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HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

HBSE 10th Class Hindi आत्मकथ्य Textbook Questions and Answers

आत्मकथ्य Summary in Hindi

आत्मकथ्य कवि-परिचय

प्रश्न-
कविवर जयशंकर प्रसाद का संक्षिप्त जीवन-परिचय, रचनाओं, काव्यगत विशेषताओं एवं भाषा-शैली का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. जीवन-परिचय छायावाद के प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के प्रतिष्ठित वैश्य कुल में सन् 1889 में हुआ था। उनका कुल ‘सुँघनी साहू’ के नाम से विख्यात था। उनके पिता का नाम देवीप्रसाद था। किशोरावस्था में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। यक्ष्मा रोग का शिकार होकर सन् 1937 में वे 48 वर्ष की आयु में ही इस संसार से विदा हो गए। प्रसाद जी ने हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। वे भारतीय साहित्य और संस्कृति के पुजारी थे तथा राष्ट्र-प्रेम ‘ की भावना उनमें कूट-कूटकर भरी हुई थी। शैव दर्शन से प्रभावित होने के कारण वे नियतिवादी भी थे।

2. प्रमुख रचनाएँ-जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं(क) काव्य-ग्रंथ ‘लहर’, ‘झरना’, ‘आँसू’, ‘कानन कुसुम’, ‘प्रेम पथिक’, ‘महाराणा का महत्त्व’, ‘करुणालय’, ‘चित्राधार’, ‘कामायनी’ । (ख) उपन्यास-‘कंकाल’, ‘तितली’, ‘इरावती’ (अपूर्ण)। (ग) कहानी-संग्रह ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’ और ‘इंद्रजाल’ (कुल 69 कहानियाँ)। (घ) निबंध-संग्रह ‘काव्य और कला तथा अन्य निबंध।
(ङ) नाटक-‘सज्जन’, ‘राज्यश्री’, ‘अजातशत्रु’, ‘एक घुट’, ‘कल्याणी’, ‘परिचय’, ‘विशाख’, ‘कामना’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’ .. और ‘चंद्रगुप्त’।

3. काव्यगत विशेषताएँ-प्रसाद जी एक प्रतिभासंपन्न साहित्यकार थे। वे छायावाद के प्रवर्तक तथा सर्वश्रेष्ठ कवि थे। अतीत के प्रति उनका मोह था, लेकिन वर्तमान के प्रति भी वे जागरूक थे। उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार से हैं
(i)प्रेम तथा सौंदर्य का वर्णन-प्रसाद जी के काव्य का मुख्य तत्त्व प्रेमानुभूति एवं सौंदर्यानुभूति है। प्रेमानुभूति की दिशा मानव, प्रकृति और ईश्वर तक फैली हुई है। इसी प्रकार से प्रसाद जी ने मानव, प्रकृति और ईश्वर तीनों के सौंदर्य का आकर्षक चित्रण किया है। उनकी सौंदर्य-चेतना परिष्कृत, उदात्त एवं सूक्ष्म है।

(ii) वेदना की अभिव्यक्ति–प्रसाद जी के काव्य में ऐसे अनेक स्थल हैं जो पाठक के हृदय को छू लेते हैं। उनका ‘आँसू’ काव्य कवि के हृदय की वेदना को व्यक्त करता है। इसी प्रकार से ‘लहर’ काव्य-ग्रंथ की ‘प्रलय की छाया’ कविता भी मार्मिक है। ‘कामायनी’ में भी इस प्रकार के स्थलों की कमी नहीं है जो पाठक के हृदय को आत्मविभोर न कर देते हों।

(iii) प्रकृति-वर्णन-प्रसाद जी के काव्य में अनेक स्थलों पर प्रकृति का स्वाभाविक चित्रण किया गया है। ‘लहर’ की अनेक कविताएँ प्रकृति-वर्णन से संबंधित हैं। प्राकृतिक पदार्थों पर मानवीय भावों का आरोप करना उनके प्रकृति-चित्रण की अनूठी विशेषता है; जैसे-
बीती विभावरी जाग री,
अंबर पनघट में डुबो रही,
तारा घट उषा-नागरी।
छायावादी काव्य होने के नाते यहाँ पर प्रकृति का मानवीकरण देखने योग्य है। उषा को नायिका के रूप में वर्णित किए जाने से यहाँ प्रकृति का मानवीकरण हुआ है। उन्होंने प्रकृति-वर्णन के अनेक रूपों में से आलंबन, उद्दीपन, दूती, उपदेशिका, रहस्यात्मक, पृष्ठभूमि, मानवीकरण आदि रूपों को चुना है।

(iv) रहस्य भावना-छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद सर्वात्मवाद से सर्वाधिक प्रभावित हैं। वे अज्ञात सत्ता के प्रेम-निरूपण में अधिक तल्लीन रहे हैं। उनकी इस प्रवृत्ति को रहस्यवाद की संज्ञा दी जाती है। कवि बार-बार प्रश्न करता है कि वह अज्ञात सत्ता कौन है और क्या है? प्रसाद जी के काव्य में रहस्य-भावना का सुष्ठु रूप देखने को मिलता है। रहस्यसाधक कवि प्रकृति के अनंत सौंदर्य को देखकर उस विराट् सत्ता के प्रति जिज्ञासा प्रकट करता है। तदंतर अपनी प्रिया का अधिकाधिक परिचय प्राप्त करने के लिए आतुरता व्यक्त करता है, उसके विरह में तड़पता है और प्रियतमा के परिचय की अनुभूति का ‘गूंगे के गुड़’ की भाँति आस्वादन करता है। प्रसाद जी के काव्य में रहस्य भावना का रूप निम्नलिखित उदाहरण में देखा जा सकता है
हे अनंत रमणीय! कौन हो तुम? यह मैं कैसे कह सकता। कैसे हो, क्या हो? इसका तो
भार विचार न सह सकता ॥

(v) नारी भावना-छायावादी कवि होने के कारण प्रसाद जी ने नारी को अशरीरी सौंदर्य प्रदान करके उसे लोक की मानवी न बनाकर परलोक की ऐसी काल्पनिक देवी बना दिया जिसमें प्रेम, सौंदर्य, यौवन और उच्च भावनाएँ हैं, लेकिन ऐसे गुण मृत्युलोक की नारी में देखने को नहीं मिलते। ‘कामायनी’ की श्रद्धा इसी प्रकार की नारी है। वह काल्पनिक जगत् की अशरीरी सौंदर्यसंपन्न अलौकिक देवी है जो नित्य छवि से दीप्त है, विश्व की करुण-कामना मूर्ति है और कानन-कुसुम अंचल में मंद पवन से प्रेरित सौरभ की साकार प्रतिमा है। प्रसाद जी की यह नारी भावना छायावादी काव्य के सर्वथा अनुकूल है लेकिन यह नारी भावना आधुनिक युगबोध से मेल नहीं खाती।

(vi) नवीन जीवन-दर्शन-कविवर प्रसाद शैव दर्शन के अनुयायी थे। अतः उनके दार्शनिक विचारों पर शैव दर्शन का स्पष्ट प्रभाव है। वे कामायनी के माध्यम से समरसता और आनंदवाद की स्थापना करना चाहते हैं। उनकी रचनाओं, विशेषकर, ‘कामायनी’ में दार्शनिकता और कवित्व का सुंदर समन्वय हुआ है। वे समरसताजन्य आनंदवाद को ही जीवन का परम लक्ष्य स्वीकार करते हैं। ‘कामायनी’ की यात्रा ‘चिंता’ सर्ग से प्रारंभ होकर ‘आनंद’ सर्ग में ही समाप्त होती है।

