MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 13 भारतीय प्रजातन्त्र की कार्यप्रणाली
MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 13 भारतीय प्रजातन्त्र की कार्यप्रणाली
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MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 13 भारतीय प्रजातन्त्र की कार्यप्रणाली
MP Board Class 10th Social Science Chapter 13 पाठान्त अभ्यास
MP Board Class 10th Social Science Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
सही विकल्प चुनकर लिखिए
प्रश्न 1.
मध्य प्रदेश की विधानसभा की सदस्य संख्या कितनी है ? (2009, 12)
(i) 320
(ii) 270
(iii) 250
(iv) 230
उत्तर:
(iv) 230
प्रश्न 2.
राज्य सभा के सदस्यों को नामजद करने का अधिकार किसे है ?
(i) राष्ट्रपति को
(ii) प्रधानमन्त्री को
(iii) राज्यपाल को
(iv) सर्वोच्च न्यायालय को।
उत्तर:
(i) राष्ट्रपति को
प्रश्न 3.
राज्य में अध्यादेश जारी करने का अधिकार इनमें से किसे है ?
(i) राज्यपाल
(ii) गृह मन्त्री
(iii) मुख्यमन्त्री
(iv) राष्ट्रपति
उत्तर:
(i) राज्यपाल
प्रश्न 4.
किसी राज्य का राज्यपाल किसका अनिवार्य अंग रहता है ?
(i) संसद
(ii) विधान सभा
(iii) न्यायपालिका
(iv) राज्य सभा।
उत्तर:
(ii) विधान सभा
MP Board Class 10th Social Science Chapter 13 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सर्वोच्च न्यायालय (उच्चतम न्यायालय) के न्यायाधीश किस आयु में सेवानिवृत्त होते हैं ? (2009, 11)
उत्तर:
सर्वाच्च न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर कार्य कर सकते हैं।
प्रश्न 2.
लोकसभा की सदस्य संख्या मध्य प्रदेश में कितनी है ?(2011)
उत्तर:
लोकसभा में मध्य प्रदेश से 19 सदस्य निर्वाचित होकर जाते हैं।
प्रश्न 3.
लोकसभा के अध्यक्ष का चुनाव कौन करता है ? (2013)
उत्तर:
लोकसभा सदस्य।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 13 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लोकसभा के सदस्य की योग्यताएँ लिखिए। (2009)
उत्तर:
लोकसभा सदस्य की योग्यताएँ – लोकसभा सदस्य के लिए निर्धारित योग्यताएँ निम्न प्रकार हैं –
- वह भारत का नागरिक हो।
- उसकी आयु 25 वर्ष या उससे अधिक हो।
- वह केन्द्र या प्रान्त सरकारों ने अधीन किसी लाभ के पद पर न हो।
- उसे किसी सक्षम न्यायालय में पागल या दिवालिया घोषित न किया हो।
- उसे संसद के किसी कानून द्वारा चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित न किया गया हो।
प्रश्न 2.
जिला पंचायत के कार्य लिखिए। (2009, 13)
उत्तर:
जिला पंचायत के कार्य-जिला पंचायत के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –
- जिले की आन्तरिक जनपद पंचायतों तथा ग्राम पंचायतों पर नियन्त्रण रखना तथा उनका मार्गदर्शन करना।
- जनपद पंचायत की योजनाओं का उचित ढंग से समन्वय करना।
- जिले की उन योजनाओं को जो दो अथवा अनेक जनपद पंचायतों के अन्तर्गत विचाराधीन हैं उन्हें व्यावहारिक रूप देना।
- प्रमुख प्रयोजनों के लिए पंचायतों द्वारा की गयी अनुदान की माँग को राज्य सरकार तक पहुँचाना।
- राज्य सरकार द्वारा दिए गए कार्यों को व्यावहारिक रूप देना।
- परिवार कल्याण, बाल-कल्याण तथा खेलकूद व विकास सम्बन्धी क्रियाकलापों में राज्य सरकारों को सलाह देना।
प्रश्न 3.
प्रधानमन्त्री के कार्य लिखिए। (2009, 13)
उत्तर:
प्रधानमन्त्री के प्रमुख कार्य अग्रलिखित हैं –
- प्रधानमन्त्री का सर्वप्रथम कार्य मन्त्रिपरिषद् का गठन करना होता है।
- मन्त्रियों के बीच विभागों का वितरण।
- मन्त्रिपरिषद् की बैठकों की अध्यक्षता करना।
- मन्त्रियों के विभागों तथा कार्यों की देख-भाल करना।
- प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति तथा मन्त्रिमण्डल के बीच कड़ी का काम करता है।
- विदेशों के साथ सम्बन्धों की स्थापना, सन्धियाँ तथा समझौते करना प्रधानमन्त्री का ही उत्तरदायित्व है।
- राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकारों का प्रयोग करना।
प्रश्न 4.
राज्यसभा के कार्य लिखिए। (2011)
उत्तर:
राज्यसभा के कार्य –
- राज्यसभा को लोकसभा के समान विधि निर्माण की शक्ति प्राप्त है।
- राज्यसभा के सदस्य प्रश्न पूछकर, सार्वजनिक महत्त्व के विषयों पर बहस करके मन्त्रिमण्डल पर नियन्त्रण रखते हैं।
- राज्यसभा के सदस्य राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं।
- राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति, उच्च न्यायपालिका तथा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के विरुद्ध महाभियोग लगाने तथा उन्हें हटाने का प्रस्ताव पारित करने का अधिकार ।
- राष्ट्रपति द्वारा जारी की गयी आपातकालीन उद्घोषणा का राज्यसभा द्वारा भी स्वीकृत किया जाना आवश्यक है।
प्रश्न 5.
