‘हड़प्पा सभ्यता’ और ‘सिन्धु सभ्यता’ के नाम से भी जाना जाता है। कालक्रम के दृष्टिकोण से इस सभ्यता को मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यताओं के समकालीन सभ्यता माना जाता है।
प्रश्न 2. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता का तकनीकी विज्ञान किस प्रकार का था ?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता से सम्बन्धित मिले अवशेषों से उस काल के तकनीकी विज्ञान के बारे में काफी जानकारी मिलती है। यहाँ के लोगों ने मिट्टी के बर्तन तथा आभूषण बनाने, हाथी दाँत का काम करने, भवन निर्माण, मूर्तियाँ बनाने तथा कपड़ा बुनने आदि अनेक शिल्पों में विशेष उन्नति की हुई थी। सोने-चाँदी के आभूषण तथा मनके, धातु कला की तकनीकी तथा बर्तनों पर फूल-पत्तियों आदि के चित्र बर्तन बनाने की तकनीकी में निपुणता के उदाहरण पेश करते हैं।
प्रश्न 3. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के अधीन कला के विकास का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर – उच्चकोटि की नगर योजना के अतिरिक्त सरस्वती-सिन्धु सभ्यता के लोगों ने विभिन्न कलाओं में बहुत विकास किया था । वे भवन निर्माण कला, सुन्दर आभूषण बनाने, पक्की मिट्टी के चित्रित बर्तन बनाने, मोहरें बनाने तथा धातु की मूर्तियाँ बनाने में निपुण थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई काँस्य निर्मित नर्तकी की मूर्ति और शाल पहने हुए एक योगी की मूर्ति मूर्तिकला के सुन्दर उदाहरण हैं। मोहरों पर भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्र बड़े सुन्दर ढंग से खुदे हुए हैं । आभूषण बनाने की कला भी प्रभावशाली ढंग की थी । सोने, चाँदी, कीमती पत्थरों, हाथी दाँत और हड्डियों से अत्यन्त सुन्दर आभूषण बनाए जाते थे जो कला के प्रशंसनीय उदाहरण हैं।
प्रश्न 4. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की नगर योजना में सड़कों व गलियों की व्यवस्था कैसी थी?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की नगर योजना में सड़कों का महत्त्वपूर्ण स्थान था। मुख्य सड़कें नगर को पाँच-छह खण्डों में बाँटती थीं। मोहनजोदड़ो में मुख्य सड़कें 9.15 मीटर चौड़ी तथा गलियाँ औसतन 3.0 मीटर चौड़ी थीं । कालीबंगा, मीताथल व राखीगढ़ी की सड़कें भी चौड़ी थीं। सड़कें कच्ची होती थीं। साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता था।
प्रश्न 5. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की लिपि के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर–सरस्वती-सिन्धु सभ्यता के लोग लेखन कला अथवा लिपि का ज्ञान रखते थे । परन्तु दुर्भाग्य से उनकी लिपि को विद्वान् अभी तक पढ़ने तथा समझने में सफल नहीं हुए। माना जाता है कि यह चित्र – संकेत सम्बन्धी लिपि है जो दाईं से बाईं ओर लिखी जाती है। इसके कुल 396 चिह्न मिले हैं। 9 मार्च, 1969 को प्रसिद्ध भारतीय पुरातत्ववेत्ता श्री वी० कृष्ण राव ने दावा किया था कि उन्होंने शिव-पशुपति नामक मुद्रा की सहायता से सरस्वती – सिन्धु सभ्यता लिपि को पढ़ लिया है, परन्तु अभी भी इतिहासकारों के लिए इस लिपि को पढ़ लेना एक रहस्य बना हुआ है । इसको पढ़ लेने में सफल होने पर सिन्धु घाटी की सभ्यता के बारे में हमारी जानकारी बहुत बढ़ जाएगी ।