(vii) राष्ट्रीय भावना-प्रसाद सांस्कृतिक और दार्शनिक चेतना के कवि हैं। यह सांस्कृतिक चेतना उनके राष्ट्रीय भावों की प्रेरक है। उनके नाटकों में कवि का देशानुराग अथवा राष्ट्र-प्रेम अधिक मुखरित हुआ है। उनकी काव्य-रचनाओं में यह राष्ट्र-प्रेम संस्कृति प्रेम के रूप में संकेतित हुआ है। ।
कवि ने अतीत के संदर्भ में वर्तमान का भी चित्रण किया है। ‘चंद्रगुप्त’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’ आदि नाटकों में भी इसी दृष्टिकोण को व्यक्त किया गया है। ‘चंद्रगुप्त’ नाटक का निम्नलिखित गीत कवि की राष्ट्रीय भावना को स्पष्ट करता है-

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर नाच रही तरु शिखा मनोहर,
छिटका जीवन-हरियाली पर मंगल कुमकुम सारा।

(viii) मानवतावादी दृष्टिकोण-मानवतावाद छायावादी कवियों की उल्लेखनीय प्रवृत्ति है। अनेक स्थलों पर कवि राष्ट्रीयता की भाव-भूमि से ऊपर उठकर मानव-कल्याण की चर्चा करता हुआ दिखाई देता है। प्रसाद जी के काव्य में शाश्वत मानवीय भावों और मानवतावाद को प्रचुर बल मिला है। ‘कामायनी’ में कवि ने मनु, श्रद्धा और इड़ा के प्रतीकों के माध्यम से मानवता के विकास की कहानी कही है और इच्छा, क्रिया एवं ज्ञान के समन्वय पर बल दिया है। समष्टि के लिए व्यक्ति का उत्सर्ग ‘कामायनी’ का संदेश है। श्रद्धा इस बात पर बल देती हुई कहती है

औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ।
अपने सुख को विस्तृत कर लो सबको सुखी बनाओ।

‘आनंद’ सर्ग में कवि ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की चर्चा करके विश्व-बंधुत्व की भावना का संदेश दिया है। कवि बार-बार मानव-प्रेम पर बल देता है और मानवतावादी दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करता है।

4. भाषा-शैली–प्रसाद जी ने प्रबंध और गीति इन दो काव्य-रूपों को ही अपनाया है। प्रेम पथिक’ और ‘महाराणा का महत्त्व’ दोनों उनकी प्रबंधात्मक रचनाएँ हैं। ‘कामायनी’ उनका प्रसिद्ध महाकाव्य है। ‘लहर’, ‘झरना’ और ‘आँसू’ गीतिकाव्य हैं। उनके काव्य में भावात्मकता, संगीतात्मकता, आत्माभिव्यक्ति, संक्षिप्तता, कोमलकांत पदावली आदि सभी विशेषताएँ देखी जा सकती हैं। प्रसाद जी की भाषा साहित्यिक हिंदी है। फिर भी इसे संस्कृतनिष्ठ, तत्सम प्रधान हिंदी भाषा कहना अधिक उचित होगा। प्रसाद जी की भाषा में ओज, माधुर्य और प्रसाद तीनों गुण विद्यमान हैं। उनकी भाषा प्रवाहपूर्ण, प्रांजल, संगीतात्मक और भावानुकूल है। उनकी भाषा की प्रथम विशेषता है लाक्षणिकता। लाक्षणिक प्रयोगों में कवि ने विरोधाभास, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय, प्रतीक आदि उपकरणों के प्रयोग से भाषा में सौंदर्य उत्पन्न कर दिया है। उनकी भाषा की दूसरी विशेषता है- प्रतीकात्मकता। कवि ने प्रकृति के विभिन्न उपादानों को प्रतीक के रूप में प्रयुक्त किया है। उनके सभी प्रतीक प्रभावपूर्ण हैं। कवि ने कुछ स्थलों पर चित्रात्मकता और ध्वन्यात्मकता का भी सफल प्रयोग किया है। .

प्रसाद जी की अलंकार योजना उच्चकोटि की है। शब्दालंकारों की अपेक्षा अर्थालंकारों में उनकी दृष्टि अधिक रमी है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, रूपकातिशयोक्ति, अर्थान्तरन्यास आदि प्रसाद जी के प्रिय अलंकार हैं। प्रसाद जी की छंद योजना स्वर और लय की मिठास से अणुप्राणित है। कुछ स्थलों पर कवि ने अतुकांत और मुक्तक छंदों का भी प्रयोग किया है। इस प्रकार भाव और भाषा दोनों ही दृष्टियों से उनका काव्य उच्चकोटि का है।

आत्मकथ्य कविता का सार

प्रश्न-
‘आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता का सार लिखिए।
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ जयशंकर प्रसाद की महत्त्वपूर्ण छायावादी कविता है। यह सन् 1932 में ‘हंस’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। कवि के मित्रों ने उन्हें आत्मकथा लिखने के लिए आग्रह किया। उसी आग्रह के उत्तर में प्रसाद जी ने यह कविता लिखी थी।

इस कविता में कवि ने बताया है कि यह संपूर्ण संसार नश्वर है। हर जीवन एक दिन मुरझाई पत्ती-सा झड़कर गिर जाता है। इस नीले आकाश के नीचे न जाने कितने जीवनों के इतिहास रचे जाते हैं, किंतु ये व्यंग्य से भरे होने के कारण पीड़ा को प्रकट करते हैं। क्या इन्हें सुनकर किसी को सुख मिला है। मेरा जीवन तो खाली गागर के समान व्यर्थ तथा अभावग्रस्त है। इस दुनिया में मानव स्वार्थ से पूर्ण जीवन जीते हैं। इस संसार में लोग दूसरों के सुखों को छीनकर स्वयं सुखी जीवन जीने की इच्छा रखते हैं। यही जीवन की विडंबना है।

कवि दूसरों के धोखे और अपनी पीड़ा की कहानी सुनाने का इच्छुक नहीं है। कवि के पास दूसरों को सुनाने के लिए जीवन की मीठी व मधुर यादें भी नहीं हैं। उसे अपने जीवन में सुख प्रदान करने वाली मधुर बातें दिखाई नहीं देतीं। उसके जीवन में अधूरे सुख थे जो जीवन के आधे मार्ग में ही समाप्त हो गए। उसका जीवन तो थके हुए यात्री के समान है जिसमें कहीं भी सुख नहीं है। उनके जीवन में जो दुःख से पूर्ण यादें हैं, उन्हें भला कोई क्यों सुनना चाहेगा। उसके इस लघु जीवन में बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ भी नहीं हैं जिन्हें वह दूसरों को सुना सके। अतः कवि इस आत्मकथ्य के नाम पर चुप रहना ही उचित समझता है। उसे अपनी आत्मकथा अत्यंत सरल एवं साधारण प्रतीत होती है। उसके हृदय की पीड़ाएँ मौन रूप में सोई हुई हैं जिन्हें वह जगाना उचित नहीं समझता। कवि नहीं चाहता कि कोई उसके जीवन के कष्टों को जाने। वह अपने जीवन के कष्टों को स्वयं ही जीना चाहता है।

आत्मकथ्य’ कविता के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 1.
कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है?
उत्तर-
कवि आत्मकथा लिखने से इसलिए बचना चाहता है क्योंकि उसका जीवन साधारण-सा रहा है। उसमें कुछ भी ऐसा महत्त्वपूर्ण नहीं है जिसे पढ़कर लोगों को सुख व आनंद प्राप्त हो सके। फिर उसके जीवन में दुःख और अभावों की भरमार रही है जिन्हें कवि दूसरों से बाँटना नहीं चाहता। उसके मन में किसी के प्रति अनुरक्ति की भावना थी, उसे भी कवि किसी को बाँटना नहीं चाहता। कवि द्वारा आत्मकथा न लिखने के ये ही कारण रहे हैं।