राज्यपाल के चार कार्य लिखिए। (2010,11,15)
उत्तर:
राज्यपाल के कार्य-राज्यपाल के प्रमुख कार्य निमनलिखित हैं –
- राज्यपाल विधानसभा के बहुमत दल के नेता को मुख्यमन्त्री बनाता है।
- मुख्यमंत्री के परामर्श के आधार पर वह अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
- राज्य के महाधिवक्ता तथा राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष की नियुक्ति भी राज्यपाल करता है।
- विधानमण्डल द्वारा पारित कोई भी विधेयक राज्यपाल के हस्ताक्षर के बिना कानून का रूप नहीं ले सकता।
- राज्यपाल अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
- राज्यपाल राज्य विधानमण्डल के अधिवेशन बुलाता है और उनका सत्रावसान करता है।
- मुख्यमन्त्री के परामर्श से वह विधानसभा भंग भी कर सकता है।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 13 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
संघात्मक शासन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (2009, 16)
उत्तर:
संघात्मक शासन प्रणाली का आशय
शासन की वह प्रणाली जिसमें शासन की शक्ति संविधान द्वारा केन्द्रीय सरकार अर्थात् संघ की सरकार और प्रान्तीय अर्थात् राज्य सरकारों के मध्य विभाजित कर दी जाती है। दोनों सरकारों की शक्ति का स्रोत संविधान होता है। संविधान सर्वोच्च होता है। संविधान संशोधन की प्रक्रिया प्रायः कठोर होती है और न्यायपालिका की सर्वोच्चता अनिवार्य होती है। संविधान का लिखित एवं कठोर होना आवश्यक है। शासन की यह प्रणाली संघात्मक शासन प्रणाली होती है।
संविधान में भारत को ‘राज्यों का संघ’ कहा गया है। संघात्मक शासन के लक्षण भारतीय संविधान में मौजूद हैं। संघात्मक पद्धति में संघ और राज्य संविधान द्वारा उन्हें सौंपे गये अधिकारों (शक्तियों) का पालन अपनी-अपनी सीमा में करते हैं। भारतीय शासन प्रणाली के संघात्मक लक्षण निम्नलिखित हैं –
(1) लिखित तथा कठोर संविधान – भारत का संविधान लिखित एवं कठोर है। इस दृष्टि से भारत का संविधान संघात्मक है।
(2) शक्तियों का विभाजन – भारत में केन्द्र व राज्यों के बीच संविधान द्वारा शक्तियों का विभाजन स्पष्ट रूप से किया गया है। भारत में केन्द्र तथा राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों के अन्तर्गत किया गया है –
- संघ सूची
- राज्य सूची
- समवर्ती सूची।
(3) न्यायपालिका की स्वतन्त्रता – संघात्मक शासन के लिए न्यायपालिका का स्वतन्त्र होना भी अनिवार्य है। भारत में सर्वोच्च न्यायालय इस आवश्यकता की पूर्ति करता है। संविधान की रक्षा का भार इसी पर है।
(4) दुहरा प्रतिनिधित्व – दोहरा प्रतिनिधित्व संघीय शासन की प्रमुख विशेषता है। भारत में संसद का निम्न सदन (लोकसभा) नागरिकों का प्रतिनिधित्व करता है और उच्च सदन (राज्य सभा) राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है। अतः भारत में संघीय सरकार की व्यवस्था की गयी है।
(5) दोहरी सरकारें – भारत में संघ और राज्य दोनों में सरकार होती है। संघ में कार्यपालिका होती है जिसमें राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में मन्त्रिपरिषद् है तथा जनप्रतिनिधियों की व्यवस्थापिका (संसद) है। इसी प्रकार राज्यों में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका है जिसमें राज्यपाल और मुख्यमन्त्री के नेतृत्व में मन्त्रिपरिषद् तथा जनप्रतिनिधियों की विधानसभा है। यह व्यवस्था दोहरी शासन प्रणाली कहलाती है।
प्रश्न 2.
केन्द्र व राज्य सरकार के मध्य प्रशासनिक शक्तियों का विभाजन किस प्रकार किया गया है ? समझाइए।
उत्तर:
केन्द्र व राज्य सरकार के मध्य प्रशासनिक शक्तियों का विभाजन
भारतीय संघात्मक प्रणाली में संघात्मक व्यवस्था के अनेक लक्षण हैं फिर भी उसमें कुछ लक्षण संघ को शक्तिशाली बनाते हैं। शक्ति विभाजन से यह स्पष्ट है जहाँ महत्त्वपूर्ण विषयों पर तो उसे शक्तियाँ दी गई हैं, साथ ही समवर्ती सूची के विषयों पर भी उसके द्वारा बनाये गये कानूनों की प्रधानता दी जाती है। इसके अतिरिक्त जिन विषयों का उल्लेख इन सूचियों में नहीं किया गया है वे सब विषय संघ सरकार को सौंपे गये हैं। संघ की ये शक्तियाँ अवशिष्ट शक्तियों के नाम से जानी जाती हैं।
संविधान के कुछ ऐसे प्रावधान हैं जिनके द्वारा संघ सरकार राज्यों पर नियन्त्रण एवं प्रभाव रखती है।
(1) राज्य सरकारों को निर्देश – राष्ट्रीय महत्त्व के विषयों में केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को निर्देश देती है। इन निर्देशों का पालन राज्यों द्वारा किया जाता है। राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेशों से राजनयिक सम्पर्क आदि इस श्रेणी में आते हैं।
(2) संघीय कार्यों को राज्य सरकारों को सौंपना – संघीय कार्यपालिका कुछ कार्य राज्य सरकारों को सौंप सकती है। किसी अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि या समझौते के पालन के लिए संघ राज्यों को आदेश दे सकता है। रेलवे मार्गों की सुरक्षा आदि विषयों से सम्बन्धित ऐसे ही आदेश दिए जा सकते हैं।
(3) आर्थिक सहायता – राज्य सरकारों को जो राशि करों से प्राप्त होती है वह अपर्याप्त होती है। आय के महत्वपूर्ण साधन केन्द्र के पास हैं। केन्द्र सरकार राज्यों को समय-समय पर अनुदान देती है।
(4) संसद के अधिकार – संसद को यह अधिकार है कि वह कानून बनाकर एक राज्य को विभाजित कर दे या दो राज्यों या उनके भागों को मिलाकर एक नये राज्य का गठन कर दे। इस प्रकार किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ाने, घटाने उसकी सीमाओं में परिवर्तन करने का अधिकार संसद को प्राप्त है।
(5) अखिल भारतीय सेवाएँ – भारत में कुछ सेवाएँ अखिल भारतीय सेवाएँ हैं; जैसे-आई. ए. एस. (भारतीय प्रशासनिक सेवा), आई. पी. एस. (भारतीय पुलिस सेवा) आदि इन सेवाओं में चयन संघीय लोक सेवा आयोग करता है। इन पदों की सेवा शर्तों का निर्धारण केन्द्रीय सरकार करती है।
(6) राज्य सची में वर्णित विषयों पर कानून बनाना – राज्यों को यह अधिकार है कि वह राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सके तथा प्रशासन कर सके, परन्तु राज्यों का यह अधिकार अन्तिम नहीं है। निम्न परिस्थितियों में संसद, राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है
- राज्यसभा द्वारा किसी प्रान्तीय सूची के विषय को राष्ट्रीय महत्व का विषय घोषित करने पर।
- राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा किए जाने पर।
- राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने पर राष्ट्रपति के द्वारा राज्य की विधायनी शक्ति संसद को सौंपने पर।
- यदि राज्य विधानमण्डल स्वयं इस आशय का प्रस्ताव पारित कर दे कि किसी विषय विशेष पर संसद कानून बनाए।
भारतीय संविधान के उपर्युक्त लक्षण यह स्पष्ट करते हैं कि संघ सरकार अधिक शक्तिशाली है।
प्रश्न 3.