प्रश्न 6. सरस्वती-सिन्धु सभ्यता के लोगों के जीवन में योग के महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर- सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोगों के बीच योग का विशेष महत्त्व रहा है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर पर एक पुरुष की आकृति पद्मासन मुद्रा में मिली है और एक अन्य मुहर पर योग पुरुष की आधी खुली हुई आँखें नासिका के आगे के भाग पर दिखाई गई हैं। इस प्रकार योग के क्रिया-पक्ष का आंकलन मुहरों पर मिलता है। इस सभ्यता की कुछ मुहरों पर स्वास्तिक का चिह्न भी दिखाई देता है।
प्रश्न 7. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता में अंत्येष्टि संस्कार की तीन विधियों के नाम बताएँ व समाधि-क्षेत्र के विषय पर प्रकाश डालें।
उत्तर – सरस्वती सिन्धु सभ्यता में अंत्येष्टि संस्कार की निम्नलिखित विधियों का उल्लेख मिलता है
(1) पूर्ण समाधिकरण,
(2) आंशिक समाधिकरण,
(3) दाह संस्कार ।
समाधि – क्षेत्र – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता में समाधि-क्षेत्र नगरों से बाहर होते थे। इस बात के साक्ष्य फरमाना, राखीगढ़ी तथा अन्य पुरास्थलों से भी मिलते हैं । शवों के सिर व पैरों की दिशा का विशेष ध्यान रखा जाता था। शवों के सिर की दिशा उत्तर की ओर व पैरों की दिशा दक्षिण की ओर रखी जाती थी ।
प्रश्न 8. मोहनजोदड़ो में से किस प्रकार की मोहरें मिली हैं ?
उत्तर–सरस्वती-सिन्धु सभ्यता की खुदाई से अनेक प्रकार की मोहरें प्राप्त हुई हैं। अकेले मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई मोहरों की संख्या करीब 1200 है। ये मोहरें पकाई गई मिट्टी की बनी हैं तथा शिल्पकारी के उत्तम नमूने हैं। अनेक मोहरों पर बैल, हाथी, शेर, बाघ आदि पशुओं के चित्र अंकित हैं और अनेक मोहरों पर सरस्वती- सिन्धु सभ्यता में पूजे जाने वाले देवी-देवताओं की मूर्तियाँ अंकित हैं। बहुत-सी मोहरों पर उस समय की लिपि के चिह्न हैं जो आज तक पढ़े तथा समझे नहीं जा सके ।
प्रश्न 9. सिन्धु घाटी के लोगों के सामाजिक जीवन के बारे में वर्णन करो ।
उत्तर – सिन्धु घाटी की सभ्यता एक उच्च कोटि की नागरिक सभ्यता थी । यहाँ के लोग गेहूँ, चावल, जौ, दूध, दही, मक्खन, सब्जियों व फलों का उपयोग करते थे। वे मसालेदार और पौष्टिक भोजन के शौकीन थे । ये लोग सूती व ऊनी कपड़े पहनते थे। पुरुष धोती बाँधते थे और शरीर के ऊपरी भाग पर ढीला कपड़ा पहनते थे । महिलाएँ लहँगे का प्रयोग करती थीं और ऊपरी भाग पर शाल जैसा वस्त्र पहनती थीं । महिलाएँ लम्बे बालों के जूड़े व चोटियाँ बनाती थीं और सिर पर अनेक तरह के आभूषण पहनती । थीं । पुरुष भी जूड़ा करते थें । केश कटवाने का रिवाज़ भी था । पुरुष दाढ़ी और मूँछों के अनेक नमूने बनाते थे। आभूषणों में मुख्य रूप से हार, कंगन, अंगूठियाँ, बालियाँ पहनी जाती थीं । सिन्धु घाटी के लोग अधिकतर घर के भीतर खेले जाने वाले खेलों; जैसे शतरंज, जुआ, नाच-गाना इत्यादि से अपना मनोरंजन करते थे ।
अति-लघुत्तरात्मक प्रश्न [VERY SHORT-ANSWER TYPE QUESTIONS]
प्रश्न 1. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की खुदाई करवाने वाले चार व्यक्तियों के नाम बताइए ।
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की खुदाई से सम्बन्धित प्रसिद्ध चार व्यक्ति थे – ( 1 ) आर०डी० बनर्जी, (2) दयाराम साहनी, (3) सर जॉन मार्शल तथा (4) सर मोर्टियम ह्वीलर ।
प्रश्न 2. कोई चार धातुएँ बताइए जिनसे सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग परिचित थे ?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग सोना, चाँदी, ताँबा तथा काँसे से परिचित थे | ऐसा विश्वास किया जाता है कि वे लोहे के प्रयोग से अपरिचित थे ।
प्रश्न 3. खाद्य पदार्थों के अतिरिक्त सरस्वती-सिन्धु सभ्यता की सबसे महत्त्वपूर्ण उपज क्या थी और इसका क्या प्रयोग किया जाता था?
