MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 6 यशः शरीरम्
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 6 यशः शरीरम्
यशः शरीरम् पाठ का सार
प्रस्तुत पाठ में यश की महत्ता को एक कथा के माध्यम से सिद्ध किया गया है। इस पाठ में दो विशेष पात्रो का वर्णन है जिनमें से एक धनी होते हुए भी जीवित होने पर अपयश के कारण मृत के समान व घृणित है, तथा दूसरा जीवित न होने पर भी यश रूप शरीर से लोगों के हृदयों में जीवित है। अतः मनुष्य को सदा यश-प्राप्ति के लिए अच्छे कार्य करने चाहिएं।
यशः शरीरम् पाठ का अनुवाद
1. गङ्गातीरे मार्कण्डेयः नाम कश्चन मुनिः वसति स्म। तस्य गुरुकुले बहवः शिष्याः आसन्। वासुदेवः तस्य प्रिय शिष्यः। तस्य द्वादशवर्षात्मकम् अध्ययनं यदा समाप्तं तदा गुरुः तम् आहूय अवदत्-“शिष्य! अधुना भवान् सर्वविद्यापारङ्गतः अस्ति। अतः इतः परं स्वग्रामं गन्तुम् अर्हति भवान्। गमनात् पूर्वं भवता द्वारकापुरस्य देवराजस्य गृहं दृष्ट्वा आगन्तव्यम्। किन्तु गृहस्यान्तः न गन्तव्यम्” इति।।
वासुदेवः तस्मिन् एव दिने द्वारकापुरं प्रति प्रस्थितवान्। दिनत्रयात्मकस्य प्रयाणस्य अनन्तरं तं ग्रामं प्राप्य सः ग्रामद्वारे स्थितान् जनान् अपृच्छत्-“देवराजस्य गृहं कुत्र?” इति। “वृथा किमर्थं गम्यते तत्र?” इति उपेक्षया वदन्तः ते देवराजगृहस्थलं सूचितवन्तः। अग्रे गतः सः कूपात् जलम् उद्धरन्तीं महिला याचित्वा जलं प्राप्य तत् पिबन् ताम् अपृच्छत्-“देवराजगृहं कुत्र?” “तस्य पापिनः नाम किमर्थं मम पुरतः उच्चारयति भवान्?” इति वदन्ती सा महिला ततः निरगच्छत् एव।
शब्दार्था :
आहूय-बुलाकर-caling; सर्वविद्यापारङ्गतः-समस्त विद्याओं में निपुण-skilled in all types of learning; प्रस्थितवान्-गया-started, वृथा-व्यर्थ में-in vain, वदन्तः-बोलते हुए-speaking, उद्धरन्तीम्-निकालती हुई को-drawing.
अनुवाद :
गङ्गा के किनारे मार्कण्डेय नाम के कोई मुनि रहते थे। उनके गुरुकुल में बहुत सारे शिष्य थे। वासुदेव उनका प्रिय शिष्य था। उसका बारह वर्ष तक का अध्ययन जब समाप्त हुआ, तब गुरु ने उसको बुलाकर कहा-“शिष्य! अब आप समस्त विद्याओं में निपुण हो गए हो। इसलिए यहाँ से दूर अपने गाँव में जाने योग्य हो गए हो । जाने से पहले तुम्हारे द्वारा द्वारकापुर के देवराज के घर को देखकर आना होगा। पर घर के अन्दर मत जाना।”
वासुदेव उसी दिन ही द्वारकापुर की ओर चला गया। तीन दिन की यात्रा के बाद उस गाँव में पहुँचकर उस गाँव के द्वार पर खड़े लोगों से पूछा-“देवराज का घर कहाँ है?” “व्यर्थ में वहाँ क्यों जा रहे हो?” इस प्रकार गुस्से में बोलते हुए उन्होंने देवराज का घर बता दिया। आगे जाते हुए उसने कुएँ से जल निकालती हुई महिला से माँगकर जल लेकर व पीकर उससे पूछा-“देवराज का घर कहाँ है?” “उस पापी का नाम मेरे सामने क्यों बोला, आपने?” ऐसा कहते हुए वह महिला वहाँ से चली ही गई।
English :
Vasudev learnt all subjects. Directed by Guru Markandeya to locate the house of Devraj at Dwakrapur-went to the village and learnt that Devraj was an evil-minded person.