संसद में विधेयक पारित होने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। (2018)
अथवा
साधारण विधेयक और वित्त विधेयक में क्या अन्तर है ? (2012)
[संकेत – ‘साधारण विधेयक’ शीर्षक देखें।]
उत्तर:
कानून बनाने के लिए विधेयक संसद में प्रस्तुत किए जाते हैं। विधेयक दो प्रकार के होते हैं I. साधारण विधेयक, II. धन विधेयक।
I. साधारण विधेयक-साधारण विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किए जा सकते हैं किन्तु वित्त विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति से लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
विधेयक पारित होने की प्रक्रिया
संसद में एक साधारण विधेयक को पास होने के लिए निम्नलिखित अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है –
(1) प्रथम वाचन या विधेयक का प्रस्तुतीकरण – संसद का कोई भी सदस्य एक माह की पूर्व सूचना पर लोकसभा/राज्यसभा अध्यक्ष की अनुमति मिलने पर विधेयक को प्रस्तुत करता है। प्रथम वाचन के समय केवल शीर्षक को पढ़कर सुनाया जाता है। साधारणतः प्रथम वाचन पर कोई वाद-विवाद नहीं होता अर्थात् विधेयक का प्रस्तुतीकरण प्रथम वाचन है।
(2) दूसरा वाचन – दूसरा वाचन शुरू होने के पूर्व विधेयक की प्रतियाँ सभी सदस्यों को वितरित की जाती हैं। इस स्तर पर विधेयक के प्रत्येक अनुच्छेद पर विस्तार से विचार नहीं होता केवल मूल अवधारणा पर विचार होता है। इस अवसर पर कोई संशोधन भी प्रस्तुत नहीं किया जाता। यदि आवश्यक समझा जाता है तो विधेयक को संयुक्त प्रवर समिति को भेजा जाता है।
(3) समिति स्तर – सदन में दूसरे वाचन में पास होने के पश्चात् बिल को विस्तृत विचार-विमर्श के लिए बिल से सम्बन्धित समिति के पास भेज दिया जाता है। बिल पर विचार करने के पश्चात् समिति अपनी रिपोर्ट तैयार करती है, जो सदन के पास भेज दी जाती है।
(4) प्रतिवेदन स्तर – समिति प्रतिवेदन तथा समिति द्वारा विधेयक में जो संशोधन किया जाता है उसकी प्रतियाँ सदन के सदस्यों को दी जाती हैं। सदन में विधेयक पर चर्चा होती है। सदस्य अपनी ओर से संशोधन प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकते हैं। संशोधन से सम्बन्धित प्रत्येक धारा पर विचार-विमर्श तथा वाद-विवाद होता है। अन्त में विधेयक पर मतदान होता है। यदि मतदान उपरान्त विधेयक को स्वीकार कर लिया जाता है तो यह चरण पूर्ण हो जाता है।
(5) तृतीय वाचन – प्रतिवेदन स्तर के उपरान्त विधेयक पारित होने की व्यवस्था अन्तिम अवस्था या तृतीय वाचन कहलाता है। उस स्तर पर विधेयक की प्रत्येक धारा पर विचार न होकर मूल भावना पर विचार होता है। इस अवस्था में विधेयक में कोई परिवर्तन नहीं होता। यदि विधेयक को सदन पारित कर देता है तो सदन के अध्यक्ष या सभापति के हस्ताक्षर से विधेयक को प्रमाणित कर उसे दूसरे सदन में भेज दिया जाता है।
(6) विधेयक का दूसरे सदन में जाना – किसी भी एक सदन में जब विधेयक स्वीकृत हो जाता है तो उसे दूसरे सदन में भेजा जाता है। दूसरे सदन में विधेयक उपर्युक्त प्रक्रिया से ही गुजरता है।
(7) राष्ट्रपति की स्वीकृति – संसद के दोनों सदनों में जब विधेयक पारित हो जाता है तब उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु भेजा जाता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति के उपरान्त वह विधेयक कानून बन जाता है, तब उसे सरकारी गजट में प्रकाशित कर दिया जाता है।
II.धन विधेयक – आय-व्यय से सम्बन्धित सभी विधेयक धन विधेयक कहे जाते हैं। व्यवहार में केवल मन्त्री ही लोकसभा में धन विधेयक प्रस्तुत करते हैं। धन विधेयक सर्वप्रथम लोकसभा में प्रस्तुत किये जाते हैं। लोकसभा द्वारा पारित होने पर धन विधेयक राज्यसभा में प्रस्तुत किये जाते हैं। राज्यसभा को 14 दिन के अन्दर धन विधेयक पर अपना विचार प्रकट करने का अधिकार होता है। यदि राज्यसभा इस अवधि में अपना विचार प्रस्तुत नहीं करती तो वह धन विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित मान लिया जाता है और उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर किये जाने पर कानून बन जाता है।
प्रश्न 4.
राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकारों का वर्णन कीजिए। (2010, 14)
अथवा
राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों का वर्णन कीजिए। (2009)
उत्तर:
राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकार
संकट का सामना करने के लिए राष्ट्रपति को संकटकालीन अधिकार दिये गये हैं। संकटकाल की घोषणा निम्नलिखित परिस्थितियों में की जा सकती है –
(1) देश में बाह्य आक्रमण, देश में होने वाले सशस्त्र विद्रोह, राज्यों में संवैधानिक व्यवस्था विफल होने पर या वित्तीय संकट आने पर राष्ट्रपति आपातकाल लागू कर सकते हैं। मन्त्रिमण्डल की सलाह पर ही राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं-ऐसी किसी भी घोषणा पर दो माह के भीतर संसद के दोनों सदनों की पुष्टि आवश्यक है। इस अवस्था में संसद को सम्पूर्ण भारत या उसके किसी भाग के लिए विधि निर्माण का अधिकार प्राप्त हो जाता है। संघ सरकार ऐसी स्थिति में राज्य सरकारों को आवश्यक आदेश दे सकती है।
(2) राज्यपाल के प्रतिवेदन से या अन्य तरीके से राष्ट्रपति को यदि विश्वास हो जाता है कि किसी राज्य का प्रशासन, संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चल पा रहा है, तब राष्ट्रपति केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल की स्वीकृति से राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकते हैं। ऐसी अधिसूचना पर दो माह के भीतर संसद के दोनों सदनों की पुष्टि आवश्यक है। घोषणा अवधि में सम्बन्धित राज्य का सम्पूर्ण या आंशिक शासन राष्ट्रपति के हाथ में आ जाता है। राज्य के शासन संचालन का अधिकार वह राज्यपाल को सौंप सकता है। इस अवधि में प्रान्तों की विधि निर्माण की शक्ति संसद को प्राप्त हो जाती है। इस अवधि में राज्यपाल उच्च न्यायालयों की शक्ति को छोड़कर राज्य की सम्पूर्ण प्रशासकीय शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।
(3) जब राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाता है कि देश में गम्भीर आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है तो वह आर्थिक आपातकाल लागू कर सकता है।
प्रश्न 5.