उत्तर – खाद्य पदार्थों के अतिरिक्त सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की सबसे महत्त्वपूर्ण फसल कपास थी । इसका प्रयोग वस्त्र बनाने के लिए किया जाता था ।
प्रश्न 4. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता में मिट्टी के बर्तन बनाने की दो प्रकार की विधियाँ बताइए ।
उत्तर – ( 1 ) सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग हाथ से तथा चाक से मिट्टी के बर्तन बनाते थे।
(2) ये बर्तन काफी आकर्षक तथा सुन्दर होते थे ।
प्रश्न 5. लोथल कस्बा कौन-से दो काम देता था ?
उत्तर – ( 1 ) लोथल कस्बा एक प्रसिद्ध बन्दरगाह के रूप में प्रसिद्ध था ।
( 2 ) यहाँ मालाओं में डाले जाने वाले मनके तैयार करने के कारखाने भी अधिक मात्रा में थे ।
प्रश्न 6. केवल मोहनजोदड़ो से प्राप्त मोहरों की संख्या बताइए। इन मोहरों का प्रयोग किसलिए किया जाता था ?
उत्तर – मोहनजोदड़ो से लगभग 1200 से भी अधिक मोहरें प्राप्त हुई हैं। इनका प्रयोग गांठों तथा सामान से भरे बर्तनों पर सुरक्षा के लिए सील लगाने के लिए किया जाता था । इनसे तत्कालीन पदवियों तथा उपलिब्धयों के बारे में भी पता चलता है ।
प्रश्न 7. भारत तथा एशिया के ऐसे चार क्षेत्र बताइए जिनके साथ सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोगों के व्यापारिक सम्बन्ध थे।
उत्तर–सरस्वती-सिन्धु सभ्यता के भारत के राजस्थान, मैसूर, कश्मीर तथा पूर्वी भारत के देशों के साथ-साथ एशिया के अफ़गानिस्तान, ईरान, सुमेर तथा मध्य एशियाई देशों के साथ भी व्यापारिक सम्बन्ध थे।
प्रश्न 8. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता में नर्तकी की मूर्ति कहाँ मिली है? यह किस धातु की बनी है ? ।
उत्तर–सरस्वती-सिन्धु सभ्यता में नर्तकी की मूर्ति मोहनजोदड़ो से मिली है । यह मूर्ति काँसे की बनी हुई है । यह मूर्ति एक ही टुकड़े की बनी है तथा अत्यन्त प्रभावशाली है ।
प्रश्न 9. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता में धर्म की चार विशेषताएँ बताइए जो बाद के समय में भी कायम रहीं ।
उत्तर–सरस्वती-सिन्धु सभ्यता में धर्म की चार विशेषताएँ जो बाद के समय में भी प्रचलित रही, वे हैं- मातृदेवी की पूजा, शिवलिंग की पूजा, मूर्ति पूजा तथा धार्मिक क्रियाओं में स्नान का महत्त्व ।
प्रश्न 10. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के नगरों की दो विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर–सरस्वती-सिन्धु सभ्यता के नगरों की सड़कें सीधी तथा चौड़ी होती थीं। इन नगरों में नालियों की उचित व्यवस्था होती थी। ये नगर दो भागों में विभाजित होते थे जिनमें एक भाग कुछ ऊँचा होता था जबकि दूसरा भाग कुछ नीचा होता था।
प्रश्न 11. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के पुरास्थल भारत के किस-किस प्रदेश में मिलते हैं?