Class 10 Hindi Chapter Atmakatha Question Answer HBSE प्रश्न 2.
आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में, ‘अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है?
उत्तर-
कवि द्वारा यह कहना कि ‘अभी समय भी नहीं है’ के दो प्रमुख कारण रहे होंगे-प्रथम, उसने अभी तक कोई महान् कार्य नहीं किया कि उसके बारे में आत्मकथा लिखकर संसार भर को बताया जाए। दूसरा प्रमुख कारण यह हो सकता है कि कवि शांत चित्त है। उसके जीवन में व्यथा-ही-व्यथा है। उन्हें सुनाकर फिर से अपने मन को अशांत क्यों किया जाए।

आत्मकथ्य कविता के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 3.
स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर-
जिस प्रकार एक पथिक को यात्रा पूरी करने के लिए मार्ग में पाथेय की आवश्यकता पड़ती है उसी प्रकार अपनी लंबी एवं दुःखों से भरी जीवन-यात्रा में कवि ने अपने जीवन की सुखद एवं मधुर स्मृतियों को मन में संजोया है ताकि उनके सहारे वे आगे के पथ में पाथेय का काम करती रहें अर्थात् आने वाला जीवन उन मधुर यादों के सहारे व्यतीत हो सके। .

आत्मकथ्य कक्षा 10 प्रश्न उत्तर HBSE प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर-
(क) कवि ने इन पंक्तियों में स्पष्ट किया है कि उसने जिस सुख का सपना देखा था वह सुख कभी नहीं मिला। उसकी पत्नी या प्रेमिका भी उसके आलिंगन में आते-आते रह गई। वह मुस्कराकर उसकी ओर बढ़ी, किंतु कवि के आलिंगन में न आ सकी। वह उसकी पहुँच से सदा के लिए दूर चली गई। कहने का भाव यह है कि कवि को दांपत्य सुख कभी प्राप्त न हो सका।
(ख) कवि ने अपनी प्रिया की सुंदरता का उल्लेख करते हुए कहा है कि उसके गाल लाल एवं मस्ती भरे थे। ऐसा लगता है कि प्रेममयी भोर की बेला भी अपनी लालिमा उसके मतवाले गालों से लिया करती थी। कवि के कहने का भाव है कि उसकी प्रिया के मुख की सुंदरता प्रातःकालीन लालिमा से अधिक सुंदर थी।

प्रश्न 5.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’-कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? .
उत्तर-
इस कथन के माध्यम से कवि ने स्पष्ट किया है कि निज प्रेम के मधुर प्रसंगों को सबके सामने प्रकट नहीं किया जाता। मधुर चाँदनी रात में बिताए गए मधुर क्षण कवि को उज्ज्वल गाथा के समान लगते हैं। ऐसी उज्ज्वल गाथा अत्यंत निजी संपत्ति होती है। अतः ऐसे क्षणों को आत्मकथा में लिखकर अपना मजाक बनवाना है। अतः आत्मकथा में उनका लिखना आवश्यक नहीं।

प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर-
आत्मकथ्य एक छायावादी कविता है। इसमें कवि ने संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया है अर्थात् इसमें संस्कृत की तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया है; जैसे- …
“उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।” कवि ने इस कविता की भाषा में प्रकृति के विभिन्न उपमानों का प्रयोग किया है, जिससे विषय अत्यंत रोचक बन गया है। मधुप, पत्तियाँ, नीलिमा, चाँदनी रात आदि इसके उदाहरण हैं। इसके अतिरिक्त मधुप, रीति गागर आदि प्रतीकों का भी प्रयोग किया गया है। संपूर्ण कविता की भाषा में गेय तत्त्व विद्यमान है। अन्त्यानुप्रास अलंकार के सफल प्रयोग से भाषा में लय बनी रहती है; यथा-

“उसकी स्मृति पाथेय बनी है, थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की? ॥”

स्वर मैत्री के कारण भी भाषा संगीतात्मक बन पड़ी है। चित्रात्मकता भाषा की अन्य प्रमुख विशेषता है। कवि ने इसके द्वारा पाठक के मन पर शब्दचित्र अंकित किए हैं जिससे पाठक के मन पर कविता का प्रभाव देर तक बना रहता है।

प्रश्न 7.
कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में कवि ने बताया है कि उसने जो सुख का स्वप्न देखा था, वह उसे प्राप्त नहीं कर पाया था। वह स्वप्न अधूरा ही रह गया था। किंतु उस स्वप्न की स्मृति उसके मन की गहराइयों में बसी हुई है। कवि के हृदय में अपनी प्रिया की स्मृति बसी हुई है। कवि के लिए सुख के वे दिन भुलाए नहीं भूलते। उसकी प्यार भरी वे चाँदनी रातें उसके लिए सदा याद रखने योग्य थीं। वे स्मृतियाँ उनके लिए महत्त्वपूर्ण संबल थीं। उसके जीवन में एक अपूर्व आनंद का संचार करती थीं। प्रिया की हँसी का स्रोत तो उसके जीवन के कण-कण को सराबोर किए रहता था। कवि उस स्वप्न को प्राप्त नहीं कर पाया। ज्यों हि कवि ने उसे प्राप्त करने के लिए बाँहें फैलायी तो आँख खुल गई और स्वप्न अपना न हो सका। इस प्रकार कवि ने इस कविता में सुख के स्वप्न को मधुर स्मृतियों के रूप में प्रस्तुत किया है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
इस कविता के माध्यम से पता चलता है कि जयशंकर प्रसाद अत्यंत सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। वे अंतर्मुखी होते हुए भी यथार्थवादी थे। वे सत्यवादी थे और सच कहने में विश्वास रखते थे। विनम्रता उनके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता थी। वे अपने-आपको एक साधारण व्यक्ति की भाँति समझते थे। इसलिए उन्होंने कहा है
‘तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती।’ उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उनके जीवन में ऐसी कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है जिसका वर्णन वे आत्मकथा में लिखें।
वे बीती बातों को कुरेदने के पक्ष में नहीं हैं। वे नहीं चाहते थे कि विगत जीवन की दुःखद घटनाओं को पुनः याद करके दुःखी हों। वे दिखावे व प्रदर्शन के पक्ष में नहीं थे। वे यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाने वाले व्यक्ति थे। वे अपने सुख-दुःख के क्षणों को स्वयं ही समभाव से झेलने व बिताने के पक्ष में थे।

प्रश्न 9.
आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर-
हम महान् व्यक्तियों की आत्मकथाएँ पढ़ना चाहेंगे क्योंकि उनकी आत्मकथाओं में उनके जीवन की सफलता के रहस्यों का पता चलता है। उनकी आत्मकथाओं को पढ़कर हम भी उनका अनुसरण करते हुए जीवन में सफल बनने का प्रयास करेंगे। महान् व्यक्तियों की आत्मकथा सदा दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत होती है। .

प्रश्न 10.
कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। उसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं। हरियाणा राज्य के गुड़गाँव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा बहुतों के द्वारा सराही गई। आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए।
उत्तर-
यह प्रश्न परीक्षोपयोगी नहीं है।

पाठेतर सक्रियता

  • किसी भी चर्चित व्यक्ति का अपनी निजता को सार्वजनिक करना या दूसरों का उनसे ऐसी अपेक्षा करना सही है-इस विषय के पक्ष-विपक्ष में कक्षा में चर्चा कीजिए।
  • बिना ईमानदारी और साहस के .आत्मकथा नहीं लिखी जा सकती। गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ पढ़कर पता लगाइए कि उसकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं?