मन्त्रिपरिषद के कार्यों का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर:
मन्त्रिपरिषद् के कार्य
सर जॉन मेरिएट का कहना है, “मन्त्रिपरिषद् वह धुरी है जिस पर प्रशासन का चक्र घूमता है।” मन्त्रिपरिषद् के कार्यों की विवेचना हम निम्न प्रकार कर सकते हैं –
- नीति निर्धारित करना – देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, वैदेशिक आदि समस्याओं का हल करने के लिए मन्त्रिपरिषद् समस्त पहलुओं पर विचार करके नीति निर्धारित करती है।
- नियुक्ति सम्बन्धी कार्य – देश के भीतर एवं बाह्य महत्त्वपूर्ण पदों पर की जाने वाली महत्त्वपूर्ण नियुक्तियाँ; जैसे-राजदूत, राज्यपाल, विभिन्न आयोगों के सदस्य एवं अध्यक्ष, महान्यायवादी आदि की नियुक्ति मन्त्रिमण्डल द्वारा की जाती है।
- विधायी कार्य – यद्यपि कानून बनाने का कार्य संसद का है, लेकिन हमारे देश में संसदीय प्रणाली है। इसलिए मन्त्रिपरिषद् तथा संसद का घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है। संसद में कानून बनाने के लिए जितने विधेयक प्रस्तुत किये जाते हैं, उनमें लगभग सभी का प्रारूप मन्त्रिपरिषद् तैयार करता है।
- विदेशों से सम्बन्धित कार्य – विदेश नीति का निर्धारण मन्त्रिपरिषद करता है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सन्धियाँ तथा समझौते करना, दूसरे राष्ट्रों के साथ राजनयिक सम्बन्धों की स्थापना करना, उनको मान्यता देने आदि का कार्य करता है। युद्ध तथा शान्ति का निर्णय करने का कार्य भी मन्त्रिपरिषद् का ही है।
- वित्त सम्बन्धी कार्य – देश के आय-व्यय पर मन्त्रिमण्डल का नियन्त्रण रहता है। वित्तमन्त्री बजट तैयार करता है, मन्त्रिमण्डल में प्रस्तुत करता है। मन्त्रिमण्डल की स्वीकृति के बाद उसे सदन में प्रस्तुत करता है। यदि बजट को लोकसभा स्वीकृति नहीं देती तो सम्पूर्ण मन्त्रिमण्डल को त्यागपत्र देना होता है।
- राष्ट्रपति को परामर्श – मन्त्रिपरिषद् समय-समय पर राष्ट्रपति को परामर्श देता है। राष्ट्रपति मन्त्रिमण्डल की सलाह को मानने के लिए बाध्य है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि मन्त्रिमण्डल ही देश की वास्तविक कार्यपालिका है।
प्रश्न 6.
सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों का वर्णन कीजिए। (2018)
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ
भारत के सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ निम्नानुसार हैं –
(1) प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार-ऐसे विवाद जो देश के अन्य न्यायालयों में नहीं जाते केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही प्रस्तुत होते हैं।
(i) राज्यों के मध्य विवाद
- जब केन्द्रीय सरकार तथा एक राज्य या अधिक राज्यों के मध्य विवाद हो।
- जिस विवाद में एक ओर केन्द्रीय सरकार तथा दूसरी ओर एक या कुछ राज्य हों। केन्द्रीय सरकार तथा एक राज्य या अधिक राज्यों के मध्य विवाद हो।
- यदि विवाद दो राज्यों के मध्य हो।
(ii) मौलिक अधिकारों से सम्बन्धित विवाद
नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय को समुचित कार्यवाही करने की शक्ति प्राप्त है।
(2) अपीलीय क्षेत्राधिकार – सर्वोच्च न्यायालय भारत का अन्तिम अपीलीय न्यायालय है। सर्वोच्च न्यायालय के अपील सम्बन्धी क्षेत्राधिकार को तीन भागों में बाँटा जा सकता है
- संवैधानिक अपील – यदि किसी मामले में संविधान की व्याख्या का प्रश्न निहित है, तो उसकी अपील सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकती है।
- दीवानी अपीलें – सर्वोच्च न्यायालय में उस दीवानी मुकदमे की अपील की जा सकती है। जब वही उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दे कि मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय में अपील के योग्य है।
- फौजदारी की अपीलें – सर्वोच्च न्यायालय में निम्नलिखित फौजदारी की अपीलें की जा सकती हैं
(क) यदि उच्च न्यायालय ने निम्न न्यायालय के निर्णय को बदलकर किसी व्यक्ति को मृत्यु-दण्ड, आजन्म कारावास या 10 वर्ष का कारावास का दण्ड दिया हो।
(ख) यदि उच्च न्यायालय इस प्रकार का प्रमाणपत्र दे दे कि यह मामला उच्चतम न्यायालय में अपील करने योग्य है।
(ग) यदि उच्च न्यायालय ने किसी मुकदमे को अपने पास मँगाकर किसी व्यक्ति को दण्ड दिया हो।
(3) परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार-संविधान की धारा 143 के अनुसार यदि राष्ट्रपति किसी संवैधानिक या कानूनी प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श लेना चाहे तो राष्ट्रपति को परामर्श दे सकता है।
(4) न्यायिक पुनरावलोकन सम्बन्धी क्षेत्राधिकार-सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक पुनर्निरीक्षण का अधिकार भी प्राप्त है। इस अधिकार के प्रयोग से वह संसद या राज्य विधान-मण्डल द्वारा पारित किये गये किसी भी ऐसे कानून को अवैध घोषित कर सकता है जो संविधान के विरुद्ध हो। संविधान की व्याख्या करने का अन्तिम अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के पास है। इस प्रकार संघीय शासन व्यवस्था में सर्वोच्च न्यायालय की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
(5) अभिलेख न्यायालय-उच्चतम न्यायालय देश का सबसे बड़ा न्यायालय है। यह अभिलेख न्यायालय के रूप में कार्य करता है। इसका अर्थ यह है कि इसके निर्णयों का रिकॉर्ड रखा जाता है तथा अन्य वैसे मुकदमे आने पर उनका हवाला दिया जाता है। अभिलेख न्यायालय के दो अर्थ हैं –
- इस न्यायालय के निर्णय सब जगह साक्षी के रूप में स्वीकार किये जाएँगे और इन्हें भी किसी भी न्यायालय में प्रस्तुत किये जाने पर उनकी प्रामाणिकता के विषय में प्रश्न नहीं उठाया जाएगा।
- इस न्यायालय के द्वारा ‘न्यायालय अवमानना’ के लिए किसी भी प्रकार का दण्ड दिया जा सकता है।
(6) अन्य कार्य-सर्वोच्च न्यायालय उपरोक्त अधिकारों के अतिरिक्त निम्न कार्य भी करता है –
- अपने अधीनस्थ न्यायालयों का निरीक्षण एवं जाँच।
- अपने तथा अपने अधीनस्थ कर्मचारियों व अधिकारियों की सेवा शर्तों का निर्धारण।
- न्यायालय की अवमानना करने वाले किसी भी व्यक्ति को दण्डित करने की शक्ति।
सर्वोच्च न्यायालय के कार्य एवं व्यवहार से हमारे देश में लोकतन्त्र की जड़ें मजबूत हुई हैं तथा नागरिकों के मौलिक अधिकार सुरक्षित हुए हैं।
प्रश्न 7.