उत्तर— इस सभ्यता के पुरास्थल भारत में पंजाब, हरियाणा, उत्तरी राजस्थान, गुजरात, जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान में ब्लूचिस्तान, सिन्ध आदि प्रांतों में मिलते हैं ।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (OBJECTIVE TYPE QUESTIONS]
I. एक शब्द या एक वाक्य में उत्तर दीजिए
प्रश्न 1. भारत की प्रथम नगरीय सभ्यता का उदय कहाँ हुआ?
उत्तर – भारत की प्रथम नगरीय सभ्यता का उदय सरस्वती – सिन्धु नदियों के उपजाऊ मैदानों में हुआ।
प्रश्न 2. हड़प्पा नामक पुरास्थल का उत्खनन किसने और कहाँ किया?
उत्तर- सर्वप्रथम 1921 ई० में दयाराम साहनी ने पंजाब प्रांत में हड़प्पा नामक पुरास्थल का उत्खनन किया ।
प्रश्न 3. मोहनजोदड़ो नामक पुरास्थल का उत्खनन किसके द्वारा और कहाँ किया गया?
उत्तर–मोहनजोदड़ो नामक पुरास्थल का उत्खनन राखल दास बनर्जी द्वारा सिंध प्रांत में किया गया।
प्रश्न 4. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता का क्षेत्रफल कितना है?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता का क्षेत्रफल 2,15,000 वर्ग किलोमीटर है।
प्रश्न 5. मोहनजोदड़ो का क्या अर्थ है ?
उत्तर – मोहनजोदड़ो का अर्थ है- मृतकों का टीला ।
प्रश्न 6. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता को किस-किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता को ‘हड़प्पा सभ्यता’ व ‘सिन्धु सभ्यता’ के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 7. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता को ‘सरस्वती – सिंधु सभ्यता’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर–सरस्वती-सिन्धु सभ्यता के पुरास्थल बड़ी संख्या में सरस्वती सिन्धु नदी के किनारे पाए जाने के कारण इसे ‘सरस्वती-सिन्धु सभ्यता’ कहा जाता है।
प्रश्न 8. कालक्रम की दृष्टि से सरस्वती – सिन्धु सभ्यता को कितने चरणों में विभाजित किया जाता है?
उत्तर—कालक्रम की दृष्टि से सरस्वती – सिन्धु सभ्यता को तीन चरणों में विभाजित किया जाता है।
प्रश्न 9. पूर्व दिशा के टीले पर तथा पश्चिम दिशा के टीले पर क्या स्थित होते थे?
उत्तर – पूर्व दिशा के टीले पर आवास क्षेत्र तथा पश्चिम दिशा के टीले पर दुर्ग स्थित होते थे ।
प्रश्न 10. मोहनजोदड़ो में मुख्य सड़कों व गलियों का औसत कितना होता था?
उत्तर – मोहनजोदड़ों में मुख्य सड़कें 9.15 मीटर व गलियाँ औसतन 3.0 मीटर चौड़ी होती थीं।
प्रश्न 11. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की कला के अन्तर्गत किसका उल्लेख मिलता है ?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की कला के अन्तर्गत प्रस्तर (पत्थर), धातु व मिट्टी की मूर्तियों का उल्लेख मिलता है।
प्रश्न 12. मोहनजोदड़ो से प्राप्त प्रस्तर मूर्ति की क्या विशेषता है ?
उत्तर – मोहनजोदड़ो से प्राप्त प्रस्तर मूर्ति में 19 सेंटीमीटर लम्बी खंडित पुरुष की मूर्ति तिपतिया अलंकरण युक्त शाल ओढ़े हुए है।
प्रश्न 13. मुहरें मुख्य रूप से किस आकार की हैं तथा उन पर क्या अंकित है?
उत्तर— मुहरें मुख्य रूप से चौकोर या आयताकार हैं तथा उन पर सूक्ष्म उपकरणों से पशु-पक्षी, देवी-देवता एवं लिपि अंकित है।
प्रश्न 14. कालीबंगा का क्या अर्थ है ?
उत्तर – काले रंग की चूड़ियाँ ।
प्रश्न 15. हड़प्पा नामक पुरास्थल का उत्खनन किस वर्ष हुआ?
उत्तर – सन् 1921 में ।
प्रश्न 16. मोहनजोदड़ो नामक पुरास्थल का उत्खनन किस वर्ष हुआ?