उत्तर-
इन प्रश्नों के उत्तर विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।

यह भी जानें

प्रगतिशील चेतना की साहित्यिक मासिक पत्रिका हंस प्रेमचंद ने सन् 1930 से 1936 तक निकाली थी। पुनः सन् 1986 से यह साहित्यिक पत्रिका निकल रही है और इसके संपादक राजेंद्र यादव हैं।
बनारसीदास जैन कृत अर्धकथानक हिंदी की पहली आत्मकथा मानी जाती है। इसकी रचना सन् 1641 में हुई और यह पद्यात्मक है।

आत्मकथ्य का एक अन्य रूप यह भी देखें
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ।
-कवि बच्चन की आत्म-परिचय
कविता का अंश

HBSE 10th Class Hindi आत्मकथ्य Important Questions and Answers

विषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविवर जयशंकर प्रसाद की कविता ‘आत्मकथ्य’ के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ जयशंकर प्रसाद की सोद्देश्य रचना है। इस कविता में उन्होंने अपने जीवन के विषय में संकेत रूप में वह सब कुछ कह दिया है जो बहुत लंबी-चौड़ी आत्मकथा में भी नहीं कहा जा सकता। उन्होंने अपनी इस कविता में उन लोगों को उत्तर दिया है जो लोग उनको आत्मकथा लिखने का आग्रह कर रहे थे। उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनके जीवन में आत्मकथा लिखने योग्य महान् उपलब्धियाँ नहीं हैं। उनका जीवन तो दुःखों व अभावों से भरा पड़ा है। इसलिए अभावों व दुःखों की घटनाओं को दोहराने से मनुष्य सदा दुःखी ही होता रहता है। उनके जीवन के कुछ मधुर एवं प्रसन्नता के पल भी रहे हैं जो उनके जीवन की निजी निधि हैं। उन्हें वे सबके सामने व्यक्त नहीं करना चाहते। अतः स्पष्ट है कि प्रसाद जी ने अपनी इस कविता में अपने विषय में कुछ न कहकर भी सब कुछ कह दिया है। यही इस कविता का लक्ष्य है। .

प्रश्न 2.
कवि अपने जीवन के किस प्रसंग को उद्घाटित नहीं करना चाहता और क्यों?
उत्तर-
कवि अपने जीवन में किसी के प्रति किए प्रेमभाव के प्रसंग को लोगों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता था। वह नहीं चाहता था कि जिस प्रेम के सुख को उसने पाया ही नहीं अपितु उसने तो सुख का सपना ही देखा था, भला उसे दूसरों के सामने क्या प्रकट करे। वह प्रेम तो उसके लिए भावी जीवन जीने के लिए प्रेरणा बना रहता है अथवा जीवन जीने की प्रेरणा देता है।

प्रश्न 3.
कवि मधुर चाँदनी रातों की उज्ज्वल गाथाएँ क्यों नहीं गाना चाहता? .
उत्तर-
कवि मधुर चाँदनी रातों में किए गए मधुर प्रेम की कहानियों को निजी दौलत समझता है। वह उनके विषय में लोगों से कुछ नहीं कहना चाहता। उन मधुर स्मृतियों पर केवल कवि का अधिकार है। वह अपनी उन मधुर यादों के सहारे अपना शेष जीवन जी लेना चाहता है। यही कारण है कि कवि मधुर चाँदनी रातों की उज्ज्वल गाथा को नहीं गाना चाहता।

प्रश्न 4.
‘भोली आत्मकथा’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
कवि ने ‘भोली आत्मकथा’ के माध्यम से यह समझाने का सफल प्रयास किया है कि उसका जीवन अत्यंत सरल एवं सीधा सादा है। उसने अपना सारा जीवन एक साधारण व्यक्ति की भाँति व्यतीत किया है। उसके जीवन में कहीं किसी प्रकार का छलकपट नहीं है। उनके जीवन में संतुष्टि तो है, किंतु किसी को प्रेरणा देने की क्षमता बहुत कम है।

प्रश्न 5.
पठित कविता के आधार पर कवि की प्रिया के रूप-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
पठित कविता के अध्ययन से पता चलता है कि कवि को अपनी प्रिया से मिलने के बहुत कम क्षण प्राप्त हुए थे। कवि ने स्वयं स्वीकार किया है कि उनकी प्रिया के गाल लाल और मस्ती भरे थे। ऐसा लगता था मानो प्रातःकाल की लालिमा कवि की प्रिया के गालों की लालिमा से उधार ली हुई है। कहने का तात्पर्य है कि कवि की प्रिया के चेहरे की लालिमा प्रातःकाल की लालिमा से भी अधिक सुंदर है।

सदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए। [H.B.S.E. March, 2019 (Set-A, D), 2020 (Set-D)]
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि के जीवन के रहस्यों का आभास मिलता है। कवि स्वयं को एक सामान्य व्यक्ति बताता है। यह उनके व्यक्तित्व की उदारता है। कवि के अनुसार उसका जीवन दुर्बलताओं, अभावों व दुःखों से भरा हुआ है। उसके जीवन में मधुर क्षण बहुत कम आए हैं। कवि ने मधुर सपने देखे किंतु वे पूरा होने से पहले ही मिट गए थे। उसका जीवन अत्यंत सरल एवं साधारण रहा है। कवि ने स्पष्ट किया है कि उसके जीवन में कुछ महान् नहीं है जिसे वह आत्मकथा में लिखकर लोगों के सामने प्रस्तुत करे। उसका जीवन तो अभावों से भरा हुआ है। उसके जीवन में मधुर क्षण भी आए हैं जिन्हें वह किसी दूसरे के सामने प्रकट नहीं करना चाहता। कवि अपनी बातें बताने की अपेक्षा दूसरों की कहानी सुनना अच्छा समझता है।

प्रश्न 7.
“आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता के आधार पर बताएँ कि प्रसाद जी का जीवन कैसा रहा?
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से पता चलता है कि जयशंकर प्रसाद का जीवन सरल, सहज एवं विनम्रता से युक्त था। वे दिखावे में जरा भी विश्वास नहीं रखते थे। इस आत्मकथा को लिखकर वे अपनी प्रशंसा के पक्ष में नहीं थे। पठित कविता से पता चलता है कि उनके जीवन में दुःखों एवं अभावों का पक्ष ही भारी रहा। सुख के क्षण बहुत कम थे। इसलिए वे बीते दुःखद जीवन को दोहराना नहीं चाहते थे। उनके जीवन में जो मधुर क्षण थे, उन्हें वे अपनी निजी संपत्ति समझकर दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहते। इसलिए उन्होंने बताया है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ नहीं था जिसे पढ़कर लोग सुख व आनंद अनुभव कर सकें।

प्रश्न 8.
कवि अपनी आत्मकथा लिखने के प्रस्ताव को क्यों ठुकरा देता है?
उत्तर-
कवि का मत है कि आत्मकथा तो महान् लोग ही लिखा करते हैं क्योंकि उनके जीवन की महान् उपलब्धियों को पढ़ने . व सुनने से लोगों को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा मिलती है। किंतु कवि कहता है कि उसके जीवन में कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है जिसे लिखकर बताया जाए। उसके जीवन में अभाव-ही-अभाव हैं जिन्हें सुनकर किसी को प्रसन्नता नहीं मिल सकती। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा है कि उनके मन में दुःख की स्मृतियाँ थककर सो गई हैं। उन्हें जगाने का अभी उचित समय नहीं है। उन्हें जगाने से मन को पीड़ा ही पहुँचेगी। इसलिए कवि आत्मकथा लिखने के प्रस्ताव को ठुकरा देता है।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता के कवि का क्या नाम है?
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ शीर्षक कविता के कवि जयशंकर प्रसाद हैं।

प्रश्न 2.
कवि ने ‘गंभीर अनंत नीलिमा’ में क्या होने की बात कही है?
उत्तर-
कवि ने ‘गंभीर अनंत नीलिमा’ में असंख्य जीवन-इतिहास होने की बात कही है।