पंचायती राज व्यवस्था को समझाते हुए स्थानीय संस्थाओं के कार्यों का वर्णन कीजिए। (2017)
उत्तर:
पंचायती राज्य व्यवस्था
भारत के समस्त ग्रामीण प्रदेशों में सफाई व्यवस्था, प्रकाश व्यवस्था, जल व्यवस्था तथा स्वास्थ्य सेवाओं आदि की व्यवस्था करने के लिए ग्राम पंचायतों की व्यवस्था की गई है। यदि गाँव छोटे हैं तो वहाँ दो या दो से अधिक गाँवों को मिलाकर पंचायत बनती है। ग्राम पंचायतों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों के निवासी अपने गाँवों का प्रबन्ध स्वयं करते हैं। गाँव के लिए यह व्यवस्था पंचायत राज व्यवस्था के नाम से विख्यात है। गांधी जी पंचायती राज व्यवस्था के बड़े पक्षधर थे। उनका मत था कि जब तक भारत के ग्रामों में जीवन का आधार लोकतान्त्रिक नहीं होगा तब तक भारत में वास्तविक प्रजातन्त्र की स्थापना नहीं होगी। देश के विभिन्न राज्यों में स्थानीय शासन की स्थापना उन राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा निर्मित कानूनों के अनुसार की गई है। इस कारण सभी राज्यों के स्थानीय शासन समान न होकर भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं। मध्य प्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था का ढाँचा निम्न प्रकार का है –
- ग्रामों के लिए ग्राम सभा और ग्राम पंचायत।
- प्रत्येक विकास खण्ड के लिए जनपद पंचायत।
- प्रत्येक जिले के लिए जिला पंचायत।
इस प्रकार पंचायतों के तीन स्तर हैं।
स्थानीय संस्थाओं के कार्य
नगर पंचायत, नगर पालिका और नगर निगम के कार्य समान ही हैं। तीनों संस्थाएँ अपने-अपने क्षेत्र में निम्नलिखित कार्य करती हैं –
- आवश्यकता के अनुसार सड़कें बनवाना तथा उनकी मरम्मत व सफाई की व्यवस्था करना।
- सार्वजनिक सड़कों तथा भवनों के लिए प्रकाश की व्यवस्था करना।
- मकानों में आग लगने पर उन्हें बुझाने की व्यवस्था करना।
- असुविधाजनक या खतरनाक भवनों को हटाना।
- आपत्तिजनक या समाज विरोधी व्यापार का विनिमयन करना।
- नगर की स्वच्छता की व्यवस्था करना।
- संक्रामक रोगों पर नियन्त्रण रखना।
- कांजी हाउस खोलना तथा उनका प्रबन्ध करना।
- जन्म-मृत्यु तथा विवाह का पंजीयन करना।
स्थानीय शहरी विकास नागरिकों को अनेक प्रकार की सुविधाएँ देता है। यह नागरिकों की स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 13 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
MP Board Class 10th Social Science Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लोकसभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या है (2009)
(i) 538
(ii) 540
(iii) 545
(iv) 552
उत्तर:
(iv) 552
प्रश्न 2.
राज्यसभा की सदस्य संख्या है (2009)
(i) 300
(ii) 275
(iii) 250
(iv) 350
उत्तर:
(iii) 250
प्रश्न 3.
राज्यसभा की सदस्यता के लिए न्यूनतम आयु है -(2009)
(i) 21 वर्ष
(ii) 25 वर्ष
(iii) 30 वर्ष
(iv) 35 वर्ष
उत्तर:
(iii) 30 वर्ष
प्रश्न 4.
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए न्यूनतम आयु सीमा है (2009)
(i) 45 वर्ष
(ii) 35 वर्ष
(iii) 40 वर्ष
(iv) 21 वर्ष
उत्तर:
(ii) 35 वर्ष
प्रश्न 5.
वित्त विधेयक का निर्णय करता है -(2009)
(i) वित्त मन्त्री
(ii) प्रधानमन्त्री
(iii) लोकसभा अध्यक्ष
(iv) राष्ट्रपति।
उत्तर:
(iv) राष्ट्रपति।
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
- संसदीय शासन प्रणाली में राष्ट्रपति …………………… का शासक होता है। (2012)
- संसद के दो सदन हैं …………………… और ……………………। (2012)
- लोक सभा में बहुमत दल के नेता को …………………… कहते हैं। (2018)
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश …………………… की आयु तक अपने पद पर कार्य कर सकते हैं।
- स्थानीय प्रशासन की सबसे छोटी इकाई …………………… है।
उत्तर:
- नाममात्र
- लोकसभा और राज्य सभा
- प्रधानमत्री
- 65 वर्ष
- ग्राम पंचायत।
सत्य/असत्य
प्रश्न 1.
सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश एवं 30 अन्य न्यायाधीश होते हैं।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 2.
धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत होता है।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 3.
भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति प्रधानमन्त्री करते हैं।
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 4.
पंचायत का कार्यकाल सात वर्ष का होता है।
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 5.
प्रधानमन्त्री की सलाह पर राष्ट्रपति लोकसभा को कभी भी भंग कर सकता है।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 6.
राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 है।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 7.
लोकसभा को उच्च सदन कहा जाता है।
उत्तर:
असत्य
जोड़ी मिलाइए
उत्तर:
- → (ख)
- → (घ)
- → (ङ)
- → (ग)
- → (क)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
प्रश्न 1.
लोकसभा की सदस्यता के लिए न्यूनतम आयु क्या है ? (2009, 17)
उत्तर:
25 वर्ष
प्रश्न 2.
भारत में मौलिक अधिकारों का संरक्षक कौन है ? (2014)
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय
प्रश्न 3.
लोकसभा में सदस्य संख्या कितनी है ? (2011)
उत्तर:
552
प्रश्न 4.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति आयु क्या है ? (2009, 11)
उत्तर:
65 वर्ष
प्रश्न 5.
राज्यपाल को पद की शपथ कौन दिलाता है ? (2012)
उत्तर:
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
प्रश्न 6.
राज्यसभा सदस्य के निर्वाचन के लिए न्यूनतम आयु कितनी है ? (2012)
उत्तर:
30 वर्ष
प्रश्न 7.
मध्य प्रदेश की विधानसभा की सदस्य संख्या क्या है ? (2011)
उत्तर:
230
प्रश्न 8.
राज्य की कार्यपालिका का प्रधान कौन होता है ? (2009)
उत्तर:
मुख्यमंत्री
प्रश्न 9.
नगरपालिका और नगर निगम के विभिन्न क्षेत्रों के निर्वाचित प्रतिनिधि को क्या कहते हैं ? (2014)
उत्तर:
पार्षद।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 13 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् में किन-किन स्तर के मन्त्री होते हैं ?
उत्तर:
केन्द्रीय मंत्रिपरिषद् में तीन प्रकार के मन्त्री होते हैं –
- कैबिनेट मन्त्री
- राज्यमन्त्री
- उपमन्त्री।
प्रश्न 2.
किस प्रक्रिया के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पदच्युत किया जा सकता है ?
उत्तर:
संसद के प्रत्येक सदन की समस्त संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के विरुद्ध उसे दुराचारी होने का प्रस्ताव पारित होने पर राष्ट्रपति द्वारा उसे उसके पद से अपदस्थ किया जा सकता है। अभी तक महाभियोग लगाकर किसी भी न्यायाधीश को नहीं हटाया गया है।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 13 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
राज्यपाल की नियुक्ति किस प्रकार होती है ? राज्यपाल पद की योग्यताएँ बताइए।
उत्तर:
राज्यपाल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। व्यवहार में राज्यपाल की नियुक्ति संघीय मन्त्रिपरिषद् की सलाह पर राष्ट्रपति करते हैं। राज्यपाल की अनुपस्थिति में राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राज्यपाल का पद संभालते हैं।
राज्यपाल पद की योग्यताएँ –
- वह भारत का नागरिक हो।
- उसकी आयु 35 वर्ष पूरी हो चुकी है।
- वह संघ या राज्य में कहीं लाभ के पद पर न हो।
- वह संसद या राज्य विधानमण्डल का सदस्य न हो।
प्रश्न 2.