उत्तर – सन् 1922 में ।
प्रश्न 17. सिन्धु – सरस्वती सभ्यता के शासन को गणतंत्रात्मक किसने माना है ?
उत्तर – हंटर महोदय ने सिन्धु-सरस्वती सभ्यता के शासन को गणतंत्रात्मक माना है।
प्रश्न 18. मेसोपोटामिया सभ्यता में नगर-राज्यों का संचालन किन शासकों के हाथ में था तथा संपूर्ण भूमि किसकी सम्पत्ति होती थी?
उत्तर—मेसोपोटामिया सभ्यता में नगर-राज्यों का संचालन पुरोहित शासकों के हाथ में था तथा संपूर्ण भूमि मंदिरों की सम्पत्ति होती थी।
प्रश्न 19. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता का समाज कितने वर्गों में विभाजित था?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता का समाज दो वर्गों में विभाजित था ।
प्रश्न 20. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग किस प्रकार का भोजन करते थे?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग शाकाहारी व माँसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करते थे।
प्रश्न 21. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोगों के मनोरंजन का प्रमुख साधन क्या था?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोगों के मनोरंजन का प्रमुख साधन शतरंज के खेल व नृत्य था । –
प्रश्न 22. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के पुरावशेषों को देखकर क्या लगता है?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के पुरावशेषों को देखकर लगता है कि ये लोग पशुपति शिव व शिवलिंग की उपासना करते थे।
प्रश्न 23. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग किस धातु से परिचित नहीं थे ?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग लोहे से परिचित नहीं थे।
प्रश्न 24. सरस्वती-सिन्धु सभ्यता की कुछ मुहरों पर कैसा चिह्न देखने को मिलता है ?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की कुछ मुहरों पर स्वास्तिक (ॐ) का चिह्न देखने को मिलता है।
प्रश्न 25. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता में शवों का सिर तथा पैर किस दिशा की ओर होते थे ?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता में शवों का सिर प्राय: उत्तर दिशा में तथा पैर दक्षिण दिशा की ओर होते थे।
प्रश्न 26. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता में अंत्येष्टि संस्कार की कितनी विधियाँ प्रचलित थीं?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता में अंत्येष्टि संस्कार की तीन विधियाँ प्रचलित थीं ।
प्रश्न 27. बाढ़ के प्रमाण कहाँ से मिले हैं?
उत्तर – मोहनजोदड़ो, चन्हुदड़ो, लोथल तथा भगतराव स्थानों के उत्खनन से बाढ़ के प्रमाण मिले हैं।
प्रश्न 28. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के पतन का एक कारण लिखें।
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के पतन का एक कारण मलेरिया महामारी का प्रकोप माना जाता था।
प्रश्न 29. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लिए किस नदी सूख जाने को कारण माना जाता है?
उत्तर – सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लिए सरस्वती नदी के सूख जाने को कारण माना जाता है।
प्रश्न 30. मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर किसकी आकृति है?
उत्तर – मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर एक पुरुष की आकृति पद्मासन में है ।
II. बहुविकल्पीय प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर दीजिए
1. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता को अन्य किस नाम से जाना जाता है ?
(A) सिन्धु सभ्यता
(B) हड़प्पा सभ्यता
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (C)
2. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता का उत्खनन किस वर्ष किया गया?
(A) वर्ष 1922-1923
(B) वर्ष 1920-1921
(C) वर्ष 1921-1922
(D) वर्ष 1923-1929
उत्तर – (C)
3. पूर्व से पश्चिम तक सरस्वती- सिन्धु सभ्यता का प्रसार कितने किलोमीटर है?
(A) लगभग 1800 किलोमीटर
(B) लगभग 1600 किलोमीटर
(C) लगभग 1500 किलोमीटर
(D) लगभग 1700 किलोमीटर
उत्तर – (B)
4. उत्तर से दक्षिण तक सरस्वती – सिन्धु सभ्यता का प्रसार कितने किलोमीटर है?
(A) लगभग 1300 किलोमीटर
(B) लगभग 1400 किलोमीटर
(C) लगभग 1500 किलोमीटर
(D) लगभग 1600 किलोमीटर
उत्तर -(B)
5. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के नगरों में क्या विशेषताएँ देखने को मिलती हैं ?
