Maharashtra Board Class 9 Hindi Lokvani Solutions Chapter 3 ग्रामदेवता
Maharashtra Board Class 9 Hindi Lokvani Solutions Chapter 3 ग्रामदेवता
Maharashtra State Board Class 9 Hindi Lokvani Solutions Chapter 3 ग्रामदेवता (पठनार्थ)
Hindi Lokvani 9th Std Digest Chapter 3 ग्रामदेवता Textbook Questions and Answers
संभाषणीय:
प्रश्न 1.
‘प्राकृतिक सौंदर्य का सच्चा आनंद आँचलिक (ग्रामीण) क्षेत्र में ही मिलता है’, चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भारत गाँवों का देश है। आज भी भारत की अधिकतम जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। महात्मा गाँधी कहते थे कि, “वास्तविक भारत का दर्शन गाँवों में ही संभव है जहाँ भारत की आत्मा बसी भारत के गाँव उन्नत और समृद्ध थे। ग्रामीण कृषक कृषि पर गर्व अनुभव करते थे, संतुष्ट थे। गाँवों में कुटीर उद्योग फलतेफूलते थे। लोग सुखी थे। भारत के गाँवों में स्वर्ग बसता था, किंतु समय बीतने के साथ शहरों का विकास होता गया और गाँव पिछड़ते गए।
परंतु आज भी जो बात गाँव में है वह शहर में कहाँ? आज हममें से कितने लोगों ने गाँव देखे हैं? गाँव जिन्हें ईश्वर ने बनाया, जहाँ प्रकृति का सौंदर्य बिखरा पड़ा है – हरे-भरे खेत, लहलहाती फसलें, कल-कल करती नदियाँ, नदियों में मछलियाँ पकड़ते मछुवारे, उनके जल में स्नान करते ग्रामवासी, कुएँ की रहट पर सजी-धजी औरतों की खिलखिलाहट, कहीं-कहीं पर पंम्पिंग सेट से सिंचाई करते कंधे पर फावड़ा लिए किसान तो कहीं पर कजरी गाते हुए धान की रोपाई करती महिलाएँ, हुक्का पीते किसान, गाय के पीछे दौड़ते बच्चे, पेड़ों से आम तोड़कर खट्टे आम खाती किशोरियाँ, रंग-बिरंगी तितलियाँ पकड़ते नन्हें-नन्हें बच्चे। गाँव की ये प्राकृतिक छटा तो निराली है। सत्य ही है कि प्राकृतिक सौंदर्य का सच्चा आनंद आँचलिक क्षेत्र में ही मिलता है।
लेखनीय:
प्रश्न 1.
“किसी ऐतिहासिक स्थल की सुरक्षा हेतु आपके दवारा किए जाने वाले प्रयत्नों के बारे में लिखिए।
उत्तर:
ऐतिहासिक स्थलों को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी किसी एक व्यक्ति, संस्था या सरकार की नहीं है। हम भी अपने स्तर पर इनके रक्षक बन सकते हैं। हमारी एक बहुत बड़ी समस्या प्राचीन धरोहर को सुरक्षित रखने की भी है। पूरे देश में ऐसी अनगिनत प्राचीन और ऐतिहासिक इमारतें हैं जिनकी देखभाल ठीक से नहीं हो रही है। कुछ इमारतें तो पूरी तरह उपेक्षित हैं और अगर उन पर ध्यान न दिया गया तो वे गिर जाएंगी।
सरकारी विभाग अपनी सीमा और साधनों की कमी के कारण केवल उन्हीं इमारतों की देखभाल करते हैं जो उनकी सूची में शामिल है पर यह काफ़ी नहीं है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के कोड़ा, जहानाबाद कस्बे को लिया जा सकता है। यह कस्बा मध्यकाल में बहुत प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण केंद्र था। यहाँ मुगल सम्राटों तथा अन्य के द्वारा निर्मित भव्य ऐतिहासिक इमारतें हैं। यहाँ की ऐतिहासिक इमारतों का संरक्षण कैसे होगा। यह चिंता का विषय था।
मैंने जहानाबाद की इन इमारतों की सुरक्षा के लिए आस-पास के गाँव के लोगों को जागरूक किया उन्हें समझाया कि खाने-पीने का समान इधर-उधर न फेंककर कूड़ेदान में डालें। दीवारों पर कुछ न लिखें। लावारिस वस्तुओं के मिलने पर प्रशासन या पुलिस विभाग को सूचित करें। पार्किंग स्थल पर ही वाहन को खड़ा करें। फैलता है जिससे इमारतों को क्षति पहुँचती है।
अब तो हमारे गाँव के नवयुवक सप्ताह में एक दिन श्रमदान करके इमारतों के अंदर तथा बाहर साफ-सफाई का काम भी करते हैं। हम लोगों ने मिलकर ‘ऐतिहासिक धरोहर सुरक्षा फंड’ के नाम से एक संस्था बना ली है। जिसमें हर महीने पैसा जमा करते हैं और उस पैसे से टूटे-फूटे हिस्से की मरम्मत करवाते रहते हैं।
आसपास:
प्रश्न 1.