राज्यपाल की प्रमुख विधायी शक्तियाँ लिखिए। (2009)
उत्तर:
राज्यपाल की प्रमुख विधायी शक्तियाँ –
- राज्यपाल विधानसभा का अनिवार्य अंग होता है। वह विधानसभा की बैठकों को बुलाता है, बैठकों को स्थगित करता है तथा उन्हें विसर्जित करता है। मुख्यमन्त्री के परामर्श पर विधासभा को भंग कर सकता है। आवश्यकतानुसार विधानमण्डलों को अपना सन्देश भेज सकता है।
- विधान मण्डलों द्वारा स्वीकृति विधेयकों पर राज्यपाल की स्वीकृति अनिवार्य है। वित्त विधेयकों के अतिरिक्त राज्यपाल विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को पुनः विचार के लिए वापस भेज सकता है।
- जब विधानसभा का अधिवेशन न चल रहा हो तो राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकता है।
- जब राज्यपाल को यह अनुभव होता है कि राज्य का प्रशासन संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार चलना सम्भव नहीं हो रहा हो तब वह राज्य में संविधान तंत्र की विफलता की सूचना राष्ट्रपति को देता है। राज्यपाल पोर्ट के आधार पर ही राष्ट्रपति राज्य में संकटकाल लागू करता है। ऐसी स्थिति में वह राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है।
प्रश्न 3.
व्यवस्थापिका के कोई पाँच कार्य लिखिए। (2016)
उत्तर:
व्यवस्थापिका के प्रमुख कार्य निम्न हैं –
- कानून निर्माण-देश के शासन को संचालित करने के लिए कानूनों के निर्माण का कार्य व्यवस्थापिका करती है।
- संविधान संशोधन आवश्यकतानुसार संविधान में व्यवस्थापिका आवश्यक संशोधन करने का कार्य करती है।
- प्रशासनिक कार्य-व्यवस्थापिका कार्यपालिका पर नियन्त्रण करने का महत्वपूर्ण कार्य करती है।
- राज्य व शासन की नीति का निर्धारण-राज्य को दिशा देने एवं नीति-निर्धारण का कार्य व्यवस्थापिका करती है।
- वित्त सम्बन्धी कार्य-सरकार द्वारा निर्धारित करों को लगाने और करों को कम या समाप्त करने तथा शासन के व्ययों को स्वीकृति प्रदान करने का कार्य व्यवस्थापिका द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 4.
कार्यपालिका क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कार्यपालिका – कार्यपालिका सरकार का दूसरा महत्वपूर्ण अंग है। सरकार के समस्त अंगों की कार्यकुशलता के लिए अन्तिम रूप से कार्यपालिका ही उत्तरदायी है। हमारे देश में संघीय व्यवस्था होने के कारण कार्यपालिका के दो स्वरूप हैं-सम्पूर्ण देश का शासन चलाने के लिए केन्द्रीय कार्यपालिका होती है जबकि राज्यों का शासन चलाने के लिए प्रान्तीय कार्यपालिका होती है। केन्द्रीय कार्यपालिका में राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद् सम्मिलित हैं। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तथा प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू थे।
प्रश्न 5.
लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव कैसे किया जाता है ? उसकी शक्तियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
लोकसभा अध्यक्ष के कार्य लिखिए। (2009, 12, 15)
उत्तर:
लोकसभा अपने सदस्यों में से एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन करती है।
कार्य और शक्तियाँ –
- अध्यक्ष के द्वारा लोकसभा की सभी बैठकों की अध्यक्षता की जाती है और अध्यक्ष होने के नाते उसके द्वारा सदन में शान्ति व्यवस्था और अनुशासन बनाये रखने का कार्य किया जाता है।
- लोकसभा का समसत कार्यक्रम और कार्यवाही अध्यक्ष के द्वारा ही निश्चित की जाती है। वह सदन के नेता के परामर्श से विभिन्न विषयों के सम्बन्ध में वाद-विवाद का समय निश्चित करता है।
- अध्यक्ष ही यह निश्चय करता है कि कोई विधेयक वित्त विधेयक है या नहीं।
- संसद और राष्ट्रपति के बीच सारा पत्र व्यवहार उसके द्वारा ही होता है।
- कार्यपालिका व शासन की अन्य सत्ताओं से सदन के सदस्यों के अधिकारों की रक्षा का कार्य अध्यक्ष के द्वारा ही किया जाता है।
इस प्रकार लोकसभा के अध्यक्ष की शक्तियाँ काफी विस्तृत हैं। वस्तुतः वह सदन की शक्ति, प्रतिष्ठा तथा गौरव का प्रतीक होता है।
प्रश्न 6.
राष्ट्रपति पद के लिए निर्धारित योग्यताएँ बताइए एवं उसका कार्यकाल क्या है ?
उत्तर:
राष्ट्रपति पद के लिए निर्धारित योग्यताएँ निम्न प्रकार हैं –
- वह भारत का नागरिक हो।
- उसकी आयु 35 वर्ष से कम न हो।
- उसमें वे सभी योग्यताएँ हों, जो लोकसभा के सदस्यों के लिए निर्धारित की गई हैं।
- वह केन्द्र सरकार या राज्य सरकार के अधीन आर्थिक लाभ वाले पद पर कार्य न करता हो
कार्यकाल – राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष निश्चित किया गया है।
प्रश्न 7.
भारत के राष्ट्रपति की कार्यपालिका शक्तियाँ लिखिए।
उत्तर:
भारत के राष्ट्रपति की कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियाँ निम्न प्रकार हैं –
- राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति करता है तथा उसके परामर्श पर अन्य मन्त्रियों को नियुक्त करता है।
- राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के अधिकारियों व कर्मचारियों की नियुक्त तथा नियन्त्रक व महालेखा परीक्षक की शक्तियों से सम्बन्धित नियमों का निर्माण करता है।
- राज्यों के राज्यपाल, सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य, विदेशों के लिए राजदूतों आदि की नियुक्ति वही करता है।
- अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में वह अपने देश का प्रतिनिधित्व करता है।
- वह भारत की जल, थल और वायु तीनों प्रकार की सेनाओं का प्रधान सेनापति होता है। उसी के नाम से युद्ध या युद्धबन्दी की घोषणा होती है।
- राष्ट्रपति यह देखता है कि राज्यों का शासन प्रबन्ध संविधान के अनुसार चल रहा है या नहीं।
प्रश्न 8.
भारत के राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ क्या हैं ?
उत्तर:
भारत के राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ निम्न प्रकार हैं –
- राष्ट्रपति संसद के अधिवेशन को बुलाता है और अधिवेशन समाप्ति की घोषणा करता है।
- राष्ट्रपति को राज्यसभा के 12 सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार है।
- संसद द्वारा पास किया गया विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षरों से कानून बनता है।
- अध्यादेश जारी करके आवश्यकता पड़ने पर संसद का अधिवेशन बुलाता है।
- राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने का अधिकार है लेकिन इस अधिकार का प्रयोग राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की सलाह से करता है।
प्रश्न 9.