(A) प्रशासनिक भवन
(B) सार्वजनिक भवन
(C) अन्नागार
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
6. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता में नालों को ढकने के लिए किस प्रकार की ईंटों का प्रयोग किया जाता था?
(A) कच्ची ईंटों का
(B) पक्की ईंटों का
(C) बजरी व रेत का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- (B)
7. 19 सेंटीमीटर खंडित पुरुष की प्रस्तर मूर्ति कहाँ से मिली है?
(A) मोहनजोदड़ो से
(B) मेसोपोटामिया से
(C) धौलावीरा से
(D) राखीगढ़ी से
उत्तर – (A)
8. सरस्वती- सिन्धु सभ्यता के नगरों में टीलों की संख्या कितनी है?
(A) 3
(B) 2
(C) 4
(D) 5
(B)
9. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के नगरों में प्राय: टीले किस दिशा में मिलते हैं ?
(A) पूर्व दिशा में
(B) पश्चिम दिशा में
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (C)
10. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के शासन को गणतंत्रात्मक किस विद्वान ने माना है ?
(A) हंटर महोदय ने
(B) व्हीलर ने
(C) पीटरसन ने
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (A)
11. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के साधारण निवासी किस क्षेत्र में रहते थे?
(A) दुर्ग क्षेत्र में
(B) आवासीय क्षेत्र में
(C) कृषि क्षेत्र में
(D)उपर्युक्त सभी
उत्तर – (B)
12. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोगों का प्रमुख भोजन क्या था?
(A) केवल शाकाहारी भोजन
(B) केवल माँसाहारी भोजन
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (C)
13. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग समय बिताने के लिए क्या कार्य करते थे?
(A) शतरंज का खेल
(B) नृत्य
(C) शिकार
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
14. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता में कृषि के अत्यधिक विकास के क्या कारण थे ?
(A) फसल बोने की विधि
(B) . कृषि के उपकरण
(C) सिंचाई व्यवस्था
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
15. सरस्वती-सिन्धु सभ्यता के लोग व्यवसाय के लिए किस मार्ग का प्रयोग करते थे?
(A) स्थल मार्ग का
(B) केवल समुद्र मार्ग का
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (C)
16. पत्थर की दरांती मिलने के साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुए हैं?
(A) लोथल से
(B) कालीबंगा से
(C) मेहरगढ़ से
(D) राखीगढ़ी से
उत्तर – (C)
17. खाना पकाने व पीसने के प्रमाण किन वस्तुओं से मिले हैं?
(A) चूल्हे से
(B) सिलबट्टे से
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (C)
18. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग किसकी पूजा करते थे?
(A) पशओं की
(B) वृक्षों की
(C) शिवलिंग की
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
19. जुते हुए खेत के साक्ष्य कहाँ से प्राप्त होते हैं?
(A) कालीबंगा से
(B) मेहरगढ़ से
(C) बनावली से
(D) लोथल से
उत्तर – (A)
20. व्यापार व यातायात के लिए किसका प्रयोग किया जाता था?
(A) रथों का
(B) बैलगाड़ियों का
(C) रेलगाड़ियों का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (B)
21. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोगों का प्रमुख उद्योग क्या था ?
(A) ईंट उद्योग
(B) उत्कीर्ण शिल्प उद्योग
(C) वस्त्र उद्योग
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
22. कंकाल के साथ क्या सामान रखा जाता था ?
(A) मिट्टी के बर्तन
(B) आभूषण
(C) उपकरण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
23. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग किस शक्ति की उपासना करते थे?
(A) पितृशक्ति की उपासना
(B) मातृशक्ति की उपासना
(C) देवशक्ति की उपासना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (B)
24. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता में अंत्येष्टि संस्कार की तीन विधियाँ कौन-सी थीं?
(A) पूर्ण समाधिकरण
(B) आंशिक समाधिकरण
(C) दाह संस्कार
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
25. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग शवों के सिर किस दिशा में रखते थे?