किसी कृषक से प्रत्यक्ष वार्तालाप करते हुए उसका महत्त्व बताइए।
उत्तर:
मोहन – नमस्कार ! काका आप कैसे हैं?
किसान – नमस्कार ! नमस्कार ! मैं ठीक हूँ, सब प्रभु की कृपा है। आप तो शहरी जान पड़ते हैं?
मोहन – हाँ, आपने सही पहचाना। मैं शहरी हूँ, आपसे कुछ वार्तालाप करने यहाँ आया हूँ।
किसान – कहिए. आप को क्या कहना है?
मोहन – सबसे पहले आप हमें बताइए कि आपकी दिनचर्या क्या हैं?
किसान – हमारी दिनचयाँ रोजाना एक-सी ही रहती है। सबेरे उठते ही अपने पशुओं की सेवा करना उनको चारा डालना, गोबर की सफाई करने के बाद दूधारू पशुओं के दूध निकालना।
फिर हल और बैल लेकर खेत की ओर चल देते हैं। वहाँ पूरे दिन खेती के काम में जुटे रहते हैं। स्नान और दोपहर का भोजन हम अधिकतर खेत पर ही कर लेते हैं। शाम इलते ही हम घर लौटते हैं। घर आकर बैलों को घास, भूसा, खली आदि डालते हैं। फिर कहीं जाकर हमें आराम मिलता है।
मोहन – आप हर मौसम में ऐसे ही मेहनत करते हैं?
किसान- हाँ, हर मौसम में हमारा काम चलते रहता है। पूस-माघ की कड़कड़ाती ठंड, बैशाख-जेठ को चिलचिलाती धूप व सावन-भादों की तेज वर्षा के बीच भी हम काम में जुटे रहते हैं।
कृषक का महत्त्व:
कृषक कठिन परिश्रम करके खाद्यान्न पैदा करता है। इसी खाद्यान्न से देशवासियों का पेट भरता है। कृषक न हों तो हम भूखों मरने लगे। यही हमें अनाज, सब्जियाँ, फल, दूध आदि मुहैया कराते हैं। त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है ‘किसान’। वह जीवन भर मिट्टी से सोना उत्पन्न करने की तपस्या करता रहता है। तपती धूप, कड़ाके की ठंड तथा मुसलधार बारिश भी उसकी इस साधना को तोड़ नहीं पाते। हमारे देश की लगभग 70% प्रतिशत आबादी आज भी गाँवों में निवास करती है। जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि है। एक सत्य यह भी है कि भारत की मूल आत्मा वे किसान है, जो गाँवों में निवास करते हैं। किसान हमें खाद्यान्न देने के अलावा भारतीय संस्कृति और सभ्यता को भी सहेजकर रखे हुए हैं। यही कारण है कि शहरों की अपेक्षा गाँवों में भारतीय संस्कृति और सभ्यता अधिक देखने को मिलती है। किसान की शक्ति और भक्ति कृषि ही है। ऐसे ग्राम देवता को शत-शत् नमन् !
कल्पना पल्लवन:
प्रश्न 1.