प्रश्न 3.
‘आत्मकथ्य’ कविता में किसकी सीवन को उधेड़कर देखने की बात कही है?
उत्तर-
कवि जयशंकर प्रसाद के जीवन की।

प्रश्न 4.
‘मेरा रस ले अपनी भरने वाले’ में रस का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
उत्तर-
इसमें रस का प्रयोग काव्य-रस के लिए किया गया है।

प्रश्न 5.
‘खिल-खिला कर हँसते होने वाली बातें’ किन्हें कहा गया है?
उत्तर-
‘खिल-खिला कर हँसते होने वाली बातें’ खुशियों से युक्त बात को कहा गया है।

प्रश्न 6.
कवि ने ‘मधुप’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया है?
उत्तर-
कवि ने ‘मधुप’ शब्द का प्रयोग मन रूपी भौरे के लिए किया है।

प्रश्न 7.
‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि किसका स्वप्न देखकर जाग गया था?
उत्तर-
‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि सुख का स्वप्न देखकर जाग गया था।

प्रश्न 8.
‘गागर रीती’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
‘गागर रीती’ से कवि का तात्पर्य है-सुखों से खाली जीवन।

प्रश्न 9.
‘आत्मकथ्य’ कविता में किसकी उज्ज्वल गाथा गाने की बात कही गई है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में मधुर चाँदनी रातों में बिताए गए मधुर क्षणों की उज्ज्वल गाथा गाने की बात कही गई है।

प्रश्न 10.
कवि किसके अरुण-कपोलों की ओर संकेत करता है?
उत्तर-
कवि पत्नी के अरुण-कपोलों की ओर संकेत करता है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि ने ‘आत्मकथ्य’ कविता में संसार को क्या कहा है?
(A) शाश्वत
(B) धनी
(C) नश्वर
(D) सनातन
उत्तर-
(C) नश्वर

प्रश्न 2.
कवि ने ‘मधुप’ किसे कहा है?
(A) मन को
(B) भौंरा को
(C) धन को
(D) आकाश को
उत्तर-
(A) मन को

प्रश्न 3.
‘असंख्य जीवन-इतिहास’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(A) जीवन का वर्णन
(B) आत्मकथा
(C) जीवनी
(D) मानव मन में उत्पन्न विचार
उत्तर-
(D) मानव मन में उत्पन्न विचार

प्रश्न 4.
कवि ने भावहीन मन को क्या कहा है?
(A) छिछला
(B) कथा
(C) रीतीगागर
(D) शून्य
उत्तर-
(C) रीतीगागर

प्रश्न 5.
कवि अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखना चाहता?
(A) उसके जीवन में सुख-ही-सुख थे
(B) उसके जीवन में केवल दुर्बलताएँ थीं
(C) उसके जीवन में गरीबी थी
(D) उसका जीवन आदर्श था
उत्तर-
(B) उसके जीवन में केवल दुर्बलताएँ थीं ।

प्रश्न 6.
कवि ने ‘मधुर चाँदनी रात’ किसे कहा है?
(A) अपने जीवन की मीठी यादों को
(B) सुहावनी चाँदनी रात को
(C) आनंददायक रात को
(D) जीवन की खुशी को
उत्तर-
(A) अपने जीवन की मीठी यादों को

प्रश्न 7.
कवि किन्हें खाली करने वाले बताता है?
(A) आत्मकथा लिखवाने वाले मित्रों को
(B) पाठकों को
(C) प्रकाश को
(D) राजनेताओं को
उत्तर-
(B) पाठकों को

प्रश्न 8.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ मधुर चाँदनी रातों की’-इस पंक्ति में कवि ने क्या बताया है?
(A) निज प्रेम प्रसंगों को सबको नहीं बताया जाता
(B) जीवन गाथा को नहीं गाया जाता
(C) चाँदनी रात में गाते नहीं
(D) चाँदनी रात मधुर होती है
उत्तर-
(A) निज प्रेम प्रसंगों को सबको नहीं बताया जाता

प्रश्न 9.
कवि के द्वारा अपनी आत्मकथा न लिखने का क्या कारण है?
(A) उसे आत्मकथा लिखनी नहीं आती
(B) वह अपने जीवन के रहस्य दूसरों को नहीं बताना चाहता
(C) उसका आत्मकथा में विश्वास नहीं
(D) वह आत्मकथा में झूठ नहीं बोलना चाहता
उत्तर-
(B) वह अपने जीवन के रहस्य दूसरों को नहीं बताना चाहता

प्रश्न 10.
कवि किसका स्वप्न देखकर जाग गया था?
(A) धन का
(B) पारिवारिक जीवन का
(C) स्मृतियों का
(D) सुख का
उत्तर-
(D) सुख का

प्रश्न 11.
कवि के आलिंगन में आते-आते कौन मुस्कुराकर भाग गया?
(A) सुख
(B) दुख
(C) दुर्बलता
(D) व्यथा
उत्तर-
(A) सुख

प्रश्न 12.
कवि ने किसकी उज्ज्वल गाथा गाने में असमर्थता व्यक्त की है?
(A) मधुर चाँदनी रातों की
(B) कथा की
(C) मधुमाया की
(D) पथिक की पंथा की
उत्तर-
(A) मधुर चाँदनी रातों की

प्रश्न 13.
कवि के लिए किसकी स्मृति ‘पाथेय’ बन जाती है?
(A) माता की
(B) पिता की
(C) बच्चों की
(D) पत्नी की
उत्तर-
(D) पत्नी की

प्रश्न 14.
‘सीवन उधेड़ना’ का अर्थ है
(A) सीवन खोलना
(B) टाँके तोड़ना
(C) जीवन के रहस्य जानना
(D) सिलाई काटना
उत्तर-
(C) जीवन के रहस्य जानना

प्रश्न 15.
‘सीवन को उधेड़कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की’ यहाँ कंथा का अर्थ है-
(A) कथा
(B) कविता
(C) चद्दर
(D) गुदड़ी
उत्तर-
(D) गुदड़ी

प्रश्न 16.
‘आत्मकथ्य’ कविता में गुन-गुनाकर अपनी कहानी कौन कहता है?
(A) कवि
(B) मधुप
(C) कोकिल
(D) खिलते फूल
उत्तर-
(B) मधुप

प्रश्न 17.
प्रस्तुत कविता में ‘अनंत नीलिमा’ से क्या तात्पर्य है?
(A) नीला आकाश
(B) नीला गगन
(C) अंतहीन विस्तार .
(D) नीला कमल
उत्तर-
(C) अंतहीन विस्तार

प्रश्न 18.
कवि ने अपनी आत्मकथा को कैसी बताया है?
(A) महान
(B) प्रभावशाली
(C) भोली
(D) चंचल
उत्तर-
(C) भोली

प्रश्न 19.
कवि किसे याद करके दुःखी था?
(A) अपने बचपन को
(B) अपने वर्तमान को
(C) अपने दुःख भरे अतीत को
(D) पारिवारिक जीवन को
उत्तर-
(C) अपने दुःख भरे अतीत को

प्रश्न 20.
अभी थककर मौन रूप में क्या सोई हुई है?
(A) व्यथा
(B) कथा
(C) शांति
(D) भ्रांति
उत्तर-
(A) व्यथा

आत्मकथ्य पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

[1] मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे यह गागर रीती।
[पृष्ठ 28]

शब्दार्थ-मधुप = भौंरा (मन रूपी भौंरा)। घनी = अधिक। अनंत-नीलिमा = अंतहीन विस्तार। असंख्य = जिसकी गिनती न की जा सके। जीवन-इतिहास = जीवन की कहानी। व्यंग्य-मलिन = खराब ढंग से निंदा करना। उपहास = मजाक। दुर्बलता = कमजोरी। गागर = घड़ा। रीती = खाली।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या लिखिए।
(घ) ‘मधुप’ किसे कहा है और उसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