मुख्यमन्त्री के कोई पाँच कार्य लिखिए। (2016)
उत्तर:
मुख्यमन्त्री के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –
- मुख्यमन्त्री का कार्य मन्त्रिपरिषद् का गठन करना होता है।
- मन्त्रियों के बीच विभागों का वितरण करता है।
- मुख्यमन्त्री ही मन्त्रिपरिषद् की बैठकों की अध्यक्षता करता है।
- आवश्यकता पड़ने पर मन्त्रियों को उनके विभाग से सम्बन्धित कार्य के लिए निर्देश दे सकता है।
- मुख्यमन्त्री राज्यपाल एवं मन्त्रिपरिषद् के बीच की कड़ी के रूप में कार्य करता है। वह मन्त्रिपरिषद् के निर्णयों के सम्बन्ध में राज्यपाल को सूचना देता है।
प्रश्न 10.
प्रधानमन्त्री शासन का केन्द्रबिन्दु है। स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्रधानमन्त्री के पद का महत्व लिखिए।
उत्तर:
भारत में प्रधानमन्त्री का पद विशेष महत्त्व का होता है। वह प्रशासनिक व्यवस्था का आधार होता है। वह मन्त्रिमण्डल का अध्यक्ष, राष्ट्रपति का प्रमुख परामर्शदाता तथा लोकसभा का नेता होता है। मन्त्रिमण्डल के सदस्यों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमन्त्री की सिफारिश के अनुसार की जाती है। वह अपने मन्त्रिमण्डल के सहयोग से राष्ट्र की प्रशासनिक तथा आर्थिक नीतियों का निर्माण करता है। वह शासन के विभिन्न विभागों में समन्वय स्थापित करता है। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में प्रधानमन्त्री राष्ट्र का नेतृत्व करता है। इस प्रकार संसद, देश तथा विदेश में प्रधानमन्त्री शासन-सम्बन्धी नीति का प्रमुख अधिकृत प्रवक्ता होता है।
प्रश्न 11.
प्रधानमन्त्री और मन्त्रिपरिषद के आपसी सम्बन्धों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
- प्रधानमन्त्री, मन्त्रिपरिषद् की बैठकों की अध्यक्षता करता है और मन्त्रिमण्डल की समस्त कार्यविधि पर उसका पूर्ण नियन्त्रण होता है।
- मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों में विभागों का वितरण प्रधानमन्त्री के द्वारा ही किया जाता है।
- प्रधानमन्त्री मन्त्रियों के विभागों में परिवर्तन कर सकता है और उनसे त्यागपत्र की माँग कर सकता है।
प्रश्न 12.
‘केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद्’ का गठन किस तरह किया जाता है ?
उत्तर:
लोकसभा के बहुमत दल वाले नेता को राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है और प्रधानमन्त्री की सलाह से अन्य मन्त्रियों को नियुक्त करता है। राष्ट्रपति के लिए यह आवश्यक है कि वह लोकसभा के बहुमत प्राप्त दल के नेता को ही प्रधानमन्त्री चुने। अन्य मन्त्रियों के चुनाव में भी राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री का परामर्श मानने के लिए बाध्य है। संविधान में यह निश्चित नहीं किया गया है कि मन्त्रिमण्डल में कितने मन्त्री होंगे। इनकी संख्या आवश्यकतानुसार प्रधानमन्त्री निश्चित करता है। प्रत्येक मन्त्री को प्रायः एक या अधिक विभागों का अध्यक्ष बनाया जाता है।
प्रश्न 13.
सामूहिक उत्तरदायित्व से क्या आशय है ?
अथवा
“मन्त्रिपरिषद् एक साथ तैरती है और एक साथ डूबती है।” इस कथन का सत्यापन कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त उत्तरदायित्व से आशय यह है कि मन्त्री अपने कार्यों के लिए संसद के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी हैं। मन्त्रिमण्डल द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय समस्त मन्त्रिमण्डल का निर्णय माना जाता है और संसद यदि किसी एक भी मन्त्री या प्रधानमन्त्री के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पास कर दे तो सम्पूर्ण मन्त्रिमण्डल को अपना त्याग-पत्र देना पड़ता है। भारत में मन्त्रिपरिषद् केवल लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी है।
प्रश्न 14.
उच्चतम न्यायालय गठन किस तरह होता है ? समझाइए।
उत्तर:
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्त राष्ट्रपति करता है। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में वह उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों से परामर्श ले सकता है। अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का परामर्श लेता है। इस समय उच्चतम न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 30 अन्य न्यायाधीश हैं।
प्रश्न 15.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए क्या योग्यताएँ होनी चाहिए ?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की योग्यताएँ-सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए निम्न योग्यताएँ होनी चाहिए
- वह भारत का नागरिक हो।
- वह किसी उच्च न्यायालय या दो या दो से अधिक न्यायालयों में लगातार कम-से -कम 5 वर्ष तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो अथवा किसी एक या एक से अधिक उच्च न्यायालय में कम-से-कम 10 वर्ष अधिवक्ता रह चुका हो।
- राष्ट्रपति की दृष्टि में वह कोई उत्कृष्ट विधिवेत्ता हो।
प्रश्न 16.
किस प्रक्रिया के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पदच्युत किया जा सकता है ?
उत्तर:
संसद के प्रत्येक सदन की समस्त संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के विरुद्ध उसे दुराचारी होने का प्रस्ताव पारित होने पर राष्ट्रपति द्वारा उसे उसके पद से अपदस्थ किया जा सकता है। अभी तक महाभियोग लगाकर किसी भी न्यायाधीश को नहीं हटाया गया है।
प्रश्न 17.
राज्य की विधानसभा की रचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राज्य की विधानसभा विधानमण्डल का निम्न सदन है। इसके सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा सम्पन्न होता है। राज्य के सभी स्त्री-पुरुषों को जिनकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक है, मतदान करने का अधिकार होता है।
कार्यकाल – राज्य विधानसभा का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है परन्तु इस अवधि से पूर्व भी राज्यपाल द्वारा इसे भंग किया जा सकता है।
सदस्य संख्या – भारतीय संविधान के अनुसार किसी भी राज्य की विधानसभा में 500 से अधिक तथा 60 से कम सदस्य नहीं हो सकते हैं।
सदस्यों की योग्यताएँ
- वह भारत का नागरिक हो।
- कम से कम 25 वर्ष की आयु का हो।
- वह सरकार के अधीन लाभ के पद पर न हो।
- वह संसद द्वारा निर्धारित योग्यताएँ पूरी करता हो।
प्रश्न 18.
ग्राम पंचायत के कोई पाँच कार्य लिखिए।
उत्तर:
ग्राम पंचायत के निम्नलिखित पाँच कार्य हैं –
- गाँवों में सफाई की व्यवस्था करना तथा सड़कों, कुओं, तालाबों आदि का निर्माण करना।
- ग्रामीण सड़कों पर प्रकाश की व्यवस्था करना।
- सड़कों के किनारे नालियों का निर्माण करना।
- मृत्यु और जन्म का लेखा रखना।
- संक्रामक रोगों की रोकथाम की व्यवस्था करना।
प्रश्न 19.