‘सबकी प्यारी, सबसे न्यारी मेरे देश की धरती’ इस पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती’
हम इस देश की धरती पर पैदा हुए हैं। इसका अनाज खाकर इसकी गोदी में खेल कर हम पले बढ़े हैं। हमारे लिए यह इतनी महत्त्वपूर्ण है जितने की हमारे माता-पिता। भारत एक भू-भाग का नाम नहीं है अपितु उस भू-भाग में बसे लोगों की संस्कृति सभ्यताएँ, उसके रीति-रिवाजों, उसके अमूल्य इतिहास और उसके भौतिक स्वरूप का नाम भारत है। भारत की धरती पर जगह-जगह स्थित पहाड़ी स्थल, जंगल हरेभरे मैदान, रमणीय स्थल, मुंदर समट तट, देवालय आदि उसकी शोभा बढ़ा रहे हैं।
जहाँ एक ओर स्वर्ग के रूप में कश्मीर है। तो दूसरी ओर सागर की सुंदरता लिए दक्षिण भारत। यहाँ अनगिनत नदियाँ बहती हैं जो अपने स्वरूप द्वाराइसको दिव्यता प्रदान करती हैं। ये नादियाँ प्रत्येक भारतीय के लिए माँ के समान है। संसार की सबसे ऊँची चोटी ‘माउंट एवरेस्ट’ भी इसी धरती पर स्थित है। इन सभी कारणों से यह धरती रमणीय और रोमांचकारी बन जाती है।
भारत की सभ्यता समस्त संसार में सबसे प्राचीनतम है। इसकी भूमि ने अनेकों सभ्यताओं और संस्कृतियों को जन्म दिया है। इसने एक संस्कृति का पोषण नहीं किया अपितु अनेकों संस्कृतियों को अपनी मातृत्व को छाया में पाल-पोषकर मल्लन संस्कृतियों के रूप में उभारा है। इस भारत वर्ष की भूमि ने राम और श्री कृष्ण को ही जन्म नहीं दिया; बल्कि पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, शिवाजी महाराज, महात्मा गाँधी, लाल बहादुर शास्त्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू, भगत सिंह जैसे महापुरुषों को भी जन्म दिया है जिन्होंने अमिट अक्षरों में अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करवा दिया है।
उस धरती ने जहाँ एक ओर गुलामी को सहा है, वहीं दूसरी ओर स्वतंत्रता संग्राम की भी गवाह रही है। हमारे देश की धरती रत्नगर्भा कही जाती है। इसमें विभिन्न खनिज पदार्थ विद्यमान हैं। हर प्रकार के मौसम से परिपूर्ण इस धरती पर हर तरह की फसलें उगती हैं। यह प्राचीन समय से ही कृषि प्रधान देश रहा है। इसे आध्यात्मिकता, दर्शन-विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमि कहा जाता है। यह पर्यटन का स्वर्ग है जो पूरे विश्व को अपनी ओर आकर्षित करती है।
पाठ से आगे:
प्रश्न 1.
‘ऑरगैनिक’ (सेंद्रिय) खेती की जानकारी प्राप्त’ कीजिए और अपनी कक्षा में सुनाइए।
उत्तर:
ऑरगैनिक खेती (जैविक खेती) कृषि की वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए फसल चक्र, हरी खाद, कंपोस्ट खाद आदि का प्रयोग करती है। तरह-तरह की रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों का उपयोग, प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान के चक्र को प्रभावित करता है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति खराब हो जाती है, साथ ही वातावरण प्रदूषित होता है तथा मनुष्य के स्वास्थ्य में गिरावट आती है।
ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए पिछले कई वर्षों से निरंतर टिकाऊ खेती की योजनाएँ बनाई जा रही हैं। भारत सरकार भी इस खेती को अपनाने के लिए प्रचार-प्रसार कर रही है, जिसे हम जैविक खेती के नाम से जानते हैं। इस प्रकार की खेती से उत्पन्न अनाज ज्यादा स्वास्थ्य वर्धक होता है। जैविक खेती के लिए कंपोस्ट ही एकमात्र सबसे महत्त्वपूर्ण पूरक पोषण है; जो आप अपने खेत की मिट्टी को दे सकते हैं। कंपोस्ट तैयार करने में घर से निकलने वाले कूड़ों का कमसे-कम तीस फीसदी हिस्सा दुबारा उपयोग में आ जाता है। जैसे – फलों के छिलके, हरी सब्जियों के छिलके, अंडे के छिलके, राख आदि।