(ङ) पत्तियों का मुरझाना किसे स्पष्ट करता है?
(च) ‘अनंत-नीलिमा’ और ‘असंख्य जीवन इतिहास’ से क्या तात्पर्य है?
(छ) कवि अपनी बीती दुर्बलताओं को क्यों नहीं बताना चाहता है?
(ज) कवि की कहानी जानकर उनको कहानी लिखने के लिए प्रेरित करने वालों को क्या लगा?
(झ) ‘गागर रीती’ से क्या अभिप्राय है?
(ञ) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ट) इन काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य/काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) उपर्युक्त काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद। कविता का नाम-आत्मकथ्य।

(ख) छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ से उद्धृत इस काव्यांश में बताया गया है कि उनके जीवन में आत्मकथा में लिखने योग्य कुछ विशेष नहीं है। उनका मत है कि उनके जीवन में ऐसी सुंदर घटनाएँ या उपलब्धियाँ नहीं हैं जिन्हें सुनकर या पढ़कर पाठक सुख या आनंद प्राप्त कर सकें।

(ग) कवि कहता है कि उसका मन रूपी यह भ्रमर गुन-गुनाकर कह रहा है कि अपनी ऐसी कौन-सी कहानी है जिसे लिखकर दूसरों को बताया जाए। मेरे जीवन की अनेक पत्तियाँ मुरझाकर गिर रही हैं अर्थात् मैंने जीवन में अनेक दुःखद घटनाएँ देखी हैं, जीवन में अनेक निराशाओं का सामना किया है। मैंने अपने सपनों को मरते देखा है। इस विशाल एवं गहन नीले आकाश पर असंख्य लोगों ने अपने जीवन के इतिहास लिखे हैं। उन्हें पाकर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो वे स्वयं अपनी बुराइयाँ करके अपने ही जीवन पर कटाक्ष कर रहे हों और अपना ही मजाक उड़ा रहे हों। कवि अपने उन मित्रों से पूछता है जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहते हैं जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहते हैं कि ऐसा जान लेने पर भी तुम मुझसे चाहते हो कि मैं अपने जीवन कि कमजोरियाँ बता दूं। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हें मेरे जीवन की खाली गागर देखकर सुख मिलेगा। कवि के कहने का भाव है कि मेरे जीवन में दुःखों व अभावों के अतिरिक्त कुछ नहीं है जिसे मैं दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता।

(घ) कवि ने मधुप मन को कहा है। ‘मधुप’ का यहाँ प्रतीकात्मक प्रयोग है। मन भौरे के समान इधर-उधर उड़कर कहीं भी पहुँच जाता है।

(ङ) पत्तियों का मुरझाना मन में उत्पन्न सुख और आनंद के भावों का मिट जाना है। तरह-तरह के दुःखों व संकटों के कारण कवि के हृदय में उत्पन्न भाव दबकर रह जाते हैं।

(च) अनंत-नीलिमा जीवन का अंतहीन विस्तार है। मनुष्य अपने मन में न जाने कौन-कौन से भाव अनुभव करता रहता है। वे भाव सुख व दुःख दोनों से संबंधित होते हैं। ‘असंख्य जीवन इतिहास’ मानव-मन में उत्पन्न विभिन्न विचार हैं जो विभिन्न घटनाओं के घटित होने के कारण बनते हैं।

(छ) कवि जानता है कि सच्चा आत्मकथा लेखक अपने जीवन की घटनाओं का सच्चा उल्लेख करता है। जीवन में झाँकने पर कवि को अपनी कमजोरियाँ-ही-कमजोरियाँ दिखाई देती हैं। इसलिए कवि जान-बूझकर अपनी दुर्बलताओं को सबके सामने व्यक्त करके अपना मज़ाक नहीं करवाना चाहता। इसलिए कवि अपनी दुर्बलताओं को व्यक्त नहीं करना चाहता।

(ज) कवि की कहानी जानकर कवि को उनकी कहानी लिखने के लिए प्रेरित करने वाले लोगों को लगा कि कवि अपनी आत्मकथा में कुछ ऐसा लिखेगा जिसे पढ़कर उन्हें सुख या आनंद प्राप्त होगा, किंतु कवि ने ऐसा कुछ नहीं लिखा जिसे पढ़कर उन्हें सुख की अनुभूति हुई हो।

(झ) ‘गागर रीती’ से तात्पर्य है कि कवि का जीवन सुख और सुविधाओं से रहित है। उसमें अभाव-ही-अभाव है। अतः ‘गागर रीति’ का प्रयोग प्रतीकात्मक और लाक्षणिक है।

(ञ) कवि ने इस पद्यांश में अत्यंत मार्मिक शब्दों में अपने जीवन के दुःखों, पीड़ाओं और अभावों की व्यथा भरी कहानी की ओर संकेत किया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि किसी की भी दुःख भरी कहानी को सुनकर किसी को खुशी प्राप्त नहीं हो सकती। कवि ने जीवन के सत्य को सरल एवं सच्चे मन से कहा है।

(ट)

  • इन पंक्तियों में कवि ने अत्यंत कलात्मकतापूर्ण अपने मन के भावों को अभिव्यंजित किया है।
  • लाक्षणिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
  • तत्सम प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग है।
  • अनुप्रास, प्रश्न और रूपक अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है।
  • करुण रस है।

(ठ) जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित इन काव्य पंक्तियों में शुद्ध साहित्यिक हिन्दी भाषा का प्रयोग किया गया है। प्रसाद जी छायावादी कवि हैं। उन्होंने भाषा को रोचक एवं आकर्षक बनाने हेतु तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव शब्दावली का भी सार्थक प्रयोग किया है। प्रसाद जी की भाषा में ओज, माधुर्य, प्रसाद आदि तीनों गुण हैं। अनेक स्थलों पर चित्रात्मक भाषा का भी प्रयोग किया गया है। उनकी छंद-योजना, स्वर और लय की मिठास से परिपूर्ण है। भाषा भाव को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है।

[2] किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातों की। [पृष्ठ 28].

शब्दार्थ-विडंबना = उपहास का विषय, निराशा। प्रवंचना = धोखा। उज्ज्वल = पवित्र, सुख से भरी हुई।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश के प्रसंग को स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) प्रस्तुत काठ्यांश के भावार्थ पर प्रकाश डालिए।
(ङ) कवि किसका रस लेने की बात कहता है?
(च) कवि ने ‘खाली करने वाले’ किसे और क्यों कहा है?
(छ) कवि ने किस बात को विडंबना कहा है और क्यों?
(ज) कवि अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखना चाहता?
(झ) कवि किन उज्ज्वल गाथाओं की बात कहता है?
(ञ) खिलखिलाकर हँसने वाली बातों का क्या अभिप्राय है?
(ट) इस पद्यांश में निहित शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ठ) प्रस्तुत पद्यांश में प्रयुक्त भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद। . कविता का नाम-आत्मकथ्य।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता श्री जयशंकर प्रसाद हैं। इस कविता में उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे वे अपनी आत्मकथा में लिखें और पाठक उसे पढ़कर सुख या प्रसन्नता अनुभव कर सकें। कवि ने अति यथार्थ रूप में अपने सरल व सहज विचारों को व्यक्त किया है।

(ग) कवि ने प्रस्तुत पद्यावतरण में बताया है कि जो लोग उनके जीवन की दुःखपूर्ण कथा को सुनना चाहते थे, वे यह न समझने लगें कि वही उनके जीवन रूपी गागर को खाली करने वाले थे। वे सब पहले अपने-आपको समझें। वे उनके भावों रूपी रस को लेकर अपने-आपको भरने वाले थे। हे सरल मन वालो! यह उपहास और निराशा का ही विषय था कि मैं उन पर व्यंग्य । कर रहा था, उनकी हँसी उड़ा रहा था।