(A) पूर्व दिशा में
(B) पश्चिम दिशा में
(C) उत्तर दिशा में
(D) दक्षिण दिशा में
उत्तर – (C)
26. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग शवों के पैर किस दिशा में रखते थे?
(A) उत्तर दिशा में
(B) दक्षिण दिशा में
(C) पूर्व दिशा में
(D) पश्चिमी दिशा में
उत्तर – (B)
27. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के नगरों के पतन के क्या कारण रहे थे?
(A) प्रशासनिक शिथिलता एवं जलवायु परिवर्ततन
(B) बाढ़ एवं महामारी
(C) विदेशी व्यापार में गतिरोध
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर – (D)
28. किस नदी के सूख जाने के कारण सरस्वती – सिन्धु सभ्यता का पतन हुआ?
(A) गंगा नदी
(B) यमुना नदी
(C) सरस्वती नदी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (C)
29. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता में फैली महामारी की जानकारी हेतु कितने मानव-कंकालों का अध्ययन किया गया?
(A) 42 मानव- कंकालों का
(B) 41 मानव- कंकालों का
(C) 40 मानव- कंकालों का
(D) 43 मानव- कंकालों का
उत्तर – (A)
III. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता को ……………… और …………….. के नाम से भी जाना जाता है ।
2. सर्वप्रथम ………………. में दयाराम साहनी ने पंजाब प्रांत में हड़प्पा नामक पुरास्थल का उत्खनन किया ।
3. सरस्वती-सिन्धु सभ्यता के लोगों को …………….. और ……………….. का ज्ञान नहीं था ।
4. मिस्र तथा ………………. क़ी ………………….. सभ्यताएँ भारत की हड़प्पा सभ्यता के समकालीन थीं ।
5. सरस्वती सिन्धु सभ्यता का अन्त …………………. हुआ।
6. भवन निर्माण प्रणाली के ………………… और अनुपात की ईंटों का प्रयोग होता था ।
7. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की कला में ………………… का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
8. विद्वानों के अनुासर इस सभ्यता के प्रशासन का संचालन ………………. और ………………… नामक दो राजधानियों से होता था ।
उत्तर – 1. सिन्धु सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता, 2. 1921 ई०, 3. लोहे, घोड़े, 4. मेसोपोटामिया, कांस्ययुगीन, 5. धीरे-धीरे, 6. 1:2:3; 1:2:4, 7. मुहरों, 8. हड़प्पा, मोहनजोदड़ो ।
IV. सही या गलत की पहचान करें
1. हड़प्पा की खुदाई में एक सार्वजनिक स्नानागार मिला है।
2. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता का क्षेत्रफल 2,15,000 वर्ग किलोमीटर है।
3. सरस्वती- सिन्धु सभ्यता में मिला स्नानागार कच्ची ईंटों से बना हुआ था।
4. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता की औरतें लिपस्टिक का प्रयोग नहीं करती थीं ।
5. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग शिकार – प्रेमी थे।
6. सरस्वती – सिन्धु सभ्यता के लोग अपने मृतकों को कई बार खुले में भी छोड़ देते थे ।
7. सरस्वती- सिन्धु सभ्यता का पतन मलेरिया महामारी फैलने से हुआ।
उत्तर – 1. सही, 2. सही, 3. गलत, 4. गलत, 5. सही, 6. सही, 7. सही ।
V. उचित मिलान करें
(i) 1. मोहनजोदड़ो (क) 3200-2600 ई०पू०
2. नगरीय सभ्यता का पतन (ख) 1900 – 1300 ई०पू०
3. विकसित ग्रामीण संस्कृति (ग) 2600 – 1900 ई०पू०
4. नगरीय काल (घ) 1922 ई०
5. उत्तर काल (ङ) 1300 ई० से पूर्व
उत्तर – 1. (घ), 2. (ङ), 3. (क), 4. (ग), 5. (ख) ।
(ii) 1. हरियाणा (क) मोहनजोदड़ो
2. सिंध (ख) धौलावीरा
3. पंजाब (ग) कालीबंगा
4. गुजरात (घ) राखीगढ़ी
5. राजस्थान (ङ) हड़प्पा
उत्तर – 1. (घ), 2. (क), 3. (ङ), 4. (ख), 5. (ग) |