पेड़ के पत्तों, हरी घासों, खर-पतवार, गोबर, पशुओं के मुत्र, लकड़ी के बुरादे, अखबार, कटे हुए कागज और फसलों के तने से भी भारी मात्रा में कंम्पोस्ट तैयार करते हैं। वनस्पतियों की वृद्धि को तेज करने और मिट्टी की जीवन शक्ति को पुर्नस्थापित करने के लिए पोषक तत्त्वों से भरपूर वनस्पति से निर्मित खाद को सरल तरीके से मिट्टी में डालना ही कंपोस्टिंग कहलाता है। इसको बनाने में कोई खर्च नहीं आता है, इसे आसानी से बनाया जा सकता है और यह पर्यावरण के लिए भी अच्छा है।
कंपोस्ट खाद के फायदे:
मिट्टी अनुकूलक: कंपोस्ट से आप लॉन और बगीचे के लिए पोषण से भरपूर मिट्टी तैयार करते हैं; जिससे आपके पौधों को पोषण मिलता है और मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद मिलती है। इसमें सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है। फसलों की उत्पादकता में भी वृद्धि होती है।
Hindi Lokvani 9th Std Textbook Solutions Chapter 3 ग्रामदेवता Additional Important Questions and Answers
(क) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति क (1): आकलन कृति
प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए।
उत्तर:
कृति क (2): सरल अर्थ
प्रश्न 1.
ऊपर दी गई पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए।
उत्तर:
कवि राजकुमार वर्मा जी ग्रामदेवता यानी किसानो को नमस्कार करते हैं और कहते हैं कि तुम महान हो। तुमने सोने-चाँदी से प्यार नहीं किया बल्कि मिट्टी से प्यार किया है। हे ग्राम देवता तुम्हें नमस्कार है! कवि कहते हैं किसान शोरगुल से दूर कहीं अकेले में तुम्हारा एक छोटा-सा निवास है। सूर्य और चाँद में भी उतना प्रकाश नहीं है जितना तुम्हारे प्राणों का (शक्ति) प्रकाश होता है। हे ग्राम देवता तुम्हें नमस्कार है!
(ख) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति ख (1): आकलन कृति
प्रश्न 1.
आकृति पूर्ण कीजिए ।
उत्तर:
प्रश्न 2.
समझकर लिखिए।
1. जड़ में चेतन का विकास इस बल पर होता है।
2. पसीने की धारा को कवि ने उपमा दी है।
उत्तर:
1. श्रमवैभव के बल पर।
2. गंगा की धवल धार की।
कृति ख (2): सरल अर्थ
प्रश्न 1.
ऊपर दी गई कविता की पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए।
उत्तर:
कवि किसानों से कहता है कि तुम परिश्रम की शक्ति के बल पर बंजर जमीन को भी उपजाऊ कर उसमें हरी-भरी फसलों का विकास करते हो जिसमें एक-एक दाने के बीज से सौ-सौ दानों की हँसी फूट पड़ती है अर्थात तुम्हारे परिश्रम से बंजर जमीन भी लहलहा उठती है। हे किसान! तुम्हारे शरीर से निकलनेवाली पसीने की धारा सिर्फ पसीने की धारा नहीं है बल्कि गंगा की स्वच्छ धार के समान है। हे ग्रामदेवता, तुम्हें नमस्कार है! कवि कहते हैं, हे किसान तुम चिलचिलाती गर्मी, मूसलाधार वर्षा और कड़ाके की ठंड में भी बिना रुके परिश्रम करते रहते हो। स्वयं को कष्ट देकर संसार को अनाज का पुरस्कार देते हो।।
(ग) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति ग (1): आकलन कृति
प्रश्न 1.
एक से दो शब्दों में उत्तर लिखिए।
1. यह जन-गन-मन का अधिनायक है –
2. कवि ने इसे सिंहासन पर बैठने के लिए कहा है –
उत्तर:
1. किसान
2. किसान को
प्रश्न 2.