2. किञ्चिदग्रेगतः वासुदेवः कञ्चित् देवालयम् अपश्यत्। तत्र प्रसादत्वेन भोजनवितरणं प्रचलति स्म। नितरां बुभुक्षितः वासुदेवः जनानां पङ्क्तौ उपाविशत्। भोजनसमये स्वपार्श्वे उपविष्टवन्तं कञ्चित् जनम् अपृच्छत् वासुदेवः-“देवराजः किं धनिक?” इति। तदा सः पार्श्वस्थः जनः-“धिक् भवन्तम्। भोजनकाले तस्य पापिनः नाम स्मारितम्” इति वदन् भोजनं परित्यज्य उत्थितः एव। एतत् दृष्ट्वा परिवेषकाः वासुदेवाय अन्नं पायसादिकं न परिविष्टवन्तः एव। अपूर्णोदरः एव सः ततः उत्थितवान्।
शब्दार्था :
प्रसादत्वेन–प्रसाद के रूप में-as; नितराम्-बहुत अधिक-excessively, extremely; बुभुक्षितः-भूखा-hungry,स्वपार्श्वे अपने पास में-near him, उपविष्टवन्तः-बैठे हुए-sitting, धिक-धिक्कार है-fie, वदन-बोलते हुए-saying,परित्यज्य-छोड़कर-leaving, परिवेषकाः-खाना परोसने वाले-servers of food, पायसादिकम्-खीर इत्यादि-porridge etc, परिविष्टवन्तः-परोसा-served, अपूर्णोदरः-खाली पेट-empty bellied.
अनुवाद :
कुछ आगे जाने पर वासुदेव ने एक मन्दिर देखा। वहाँ प्रसाद के रूप में भोजन बँट रहा था। बहुत अधिक भूखा वासुदेव लोगों की पंक्ति में बैठ गया। भोजन के समय अपने पास में बैठे किसी व्यक्ति से वासुदेव ने पूछा-“देवराज क्या धनी है?’ तब पास में बैठा वह व्यक्ति बोला, “आपको धिक्कार है। भोजन के समय उस पापी का नाम याद किया।” ऐसा कहते हुए भोजन छोड़कर उठ ही गया। यह देखकर खाना परोसने वालों ने वासुदेव के लिए अन्न खीर आदि परोसा ही नहीं। खाली पेट ही वह वहाँ से उठ गया।
English :
Vasudev reached a temple-sat in the line to receive ‘Prasad’-asked somebody about Devraj-The fellow cursed him and stood up ‘Vasudev also remained hungry-Prasad was net served to him.”
3. दूरात् एव देवराजस्य गृहं दृष्ट्वा प्रत्यागतः सः दिनद्वयस्य अनन्तरं गुरुकुलं प्राप्तवान्। गुरुः तं पुनः अवदत्-‘रामनाथपुरं गत्वा रामदेवस्य गृहं ज्ञात्वा आगन्तव्यम्” इति। शिष्यः अनन्तरदिने एव रामनाथपुरं प्रति प्रस्थितवान्। मध्येमागं तेन सोमपुरं प्राप्तम्। तत्र स्वगृहस्य पुरतः उपविष्टां काञ्चित् मातरम् अवदत् सः-“अम्ब! किञ्चित् जल ददातु” इति।
जलं दत्वा माता अपृच्छत्-“भवता कुत्र गम्यते?” इति।
‘रामदेवस्य गृहं प्रति’ इति अवदत् वासुदेवः।
“अहो, प्रातः स्मरणीयः सः” इति उक्त्वा सा माता वासुदेवं सस्नेहम् अन्तः नीत्वा भोजनादिकं दत्वा सत्कृतवती। ततः निर्गतः वासुदेवः रामनाथपुरं प्राप्य ‘रामदेवस्य गृहं कुत्र?’ इति कञ्चित् अपृच्छत् । सः अपि सत्कृत्य स्वयम् आगत्य रामदेवगृहं प्रादर्शयत् । दूरात् एव तत् दृष्टवा वासुदेवः गुरुकुलं प्रत्यगच्छत्।
शब्दार्था :
प्रत्यागतः-लौट आया-returned, ज्ञात्वा-जानकर-knowing; मध्येमार्गम्-रास्ते के बीच में-on the way; पुरतः-सामने-in front of; नीत्वा-ले जाकर-taking; सत्कृत्य-सत्कार करके-honouring, welcoming, प्रादर्शयत्-दिखाया-showed.
