MP Board Class 10th Sanskrit व्याकरण समास-प्रकरण
MP Board Class 10th Sanskrit व्याकरण समास-प्रकरण
MP Board Class 10th Sanskrit व्याकरण समास-प्रकरण
‘समसनं समासः’ अर्थात् संक्षेपीकरण को समास कहते हैं। दो या दो से अधिक शब्दों की विभिक्ति हटाकर और उन्हें एक साथ जोड़कर एक शब्द बनाने की प्रक्रिया को समास कहते हैं। इस प्रकार मिला हुआ पद ‘समस्त पद’ अथवा ‘सामासिक पद’ कहलाता है। जब दो या दो से अधिक शब्दों को इस प्रकार रख दिया जाता है कि उनके आकार (स्वरूप) में कुछ कमी हो जाये और अर्थ पूरा – पूरा निकले तो उसे ‘समास’ कहते हैं।
जैसे –
रामस्य मन्दिरम् = राममन्दिरम्।
(राम का मन्दिर) = (राममन्दिर)
समास के भेद – समास के छः भेद होते हैं –
संस्कृत के एक याचक की उक्ति में इन सभी समासों के नाम आ जाते हैं। यह उक्ति बहुत प्रसिद्ध है –
द्वन्द्वो द्विगुरपि चाहं मद्गेहे नित्यमव्ययीभावः।
तत्पुरुष कर्मधारय येनाहं स्यां बहुब्रीहिः॥
१. अव्ययीभाव समास
परिभाषा – पूर्वपदार्थाप्रधानोऽव्ययीभावः।
जहाँ प्रथम पद प्रधान तथा अव्यय होता है और द्वितीय पद संज्ञावाचक होता है, वहाँ अव्ययीभाव समास होता है।
२. तत्पुरुष समास
परिभाषा – प्रायेण उत्तरपदप्रधानस्तत्पुरुषः।
जिस समास में पूर्वपद द्वितीया विभक्ति से सप्तमी विभक्ति का होता है और उत्तर पद प्रथमा विभक्ति का होता है, वह तत्पुरुष समास होता है।
द्वितीया तत्पुरुष – इसमें पहला पद द्वितीया विभक्ति का होता है और समासावस्था में उसका लोप हो जाता है।
तृतीया तत्पुरुष – इसमें पहला पद तृतीया विभक्ति का होता है और समासावस्था में उसका लोप हो जाता है।
चतुर्थी तत्पुरुष – इसमें पहला पद चतुर्थी विभक्ति का होता है तथा समासावस्था में उसका लोप होता है।
पञ्चमी तत्पुरुष – इसमें पहला पद पंचमी विभक्ति का होता है तथा समासावस्था में उसका लोप होता है।
षष्ठी तत्पुरुष – इसमें पहला पद षष्ठी विभक्ति का होता है तथा समासावस्था में उसका लोप होता है।
सप्तमी तत्पुरुष – इसमें पहला पद सप्तमी विभक्ति का होता है तथा समासावस्था में उसका लोप होता है।
नञ् तत्पुरुष – इस समास में निषेधवाचक शब्द (न) का अर्थ प्रकट करने के लिए प्रारम्भ में “अ” अथवा “अन्” जोड़ा जाता है।
उपपद तत्पुरुष – तत्पुरुष समास में उत्तर पद (अन्तिम शब्द) किसी क्रिया द्वारा बना हुआ (कृदन्त पद) हो तो उसे उपपद तत्पुरुष समास कहते हैं।
३. कर्मधारय समास
परिभाषा – प्रायेण स चासौ कर्मधारयः।
जहाँ प्रथम पद विशेषण या उपमान होता है तथा दूसरा पद विशेष या उपमेय होता है, वहाँ कर्मधारय समास होता है।
४. द्विगु समास
परिभाषा – संख्यापूर्वो द्विगुः।
जहाँ प्रथम पद संख्यावाची होता है तथा उत्तर पद की विशेषता को प्रकट करता है, वह द्विगु समास होता है।
५. बहुव्रीहि समास
परिभाषा – अनन्यपदार्थप्रधानो बहुब्रीहिः।
जहाँ सामासिक पदों से किसी अन्य का बोध होता है, वहाँ बहुब्रीहि समास होता है।
६. द्वन्द्व समास
परिभाषा – उभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः।
इस समास में सभी पद प्रधान होते हैं और दो या दो से अधिक संज्ञा शब्द विग्रह की दशा में ‘च’ शब्द से जुड़े रहते है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु – विकल्पीय प्रश्न
१. ‘वाणहतः’ में समास है
(अ) अव्ययीभाव,
(ब) द्विगु,
(स) बहुब्रीहि,
(द) तत्पुरुष।
२. ‘पितरौ’ में समास है-
(अ) द्विगु,
(ब) द्वन्द्व,
(स) तत्पुरुष,
(द) कर्मधारय।
३. ‘राजपुरुषः’ का विग्रह होगा
(अ) राजा पुरुषः,
(ब) राज पुरुषः
(स) राज्ञः पुरुषः,
(द) राज्ञि पुरुषः।
४. ‘अनादरः’ का विग्रह होगा
(अ) न आदरः,
(ब) अन आदरः,
(स), अ नादरः,
(द) अना दरः
५. जिस समास में पूर्व पद संख्या वाचक हो, उसे कहते हैं
(अ) द्वन्द्व,
(ब) द्विगु,
(स) अव्ययीभाव,
(द) कर्मधारय।
उत्तर –
१. → (द),
२. → (ब),
३. → (स),
४. → (अ),
५. → (ब)
रिक्त स्थान पूर्ति
१. वृक्षपतितः = ………………………….।
२. विद्यालयः = ………………………….।
३. घनश्यामः = ………………………….।
४. रामलक्ष्मणौ = ………………………….।
५. पीताम्बरः = ………………………….।
उत्तर –
१. वृक्षात् पतितः,
२. विद्यायाः आलयः,
३. घन इव श्यामः,
४. रामश्च लक्ष्मणश्च,
५. पीतम् अम्बरं यस्य सः।
सत्य/असत्य
१. बाणहतः में अव्ययीभाव समास है।
२. पञ्चपात्रम् में द्विगु समास है।
३. महापुरुषः में कर्मधारय समास है।
४. असत्यम् में द्विगु समास है।
५. पितरौ में तत्पुरुष समास है।
उत्तर –
१. असत्य,
२. सत्य,
३. सत्य,
४. असत्य,
५. असत्य
♦ जोड़ी मिलाइए
उत्तर-
१. → (v)
२. → (i)
३. → (ii)
४. → (iii)
५. → (iv)