निम्नलिखित विधान सत्य है या असत्य पहचानकर लिखिए।
1. किसान राजद्वार को झुकाकर अपनी झोपड़ी ऊँची करता है।
2. किसान जन-गन-मन अधिनायक है।
उत्तर:
1. असत्य
2. सत्य
कृति ग (2): सरल अर्थ
प्रश्न 1.
उपर्युक्त पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए।
उत्तर:
कवि कहते हैं, हे किसान तुम लोगों के मन के शासक हो तुम हमेशा प्रसन्नचित्त रहो, जिससे कि हमारा देश फूलता-फलता रहे। आओ, इस सिंहासन पर बैठो जिससे यह राज्य-सिंहासन अशेष न हो अर्थात खाली न हो। टूटी-फूटी झोपड़ी में रहकर भी देश का मान-सम्मान बढ़ाते हो, हे ग्रामदेवता तुम्हे मेरा नमस्कार है।
(घ) पद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए।
कृति घ (1): आकलन कृति
प्रश्न 1.
सही शब्द चुनकर वाक्य फिर से लिखिए।
1. उर्वरा भूमि के नए खेत के नए धान्य से …………….. । (सजे देश, सजे वेश, बड़े क्लेश)
2. अपनी कविता से आज तुम्हारी ……………. लू उतार। (रीति, नीति, विमल आरती)
उत्तर:
1. उर्वरा भूमि के नए खेत के नए धान्य से सजे वेश।
2. अपनी कविता से आज तुम्हारी विमल आरती लूँ उतार।
प्रश्न 2.
उत्तर लिखिए।
1. इससे वेश सजे –
2. इससे विमल आरती उतारूँ
उत्तर:
1. उपजाऊ भूमि के नए खेत के नए अनाज से।
2. अपनी कविता से।
कृति (2): सरल अर्थ
प्रश्न 1.
ऊपर दी गई कविता की पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए।
उत्तर:
कवि कहते हैं, हे किसान उपजाऊ भूमि के नए खेत के नए फसलों से सजे हुए वेश में तुम, इस धरती पर रहकर धरती के सभी प्राणियों और शेष मनुष्यों की जिम्मेदारी को वहन करते हो। इसलिए मैं अपनी कविता से आज तुम्हारा स्वागत करता हूँ। हे ग्राम देवता, तुम्हें मेरा नमस्कार है!
ग्रामदेवता Summary in Hindi
कवि-परिचय:
जीवन-परिचय: डॉ. रामकुमार वर्मा आधुनिक हिंदी साहित्य में ‘एकांकी सम्राट’ के रूप में जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध कवि, नाटककार, लेखक और आलोचक भी रहे। साहित्य में इनकी उत्तरोत्तर प्रगति के आधार पर इन्हें 1963 में पद्मभूषण की उपाधि प्रदान की गई।
प्रमुख कृतियाँ: काव्य संग्रह – ‘चित्तौड़ की चिंता’, ‘निशीथ’, ‘चित्ररेखा’, ‘वीर हमीर’ एकांकी संग्रह – ‘रेशमी टाई’, ‘रूपरंग’, ‘चार ऐतिहासिक एकांकी,’ आदि नाटक – ‘एकलव्य’, ‘उत्तरायण’ आदि।
पद्य-परिचय:
कविता: कविता समाज को नई चेतना प्रदान करती हैं। मानवीय गुणों की प्रतिष्ठा का सशक्त माध्यम कविता है। रस, छंद, अलंकार से परिपूर्ण, सुंदर अर्थ प्रकट करने वाली, हृदय की कोमल अनुभूतियों का साकार रूप कविता है।
प्रस्तावना: प्रस्तुत कविता ‘ग्रामदेवता’ में कवि डॉ. रामकुमार वर्मा जी ने किसानों को ग्राम देवता बताते हुए उनके परिश्रमी, त्यागी एवं
परोपकारी किंतु संघर्षपूर्ण जीवन को रेखांकित किया है।
सारांश:
प्रस्तुत कविता में कवि ने बताया है कि गाँव का किसान सोने-चाँदी से नहीं बल्कि गाँव की मिट्टी से प्यार करता है। वह एकांत में एक छोटे से घर में निवास करता है। वह अपने परिश्रम के बल पर बंजर मिट्टी से भी हरी-भरी फसलें उगाता है। गर्मी, ठंडी और बरसात के मौसम की परवाह किए बिना वह खेत में अपने पसीने बहाता है और लोगों के लिए अनाज पैदा करता है। इस किसान को कवि ने लोगों के मन में निवास करनेवाला शासक कहकर उसे हमेशा मुस्कराते रहने की उम्मीद की है तथा उसे ग्रामदेवता कहकर नमस्कार किया है।
सरल अर्थ:
1. हे ग्रामदेवता ………. नमस्कार!