अनुवाद :
दूर से ही देवराज का घर देखकर वह लौट आया। वह दो दिन बाद गुरुकुल पहुँचा। गुरु ने उसे फिर कहा-रामनाथपुर जाकर रामदेव का घर जानकर आओ।” शिष्य दूसरे दिन ही रामनाथपुर की ओर चला गया। रास्ते के बीच में वह सोमपुर पहुंचा। वह अपने घर के सामने बैठी हुई किसी माता (वृद्ध स्त्री) से बोला-“माता! थोड़ा जल दे दो।”
जल देकर माता ने पूछा-“आप कहाँ जा रहे हो?
“रामदेव के घर की ओर।” वासुदेव बोला।
“वाह, वह प्रातः याद करने योग्य है।” ऐसा कहकर उस माता ने वासुदेव को प्रेम से अन्दर ले जाकर भोजन आदि देकर सत्कार किया ! वहाँ से निकल कर वासुदेव रामनाथ पुर पहुँचकर ‘रामदेव का घर कहाँ है?” किसी से पूछा। उसने भी सत्कार करके स्वयं आकर रामदेव का घर दिखाया। दूर से ही वह देखकर वासुदेव गुरुकुल लौट आया।
English :
Vasudev was again directed to learn about Ramdev’s house at Ramnathpur. Vasudev left for the place-Reached Sompur on the way. Asked a woman about Ramdev. She welcomed him-Reached Ramnathpur-Somebody greeted him and showed Ramdev’s house-Viewing the house from a distance Vasudev returned to the Gurukul.
5. दिनद्वयस्य अनन्तरं गुरुः अकथयत्-‘वासुदेव! भवान् इतः स्वगृह गन्तुम् अर्हति। गमनात् पूर्वं भवता देवराज-रामदेवयोः पूर्णः परिचयः प्राप्तव्यः” इति। एतम् आदेशं पालयन् वासुदेवः पुनरपि द्वारकापुरं प्राप्य देवराजस्य गृहम् अगच्छत्। वैभवोपेतं गृहं तत्। द्वाररक्षकः तस्य प्रवेशं निषिद्धवान्। बहुधा प्रार्थना यदा कृता तदा सः अन्तः गत्वा देवराजं वासुदेवागमनं निवेदितवान्। कोपेन एव बहिः आगत्य देवराजः-“किं धनं याचितुम् आगतं भवता? मया कस्मैचित् किमपि न दीयते । मम विश्रान्तिः नाशिता भवता। निर्गम्यताम् इतः” इति तर्जयित्वा तं प्रेषितवान्।
शब्दार्था :
वैभवोपेतम्-वैभव, विशालता से युक्त को-grand, splendid, निषिद्धवान्-रोका-refused, checked; निर्गम्यताम्-निकल जाओ-go away, तर्जयित्वा-डाँटकर-scolding, snubbing.