कवि पुनः कहता है कि वह आत्मकथा के नाम पर अपनी व औरों की बातें जग-जाहिर नहीं करना चाहता। उसके जीवन में तो पूर्णतः निराशा और पीड़ा की कालिमा ही नहीं है अपितु उसमें मधुर चाँदनी रातों की मीठी यादें भी हैं। उन मधुर एवं उज्ज्वल गाथाओं का वर्णन कैसे करूँ? वह अपने जीवन की मधुर एवं उज्ज्वल स्मृतियों में सबको भागीदार नहीं बनाना चाहता, वह उन्हें सबके सामने क्यों अभिव्यक्त करे। जब कभी वह अपनों के साथ खिल-खिलाकर हँसा था अथवा मधुर-मधुर बातों के सुख में डूबा हुआ था और उसका हृदय आनंद से भर उठा था। उन मीठी स्मृतियों को वह दूसरों को क्यों बताए।

(घ) इस पद्यांश में कवि ने स्पष्ट किया है कि आत्मकथा में जीवन की घटनाओं का सच्चा एवं यथार्थ वर्णन किया जाता है। उसके जीवन में सुख कम और दुःख अधिक हैं। वह अपने और दूसरों के दुःखों को जग-जाहिर नहीं करना चाहता। इसी प्रकार कवि अपनी और दूसरों की भूलों को व्यक्त करके हँसी का पात्र नहीं बनना चाहता।

(ङ) कवि ने अपना प्रेम भरा रस लेने की बात कही है। उसके साहित्यिक मित्र ही उसके रस को लेने की बात करते हैं। कवि ने बताया है कि उसके आस-पास भँवरे की भाँति मंडराने वाले मित्र लोग उनके काव्य रस को चूसकर अपने-आपको उन्नत बनाना चाहते हैं।

(च) कवि ने अपने उन मित्रों को ही ‘खाली करने वाले’ बताया है जिन्होंने उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहा था। कवि के निजी अनुभव बहुत कटु रहे हैं। हो सकता है कि उनके मित्रों ने ही उनकी खुशी में बाधा डाली हो। इस प्रकार उनके जीवन को खुशियों से वंचित कर दिया हो।

(छ) कवि अपने जीवन में दुःखों व कष्टों के लिए किसी को दोष नहीं देना चाहता। वह स्वभाव से अत्यंत सरल था। यदि वह अपनी सरलता को कष्टों का कारण मानता है तो यह उसके लिए विडंबना ही होगी। कवि अपनी सरलता के कारण प्रसन्न है यदि उसे अपनी सरलता के कारण कष्ट या दुःख सहन करने पड़ते हैं तो वह इसका बुरा नहीं मानता।

(ज) कवि आत्मकथा इसलिए नहीं लिखना चाहता क्योंकि आत्मकथा में जीवन संबंधी घटनाओं, विचारों आदि का सच्चाई पूर्ण वर्णन करना पड़ता है। इसलिए कवि अपने जीवन की सरलता को लोगों की हँसी का कारण नहीं बनाना चाहता। वह अपनी भूलों और दूसरों के छलकपट को जग-ज़ाहिर नहीं करना चाहता। कवि अपने प्रेम के सुखपूर्ण क्षणों को भी दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता। ये ऐसी बातें है जिनके कारण कवि अपनी आत्मकथा लिखकर इन्हें लोगों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता।

(झ) कवि ने अपने जीवन के प्रेम के क्षणों और मधुर स्मृतियों को जीवन की उज्ज्वल गाथाओं की संज्ञा दी है। प्रेम के वे क्षण जो कवि ने खिल-खिलाती हुई रातों में बिताए थे वे आज उसे अपने जीवन की उज्ज्वल गाथाएँ-सी प्रतीत होती हैं।

(ञ) खिल-खिलाकर हँसने वाली बातों का अभिप्राय है-प्रेम के अत्यंत मधुर क्षण जो उन्होंने अपनी प्रिया के साथ बिताए थे।

(ट)

  • प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अपने जीवन की उन बातों को अत्यंत विनम्रता एवं यथार्थपूर्वक व्यक्त किया है जो उनके व्यक्तिगत प्रेम व सुख से संबंधित थीं। साथ ही उन लोगों के विषय में भी लिखा है जो उनसे आत्मकथा लिखवाना चाहते थे।
  • कवि ने अपनी सरलता का मानवीकरण किया है जिससे विषय अत्यंत रोचक बन गया है।
  • तत्सम शब्दों का सफल एवं सार्थक प्रयोग किया गया है।
  • संकेत-शैली का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  • स्वर मैत्री के कारण भाषा लयात्मक बनी हुई है।

(ठ) भाषा प्रसादगुण संपन्न है। उसमें तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है। भाषा पूर्णतः भावानुकूल है। भाषा में भावों की अभिव्यक्ति करने की पूर्ण क्षमता है।

[3] मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की? [पृष्ठ 28]

शब्दार्थ-स्वप्न = सपना। आलिंगन में = बाँहों में। मुसक्या = मुस्कराकर, हँसकर। अरुण-कपोल = लाल गाल। मतवाली = हँसी से भरी हुई। अनुरागिनी = प्रेम में लीन। उषा = प्रातः। निज = अपना। सुहाग = सुगंध, इत्र। मधुमाया = मधुर मोहकता। पाथेय = रास्ते का भोजन। पथिक = यात्री। पंथा = रास्ता। सीवन = सिया हुआ। उधेड़कर = फाड़कर। कंथा = गुदड़ी, अंतर्मन।।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश का प्रसंग लिखिए।
(ग) प्रस्तुत पद की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि किसका स्वप्न देखकर जाग गया था?
(ङ) कौन और कैसे भाग गया?
(च) कवि की प्रेमिका के कपोल कैसे थे?

(छ) कवि ने किसको पाथेय माना है?
(ज) सीवन उधेड़ने से कवि का क्या तात्पर्य है?
(झ) कवि ने भोर को कैसा बताया है?
(ञ) ‘कथा’ से क्या अभिप्राय है?
(ट) उपर्युक्त पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ठ) इन काव्य-पंक्तियों में निहित शिल्प-सौंदर्य का उल्लेख कीजिए।
(ड) इस पद में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद। . . कविता का नाम-आत्मकथ्य।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से उद्धत है। इस कविता के रचयिता छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद हैं। कवि ने अपने जीवन की दुःखभरी कहानी को कभी किसी को न बताने का निश्चय किया था। उन्हें ऐसा लगता था कि उनके जीवन में कुछ भी सुखद नहीं था जिसे सुनकर या पढ़कर कोई सुखी हो सके। उसके जीवन में कष्ट और अभाव ही थे जिन्हें वह किसी को बताना नहीं चाहता था।

(ग) कवि ने बताया है कि उसको जीवन में कभी सुख की प्राप्ति नहीं हुई। उसने स्वप्न में भी जिस सुख को देखा था, नींद से जागने पर उसे वह सुख प्राप्त नहीं हो सका। वह सुख देने वाला स्वप्न भी उसकी बाँहों में आते-आते मुस्कराकर भाग गया अर्थात् कवि को कभी स्वप्न में भी सुख प्राप्त नहीं हुआ। सपने में जो सुख का आधार बना था वह अपार सुंदर और मोहक था। उसकी लाल-गुलाबी गालों की मस्ती भरी छाया में प्रेम भरी भोर अपने सुहाग की मिठास भरी मनोहरता को लेकर प्रकट हुई थी। कवि के कहने का तात्पर्य है कि. उसकी गालों में प्रातःकालीन लाली और शोभा विद्यमान थी। जीवन की लंबी डगर पर चलते हुए, थके हुए कवि रूपी यात्री की स्मृतियों में केवल वही सहारा बनी। उसकी यादें ही थके हुए पथिक की थकान कम करने में सहायक बनी थीं। कवि नहीं चाहता कि उसके जीवन की मधुर यादों के विषय में कोई दूसरा जाने। कवि अपने उन मित्रों से पूछता है जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए प्रेरित कर रहे थे कि क्या आप मेरी अंतर्मन रूपी गुदड़ी की सिलाई को उधेड़कर उसमें छिपे हुए उसके रहस्यों को देखना चाहते हो? कवि के कहने का तात्पर्य है कि वह अपने जीवन के रहस्यों को अपने तक ही सीमित रखना चाहता है उन्हें दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता।