कवि राजकुमार वर्मा जी ग्रामदेवता यानी किसानो को नमस्कार करते हैं और कहते हैं कि तुम महान हो। तुमने सोने-चाँदी से प्यार नहीं किया बल्कि मिट्टी से प्यार किया है। हे ग्राम देवता तुम्हें नमस्कार है!
2. जन कोलाहल ……….. होता प्रकाश।
कवि कहते हैं किसान शोरगुल से दूर कहीं अकेले में तुम्हारा एक छोटा-सा निवास है। सूर्य और चाँद में भी उतना प्रकाश नहीं है जितना तुम्हारे प्राणों का (शक्ति) प्रकाश होता है। हे ग्राम देवता तुम्हें नमस्कार है!
3. श्रमवैभव ………………… नमस्कार!
कवि किसानों से कहता है कि तुम परिश्रम की शक्ति के बल पर बंजर जमीन को भी उपजाऊ कर उसमें हरी-भरी फसलों का विकास करते हो जिसमें एक-एक दाने के बीज से सौ-सौ दानों की हँसी फूट पड़ती है अर्थात तुम्हारे परिश्रम से बंजर जमीन भी लहलहा उठती है। हे किसान! तुम्हारे शरीर से निकलनेवाली पसीने की धारा सिर्फ पसीने की धारा नहीं है बल्कि गंगा की स्वच्छ धार के समान है। हे ग्रामदेवता, तुम्हें नमस्कार है!
4. जो है गतिशील ………………. नमस्कार!
कवि कहते हैं, हे किसान तुम चिलचिलाती गर्मी, मूसलाधार वर्षा और कड़ाके की ठंड में भी बिना रुके परिश्रम करते रहते हो। स्वयं को कष्ट देकर संसार को अनाज का पुरस्कार देते हो। टूटी-फूटी झोपड़ी में रहकर भी देश का मान-सम्मान बढ़ाते हो, हे ग्रामदेवता तुम्हे मेरा नमस्कार है!
5. तुम जन-गन-मन ………………………… है अशेष।
कवि कहते हैं, हे किसान तुम लोगों के मन के शासक हो तुम हमेशा प्रसन्नचित्त रहो, जिससे कि हमारा देश फूलता-फलता रहे। आओ, इस सिंहासन पर बैठो जिससे यह राज्य-सिंहासन अशेष न हो अर्थात खाली न हो।
6. उर्वरा भूमि के ………………………… नमस्कार!
कवि कहते हैं, हे किसान उपजाऊ भूमि के नए खेत के नए फसलों से सजे हुए वेश में तुम, इस धरती पर रहकर धरती के सभी प्राणियों और शेष मनुष्यों की जिम्मेदारी को वहन करते हो। इसलिए मैं अपनी कविता से आज तुम्हारा स्वागत करता हूँ। हे ग्राम देवता, तुम्हें मेरा नमस्कार है!
शब्दार्थ:
- ग्रामदेवता – किसान
- कोलाहल – शोरगुल
- सिमटा-सा – छोटा-सा
- निवास – घर
- रवि-शशि – सूर्य-चाँद
- श्रमवैभव – मेहनत का खजाना, अत्यधिक मेहनत
- जड़ – निर्जीव (बंजर)
- चेतन – जीव (उपजाऊ)
- फूटना – अंकुरित होना
- हास – हँसी
- धवल – स्वच्छ, शुभ्र
- गतिशील – पारश्रमा
- दंड – सजा
- अधिनायक – शासक
- अशेष – बाकी न हो
- उर्वरा – उपजाऊ
- धान्य – अनाज
- वेश – पहनावा
- धारण करना – वहन करना
- मनुजशेष – शेष मनुष्य
- विमल – धवल
मुहावरा:
आरती उतारना – आदर करना, स्वागत करना।