अनुवाद :
दो दिन बाद गुरु ने कहा-“वासुदेव! तुम यहाँ से अपने घर जाने योग्य हो.। जाने से पहले तुम देवराज व रामदेव का पूरा परिचय प्राप्त करना।”
इस आदेश को पालते हुए वासुदेव फिर द्वारकापुर पहुँचकर देवराज के घर गया। उसका घर विशालता से युक्त था। द्वारपाल ने उसे अन्दर जाने से रोका। बहुत प्रार्थना जब की तब उसने अन्दर जाकर देवराज को वासुदेव के आने की बात बताई। क्रोध में ही बाहर आकर देवराज ने-“क्या तुम धन माँगने आए हो? मैं किसी को कुछ नहीं दूंगा। मेरे आराम को भंग कर दिया तुमने। यहाँ से चले जाओ।” डाँटकर उसे निकाल (भेज) दिया।
English :
Guru asked Vasudev to gather detailed information about Devraj and Ramdev. Vasudev was not allowed to enter Devraj’s building. Devraj came out-called him a beggar-turned him awaysnubbed him also for robbing him of his rest.
7. ततः वासुदेवः रामनाथपुरं प्राप्य रामदेवस्य गृहम् अगच्छत्। पर्णेः निर्मितं प्राचीनं गृहं तत्। कश्चन् युवकः तं सादरं स्वागतीकृत्य पानीयभोजनादिभिः तं सत्कृत्य विश्रान्त्यर्थं व्यवस्थाम् अकरोत्। विश्रान्तेः अनन्तरं सः ‘अहं रामदेवस्य पुत्रः’ इति स्वपरिचयम् उक्त्वा आगमनकारणम् अपृच्छत्। यदा वासुदेवः रामदेवस्य दर्शनेच्छा प्राकटयत् तदा पुत्रः एक भावचित्रं प्रदर्श्य-“मम पिता विंशति वर्षेभ्यः पूर्वम् एव दिवं गतः। इदानीं तस्य स्मृतिमात्रम् अस्ति लोके” इति विषादेन अवदत्। रामदेवः ग्रामस्य विकासाय देवालय-चिकित्सालय-विद्यालय-ग्रन्थालय-धर्मशालोद्यानानि यानि कारितवान तत्सर्वम अपश्यत् वासुदेवः। ग्रामे सर्वे रामदेवं सगौरवं स्मरन्ति स्म।
‘देवराजे जीवति सति अपि कोऽपि तस्मिन् आदरवान् न । रामदेवः तु विंशतिवर्षेभ्यः पूर्वम् एव दिवं गतः चेदपि जनाः प्रतिदिनं तं स्मरन्ति । यः समाजहितं चिन्तयति सः मृतोऽपि जीवति। यः स्वार्धमात्रं चिन्तयति सः तु जीवन्नपि मृतः एव’ इति अवगतवान् वासुदेवःमया रामदेवस्य जीवनम् एव अनुसरणीयम्’ इति सङ्कल्प्य स्वग्रामम् अगच्छत्।
शब्दार्था :
पर्णैः-पत्तों से-leaves, दर्शनेच्छाम्-देखने की इच्छा को-adesire to see, भावचित्रम्-छायाचित्र को-photo, प्रदर्श्य-दिखाकर-showing, विषादेन-दुःख से-with grief.