(घ) कवि उस स्वप्न को देखकर जाग गया जिसके सुख को वह प्राप्त नहीं कर सका।

(ङ) वह कवि की पत्नी अथवा प्रेमिका हो सकती है जो कवि के आलिंगन में आते-आते उसे छोड़कर चली गई। कवि ने तीन बार विवाह किया। एक के बाद एक पत्नी चल बसी। कवि उन्हीं पत्नियों को याद कर रहा है जिन्हें वह ठीक से अपना भी न सका कि वे सदा के लिए उससे दूर चली गईं। .

(च) कवि की प्रेमिका के कपोल ऐसे लाल-लाल व मतवाले थे कि स्वयं ऊषा की लालिमा भी उनसे लालिमा उधार लेती थी।

(छ) कवि ने अपने जीवन के उन सुखद क्षणों को पाथेय माना है जो स्वप्न की भाँति उसके जीवन में आए और क्षण भर में ही मिट गए।

(ज) सीवन उधेड़ने से कवि का तात्पर्य जीवन की परतों को खोलना है जिन पर समय के साथ गर्द जम चुकी थी, जिनमें व्यथा के अतिरिक्त और कुछ बहुत कम था।

(झ) कवि ने भोर को प्रेम एवं लालिमा से युक्त बताया है।

(ञ) ‘कथा’ का शाब्दिक अर्थ गुदड़ी है जिसे कवि ने अपने अंतर्मन के लिए प्रयुक्त किया है।

(ट) कवि ने इस पद्यांश में बताया है कि उसका जीवन सदा दुःखों से घिरा रहा है। कवि के हृदय में निश्चय ही कोई टीस छिपी हुई है जिसको वह प्रकट नहीं करना चाहता। कवि ने अपने जीवन में सुख को स्वप्न की भाँति बताया है। सुख की उन स्मृतियों को ही अपने जीवन रूपी पथ में सहारा बताया है। कवि ने इन सब भावों को कलात्मकतापूर्ण अभिव्यंजित किया है।

(ठ)

  • कवि ने अपने जीवन के गोपनीय सुखद क्षणों का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है।
  • संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
  • भाषा प्रसादगुण संपन्न है।
  • प्रतीकों एवं बिंबों का प्रयोग किया गया है।
  • अनुप्रास, मानवीकरण, रूपक आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
  • वियोग शृंगार है।

(ड) प्रस्तुत काव्य में कवि ने संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया है। विभिन्न प्राकृतिक उपमानों के प्रयोग से भाषा एवं वर्ण्य विषय में रोचकता का विकास हुआ है।

[4] छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा। [पृष्ठ 28]

शब्दार्थ-कथाएँ = कहानियाँ । मौन = चुप । भोली आत्मकथा = सीधी-सादी जीवन कहानी। मौन व्यथा = वह पीड़ा जिसको कभी व्यक्त नहीं किया गया।

प्रश्न-
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखिए।
(ख) प्रस्तुत पद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश की व्याख्या कीजिए।
(घ) कवि ने अपने जीवन को कैसा माना है?
(ङ) कवि के जीवन में बड़ी-बड़ी कथाएँ क्यों नहीं थीं?
(च) कवि को क्या अच्छा लगता था?
(छ) कवि ने अपनी जीवन-कहानी को कैसा बताया है?
(ज) कवि के हृदय में मौन व्यथा किस स्थिति में थी?
(झ) इस कवितांश में निहित भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ञ) इस पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ट) इस काव्यांश में प्रयुक्त भाषा की विशेषता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
(क) कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद। कविता का नाम-आत्मकथ्य।

(ख) प्रस्तुत कवितांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। इस कविता में कवि ने कहा है कि उसके जीवन में दुःख का पलड़ा भारी रहा है। कवि अपने जीवन के सुख की स्मृतियों को आधार बनाकर जीना चाहता है। किंतु कवि अपनी आत्मकथा लिखकर अपने दुःख रूपी जख्मों को पुनः हरा नहीं करना चाहता।

(ग) कवि अपने उन मित्रों, जो उससे आत्मकथा लिखने का आग्रह करते थे, को संबोधित करता हुआ कहता है कि यदि मेरे जीवन की परतों को खोलकर देखोगे तो तुम्हें उसमें कोई बड़ी कहानी नहीं मिलेगी। मेरा छोटा-सा जीवन है। मेरे लिए यही उचित है कि मैं औरों की कथाएँ सुनता रहूँ तथा अपनी व्यथा न ही कहूँ तो अच्छा है। मेरी आत्मकथा सुनकर भला तुम्हें क्या मिलेगा। मेरी कथा सुनने का अभी समय नहीं है। मेरी मौन व्यथा अभी मेरे मन में सोई पड़ी है। इसलिए उसे न ही जगाओ तो अच्छा है।

(घ) कवि ने अपने जीवन को अत्यंत छोटा माना है। इसमें कोई बड़ी कथा नहीं है।

(ङ) कवि का जीवन अत्यंत लघु जीवन है। कवि स्वभाव से अत्यंत विनम्र तथा साहित्य-सेवी है। इसलिए सरल, सहज एवं विनम्र होने के कारण उनके जीवन में बड़ी-बड़ी व्यथाएँ या बड़ी कथाएँ बनाने वाली घटनाएँ भी नहीं घटीं।

(च) कवि को मौन रहकर दूसरों की आत्म-कथाएँ अथवा कथाएँ सुनना अच्छा लगता है।

(छ) कवि ने अपने जीवन की कथा को अत्यंत सरल, सीधी-सादी और भोली माना है।

(ज) कवि के हृदय में मौन व्यथा सुसुप्त (सोई हुई) रूप में थी।

(झ) कवि अपनी जीवन कथा को दूसरों के सामने व्यक्त करने योग्य नहीं समझता क्योंकि उनके विचार से उनके जीवन में ऐसा कुछ महत्त्वपूर्ण नहीं जो दूसरों को अच्छा लगे। इसलिए कवि चाहता है कि मौन रहकर दूसरों की जीवनकथा सुनना ही उसके लिए उचित है। उसके जीवन में तो व्यथा-ही-व्यथा है। अतः उन्हें कवि अपने मन में छुपाए रखना चाहता है। इन भावों को कवि ने अत्यंत कलात्मक ढंग से व्यक्त किया है।.

(ञ)

  • कवि ने अपने मन के गहन भावों को कलात्मक अभिव्यक्ति प्रदान की है।
  • कवि ने तत्सम प्रधान शब्दावली का सार्थक प्रयोग किया है।
  • शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग हुआ है।
  • भाषा प्रसादगुण संपन्न है।
  • स्वर मैत्री के सार्थक एवं सफल प्रयोग के कारण लयात्मकता बनी हुई है।
  • प्रश्न, रूपक, मानवीकरण, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग किया गया है।

(ट) इन काव्य पंक्तियों में शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है। तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है इसलिए कहीं-कहीं भाषा में जटिलता का समावेश हो गया है। स्वर मैत्री के कारण भाषा में सौंदर्य-वृद्धि हुई है। चित्रात्मक भाषा के प्रयोग से विषय रोचक बन पड़ा है।

 

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