जिला पंचायत का गठन कैसे होता है ?
उत्तर:
जिला पंचायत का गठन राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा करती है। इस अधिसूचना द्वारा सम्पूर्ण जिले को इतनी संख्या में विभाजित किया जाता है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या यथासम्भव 50,000 हो। एक निर्वाचन क्षेत्र से एक सदस्य निर्वाचित किया जाता है। किसी भी जिला पंचायत के सदस्यों की संख्या कम-से-कम 10 और अधिक-से-अधिक 35 हो सकती है। जिला पंचायतों में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए उनके जिले में स्थान जनसंख्या के अनुपात में आरक्षित रखे जाएँगे।
प्रत्येक जिला पंचायत का निर्माण निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर होता है –
- निर्वाचन क्षेत्र से चुने गये सदस्य।
- जिला सहकारी बैंक तथा विकास बैंक का अध्यक्ष।
- लोकसभा के वे समस्त सदस्य जो संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो पूर्णरूप में या अल्परूप में जिले का भाग है।
- मध्य प्रदेश राज्यसभा से निर्वाचित राज्यसभा के वे समस्त सदस्य जिनका नाम उस जिले में किसी भी ग्राम पंचायत की मतदाता सूची में हो।
- राज्य विधानसभा के वे सदस्य जो उस जिले से चुने गये हों।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 13 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लोकसभा की किन्हीं पाँच शक्तियों का वर्णन कीजिए। (2014)
उत्तर:
लोकसभा की शक्तियाँ निम्न प्रकार हैं –
(1) विधायी शक्ति – लोकसभा का प्रमुख कार्य विधि निर्माण है। संविधान के अनुसार विधि निर्माण में लोकसभा एवं राज्यसभा की शक्तियाँ बराबर हैं परन्तु व्यवहार में लोकसभा ज्यादा शक्तिशाली है। साधारण रूप से समस्त महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तुत किए जाते हैं।
(2) कार्यपालिका पर नियन्त्रण – संविधान के अनुसार मन्त्रिमण्डल लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। मन्त्रिमण्डल तब तक ही क्रियाशील रह सकता है जब तक लोकसभा का उसमें विश्वास है। लोकसभा के सदस्य मंत्रियों से प्रश्न पूछकर, शासकीय नीतियों पर कार्यस्थगन प्रस्ताव तथा अविश्वास प्रस्ताव रखकर सरकार पर नियन्त्रण रखते हैं।
(3) वित्तीय शक्ति – संविधान के द्वारा वित्तीय मामलों में लोकसभा को शक्तिशाली बनाया गया है। वित्त विधेयक लोकसभा में ही पारित किए जाते हैं- यद्यपि वित्त विधेयक लोकसभा से पारित होने के बाद राज्यसभा में जाते हैं किन्तु राज्यसभा के द्वारा धन विधेयको पर 14 दिनों के अन्दर स्वीकृति देनी होती है।
(4) संविधान में संशोधन – लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर संविधान में संशोधन कर सकती है।
(5) विविध कार्य – लोकसभा राष्ट्रपति पर महाभियोग भी लगा सकती है, उपराष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए राज्यसभा के पारित प्रस्ताव पर चर्चा करती है, उच्च एवं उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीशों के विरुद्ध महाभियोग प्रस्तावों पर चर्चा करती है। राष्ट्रपति द्वारा लगाए गए संकटकाल की पुष्टि एक माह के भीतर लोकसभा द्वारा होना अनिवार्य है। अन्यथा ऐसी घोषणा अपने आप निरस्त हो जायेगी।
प्रश्न 2.
उच्च न्यायालय की रचना का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
अथवा
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति किस प्रकार होती है ?
उत्तर:
प्रत्येक राज्य में एक उच्च न्यायालय होता है जिसके अधीन अन्य न्यायालय कार्य करते हैं, परन्तु संसद दो से अधिक राज्यों के लिए भी एक ही उच्च न्यायालय की स्थापन कर सकती है। उच्च न्यायालय के मुख्य तथा कुछ अन्य न्यायाधीश होते हैं, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
नियुक्ति – उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा राज्य के राज्यपाल से सलाह लेता है। अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय वह सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा राज्यपाल के अतिरिक्त राज्य के मुख्य न्यायाधीश से भी सलाह लेता है।
योग्यताएँ – उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए भारत का नागरिक होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त वह कम-से-कम दस वर्ष तक किसी अधीनस्थ न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो अथवा कम-से-कम दस वर्ष तक उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में कार्य कर चुका हो।
कार्यकाल – उच्च न्यायालय के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु होने पर अवकाश ग्रहण कर सकते हैं। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल 62 वर्ष की आयु तक ही निश्चित किया गया है।
प्रश्न 3.
उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उच्च न्यायालय प्रत्येक राज्य का उच्चतम न्यायालय होता है। अन्य शब्दों में, प्रत्येक राज्य में वहाँ की न्यायपालिका के शिखर पर एक उच्च न्यायालय की व्यवस्था है। उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है –
- आरम्भिक क्षेत्राधिकार
- अपील सम्बन्धी क्षेत्राधिकार
- प्रशासकीय क्षेत्राधिकार
(1) आरम्भिक क्षेत्राधिकार – आरम्भिक क्षेत्राधिकारों में निम्नलिखित तथ्य आते हैं –
- संविधान की व्याख्या करना।
- नागरिकों के अधिकारों के सुरक्षा सम्बन्धी मामले। यदि कोई अधिकारी या सरकारी संस्था नागरिकों के मौलिक अधिकारों का अपहरण करता है, तो उच्च न्यायालय उसके विरुद्ध लेख जारी कर सकता है; जैसे-परमादेश, अधिकार पृच्छा आदि
- कम्पनी कानून से सम्बन्धित मामले उच्च न्यायालय में आरम्भ किये जा सकते हैं।
- वसीयत, विवाह-विच्छेद आदि के मामले भी उच्च न्यायालय सुनता है।
(2) अपील सम्बन्धी क्षेत्राधिकार – उच्च न्यायालय अपने अधीन न्यायालयों के निर्णयों की अपीलें सुनता है। इसमें दीवानी, फौजदारी तथा राजस्व सम्बन्धी सभी प्रकार के मुकदमे हो सकते हैं। फौजदारी मुकदमों में सत्र न्यायालय द्वारा दिये गये मृत्युदण्ड आदेश पर उच्च न्यायालय की पुष्टि आवश्यक है।
(3) प्रशासकीय क्षेत्राधिकार – प्रशासकीय अधिकार के अन्तर्गत राज्यपाल, उच्च न्यायालय के परामर्श से ही जिला न्यायाधीश की नियुक्ति करता है। इसके अतिरिक्त उच्च न्यायालय को अपने अधीन न्यायालयों का निरीक्षण करने तथा उनको नियन्त्रण में रखने का भी अधिकार है। यदि अधीन न्यायालय में कोई ऐसा अभियोग चल रहा है, जिसमें भारतीय संविधान की व्याख्या का मामला निहित हो, तो ऐसे मुकदमे को उच्च न्यायालय अपने पास मँगा सकता है।