अनुवाद :
तब वासुदेव रामनाथपुर पहुँचकर रामदेव के घर गया। वह पत्तों का बना पुराना घर था। किसी युवक ने उसका आदर सहित स्वागत कर, पानी भोजन आदि से उसका सत्कार कर आराम करने की व्यवस्था की। आराम करने के बाद उसने, “मैं रामदेव का पुत्र हूँ।” ऐसा अपना परिचय देकर आने का कारण पूछा। जब वसुदेव ने रामदेव को देखने की इच्छा प्रकट की तब पुत्र ने एक छायाचित्र दिखाकर– “मेरे पिता बीस वर्ष पहले ही स्वर्ग चले गए। अब इस संसार में उनकी केवल स्मृति ही रह गई है।” दुःख से कहा। रामदेव ने गाँव के विकास के लिए जो मंदिर-चिकित्सालयविद्यालय-ग्रन्थालय-धर्मशाला, उद्यान आदि बनवाये, वह सब वासुदेव ने देखे। गाँव में रामदेव को गर्व से याद करते थे।
“देवराज जीवित होते हुए भी कोई उसका आदर नहीं करता। रामदेव तो बीस वर्ष पूर्व ही स्वर्ग चले गए, फिर भी लोग उन्हें प्रतिदिन याद करते हैं। जो समाज के हित की सोचता है, वह मरकर भी जीवित है। जो स्वार्थ की ही सोचता है, वह तो जीवित होते हुए भी मृत ही है।” यह जानकर वासुदेव, “मेरे द्वारा रामदेव के जीवन का ही अनुसरण करना चाहिए,” यह सङ्कल्प कर अपने गाँव को चला गया।
English :
Vasudev then reached Ramnathpur. Ramdev’s son greeted him-served food and drink Ramdev had built a temple, a dispensary, a school, a library and an inn before his death. All the villagers remembered him with honour, Vasudev learnt the difference between a selfish and egoistic richman and a poor social workerVasudev resolved to follow Ramdev’s path of social service.
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Durva Chapter 6 यशः शरीरम् (कथा) (सङ्कलिता)
MP Board Class 10th Sanskrit Chapter 6 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक पद में उत्तर लिखिए-)।
(क) मार्कण्डेयः नाम ऋषिः कुत्र वसति स्म? (मार्कण्डेय ऋषि कहाँ रहते थे?)
उत्तर:
गङ्गातीरे (गङ्गा के किनारे)
(ख) वासुदेवः कस्य प्रियशिष्यः आसीत्? (वासुदेव किसका प्रिय शिष्य था?)
उत्तर:
मार्कण्डेयस्य (मार्कण्डेय का)।
(ग) वासुदेवः प्रथमं कस्य गृहं प्रति प्रस्थितः? (वासुदेव पहले किसके घर गया?)
उत्तर:
देवराजस्य (देवराज के)
(घ) रामदेवः कस्मिन् ग्रामे वसति स्म? (रामदेव किस गाँव में रहता था?)
उत्तर:
रामनाथपुरे (रामनाथ पुर में)
(ङ) जनाः प्रतिदिनं कं स्मरन्ति स्म? (लोग प्रतिदिन किसको याद करते थे?)
उत्तर:
रामदेवम् (रामदेव को)
प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत- (एक वाक्य में उत्तर लिखिए-)
(क) कः मृतोऽपि जीवति? (कौन मरकर भी जीवित है?)
उत्तर:
यः समाजहितं चिन्तयति सः मृतोऽपि जीवति।।
(जो समाज के हित की सोचता है, वह मरकर भी जीवित है।)
(ख) कः जीवन्नपि मृतः एव? (कौन जीते हुए भी मृत है?)
उत्तर:
यः स्वार्थमात्रं चिन्तयति सः जीवन्नपि मृतः एव।
(जो केवल अपने विषय में सोचता है, वह जीवित होकर भी मृत है।)
(ग) देवालये किं प्रचलति स्म? (मंदिर में क्या चल रहा था?)
उत्तर:
देवालये प्रसादत्वेन भोजनवितरणं प्रचलति स्म। (मंदिर में प्रसाद के रूप में भोजन बँट रहा था।)
(घ) जलं दत्वा माता किम् अपृच्छत? (जल देकर माता ने क्या पूछा?)
उत्तर:
जलं दत्वा माता अपृच्छत्-भवता कुत्र गम्यते?” इति। (जल देकर माता ने पूछा- “आप कहाँ जा रहे हैं?)
(ङ) भोजनपरिवेषकाः किं कृतवन्तः? (भोजन परोसने वालों ने क्या किया?)
उत्तर:
भोजनपरिवेषकाः वासुदेवाय अन्नं पायसादिकं न परिविष्टवन्तः। (भोजन परोसने वालों ने वासुदेव के लिए अन्न-खीर आदि नहीं परोसा।)
प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत-(नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए।)
(क) कोपेन देवराजः किम् उक्तवान् ? (क्रोध में देवराज ने त्म्या कहा?)
उत्तर:
कोपेन देवराजः उक्तवान्–“किं धनं याचयितुम् आगतं भवता? मया कस्मैचित् किमपि न दीयते। मम विश्रान्तिः नाशिता भवता। निर्गम्यताम इतः” इति।
(क्रोध में देवराज ने कहा-“क्या तुम धन माँगने आए हो? मैं किसी को कुछ नहीं दूंगा। मेरा आराम भंग कर दिया तुमने। चले जाओ यहाँ से।”)
(ख) पुत्रः वासुदेवं विषादेन किमुक्तवान् ? (पुत्र ने वासुदेव को दुख से क्या कहा?)
उत्तर:
पुत्रः वासुदेवं विषादेन उक्तवान्-“मम पिता विंशति वर्षेभ्यः पूर्वम् एव दिवं गतः। इदानीं लोके तस्य स्मृतिमात्रम् अस्ति।” इति।
(पुत्र ने वासुदेव को दुख से कहा-“मेरे पिता 20 वर्ष पहले ही स्वर्ग चले गए। अब संसार में उनकी केवल याद ही है।”)
(ग) यदा वासुदेवस्य अध्ययनं समाप्तं तदा गुरुः तमाहूय किमवदत्? (जब वासुदेव का अध्ययन समाप्त हो गया, तब गुरु ने उसे बुलाकर क्या कहा?)
उत्तर:
यदा वासुदेवस्य अध्ययनं समाप्तं तदा गुरुः तमाहूय अवदत्-“शिष्य! अधुना भवान सर्वविद्यापारङ्गतः अस्ति। अतः इतः परं स्वग्रामं गन्तुम् अर्हति भवान्। गमनात् पूर्वं भवता द्वारकापुरस्य देवराजस्य गृहं दृष्ट्वा आगन्तव्यम्। किन्तु गृहस्यान्तः न गन्तव्यम्’ इति।
(जब वासुदेव का अध्ययन समाप्त हुआ तब गुरु ने उसे बुलाकर कहा, शिष्य! अब तुम समस्त विद्याओं में निपुण हो। अब तुम यहाँ से अपने गाँव जाने योग्य हो। जाने से पूर्व तुम द्वारकापुर के देवराज के घर जाकर देखकर आओ। पर घर के अन्दर नहीं जाना।”)
प्रश्न 4.
प्रदत्तशब्दैः रिक्तस्थानानि पूयरत
(दिए गए शब्दों से रिक्त स्थान भरिए-)
(बहवः, भोजनम्, मध्येमार्गम्, रामदेवस्य, देवालयम्)
(क) तत्र प्रसादत्वेन ………………. प्रचलति स्म।
(ख) वासुदेवः कञ्चित्………………. अपश्यत।
(ग) मया……………….जीवनम् एव अनुसरणीयम्।
(घ) गुरुकुले……………….शिष्याः आसन्।
(ङ) …………….तेन सोमपुरं प्राप्तम्।
उत्तर:
(क) भोजनम्
(ख) देवालयम्
(ग) रामदेवस्य
(घ) बहवः
(ङ) मध्येमार्गम्।
प्रश्न 5.
यथायोग्यं योजयत-(उचित क्रम से मिलाइए-)
उत्तर:
(क) 3
(ख) 5
(ग) 4
(घ) 1
(ङ) 2
प्रश्न 6.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् “आम्” अशुद्धवाक्यानां समक्ष “न” इति लिखत
(शुद्ध वाक्यों के सामने ‘आम्’ और अशुद्ध वाक्यों के सामने ‘न’ लिखिए-)
(क) गुरुकुले बहवः शिष्याः आसन्।
(ख) मध्येमागं तेन रत्नपुर प्राप्तम्।।
(ग) ग्रामे सर्वे देवराजं सगौरवं स्मरन्ति स्म।
(घ) रामदेवः प्रातः स्मरणीयः आसीत्।
(ङ) रामदेवस्य गृहं वैभवोपेतम् आसीत्।
उत्तर:
(क) आम्
(ख) न
(ग) न
(घ) आम्
(ङ) न।।
प्रश्न 7.
अधोलिखितपदानां विभक्तिं वचनं च लिखत
(नीचे लिखे पदों की विभक्ति व वचन लिखिए।)
प्रश्न 8.
उदाहरणानुसारं पदानां प्रकृतिं प्रत्ययं च पृथक्कुरुत
(उदाहरणानुसार पदों की प्रकृति व प्रत्यय अलग करके लिखिए-)
(क) गन्तव्यम्
(ख) प्रस्थितवान्
(ग) प्राप्तवान्
(घ) उक्त्वा
(ङ) सत्कृत्व
(च) आगत्य
(छ) यात्विा
(ज) वदन्दः
उत्तर:
प्रश्न 9.
अधोलिखितशब्दानां पर्यायशब्दान् लिखत।
(नीचे लिखे शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए।)
(क) मुनिः
(ख) युक्कः
(ग) अम्ब
(घ) बुभुक्षितः।
उत्तर:
प्रश्न 10.
अधोलिखितवाक्यानां कथानुसारेण क्रमसंयोजनं कुरुत
(नीचे लिखे वाक्यों को कथा के अनुसार क्रम से लिखिए।)
(क) ततः वासुदेवः रामनाथपुरं प्राप्य रामदेवस्य गृहम् अगच्छत्।
(ख) गङ्गातीरे मार्कण्डेयः नाम कश्चन मुनिः वसति स्म।
(ग) मया रामदेवस्य जीवनम् एव अनुसरणीयम्
(घ) किञ्चिदने गतः वासुदेवः किञ्चित् देवालयम् अपश्यत्।
(ङ) शिष्यः अनन्तरं रामनाथपुरं प्रति प्रस्थितवान्।
(च) वासुदेवः तस्य प्रियशिष्यः आसीत्।
उत्तर:
(क) गङ्गातीरे मार्कण्डेयः नाम कश्चन मुनिः वसति स्म।
(ख) वासुदेवः तस्य प्रियशिष्यः आसीत्।
(ग) किञ्चिदग्रे गतः वासुदेवः किञ्चित् देवालयम् अपश्यत्।
(घ) शिष्यः अनन्तरं रामनाथपुरं प्रति प्रस्थितवान्।
(ङ) ततः वासुदेवः रामनाथपुरं प्राप्य रामदेवस्य गृहम् अगच्छत्।
(च) मया रामदेवस्य जीवनम् एव अनुसरणीयम्।
प्रश्न 11.
प्रदत्तं चित्रम् अवलम्ब्य पञ्चवाक्यानि रचयत।
(दिए गए चित्र को देखकर पाँच वाक्य बनाइए।)
उत्तर:
(क) अस्मिन् चित्रे द्वे स्त्रियौ स्तः।
(ख) ते वार्तालापं कुरुतः।
(ग) गवेषणेन बालकः पश्यति।
(घ) आकाशे वायुयानं गच्छति।।
(ङ) द्वे स्त्रियौ गृहात् बहिः तिष्ठतः।
योग्यताविस्तार –
संस्कृतसाहित्यस्य अन्याः कथाः अन्विष्य पठत।
(संस्कृत साहित्य की अन्य कथाएँ ढूँढ़कर पढ़ो।)
अन्ये ये महापुरुषाः यशः शरीरेण ख्याताः सन्ति तेषां जीवनवृत्तान्तं कथारूपेण लिखत।
(अन्य जो महापुरुष यशरूपी शरीर से प्रसिद्ध हैं, उनके जीवन-वृत्तान्त को कथा रूप में लिखो।)